Blog by Suveta Notiyal | Digital Diary
" To Present local Business identity in front of global market"
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मनुष्य का जीवन रंगों के बिना अधूरा है, क्योंकि विभिन्न रंग हमारी जिंदगी की विभिन्न परिस्थितियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। दरअसल, जिंदगी को खुशनुमा बनाने के लिए हमें अपने जीवन में कई तरह के रंगों की जरूरत होती है और प्रकृति में हमें ये रंग अपने चारों ओर किसी न किसी रूप में दिखाई दे जाते हैं। रंग हमारी इंद्रियों को आकर्षित करने के साथ-साथ हमारे विचारों और भावनाओं को भी तरह-तरह से प्रभावित करते हैं। रंगों का त्योहार होली तो अपने साथ कई ऐसे रंगों को लेकर आता है, जिनमें से हर रंग कुछ न कुछ कहता प्रतीत होता है। लाल, हरा, पीला, गुलाबी इत्यादि होली पर इस्तेमाल किए जाने वाले इन सभी पारंपरिक रंगों का वैज्ञानिक आधार है।
खुशियों की प्रतीक होली का प्रत्येक रंग केवल प्यार एवं सम्मान की ही भाषा बोलता है।
रंगों के इस त्योहार पर स्वयं को रंगों से सराबोर कर हर कोई खुद को प्रकृति के करीब महसूस करता है। वास्तव में यह खुशियों से भरा ऐसा त्योहार है, जिसमें छोटे हों या बड़े, महिलाएं हों या पुरुष, हर कोई आयु, धर्म और सामाजिक स्तर के भेद को छोड़कर किसी न किसी रंग में रंगा नजर आता है। रंगों के माध्यम से मन के भीतर की कुंठाएं बाहर आती हैं, जिससे लोग उनसे मुक्त हो जाते हैं। इसीलिए होली में रंगों का प्रयोग किया जाता है। वैसे तो होली पर खेला जाने वाला हर रंग अपने आप में बहुत खास होता है, क्योंकि प्रत्येक रंग की अपनी भाषा होती है और हर रंग के अपने अलग ही मायने तथा विशेष महत्व है।
हिंदू धर्म में लाल रंग का प्रयोग प्रत्येक शुभ अवसर पर किया जाता है। इसका प्रयोग पूजा तथा अन्य सभी शुभ कार्यों में होता है। दुर्गा को लाल रंग बेहद प्रिय माना गया है। सम्मान का भाव दर्शाने वाला यह रंग शक्ति और स्फूर्ति प्रदान करने वाला और प्रेम का प्रतीक माना जाता है। अग्नि के द्योतक लाल रंग को ऊर्जा, गर्मी, उग्रता, जोश, जुनून, उत्साह, महत्वाकांक्षा और पराक्रम का प्रतीक माना जाता है। रोज प्रात: उगते सूरज का रंग लाल होने के अलावा मानव शरीर को जीवन देने वाले रक्त का रंग भी लाल ही होता है। हृदय में शक्ति का संचार करने और लोगों में उत्साह व साहस पैदा करने वाला लाल रंग उल्लास और शुद्धता का प्रतीक है, जिसे प्यार और काम का प्रतीक भी माना जाता है। होली के अवसर पर लाल रंग का प्रयोग प्रेम एवं सौहार्द की भावना को बढ़ाने के साथ-साथ मानसिक बल को सुदृढ़ता प्रदान करने के लिए भी किया जाता है।'
हमें अपने जीवन में कई तरह के रंगों की जरूरत होती है और प्रकृति में हमें ये रंग अपने चारों ओर किसी न किसी रूप में दिखाई दे जाते हैं। रंग हमारी इंद्रियों को आकर्षित करने के साथ-साथ हमारे विचारों और भावनाओं को भी तरह-तरह से प्रभावित करते हैं। रंगों का त्योहार होली तो अपने साथ कई ऐसे रंगों को लेकर आता है, जिनमें से हर रंग कुछ न कुछ कहता प्रतीत होता है। लाल, हरा, पीला, गुलाबी इत्यादि होली पर इस्तेमाल किए जाने वाले इन सभी पारंपरिक रंगों का वैज्ञानिक आधार है।
