Blog by Khushi prerna | Digital Diary
" To Present local Business identity in front of global market"
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पहली बात तो यह है चूँकि जो लोग नित्य प्राय: ध्यान कर रहे हैं, ध्यान न भी कर रहे हों, प्रेम की गहराई में, श्रद्धा के भाव में, ध्यान जैसी ही स्थिति बन जाएगी |यह नहीं कि कुछ विधि करेगा ध्यान की, तो कुछ उसको अनुभूति शुरू होगी। प्रेम अपने आप में ही एक ध्यान विधि है। हार्दिक गहरी जो श्रद्धा है, यह भी अपने आप में एक ध्यान ही है। जिनके अंदर ऐसी गहरी श्रद्धा और ऐसा गहरा प्रेम उजागर हो जाता है, वे अपने आप में यूँ समझिए कि बिना किए हुए ही ध्यान जैसी स्थिति में रहते हैं।
नींद में शरीर की जो स्थिति है, वह एक जैसी नहीं रहेगी।परन्तु जब ध्यान में मन गहरे उतरता है, मन एकाग्र होता है, मन के विचार जब पूरे थमने लग जाते हैं तो विचारों के पूरी तरह से थमते ही एक पूर्ण रिलैक्सेशन , शरीर में और मन में पूरी तरह से शिथिलता आ जाती है। जिसके कारण से नींद जैसा अहसास आता है। पर निश्चित रूप से वह नींद नहीं होती है।
अब ध्यान के प्रभाव से वह शिथिलता आई, लेकिन कहीं न कहीं वह प्रेम ने, उस भाव ने, फिर से अंदर जो पुकार उठाई .... अब पुकार उठाई तो फिर वापिस से उस रेचन की ओर या सक्रियता की ओर वह आ जाता है ।लेकिन ऐसा कुछ बुद्धि से समझने की चेष्टा करने लगेंगे तो बुद्धि तो चक्कर में फँस ही जाएगी और कुछ नहीं होगा। तो चक्करों से मुक्ति के लिए बेहतर यह रहता है कि जब भी कभी कुछ ऐसी अनुभूति हो तो सजग रहें। जैसे अब लिख कर पूछ लिया कि यह नींद थी या कुछ और था, स्पष्ट करा लिया। लेकिन अपनी तरफ से बहुत विश्लेषण करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए
त्राटक ध्यान से खुल जाती हैं दिमाग की सारी बंद नसें जानें
शरीर को बेहतर ऊर्जा प्रदान करता एक बार करे चिंगोंन ध्यान करें
Read Full Blog...त्राटक सदियों से की जाने वाली क्रियाओं में से एक है। त्राटक का अर्थ है टकटकी। ऐसा माना जाता है कि जब हम किसी खास वस्तु पर अपनी निगारह टिकाते हैं, तो शरीर को हिलाए बिना ही मन स्थिर हो जाता है। कुल मिलाकर यह इधर-उधर भटकने वाले मन को एकाग्र और शांत करने का सबसे अच्छा तरीका है, जो आपकी नकारात्मक सोच का मुकाबला करने मास्तिष्क के काम करने की क्षमता में सुधार लिए जाना जाता है। तो आइए जानते हैं त्राटक ध्यान करने के फायदों के बारे में।
ऐसी कई एक्टिविटीज हैं, जिनमें एकाग्रता की बहुत ज्यादा जरूरत पड़ती है। लेकिन दैनिक तनाव और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के कारण बहुत से लोग लो कंसन्टे्रशवल लेवल से पीडि़त होते हैं। ऐसे में त्राटक एक मेडिटेशन टेकनीक है, जिसका उपयोग ध्यान केंद्रित करने की क्षमता को मजबूत करने के लिए किया जाता है। अगर इसे लंबे वक्त तक किया जाए, तो व्यक्तित्व में भी निखार आने लगता है।
नींद न आना जीवन की खराब गुणवत्ता से जुड़ा एक सामान्य विकार है। त्राटक, योग की 6 क्लीनसिंग टेकनीक में से एक है। जिन लोगों को नींद न आने की समस्या है, उन्हें अपने सेाने के तरीके में सुधार के लिए रोजाना नियमित रूप से त्राटक ध्यान करना चाहिए। यह अनिद्रा को दूर करने में मदद करता है।
