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कड़वा सही पर बीमारियों के लिए वरदान है नीम का पेड़


नीम के पेड़से शायद ही कोई अपरिचित हो। नीम को उसके कड़वेपन के कारण जाना जाता है। सभी लोगों को पता होगा कि कड़वा होने के बाद भी नीम स्वास्थ्य के लिए बहुत अधिक लाभदायक होता है, लेकिन नीम के फायदे क्या-क्या हैं या नीम का उपय़ोग किन-किन रोगों में कर सकते हैं, इस बात की पूरी जानकारी आपको नहीं होगी। नीम के गुणों के कारण इसे धरती का कल्प वृक्ष भी कहा जाता है। आमतौर पर लोग नीम का प्रयोग घाव, चर्म रोग में फा... Read More

नीम के पेड़से शायद ही कोई अपरिचित हो। नीम को उसके कड़वेपन के कारण जाना जाता है। सभी लोगों को पता होगा कि कड़वा होने के बाद भी नीम स्वास्थ्य के लिए बहुत अधिक लाभदायक होता है, लेकिन नीम के फायदे क्या-क्या हैं या नीम का उपय़ोग किन-किन रोगों में कर सकते हैं, इस बात की पूरी जानकारी आपको नहीं होगी। नीम के गुणों के कारण इसे धरती का कल्प वृक्ष भी कहा जाता है। आमतौर पर लोग नीम का प्रयोग घाव, चर्म रोग में फायदा लेने के लिए करते हैं लेकिन सच यह है नीम के फायदेअन्य कई रोगों में भी मिलते हैं।

 

नीम के पत्ते का काढ़ा घावों को धोने में कार्बोलिक साबुन से भी अधिक उपयोगी है। कुष्ठ आदि चर्म रोगों पर भी नीम बहुत लाभदायक है। इसके रेशे-रेशे में खून को साफ करने के गुण भरे पड़े हैं। नीम का तेल टीबी या क्षय रोग को जन्म देने वाले जीवाणु की तीन जातियों का नाश करने वाले गुणों से युक्त पाया गया है। नीम की पत्तियोंका गाढ़ा लेप कैंसर की बढ़ाने वाली कोशिकाओं की बढ़ने की क्षमता को कम करता है। आइए जानते हैं कि आप किन-किन रोगों में नीम का उपयोग कर सकते है और नीम के नुकसान क्या होते हैं?

नीम क्या है?

नीम  भारतीय मूल का एक पूर्ण पतझड़ वृक्ष है जो 15-20 मीटर की ऊंचाई तक पहुंच सकता है। कभी-कभी 35-40 मीटर तक भी ऊंचा हो सकता है। इसकी शाखाएं यानी डालियाँ काफी फैली हुई होती हैं। तना सीधा और छोटा होता है और व्यास में 1.2 मीटर तक पहुँच सकता है।

नीम के औषधीय गुण और प्रयोग विधि

नीम को निम्ब भी कहा जाता है। कई ग्रन्थों में वसन्त-ऋतु (विशेषतः चैत्र मास मतलब 15 मार्च से 15 मई) में नीम के कोमल पत्तोंके सेवन की विशेष प्रंशसा की गई है। इससे खून साफ होता है तथा पूरे साल बुखार, चेचक आदि भयंकर रोग नहीं होते हैं। विभिन्न रोगों में नीम का प्रयोगकरने की विधि नीचे दी जा रही हैः-

बालों की समस्याओं में लाभकारी है नीम का प्रयोग–

नीम के फायदे बालों के लिए बहुत ही लाभकारी है। बाल झड़ने से लेकर बालों के असमय पकने जैसी बालों की समस्याओं में इसका प्रयोग किया जा सकता है।

 

1.नीम के बीजों को भांगरा के रस तथा असन पेड़ की छाल के काढ़े में भिगो कर छाया में सुखाएं। ऐसा कई बार करें। इसके बाद इनका तेल निकालकर नियमानुसार 2-2 बूँद नाक में डालें। इससे असमय सफेद हुए बाल काले हो जाते हैं। इस प्रयोग के दौरान केवल दूध और भात यानी पके हुए चावल ही खाने चाहिए।

2.नीम के पत्ते एक भाग तथा बेर पत्ता 1 भाग को अच्छी तरह पीस लें। इसका उबटन या लेप सिर पर लगाकर 1-2 घंटे बाद धो डालें। इससे भी बाल काले, लंबे और घने होते हैं।

3.नीम के पत्तों को पानी में अच्छी तरह उबालकर ठंडा हो जाने दें। इसी पानी से सिर को धोते रहने से बाल मजबूत होते हैं, बालों का गिरना या झड़ना रुक जाता है। इसके अतिरिक्त सिर के कई रोगों में लाभ होता है।

4.सिर में बालों के बीच छोटी-छोटी फुन्सियां हों, उनसे पीव निकलता हो या केवल खुजली होती हो तो नीम का प्रयोग बेहतर परिणाम देता है। ऐसे अरूंषिका तथा क्षुद्र रोग में सिर तथा बालों को नीम के काढ़े से धोकर रोज नीम का तेल लगाते रहने से तुरंत लाभ होता है।

5.नीम के बीजों को पीसकर लगाने से या नीम के पत्तों के काढ़े से सिर धोने से बालों की जुँए और लीखें मर जाती हैं।

सिर का दर्द भगाए नीम का उपयोग करके –

 


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सावधान! अगर आप भी खाते हैं तुलसी के पत्ते, हो सकता है ये फायदे और नुकसान -


सावधान! अगर आप भी खाते हैं तुलसी के पत्ते, हो सकता है ये फायदे और नुकसान - तुलसी को ओसीमम सैंक्टम के नाम से भी जाना जाता है। यह अपने कई स्वास्थ्य लाभों के लिए आयुर्वेद में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस जड़ी बूटी का उपयोग सदियों से पारंपरिक चिकित्सा में किया जाता रहा है और इसकी समृद्ध फाइटोकैमिस्ट्री के लिए इसे महत्व दिया जाता है। तुलसी के लाभ शारीरिक और मानसिक कल्याण के विभिन्न पहलुओं तक फैले हुए... Read More

सावधान! अगर आप भी खाते हैं तुलसी के पत्ते, हो सकता है ये फायदे और नुकसान -

तुलसी को ओसीमम सैंक्टम के नाम से भी जाना जाता है। यह अपने कई स्वास्थ्य लाभों के लिए आयुर्वेद में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस जड़ी बूटी का उपयोग सदियों से पारंपरिक चिकित्सा में किया जाता रहा है और इसकी समृद्ध फाइटोकैमिस्ट्री के लिए इसे महत्व दिया जाता है।

तुलसी के लाभ शारीरिक और मानसिक कल्याण के विभिन्न पहलुओं तक फैले हुए हैं, जिससे यह समग्र स्वास्थ्य के प्रति सजक लोगों के लिए एक लोकप्रिय विकल्प बन गया है। आइए इसके फायदों के बारे में जानने की कोशिश करते हैं:

एडाप्टोजेनिक गुण:

तुलसी को एडाप्टोजेन के रूप में वर्गीकृत किया गया है, एक ऐसा पदार्थ जो शरीर को तनाव के अनुकूल बनाने में मदद करता है और समग्र संतुलन को बढ़ावा देता है। यह तनाव के प्रति शरीर की प्रतिक्रिया को नियंत्रित करता है, जिससे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों पर तनाव का नकारात्मक प्रभाव कम होता है।

एंटीऑक्सीडेंट क्रिया:

फ्लेवोनोइड्स और पॉलीफेनोल्स जैसे एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर, तुलसी ऑक्सीडेटिव तनाव से निपटने और मुक्त कणों को बेअसर करने में मदद करती है। यह सेलुलर स्वास्थ्य में योगदान देता है और पुरानी बीमारियों को रोकने में भूमिका निभा सकता है।

सूजनरोधी प्रभाव:

तुलसी में सूजन-रोधी गुण होते हैं, जो शरीर में सूजन को कम करने में मदद करते हैं। पुरानी सूजन विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़ी हुई है, और तुलसी के सूजन-रोधी प्रभाव सूजन संबंधी स्थितियों की रोकथाम और प्रबंधन में योगदान कर सकते हैं।

