Blog by Khushi prerna | Digital Diary
" To Present local Business identity in front of global market"
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मेडिटेशन का अभ्यास करना एक ऐसी साधना है जो हमारे जीवन को सही दिशा देने और स्वस्थ बनाने में मदद कर सकता है। खासकर, सुबह ध्यान लगाने के बहुत सारे फायदे हैं जो हमें न केवल मानसिक रूप से बल्कि शारीरिक रूप से भी फायदा पहुंचाता है। इस लेख में, हम जानेंगे कि सुबह ध्यान लगाने से क्या फायदे मिलते हैं।
अगर भविष्य में सफल होना है तो सबसे पहले मानसिक शांति और मन की स्थिरता जरूरी है। मन बड़ा चंचल होता है जिसने इसे नियंत्रित कर लिया वो किसी भी बाधा को पार कर सकता है और कहीं भी पहुंच सकता है लेकिन ये इतना आसान नहीं है। मन की गति इतनी तेज़ होती है कि इस पर कंट्रोल करना हर किसी के बस की बात नहीं होती। यही कारण है कि ऋषि मुनियों और बड़े-बड़े ज्ञानियों ने ध्यान को मन को नियंत्रित करने का सबसे बड़ा टूल बताया है। ध्यान लगाने से मन एकाग्र होता है और एकाग्र मन बड़े से बड़े फैसले करने में सहज और सक्षम होता है।
सुबह-सुबह आप जो करेंगे उसका असर आपके पूरे दिन पर रहता है इसलिए अगर आप खुद से कनेक्ट होना चाहते हैं और आप चाहते हैं कि आप खुद को जान सकें तो सुबह ध्यान जरूर लगाएं। ये पूरा दिन आपका आपसे कनेक्शन बनाए रखता है। ध्यान के जरिए आप जीवन के मूल्यों को समझते हैं। इससे आप अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में सफल हो सकते हैं।
ऐसा कहा जाता है कि अगर शरीर ही स्वस्थ नहीं तो कितने ही सफल हो जाओ कोई फायदा नहीं। सुबह-सुबह जो लोग प्रतिदिन मेडिटेशन करते हैं वो मेडिटेशन ना करने वालों के मुकाबले बीमारियों से दूर रहते हैं। यह हमारे शारीरिक स्वास्थ्य को सुधारता है। मेडिटेशन के दौरान हम गहरी सांस लेते हैं तो परिणामस्वरूप, हमारा दिल और श्वसन प्रणाली मजबूत रहती है।
Read Full Blog...ध्यान क्या है? ध्यान एक अभ्यास है जिसमें मानसिक और शारीरिक तकनीकों के संयोजन का उपयोग करके अपने दिमाग को केंद्रित या साफ़ करना शामिल है । आपके द्वारा चुने गए ध्यान के प्रकार के आधार पर, आप आराम करने, चिंता और तनाव को कम करने और बहुत कुछ करने के लिए ध्यान कर सकते हैं।
ध्यान यदि ने किसी भी चीज या कार्य पर एकाग्र होना । जितने तुम एकाग्र होगे उतने तुम उसमे डूबते जाओगे और वह खिलके बाहर आएगा। ध्यान अध्यात्मिकता की वह कड़ी है जो तुमको तुम्हारे सही अस्तित्व से जोड़ती है और आखिर में ईश्वर तक जोड़ देती है । यह तक की पतंजलि के द्वारा विरचित अष्टांग योग में भी ध्यान की अहम भूमिका है
एक क्रिया है जिसमें व्यक्ति अपने मन को चेतना की एक विशेष अवस्था में लाने का प्रयत्न करता ह
Inhe bhi padhe
Read Full Blog...मेडिटेशन का क्या अर्थ है
ध्यान एक क्रिया है जिसमें व्यक्ति अपने मन को चेतना की एक विशेष अवस्था में लाने का प्रयत्न करता है। ध्यान का उद्देश्य कोई लाभ प्राप्त करना हो सकता है या ध्यान करना अपने-आप में एक लक्ष्य हो सकता है। 'ध्यान' से अनेकों प्रकार की क्रियाओं का बोध होता है।
ध्यान या मेडिटेशन का मतलब है, अपने दिमाग को केंद्रित करना या साफ़ करना. यह एक अभ्यास है जिसमें मानसिक और शारीरिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है. ध्यान करने से मानसिक शांति मिलती है और दिमाग में ऊर्जा और सकारात्मकता आती है.
ध्यान करने का अर्थ है किसी चीज़ पर अपने विचारों को निश्चित रूप से केन्द्रित करना ताकि उसे गहराई से समझा जा सके।
ध्यान करने के फ़ायदे:
ध्यान करने से चिंता और तनाव कम होता है.
ध्यान करने से एकाग्रता, स्मरण शक्ति, आत्मविश्वास, और इच्छा शक्ति बढ़ती है.
ध्यान करने से थकान कम होती है.
ध्यान करने से दिमाग को ऊर्जा मिलती है.
ध्यान करने का तरीका:
ध्यान करने के लिए आंखें बंद करके या नीचे की ओर टकटकी लगाकर चुपचाप बैठना या आराम करना होता है.
