Blog by Khushi prerna | Digital Diary
" To Present local Business identity in front of global market"
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ध्यान की पद्धति
ध्यान करने के लिए व्यक्ति की रुचि के अनुसार अनेक प्रकार की पद्धति है जिसमें से कुछ पद्धतियाँ निम्न प्रकार की है:-
मुख्य पद्धति
ध्यान करने के लिए स्वच्छ जगह पर स्वच्छ आसन पे बैठकर साधक अपनी आँखे बंध करके अपने मन को दूसरे सभी संकल्प-विकल्पो से हटाकर शांत कर देता है। और ईश्वर, गुरु, मूर्ति, आत्मा, निराकार परब्रह्म या किसी की भी धारणा करके उसमे अपने मन को स्थिर करके उसमें ही लीन हो जाता है। जिसमें ईश्वर या किसीकी धारणा की जाती है उसे साकार ध्यान और किसी की भी धारणा का आधार लिए बिना ही कुशल साधक अपने मन को स्थिर करके लीन होता है उसे योग की भाषा में निराकार ध्यान कहा जाता है। गीता के अध्याय-६ में श्रीकृष्ण द्वारा ध्यान की पद्धति का वर्णन किया गया है।
ध्यान करने के लिए पद्मासन, सिद्धासन, स्वस्तिकासन अथवा सुखासन में बैठा जा सकता है। शांत और चित्त को प्रसन्न करने वाला स्थल ध्यान के लिए अनुकूल है। रात्रि, प्रात:काल या संध्या का समय भी ध्यान के लिए अनुकूल है। ध्यान के साथ मन को एकाग्र करने के लिए प्राणायाम, नामस्मरण (जप), त्राटक का भी सहारा लिया जा सकता है। ध्यान में ह्रदय पर ध्यान केन्द्रित करना, ललाट के बीच अग्र भाग में ध्यान केन्द्रित करना, स्वास-उच्छवास की क्रिया पे ध्यान केन्द्रित करना, इष्टदेव या गुरु की धारणा करके उसमे ध्यान केन्द्रित करना, मन को निर्विचार करना, आत्मा पे ध्यान केन्द्रित करना जैसी कई पद्धतियाँ है। ध्यान के साथ प्रार्थना भी कर सकते है। साधक अपने गुरु के मार्गदर्शन और अपनी रुचि के अनुसार कोई भी पद्धति अपनाकर ध्यान कर सकता है।
ध्यान के अभ्यास के प्रारंभ में मन की अस्थिरता और एक ही स्थान पर एकांत में लंबे समय तक बैठने की अक्षमता जैसी परेशानीयों का सामना करना पड़ता है। निरंतर अभ्यास के बाद मन को स्थिर किया जा सकता है और एक ही आसन में बैठने के अभ्यास से ये समस्या का समाधान हो जाता है। सदाचार, सद्विचार, यम, नियम का पालन और सात्विक भोजन से भी ध्यान में सरलता प्राप्त होती है।
ध्यान का अभ्यास आगे बढ़ने के साथ मन शांत हो जाता है जिसको योग की भाषा में चित्तशुद्धि कहा जाता है। ध्यान में साधक अपने शरीर, वातावरण को भी भूल जाता है और समय का भान भी नहीं रहता। उसके बाद समाधिदशा की प्राप्ति होती है। योगग्रंथो के अनुसार ध्यान से कुंडलिनी शक्ति को जागृत किया जा सकता है और साधक को कई प्रकार की शक्तियाँ प्राप्त होती है।
Read Full Blog...ध्यान के नुकसान
हालांकि ध्यान के कई लाभ हैं लेकिन उसकी कुछ कमियां भी हैं जिन्हें जानना महत्वपूर्ण है, जो अभ्यास के दौरान उत्पन्न हो सकती हैं।
यह खासतौर से शुरुआती लोगों के लिए जानना अधिक ज़रूरी है, जो नीचे दी गई चुनौतियों में से एक का सामना ज़रूर कर सकते हैं। मेडिटेशन और योग शिक्षकों को भी इन महत्वपूर्ण कमियों से जागरूक होना चाहिए, क्योंकि उनके छात्रों को ऐसी ही चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, और समर्थन की आवश्यकता हो सकती है।
1. अपने लिए ध्यान करने की "सही" तकनीक ढूंढना।