 

प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत करना:

तुलसी के प्रतिरक्षा-मॉड्यूलेटिंग गुण इसे प्रतिरक्षा प्रणाली का समर्थन करने में एक मूल्यवान सहयोगी बनाते हैं। यह शरीर की प्राकृतिक रक्षा तंत्र को बढ़ाता है, जिससे यह संक्रमण और बीमारियों से लड़ने में मजबूत होता है

रोगाणुरोधी क्रिया:

तुलसी ने रोगाणुरोधी और जीवाणुरोधी गुणों का प्रदर्शन किया है। यह विभिन्न रोगजनकों से निपटने में मदद कर सकता है, संक्रमण की रोकथाम और उपचार में योगदान दे सकता है।

 

कार्डियोप्रोटेक्टिव प्रभाव:

कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि तुलसी हृदय स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। यह रक्तचाप को नियंत्रित करने, कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने और समग्र हृदय समारोह में सुधार करने में मदद कर सकता है।

कैंसर रोधी गुण:

कुछ अध्ययनों ने प्राकृतिक कैंसर रोधी एजेंट के रूप में तुलसी की क्षमता का पता लगाया है। यह ऐसे गुण प्रदर्शित करता है जो कुछ कैंसर कोशिकाओं के विकास को रोक सकते हैं और ट्यूमर के प्रसार को रोक सकते हैं।

पाचन सहायता:

यह पाचन में सहायता कर सकती है और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याओं को कम कर सकती है। यह अपच, सूजन और गैस के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकता है।

तुलसी को हिंदू धर्म में ही नहीं बल्कि आयुर्वेद में भी बेहद गुणकारी माना गया है। तुलसी के आध्यात्मिक और औषधीय गुणों की वजह से आयुर्वेद में इसे अमृत कहा जाता है। तुलसी का सेवन करने से खून का जमाव, प्रतिरक्षा को बढ़ाने मिलने के साथ सर्दी, खांसी, जुकाम को भगाने में भी राहत मिलती है। सेहत के लिए इतनी गुणकारी होने के बावजूद क्या आप जानते हैं इसका जरूरत से ज्यादा सेवन करने से आपकी सेहत को फायदे से ज्यादा नुकसान भी हो सकता है। आइए जानते हैं कैसे।  

तुलसी का ज्यादा सेवन करने से सेहत को हो सकते हैं ये नुकसान-

-डायबिटीज-

तुलसी की पत्तियों में हाइपोग्लाइसेमिक लेवल को कंट्रोल करने वाले गुण मौजूद होते हैं। यही वजह है कि तुलसी के पत्ते चबाने से व्यक्ति का ब्लड शुगर लेवल कम होता है। ऐसे में अगर आपका शुगर लेवल पहले से ही लो रहता है या फिर आप शुगर की दवाइयां ले रहे हैं तो तुलसी का अधिक सेवन करने से बचें। तुलसी का अधिक सेवन करने से ब्लड शुगर में बहुत ज्यादा कमी आ सकती है। जो उनके लिए नुकसानदेह हो सकता है।

गर्भवती महिलाएं- 

तुलसी में मौजूद यूजेनॉल महिलाओं के पीरियड शुरू होने का कारण बन सकता है। इतना ही नहीं तुलसी का अधिक सेवन करने से प्रेगनेंसी में डायरिया की समस्या भी हो सकती है। यही वजह है कि गर्भवती महिलाओं को तुलसी का सेवन करने की सलाह नहीं दी जाती है।

 

खून पतला कर सकती है तुलसी-

तुलसी के पत्तों में कई ऐसे तत्व पाए जाते हैं जो खून को पतला करने में मदद कर सकते हैं। ज्यादा मात्रा में तुलसी का सेवन ब्लड को पतला करके कई स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है। ऐसे में ज्यादा मात्रा में तुलसी का सेवन करें से बचें।

जलन-

तुलसी की तासीर गर्म होने की वजह से इसका अत्यधिक सेवन करने से पेट में जलन पैदा हो सकती है। यही वजह है कि तुलसी का सेवन सीमित मात्रा में ही करने की सलाह दी जाती है।

 

दांतों को करते हैं खराब- 

तुलसी के पत्तों को चबाकर खाना दांतों के लिए नुकसान दायक साबित हो सकता है। तुलसी के पत्तों में पारा और आयरन की मात्रा पाई जाती है। इसमें कुछ मात्रा में आर्सेनिक भी पाया जाता है, जिससे दांत खराब हो सकते हैं। इससे दांतों में दर्द की समस्या हो सकती है।

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विदारी कंद के सेवन से दूर होती हैं ये 6 समस्याएं जानें उपयोग का सही तरीका और नुकसान –


विदारी कंद के सेवन से दूर होती हैं ये 6 समस्याएं, जानें उपयोग का सही तरीका और नुकसान – आयुर्वेद में स्वस्थ रहने और बीमारियों के इलाज के लिए कई तरह की जड़ी-बूटियों, पेड़-पौधों का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें विदारी कंद भी एक है। विदारी कंद ऐसी जड़ी-बूटी है, जिसका उपयोग कई समस्याओं को दूर करने के लिए किया जा सकता है। विदारी कंद पोषक तत्वों से भरपूर होता है।   विदारी कंद एक बारहमासी जड़ी ब... Read More

विदारी कंद के सेवन से दूर होती हैं ये 6 समस्याएं, जानें उपयोग का सही तरीका और नुकसान –

आयुर्वेद में स्वस्थ रहने और बीमारियों के इलाज के लिए कई तरह की जड़ी-बूटियों, पेड़-पौधों का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें विदारी कंद भी एक है। विदारी कंद ऐसी जड़ी-बूटी है, जिसका उपयोग कई समस्याओं को दूर करने के लिए किया जा सकता है। विदारी कंद पोषक तत्वों से भरपूर होता है।

 

विदारी कंद एक बारहमासी जड़ी बूटी है। इसका वानस्पतिक नाम प्युररिआ ट्यूबरोजा है। यह फैबेसी (मटर) परिवार से संबंधित है। सामान्य भाषा में विदारी कंद को कुडज़ू के रूप में जाना जाता है। इस कंद की जड़ें गोलाकार, स्टार्चयुक्त और सफेद रंग की होती हैं। विदारी कंद स्वाद में मीठा होता है। विदारी कंद सेहत के लिए कापी फायदेमंद होता है। इसके उपयोग सीने में दर्द, बुखार और गठिया के इलाज में किया जा सकता है। इसके अलावा यह प्रजनन क्षमता बढ़ाने के लिए भी उपयोगी होता है। महिलाओं को दूध बढ़ाने के लिए विदारी कंद का सेवन किया जा सकता है। 

विदारी कंद के फायदे–

1. इम्युनिटी बढ़ाए विदारी कंद

विदारी कंद में एंटीऑक्सीडेंट्स भरपूर होते हैं। इसके अलावा इसमें अन्य पोषक तत्व भी पाए जाते हैं, जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करते हैं। विदारी कंद शरीर को रोगाणुओं से लड़ने में मदद करता है, साथ ही कई तरह के संक्रमणों से भी बचाता है। विदारी कंद में एंटीबैक्टीरियल, एंटीवायरल और एंटीफंगल गुण भी होते हैं, जो सर्दी-जुकाम, गले की खराश में काम करते हैं। 

2. ब्रेस्ट मिल्क बढ़ाए विदारी कंद

विदारी कंद अपनी शक्तिशाली गैलेक्टागॉग क्रिया के कारण प्रोलैक्टिन और कॉर्टिकोइड्स के उत्पादन में वृद्धि होती है। जो ब्रेस्ट मिल्क बढ़ाने में मदद करता है। साथ ही इसकी गुणवत्ता में भी सुधार करती है। स्तनपान कराने वाली महिलाएं डॉक्टर की सलाह पर विदारीकंद चूर्ण का सेवन कर सकती हैं। ताकि उनके शरीर में ब्रेस्ट मिल्क का उत्पादन होता रहे।  

