Blog by Suveta Notiyal | Digital Diary
" To Present local Business identity in front of global market"
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दालचीनी एक अद्भुत मसाला है जिसका उपयोग सदियों से औषधीय और पाक विधियों में किया जाता रहा है। अगर दालचीनी के फायदे जितने गिनाए जाए कम ही लगेंगे। यह न केवल खाने का स्वाद बढ़ाती है बल्कि विभिन्न बीमारियों को रोकने और उनका इलाज करने में भी मदद करती है। आज के इस ब्लॉग में हम दालचीनी के फायदे और इसके दुष्प्रभावों पर विस्तृत जानकारी देंगे ताकि आप इसका उपयोग सही तरीके से कर सकें।
दालचीनी के स्वास्थ्य लाभ कई हैं जो इसे एक बेहतरीन घरेलू उपचार बनाते हैं। मुख्यतः दालचीनी के फायदे मधुमेह नियंत्रण, वजन घटाने, हृदय रोगों में, सर्दी और खांसी और मासिक धर्म में राहत प्रदान करने जैसी समस्याओं के लिए होता है।
1. दस्त पर रोक लगाने के लिए दालचीनी का उपयोग
दालचीनी में प्राकृतिक एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं जो पेट के बैक्टीरिया को मारने में मदद करते हैं। दस्त के दौरान दालचीनी का सेवन शरीर में पानी की कमी को दूर करता है और पेट की ऐंठन को कम करता है। एक गिलास गर्म पानी में एक चुटकी दालचीनी पाउडर मिलाकर पीने से दस्त में राहत मिलती है।
2. आमाशय विकार में दालचीनी का प्रयोग
दालचीनी पाचन तंत्र को बेहतर बनाती है और गैस्ट्रिक समस्याओं से राहत देती है। अगर आपको पेट की गैस, एसिडिटी या पाचन संबंधी अन्य समस्याएं हो रही हैं तो दालचीनी आपके लिए बेहद फायदेमंद साबित हो सकती है। इसे चाय या गर्म पानी के साथ लेने से पेट की परेशानियों में राहत मिलती है।
3. आंतों के रोग में दालचीनी के सेवन से फायदा
दालचीनी आंतों की सूजन को कम करने और उन्हें स्वस्थ रखने में सहायक होती है। इसमें पाए जाने वाले एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण आंतों के संक्रमण से बचाव करते हैं। आंतों के रोगों जैसे अल्सर और इन्फ्लेमेटरी बाउल डिसऑर्डर (IBD) में भी दालचीनी का सेवन फायदेमंद होता है।
4. प्रसव के बाद दालचीनी के सेवन से फायदा
प्रसव के बाद महिलाओं को दालचीनी का सेवन करने की सलाह दी जाती है क्योंकि यह शरीर को फिर से ऊर्जा प्रदान करती है और प्रसव के बाद की थकान को दूर करने में सहायक होती है। इसके सेवन से शरीर को आवश्यक पोषण मिलता है और कमजोरी से राहत मिलती है।
5. त्वचा संबंधी रोगों में दालचीनी के फायदे
दालचीनी के जीवाणुरोधी (एन्टी-बैक्टीरियल) और सूजनरोधी (एन्टी-इंफ्लेमेटरी) गुण त्वचा की समस्याओं को दूर करने में मदद करते हैं। इसे त्वचा पर लगाने से संक्रमण, फंगल इन्फेक्शन और मुंहासों में राहत मिलती है। आप दालचीनी पाउडर को शहद के साथ मिलाकर फेस मास्क के रूप में भी उपयोग कर सकते हैं जिससे त्वचा साफ और दमकती हुई नजर आएगी।
6. दालचीनी के सेवन से बुखार में लाभ
अगर आपको बुखार हो तो दालचीनी का काढ़ा बनाकर पीने से बुखार में राहत मिलती है। इसके सेवन से शरीर का तापमान सामान्य होता है और बुखार से जल्दी छुटकारा मिलता है। इसके एन्टी-बैक्टीरियल गुण बुखार के कारण होने वाले संक्रमण को दूर करने में मदद करते हैं।
7. बहरेपन की समस्या में दालचीनी से लाभ
कुछ पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों में दालचीनी का उपयोग बहरेपन की समस्या के इलाज के लिए किया जाता है। इसका सेवन कान की नसों को मजबूत करता है और सुनने की क्षमता में सुधार करता है। हालांकि, इसे उपयोग करने से पहले डॉक्टर की सलाह लेना आवश्यक है।
8. दालचीनी का उपयोग कर रक्तस्राव पर रोक
दालचीनी रक्त को जमाने में सहायक होती है जिससे चोट या घाव होने पर रक्तस्राव को रोका जा सकता है। इसका सेवन रक्त में प्लेटलेट्स की संख्या को बढ़ाता है और चोट को जल्दी ठीक करने में मदद करता है।
9. साइनस में दालचीनी से फायदा
साइनस की समस्या में दालचीनी का सेवन काफी फायदेमंद होता है। यह साइनस की सूजन और दर्द को कम करने में मदद करती है। इसका काढ़ा बनाकर पीने से नाक की बंदी और सिरदर्द में भी राहत मिलती है।
10. टीबी में दालचीनी से लाभ
दालचीनी का सेवन टीबी रोगियों के लिए भी फायदेमंद साबित हो सकता है। इसके एन्टी-इंफ्लेमेटरी गुण टीबी के लक्षणों को कम करने में मदद करते हैं। हालांकि, टीबी के इलाज के लिए डॉक्टर की सलाह और उपचार आवश्यक है।
11. गठिया में फायदेमंद दालचीनी का उपयोग
दालचीनी के एन्टी-इंफ्लेमेटरी गुण गठिया के दर्द और सूजन को कम करने में सहायक होते हैं। इसका नियमित सेवन जोड़ों के दर्द को कम करता है और गठिया के लक्षणों में सुधार करता है। दालचीनी का तेल भी दर्द के प्रभावित क्षेत्रों पर मालिश के लिए उपयोग किया जा सकता है।