ज्योति के पर्याय पीले रंग से पवित्रता का अहसास होता है और इसे देवी-देवताओं का प्रिय रंग माना जाता है। हिंदू धर्म में धार्मिक कार्यों में पीले रंग का उपयोग बहुत अच्छा माना गया है। इसीलिए दैवीय कार्यों में इस रंग का बहुत ज्यादा प्रयोग किया जाता है और देवी-देवताओं को अधिकांशत: पीले वस्त्र ही पहनाए जाते हैं। मान्यता है कि इस रंग का प्रभाव मानव मस्तिष्क पर पड़ता है और इससे मन अध्यात्म की ओर अग्रसर हो जाता है। मिलन और आत्मीयता के प्रतीक पीले रंग को आरोग्य, शांति एवं ऐश्वर्य का प्रतीक माना जाता है। यौवन और बुद्धिमता के प्रतीक के रूप में यह रंग स्पष्टवादिता को भी दर्शाता है। खुशी, तत्परता, आशा और ऊर्जा को प्रदर्शित करते पीले रंग से शरीर में स्फूर्ति आती है और इसे रोग दूर करने वाला तथा बेचैनी को खत्म करके मन को शांत करने वाला रंग भी माना गया है। समृद्धि और यश को इंगित करने वाले पीले रंग को देखने से मन में प्रकाश और ज्ञान का आभास होता है। सुनहरा पीला रंग तो आदर्शवादिता और कल्पनाशीलता का सूचक माना गया है।
माना जाता है कि हरे रंग में सराबोर होने के बाद लोग नई ताकत का अहसास करते हैं और उनकी सोच सकारात्मक होती है। यह रंग आशावाद, नई शुरुआत, स्वास्थ्य तथा ताजगी का अहसास कराता है और प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में नए जीवन के संचार की प्रेरणा देता है। मन को सुकून पहुंचाने वाले हरे रंग से मन की चंचलता दूर होती है और आत्मविश्वास और प्रसन्नता मिलती है। प्रकृति में चहुं ओर फैले हरे रंग को एक ओर जहां पर्यावरण की सुरक्षा का प्रतीक माना गया है, वहीं यह व्याकुल मन को शांति भी प्रदान करता है। इसी आत्मिक शांति के लिए लोग प्राय: पर्वतीय क्षेत्रों में प्रकृति की गोद में जाते हैं। मन की चंचलता को हरने वाला और शांति का प्रतीक हरा रंग जीवन का द्योतक है, जिसे प्रकृति का सबसे प्यारा रंग माना जाता है।
अध्यात्म, शांत, सुरक्षित और विश्वास जैसी भावनाओं को इंगित करने वाला प्राण और प्रकृति से संबंधित नीला रंग जीवन में गति और जीवन देने वाली शक्ति का प्रतीक है। कोमलता और स्नेह के साथ इसे वीरता और पौरुष का प्रतीक भी माना गया है। एक ओर जहां धार्मिक दृष्टिकोण से नीले रंग का बहुत महत्व है, वहीं ज्योतिष में यह रंग जल तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। प्रकृति ने विशाल आसमान से लेकर गहरे समुद्र तक नीले रंग की अनुपम छटा बिखेरी हुई है। जीवन में उत्साह, उल्लास और पानी के समान शुद्धता के प्रतीक नीले रंग के प्रयोग से मानसिक शांति मिलती है, रक्तचाप नियंत्रित होता है और यह आपसी संबंधों में प्रेम, विश्वास एवं कोमलता को भी दर्शाता है।
सफेद रंग को सदा से ही शांति का प्रतीक माना गया है और इसका प्रयोग जीवन तथा समाज में शांति के प्रतीक के रूप में ही किया जाता है। आध्यात्मिक शांति और जीवन में सकारात्मक लाने के लिए भी इस रंग का प्रयोग किया जाता है। सफेद रंग में सभी रंगों के गुण मौजूद हैं और इसे सभी रंगों का जनक माना जाता है। प्रकृति के सभी रंगों को बराबर-बराबर मिलाने से सफेद रंग बनता है। माना जाता है कि होली के दिन इस रंग का प्रयोग किसी भी क्रोधी मन को तुरंत शांत करने में पूरी तरह सफल रहता है।