3. पुरुषों के लिए फायदेमंद विदारी कंद

विदारी कंद का उपयोग प्रजनन क्षमता और कामेच्छा को बढ़ाने के लिए भी किया जा सकता है। पुरुषों की यौन समस्याओं को दूर करने में विदारी कंद फायदेमंद होता है। विदारी कंद पुरुषों के मानसिक तनाव और चिंता को कम करता है। साथ ही टेस्टोस्टेरोन के उत्पादन को बढ़ाता है, इससे प्रजनन क्षमता और कामेच्छा बढ़ती है। इतना ही नहीं यह पुरुषों में शुक्राणुओं की गतिशीलता और गुणवत्ता में भी सुधार कर सकता है।

4. स्किन के लिए फायदेमंद विदारी कंद

आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी विदारी कंद त्वचा के लिए भी काफी फायदेमंद होती है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट्स गुण होते हैं, जो त्वचा को फ्री रेडिकल्स से होने वाले नुकसान से बचाते हैं। साथ ही यह ऊतकों की मरम्मत करते हैं। बढ़ती उम्र के लक्षणों को कम करने के लिए आप विदारी कंद का सेवन कर सकते हैं। 

5. मूत्र विकार दूर करे विदारी कंद

अगर आपको पेशाब से जुड़ी कोई भी समस्या है, तो इसमें विदारी कंद फायदेमंद हो सकता है। विदारी कंद का उपयोग दर्दनाक पेशाब, पेशाब करते समय जलन, खुजली आदि स्थितियों में किया जा सकता है। विदारी कंद में एंटी माइक्रोबियल और एंटी बैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं, जो मूत्र विकारों को दूर करते हैं। संक्रमण से बचाव करते हैं। आप डॉक्टर की सलाह पर विदारी कंद का सेवन कर सकते हैं। 

6. घाव ठीक करने में कारगर विदारी कंद

विदारी कंद में एंटी इंफ्लेमेटरी और पेन रिलीविंग गुण होते हैं, ऐसे में घाव को ठीक करने में इसका उपयोग किया जा सकता है। इसके अलावा मुंह के छालों को दूर करने के लिए भी विदारी कंद का सेवन किया जा सकता है। विदारी कंद जड़ी-बूटी अपने कसैले गुणों के कारण घावों की सूजन को कम करने में भी मदद करता है।

विदारी कंद का उपयोग–

आप विदारी कंद का उपयोग पाउडर या चूर्ण के रूप में कर सकते हैं। विदारी कंद पाउडर की खुराक डॉक्टर की सलाह पर ली जानी चाहिए। 

विदारी कंद किसी बीमारी का संपूर्ण इलाज नहीं है, इसलिए आपको इसका उपयोग दवाई के रूप में नहीं करना चाहिए। अगर आयुर्वेदिक डॉक्टर इसे खाने की सलाह देते हैं, तो इसका सेवन सही मात्रा में किया जा सकता है

विदारीकंद के नुकसान–

 

विदारीकंद का अधिक इस्तेमाल करने से निम्न प्रकार के दुष्प्रभाव देखने को मिल सकते हैं -

 

० विदारीकंद का अधिक प्रयोग लिवर के लिए नुकसानदायक हो सकता है, जिस कारण लिवर की बीमारी हो सकती हैं.

० इसे ज्यादा मात्रा में सेवन करने से खुजली की समस्या, उल्टियां व रेड ब्लड सेल्स में कमी हो सकती है.

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कौंच के बीज के फायदे ही नहीं नुकसान भी हैं जाने इस ब्लॉग में


कौंच के बीज के फायदे ही नहीं नुकसान भी हैं। कौंच के बीज इसकी फलियों में पाए जाते हैं। ये सम्बी बेलों पर निकलते हैं।कौंच की फलियां मबल रूप से दक्षिणी चीन और पूर्वी भारत में पाई जाती हैं। हालांकि, अब ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अमेरिका में इनकी खेती व्यापक रूप से होती है। इस पौधे का जीवनकाल छोटा होता है। कौंच के बीज का उपयोग मुख्य रूप से औषधीय जड़ी बूटी औऱ जैविक खाद और जानवरों के चारे के रूप में करते हैं।... Read More

कौंच के बीज के फायदे ही नहीं नुकसान भी हैं।

कौंच के बीज इसकी फलियों में पाए जाते हैं। ये सम्बी बेलों पर निकलते हैं।कौंच की फलियां मबल रूप से दक्षिणी चीन और पूर्वी भारत में पाई जाती हैं। हालांकि, अब ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अमेरिका में इनकी खेती व्यापक रूप से होती है। इस पौधे का जीवनकाल छोटा होता है। कौंच के बीज का उपयोग मुख्य रूप से औषधीय जड़ी बूटी औऱ जैविक खाद और जानवरों के चारे के रूप में करते हैं।

 

दुनिया भर में फैले होने के कारण कौंच के पौधे को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इसे काउहेज ,किवांच और कोविच नाम से पुकारा जाता है। प्राचीन आयुर्वेद में कौंच की फलियों का उपयोग एक दवा के रूप में किया जाता रहा है जो चिंता, अवसाद, पेचिश, सांप के काटने और बांझपन के इलाज में मदद करती है। इसके अलावा, कौंच की फलियों का अर्क खांसी, मधुमेह और कैंसर के इलाज में भी मदद करता है।

 

कौंच के बीज दो प्रकार के होते हैं। एक वो जिनकी खेती की जाती है और दूसरे वो जो जंगल में अपने आप उग आते हैं।कौंच के बीज का इस्तेमाल का उपयोग कई गम्भीर बीमारियों जैसे मिर्गी ,पार्किंसन्स, इनफर्टिलिटी और सेक्सुअल पावर बढ़ाने के लिए भी किया जाता है।

 

वैसे तो अधिकतर कौंच के बीज के सेवन के फायदों की ही बात होती है पर इसके कुछ नुक्सान भी हो सकते हैं।आइए आपको बताते हैं कि इन बीजों के अधिक इस्तेमाल से क्या परेशानियां हो सकती हैं।

1. कौंच का बीज कर सकता है पेट में गड़बड़

कई बार हम किसी औषधि का इस्तेमाल बस उसके गुणों के बारे में सुनकर ही शुरु कर देते हैं। ये जानने की कोशिश नहीं करते कि उसे कितनी मात्रा में या कितने दिनों तक लेना है। औऱ क्या उस औषधि के अधिक सेवन कर लेने से कोई समस्या भी हो सकती है। कुछ इसी प्रकार कौंच के बीज का सेवन करने वाले इसके तमाम गुणों के बारे में सुनकर इसका सेवन करने लगते हैं बिना यह जाने कि इसकी अधिक मात्रा उनकी सेहत को खराबी भी कर सकती है। यदी आप दिन में दो बार कौंच के बीजों का सेवन करते हैं तो ये आपका पेट खराब कर सकते हैं। इनके अधिक सेवन से आपको दस्त या डायरिया की समस्या हो सकती है। शरीर की ऐसी किसी भी प्रतिक्रिया पर इसका सेवन तुरंत बंद कर दें।

 

2. वज़न में अवांछित कमी

हम में से कई लोग वज़न कम करने के कई जतम करते हैं पर वज़न कम नहीं हो पाता वहीं कुछ लोग पहले से ही कम वज़न वाले होते हैं औऱ वज़न बढ़ाने की तरकीब ढूंढते रहते हैं। ऐशे लोगों के लिए कौंच के बीज का सेवन करनी ठीक नहीं है। कौंच के बीज का लगातार सेवन करने से आपका वज़न तेज़ी से कम हो सकता है । पहले से दुबले पतले लोगों के लिए यह कमज़ोरी का कारण बन सकता है।

 