कुछ शिक्षकों या पुस्तकों का मानना है कि उनका तरीका ही ध्यान करने का सबसे सही तरीका है। अन्य तरीकों को वे गलत तकनीक बताकर खारिज कर देते हैं। यह बिलकुल गलत है, इस बारे में सतर्क रहिये। मेडिटेशन के बारे में सबसे अच्छी चीज़ यह है कि इसे करने के कई तरीके और तकनीक हैं। ध्यान करने के कई दृष्टिकोण भी हैं, और आपको केवल एक तरीका खोजना है जो आपके लिए सही साबित हो।
2. अपनी दबी हुई भावनाओं का सामना करना।
आपके ध्यान में अनुभव करने वाली सबसे गहरी चीज़ ये होती है कि आप खुद को पहचानते हैं। है। उसी प्रक्रिया में, दफन और दबी हुयी भावनाओं से आपका सामना होता है। ध्यान का मुख्य उद्देश्य आपके अंदर गहरायी में मौजूद, क्रोध, डर या ईर्ष्या की भावनाओं को नष्ट करना होता है, जिससे आपको असहज महसूस होता है। यह मेडिटेशन की एक स्वाभाविक और स्वस्थ प्रतिक्रिया है, और ये भावनाएं धीरे धीरे कम होती जाएंगी। अगर ध्यान करने वाला व्यक्ति इस कमी से अज्ञात होता है तो उन दफन भावनाओं से सामना होने पर उसे लगता है कि कुछ गड़बड़ हो रहा है और वो मेडिटेशन करना बंद भी कर सकता है।
3. एक सम्पूर्ण मेडिटेशनकर्ता बनने की कोशिश करना।
आपको शायद खुद से उम्मीदें भी हो सकती हैं। यदि आप लंबे समय तक ध्यान के लिए बैठने लगते हैं, ध्यान करने के बाद शांति महसूस करते हैं और गुस्से पर आपका काबू हो गया है आदि स्थितियों में आप खुद से ज्यादा उम्मीदें लगाने लगते हैं। हम इंसान हैं और जैसा आजकल का वातावरण है उसमें कई बार केवल शांति से बैठना और ध्यान केंद्रित करना ही कठिन होता है तो आप इससे संतुष्ट रहिये और सम्पूर्ण मेडिटेशनकर्ता बनने के बारे में न सोचें।
4. मेडिटेशन को चिकित्सा की तरह समझने लगना।
मेडिटेशन एक लम्बे समय तक करने वाला अभ्यास है, जो स्वास्थ्यप्रद और भीतरी पोषण देता है। हालांकि, अगर कोई कठिनाइयों का सामना कर रहा है और उसे इलाज की सख्त ज़रूरत है। तो मेडिटेशन उसका इलाज नहीं है। हो सकता है कि उन्हें वास्तव में चिकित्सक की ज़रूरत हो।
5. मोह माया से दूर होने का खतरा।
मोह माया से दूर करना ध्यान का एक विशेष गुण है। लेकिन भारत में यह नुकसानदायक हो सकता है। हालाँकि मोह माया से दूर होना महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे आपके जीवन में होने वाले नाटकों का आप पर कोई असर नहीं पड़ता है और मानसिक शांति महसूस करने में मदद मिलती है।
हालांकि, मोह माया से दूर होने का मतलब यह नहीं है कि किसी भी चीज को नज़रअंदाज़ करना, उसपर अधिकार जमाना या उपेक्षा करना। आपको अपने आसपास के लोगों और गतिविधियों से अलग नहीं होना चाहिए। क्योंकि ये सब आपको प्यार करते हैं और आपको निष्क्रिय या बेकार नहीं बनना चाहिए।
Read Full Blog...ध्यान गहरा होने के लक्षण
जब प्राकृतिक रूप से ध्यान की अवस्था प्राप्त होती हैं। तब डर लगना साधारण हैं ये मन का दर है क्योंकि अहम का अंत हो गया हैं। इस डर पर विजय पाकर ही समाधि में प्रवेश होता हैं।
भौतिक जगत से वैराग्य हो जाता हैं।
मन को सत्य के मार्ग का बोध होना ।
त्यागने योग्य डर लगना ।
ध्यान में गहरा उतरने से डर लगना।
सतर्क हो जाना।
शरीर में झटके आना।
निष्काम कर्म में आनंद आना।
साकम कर्म भावना से मुक्ति।
विचार को नियंत्रित नहीं कर पाना।
अनावश्यक त्यागने योग्य विचार आना।
ये सभी लक्षण मन के है, ब्रह्म का कोई गुण नहीं वह निर्गुण है। समाधि प्राप्त होने पर यह लक्षण भी समाप्त हो जाते हैं।
Read Full Blog...आपको दिन में कितनी बार ध्यान करना चाहिए
अगर आप ध्यान के लिए नए हैं, तो दिन में 5 मिनट से शुरू करें.