ध्यान करने के लिए मानसिक और शारीरिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है.
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ध्यान के प्रकार और ध्यान की विधियों में अंतर है। ध्यान कई प्रकार का होता है जिसके अंतर्गत कई तरह की विधियां होती हैं। आओ जानते हैं इस संबंध में संक्षिप्त जानकारी।
. देखना : देखने को दृष्टा या साक्षी ध्यान। ऐसे लाखों लोग हैं जो देखकर ही सिद्धि तथा मोक्ष के मार्ग चले गए। इसे दृष्टा भाव या साक्षी भाव में ठहरना कहते हैं। आप देखते जरूर हैं, लेकिन वर्तमान में नहीं देख पाते हैं। आपके ढेर सारे विचार, तनाव और कल्पना आपको वर्तमान से काटकर रखते हैं। बोधपूर्वक अर्थात होशपूर्वक वर्तमान को देखना और समझना (सोचना नहीं) ही साक्षी या दृष्टा ध्यान है।
2. सुनना : सुनने को श्रवण ध्यान। सुनकर श्रवण बनने वाले बहुत है। कहते हैं कि सुनकर ही सुन्नत नसीब हुई। सुनना बहुत कठीन है। सुने ध्यान पूर्वक पास और दूर से आने वाली आवाजें। आंख और कान बंदकर सुने भीतर से उत्पन्न होने वाली आवाजें। जब यह सुनना गहरा होता जाता है तब धीरे-धीरे सुनाई देने लगता है- नाद। अर्थात ॐ का स्वर।
3. श्वास पर ध्यान : श्वास लेने को प्राणायाम ध्यान। बंद आंखों से भीतर और बाहर गहरी सांस लें, बलपूर्वक दबाब डाले बिना यथासंभव गहरी सांस लें, आती-जाती सांस के प्रति होशपूर्ण और सजग रहे। बस यही प्राणायाम ध्यान की सरलतम और प्राथमिक विधि है
4. भृकुटी ध्यान : आंखें बंदकर सोच पर ध्यान देने को भृकुटी ध्यान कह सकते हैं। आंखें बंद करके दोनों भोओं के बीच स्थित भृकुटी पर ध्यान लगाकर पूर्णत: बाहर और भीतर से मौन रहकर भीतरी शांति का अनुभव करना। होशपूर्वक अंधकार को देखते रहना ही भृकुटी ध्यान है। कुछ दिनों बाद इसी अंधकार में से ज्योति का प्रकटन होता है। पहले काली, फिर पीली और बाद में सफेद होती हुई नीली।
उक्त चार तरह के ध्यान के हजारों उप प्रकार हो सकते हैं। उक्त चारों तरह का ध्यान आप लेटकर, बैठकर, खड़े रहकर और चलते-चलते भी कर सकते हैं।
ध्यान के पारंपरिक 3 प्रकार : अब हम ध्यान के पारंपरिक प्रकार की बात करते हैं। यह ध्यान तीन प्रकार का होता है- 1.स्थूल ध्यान, 2.ज्योतिर्ध्यान और 3.सूक्ष्म ध्यान।
1.स्थूल ध्यान : स्थूल चीजों के ध्यान को स्थूल ध्यान कहते हैं- जैसे सिद्धासन में बैठकर आंख बंदकर किसी देवता, मूर्ति, प्रकृति या शरीर के भीतर स्थित हृदय चक्र पर ध्यान देना ही स्थूल ध्यान है। इस ध्यान में कल्पना का महत्व है।
2.ज्योतिर्ध्यान : मूलाधार और लिंगमूल के मध्य स्थान में कुंडलिनी सर्पाकार में स्थित है। इस स्थान पर ज्योतिरूप ब्रह्म का ध्यान करना ही ज्योतिर्ध्यान है।
3.सूक्ष्म ध्यान : साधक सांभवी मुद्रा का अनुष्ठान करते हुए कुंडलिनी का ध्यान करे, इस प्रकार के ध्यान को सूक्ष्म ध्यान कहते हैं।
1. ध्यान की योग और तंत्र में हजारों विधियां बताई गई है। हिन्दू, जैन, बौद्ध तथा साधु संगतों में अनेक विधि और क्रियाओं का प्रचलन है। विधि और क्रियाएं आपकी शारीरिक और मानसिक तंद्रा को तोड़ने के लिए है जिससे की आप ध्यानपूर्ण हो जाएं।
2. भगवान शंकर ने मां पार्वती को ध्यान की 112 विधियां बताई थी जो 'विज्ञान भैरव तंत्र' में संग्रहित हैं।
3. ओशो रजनीश ने ध्यान की 150 से अधिक विधियों का वर्णन अपने प्रवचनों में किया हैं।
1. सिद्धासन में बैठकर सर्वप्रथम भीतर की वायु को श्वासों के द्वारा गहराई से बाहर निकाले। अर्थात रेचक करें। फिर कुछ समय के लिए आंखें बंदकर केवल श्वासों को गहरा-गहरा लें और छोड़ें। इस प्रक्रिया में शरीर की दूषित वायु बाहर निकलकर मस्तिष्क शांत और तन-मन प्रफुल्लित हो जाएगा। ऐसा प्रतिदिन करते रहने से ध्यान जाग्रत होने लगेगा।
