Blog by Suveta Notiyal | Digital Diary
" To Present local Business identity in front of global market"
" To Present local Business identity in front of global market"
आपने कई बार अश्वगंधा का नाम सुना होगा। अखबारो या टीवी में अश्वगंधा के विज्ञापन आदि भी देखें होगे। आप सोचते होगे की अश्वगंधा क्या है या अश्वगंधा के गुण क्या है? दरअसल अश्वगंधा एक जड़ी–बूटी है। अश्वगंधा का प्रयोग कई रोगों में किया जाता हैं। क्या आप जानते है कि मोटापा घटाने, बल और वीर्य विकार को ठीक करने के लिए अश्वगंधा का प्रयोग किया जाता हैं। इसके अलावा अश्वगंधा के फयदे और भी हैं।
अश्वगंधा के कुछ खास औषधि गुनो के कारण यह बहुत तेजी से प्रचलित हुआ है। आईए आपको बताते हैं आप अश्वगंधा का प्रयोग किन-किन बीमारियों में और कैसे कर सकते है।
अलग-अलग देश में अश्वगंधा कई प्रकार की होती हैं, लेकिन असली अश्वगंधा की पहचान करने के लिए इसके पौधे को मसलने पर घोड़े के पेशाब जैसी गंध आती हैं। अश्वगंधा की ताजी जड़ में यह गढ़ अधिक तेज होती हैं। वन में पाए जाने वाले पौधों की तुलना में खेती के मध्यम से उगाई जाने वाले अश्वगंधा की गुणवत्ता अच्छी होती है। तेज निकालने के लिए वनों में पाया जाने वाला अश्वगंधा का पौधा ही अच्छा माना जाता हैं। इसके दो प्रकार है –
इसकी झाड़ी छोटी होने से यह छोटी अश्वगंधा कहलाती हैं, लेकिन इसकी जड़ बड़ी होती हैं। राजस्थान के नागौर में यह बहुत अधिक पाई जाती है और वहां के जलवायु के प्रभाव से यह विशेष प्रभावशाली होती है। इसलिए इसको नागौरी अश्वगंधा भी कहते है।
इसकी झाड़ी बड़ी होती है, लेकिन जड़े छोटी और पतली होती है । यह बाग–बगीचे, खेतों और पहाड़ी स्थानो में सामान्य रूप में पाई जाती है। अश्वगंधा में कब्ज गुनो की प्रधानता होने से और उसकी गंध कुछ घोड़े के पेशाब जैसी होने से संस्कृत में इसको बाजि या घोड़े से संबंधित नाम रखें गए हैं। मेरा ब्लॉक पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
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विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस 2017, प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए 28 जुलाई को दुनिया भर में मनाया जाता है। प्रकृति वन की कटाई और अवैध वन्यजीव व्यापार जैसी बड़ी समस्याओं का सामना कर रही है। हर किसी को हरित जीवनशैली अपने अपने अपनाने के लिए अपने दैनिक जीवन में पर्यावरण के अनुकूल गतिविधियों को बढ़ावा देना चाहिए ।स्वच्छ भारत अभियान, प्रोजेक्ट टाइगर, भविष्य के लिए मैग्रेव (एम एफ एफ) कुछ ऐसी पहल है जिन्हें भारत में प्रकृति के संरक्षण के लिए शुरू किया है।
० इस दिन को मनाने का मकसद लोगों को प्रकृति और जैव विविधता के महत्व के बारे में जागरूक करना है।
० इस दिन को मनाने का मकसद लोगों को इसे बचाने के लिए प्रेरित करना है।
० इस दिन को मनाने का मकसद लोगों के बीच प्रकृति और जैव विविधता की सुरक्षा और इसके महत्व की जानकारी को फैलाना है।
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Read Full Blog...कन्या राशि के प्राकृति नाम की लड़कियां बेहद धार्मिक प्रवृत्ति के होती है। मान्यता है कि कन्या राशि के आराध्य देव कुबेर जी होते हैं। इन प्रकृति नाम की लड़कियों का पाचन तंत्र अक्सर सही नहीं रहता जिस कारण प्रकृति नाम की लड़कियों में पेट से संबंधित बीमारियां बनी रहती है। कन्या राशि के प्रकृति नाम की लडकियां कब्ज और अल्सर से पीड़ित हो सकते हैं। कन्या राशि के प्रकृति नाम की लड़कियों को पेट, नसों और यौन समस्याओं का सामना भी करना पड़ सकता है। इस राशि के प्रकृति नाम की लड़कियां हंसमुख और दयालु प्रवृत्ति के होते हैं। इन प्रकृति नाम की लड़कियों का मस्तिष्क शांत नहीं रह पाता।