चाय में मिलाकर: दालचीनी की चाय का सेवन करने से स्वास्थ्य में सुधार होता है।
काढ़ा बनाकर: दालचीनी का काढ़ा सर्दी, खांसी और बुखार में फायदेमंद होता है।
खाने में मसाले के रूप में: इसे सब्जियों और दालों में स्वाद बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करें।
दालचीनी पाउडर का सेवन: इसे शहद या दूध के साथ मिलाकर ले सकते हैं।
त्वचा पर लेप बनाकर: दालचीनी और शहद का पेस्ट बनाकर त्वचा पर लगाएं।
हालांकि दालचीनी के कई स्वास्थ्य लाभ हैं लेकिन इसका अत्यधिक सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। दालचीनी के नुकसान निम्नलिखित हैं:
1.लीवर को नुकसान: दालचीनी में कुमारिन नामक तत्व होता है जो लीवर को नुकसान पहुंचा सकता है अगर इसका अधिक सेवन किया जाए।
2.एलर्जी: कुछ लोगों को दालचीनी से एलर्जी हो सकती है जिससे त्वचा पर जलन, सूजन या खुजली हो सकती है।
3.गर्भवती महिलाओं के लिए हानिकारक: गर्भवती महिलाओं को दालचीनी का अत्यधिक सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि यह गर्भाशय के संकुचन को उत्तेजित कर सकता है।
4.रक्त में शर्करा असंतुलन: अधिक मात्रा में दालचीनी का सेवन रक्त शर्करा के स्तर को असंतुलित कर सकता है।
सच है कि अदरक के बिना चाय ही नहीं, बल्कि कई डिशेज का जायका अधूरा-सा रहता है, लेकिन एक सच ये भी है कि इसकी ज्यादा मात्रा कुछ लोगों के लिए मुसीबत की वजह बन सकती है। इस आर्टिकल में हम आपको अदरक के कुछ ऐसे ही साइड इफेक्ट्स और उनसे बचने के उपायों के बारे में बताएंगे, जिन्हें जानना आपके लिए बेहद जरूरी है।
नुकसानदायक भी हो सकती है अदरक मतली और उल्टी
आमतौर पर अदरक का सेवन उल्टी और मतली को कम करने के लिए असरदार माना जाता है, लेकिन कुछ लोगों में इसका उल्टा असर भी पड़ सकता है। ज्यादा मात्रा में अदरक खाने से उल्टी-दस्त की शिकायत हो सकती है।
मुंह में जलन
अदरक में कैप्साइसिन नामक तत्व भी पाया जाता है, बता दें कि यही कंपाउंड मिर्च में भी मौजूद होता है। ऐसे में, अगर आप भी खानपान में ज्यादा मात्रा में अदरक का सेवन कर रहे हैं, तो इससे मुंह में जलन की समस्या भी हो सकती है।
दस्त की समस्या
खाने-पीने की चीजों में ज्यादा अदरक शामिल करने से दस्त की परेशानी भी हो सकती है। यही वजह है कि कब्ज की समस्या में इसके सेवन की सलाह दी जाती है।
त्वचा की जलन
अदरक के तेल में कुछ ऐसे रसायन होते हैं जो कुछ लोगों की त्वचा को परेशान कर सकते हैं। जिंजर ऑयल को सीधे त्वचा पर लगाने से त्वचा में जलन, लालिमा या खुजली की शिकायत हो सकती है।
दवाओं के साथ साइड इफेक्ट
कुछ दवाओं के साथ मिलकर अदरक पाचन तंत्र से जुड़ी समस्याएं भी दे सकती है। अगर आप रेगुलर कोई दवा ले रहे हैं, तो अदरक का सेवन करने से पहले अपने डॉक्टर से सलाह लेना भी जरूरी है।
रक्त को पतला करे
अदरक में शामिल कुछ कंपाउंड शरीर में रक्त के थक्के बनने से रोकते हैं, लेकिन अगर आप रक्त को पतला करने वाली दवाएं ले रहे हैं, तो भी अदरक का सेवन करने से पहले आपको डॉक्टर से परामर्श कर लेना चाहिए।
अदरक का सेवन सीमित मात्रा में करें। ज्यादा मात्रा में अदरक खाने से इससे होने वाले साइड इफेक्ट्स का खतरा बढ़ जाता है।
जिंजर ऑयल को सीधे त्वचा पर लगाने से जलन हो सकती है। अगर आपको अदरक के तेल का इस्तेमाल करना भी है, तो इसे नारियल तेल या बादाम के तेल में मिलाकर ही यूज करें।
गर्भवती या स्तनपान कराने वाली महिलाओं को अदरक का सेवन करने से पहले अपने डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।
अगर आप नियमित रूप से कोई दवा ले रहे हैं, तो भी डॉक्टर से परामर्श जरूर लें।
अगर सीमित मात्रा में सेवन किया जाए, तो अदरक एक असरदार जड़ी-बूटी है जो आपको सर्दी-जुकाम से लेकर कई छोटी-बड़ी बीमारियों से बचा सकती है, लेकिन अदरक का सेवन करने से पहले इससे जुड़े साइड इफेक्ट्स के बारे में जागरूक होना और जरूरी सावधानी बरतना भी काफी ज्यादा जरूरी है।
ब्राह्मी, भारत की प्राचीन जड़ी बूटी है। इसे तंत्रिका तंत्र और दिमाग तेज करने वाले औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है। आयुर्वेदिक उपचार में ब्राह्मी को मेध्यरसायन का नाम दिया गया है एवं इसका अर्थ है नसों के लिए शक्तिवर्द्धक के रूप में कार्य करने वाली तथा पुनर्जीवित करने वाले तत्व से युक्त।