2. सिद्धासन में आंखे बंद करके बैठ जाएं। फिर अपने शरीर और मन पर से तनाव हटा दें अर्थात उसे ढीला छोड़ दें। चेहरे पर से भी तनाव हटा दें। बिल्कुल शांत भाव को महसूस करें। महसूस करें कि आपका संपूर्ण शरीर और मन पूरी तरह शांत हो रहा है। नाखून से सिर तक सभी अंग शिथिल हो गए हैं। इस अवस्था में 10 मिनट तक रहें। यह काफी है साक्षी भाव को जानने के लिए।
3. किसी भी सुखासन में आंखें बंदकर शांत व स्थिर होकर बैठ जाएं। फिर बारी-बारी से अपने शरीर के पैर के अंगूठे से लेकर सिर तक अवलोकन करें। इस दौरान महसूस करते जाएं कि आप जिस-जिस अंग का अलोकन कर रहे हैं वह अंग स्वस्थ व सुंदर होता जा रहा है। यह है सेहत का रहस्य। शरीर
और मन को तैयार करें ध्यान के लिए।
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गायत्री माता को "सूर्य मण्डल मध्यस्था" सूर्य मण्डल के मध्य में विराजमान कहा गया है। इस महामन्त्र के विनियोग में गायत्री छंद- विश्वामित्र ऋषि एवं सविता देवता का उल्लेख है। प्रातःकालीन स्वर्णिम सूर्य को सविता कहा गया है। वस्तुतः यह ज्ञान स्वरूप परमात्मा का नाम है। अग्नि पिण्ड सूर्य तो उसकी स्थूल प्रतिमा भर है। ईश्वर की स्वयंभू प्रतिमा सूर्य को कहा गया है। ॐ उसका स्वोच्चारित नाम है।
सूर्य को प्रकाश और तेज का प्रतीक माना गया है। चेतना क्षेत्र में इस ज्ञान को प्रकाश कहा गया है। लेटेन्ट लाइट, डिवाइन लाइट, ब्रह्मज्योति आदि शब्दों में मानवी सत्ता में दैवी अवतरण के प्रकाश के उदय की संज्ञा दी गई है। सूर्य का ध्यान करते समय साधक की भावना रहती है कि सविता देव से निस्सृत दिव्य किरणें मेरे कायकलेवर में प्रवेश करती हैं। फलस्वरूप स्थूल शरीर में बल, सूक्ष्म शरीर में ज्ञान और कारण शरीर में श्रद्धा का संचार करती हैं। तीनों शरीर इन अनुदानों सहित अवतरित होने वाले प्रकाश से परिपूर्ण होते चले जाते हैं। यह संकल्प जितना गहरा होता है, उसी अनुपात से चेतना में उपरोक्त विविध विशेषताएं विभूतियाँ उभरती चली जाती हैं। इस प्रकार यह ध्यान आत्म-सत्ता के बहिरंग एवं अन्तरंग पक्ष को विकसित करने में असाधारण रूप से सहायक सिद्ध होता है।
प्रकाश ध्यान का आरम्भ सूर्य को पूर्व दिशा में उदय होते हुए परिकल्पित करने की भावना से होता है। उसकी किरणें अपने काय-कलेवर में प्रवेश करती हैं और तीनों शरीरों को असाधारण रूप से सशक्त बनाती हैं। स्थूल शरीर को अग्निपुंज, अग्निपिण्ड-सूक्ष्म शरीर को प्रकाशमय, ज्योतिर्मय, कारण शरीर को दीप्तिमय, कान्तिमय, आभामय बनाती हैं। समूची जीवन सत्ता ज्योतिर्मय हो उठती है। इस स्थिति में स्थूल शरीर को ओजस्, सूक्ष्म को तेजस् और कारण शरीर को वर्चस् के अनुदान उपलब्ध होते हैं। इस ध्यान धारणा का चमत्कारी प्रतिफल साधक को शीघ्र ही दृष्टिगोचर होने लगता है। स्थूल शरीर में उत्साह एवं स्फूर्ति, सूक्ष्म शरीर में संतुलन एवं विवेक, कारण शरीर में श्रद्धा एवं भक्ति का दिव्य संचार इस प्रकाश ध्यान के सहारे उठता, उभरता दीखता है। मोटी दृष्टि से यह लाभ सामान्य प्रतीत हो सकते हैं। किन्तु जब इस अन्तःविकास की प्रतिक्रिया सामने प्रस्तुत होगी तो प्रतीत होगा कि यह सामान्य साधना कितना असामान्य प्रभाव परिणाम उपलब्ध कराती है।
Read Full Blog...मेडिटेशन क़े प्रकार
ज़ेन मेडिटेशन बौद्ध परंपरा का एक हिस्सा है। इसका अभ्यास एक ट्रेंड प्रोफेशनल के मार्गदर्शन में करना चाहिए। इसके अभ्यास में कुछ विशेष स्टेप्स और आसन शामिल होते हैं। यह आपके दिमाग को तेज़ करने में मदद करता है और आपको तनाव दूर करके रिलैक्सेशन प्रदान करता है।