3. आंतों के लिए खतरनाक है

कौंच के बीज जानकार मानते हैं कि कौंच के बीज का ज़रूरत से ज्यादा सेवन करने से आपकी आंतों पर बुरा असर पड़ सकता है। इसके लगातार सेवन से आंतों के काम करने की गति सामान्य से अधिक हो जाती है जिसके कारण आपके शरीर की पूरी आंतरिक प्रणाली पर असर पड़ता है। इससे आपको लो ब्लड प्रेशर की समस्या हो सकती है। अगर ब्लड प्रेशर सामान्य से कम होता है या फिर अधिक दोनों ही स्थिति आपके स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं हैं। इसलिए इसका सेवन उचित मात्रा में ही करें।आंतों की कार्यप्रणाली में बदलाव के कारण पेट दर्द और पाचन संबंधी परेशानियां भी आ सकती है।

 

4. कई रोगों में मना है कौंच के बीज का सेवन

विशेषज्ञ मानते हैं कि कई गम्भीर बीमारयों में कौंच के बीज का सेवन नहीं करना चाहिए । कौंच के बीज का सेवन इन बीमारियों के लक्षणों को बढ़ा भी सकता है। दरअसल कई बड़ी बीमारियों में आप लगातार उन रोगों से संबंधित दवाएं ले रहे होते हैं ।ऐसे में कौंच के बीज के सेवन से उस उपचार में बाधा उत्पन्न हो सकती है। हो सकता है कुछ दवाएं इसके सेवन से शरीर में अलग ही रिएक्शन पैदा करें। जिन बीमारियों में कौंच के बीज को ना लेने की सलाह दी जाती है उनमें ब्रेन ड़िस्ऑर्डर, ग्लूकोमा, हृदय संबंधी बीमारियां, और गुर्दे की बीमारियां शामिल हैं।

 

5. गर्भावस्था में ना करें सेवन

गर्भावस्था और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को भी इनके इस्तेमाल से बचने की सलाह दी जाती है।

 

दरअसल इसमें एक ऐसा तत्व मौजूद होता है जो आपके यूटरस पर प्रभाव डाल सकता है। इसके सेवन से गर्भाशय में कई रसायनिक परिवर्तन हो सकते हैं जिनके कारण गर्भाशय फट भी सकता है। इसके अलावा गर्भाशय पर पड़ने वाले असर के कारण गर्भ में पल रहे बच्चे में भी कई प्रकार की समस्याएं या विकृति पैदा हो सकती है।

 

6. लिवर की समस्या वाले रहे दूर

विशेषज्ञ कहते हैं कि लिवर से संबंधित समस्याओँ में भी कौंच के बीज का सेवन खतरनाक हो सकता है। कौंच के बीज में लिवोडोपा नाम का तत्व मौजूद होता है जो शरीर में सिरम ग्लूटैमिक ऑक्सेलोसिटिक ट्रांस्अमिनेस यानी एसजीओटी की मात्रा बढ़ा देता है। इनके बढ़ने से लिवर सामान्य तौर पर काम नहीं कर पाता।

 

7. भ्रम की स्थिति पैदा कर सकते हैं कौंच के बीज

कौंच के बीड का अत्यधिक सेवन करने से शरीर में लिवोडोपा की मात्रा अधिक हो जाती है। इसके कारण शरीर डोपामीन का उत्पादन शुरु कर देता है जो आपको हैलुसिनेशन और भ्रम की स्थिति में पहुंचा सकता है। अधिक गम्भीर स्थिति में व्यक्ति के शीजोफ्रेनिया भी हो सकता है।

 

 8. कौंच के बीज में होते है एंटी न्यूट्रिएंट

कई अलग अलग शोध ये बताते है कि कौंच के बीज में कुछ ऐसे तत्व भी होते हैं जो एंटी न्यूट्रिएंट कहलाते हैं। जैसे टैन्निन्स,फिनॉल्स आदि। इसलिए इन बीजों का सेवन करने से पहले इन्हें कुछ देर भिगो कर छोड़ देना चाहिए जिससे अनचाहे तत्वों से छुटकारा मिल सके।

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कौंच के बीज को खाने से सेहत में जाने 5 फायदे  –


कौंच के बीज को खाने से सेहत में जाने 5 फायदे  – भारत को जड़ी-बूटियों का देश कहा जाता है। उत्तर से लेकर दक्षिण तक भारत में कई तरह की जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है। इन्हीं में से एक कौंच के बीज। कौंच के बीज के बारे में ज्यादा लोगों को पता ही नहीं है, लेकिन ये कई सारे पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। कौंच के बीज पोषक तत्व महिलाओं से लेकर पुरुषों तक की सेहत के लिए बहुत फायदेमंद माने ज... Read More

कौंच के बीज को खाने से सेहत में जाने 5 फायदे  –

भारत को जड़ी-बूटियों का देश कहा जाता है। उत्तर से लेकर दक्षिण तक भारत में कई तरह की जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है। इन्हीं में से एक कौंच के बीज। कौंच के बीज के बारे में ज्यादा लोगों को पता ही नहीं है, लेकिन ये कई सारे पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। कौंच के बीज पोषक तत्व महिलाओं से लेकर पुरुषों तक की सेहत के लिए बहुत फायदेमंद माने जाते हैं। आज इस लेख में हम आपको बताएंगे कौंच के बीज (Kaunch Beej Khane ke Fayde) से सेहत को मिलने वाले 5 फायदों के बारे में।

कौंच के बीज के फायदे –

1. अच्छी नींद दिलाने में मददगार

अच्छी नींद न सिर्फ सेहतमंद शरीर के लिए जरूरी होती है बल्कि ये मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक मानी जाती है। जिन लोगों को ठीक से नींद नहीं आती है या जिन लोगों को नींद आने में परेशानी आती है उन्हें कौंच के बीज के पाउडर का इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है। आप कौंच के बीज के पाउडर को गुनगुने पानी और दूध के मिलाकर सेवन कर सकते हैं।

2. पुरुषों की इनफर्टिलिटी सुधारने में मददगार

आजकल की लाइफस्टाइल में पुरुषों में नपुंसकता के मामले बढ़ते जा रहे हैं। शराब, धूम्रपान और खानपान की वजह से पुरुषों के हार्मोन प्रभावित होते हैं। इन सभी चीजों के प्रभाव से शरीर को बचाने और नपुंसकता को ठीक करने के लिए पुरुषों को कौंच के बीज का सेवन करने की सलाह दी जाती है। कौंच के बीज के पोषक तत्व पुरुषों की इनफर्टिलिटी की समस्या को दूर करने में मदद करते हैं।

3. डिप्रेशन से बचाने में मददगार

कौंच में एंटी-डिप्रेसेंट गुण पाए जाते हैं। यही कारण है कि इसे डिप्रेशन से बचाने में मददगार माना जाता है। कौंच के बीज पर हुई रिसर्च में ये बात सामने आई है कि इसका सेवन करने से मूड स्विंग को ठीक करने में मदद मिलती है। इतना ही नहीं कौंच के बीज दिमाग को एकाग्र करने में भी मदद करते हैं।  

4. जोड़ों के दर्द से दिलाता है राहत

सर्दियों के मौसम में अक्सर घर के बुजुर्गों को जोड़ों के दर्द की परेशानी होती है। जोड़ों के दर्द से राहत दिलाने कौंच के बीज का पाउडर काफी मददगार साबित होता है। कौंच के बीजों में मौजूद एंटी- इंफ्लेमेटरी गुण दर्द और सूजन की परेशानी को दूर करने का काम करते हैं। जोड़ों के दर्द से राहत पाने के लिए आप कौंच के बीज का सेवन दूध में मिलाकर कर सकते हैं।  

5. पार्किंसंस में फायदेमंद

कौंच के बीजों में एल-डोपा पाया जाता है जो पार्किंसंस यानी कि हाथ कांपने की बीमारी को दूर करने में फायदेमंद है। पार्किंसंस से पीड़ित मरीज गुनगुने पानी के साथ कौंच के पाउडर का इस्तेमाल कर सकते हैं।   