ब्राह्मी ने तनाव को कम करने वाले तत्व के रूप में बहुत लोकप्रियता हासिल की है। पिछले 3000 वर्षों से भारतीय पारंपरिक औषधियों में ब्राह्मी का इस्तेमाल किया जा रहा है। भारत के प्राचीन ग्रंथों चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में भी इस जड़ी बूटी का उल्लेख किया गया है। सुश्रुत संहिता में ब्राह्मी घृत और ब्राह्मी को ऊर्जा प्रदान करने वाली बताया गया है।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि ब्राह्मी शब्द ब्राह्माण या हिंदू देवता ब्रह्मा से लिया गया है। इसलिए ब्राह्मी का मतलब है ब्रह्मा की शक्ति। ब्राह्मी तंत्रिका तंत्र को शक्ति देती है। ब्राह्मी का पौधा रसीला होता है। ये जमीन पर फैला होता है और इसमें अत्यधिक पानी को संग्रहित करने की क्षमता होती है। ब्राह्मी के फूल सफेद, गुलाबी और नीले रंग के होते हैं।
ब्राह्मी का सेवन दिन में 3 बार कर सकते हैं। सुबह, दोपहर और रात को खाने के बाद ब्राह्मी का सेवन किया जा सकता है।
ब्राह्मी का तेल त्वचा पर लगाया जाता है। सिर पर भी इसके तेल से मसाज की जाती है जो दिमाग के तेज बनाने में भी मदद करता है।
ब्राह्मी का पेस्ट बनाकर उसे त्वचा पर लगाया जा सकता है। इससे त्वचा स्वस्थ रहेगी।
ब्राह्मी टैबलेट के रूप में भी खाई जाती है।
ब्राह्मी का पाउडर कई स्वास्थ लाभ प्रदान करता है।
किसी भी हर्बल पूरक का लंबे समय तक इस्तेमाल आमतौर पर अच्छा नहीं होता है, और यही ब्राह्मी पर भी लागू होता है। नियमित रूप से 12 हफ्तों से अधिक इसका इस्तेमाल करना ठीक नहीं माना जाता है, इसलिए जब आपको इसकी ज़रूरत हो तभी यह इस्तेमाल किया जाना चाहिए जैसे किसी लक्षण या बीमारी को कम करने के लिए।
इसके अलावा आपको डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए यदि इसका सेवन करने से आप दमा, मूत्र मार्ग में संक्रमण, कम हृदय गति या हाइपरग्लेसिमिया से ग्रस्त होते हैं। यदि दिल की दर (bradycardia) मंदी है तो इसके उपयोग से बचें।
जिन लोगों का पेट संवेदनशील है या जिन्हें अल्सर है, उन्हें शायद इसका सेवन अच्छी तरह से बर्दाश्त ना हो। उन्हें यह घी के साथ ही लेनी चाहिए।
ब्राह्मी का उपयोग तनाव से राहत दिलाये -
तनाव और चिंता से राहत देने के लिए, ब्राह्मी पौधे की पत्तियों (केवल एक समय में 2-3) को चबाया जा सकता है। ब्राह्मी में कुछ सक्रिय तत्व होते हैं, जो हमारे शरीर के हार्मोनल संतुलन पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं, जिसके फलस्वरूप तनाव और चिंता, पारंपरिक दवा के दुष्प्रभावों आदि से बचा जा सकता है। ब्राह्मी कोर्टिसोल के स्तर को कम करके तनाव और चिंता को खत्म करने में मदद करती है। कोर्टिसोल को तनाव हार्मोन के रूप में जाना जाता है। ब्राह्मी तनाव से जुड़े हार्मोन को विनियमित करके तनाव के प्रभावों को कम करती है।
ब्राह्मी बेनिफिट्स पाचन तंत्र को बनाये स्वस्थ -
ब्राह्मी एक शामक और सुखदायक जड़ी बूटी है, साथ ही इसमें सूजन विरोधी गुण भी हैं, ब्राह्मी अल्सर जैसे जठरांत्र विकारों से राहत प्रदान करने में मदद दिला सकती है।
ब्राह्मी करती है मधुमेह के खतरे को कम -
कुछ शोध अध्ययन में, ब्राह्मी को बढ़े हुए रक्त शर्करा के स्तर के साथ जोड़ा गया है इसलिए ब्राह्मी हाइपोग्लाइसीमिया (आम तौर पर असामान्य रूप से कम रक्त शर्करा) में सुधार करने के लिए सक्षम होती है और आपको एक सामान्य, स्वस्थ जीवन जीने में मदद करती है।
ब्राह्मी का उपयोग करें त्वचा और बालों के लिए -
यदि आप घाव भरने में तेजी लाने चाहते हैं और उसी समय त्वचा शुद्ध करना चाहते हैं, तो प्रभावित क्षेत्र पर ब्राह्मी का रस या तेल लगाएं। यह त्वचा पर निशान को कम करते हैं और त्वचा को चिकनी और स्वस्थ बनाते हैं।
रूखे बालों का इलाज करने और बालों के झड़ने को रोकने के लिए ब्रह्मी का तेल बहुत अच्छा है। इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट घटक न केवल आपके बालों के रूखेपन को ठीक करते हैं बल्कि यह आपके बालों को स्वस्थ बनाने में भी मदद करती है। ब्राह्मी बालों की समस्याओं के इलाज के लिए काफी फायदेमंद है।
मिर्गी के इलाज में फायदेमंद है ब्राह्मी -
ग्लूटामेट और डोपामाइ के स्तर में हुए परिवर्तन के कारण मिर्गी का रोग होता है। इन न्यूरोट्रांसमीटरों को विनियमित करके, ब्राह्मी मिर्गी के कारण हुई सूजन को कम करने में मदद कर सकती है। ब्राह्मी की पत्तियां हज़ारों सालों से मिर्गी के इलाज के रूप में इस्तेमाल की जा रही है। यह मिरगी के दौरे को रोकती है, साथ ही मानसिक रोग के अन्य रूपों और नसों के दर्द सहित द्विध्रुवी विकारो को रोकने में मदद करती है। यह कहा जाता है कि ब्राह्मी स्मृति की कमी में सुधार करने के साथ मिर्गी के इलाज में भी उपयोग की जा सकती है।
ब्राह्मी के लाभ इम्यून सिस्टम को दे बढ़ावा -