त्राटक क्रिया अगर आप नियमित तौर पर करते हैं, तो आराम के साथ चित्त भी शांत होता है। ध्यान के दौरान आप अपना ध्यान किसी एक वस्तु पर केंद्रित करना होता है। इससे न केवल मन में चल रही उलझन को दूर करने में मदद मिलती है बल्कि दिमाग भी शांत होता है।
अगर आपकी निगाह कमजोर हो गई है, तो यह क्रिया आंखों से जुड़ी बीमारी को रोकने , इलाज करने यहां तक की इसे ठीक करने में भी मदद करती है। त्राटक क्रिया करने से आंखों की मांसपेशी मजबूत होती है और दृष्टि में चमत्कारिक सुधार होता है।
तनाव को कम करने के लिए ध्यान करने का तरीका:
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पिण्डस्थ ध्यान
शरीर स्थित आत्मा का चिन्तन करना पिण्डस्थ ध्यान है। यह आत्मा निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध से रागद्वेषयुक्त है और निश्चयनय की अपेक्षा यह बिल्कुल शुद्ध ज्ञान-दर्शन चैतन्यरूप है। निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध अनादिकालीन है और इसी सम्बन्ध के कारण यह आत्मा अनादिकाल से इस शरीर में आबद्ध है। यों तो यह शरीर से भिन्न अमूर्तिक, सूक्ष्म और चैतन्यगुणधारी है, पर इस सम्बन्ध के कारण यह अमूर्तिक होते हुए भी कथञ्चित् मूर्तिक है। इस प्रकार शरीरस्थ आत्मा का चिन्तन पिण्डस्थ ध्यान में सम्मिलित है। इस ध्यान को सम्पादित करने के लिए पाँच धारणाएँ वणित हैं- 1. पार्थिवी, 2. आग्नेय, 3. वायु, 4. जलीय और 5. तत्त्वरूपवती।
पिंडस्थ ध्यान, जैन धर्म का एक प्रकार का ध्यान है. इसमें भौतिक शरीर पर ध्यान लगाया जाता है. पिंडस्थ शब्द का अर्थ है, दमन करना या स्वयं पर ध्यान लगाकर सांसारिक आसक्तियों को खत्म करना.
पिंडस्थ ध्यान के बारे में ज़्यादा जानकारी:
पिंडस्थ ध्यान में पाँच एकाग्रताएं शामिल होती हैं. ये एकाग्रताएं हैं - पृथ्वी तत्व, अग्नि तत्व, वायु तत्व, जल तत्व, और अभौतिक आत्मा.
पिंडस्थ ध्यान में मंत्र अक्षरों पर भी ध्यान लगाया जाता है.
पिंडस्थ ध्यान में अर्हत के रूपों पर भी ध्यान लगाया जाता है.
पिंडस्थ ध्यान में शुद्ध निराकार आत्मा पर भी ध्यान लगाया जाता है.
ध्यान के बारे में कुछ और बातें:
ध्यान की सबसे गहरी अवस्था तब आती है जब व्यक्ति आत्मज्ञान को प्राप्त करता है.
ध्यान करने से मानसिक तनाव कम होता है और मानसिक विकार की स्थिति उत्पन्न नहीं होती.
ध्यान करने के लिए, आने वाले भविष्य के बारे में नहीं सोचना चाहिए.
ध्यान करने के लिए, एकाग्रता की कला का अभ्यास करना चाहिए.
रुद्र ध्यान के दौरान ऊर्जा का अनुभव
Read Full Blog...चीगोंग ध्यान:-ध्यान और कोमल गति के साथ सांस लेने का एक प्राचीन चीनी अभ्यास है. यह पारंपरिक चीनी चिकित्सा (TCM) का एक अहम हिस्सा है. चीगोंग को ध्यान के रूप में किया जाता है और आत्म-साधना के लिए भी इसका अभ्यास किया जाता है.
चीगोंग का मतलब है 'अपनी ऊर्जा का स्वामी'.
चीगोंग में कोमल गति और नियंत्रित श्वास का इस्तेमाल किया जाता है.
यह अभ्यास शरीर में ऊर्जा के प्रवाह को बेहतर बनाता है.
चीगोंग के कई मानसिक, शारीरिक, और भावनात्मक फ़ायदे हैं.