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ये रहे गोखरू के फायदे


ये रहे गोखरू के फायदे गोखरू के फायदे – विभिन्न रोगों के उपचार के लिए गोक्षुरा का उपयोग किया जाता है। गोक्षुरा के स्वास्थ्य लाभ आगे बताये गए है। 1) हाजमा बढ़ाये गोखरू का काढ़ा हजम शक्ति को मजबूत बनाता है। कमजोर हजम शक्ति वाले लोगों को गोखरू का सेवन करना चाहिए। इससे खाना पचने में आसानी होती है। ३० से ४० मिली गोखरू काढ़ा में ५ ग्राम पीपल का चूर्ण पियें। इससे पाचन-शक्ति बेहतर होती है।   2) म... Read More

ये रहे गोखरू के फायदे

गोखरू के फायदे –

विभिन्न रोगों के उपचार के लिए गोक्षुरा का उपयोग किया जाता है। गोक्षुरा के स्वास्थ्य लाभ आगे बताये गए है।

1) हाजमा बढ़ाये

गोखरू का काढ़ा हजम शक्ति को मजबूत बनाता है। कमजोर हजम शक्ति वाले लोगों को गोखरू का सेवन करना चाहिए। इससे खाना पचने में आसानी होती है। ३० से ४० मिली गोखरू काढ़ा में ५ ग्राम पीपल का चूर्ण पियें। इससे पाचन-शक्ति बेहतर होती है।

 

2) मूत्र विकारों में लाभ

पेशाब करने के दौरान दर्द, पेशाब में जलन व विभिन्न प्रकार के मूत्र रोगों में गोखरू एक शक्तिशाली उपाय है। इसे गाय के दूध में मिलाकर पियें इससे दर्द और जलन दोनों में आराम मिलेगा और उचित पेशाब को भी उत्तेजित करने में मदद करेगा यह हल्का मूत्रवर्धक है जिससे डिसुरिया का भी इलाज होता है इसमें एंटी-माइक्रोबियल और एंटी-बैक्टीरियल गुण होते है जो मूत्र संक्रमण को रोकते है।

 

3) पथरी या अश्मरी में

पथरी की समस्या से बहुत से लोग परेशान है गोखरू का सेवन पथरी को प्राकृतिक रूप से बाहर कर देता है ५ ग्राम गोखरू चूर्ण लें इसमें १ चम्मच शहद मिला लें और दिन में ३ बार इसका सेवन करें इसके ऊपर बकरी का दूध पी लें इससे अश्मरी टूटकर निकल जाती है।

 

4) यौन स्वास्थ्य और सहनशक्ति में बढ़ावा

यह पुरुषों के स्वास्थ्य में भी सुधार करने में सहायक है। यह एक तरह का प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट है जो टेस्टोस्टेरोन और ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन का उत्पादन बढ़ाता और उसमें सुधार करता है। स्तंभन दोष और शीघ्रपतन का भी इलाज करता है।

 

इस चूर्ण में शक्तिशाली शुक्राणुजन्य गुण पाए जाते है। यह गुण शुक्राणु उत्पादन को बढ़ाने में सहायक होते है। जो एस्थेनोज़ोस्पर्मिया (यानी शुक्राणु की गतिशीलता), हाइपोस्पर्मिया (वीर्य की कम मात्रा), टेराटोस्पर्मिया (यानी असामान्य शुक्राणु आकार) ओलिगोस्पर्मिया (यानी कम शुक्राणुओं की संख्या) का इलाज करने के लिए बहुत लाभकारी है।

 

5) चर्मरोग में

यह एक तरह का प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट और क्लींजर है। जो उम्र बढ़ने के विभिन्न लक्षणों जैसे : झुर्रियों, काले घेरे, धब्बों, महीन रेखाओं आदि का इलाज करता है। मुंहासों, फुंसियों को भी कम करता है। कई लोगों को त्वचा से संबंधित रोग हो जाते है जिसका कारण है अत्यधिक प्रदूषण।

 

इससे बचने के लिए गोखरू का फल बहुत मदद करता है इसके फल को पानी में मिलाकर पीस लें और चेहरे पर लगाएं या जहाँ भी खुजली और दाद हो रहे हो उस पर लगाएं आपको आराम मिलेगा। इसका दूसरा तरीका है २ चम्मच गोक्षुरा पाउडर, १ चम्मच शहद, २-३ चम्मच गुलाब जल मिलाकर पेस्ट तैयार कर लें। इसे चेहरे पर लगाएं और १५ मिनट बाद ठंडे पानी से चेहरा धो लें।

6) सिरदर्द में

आज के समय में तनाव इतना बढ़ गया है जिसकी वजह से सिरदर्द होना सामान्य है। कई लोग सिरदर्द से परेशान है। इसके लिए १० से २० मिली गोखरू काढ़ा सुबह-शाम पियें। पित्त के बढ़ जाने से सिरदर्द होने पर इसमें आराम मिलेगा।

 

7) दस्त रोकने में

यदि आपको दस्त लग गए है और ठीक नहीं हो रहे तो गोखरू का सेवन करें। ५०० मिग्रा गोक्षुरफल चूर्ण को मट्ठे के साथ खाना है। इसे दिन में २ बार खाएं इससे अतिसार और आमातिसार ठीक हो जाता है।

 

8) पीसीओएस का इलाज

पीसीओएस (पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम) एक आम समस्या हो गई है। इस समस्या के पीछे हार्मोंस का असंतुलन है। जिसके कारण वजन का बढ़ना, पीरियड्स, बालों का झड़ना, मुंहासे आदि हो जाते हैं। पीसीओएस की वजह से गर्भधारण में बहुत कठिनाई आती है।

 

गोखरू एक सक्रिय मूत्रवर्धक है। जिसका सेवन करने से सिस्ट से अतिरिक्त पानी बाहर हो जाता है। इससे उसका आकार भी कम हो जाता है। गोखरू महिला प्रजनन अंगों को बढ़ावा देता है, रक्त में हार्मोनल स्तर बनाए रखता है और अंडों की परिपक्वता को रोम में बढ़ाता है इतना फायदेमंद है गोखरू।

 

9) दमा में राहत

बहुत से लोगों में दमा की बिमारी हो रही है इसमें गोखरू का सेवन करना फायदेमंद होता है। गोखुर के फल चूर्ण को २ ग्राम की मात्रा में लें। इसे २-३ सूखे अंजीर के साथ इसका दिन में ३ बार सेवन करें। नियमित रूप से सेवन करने पर दमा में राहत मिलेगी। गोक्षुर तथा अश्वगंधा बराबर मात्रा में लें। इसमें २ चम्मच शहद मिला लें। इसे २५० मिली दूध के साथ दिन में २ बार आपको सेवन करना है। इससे कमजोरी और सांस से जुड़ी समस्या में आराम होगा।

 

10) कार्डियक फंक्शनिंग को बढ़ावा

यह एंटीऑक्सीडेंट की प्रकृति से भरपूर होता है जिससे की हृदय रोगों का इलाज करने में फॉर्मूलेशन बहुत प्रभावी है। गोक्षुरा हृदय की मांसपेशियों को मजबूत बनाता है। रक्त वाहिकाओं में लिपिड के गठन को रोकता है। गोक्षुरा में बायोएक्टिव घटक मौजूद होते है।

 

जो गैर-एस्ट्रिफ़ाइड फैटी एसिड (एनईएफए) का स्तर भी कम करता है। जिसके कारण कई तरह की बीमारी स्ट्रोक, दिल के दौरे, रक्त के थक्के इस तरह के जोखिम कम हो जाते है। रक्त में कोलेस्ट्रॉल का स्तर भी बनाकर रखता है।

11) दर्द से दे मुक्ति

गोक्षुरा में एंटी इंफ्लेमेटरी और एनाल्जेसिक गुण होते है। जिससे की यह दर्द और सूजन से राहत देने का कार्य करता है। इस कारण रूमेटोइड गठिया और ऑस्टियोआर्थराइटिस के दर्द को कम करने के लिए इसका व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाता है।

 

12) चिंता और अवसाद के लिए

गोक्षुरा में मौजूद सैपोनिन के कारण सीरम कोर्टिसोल का स्तर कम हो जाता है। जिससे की यह चिंता और अवसाद के इलाज में काम आने वाली औषधि है। गोखरू एक प्रभावी चिंताजनक और अवसादरोधी दवा के रूप में उपयोग की जाती है। यह सभी आयु वर्ग पर अपना प्रभाव दिखाती है। चिंता और अवसाद से ग्रसित लोगों को इसका सेवन करना चाहिए।