ब्राह्मी का नियमित रूप से उपयोग आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में मदद कर सकता है। इसमें मौजूद विभिन्न एंटीऑक्सीडेंट और पोषक तत्व हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को अनेक बीमारियों से लड़ने में मदद करते हैं। ब्राह्मी का किसी भी रूप जैसे चाय या सम्पूर्ण पत्ते आदि में सेवन किया जाए। तो यह प्रतिरक्षा प्रणाली को काफी हद तक बढ़ाने में मदद करती है। इसके एंटीऑक्सीडेंट यौगिक वायरस या जीवाणु संक्रमण के खिलाफ हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली की प्रतिक्रिया का समय बढ़ाने के लिए होते हैं।
ब्राह्मी के पत्तों से सूजन का घरेलू उपचार -
ब्राह्मी प्रोस्टाग्लैंडिन के उत्पादन को कम करके सूजन और दर्द से राहत देती है। जब ब्राह्मी पौधे की पत्तियों को शरीर के प्रभावित हिस्से पर मला जाता है, तब इसमें मौज़ूद यौगिक सूजन को कम और जलन को दूर करते हैं, साथ ही शरीर के अंदर हो रही उत्तेजना को खत्म करते हैं। यह गठिया और अन्य सूजन-संबंधी रोगो से पीड़ित लोगों के लिए आदर्श हैं। कुछ रिसर्च का कहना है कि दर्द को कम करने में ब्राह्मी मोर्फ़िन की तरह प्रभावी हो सकती है लेकिन इसके कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं होते हैं। इसका उपयोग पीठ दर्द, मांसपेशियों में दर्द और यहां तक कि सिरदर्द से छुटकारा पाने के लिए भी किया जा सकता है। ब्राह्मी के तेल से प्रभावित क्षेत्र में मसाज करने से भी राहत मिल सकती है।
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आज के दौर की जीवनशैली में तनाव और चिंता के कई कारण होते हैं। हर कोई कभी न कभी इसकी वजह से परेशान जरूर रहता है। ऐसे में उसे कुछ समझ नहीं आता कि क्या किया जाए। डिप्रेशन से बचने के लिए बाजार में कई तरह की दवाएं मौजूद हैं। इसके साथ ही साथ कई तरह के ध्यान और व्यायाम भी तनाव और चिंता को दूर करने में कारगर होते हैं। लेकिन आज हम आपको आयुर्वेद के कुछ ऐसे नुस्खों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनका इस्तेमाल कर आप तनाव से काफी हद तक छुटकारा पा सकते हैं।
डिप्रेशन हमारे शरीर को कई तरीकों से नुकसान पहुंचाता है। इसकी वजह से शरीर में पित्त, कफ और वात का असंतुलन हो जाता है। इसके अलावा एलर्जी, अस्थमा, हाई कोलेस्ट्रॉल और हाइपरटेंशन जैसी समस्याएं डिप्रेशन की वजह से जन्म लेती हैं। कुछ आयुर्वेदिक औषधियों के सेवन से तनाव से आसानी से छुटकारा पाया जा सकता है। तो आइए, जानते हैं कि ऐसी कौन सी हर्बल युक्तियां हैं जो तनाव भगाने का काम करती हैं-
ब्राह्मी – ब्राह्मी तनाव पैदा करने वाले हार्मोन कोर्टिसोल को कम करने का काम करता है। यह तनाव के प्रभावों पर प्रतिक्रियात्मक कारवाई करने के लिए भी जाना जाता है। ब्राह्मी दिमाग को शांत रखने के साथ-साथ एकाग्रता बढ़ाने में भी काफी मददगार है।
भृंगराज – भृंगराज चाय दिमाग को निरंतर एनर्जी देने का काम करती है। इससे मस्तिष्क में रक्त प्रवाह दुरुस्त रहता है। यह दिमाग को शांत तो रखता ही है, साथ ही साथ पूरे शरीर को भी काफी आराम पहुंचाता है।
जटामासी – जटामासी एंटी स्ट्रेस हर्ब के रुप में काफी लोकप्रिय है। तनाव भगाने के लिए जटामासी की जड़ों का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। यह जड़ें हमारे दिमाग और शरीर को टॉक्सिन्स से मुक्त बनाती हैं। तथा ब्रेन फंक्शन्स को दुरुस्त रखने में काफी मदद करती हैं।
अश्वगंधा – अश्वगंधा एमीनो एसिड्स और विटामिन का बेहतरीन संयोजन है। यह दिमाग में एनर्जी को बूस्ट करने तथा स्टेमिना मजबूत करने में काफी मदद करता है।
इन आर्युवेदिक औषधियो के बारे मे और जानकारी प्राप्त करने के लिए आप देख सकते है आगे के ब्लॉग
हमारे आसपास मौजूद पेड़ हमारे जीवन में अहम योगदान निभाते हैं। ये न केवल पर्यावरण को शुद्ध रखने में मदद करते हैं बल्कि हमारे स्वास्थ्य की देखभाल करने में भी कारगर है, इसका मुख्य कारण है इन पेड़ों में पाए जाने वाले पौष्टिक तत्व। ऐसा ही एक पेड़ है अशोक का पेड़, जो अपने पौष्टिक तत्वों की वजह से कई बीमारियों का इलाज करने की क्षमता रखता है। तो चलिए जानते हैं कि अशोक के पेड़ में क्या-क्या खूबियां हैं। इसे साथ ही हम इसके उपयोग और दुष्प्रभाव पर भी बात करेंगे। पहले जानते हैं कि अशोक का पेड़ कहते किसे है।