माइंडफुलनेस मेडिटेशन का ध्यान का एक रूप है जो अभ्यास करने वाले व्यक्ति को वर्तमान में जागरूक और उपस्थित रहने में मदद करता है। इस मेडिटेशन के अभ्यास से आप खुद को सचेत और सतर्क बना सकते हैं। इसके अभ्यास के दौरान आप अपने आस-पास हो रही सभी गतिविधियों, ध्वनियों और महक पर ध्यान केंद्रित करते हैं। इसका अभ्यास कहीं भी, कभी भी किया जा सकता है।
हिंदू और ईसाई धर्म में पॉपुलर, आध्यात्मिक ध्यान आपको अपने ईश्वर के साथ एक गहरा संबंध बनाने में मदद करता है। इस ध्यान का अभ्यास करने के लिए आपको इतना सुनिश्चित करना है कि आप मौन में बैठें और अपनी सांसों पर ध्यान केंद्रित करें। ध्यान करते हुए आप का हर एक विचार आपकी सांसों पर केंद्रित होना चाहिए।
कुंडलिनी योग ध्यान का एक प्रकार है जिसमें आप शारीरिक रूप से सक्रिय होते हैं। इसमें गहरी सांस लेने और मंत्रों का उच्चारण करने के साथ-साथ कई मवमेंट्स भी शामिल होते हैं। इसके लिए आपको आमतौर पर क्लास लेने की आवश्यकता होती है या फिर आप किसी प्रशिक्षक से सीख सकते हैं। हालांकि, आफ घर पर भी आसन और मंत्र सीख सकते हैं।
मंत्र एक संस्कृत शब्द है जो दो शब्दों से मिलकर बना है मन (man) जिसका अर्थ है "मस्तिष्क" या "सोचना" और त्राइ (trai) जिसका अर्थ है ''रक्षा करना'' या ''से मुक्त करना''। इसलिए मंत्र का मतलब है अपने मन को मुक्त करना या सोच को मुक्त करना। मंत्र मेडिटेशन का अभ्यास आपके मन को नेगेटिव विचारों से दूर करके इसे सकारात्मकता की ओर ले जाता है।
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मेडिटेशन कई रूप में आपके स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है
यह शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से आपको सेहतमंद बनाता है। मेडिटेशन का नियमित रूप से अभ्यास करने से आपको निम्न फायदे मिल सकते हैं:-
तनाव को कम करना मेडिटेशन के फायदों में से एक है। यह कोर्टिसोल के स्तर को कंट्रोल करके आराम देता है।
मेडिटेशन एंग्जायटी, डिप्रेशन और निराशा जैसी मानसिक स्थितियों में आपके दिमाग को शांत करके राहत दिलाता है।
मेडिटेशन का नियमित अभ्यास एंग्जायटी डिसऑर्डर के लक्षणों को भी कम करता है जैसे कि फोबिया, सोशल एंग्जायटी, पैरानॉइड विचार, कम्पलसिव डिसऑर्डर आदि।
मेडिटेशन एजिंग के प्रोसेस को धीमा करता है और आपको जवां बनाए रखने में मदद करता है।
मेडिटेशन करने से आप रिलैक्स रहते हैं जिससे आपको अच्छी नींद लेने में मदद मिलती है।
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चक्र सूक्ष्म ऊर्जा केंद्र हैं जो हमारे शरीर के भीतर मौजूद होते हैं, जिनमें से प्रत्येक हमारे अस्तित्व के विशिष्ट गुणों और पहलुओं से जुड़ा होता है। ऊर्जा के ये घूमते हुए पहिये, जब संतुलन में होते हैं, तो हमारे शारीरिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य में योगदान करते हैं। प्रत्येक चक्र की अनूठी विशेषताओं को समझकर, हम अपने और अपने आस-पास की दुनिया के साथ एक गहरा संबंध विकसित कर सकते हैं।
चक्र प्रणाली ऊर्जा प्रवाह और संतुलन के सिद्धांत पर काम करती है। जब चक्र सामंजस्य में होते हैं, तो ऊर्जा हमारे पूरे शरीर में स्वतंत्र रूप से प्रवाहित होती है, जो हमारे शारीरिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक कल्याण का समर्थन करती है। हम ऊर्जा प्रवाह की अवधारणा में गहराई से उतरेंगे, उन कारकों पर चर्चा करेंगे जो चक्र प्रणाली के भीतर संतुलन को बाधित कर सकते हैं और सामंजस्य और जीवन शक्ति को बहाल करने की तकनीकों की खोज करेंगे।
चक्र हमारे शारीरिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य से घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए हैं। चक्र प्रणाली में असंतुलन या रुकावट शारीरिक बीमारियों, भावनात्मक असंतुलन या आध्यात्मिक वियोग के रूप में प्रकट हो सकती है।