चीगोंग को सभी उम्र और फ़िटनेस स्तर के लोग कर सकते हैं.
चीगोंग को स्थिर और गतिशील दोनों तरह से किया जा सकता है.
चीगोंग को ताओवादी, बौद्ध, और कन्फ़्यूशियस दर्शन के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है.
चीगोंग को मार्शल आर्ट प्रशिक्षण में भी इस्तेमाल किया जाता है.
बेहतर रक्त परिसंचरण
बेहतर प्रतिरक्षा कार्य
मानसिक स्वास्थ्य सहायता
शांति, स्पष्टता, और आनंद
लंबी गहरी सांस लेने में हो आसान एक बार करके देखें यह ध्यान
Read Full Blog...शुक्लध्यान :-मन की अत्यन्त निर्मलता होने पर जो एकाग्रता होती है, वह शुक्लध्यान है। यह परिपूर्ण समाधि की स्थिति है। इसी ध्यान से आत्मानुभूति के द्वार खुलते हैं। शुक्ल-ध्यान की चार अवस्थाएँ निम्नलिखित हैं-
पृथक्त्व-वितर्क-वीचार- श्रुतज्ञान के आधार पर अनेक द्रव्य, गुण और पर्यायों का योग, व्यंजन एवं ध्येयगत पदार्थ के परिवर्तनपूर्वक चिन्तन पृथक्त्ववितर्कवीचार शुक्ल ध्यान है। यहाँ पृथक्त्व का अर्थ विविधता/भेद है। वितर्क का अर्थ द्वादशांगात्मक श्रुतज्ञान तथा वीचार का मतलब-अर्थ व्यञ्जन और योगों की सङ्क्रान्ति है। ध्येयगत परिवर्तन अर्थ सङ्क्रान्ति है।श्रुतज्ञानात्मक शब्दों/श्रुतवाक्यों का परिवर्तन व्यञ्जन सङ्क्रान्ति हैं तथा मन,वचन, काय योगों का परिवर्तन योग सङ्क्रान्ति है। पृथक्त्व,विर्तक और वीचार से युक्त होने के कारण यह पृथक्त्वविर्तकवीचार ध्यान कहलाता है।
यह ध्यान उपशमश्रेणी अथवा क्षपकश्रेणी में आरोहण करनेवाले, पूर्वधारी साधक श्रुतज्ञान के आलम्बनपूर्वक करते हैं। इस ध्यान में ध्याता परमाणु आदि जड़ द्रव्यों तथा आत्मा आदि चेतन द्रव्यों का चिन्तन करता है। यह चिन्तन कभी द्रव्यार्थिक दृष्टि से करता है, तो कभी पर्यायार्थिक दृष्टि से। द्रव्यार्थिक दृष्टि के चिन्तन में पुद्गल आदि विविध द्रव्यो के पारस्परिक साम्य का चिन्तन करता है तथा पयार्यार्थिक दृष्टि में वह उनकी वर्तमानकालीन विविध अवस्थाओं का विचार करता है। द्रव्यार्थिक ओर पर्यायार्थिक रूप चिन्तन की इस विविधता को पृथक्त्व कहते हैं। इसमें अर्थ, व्यञ्जन और योगों में भी परिवर्तन होता रहता है। इस ध्यान में ध्याता द्रव्य को ध्याता हुआ पर्याय को और पर्याय को ध्याता हुआ द्रव्य का ध्यान करता है। इस प्रकार द्रव्य से पर्याय और पर्याय से द्रव्य में बार-बार परिवर्तन होता रहता है।
ध्येयगत इसी परिवर्तन को अर्थ सङ्क्रान्ति कहते हैं। व्यञ्जन का अर्थ है- शब्द/श्रुतवाक्य इस ध्यान में ध्याता शब्द से शब्दान्तर का आलम्बन लेता रहता है अर्थात् कभी वह श्रुत ज्ञान के किसी शब्द के आलम्बन से चिन्तन करता है, तो कभी उसे छोड़कर दूसरे शब्द के आलम्बन से। इसी प्रकार वह कभी मनोयोग, कभी वचनयोग और कभी काययोग का आश्रय लेता है। अर्थात् योग से योगान्तर को प्राप्त होता रहता है। इतना होने पर भी उसका ध्यान नहीं छूटता, क्योकि उसमें चिन्तन सातत्य बना रहता है। तात्पर्य यह है कि इस ध्यान में श्रुतज्ञान के आलम्बनपूर्वक विविध दृष्टियों से विचार किया जाता है तथा इसमें अर्थ व्यञ्जन और योगों में परिवर्तन होता रहता है। इसलिए यह पृथक्त्वविर्तकवीचार कहलाता है। यहाँ यह द्रष्टव्य है कि ध्येयों का यह परिवर्तन सहज,निष्प्रयास और अबुद्धि पूर्वक होता है।