प्रकृति नाम का ग्रह स्वामी बुध है और इस नाम का शुभ अंक 5 होता है। स्वभाव से लापरवाह होने के बावजूद प्रकृति नाम की लड़कियां बिना योजना के सफल हो हो जाती है। प्रकृति नाम की लड़कियां अपनी इच्छा से काम करती है प्रकृति नाम की लडकियों मैं अद्भुत मानसिक शक्ति होती है। यह बहुत दिलचस्प स्वभाव की होती हैं। प्रकृति नाम की लड़कियों को हर जगह से ज्ञान प्राप्त करना पसंद होता है। प्रकृति नाम की लड़कियां हर काम पूरे जोश के साथ करती है। यह किसी नई शुरुआत से हिचकीचाती भी नहीं है।
Read Full Blog...प्रकृति नाम बहुत सुंदर और आकर्षक माना जाता है। इतना ही नहीं इसका मतलब भी बहुत अच्छा होता है। आपको बता दे की प्रकृति नाम का अर्थ प्रकृति, सुंदर ,मौसम, होता है। प्रकृति नाम का खास महत्व है क्योंकि इसका मतलब प्रकृति, सुंदर, मौसम, है। जिसे काफी अच्छा माना जाता है। इस वजह से भी बच्चे का नाम प्रकृति रखने से पहले इसका अर्थ पता होना चाहिए।
जैसे कि हमने बताया की प्रकृति का अर्थ प्रकृति सुंदर मौसम होता है, और इस अर्थ का प्रभाव आप प्रकृति नाम के व्यक्ति के व्यवहार में भी देख सकते है। यह माना जाता है कि यदि आपका नाम प्रकृति सुंदर मौसम है तो इसका इसका गहरा प्रभाव व्यक्ति के स्वभाव पर भी पड़ता है। अगले ब्लॉक में प्रकृति नाम की राशि तथा प्रकृति का लकी नंबर के बारे में भी बताया जाएगा।धन्यवाद!
Read Full Blog...सतपुड़ा की पहाड़ियों में न जाने कितने औषधियां पौधे व पड़ों का अतुल भंडार है, जिसकी हम लोग कल्पना भी नहीं कर सकते। समय कल के इस चक्र में कई औषधीय चाहे विलुप्त हों गई हो, लेकिन जिले की सीमा में फैली सतपुड़ा की दुर्गम पहड़ियों में दुर्लभ व विलुप्त होते पीले पलाश का अस्तित्व आज भी बरकरार है। वैसे तो केसरिया रंग का पलाश पूरे भारत वर्ष में पाया जाता है, लेकिन पीला पलाश दुर्गम हो गया है।
केसरिया रंग का पलाश न सिर्फ पहाड़ि आंचलो में, बल्कि मैदानी क्षेत्र में भी प्राय: देखने को मिलता है, लेकिन पीला पलाश वास्तव में विलुप्त होते जा रहा हैं । पीला पलाश छिंदवाड़ा, मंडल और बालाघाट के घने जगलों में महज एक _एक पेड़ ही दिखाई देता है, जिनका उल्लेख अखबारों या पत्रिकाओं में होता रहा हैं। खरगोन में पीला पलाश पीपलझोपा रोड पर बेनहुर गांव की ढलान पर और बिकन गांव । जीनिया के काकरिया से गोरखपुर जाने वाली सड़क पर कमल नार्वे के खेत की मेड़ पर पनप रहे हैं।
पलाश के टिशु, खाखरा, रक्तपुष्प, ब्रह्मकलश , कीसुख जैसी अनेकों नाम से भी जाना जाता हैं। इसका वानस्पतिक नाम ब्यूटीका मोनासुप्राम लेयूतिका है। पलाश को उत्तर प्रदेश का राजकीय पुष्प भी माना जाता है। पलाश न देखने में सुदर और आकर्षक है, बल्कि इसके सभी अंग मानव के लिए औषधि रूप में काम आते है। साथ ही "ढाक के तीन पात" मुहावरे इसी पलाश की पत्तियां के कारण बना है। पलाश के पत्ते, डेंटल, छाल,फली, फूल और जड़ो को भी आयुर्वेद में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। कुछ वर्षों पूर्व होली के समय अक्सर पलाश के फूलों से रंग बनाया जाता रहा है, लेकिन आज केमिकल रंगों के आ जाने से इस फूल के रंग का उपयोग सीमित मात्रा में किया जाता हैं। पलाश के पांचो अंग तना , जड़ फल, फूल, और बीच से दवाइयां बनाने की कई तरह की विधियांहै। पलाश के पेड़ से निकलने वाले गोंद को कमरकस भी कहा जाता है। पढ़ने के लिए धन्यवाद।