दरअसल, कई औषधीय लाभों से परिपूर्ण अशोक का पेड़ 25 से 30 फिट तक ऊंचा होता है। इसका तना भूरे रंग का होता है और पत्तियां 9 इंच लम्बी गोल व नोंकदार होती हैं। इस पेड़ का वैज्ञानिक नाम सरका इंडिका है जो लेगुमिनोसे परिवार और कोसलपिनिया उपपरिवार का हिस्सा है। यह पेड़ पूरे भारत में पाया जाता है। हिन्दू धर्म के अनुसार भी इस पेड़ का बहुत महत्व है। इसके पीछे की वजह इसका नाम है, दरअसल, अशोक शब्द का संस्कृत संस्कृत में 'अशोक' शब्द का अर्थ है 'कोई शोक नहीं' से इसे शोक को हरने वाला पेड़ माना जाता है। लोगों का मानना है कि यह पेड़ जिस जगह पर भी उगता है, वहाँ पर सभी कार्य पूर्णतः निर्बाध रूप से सम्पन्न होते चले जाते हैं।
अशोक के पेड़ दो तरह के होते हैं, जिसमे एक का इस्तेमाल घरो में सजावट और दूसरे को आयुर्वेदिक दवाइयों में इस्तेमाल किया जाता है। ये प्रकार निम्नलिखित हैं-
असली अशोक का पेड़- असली अशोक के वृक्ष को लैटिन भाषा में 'जोनेसिया अशोका' कहते हैं। आम के पेड़ की तरह ही इसका पेड़ भी छायादाय होता है। असली अशोक के पेड़ की पत्तियों की लम्बाई 8 से 9 इंच होती है, जबकि इसकी चौड़ाई दो से ढाई इंच होती है। इसके पत्तों का रंग शुरुआत में ताम्बे की तरह होता है, इसलिए इसे ताम्रपल्लव भी कहा जाता है। वसंत ऋतु में इसमें नारंगी रंग के फूल होते हैं, जो बाद में सुनहरे लाल रंग के हो जाते हैं, इसी वजह से इन्हे हेमपुष्पा नाम से भी जाना जाता है।
नकली अशोक का पेड़- नकली अशोक के पेड़ और असली अशोक के पेड़ में कई अंतर हैं। इसके पत्ते आम के पत्तों की तरह होते हैं। इसके फूल सफ़ेद, पीले रंग के और फल लाल रंग के होते हैं। यह देवदार जाति का पेड़ होता है। हालांकि इस पेड़ में औषधीय गुण नहीं पाए जाते हैं।
अशोक के पेड़ के फायदे निम्नलिखित हैं
मुँहासे के इलाज में मददगार
अशोक के पेड़ की छाल फोड़े और मुंहासों को ठीक करने में फायदेमंद है। इसकी छाल को उबालकर पहले गाढ़ा काढ़ा बना लें और फिर ठंडा होने पर सरसो के तेल के साथ मिलाकर लगाने से लाभकारी प्रभाव प्राप्त होते हैं।
बुद्धि में सुधार करने में मिलती है मदद
अशोक के पेड़ के उत्पादों के नियमित सेवन करने से बुद्धि प्रबल होती है। इसके लिए अशोक की छाल और ब्राह्मी पाउडर को बराबर मात्रा में मिलाकर प्राप्त मिश्रण का सेवन करना है। रोजाना 1 चम्मच मिश्रण को दो बार एक कप दूध के साथ सेवन करना है।
त्वचा की देखभाल में सहायक
अशोक के पेड़ से प्राप्त जड़ी-बूटियों का सेवन हमारी त्वचा के लिए लाभदायक है। दरअसल, इन जड़ी-बूटियों से रक्त से विषाक्त पदार्थों को निकालने में मदद मिलती है, जिससे रक्त शुद्ध होता है और एलर्जी जैसे अन्य त्वचा विकारों की शुरुआत को रोकने में मदद मिलती है। इसके अलावा अशोक के पेड़ के अर्क का उपयोग करके जलन और त्वचा की जलन का भी इलाज किया जा सकता है।
पेट की सूजन और अन्य सूजन से निपटता है
अशोक के पेड़ की छाल या पत्तियों का सेवन करने पर पेट से कीड़े निकालने में मदद मिलती है और इस तरह दर्द और सूजन से राहत मिलती है। अशोक के पेड़ की छाल में एंटी-फंगल, एंटी-बैक्टीरियल और दर्द निवारक गुण भी होते हैं। अशोक का पेड़ आंतरिक और बाहरी दोनों तरह की सूजन से लड़ने में मदद करता है और जलन से राहत देता है।
दर्द से राहत दिलाने में मदद करता है
अशोक के पेड़ के अर्क में एनाल्जेसिक गुण होते हैं और इसलिए दर्द से राहत दिलाने में मदद करते हैं। यदि आप अपने जोड़ों में दर्द का अनुभव कर रहे हैं, तो आप छाल का पेस्ट प्रभावित क्षेत्रों पर लगा सकते हैं और कुछ राहत का अनुभव कर सकते हैं।
बवासीर और मधुमेह के लिए लाभकारी
अशोक के पेड़ में लगने वाले फूल मधुमेह पीड़ितों के लिए रामबाण इलाज साबित हो सकता है। दरअसल, इन फूलों को सुखाकर इससे मधुमेह का इलाज किया जा सकता है। इसके फूल रक्त शर्करा के स्तर की जांच करने में मदद करते हैं। इस अशोक के पेड़ से तैयार हर्बल सप्लीमेंट बवासीर के इलाज में मदद करते हैं। अशोक के पेड़ की छाल से तैयार काढ़ा आंतरिक बवासीर के इलाज में मदद करता है।
चूंकि अशोक के पेड़ की छाल त्वचा के लिए काफी लाभकारी है, इस वजह से कई कॉस्मेटिक प्रोडक्ट बनाने में इसका इस्तेमाल किया जाता है, जो सौंदर्य प्रसाधन के रूप में हमारी त्वचा को लाभ पहुंचाते हैं। इस पेड़ की छाल बिच्छू के काटने पर मारक के रूप में भी काम करता है। इसके अलावा पेड़ के सूखे फूल भी मधुमेह रोगियों के लिए फायदेमंद होते हैं। इस वजह से कई प्रकार की औषधियों में भी अशोक के पेड़ का प्रयोग किया जाता है।
डॉक्टर की सलाह पर हम विभिन्न रूप से अशोक के पेड़ से प्राप्त जड़ी-बूटियों का उपयोग कर सकते हैं।
इसके नरम पत्तों का काढ़ा बनाकर प्रतिदिन दो चम्मच सेवन।
छाल का बारीक पाउडर बनाकर एक चम्मच प्रतिदिन सेवन।
इसके बीज का पाउडर बनाकर आधा चम्मच प्रतिदिन सेवन।
सूजन के इलाज के लिए पत्तों और फूलों से बने लेप का उपयोग।
