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मुद्रा संस्कृत में मुद्रा शब्द का अर्थ शरीर की विशेष भाव-भंगिमा या परवर्ती से है। दूसरे शब्दों में मुद्रा किसी स्थिति विशेष या भावभंक्षगिमा विशेष का बोध कराती है। इस अर्थ में मुद्रा से तात्पर्य आसन एवं प्रणायाम के बीच की उस स्थिति से है जिसमें दृष्टि बंद आदि यौगिक क्रियाओं की सहायता से साधक शरीर और मन की ऐसी स्थिति में पहुंच जाता है जिसके द्वारा उसे अचेतन इच्छा शक्...
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संस्कृत में मुद्रा शब्द का अर्थ शरीर की विशेष भाव-भंगिमा या परवर्ती से है। दूसरे शब्दों में मुद्रा किसी स्थिति विशेष या भावभंक्षगिमा विशेष का बोध कराती है। इस अर्थ में मुद्रा से तात्पर्य आसन एवं प्रणायाम के बीच की उस स्थिति से है जिसमें दृष्टि बंद आदि यौगिक क्रियाओं की सहायता से साधक शरीर और मन की ऐसी स्थिति में पहुंच जाता है जिसके द्वारा उसे अचेतन इच्छा शक्ति का ज्ञान प्राप्त करने में सहायता मिलती है।
अनामिका उंगली को अंगूठे के मूल पर लगाकर अंगूठे से दबाएं।
सूर्य मुद्रा के लाभ हैं–
इस मुद्रा से शरीर संतुलित होता है, वजन घटता है वह मोटापा कम करता है और शरीर में उष्णता की वृद्धि होकर पाचन में मदद मिलती है। इससे तनाव में कमी शक्ति का विकास तथा रक्त में कॉलेस्ट्रॉल कम हो जाता है। इस मुद्रा के अभ्यास से मधुमेह,जिगर के दोष दूर हो जाते हैं।
सावधानी –
इस मुद्रा को दुर्बल व्यक्ति ना करें। गर्मी में अधिक समय तक ना करें।
लिंक मुद्रा–
अपने हाथों की मुट्ठी बांधे तथा बाएं हाथ के अंगूठे को खड़ा रखें, अन्य उंगलियां परस्पर बंधी हुई हो।
लिंग मुद्रा के लाभ –
यह मुद्रा शरीर में गर्मी बढ़ती है इससे सर्दी-जुकाम,दमा-खांसी, साइनस लकवा तथा निम्न रक्षक में लाभ होता है। यह कफ को सूखाती है ।
सावधानी–
इसका प्रयोग करने पर जल फल फलों का रस घी और दूध सेवन अधिक मात्रा में न करें। इसे अधिक लंबे समय तक ना करें।
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