Read Full Blog...प्रकृति को किसने बनाया , यह एक जटिल प्रश्न है जिसका उत्तर सदियों से दर्शनी को, धर्म शस्त्रीयो और वैज्ञानिकों द्वारा दिया गया है।
विभिन्न सस्कृतियों और धर्म में प्रकृति की रचना के बारे में कहीं विभिन्न मान्यता है।
कुछ धार्मिक मन्यताएं कहती है कि प्रकृति को किसी ईश्वर या देवता द्वारा बनाया गया था, जबकि अन्य मान्यताएं प्राकृतिक प्रक्रिया और विकासवाद के माध्य से प्रकृति के निर्माण में विश्वास करती है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, प्रकृति करोड़ वर्षों के दौरान भौतिक और रसायन विज्ञान के नियमों के माध्यम से विकसित हुई है।
विज्ञान अभी भी प्रकृति की उत्पत्ति और विकास के बारे में बहुत कुछ सीख रहा है , और यह संभव है कि भविष्य में नई खोजें हमारी समझ को बदल देगी।
यह महत्वपूर्ण है कि आप ध्यान रखें की प्रकृति को किसने बनाया यह प्रश्न वैज्ञानिक रूप से सिद्ध नहीं किया जा सकता है। यह विश्वास और व्याख्या का विषय है।
आप जो भी मानते हैं, प्रकृति की सुदरता और जटिलता की प्रशंसा करना महत्वपूर्ण है।
यह हमारे ग्रह का एक अनमोल उपहार है, इसे संरक्षित करना हमारी जिम्मेदारी है।
हमारा ब्लाग पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
Read Full Blog...मानव जब अपने दिमाग का उपयोग करता है, तो दुर्गउपयोग ही करता हैं।
या तो किसी को नीचा दिखाने के लिए करता है या अपने लिए बड़े से बड़े महल व बैंक अकाउंट में पैसे कलेक्ट करने में। पर इन सब चीजों मैं भूल जाते हैं इस प्रकृति से ही जुड़ा हुआ है।
और प्रकृति उसे कोई नुकसान नहीं होता तब तक जब तक की मानव संख्या में कम है क्योंकि प्रकृति अपना संतुलन स्वयं बनकर चलती हैं। मानव जैसी महान हस्ती भी प्रकृति के आगे लचार है।
० इतने बड़े-बड़े बांधों का निर्माण जो मानव ने पहाड़ों पर किया वहां पर बिल्कुल भी या नहीं सोचा कि जैसे पहाड़ भी डिबलिंग से।
पर मानव का उससे ज्यादा होता है कि वह कब बैठे-बैठे चला जाता है। भूकंप मैं और पता भी नहीं लगता है क्योंकि पृथ्वी की प्लेट सरक जाती है।
० एक बार बिग बैंक का भी ट्रायल किया गया था।
उसमें भी कुछ प्रोटॉन को लेकर के बिग बैग करने की कोशिश की गई थी जैनवा में।
यह भी भूकंप और सुनामी मैं ही परिवर्तित हो गया था।
[ प्रकृति अपना सतुलन हमेशा बनाकर के चलती है। इतनी सारी #स्पीशीज (8400000 ) यह सब प्रकृति में ही रहती है। फिर भी कहीं गंदगी नहीं होती है क्योंकि यह सब मिट्टी में मिल जाहैं हैं और फिर वह नवनिर्माण करती है। यह एक प्रकार से परिवर्तन है अगर कोई उसको कुछ नुकसान पहुंचना है, तो वह स्वयं नष्ट हो जाता है।]
वह अपने रूप में अगर परिवर्तित कर देती हैं।
० झरिया जैसे स्थान पर प्रकृति में बहुत ज्यादा कार्बन इकट्ठा हो गया इसीलिए वह हमेशा जलता ही रहता है।
० यह परिवर्तन है कार्बनडाइऑक्साइड और अन्य गैसें निकलती रहती है इस पर किसी का कंट्रोल नहीं है।
० दावानल भी।
पर इंसान स्वयं जब जब अपने कंट्रोल मे लेता है, तब ही ऐसा हो, ऐसा नहीं है। जीवन का नियम ही परिवर्तन है।
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Ab to is baat ke kafi Matra mein vaigyanik saboot uplabdh hai ki Pani mein jabardast yaddahshat hoti hai. Agar aap Pani bhi dekhte hue koi vichar banae to Pani ki aanvik sanrachna Badal jaati hai Pani ko chhune se bhi yah Badal jaati hai. To yah bahut mahatvpurn hai ki aap Pani se kis tarah sampark banate hain.