13) मस्तिष्क के कामकाज को बढ़ावा

गोक्षुरा चूर्ण मस्तिष्क की कार्यप्रणाली को बढ़ाने का एक प्राकृतिक उपाय है। इसमें शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट होते है जो किसी व्यक्ति मानसिक विकास जैसे : सतर्कता में सुधार, ध्यान, स्मृति क्षमता, शांति, एकाग्रता को बढ़ाने में सहायक है। गोक्षुरा चूर्ण का नियमित सेवन समस्या-समाधान, तर्क, याददाश्त और अन्य संज्ञानात्मक क्षमताओं में सुधार करता है। मानसिक स्थितियों के उपचार में यह बहुत फायदेमंद है। अपने मस्तिष्क की क्षमता को बढ़ाने के लिए गोक्षुरा का जरूर सेवन करें।

 

14) लो स्पर्म काउन्ट में

जिन पुरुषों को लो स्पर्म काउन्ट की समस्या है उन्हें गोखरू किसी ना किसी रूप में लेना चाहिए। तो जो पुरुष पिता बनने का सुख नहीं ले पा रहे है उनके लिए गोखरू बहुत लाभदायक होता है। २० ग्राम गोखरू के फलों को २५० मिली दूध में उबाल लें। इसे सुबह-शाम पियें इससे स्पर्म या वीर्य से संबंधी समस्याएं कम होती है और उसमें आराम भी मिलता है। स्पर्म का काउन्ट और क्वालिटी बढ़ाने के लिए १० ग्राम गोखरू और १० ग्राम शतावर को २५० मिली दूध में मिलाकर पिएं। आपकी शारीरिक शक्ति भी बढ़ जाएगी और कमजोरी खत्म हो जाएगी।

 

15) गर्भाशय शूल या यूटेरस के दर्द में

जिन महिलाओं को गर्भाशय में दर्द होता है या किसी वजह से दर्द हो रहा है तो गोखरू का नियमित रूप से सेवन बहुत लाभदायक होता है। इसके लिए ५ ग्राम काली किशमिश, ५ ग्राम गोखरू फल, २ ग्राम मुलेठी इन सभी को मिलाकर पीस लें और सुबह-शाम इसका सेवन करें। इससे गर्भाशय के दर्द से मुक्ति मिलेगी।

 

16) आमवात या रूमाटाइड के दर्द में आराम

उम्र का असर तो शरीर पर होता ही है जिसका सबसे ज्यादा असर जोड़ो में होता है। जोड़ो के दर्द से मुक्ति पाने के लिए गोखरू फल में बराबर की मात्रा में सोंठ चतुर्थांश का काढ़ा बनाकर सेवन करने से जोड़ो के दर्द, कमर दर्द में आराम होता है रोज सुबह- शाम इसका सेवन करें।

 

17) कामेच्छा को बढ़ाने में

गोक्षुरा कामोद्दीपक प्रकृति का होता है। जो मानसिक तनाव और चिंता कम करता है। जिससे की मन शांत रहता है। यह कामेच्छा बढ़ाने वाले हार्मोन को उत्तेजित करता है। यह महिला और पुरुष दोनों में ही कामेच्छा को बढ़ाता है और महिला व पुरुष दोनों की ही प्रजनन क्षमता में सुधार करता है। पुरुषों के लिए भी यह बहुत फायदेमंद है यह पौरूषशक्ति और सहनशक्ति को बढ़ाता है।

 

18) शरीर सौष्ठव के लिए

गोक्षुरा मांसपेशियों की ताकत को बढ़ाता है और शरीर की संरचना में सुधार करता है। अगर आप बॉडी बिल्डर है तो यह शरीर की ताकत को बढ़ाने और वजन बढ़ाने में मदद करता है। जो लोग अपने प्रदर्शन को बेहतर बनाना चाहते है उन्हें इसका सेवन करना शुरू कर देना चाहिए क्योंकि कुछ लोग स्टेरॉयड का विकल्प चुनते हैं। जिसका लम्बे समय तक सेवन करने से यह नुकसानदायक हो सकता है। गोक्षुरा एक प्राकृतिक जड़ी बूटी है जो बिना नुकसान लाभ पहुँचाती है।

 

19) कान-नाक से खून बहना

यदि कान-नाक से खून बह रहा हो तो गोखरू का इस तरह से सेवन करना चाहिए। १० ग्राम गोखुर लें उसे २५० मिली दूध में उबाल लें। इसे पिएं रक्तपित्त में लाभ होगा।

 

20) बुखार में

मौसम बदलने की वजह से बुखार आना सामान्य है। ऐसे में गोखरू का सेवन फायदेमंद होता है। १५ ग्राम गोखरू पञ्चाङ्ग लें। इसे २५० मिली पानी में उबाल लें और इसका काढ़ा तैयार कर लें। इस काढ़े का दिन में ४ बार सेवन करें इससे बुखार उतर जाएगा।

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बड़ा गोखरू क्या है?


बड़ा गोखरू क्या है? गोखरू या 'गोक्षुर'भूमि पर फ़ैलने वाला छोटा प्रसरणशील क्षुप है जो कि आषाढ़ और श्रावण मास मे प्राय हर प्रकार की जमीन या खाली जमीन पर उग जाता है। पत्र खंडित और फूल पीले रंग के आते हैं, फल कंटक युक्त होते हैं, बाजार मे गोखरु के नाम से इसके बीज मिलते हैं। उत्तर भारत मे, हरियाणा, राजस्थान मे यह बहुत मिलता है। इसमें चने के आकार के कड़े और कँटीले फल लगते हैं। ये फल ओषिधि के काम... Read More

बड़ा गोखरू क्या है?

गोखरू या 'गोक्षुर'भूमि पर फ़ैलने वाला छोटा प्रसरणशील क्षुप है जो कि आषाढ़ और श्रावण मास मे प्राय हर प्रकार की जमीन या खाली जमीन पर उग जाता है। पत्र खंडित और फूल पीले रंग के आते हैं, फल कंटक युक्त होते हैं, बाजार मे गोखरु के नाम से इसके बीज मिलते हैं। उत्तर भारत मे, हरियाणा, राजस्थान मे यह बहुत मिलता है।

इसमें चने के आकार के कड़े और कँटीले फल लगते हैं। ये फल ओषिधि के काम में आते हैं और वैद्यक में इन्हें शीतल, मधुर, पुष्ट, रसायन, दीपन और काश, वायु, अर्श और ब्रणनाशक कहा है। यह फल बड़ा और छोटा दो प्रकार का होता है। कहीं कहीं गरीब लोग इसके बीजों का आटा बनाकर खाते हैं।

 

यह शीतवीर्य, मुत्रविरेचक, बस्तिशोधक, अग्निदीपक, वृष्य, तथा पुष्टिकारक होता है। विभिन्न विकारो मे वैद्यवर्ग द्वारा इसको प्रयोग किया जाता है। मुत्रकृच्छ, सोजाक, अश्मरी, बस्तिशोथ, वृक्कविकार, प्रमेह, नपुंसकता, ओवेरियन रोग, वीर्य क्षीणता मे इसका प्रयोग किया जाता है।

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ताकतवर और सेहतमंद बनने के लिए वरदान है ये 5 जड़ी बूटिया


ताकतवर और सेहतमंद बनने के लिए वरदान है ये 5 जड़ी बूटिया भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद शरीर में हर प्रकार के रोगों का इलाज जड़ी-बूटी और प्राकृतिक उपचार के माध्यम से करने के लिए जानी जाती है. आज हम आपको 5 ऐसी आयुर्वेदिक ताकतवर जड़ी-बूटियों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनके सेवन से आपकी जीवन शक्ति में सुधार आएगा। जंगलों में मिलने वाली इन जड़ी-बूटियों में शारीरिक क्षमता बढ़ाने व किसी भी प... Read More