1.एकत्व-विर्तक-अवीचार- जिस शुक्लध्यान में श्रुतज्ञान के आधार पर किसी एक ही द्रव्य, गुण या पर्याय का योग और श्रुतवाक्यों के परिवर्तन से रहित चिन्तन होता है, वह एकत्ववितर्कवीचार ध्यान कहलाता है। पृथक्त्व और वीचार से रहित इस ध्यान में ध्याता श्रुतज्ञान के आलम्बनपूर्वक किसी एक द्रव्य या पर्याय का चिन्तन करता है। इसमें द्रव्य, पर्याय, शब्द या योग में परिवर्तन नहीं होता। तात्पर्य यह है कि ध्याता जिस द्रव्य, पर्याय, शब्द और योग का आलम्बन लेता है, अन्त तक उसमें परिवर्तन नहीं होता। ध्येयगत विविधता और वीचार से रहित होने के कारण इसे एकत्ववितर्क अवीचार ध्यान कहते हैं। मोहनीय कर्म के क्षय के उपरान्त क्षीणकषाय गुणस्थान को प्राप्त साधक यह ध्यान करते हैं। इसी ध्यान के बलपर आत्मा शेष घातिया कमों के क्षयपूर्वक वीतरागी सर्वज्ञ और सदेह परमात्मा बनता है।
2.सूक्ष्मक्रिया-प्रतिपाति- वितर्क और वीचार से रहित इस ध्यान में मन, वचन और कायरूप योगों का निरोध हो जाता है। यहाँ तक कि श्वासोच्छवास जैसी सूक्ष्म-क्रिया भी इस ध्यान से निरुद्ध हो जाती है। सूक्ष्म क्रियाओं के भी निरोध से उपलब्ध होने के कारण इसे सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति कहते है। यह ध्यान जीवन-मुक्त सयोग केवली के अपनी आयु के अन्तर्मुहूर्त शेष बचने पर होता है।
3.व्युपरतक्रिया-निवृत्ति- वितर्क और वीचार से रहित यह ध्यान क्रिया से भी रहित हो जाता है। इस ध्यान में आत्मा के समस्त प्रदेश निष्प्रकम्प हो जाते हैं। अत: आत्मा अयोगी बन जाता है। इस ध्यान में किसी भी प्रकार की मानसिक, वाचिक और कायिक क्रियाएँ नहीं होती। योगरूप क्रियाओं से उपरत हो जाने के कारण इस ध्यान का नाम व्युपरतक्रिया-निवृत्ति है। इस ध्यान के प्रताप से शेष सर्व कर्मों का नाश हो जाता है तथा आत्मा, देहमुक्त होकर अपनी स्वाभाविक ऊर्ध्वगति से लोक के अग्रभाग तक जाकर शरीरातीत अवस्था के साथ वहाँ स्थिर हो जाता है। तात्पर्य यह है कि इसी ध्यान के बल से सिद्ध अवस्था प्राप्त होती है और दुःखो से सदा के लिए मुक्ति मिल जाती है।
शरीर को बेहतर ऊर्जा प्रदान करता एक बार करे चिंगोंन ध्यान
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आग्नेयी धारणा
उसी सिंहासन पर बैठे हुए यह विचार करे कि मेरे नाभिकमल के स्थान पर भीतर ऊपर को उठा हुआ सोलह पत्तों का एक श्वेत रंग का कमल है। उस पर पीत वर्ण के सोलह स्वर लिखे हैं। अ आ, इ ई, उ ऊ, ऋ ऋ, ल ल, ए ऐ, ओ औ, अं अः, इन स्वरों के बीच में "हे" लिखा है। फिर नाभिकमल के ऊपर हृदयस्थल पर आठ पत्तों का अधोमुखी एक दूसरे कमल का विचार करना चाहिए। इस कमल के आठ पत्तो को ज्ञानवरणादि आठ कर्म रूप विचार करें।