बैंगनी रंग को वैभव और रचनात्कता से जोड़कर देखा जाता है तथा इसका प्रयोग प्राय: कृतज्ञता प्रकट करने में भी किया जाता है। खुशमिजाजी और सामाजिक सरोकार के प्रतीक नारंगी रंग के प्रयोग से व्यक्ति ज्ञानवान और विचारवान बनता है। खुशियों और मैत्री का संदेश देने वाले इस रंग से मानसिक शक्ति और सामाजिक संबंध मजबूत होते हैं। अंतरिक्ष का प्रतीक काला रंग प्रभुत्व का भी प्रतीक है, क्योंकि समस्त रंग अपना अस्तित्व खोकर इसमें समाहित हो जाते हैं। गुलाबी रंग कोमलता, चंचलता और प्रेम का अहसास कराता है।
इसलिए होली के इस अवसर पर इन रंगों के महत्व और प्रभाव पर अवश्य विचार करें।
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पहाड़ आपको लुभाते हों या नहीं लेकिन यह सभी को पता होना चाहिए कि पहाड़ों में जीवन देने की कितनी क्षमता होती है। साथ ही पहाड़ों की शानदार जैव विविधता की महत्ता को समझकर उसके संरक्षण का हर संभव प्रयास करना चाहिए। हमें जो ताजा, पीने योग्य पानी मिलता है, उसका 60 से 80 प्रतिशत पहाड़ों से हासिल होता है। पहाड़ असंख्य जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों को अपनी गोद में आसरा देते हैं। पहाड़ संपूर्ण भूमंडल का 24 प्रतिशत हिस्सा कवर करते हैं और 13 प्रतिशत ग्लोबल जनसंख्या को शरण देते हैं। इन महत्ताओं को जानने के अलावा पहाड़ी सौंदर्य मुझे हमेशा आकृष्ट करता रहा है। पहाड़ खामोश प्रहरी हैं, जो अनेक तरह से हमारी रक्षा करते हैं। पहाड़ों की यात्रा करने का अर्थ है प्रकृति से ऐसे जुड़ना कि अपने ही मन की गहराइयों में उतरने का अवसर मिल जाए।
मैंने भारत के लगभग सभी हिस्सों यानी उत्तरी और दक्षिणी इलाकों में स्थित पहाड़ों की यात्रा की है। हर पर्वत श्रंखला का अपना एक अलग ही आकर्षण होता है, जो इस बात पर निर्भर करता है कि पहाड़ों की ऊंचाई और भूखंड कैसा है, क्योंकि इन्हीं से वहां का क्लाइमेट, वेजिटेशन और लोगों की जीवनशैली तय होती है। पिछले साल नवंबर में मैं जब उत्तराखंड के पहाड़ों से रूबरू होने गया था तो मैंने विंटरलाइन की मंत्रमुग्ध करने वाली सुंदरता का आनंद लिया, जहां जाड़ों के महीनों में शाम के समय नारंगी-सुनहरा कृत्रिम क्षितिज बन जाता है।
यह दुनिया में सिर्फ दो ही जगह दिखाई देता है-अपने देश के मसूरी में और स्विट्जरलैंड में। इसी तरह जब मैं इस साल जनवरी में हिमाचल प्रदेश में था तो मैंने एल्पेन ग्लो इफेक्ट देखा, जब सूर्य की किरणों के बिखरने से बर्फ से ढंकी चोटियां जलती आग की तरह लाल हो जाती हैं। इन दोनों ही कंडीशंस को समझने के लिए वैज्ञानिक दृष्टि और सिद्धांत तो है ही, लेकिन मुझ जैसे आम घुमक्कड़ के लिए यह प्रकृति का चमत्कार है, शानदार जादू है, जिसे केवल पहाड़ों में ही देखा जा सकता है।
अगर टिहरी में मुझे देवदार के पेड़ों की सोनी-सोनी गंध ने मंत्रमुग्ध किया तो नड्डी के घने जंगलों ने मुझे अचरज से भर दिया। दक्षिण भारत में पहाड़ आमतौर से चाय बागानों का घर होते हैं, जैसे कि ऊटी, कुनोर और मुन्नार में। लेकिन बीच-बीच में ऊंचे सिल्वर ओक और यूकेलिप्टस के पेड़ भी हैं, जिन्हें देखकर ऐसा लगता है जैसे वह नीले आसमान से कुछ राज की बातें सरगोशियों में कर रहे हों।
पहाड़ों की यात्रा करते समय मुझे आमतौर से सीधे, सच्चे, धार्मिक और मिलनसार स्थानीय लोग मिलते हैं, जो पर्यटकों का खुले दिल, खुली बाहों और मुस्कान के साथ स्वागत करते हैं। वे अपनी प्राकृतिक धरोहर पर गर्व करते हैं और पर्यटकों को अपनी भूमि, अपने देवताओं, अपने पशुओं और पहाड़ों के साथ अपने गहरे रिश्तों की दिल को स्पर्श करने वाली कहानियां सुनाते हुए कभी थकते नहीं हैं। मैं अकसर अकेला ही यात्रा करता हूं, इसलिए मैंने स्थानीय लोगों के साथ सुनसान जंगलों, खामोश पहाड़ों में घंटों बिताए हैं, लेकिन कभी भी मैंने परेशानी या असुरक्षा का एहसास तक नहीं किया।