Mitti vo tatv hai jo baki ke sabhi tatvon ke viksit hone ka Aadhar hai aur yah hamare baudhikta ka bhi Aadhar hai. Hamare aaspaas ke sabhi bhautik padarthon mein mitti ka hissa to hai hi. Mitti ka Apne jivan ke Aadhar per hi Bodh karna aur use samajhna sabse acchi baat hai kyunki jyadatar log sirf Apne sharir aur man ka hi Anubhav kar paate Hain. Apni bhautik se, Mithi Raat Ko janna aur Anubhav mein Lena yog prakriya ka bhag hai.
Yogik parampara mein ham hawa ko vayu kahate Hain jiska matlab hai ki yah sirf nitrogen, oxygen, carbon dioxide or dusri gason ka mishran hi nahin hai balki yah sancharan (ek se dusri jagah jaane ki ya gati) ka ek aayam hai. Panch tatvon mein vayu ki hamari bahut me sabse jyada hai. Dusri tatvo ke muqabla, is tatv per aasani se maharat bhai ja sakti hai. Isiliye vayu ko Aadhar banakar hi bahut sari yogik prakriyaen banai gai hai.
Bhartiya Sanskriti mein Aag tatv ko Agni dev ke roop mein dikhaya jata hai, Jo do munh wale Devta hai aur har taraf failne wali, Agra roop dharan karne wali sawari per ghumte Hain yah do mukh pratikatmak hai- ve Agni ke jivan Dene Wale aur jivan Lene Wale donon hi rupon Ko darshate Hain. Jab tak hamare andar Agni na jal rahe Ho, tab tak koi jivan nahin hai, per agar ham uske bare mein satk Na rahe, tugni bahut jaldi bekabu hokar har chij ko khatm kar sakti hai.
Aakash ko bus Khali sthan samajh Lena Sahi nahin hai. Aakash eather hai. Vaise eather kahana bhi sath pratishat Sahi nahin hai, per yah sabse nazdiki Arth hai.eather koi Khali sthan nahin hota, yah astitva ka ek samuh aayam hai. Khali sthaniya rikt yani Kal ya astitvahinta, jise Shiv kahate Hain. Shiv yani "vah Jo nahin hai" . Lekin Aakash yani "vah jo hai" .
Read Full Blog...Yah Manyata hai ki hamari paristhiti ki tantra-jismein ped, mahasagar, janwar, pahad Shamil hai- ke pass vaise hi Adhikar hai Jaise mujhse ke pass hai. Prakriti ke Adhikar ka matlab hai ki mujhse ke liye kya achcha hai aur Anya prajatiyon ke liye kya achcha hai. Duniya ke liye kya achcha hai, Anushka santulan banana. Yah samgra Manyata hai ki hamare grah per sabhi jivan sabhi paristhiti ki tantra aapas mein gahrai se Jude hue hain.
Kanoon ki tarah prakriti ko sampatti banane ke bajay prakriti ke Adhikar ya swikar karte Hain ki prakriti ko Apne sabhi jivan rupon mein astitva mein Rahane, Bane Rahane, banae rakhne aur mahatvpurn charanon mein punjivit karne ka Adhikar hai.
Aur ham logon ke pass-paristhiti tantra ki aur se adhikaron ko lagu karne ka kanuni Adhikar aur jimmedari hai. Adhikaron ke ullanghan ke mamalon mein paristhiti ki tantra ko hi Apne kanuni adhikaron ke sath, pidit paksh ke roop mein Namit Kiya ja sakta hai.
Duniya bhar ki Swadeshi sanskritiyon ke liye prakriti ke adhikaron ko mandeyta dena prakriti ke sath sambhav mein Rahane ki unki parampara ke anurup hai. Manav jivan sahit sabhi jivan gahrai se Jude hue hain. Lene aur mulya is baat per aadharit hote Hain ki samgra ke liye kya achcha hai.
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