पश्चात् नाभि-कमल के बीच में जहाँ "ह" लिखा है, उसके रेफ से धुंआ निकलता हुआ सोचें, पुन: अग्नि की शिखा उठती हुई विचार करें। यह लौ ऊपर उठकर आठ कर्मो के कमल को जलाने लगी। कमल के बीच से फूटकर अग्नि की लौ मस्तक पर आ गई। इसका आधा भाग शरीर के एक ओर और आधा भाग शरीर के दूसरी ओर निकलकर दोनों के कोने मिल गये। अग्निमय त्रिकोण सब प्रकार से शरीर को वेष्टित किये हुए है। इस त्रिकोण में र र र र र र र अक्षरों को अग्निमय फैले हुए विचारे अर्थात् इस त्रिकोण के तीनों कोण अग्निमय र र र अक्षरों के बने हुए हैं। इसके बाहरी तीनों कोणों पर अग्निमय साथिया तथा भीतरी तीनों कोणों पर अग्निमय 'ऊँ' लिखा सोचें। पश्चात् विचार करे कि भीतरी अग्नि की ज्वाला कर्मों को और बाहरी अग्नि की ज्वाला शरीर को जला रही है। जलते-जलते कर्म और शरीर दोनों ही जलकर राख हो गये हैं तथा अग्नि की ज्वाला शान्त हो गई है अथवा पहले के रेफ में समाविष्ट हो गई है, जहाँ से उठी थी। इतना अभ्यास करना "अग्निधारणा" है।
Read Full Blog...रौद्रध्यान
रुद्र का एक अर्थ क्रूर है। क्रूर परिणामो से अनुबन्धित ध्यान रौद्रध्यान है। भौतिक विषयों की सुरक्षा के लिए तथा हिंसा, असत्य, चोरी, क्रूरता आदि दुष्प्रवृत्तियों से अनुबन्धित चित्तवृत्ति का नाम रौद्रध्यान है। इस ध्यान से प्रभावित व्यक्ति ध्वंसात्मक भावों का अर्जन करता है और उसकी प्रेरणा से अवांछित कार्यों में प्रवृत्त होता है। हिंसा, झूठ, चोरी और विषय-संरक्षण के निमित्त से रौद्रध्यान चार प्रकार का है- हिंसानन्दी, मृषानन्दी, चौर्यानन्दी और विषयसंरक्षणानन्दी।
इनका अर्थ इनके नामों से ही स्पष्ट है।
इस प्रकार आर्त और रौद्रध्यान बिना प्रयत्न के ही हमारे संस्कारवश चलता रहता है। ये दोनों ध्यान दुर्गति के हेतु हैं। मोक्षमार्ग में इनका कोई स्थान नही है, न ही ऐसे ध्यान तप की श्रेणी में आते हैं। ये दोनों संसार के हेतु हैं। इन अशुभ विकल्पों से चित्त को हटाकर
रुद्र गायत्री मंत्र भगवान शिव का बेहद शक्तिशाली मंत्र है। भगवान शिव के इस मंत्र में असीम आध्यात्मिक ऊर्जा छिपी है जो कि मन को जाग्रत करने, सभी कष्टों से मनुष्य को दूर करने और आध्यात्मिक चेतना को बढ़ाने का काम करती है। आइए जानते हैं इस बेहद पावरफुल मंत्र के बारे में।
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पवित्र विचारों में मन का स्थिर होना धर्मध्यान है। इसमें धार्मिक चिन्तन की मुख्यता रहती है। धर्मध्यान मूलतजो मुख्यत: चार प्रकार का है-
1.आज्ञा विचय 2. अपाय विचय 3. विपाक विचय और ४. संस्थान विचय। यहाँ विचय का अर्थ विचारणा है। आगमानुसार तत्त्वों का विचार करना आज्ञाविचय है, अपने तथा दूसरों के राग-द्वेष-मोह आदि विकारों को नाश करने का चिन्तन करना अपायविचय कहलाता है, अपने तथा दूसरों के सुख-दुःख को देखकर कर्मप्रकृतियों के स्वरूप का चिन्तन करना विपाकविचय एवं लोक के स्वरूप का विचार करना संस्थानविचयक नामक धर्मध्यान है।
इस धर्मध्यान के अन्य प्रकार से भी चार भेद हैं-1 पिंडस्थ, 2 पदस्थ. 4.. रूपस्थ और 4. रूपातीत।
धर्मध्यान के अन्य प्रकार से भी दश भेद किये गये हैं। वे हैं क्रमश:आज्ञाविचय, अपायविचय, उपायविचय, जीवविचय, अजीवविचय, भवविचय, विपाकविचय, विरागविचय, हेतुविचय और संस्थानविचय।
मेडिटेशन करते समय कोशिश करें कि आसपास कोई शोर-शराबा ना हो ताकि मेडिटेट करते हुए मन और दिमाग ना भटके.