पहाड़ केवल शानदार नजारों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स योग्य तस्वीरों के लिए नहीं होते हैं। पहाड़ों में जीवन जीना कठिन भी होता है। चलना और बुनियादी काम जैसे कुकिंग और खेती के लिए भी जबरदस्त शारीरिक श्रम और स्टैमिना की आवश्यकता होती है। उनका इकोसिस्टम बहुत नाजुक होता है, जिसे संभालने और संरक्षित करने की जरूरत होती है। पहाड़ों पर जब बारिश पड़ती है या बर्फ गिरती है तो एक जगह से दूसरी जगह जाना और चीजों की उपलब्धता चिंता का विषय बन जाते हैं।
प्राकृतिक आपदाएं जैसे फ्लैश फ्लड्स, भू-स्खलन, हिम-स्खलन आदि जीवन को पूरी तरह से रोक देते हैं, जिससे सुरक्षा और जीविकोपार्जन के लिए संकट उत्पन्न हो जाते हैं। अकसर ये आपदाएं मानव-निर्मित भी होती हैं। गैर-जिम्मेदाराना पर्यटन, स्वार्थी कमर्शियल लक्ष्य, बिना सोचे-समझे पेड़ों को काटना, अनियोजित शहरीकरण आदि कारण हैं, जिनसे पहाड़ों और पहाड़ी जीवन को बहुत नुकसान पहुंच रहा है। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और कश्मीर जैसे हिमालय पहाड़ के राज्यों में हाल के वर्षों में जो प्राकृतिक आपदाएं देखने को मिली हैं, वे हमसे सख्ती से कह रही हैं कि प्रकृति में असंतुलन उत्पन्न मत करो वर्ना प्रकृति का गुस्सा बर्दाश्त नहीं कर पाओगे
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आपने कई बार अश्वगंधा का नाम सुना होगा। अखबारो या टीवी में अश्वगंधा के विज्ञापन आदि भी देखें होगे। आप सोचते होगे की अश्वगंधा क्या है या अश्वगंधा के गुण क्या है? दरअसल अश्वगंधा एक जड़ी–बूटी है। अश्वगंधा का प्रयोग कई रोगों में किया जाता हैं। क्या आप जानते है कि मोटापा घटाने, बल और वीर्य विकार को ठीक करने के लिए अश्वगंधा का प्रयोग किया जाता हैं। इसके अलावा अश्वगंधा के फयदे और भी हैं।
अश्वगंधा के कुछ खास औषधि गुनो के कारण यह बहुत तेजी से प्रचलित हुआ है। आईए आपको बताते हैं आप अश्वगंधा का प्रयोग किन-किन बीमारियों में और कैसे कर सकते है।
अलग-अलग देश में अश्वगंधा कई प्रकार की होती हैं, लेकिन असली अश्वगंधा की पहचान करने के लिए इसके पौधे को मसलने पर घोड़े के पेशाब जैसी गंध आती हैं। अश्वगंधा की ताजी जड़ में यह गढ़ अधिक तेज होती हैं। वन में पाए जाने वाले पौधों की तुलना में खेती के मध्यम से उगाई जाने वाले अश्वगंधा की गुणवत्ता अच्छी होती है। तेज निकालने के लिए वनों में पाया जाने वाला अश्वगंधा का पौधा ही अच्छा माना जाता हैं। इसके दो प्रकार है –
इसकी झाड़ी छोटी होने से यह छोटी अश्वगंधा कहलाती हैं, लेकिन इसकी जड़ बड़ी होती हैं। राजस्थान के नागौर में यह बहुत अधिक पाई जाती है और वहां के जलवायु के प्रभाव से यह विशेष प्रभावशाली होती है। इसलिए इसको नागौरी अश्वगंधा भी कहते है।
इसकी झाड़ी बड़ी होती है, लेकिन जड़े छोटी और पतली होती है । यह बाग–बगीचे, खेतों और पहाड़ी स्थानो में सामान्य रूप में पाई जाती है। अश्वगंधा में कब्ज गुनो की प्रधानता होने से और उसकी गंध कुछ घोड़े के पेशाब जैसी होने से संस्कृत में इसको बाजि या घोड़े से संबंधित नाम रखें गए हैं। मेरा ब्लॉक पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