चक्रों, ऊर्जा प्रवाह और हमारे समग्र स्वास्थ्य पर उनके प्रभाव की इस खोज के माध्यम से, हम अपनी चक्र ध्यान यात्रा की नींव रखते हैं। तो, आइए हम अपनी खोज जारी रखें, चक्र प्रणाली के रहस्यों को खोलें और चक्र ध्यान की परिवर्तनकारी क्षमता की खोज करें।
चक्र ध्यान हमारे शारीरिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए कई तरह के लाभ प्रदान करता है। जब हम इस अभ्यास में शामिल होते हैं, तो हम अपने चक्रों की परिवर्तनकारी शक्ति का उपयोग करते हैं, जिससे हमारे भीतर संतुलन और सामंजस्य बढ़ता है। आइए चक्र ध्यान से मिलने वाले अविश्वसनीय लाभों के बारे में जानें:
1.चक्रों को संतुलित और सक्रिय करना: चक्र ध्यान हमारे शरीर में ऊर्जा केंद्रों को संरेखित और सक्रिय करने में मदद करता है, जिससे ऊर्जा का स्वस्थ प्रवाह बढ़ता है। विशिष्ट चक्र ध्यान के साथ काम करके, हम असंतुलन और रुकावटों को दूर कर सकते हैं, जिससे ऊर्जा हमारे पूरे सिस्टम में स्वतंत्र और सामंजस्यपूर्ण रूप से प्रवाहित हो सके।
2.शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाना: प्रत्येक चक्र अलग-अलग अंगों और शारीरिक कार्यों से जुड़ा होता है। चक्र ध्यान के माध्यम से, हम इन क्षेत्रों को उत्तेजित और समर्थन कर सकते हैं, जिससे शारीरिक स्वास्थ्य और जीवन शक्ति को बढ़ावा मिलता है। चक्रों में संतुलन बहाल करके, हम पाचन, प्रतिरक्षा कार्य और समग्र स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में सुधार का अनुभव कर सकते हैं।
3.भावनात्मक उपचार और स्थिरता: हमारे चक्र हमारी भावनाओं से भी बहुत करीब से जुड़े हुए हैं। चक्र ध्यान हमें भावनात्मक रुकावटों को दूर करने, पिछले घावों को भरने और भावनात्मक स्थिरता विकसित करने में मदद करता है। भावनाओं से जुड़े विशिष्ट चक्रों के साथ काम करके, हम भावनात्मक बुद्धिमत्ता, लचीलापन और आंतरिक शांति की अधिक भावना को बढ़ावा दे सकते हैं।
4.बढ़ी हुई आत्म-जागरूकता और अंतर्ज्ञान: चक्र ध्यान हमारे खुद से जुड़ाव को गहरा करता है और आत्म-जागरूकता को बढ़ाता है। जैसे-जैसे हम प्रत्येक चक्र का पता लगाते हैं, हम अपनी ताकत, कमजोरियों और विकास के क्षेत्रों के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं। यह बढ़ी हुई आत्म-जागरूकता हमारे अंतर्ज्ञान और आंतरिक ज्ञान तक पहुँचने का द्वार भी खोलती है, जो हमें हमारे जीवन के पथ पर मार्गदर्शन करती है।
5.आध्यात्मिक जागृति और जुड़ाव: चक्र ध्यान आध्यात्मिक विकास और विस्तार के लिए एक शक्तिशाली उपकरण है। इस अभ्यास के माध्यम से, हम अपने उच्च स्व और दिव्य के साथ एक गहरा संबंध विकसित कर सकते हैं। चक्र ध्यान हमें चेतना की उच्च अवस्थाओं तक पहुँचने, सीमाओं से परे जाने और गहन आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि का अनुभव करने में मदद कर सकता है।
6.तनाव में कमी और आराम: चक्र ध्यान तनाव को प्रबंधित करने और आराम को बढ़ावा देने के लिए एक प्रभावी तकनीक है। चक्रों को सक्रिय और संतुलित करके, हम तनाव और संचित तनाव को दूर करते हैं, जिससे विश्राम और आंतरिक शांति की गहरी भावना पैदा होती है। यह अभ्यास चिंता को कम करने, बेहतर नींद को बढ़ावा देने और समग्र मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ाने में मदद कर सकता है।
1.अपना स्थान तैयार करें: एक शांत और आरामदायक स्थान खोजें जहाँ आपको कोई परेशान न करे। रोशनी कम करके, मोमबत्तियाँ जलाकर या चाहें तो हल्का संगीत बजाकर एक सुखद माहौल बनाएँ। सुनिश्चित करें कि आपका स्थान साफ और अव्यवस्था मुक्त हो, ताकि आप पूरी तरह से ध्यान केंद्रित कर सकें और आराम कर सकें।