आप दिन में 20 से 30 मिनट ध्यान कर सकते हैं.
आप दिनभर में 3 बार 10-10 मिनट के अलग-अलग सेशन में भी ध्यान कर सकते हैं.
आप अपनी दिनचर्या में छोटे और लंबे सत्रों का मिश्रण आज़मा सकते हैं.
अगर आपको लगता है कि छोटे सेशन में आपको और ज़्यादा करने की इच्छा होती है, तो धीरे-धीरे समय बढ़ाने की कोशिश करें.
अगर लंबे सेशन में आपको डर लगता है, तो तब तक समय कम करें जब तक आपको सही संतुलन न मिल जाए.
ध्यान करने से जुड़ी कुछ और बातें:
ध्यान करने से मस्तिष्क पर मापनीय प्रभाव पड़ सकता है.
ध्यान करने से बेहतर फ़ोकस, ज़्यादा उत्पादकता, और कम चिंता आ सकती है.
ध्यान करने से शांत होने में मदद मिलती है.
ध्यान करने से आपकी एकाग्रता बढ़ती है.
ध्यान करने से आपकी भावनाओं के प्रति अधिक संवेदनशीलता आ सकती है.
ध्यान और व्यायाम में संतुलन होना ज़रूरी है
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एक दिन में कितनी बार मैडिटेशन कर सकते हैं?
1 दिन में आप कितनी भी बार मेडिटेशन कर सकते हैं ।भगवान का नाम लेने पर कोई रोक-टोक नहीं है सिर्फ आपकी इच्छा शक्ति बहुत जरूरी है। जब भी बैठे 10 मिनट से शुरू करें इसको 40 मिनट एक घंटा अपने समय के हिसाब से आप प्रयोग मिल सकते हैं ।
जब आप अपने ऑफिस या बिजनेस में जाते हैं और करीब 1 घंटे की कर चलने का समय होता है तो उसमें भजन लगाकर आप साथ-साथ गुरु मंत्र जाप सकते हैं ।भजन साथ-साथ गा सकते हैं आपका रास्ता भी खबर हो जाएगा और आपका समय का सदुपयोग भी जबरदस्त तरीके से हो जाएगा।
अगर आप बस में सफर कर रहे हैं तो आप अपनी आंखों को बंद करके अपने अंतर मन में झांकना शुरू करें और भगवान का पूजा करना शुरू कर सकते हैं या खास तौर पर बहुत ही फायदेमंद होता है जब आदमी 10-10 घंटे की बस की यात्रा करके अपने गंतव्य स्थान पर जाता है।
मेडिटेशन करना एक अच्छी आदतों में होता है और आप इसका आनंद मात्र 3 महीने करके देखें तो आप कभी मेडिटेशन करना छोड़ेंगे भी नहीं।
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हमारे मन में करीब 70000 विचार एक दिन में आते हैं इसमें नकारात्मक और सकारात्मक दोनों होते हैं जितना आप मेडिटेशन ज्यादा करोगे तो सकारात्मक विचारों की तरफ आपका मन मुड़ जाएगा फिर जिंदगी में खुशी ही खुशी होगी।
Read Full Blog...ध्यान करना बहुत ज़रूरी है. ध्यान करने से कई फ़ायदे होते हैं, जैसे कि:
ध्यान करने से मानसिक शांति मिलती है और तनाव कम होता है.
इससे दिमाग में ऊर्जा और पॉज़िटिविटी आती है.
ध्यान करने से एकाग्रता और ध्यान क्षमता बढ़ती है.
इससे आत्म-जागरूकता और आत्म-स्वीकृति बढ़ती है.