इसके फूल, जड़, छाल और पत्तों का दो चम्मच मिश्रित जूस बनाकर आधा कप पानी के साथ सेवन।
हालांकि अशोक के पेड़ के कई स्वास्थ्य लाभ हैं, लेकिन इसके दुष्प्रभाव भी हैं। इसलिए गर्भवती महिलाओं को इस पेड़ के उत्पादों का सेवन करने से बचना चाहिए क्योंकि इससे जटिलताएं हो सकती हैं। जो लोग कुछ प्रकार के भोजन के प्रति संवेदनशील हैं, उन्हें इस पेड़ के उत्पादों का सेवन करने से पहले डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। इसके अलावा मासिक धर्म न होने की स्थिति में इसका सेवन स्थिति को और खराब कर सकता है। अगर आपको हाई ब्लडप्रेशर की समस्या है तब भी आपको डॉक्टर की सलाह पर ही इसका सेवन करना चाहिए।
अशोक का पेड़ मुख्य रूप से भारतीय उपमहाद्वीप में पाया और उगाया जाता है। इसे भारत और मलेशिया का मूल निवासी बताया गया है। इस पेड़ की खेती के लिए सबसे अच्छा समय मई और जून के महीने को माना गया गया है। अशोक के पेड़ों को बड़े पैमाने पर बीजों के साथ फैलाना मुश्किल है, इसलिए ज्यादातर इसके कलम की मदद से यह पेड़ लगाए जाते हैं। इसकी कलम लगाने से पहले इसे लिए मिट्टी तैयार करना जरुरी होता है।
इसके लिए मिट्टी में थोड़ा नीमखली और गोबर की खाद को डालना होता है। फिर गमले के ऊपर रेत के परत लगानई होती है, जिससे गमले में पानी को रोका जा सके, इससे कलम के ख़राब होने की शंका कम हो जाती है। कलम हमेशा 4 से 5 इंच वाली ही हो। कलम लगाने से पहले पत्तो की छटाई कर दे।
आपने चंदन के पेड़ को कभी देखा है? अगर नहीं देखा है, तो कभी ना कभी यह जरूर सुना होगा कि, चंदन नाम का एक पेड़ होता है, जो बहुत ही सुगंधित होता है। कई लोग चंदन की लकड़ियों का इस्तेमाल अपने घरों को सजाने के लिए करते हैं। चंदन की लकड़ियों से पूजा-पाठ के सामान जैसे- अगरबत्ती, हवन सामग्री आदि भी बनाएं जाते हैं। चंदन की लकड़ी महंगी होती है, इसलिए इसकी तस्करी भी की जाती है।
असल में, लोगों को चंदन के पेड़ के बारे में केवल इतनी ही जानकारी होती है। अधिकांश लोगों को यह पता ही नहीं है कि, चंदन एक बहुत ही फायदेमंद जड़ी-बूटी भी है, और चन्दन का प्रयोग बहुत सालों से चिकित्सा के लिए किया जा रहा है। आइए जानते हैं कि चंदन के उपयोग से आप किस-किस बीमारी में लाभ ले सकते हैं।
चंदन एक जड़ी-बूटी है। सुगन्धित, तथा शीतल होने से यह लोगों को आनन्द प्रदान करता है, इसलिए इसे चन्दन कहते हैं। चंदन के वृक्ष हरे रंग के और 6 से 9 मीटर ऊंचे होते हैं। इसकी शाखाएं झुकी होती हैं। चंदन के पेड़ की छाल लाल या भूरे, या फिर भूरे-काले रंग की होती है। चंदन के पत्ते अण्डाकार, मुलायम होते हैं, और पत्ते के आगे वाला भाग नुकीला होता है। चंदन के फूल भूरे-बैंगनी, या जामुनी रंग होते हैं, जो गंधहीन होते हैं। इसके फल गोलाकार, मांसल होते हैं, जो पकने पर शयामले, या बैंगनी रंग के हो जाते हैं। इसके बीज कठोर, अण्डाकार अथवा गोलाकार होते हैं।
चंदन के वृक्ष प्रायः 20 वर्ष के बाद ही बड़े होते हैं। पेड़ के भीतर का हिस्सा हल्का पीला रंग का, और सुगंधित होता है। पुराने वृक्षों की छाल दरार युक्त होती है। चंदन का वृक्ष 40-60 वर्ष की आयु के बाद उत्तम सुगन्ध वाला हो जाता है। चंदन के वृक्ष में फूल जून से सितम्बर के बीच होते हैं, और फल नवम्बर से फरवरी तक होते हैं। ऐसी अवस्था में चंदन पूरी तरह से उपयोग करने लायक हो जाता है। चंदन के पेड़ की कुछ विशेषताएं ये हैंः-
० उड़ीसा में पैदा होने वाला चंदन सबसे उत्तम होता है।
० भारत-यूनान (यवन देश) क्षेत्र में में पैदा होने वाला चंदन गुणवत्ता में थोड़ा कम होता है।
० पश्चिमी उत्तर प्रदेश आदि स्थानों में होने वाला चंदन सबसे कम गुणवत्ता वाला बताया गया है।
० गंध के हिसाब से उड़ीसा का चंदन सर्वोत्तम होता है।
आयुर्वेद के अनुसार, चंदन के पेड़ केवल एक तरह के नहीं होते। देश-विदेश में चंदन के पेड़ भिन्न-भिन्न तरह के पाये जाते हैं, जो ये हैंः-
1.सबसे अच्छे चन्दन के लक्षण
जो चंदन बहुत ही अच्छी गुणवत्ता का होता है, वह दिखने में सफेद रंग का होता है, लेकिन जब उसके टुकड़े करते हैं, तो लाल रंग का होता है। इसे घिसने पर उससे पीला रंग जैसा पदार्थ निकलता है। इसका सुगंध थोड़ा तीखा होता है।
2.वेट्ट चन्दन
यह चंदन बहुत अधिक ठंडा होता है। इससे प्रयोग से जलन, बुखार, उल्टी, कफ आदि बीमारियां ठीक की जा सकती है।
3.पीतचन्दन
यह चंदन भी सुगंध में तीखा, और ठंडा होता है। यह कुष्ठ रोग, कफ, बुखार, जलन की परेशानी में फायदेमंद होता है। दाद, वात-विकार, विष, रक्तपित्त आदि में इस्तेमाल किया जाता है।