2.अपना इरादा तय करें: चक्र ध्यान अभ्यास शुरू करने से पहले, अपना इरादा तय करने के लिए कुछ समय निकालें। इस अभ्यास के ज़रिए आप क्या हासिल करना या अनुभव करना चाहते हैं, इस पर विचार करें। यह उपचार, संतुलन, आत्म-खोज या कोई अन्य इरादा हो सकता है जो आपके साथ प्रतिध्वनित होता है। अपने इरादे को स्पष्ट करने से आपके ध्यान को निर्देशित करने और इसकी प्रभावशीलता को बढ़ाने में मदद मिलेगी।
3.आरामदायक स्थिति में बैठें: बैठने की ऐसी स्थिति खोजें जो आपके लिए आरामदायक हो, या तो कुशन पर या कुर्सी पर। सुनिश्चित करें कि आपकी रीढ़ सीधी हो, कंधे आराम से हों, और आपका शरीर आराम की स्थिति में हो। यदि आपके लिए यह अधिक आरामदायक हो तो आप लेटना भी चुन सकते हैं। मुख्य बात यह है कि ऐसी स्थिति खोजें जहाँ आप ध्यान के दौरान आराम से और सतर्क रह सकें।
4.आराम करें और अपनी सांस पर ध्यान केंद्रित करें: अपनी आँखें बंद करें और अपना ध्यान अपनी सांस पर केंद्रित करना शुरू करें। कुछ गहरी साँस लें, अपनी नाक से गहरी साँस लें और अपने मुँह से धीरे-धीरे साँस छोड़ें। जब आप साँस लें, तो अपनी साँस के आपके शरीर में प्रवेश करने और बाहर निकलने की अनुभूति महसूस करें। प्रत्येक साँस छोड़ने के साथ किसी भी तनाव या तनाव को दूर होने दें, जिससे आपके शरीर और मन में आराम और उपस्थिति की भावना आए।
5.चक्रों के प्रति जागरूकता लाएं: अपनी रीढ़ की हड्डी के आधार पर मूल चक्र से शुरू करते हुए, प्रत्येक चक्र पर अपनी जागरूकता लाएं, एक-एक करके, ऊपर की ओर बढ़ते हुए। प्रत्येक चक्र को एक घूमते हुए पहिये या प्रकाश के चमकते हुए गोले के रूप में कल्पना करें। प्रत्येक चक्र से जुड़ी किसी भी संवेदना या भावना को नोटिस करने के लिए कुछ समय निकालें। यदि आपको कल्पना करना चुनौतीपूर्ण लगता है, तो बस अपने शरीर में प्रत्येक चक्र के स्थान पर अपनी जागरूकता और ध्यान लाएं।
6.प्रत्येक चक्र में सांस लें: जैसे ही आप प्रत्येक चक्र पर ध्यान केंद्रित करते हैं, अपनी सांस को उस विशिष्ट क्षेत्र में निर्देशित करें। प्रत्येक साँस के साथ, चक्र में जीवंत, उपचारात्मक ऊर्जा को साँस में लेने की कल्पना करें। जब आप साँस छोड़ते हैं, तो उस चक्र से किसी भी स्थिर या अवरुद्ध ऊर्जा को छोड़ने की कल्पना करें। आप सांस लेते समय प्रत्येक चक्र से जुड़े विशिष्ट पुष्टिकरण या मंत्रों का भी उपयोग कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, हृदय चक्र के लिए, आप चुपचाप पुष्टिकरण दोहरा सकते हैं "मैं प्रेम हूँ" या "मेरा हृदय प्रेम देने और प्राप्त करने के लिए खुला है।"
7.प्रत्येक चक्र के साथ समय बिताएं: प्रत्येक चक्र के साथ अपना समय बिताएं, अपने आप को पूरी तरह से अनुभव करने और उसकी ऊर्जा से जुड़ने दें। प्रत्येक चक्र पर ध्यान केंद्रित करते समय उठने वाली किसी भी संवेदना, भावना या अंतर्दृष्टि पर ध्यान दें। यदि आपको कोई प्रतिरोध या असुविधा का सामना करना पड़ता है, तो उसे करुणा और जिज्ञासा के साथ देखें, जिससे ऊर्जा स्वाभाविक रूप से प्रवाहित और संतुलित हो सके।
8.ध्यान पूरा करें: एक बार जब आप सभी चक्रों पर ध्यान केंद्रित कर लें, तो कुछ मिनट मौन में बिताएं, अपनी सांसों का निरीक्षण करें और ऊर्जा को स्थिर होने दें। जब आप तैयार हों, तो धीरे-धीरे अपने आस-पास के वातावरण पर अपनी जागरूकता वापस लाएं। ध्यान के दौरान प्राप्त अनुभव और अंतर्दृष्टि के लिए आभार व्यक्त करने के लिए कुछ समय निकालें।