ध्यान करने से चिंता, डिप्रेशन, और अन्य मानसिक समस्याओं से राहत मिलती है.
ध्यान करने से मूड बेहतर होता है और हमेशा पॉज़िटिव एनर्जी महसूस होती है.
ध्यान करने से शारीरिक और भावनात्मक स्वास्थ्य बेहतर होता है.
ध्यान करने से याददाश्त बढ़ती है.
ध्यान करने के लिए, सबसे पहले एक कंफ़र्टेबल जगह चुनें. योगियों के मुताबिक, ध्यान करने का सही समय सूर्योदय से डेढ़ से दो घंटे पहले यानी 3.30-5.30 बजे का होता है. अगर सुबह उठने में परेशानी है, तो 6-7 बजे के बीच भी ध्यान किया जा सकता है.
Read Full Blog...ध्यान (मेडिटेशन) करने के कुछ नुकसान ये हो सकते हैं:
अगर ध्यान गलत तरीके से किया जाए, तो इससे मन में नकारात्मक विचार आ सकते हैं.
ध्यान करने से बुरी यादें ताज़ा हो सकती हैं, जिससे डर, डिप्रेशन, या एंग्ज़ायटी जैसी समस्याएं हो सकती हैं.
ध्यान करने से चिंता की भावना बढ़ सकती है और एंग्ज़ायटी अटैक भी पड़ सकते हैं.
ज़्यादा ध्यान करने से नींद कम आने लगती है.
ध्यान करने से मोटिवेशन और प्रेरणा की कमी आ सकती है.
ध्यान करने से सामाजिक कनेक्शन टूट सकता है.
ध्यान करने से शारीरिक समस्याएं हो सकती हैं, जैसे कि थकान, कमज़ोरी, सिर दर्द, पेट से जुड़ी समस्याएं.
ध्यान करने से घबराहट महसूस हो सकती है.
ध्यान करने से होने वाले नुकसानों से बचने के लिए, सही तरीके से ध्यान करना चाहिए. ध्यान हमेशा किसी प्रशिक्षित गुरु या विशेषज्ञ की सलाह से करना चाहिए. साथ ही, अपने मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए ध्यान करना चाहिए.
Read Full Blog...ध्यान एकाग्र होना नहीं है; यह नींद भी नहीं है।
ध्यान सजगतापूर्वक विश्राम करना और तनाव मुक्त होना है।
ध्यान श्रम साध्य नहीं है।
ध्यान हमारे अन्त:कर्ण के गहरे मौन, अत्यंतता और आत्मा को जानने में सहायक है।
आराम सबको चाहिए। किंतु वास्तव में हमें पता नहीं है कि पूर्ण रूप से विश्राम कैसे मिलता है। ध्यान हमारे लिए कोई नई अथवा बाह्य वस्तु नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि अपने जन्म से कुछ माह पहले हम ध्यान ही कर रहे होते हैं। आप अपनी माँ के गर्भ में होते हो तो कुछ भी नहीं कर रहे होते हो। आप अपना भोजन तक नहीं चबा रहे होते हो। बस मस्त रहते हुए द्रव्य में तैरते रहते हो। यह ध्यान अथवा पूर्ण विश्राम ही है। तब आपको कुछ भी नहीं करना पड़ता था, आपके लिए सब कुछ किया जा रहा था। इसलिए, इस क्रियाशील संसार में आने से पहले प्रत्येक जीवात्मा की नैसर्गिक इच्छा उसी पूर्ण विश्रांति की अवस्था में लौट जाने की होती है। ऐसा इसलिए भी है कि इस ब्रह्मांड में सब कुछ एक चक्रानुसार चल रहा है। हर चीज अपने स्रोत में वापस जाना चाहती है।
जब आपको भूख लगती है तो स्वाभाविक रूप से आपका मन कुछ खाने को करता है। ऐसे ही यदि प्यास लगी हो तो पानी पीने की इच्छा होती है। उसी प्रकार आत्मा ध्यान के लिए तरसती है और यह तड़प प्रत्येक व्यक्ति में होती है।