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विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस 2017, प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए 28 जुलाई को दुनिया भर में मनाया जाता है। प्रकृति वन की कटाई और अवैध वन्यजीव व्यापार जैसी बड़ी समस्याओं का सामना कर रही है। हर किसी को हरित जीवनशैली अपने अपने अपनाने के लिए अपने दैनिक जीवन में पर्यावरण के अनुकूल गतिविधियों को बढ़ावा देना चाहिए ।स्वच्छ भारत अभियान, प्रोजेक्ट टाइगर, भविष्य के लिए मैग्रेव (एम एफ एफ) कुछ ऐसी पहल है जिन्हें भारत में प्रकृति के संरक्षण के लिए शुरू किया है।
० इस दिन को मनाने का मकसद लोगों को प्रकृति और जैव विविधता के महत्व के बारे में जागरूक करना है।
० इस दिन को मनाने का मकसद लोगों को इसे बचाने के लिए प्रेरित करना है।
० इस दिन को मनाने का मकसद लोगों के बीच प्रकृति और जैव विविधता की सुरक्षा और इसके महत्व की जानकारी को फैलाना है।
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Read Full Blog...कन्या राशि के प्राकृति नाम की लड़कियां बेहद धार्मिक प्रवृत्ति के होती है। मान्यता है कि कन्या राशि के आराध्य देव कुबेर जी होते हैं। इन प्रकृति नाम की लड़कियों का पाचन तंत्र अक्सर सही नहीं रहता जिस कारण प्रकृति नाम की लड़कियों में पेट से संबंधित बीमारियां बनी रहती है। कन्या राशि के प्रकृति नाम की लडकियां कब्ज और अल्सर से पीड़ित हो सकते हैं। कन्या राशि के प्रकृति नाम की लड़कियों को पेट, नसों और यौन समस्याओं का सामना भी करना पड़ सकता है। इस राशि के प्रकृति नाम की लड़कियां हंसमुख और दयालु प्रवृत्ति के होते हैं। इन प्रकृति नाम की लड़कियों का मस्तिष्क शांत नहीं रह पाता।
प्रकृति नाम का ग्रह स्वामी बुध है और इस नाम का शुभ अंक 5 होता है। स्वभाव से लापरवाह होने के बावजूद प्रकृति नाम की लड़कियां बिना योजना के सफल हो हो जाती है। प्रकृति नाम की लड़कियां अपनी इच्छा से काम करती है प्रकृति नाम की लडकियों मैं अद्भुत मानसिक शक्ति होती है। यह बहुत दिलचस्प स्वभाव की होती हैं। प्रकृति नाम की लड़कियों को हर जगह से ज्ञान प्राप्त करना पसंद होता है। प्रकृति नाम की लड़कियां हर काम पूरे जोश के साथ करती है। यह किसी नई शुरुआत से हिचकीचाती भी नहीं है।
Read Full Blog...प्रकृति नाम बहुत सुंदर और आकर्षक माना जाता है। इतना ही नहीं इसका मतलब भी बहुत अच्छा होता है। आपको बता दे की प्रकृति नाम का अर्थ प्रकृति, सुंदर ,मौसम, होता है। प्रकृति नाम का खास महत्व है क्योंकि इसका मतलब प्रकृति, सुंदर, मौसम, है। जिसे काफी अच्छा माना जाता है। इस वजह से भी बच्चे का नाम प्रकृति रखने से पहले इसका अर्थ पता होना चाहिए।
जैसे कि हमने बताया की प्रकृति का अर्थ प्रकृति सुंदर मौसम होता है, और इस अर्थ का प्रभाव आप प्रकृति नाम के व्यक्ति के व्यवहार में भी देख सकते है। यह माना जाता है कि यदि आपका नाम प्रकृति सुंदर मौसम है तो इसका इसका गहरा प्रभाव व्यक्ति के स्वभाव पर भी पड़ता है। अगले ब्लॉक में प्रकृति नाम की राशि तथा प्रकृति का लकी नंबर के बारे में भी बताया जाएगा।धन्यवाद!
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