9.जर्नल लिखें या चिंतन करें: अपने चक्र ध्यान के बाद, जर्नल लिखें या अपने अनुभव पर चिंतन करें। अभ्यास के दौरान उभरे किसी भी विचार, भावना या रहस्योद्घाटन को लिखें। इससे आपको अपने बारे में अपनी समझ को गहरा करने और समय के साथ अपनी प्रगति को ट्रैक करने में मदद मिल सकती है।
10.अभ्यास को एकीकृत करें: चक्र ध्यान नियमित रूप से अभ्यास करने पर सबसे अधिक प्रभावी होता है। इसे अपने दैनिक या साप्ताहिक दिनचर्या में एकीकृत करने पर विचार करें। आप प्रत्येक दिन एक अलग चक्र पर ध्यान केंद्रित करना चुन सकते हैं या एक ही सत्र में सभी चक्रों को संतुलित करने पर काम कर सकते हैं। एक लय और अभ्यास खोजें जो आपके साथ प्रतिध्वनित हो, और चक्र ध्यान के लाभों को अपने जीवन में प्रकट होने दें
एक बार जब आप चक्र ध्यान की मूल बातों से परिचित हो जाते हैं, तो आप विशिष्ट चक्रों को ठीक करने और संतुलित करने पर ध्यान केंद्रित करके अपने अभ्यास को और बढ़ा सकते हैं। प्रत्येक चक्र जीवन के विशिष्ट गुणों और क्षेत्रों से जुड़ा होता है, और किसी विशेष चक्र पर अपना ध्यान केंद्रित करके, आप उसे संतुलित कर सकते हैं और उस क्षेत्र में उपचार को बढ़ावा दे सकते हैं। यहाँ विशिष्ट चक्रों को ठीक करने और संतुलित करने की कुछ तकनीकें दी गई हैं:
1.मूलाधार चक्र: मूलाधार चक्र को ठीक करने और संतुलित करने के लिए, अपनी रीढ़ की हड्डी के आधार पर लाल रंग की कल्पना करें। कल्पना करें कि जड़ें आपकी टेलबोन से धरती में फैल रही हैं, आपको जमीन पर टिकाए हुए हैं और स्थिरता प्रदान कर रही हैं। " मैं सुरक्षित और संरक्षित हूँ " जैसी पुष्टि भी इस चक्र को संतुलित करने में मदद कर सकती है। प्रकृति में नंगे पैर चलने या पैरों और पंजों पर ध्यान केंद्रित करने वाले योग आसनों का अभ्यास करने जैसी ग्राउंडिंग गतिविधियों में शामिल हों।
2.त्रिक चक्र (स्वाधिष्ठान): त्रिक चक्र को ठीक करने और संतुलित करने के लिए, पेट के निचले हिस्से में नारंगी रंग की कल्पना करें। नृत्य, पेंटिंग या जर्नलिंग जैसी गतिविधियों में शामिल होकर अपनी भावनाओं और रचनात्मकता से जुड़ें। आत्म-करुणा का अभ्यास करें और अपनी कामुकता को अपनाएँ। बिना किसी निर्णय के खुद को आनंद और खुशी का अनुभव करने दें।
3.सौर जाल चक्र (मणिपुर): सौर जाल चक्र को ठीक करने और संतुलित करने के लिए, अपनी नाभि के ऊपर के क्षेत्र में पीले रंग की कल्पना करें। आत्मविश्वास और आत्म-मूल्य के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करें। ऐसी गतिविधियों में शामिल हों जो आपको सशक्त बनाती हैं, जैसे कि अपनी ताकत की पुष्टि करना, लक्ष्य निर्धारित करना और उन्हें प्राप्त करना, और दृढ़ता का अभ्यास करना। अपने आहार पर ध्यान दें और ऐसी गतिविधियों में शामिल हों जो स्वस्थ पाचन तंत्र का समर्थन करती हैं
कुंडलिनी की प्रकृति कुछ ऐसी है कि जब यह शांत होती है तो आपको इसके होने का पता भी नहीं होता। जब यह गतिशील होती है तब अपको पता चलता है कि आपके भीतर इतनी ऊर्जा भी है। इसी वजह से कुंडलिनी को सर्प के रूप में चित्रित किया जाता है। कुंडली मारकर बैठा हुआ सांप अगर हिले-डुले नहीं, तो उसे देखना बहुत मुश्किल होता है।
अगर आपकी कुंडलिनी जाग्रत है, तो आपके साथ ऐसी चमत्कारिक चीजें घटित होने लगेंगी जिनकी आपने कभी कल्पना भी नहीं की होगी। कुंडलिनी जाग्रत होने से ऊर्जा का एक पूरी तरह से नया स्तर जीवंत होने लगता है, और आपका शरीर और बाकी सब कुछ भी बिल्कुल अलग तरीके से काम करने लगता है।
योग करने वाले यह मानते हैं कि योग के अभ्यास से अपने भीतर कुण्डलिनी शक्ति को जागृत किया जा सकता है। इस शक्ति को सांप का प्रतीक दिया गया है। आदि योगी शिव के सिर पर भी सांप प्रतीक के रूप में दिखाया जाता है...किस ओर इशारा करते हैं ये प्रतीक?