ताकतवर और सेहतमंद बनने के लिए वरदान है ये 5 जड़ी बूटिया

भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद शरीर में हर प्रकार के रोगों का इलाज जड़ी-बूटी और प्राकृतिक उपचार के माध्यम से करने के लिए जानी जाती है. आज हम आपको 5 ऐसी आयुर्वेदिक ताकतवर जड़ी-बूटियों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनके सेवन से आपकी जीवन शक्ति में सुधार आएगा।

जंगलों में मिलने वाली इन जड़ी-बूटियों में शारीरिक क्षमता बढ़ाने व किसी भी प्रकार के रोग को दूर करने की ताकत होती है. अश्वगंधा, पहाड़ी इमली, विदारीकंद, बड़े गोखरू और कौंच का बीज, ये वो 5 जड़ी-बूटी हैं, जो आपके शरीर में बेहद ताकत, थकान जैसी समस्या को दूर करती हैं. इनमें हर जड़ी-बूटी अपने विशेष गुणों के लिए जानी जाती है।

इन पांच जड़ी बूटियां के बारे मे जानना है तो देखें आगे के ब्लॉग 

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ये है कुछ प्राकृतिक आपदाओं के 10 प्रकार इन्हें जानना बहुत जरूरी है


ये है कुछ प्राकृतिक आपदाओं के 10 प्रकार इन्हें भी जान लो  प्राकृतिक आपदाएँ क्या हैं? प्राकृतिक आपदा प्रकृति के कारण होने वाली अचानक और चरम घटना है जो लोगों को क्षति पहुंचा सकती है।   उदाहरणों में भूकंप, तूफान, बवंडर, बाढ़, जंगल की आग, ज्वालामुखी विस्फोट और सुनामी शामिल हैं।   इन घटनाओं के समुदायों और पर्यावरण पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं।   आज हम सभी 10 प्रकार की प्राकृतिक आपदाओ... Read More

ये है कुछ प्राकृतिक आपदाओं के 10 प्रकार इन्हें भी जान लो 

प्राकृतिक आपदाएँ क्या हैं?

प्राकृतिक आपदा प्रकृति के कारण होने वाली अचानक और चरम घटना है जो लोगों को क्षति पहुंचा सकती है।   उदाहरणों में भूकंप, तूफान, बवंडर, बाढ़, जंगल की आग, ज्वालामुखी विस्फोट और सुनामी शामिल हैं।   इन घटनाओं के समुदायों और पर्यावरण पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं।   आज हम सभी 10 प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं पर चर्चा करेंगे।

​​​​​​1. तूफान

तूफ़ान एक प्रकार का उष्णकटिबंधीय तूफ़ान है, लेकिन यह बहुत ज़्यादा शक्तिशाली होता है। यह एक विशाल, घूमता हुआ तूफ़ान है जो गर्म समुद्री पानी के ऊपर बनता है।

 

तूफानों में शक्तिशाली हवाएं होती हैं जो चीजों को उड़ा देती हैं, भारी बारिश बाढ़ का कारण बनती है, तथा तूफानी लहरें तटीय क्षेत्रों में बाढ़ ला देती हैं। 

 

मौसम विज्ञानी उन्हें उनकी वायु गति के आधार पर श्रेणियों में वर्गीकृत करते हैं, जिसमें श्रेणी 5 सबसे शक्तिशाली है।

2. बवंडर

जब बड़े तूफ़ान के दौरान गर्म और ठंडी हवा आपस में टकराती है तो बवंडर बनते हैं। यह टक्कर हवा को एक चक्र में घूमने के लिए मजबूर कर सकती है।

 

जब बवंडर आता है, तो वह अत्यंत विनाशकारी हो सकता है, एक शक्तिशाली विशाल वैक्यूम क्लीनर की तरह जो अपने रास्ते में आने वाली हर चीज को सोख लेता है।

 

बवंडर की कल्पना हवा और बादलों की एक लंबी, घुमावदार नली के रूप में करें जो आसमान से ज़मीन तक पहुँचती है। इस घूमती हुई नली के अंदर, हवा इतनी तेज़ हो सकती है कि वह घरों, कारों और पेड़ों को उठाकर खिलौनों की तरह इधर-उधर फेंक सकती है।

बवंडर प्राकृतिक आपदाएँ हैं क्योंकि वे बहुत नुकसान पहुँचा सकते हैं और लोगों के लिए बहुत खतरनाक होते हैं। वे ऐसी चीज़ नहीं हैं जिन्हें हम नियंत्रित या रोक सकते हैं, लेकिन हम मौसम की चेतावनियों को सुनकर और आश्रय लेकर सुरक्षित रहने की कोशिश कर सकते हैं।

3. ज्वालामुखी

ज्वालामुखी पृथ्वी की गहराई से गर्म पिघली हुई चट्टान, राख और गैसों का निर्माण करते हैं। वे किसी छिद्र से बाहर निकल सकते हैं, जिससे अक्सर विस्फोट होता है।

 

वे आम तौर पर वहाँ होते हैं जहाँ दो प्लेट टेक्टोनिक सीमाएँ मिलती हैं जैसे कि रिंग ऑफ़ फायर । लेकिन वे सबडक्शन ज़ोन, हॉट स्पॉट और मध्य-महासागरीय कटकों पर भी हो सकते हैं।

 

ज्वालामुखी से पृथ्वी की आंतरिक गर्मी और गतिविधि के कारण लावा और राख निकल सकती है। ज्वालामुखी के सभी भाग जैसे लावा बम और लाहर आसपास के क्षेत्रों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। 

4. भूकंप

भूकंप तब आता है जब पृथ्वी की सतह में अचानक ऊर्जा निकलती है। इससे भूकंपीय तरंगें पैदा होती हैं , जिससे ज़मीन हिलने लगती है।

 

ऊर्जा का यह उत्सर्जन पृथ्वी की सतह के नीचे टेक्टोनिक प्लेटों की गति के कारण होता है ।

 

भूकंप का आकार और तीव्रता अलग-अलग हो सकती है, छोटे भूकंप जिन्हें नोटिस करना मुश्किल होता है से लेकर बड़े भूकंप जो इमारतों और परिदृश्यों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

 

इनसे आफ्टरशॉक भी आ सकते हैं , जो मुख्य भूकंप के बाद आने वाले छोटे झटके होते हैं।

5. सुनामी

सुनामी एक बहुत बड़ी समुद्री लहर है जो बहुत विनाशकारी हो सकती है। यह तब होता है जब कोई बड़ी चीज़, जैसे कि समुद्र के अंदर भूकंप, समुद्र तल को हिला देती है।

 

इस गड़बड़ी से भारी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है, जिससे समुद्र में शक्तिशाली लहरें फैलती हैं।

 

जैसे-जैसे ये लहरें उथले तटीय क्षेत्रों के पास पहुंचती हैं, उनकी ऊंचाई और गति बढ़ जाती है, जिससे तट पर पहुंचने पर भारी बाढ़ आ जाती है।

 

सुनामी बहुत खतरनाक हो सकती है और तटीय क्षेत्रों में भारी क्षति और जान-माल की हानि का कारण बन सकती है।

 

6. सूखा

 

सूखा किसी विशेष क्षेत्र में असामान्य रूप से कम वर्षा की एक लंबी अवधि है। इससे पानी की कमी हो सकती है और पर्यावरण और कृषि पर असर पड़ सकता है।

 

सूखे की स्थिति में लोगों, पौधों और जानवरों के लिए पर्याप्त पानी नहीं होता। इससे मिट्टी सूख जाती है, फसल कम उगती है और समुदायों के लिए पानी की कमी हो जाती है।

 

सूखे से पारिस्थितिकी तंत्र पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ सकता है तथा पानी पर निर्भर लोगों का जीवन कठिन हो सकता है। 

7. भूस्खलन

भूस्खलन मिट्टी, चट्टानों या यहां तक कि भूमि के पूरे टुकड़े का अचानक नीचे की ओर खिसकना है ।

 

ऐसा भारी वर्षा, भूकंप या अन्य कारकों के कारण हो सकता है जो जमीन को अस्थिर बनाते हैं।