अब तक आपने जाना कि चंदन क्या है, कितने तरह का होता है।आइए अब जानते हैं कि चंदन का औषधीय प्रयोग कैसे किया जाता है, इसकी मात्रा क्या होनी चाहिए, और इसकी विधियां क्यां-क्या हैं? आप चंदन का फायदा इस तरह ले सकते हैंः-
अत्यधिक प्यास लगने की परेशानी में चंदन का इस्तेमाल
कुुछ लोगों को हमेशा प्यास लगी रहती है। वास्तव में यह एक समस्या है। ऐसे में 20-40 मिली नारियल जल में, 2-4 ग्राम चंदन के चूर्ण को मिला लें। इसे पीने से प्यास खत्म हो जाती है।
अत्यधिक छींक की समस्या में चंदन का प्रयोग
महिलाओं या पुरुषों को कभी-कभी छींक की समस्या हो जाती है। ऐसे में चंदन, तथा धनिया की पत्ती को पीस लें। इसे सूंघने से छींक आनी बन्द हो जाती हैं।
हिचकी में चंदन के उपयोग से फायदा
हिचकी से परेशान रहते हैं, तो मसूर, पलाण्डु, अथवा गृंजनक, और श्वेत चंदन लें। इसे गाय के दूध के साथ घिस लें। इसे1-2 बूंद नाक में डालें। हिचकी बंद हो जाती है।
चंदन के प्रयोग से होती है सूजन कम
चंदन की लकड़ी को जल में घिसकर, तथा तने की छाल को पीसकर शरीर पर लगाएं। इससे सूजन ठीक होती है।
खुजली को ठीक करने के लिए चंदन का प्रयोग
चंदन के प्रयोग से आप खुजली की बीमारी ठीक कर सकते हैं। चंदन को जल के साथ घिसकर त्वचा पर लगाएं। इससे खुजली ठीक होती है।
चंदन के तेल में नींबू का रस, तथा कपूर मिला लें। इसे लगाने से खुजली ठीक हो जाती है।
मुंहासों की समस्या में चंदन से लाभ
मुंहासें होना एक आम समस्या है। महिलाएं हों या पुरुष, सभी मुंहासे से परेशान रहते हैं। इसके लिए आप चंदन की लकड़ी को घिस लें। इसे मुंह में लगाएं। इससे मुंहासे, और चेहरे की झाई आदि समस्या ठीक होती है।
चर्म रोग (त्वचा विकार) में फायदेमंद चंदन का उपयोग
त्वचा के अनेक विकार में चंदन के इस्तेमाल से फायदा लिया जा सकता है। चंदन की लकड़ी को जल में घिसकर लेप करने से त्वचा के अनेक विकार ठीक होते हैं।
त्वचा पर चकत्ते हो जाने पर 2-4 ग्राम चंदन के चूर्ण को गुडूची-के रस में मिला लें। इसका सेवन करने से लाभ होता है।
पसीने की बदबू में चंदन के इस्तेमाल से लाभ
बहुत सारे लोगों के पसीने से बदबू आने की शिकायत रहती है। अगर आप भी इस परेशानी से छुटकारा चाहते हैं, तो चन्दन के चूर्ण को गुलाब जल के साथ पीसकर लगाएं। इससे फायदा होता है।
पेट की गड़बड़ी में चंदन का उपयोग
पित्त के कारण होने वाली पेट की गड़बड़ी में भी चंदन का फायदा मिल सकता है। इसमें चन्दनादि घी (5-10 ग्राम) के सेवन से आराम मिलता है।
नाभि में दर्द होने पर 20-40 मिली नारियल जल में, 2-4 ग्राम चंदन के चूर्ण को नाभि पर रखें। इससे आराम मिलता है।
एसिडिटी में फायदेमंद चंदन का सेवन
कुछ भी उल्टा-सीधा खाने, या बाहर का भोजन करने पर एसिडिटी की परेशानी आम हो गई है। एसिडिटी से परेशान लोगों को, यदि खाने के बाद सिर, एवं हृदय में दर्द होता है, या आंखों की परेशानी रहती है, तो शिरीष, हल्दी, तथा चंदन के लेप को हृदय में लगाएं। इससे लाभ होता है।
चंदन का उपयोग कर शरीर की जलन से राहत
शरीर में जलन होने पर चंदन की लकड़ी को जल में घिस लें, और तने की छाल को पीसकर शरीर पर लगाएं। इससे जलन ठीक हो जाती है।
उल्टी रोकने के लिए चंदन का इस्तेमाल
आप उल्टी को रोकने के लिए भी चंदन का इस्तेमाल कर सकते हैं। 500 मिग्रा सफेद चंदन को घिस लें। इसे 10 मिली आंवला के रस में घोल लें। इसमें मधु मिलाकर पीने से उल्टी में लाभ होता है।
इसी तरह चंदन के 5-10 ग्राम बारीक चूर्ण को, चार गुना आंवला के रस में घोल लें। इसमें मधु मिलाकर पीने से उल्टी रुक जाती है।
इसके अलावा 10-30 मिली आंवले के रस में, 1-2 ग्राम चन्दन के पेस्ट को मिला लें। इसका सेवन करने से उल्टी पर रोक लगती है।
चंदन के उपयोग से सिर दर्द से आराम
सिर दर्द होने के कई कारण हो सकते हैं। कोई भी व्यक्ति जो सिर दर्द से परेशान है, और आयुर्वेद तरीके से सिर दर्द से आराम पाना चाहता है, उसे चंदन को घिसकर मस्तक पर लगाना चाहिए। इससे सिर दर्द से राहत मिलती है।
आंखों की बीमारी में चंदन का उपयोग
आंखों की बीमारी में भी चंदन का इस्तेमाल कर सकते हैं। आंखों के रोग में 10 ग्राम सफेद चंदन के पेस्ट को, 100 मिली दूध में पका लें। इसे ठंडा कर लें। इसे आंखों पर लगाने से आंखों की बीमारी में लाभ होता है।
बुखार उतारने के लिए चंदन का उपयोग
आप चंदन का इस्तेमाल बुखार को ठीक करने के लिए भी कर सकते हैं। चंदन की लकड़ी को जल में घिस लें। इसके तने की छाल को पीसकर शरीर पर लगाने से बुखार ठीक हो जाता है।
गठिया में फायदा पहुंचाता है चंदन का इस्तेमाल
गठिया की परेशानी में चंदन के उपयोग से फायदा हो सकता है। गठिया की बीमारी वाले लोग 20-40 मिली चन्दनादि कषाय में, चीनी, तथा मधु मिलाकर सेवन करें। इससे गठिया में आराम होता है।