कुंडलिनी शक्ति का पूरा सच
कुंडलिनी की प्रकृति कुछ ऐसी है कि जब यह शांत होती है तो आपको इसके होने का पता भी नहीं होता। जब यह गतिशील होती है तब अपको पता चलता है कि आपके भीतर इतनी ऊर्जा भी है। इसी वजह से कुंडलिनी को सर्प के रूप में चित्रित किया जाता है। कुंडली मारकर बैठा हुआ सांप अगर हिले-डुले नहीं, तो उसे देखना बहुत मुश्किल होता है।
परमाणु को आप देख भी नहीं सकते, लेकिन अगर आप इस पर प्रहार करें, इसे तोड़ दें तो एक जबर्दस्त घटना घटित होती है। जब तक परमाणु को तोड़ा नहीं गया था तब तक किसी को पता भी नहीं था कि इतने छोटे से कण में इतनी जबर्दस्त ऊर्जा मौजूद है।
अगर आपकी कुंडलिनी जाग्रत है, तो आपके साथ ऐसी चमत्कारिक चीजें घटित होने लगेंगी जिनकी आपने कभी कल्पना भी नहीं की होगी। कुंडलिनी जाग्रत होने से ऊर्जा का एक पूरी तरह से नया स्तर जीवंत होने लगता है, और आपका शरीर और बाकी सब कुछ भी बिल्कुल अलग तरीके से काम करने लगता है।
कुण्डलिनी योग : कुंडलिनी शक्ति का उपयोग
ऊर्जा की उच्च अवस्था में समझ और बोध की अवस्था भी उच्च होती है। पूरे के पूरे योगिक सिस्टम का मकसद आपकी समझ और बोध को बेहतर बनाना है। आध्यात्मिक प्रक्रिया का मतलब आपकी ग्रहणशीलता को, आपकी अनुभव क्षमता को बेहतर बनाना है, क्योंकि आप उसे ही जान सकते हैं, जिसे आप ग्रहण और अनुभव करते हैं। शिव और सर्प के प्रतीकों के पीछे यही वजह है। इससे जाहिर होता है कि उनकी ऊर्जा उच्चतम अवस्था तक पहुंच गई है। उनकी ऊर्जा उनके सिर की चोटी तक पहुंच गई है और इसीलिए उनकी तीसरी आंख खुल गई है।
तीसरी आंख का अर्थ यह नहीं है कि किसी के माथे में कोई आंख निकल आई है। इसका सीधा सा मतलब यह है कि आपकी समझ का एक और पहलू खुल गया है। दो आंखों से सिर्फ वही चीजें देखी जा सकती हैं जो स्थूल हैं। अगर मैं आँखों को अपने हाथों से ढक लूं, तो ये आंखें उसे नहीं देख सकतीं। ये इन दो आंखों की सीमा है। अगर तीसरी आंख खुल चुकी है, तो इसका मतलब है कि समझ का एक और पहलू खुल चुका है। यह तीसरी आंख भीतर की ओर देखती है, जिससे जीवन बिल्कुल अलग तरह से दिखता है। इसके खुलने का मतलब है कि हर वो चीज जिसका अनुभव किया जा सकता है, उसका अनुभव किया जा चुका है
Read Full Blog...स्वयं में शांति, पृथ्वी पर शांति
ध्यान आपके आसपास के लोगों के साथ आपके संवाद को सुधारता है। विभिन्न परिस्थितियों में आप क्या कहते हैं और कैसे कार्य करते हैं, आप इसके प्रति सतर्क रहते हैं। सामान्यतः तनाव रहित समाज से लेकर वैयक्तिक सेहत और हिंसा रहित समाज से लेकर दुख रहित चेतना – यह सभी ध्यान के 'साइड इफेक्ट' हैं।
ध्यान में, उपचार संभव हो जाता है। जब मन शांत, सजग और पूर्णतः संतुष्ट है तो यह किसी लेजर बीम की भाँति होता है – जो बेहद शक्तिशाली है और उपचार संभव हो जाता है।
आज, दुनिया की चेतना में उन्नति हो रही है; फिर भी, दूसरी ओर, आप नकारात्मकता और अशांति को पाएँगे। साथ ही साथ, पहले से ज्यादा, अब लोग दुनिया के लिए चिंतित हैं। ज्यादा से ज्यादा लोग दुनिया के लिए कुछ करना चाहते हैं। अगर धरती का कोई हिस्सा जहाँ सबसे अधिक समय गर्मी पड़ती है, तो वहीं दूसरे हिस्से में सबसे लंबी सर्दी पड़ती है। दुनिया में जो आप दिन के उजाले और रात्रि की मात्रा पाते हैं, प्राय: समान ही है। इसलिए जब इस विशाल परिदृश्य को देखते हैं, तो हमें यह विश्वास रखना चाहिए कि कोई विशाल शक्ति है जो इस धरती पर हमारी देखभाल करती है और सहस्त्राब्दियों से अपना कार्य कर रही है। किन्तु इससे हमें कुछ न करने से मुक्ति तो नहीं मिल जाती।
जब क्रिया और ध्यान संतुलित हो तब जीवन सहज ही खिल उठता है।
अगर अंदरूनी शांति नहीं है तो बाहर भी शांति नहीं हो सकती। ध्यान अंदरूनी शांति सुनिश्चित करता है। जब भीतर शांति होगी तो बाहर भी शांति होगी। अगर आप क्षुब्ध हैं, हताश हैं तब आप बाहर शांति कायम नहीं कर सकते। जैसा कहा गया है – ''दान-दया घर से शुरू होते है''। परोपकार खाली कटोरे से नहीं हो सकता। इसमें पहले से कुछ होना चाहिए। इसी प्रकार, आप में शांति बाँटने के लिए आंतरिक शांति होनी चाहिए। केवल शब्द शांति नहीं व्यक्त कर सकते; शांति स्पंदन हैं। इसलिए जब आप गहराई में शांत हैं, धीर हैं तब आपकी ताकत कई गुणा बढ जाती है। जब आप इतने ताकतवर हो जाते हैं, तब आप कहीं भी जाकर शांति की बात कर सकते हैं। अतः ध्यान आपको अंदरूनी ताकत देता है। और यह शांतिदायक तरंगे आपके आसपास फैलाता है। और इसलिए ध्यान शांति के लिए आवश्यक है।
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