पुराने समय में ऋषि मुनि केवल योग्य शिष्यों और साधकों को ही ध्यान करना सिखाते थे। आधुनिक युग में, आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक, गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी ने इस ज्ञान को प्रत्येक व्यक्ति के लिए उपलब्ध करा दिया है ताकि उनके जीवन में गुणात्मक सुधार आ सके। और जब उनको उच्चतम ज्ञान पाने की ललक होगी तो वे इस की गहराई में उतर जाएँगे। इस प्रकार यह प्रत्येक व्यक्ति के लिए किसी न किसी रूप में लाभदायक है ही।
कुछ लोग समुद्र तट पर सैर करने जाते हैं ताकि उनको ताजा हवा और अधिक ऑक्सीजन मिल सके और इसमें उनको प्रसन्नता मिलती है। कुछ लोग ऐसे होंगे जो पानी में अपने पाँव डाल देते हैं और सागर के विशाल स्पर्श को अनुभव करते हैं। कुछ और ऐसे भी होते हैं जो सागर की लहरों में उतर जाते हैं या स्कूबा गोताखोरी करते हैं और उनको मूँगे और अन्य मूल्यवान वस्तुएँ मिल जाती हैं। अतः यह आप पर निर्भर है कि आप तट पर चलना, सागर में तैरना या गहरे उतर कर गोतखोरी करना चाहते हैं। सागर तो आपके लिए पूर्ण रूप से उपलब्ध है। ध्यान भी कुछ ऐसा ही है।
ध्यान की आवश्यकता प्रत्येक व्यक्ति को है क्योंकि हर व्यक्ति कभी कम न होने वाले आनंद और उस प्यार को, जो पूर्णतः दोषरहित और शाश्वत् हो, को पाना चाहता है
नदी जब शांत होती है तो उसमें सब कुछ स्पष्ट दिखाई देता है। उसी प्रकार जब मन शांत हो तो हमारी अभिव्यक्ति अधिक स्पष्ट होती है। ध्यान के निरंतर अभ्यास से गहरे विश्राम की स्थिति और शांति पाई जा सकती है। और यह शांति प्रायः ध्यान के वास्तविक समय से बहुत आगे तक बनी रहती है।
हम सब किसी न किसी विशेष प्रकार की तरंगें बिखेरते रहते हैं और जब हम तनाव ग्रस्त, क्रोधित, परेशान या निराश होते हैं तो उसका प्रभाव इन तरंगों पर भी पड़ता है। ध्यान में इन तरंगों को परिवर्तित करके उन्हें सकारात्मक और सृजनात्मक बनाने का सामर्थ्य होता है जिससे हमारे विचारों तथा भावनाओं में स्पष्टता आती है। यह हमारे मन पर पड़ी हुई पुरानी छापों को मिटाता है और हमारे विचारों को सही दिशा में मोड़ कर उन्हें केंद्रित करता है, जिससे हमें मानसिक स्पष्टता और भावनात्मक स्थिरता की अवस्था पाने में सहायता मिलती है। हमारे अवलोकन बोध, धारणा तथा अभिव्यक्ति की समझ में भी सुधार होता है।
ध्यान और नींद, दोनों से ही हमें गहरा विश्राम मिलता है। तथापि, ध्यान द्वारा प्राप्त विश्राम की गुणवत्ता नींद द्वारा पाए जाने वाले विश्राम से श्रेष्ठतर होती है। नींद की अपेक्षा ध्यान हमें कहीं अधिक ऊर्जा प्रदान करता है। ध्यान से इतना विश्राम मिलता है जो गहरी से गहरी नींद से भी नहीं मिल पाता। ध्यान करने से आप अपने भीतर के ऊर्जा स्रोत को जागृत करके अपने शरीर को ऊर्जा का भंडार बना सकते हैं।
चिंताएँ, परेशानियाँ और तनाव विकर्षण से भी अधिक हानिकारक हो सकते हैं। दैनिक जीवन में होने वाली समस्याएँ और भविष्य को लेकर भय हमारे मानसिक तथा शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। यह सर्वमान्य है कि ध्यान से हमारे शरीर की प्राण ऊर्जा में सुधार होता है। जैसे जैसे प्राणिक ऊर्जा में वृद्धि होती है, चिंता अपने आप कम होने लगती है। इस प्रकार ध्यान का नियमित अभ्यास करने से अवसाद, चिंताओं या आघात जनित तनाव जैसी समस्याओं में सुधारात्मक परिवर्तन होने लगते हैं।