: मेडिटेशन करते समय अपने आप को पूरी तरह कंफर्टेबल रखने की कोशिश करें. मेडिटेशन करते हुए कंफर्टेबल पोजीशन में बैठें और केवल आरामदायक कपड़े पहनें.
मेडिटेशन के दौरान अपने शरीर के अलग-अलग हिस्सों पर ध्यान लगाकर उस हिस्से के दर्द, तनाव या स्ट्रेस को जानने की कोशिश करें.
: मंत्र दोहराने से मतलब है, कोई भी प्रार्थना, अपना कोई मोटिवेशनल वाक्य या कोई धार्मिक मंत्र जिसे आप हर रोज मेडिटेशन करते हुए दोहरा सकें. ऐसा करने से मेडिटेशन करते समय ध्यान एक जगह केंद्रित रहता है.
आराम से बैठ जाएं या लेट जाएं.
अपने कंधों को आराम दें.
नाक से सांस लें और मुंह से छोड़ें.
सांस लेते समय अपने पेट को फूलता हुआ महसूस करें.
सांस लेने और छोड़ने की अवधि को बढ़ाएं.
सांस लेते समय अपने डायाफ़्राम का इस्तेमाल
Read Full Blog...[तनावपूर्ण जीवनशैली में मेडिटेशन आपको रिलैक्स करने में मदद करता है। जब अक्सर हमारी इंद्रियां सुस्त हो जाती हैं तो मेडिटेशन हमें जागरूकता बढ़ाने का अवसर देता है। शोध बताते हैं कि मेडिटेशन हमें अस्थायी रूप से तनाव से राहत दे सकता है। इसके आराम और सुखदायक लाभों के कारण, हेल्दी और एक्टिव लाइफ के लिए एक्सपर्ट मेडिटेशन करने की सिफारिश करते हैं।
क्या आप जानते हैं कि ध्यान कई प्रकार के होते हैं और इसका प्रत्येक प्रकार शरीर के विभिन्न हिस्सों को टारगेट करने के लिए होता है। आध्यात्मिक गुरुओं और मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने मेडिटेशन के कई प्रकार विकसित किए हैं जिससे पता चलता है कि मेडिटेशन हर व्यक्तित्व और लाइफस्टाइल के लोगों के लिए अनुकूल है और इसका अभ्यास हर कोई कर सकता है।:
स्ट्रेसफुल लाइफस्टाइल के चलते हर कोई तनाव में रहता है. दिनभर घर और ऑफिस की जिम्मेदारियां और काम की चिंता हर समय तनाव का कारण बनी रहती है. स्ट्रेस का कारण चाहे जो भी हो, ये आपके मेंटल हेल्थ पर बहुत बुरा असर डालता है. एक अच्छी लाइफ जीने के लिए आपको फिजिकली और मेंटली दोनों तरह से स्वस्थ रहना जरूरी है. तनाव और स्ट्रेस से छुटकारा पाने के लिए मेडिटेशन सबसे अच्छा विकल्प माना जाता है.
मेडिटेशन यानी ध्यान करने से तनाव दूर होता है और मन को शांति मिलती है. मेडिटेशन हर कोई कर सकता है और इसे करने के लिए किसी और चीज की जरूरत भी नहीं है. मेडिटेशन करने के लिए आपको केवल कुछ चीजों का ध्यान रखना है. आइए जानते हैं क्या है मेडिटेशन का सही तरीका और मेडिटेशन के लाभ.
सबसे पहले ध्यान रखें की मेडिटेशन का सही तरीका खोजने का स्ट्रेस नहीं लेना है. आप मेडिटेशन को अपनी लाइफ का पार्ट बना सकते हैं.
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