 

भूस्खलन धीमा और क्रमिक हो सकता है, या यह बहुत तेज़ और विनाशकारी भी हो सकता है ।

 

वे अक्सर प्रभावित क्षेत्र में घरों, सड़कों और प्राकृतिक परिदृश्य को नुकसान पहुंचाते हैं।

8. जंगल की आग

वन अग्नि, जिसे वन्य अग्नि भी कहा जाता है, वह घटना है जब किसी जंगल में अचानक आग लग जाती है और वह तेजी से आसपास के क्षेत्र में फैल जाती है।

 

यह तेजी से फैलने वाली, अनियंत्रित आग है जो जंगलों, घास के मैदानों या जंगली इलाकों में लगती है। आग बिजली, मानवीय गतिविधियों या यहाँ तक कि ज्वालामुखी विस्फोट से भी लग सकती है ।

 

जंगल की आग से बहुत नुकसान हो सकता है। वे पेड़, पौधे और वन्यजीवों को जला देते हैं। लेकिन वे आस-पास के समुदायों और पर्यावरण को भी खतरे में डाल सकते हैं। अग्निशामक दल इन आग को नियंत्रित करने और बुझाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं ताकि इनका प्रभाव कम से कम हो।

9. बाढ़

सूखी ज़मीन पर पानी के बहने को बाढ़ कहते हैं । बाढ़ भारी बारिश, पिघलती बर्फ़ या नदियों, झीलों या समुद्रों के बढ़ने के कारण आ सकती है। 

 

बाढ़ धीमी और क्रमिक हो सकती है, या वे कारण के आधार पर तेज़ी से आ सकती हैं। वे घरों, सड़कों और कृषि भूमि को नुकसान पहुंचा सकती हैं और बहुत खतरनाक हो सकती हैं।

 

एक उपश्रेणी है फ्लैश फ्लड, जो पानी का अचानक और अप्रत्याशित प्रवाह है । फ्लैश फ्लड बहुत खतरनाक होते हैं क्योंकि वे अचानक आते हैं और तेज़ गति से बहने वाला पानी मलबे को अपने साथ ले जा सकता है, जिससे लोगों और संपत्ति को खतरा हो सकता है।

10. टाइफून

 

टाइफून मूलतः हरिकेन जैसा ही है, लेकिन पश्चिमी प्रशांत महासागर और दक्षिण चीन सागर में इसे टाइफून कहा जाता है।

 

विश्व के अन्य भागों में, जैसे अटलांटिक महासागर और उत्तर-पूर्वी प्रशांत महासागर में, हम इन शक्तिशाली तूफानों को हरिकेन कहते हैं। 

 

टाइफून और हरिकेन बड़े उष्णकटिबंधीय तूफान हैं जिनमें तेज़ हवाएँ और भारी बारिश होती है जो बहुत नुकसान पहुँचा सकती है। ये आम तौर पर तटीय इलाकों में आते हैं।

प्राकृतिक आपदाओं के 10 प्रकार

प्राकृतिक आपदाएँ शक्तिशाली और प्रायः विनाशकारी घटनाएँ होती हैं जो प्रकृति की शक्तियों के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती हैं। 

 

इनमें तूफान, टाइफून, चक्रवात, ज्वालामुखी, भूकंप, सुनामी, सूखा, भूस्खलन, जंगल की आग और बाढ़ सहित कई प्रकार की घटनाएं शामिल हैं।

 

इन घटनाओं से समुदायों और पर्यावरण को भारी क्षति पहुंचने की संभावना है।

हम प्रकृति को समझकर और उचित उपाय करके विनाश और नुकसान को कम कर सकते हैं।

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आप जान सकते हैं प्राकृतिक आपदा और जोखिम के बारे में


प्राकृतिक आपदा जोखिम क्या है? प्राकृतिक आपदा तब जोखिम पैदा करती है जब यह उन चीजों को प्रभावित करती है जिनका हम मूल्य समझते हैं, जैसे हमारा स्वास्थ्य, संपत्ति और बुनियादी ढांचा, संस्कृति और विरासत, अर्थव्यवस्था और प्राकृतिक पर्यावरण। जोखिम की मात्रा और हम उसका प्रबंधन कैसे करते हैं, यह इस पर निर्भर करता है: प्राकृतिक खतरे का आकार, स्थान और संभावना हमारा एक्सपोजर हमारी भेद्यता. हमारा जोखिम उन चीज़ों... Read More

प्राकृतिक आपदा जोखिम क्या है?

प्राकृतिक आपदा तब जोखिम पैदा करती है जब यह उन चीजों को प्रभावित करती है जिनका हम मूल्य समझते हैं, जैसे हमारा स्वास्थ्य, संपत्ति और बुनियादी ढांचा, संस्कृति और विरासत, अर्थव्यवस्था और प्राकृतिक पर्यावरण।

जोखिम की मात्रा और हम उसका प्रबंधन कैसे करते हैं, यह इस पर निर्भर करता है:

प्राकृतिक खतरे का आकार, स्थान और संभावना

हमारा एक्सपोजर

हमारी भेद्यता.

हमारा जोखिम उन चीज़ों के प्रकार और स्थान से निर्धारित होता है जिन्हें हम महत्व देते हैं। उदाहरण के लिए, किसी क्षेत्र में कितने लोग रहते हैं या काम करते हैं, या उस क्षेत्र में कौन सा महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा स्थित है।

 

हमारी कमज़ोरी यह संभावना है कि प्राकृतिक आपदा के संपर्क में आने पर हमारी मूल्यवान चीज़ें क्षतिग्रस्त हो जाएँगी या प्रभावित होंगी। कुछ चीज़ों के क्षतिग्रस्त होने की संभावना दूसरों की तुलना में ज़्यादा होती है। उदाहरण के लिए, कई मंज़िल वाली इमारत एक मंज़िल वाली इमारत की तुलना में भूकंप से हिलने के प्रति ज़्यादा संवेदनशील हो सकती है।

 

प्राकृतिक आपदा जोखिम का परिचय

 

न्यूजीलैंड में हम व्यक्तिगत, सामुदायिक, स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक सभी स्तरों पर प्राकृतिक आपदा जोखिम का प्रबंधन करते हैं। हमारा लक्ष्य नए जोखिम के निर्माण को रोकना, मौजूदा जोखिम को कम करना और किसी भी अवशिष्ट (शेष) जोखिम का प्रबंधन करना है।

जोखिम प्रबंधन विकल्पों पर निर्णय लेने के लिए व्यक्ति, समुदाय और स्थानीय सरकार सबसे बेहतर स्थिति में हैं। ये समूह अपने क्षेत्र को समझते हैं और भूमि-उपयोग नियोजन और भवन विनियमन के माध्यम से लचीले विकास और विकास को प्रभावित कर सकते हैं।

राष्ट्रीय जोखिम न्यूनीकरण नीतियों, कार्यक्रमों और सरकारी सेवाओं का उद्देश्य स्थानीय सरकार, व्यवसायों और व्यक्तियों को व्यक्तिगत और सामुदायिक स्तर पर जोखिम कम करने में सहायता करना है।

प्रशांत महासागर में एओटेरोआ का स्थान हमें कई प्रकार के प्राकृतिक खतरों के प्रति उजागर करता है, जिनमें भूकंप, सुनामी, भूस्खलन, ज्वालामुखी गतिविधि, जलतापीय गतिविधि, तूफान और बाढ़ शामिल हैं।

जिन शक्तियों ने हमारे सुंदर परिदृश्यों का निर्माण किया है, वे ही इन खतरों को सामान्य बना सकती हैं।

हालांकि ये खतरे डरावने हो सकते हैं, लेकिन हम इनके साथ रह सकते हैं और काम कर सकते हैं, और सैकड़ों सालों से ऐसा करते आ रहे हैं। इनके संभावित प्रभावों को समझकर और जोखिम को कम करने तथा लचीलापन बनाने के लिए मिलकर काम करके, हम प्राकृतिक आपदा की घटना के लिए तैयार रह सकते हैं।

Thank you ? 


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