विभिन्न अध्ययनों ने प्रमाणित किया है कि ध्यान न केवल मस्तिष्क की सकारात्मक भावनाओं के उत्प्रेरित करने वाले भाग को अधिक क्रियाशील बनाता है अपितु इसका हमारे समग्र मानसिक स्वास्थ्य पर भी घनात्मक प्रभाव पड़ता है।
ध्यान से हमारी सजगता में सुधार होता है और हमारे क्रियाकलाप अधिक उद्देश्यपूर्ण होने लगते हैं। जीवन की विषम परिस्थितियों के प्रति हमारा व्यवहार प्रतिक्रियात्मक न हो कर प्रत्युत्तर देने की दिशा में परिवर्तित होने लगता है। ध्यान हमारी सोचने की क्षमता, एकाग्रता, समस्या समाधान कौशल तथा भावनात्मक परेशानियों का सामना करके उन के प्रति स्वयं को ढालने और उन से पार पाने की शक्ति में भी सुधारात्मक भूमिका निभाता है। अनुसंधान यह भी दर्शाते हैं कि ध्यान करने से आपका मूड ऊपर उठता है, नींद की गुणवत्ता और उसके पैटर्न में सुधार होता है तथा आपके संज्ञानात्मक कौशल का विकास होता है। ध्यान के अभ्यास से बहुत ज्यादा सोचने, क्षीण सतर्कता तथा मन के भटकाव जैसे मस्तिष्क के व्यवहार को भी मोड़ कर सही दिशा में लाया जा सकता है।
Read Full Blog...ध्यान का उचित आसन
ध्यान के लिए उचित आसन में होना सबसे जरूरी है। ध्यान इस विधि से करना चाहिए कि आपका मेरुदंड सीधा हो। जब साधक अपने मन और प्राणशक्ति को मेरुदंड में चक्रों से होते हुए उधर्व चेतना की ओर भेजने के लिए प्रयास करता है, तो उसे अनुचित आसन के कारण मेरुदंड की नाड़ियों में होने वाली सिकुड़न व संकुचन से बचना चाहिए।
इन बातों का रखें ध्यान
जमीन पर आसन बिछाकर पालथी मारकर सुखासन या पद्मासन में बैठें। ध्यान का अभ्यास करते समय शुरू में 5 मिनट भी काफी होते हैं। अभ्यास से 20-30 मिनट तक ध्यान लगा सकते हैं। ध्यान करने के लिए ऐसी जगह का चयन करें जो एकदम शांत हो।
इस तरह शुरू करें ध्यान
ध्यान की शुरुआत में प्राणायाम करना या थोड़ी देर तक लम्बी सांस धीरे-धीरे लेना और धीरे-धीरे छोड़ना चाहिए। इससे मष्तिष्क सक्रिय होता है और विचारों को नियंत्रित करना सम्भव होता है। गुस्से में, जोश में सांस बहुत तेज चलने लगती है और दुःख और निराशा में सांस धीमी हो जाती है।
सांस की गति का विचारों पर असर होता है और असामान्य सांस से मानसिक अस्थिरता पैदा होती है। इसलिए प्राणायाम या गहरी और लम्बी सांस मन और विचारों में शांति लाती है, जिससे मन को एकाग्र करने में मदद मिलती है।
Read Full Blog...क्या है ध्यान का आध्यात्मिक महत्व
ज्ञान को जितना सशक्त बनाया जाता है, वह उतना ही वह किसी भी क्षेत्र में उपयोगी सिद्ध हो सकता है। मनुष्य की इच्छा पूर्ति की सभी दिशाओं में ध्यान की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उपासना के क्षेत्र में भी ध्यान विशेष महत्व रखता है। भक्ति व अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए ध्यान को महत्वपूर्ण साधन माना गया है।
आध्यात्मिकता में ध्यान का उद्देश्य है अपने स्वरूप और अपने लक्ष्य की विस्मृति के कारण उत्पन्न हुई बाधाओं से छुटकारा पाना। ध्यान तन, मन और आत्मा के बीच लयात्मक सम्बन्ध बनाता है और उसे बल प्रदान करता है। ध्यान का नियमित अभ्यास करने से आत्मिक शक्ति बढ़ती और मानसिक शांति की अनुभूति होती है।
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