उचित मात्रा में चंदन का इस्तेमाल करने से स्वास्थ्य पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है, लेकिन कुछ अवस्था में चंदन के उपयोग से निम्न दुष्प्रभाव हो सकते हैंः-
अगर किसी को एलर्जी जैसी परेशानी होती है, तो उसकी त्वचा में चंदन से रिएक्शन हो सकता है।
इसके अत्यधिक मात्रा में सेवन करने से पेट से जुड़े विकार, त्वचा-विकार, अवसाद, उल्टी, या यूरीमिया जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
शायद ही कोई इंसान होगा जो पीपल के पेड़ के बारे में नहीं जानता होगा। हाथी इसके पत्तों को बड़े चाव से खाते हैं। इसलिए इसे गजभक्ष्य भी कहते हैं। पीपल का पेड़ प्रायः हर जगह उपलब्ध होता है। सड़कों के किनारे, मंदिर या बाग-बगीचों में पीपल का पेड़ हमेशा देखने को मिलता है। शनिवार को हजारों लोग पीपल के पेड़ की पूजा भी करते हैं। अधिकांश लोग पीपल के पेड़ के बारे में केवल यही जानते हैं कि इसकी केवल पूजा होती है, लेकिन सच यह है कि पीपल के पेड का औषधीय प्रयोग भी किया जाता है और इससे कई रोगों में लाभ लिया जा सकता है।
कई पुराने आयुर्वेदिक ग्रंथों में पीपल के पेड़ के गुणों के बारे में बताया गया है कि पीपल के प्रयोग से रंग में निखार आता है, घाव, सूजन, दर्द से आराम मिलता है। पीपल खून को साफ करता है। पीपल की छाल मूत्र-योनि विकार में लाभदायक होती है। पीपल की छाल के उपयोग से पेट साफ होता है। यह सेक्सुअल स्टेमना को भी बढ़ाता है और गर्भधारण करने में मदद करता है। सुजाक, कफ दोष, डायबिटीज, ल्यूकोरिया, सांसों के रोग में भी पीपल का इस्तेमाल लाभदायक होता है। इतना ही नहीं, अन्य कई बीमारियों में भी आप पीपल का उपयोग कर सकते हैं। आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
पीपल विषैली कार्बन डाइआक्साईड सोखता है और प्राणवायु मतलब ऑक्सीजन छोड़ता है। पीपल के पेड़ की छाया बहुत ठंडी होती है। पीपल का पेड़ लगभग 10-20 मीटर ऊँचा होता है। यह अनेक शाखाओं वाला, विशाल औक कई वर्षों तक जीवित रहता है। पुराने वृक्ष की छाल फटी व सफेद-श्यमाले रंग की होती है। इसके नए पत्ते कोमल, चिकने तथा हल्के लाल रंग के होते हैं। इसके फल चिकने, गोलाकार, छोटे-छोटे होते हैं। कच्ची अवस्था में हरे और पके अवस्था में बैंगनी रंग के होते हैं।
पीपल के पेड़ की जड़ भूमि के अन्दर उपजड़ों से युक्त होती है और बहुत दूर तक फैली रहती है। वट वृक्ष के समान ही इसके पुराने वृक्ष के तने तथा मोटी-मोटी शाखाओं से जटाएं निकलती हैं। इसे पीपल की दाढ़ी कहते हैं। ये जटायें बहुत मोटी तथा लम्बी नहीं होती। इसके तने या शाखाओं को तोड़ने या छिलने से या कोमल पत्तों को तोड़ने से एक प्रकार का चिपचिपा सफेद पदार्थ (दूध जैसा) निकलता है।
आंखों की बीमारी में पीपल का प्रयोग लाभदायक
पीपल के पत्ते के फायदे से आंखों के रोग ठीक किए जा सकते हैं। पीपल के पत्तो से से जो दूध (आक्षीर) निकलता है, उसको आंख में लगाने से आंखों में होने वाला दर्द ठीक हो जाता है।
दांतों के रोग में पीपल से लाभ
पीपल और वट वृक्ष की छाल को समान मात्रा में मिलाकर जल में पका लें। इसका कुल्ला करने से दांतों के रोग ठीक होते हैं।
पीपल की ताजी टहनी से रोज दातुन (ब्रुश) करने से दांत मजबूत होते हैं। इससे मसूड़ों की सूजन खत्म होती है और मुंह से आने वाली दुर्गंध भी खत्म हो जाती है।
हकलाहट की समस्या में पीपल का उपयोग फायदेमंद
पीपल के वृक्ष के लाभ हकलाने की समस्या में भी फायदे पहुंचाते हैं। पीपल के आधी चम्मच पके फल के चूर्ण में शहद मिला लें। इसका सुबह-शाम सेवन करने से हकलाहट की बीमारी में लाभ होता है।
कुक्कुर-खांसी में पीपल से फायदा
40 मिली पीपल के पेड़ की छाल का काढ़ा या 10 मिली रस को दिन में तीन बार देने से कुक्कुर खांसी में लाभ होता है।
अत्यधिक प्यास लगने की समस्या में पीपल से फायदा
पीपल की 50-100 ग्राम छाल के कोयलों को पानी में बुझा लें। इस पानी को साफ कर पिलाने से हिचकी की समस्या, उल्टी और अत्यधिक प्यास लगने की समस्या में लाभ होता है।
भूख बढ़ाने के लिए पीपल का प्रयोग लाभदायक
अगर आपको भूख कम लगती है तो पीपल के वृक्ष के लाभ इस समस्या में ले सकते हैं। पीपल के पके फलों के सेवन से कफ, पित्त, रक्तदोष, विष दोष, जलन, उल्टी तथा भूख की कमी की समस्या ठीक होती है।
पेट के दर्द में पीपल का उपयोग फायदेमंद
पीपल के पत्ते के फायदे से पेट के दर्द ठीक होते हैं। पीपल के ढाई पत्तों को पीसकर 50 ग्राम गुड़ में मिलाकर गोली बना लें। इसे दिन में 3-4 बार खाना चाहिए।
शारीरिक कमजोरी को दूर करने के लिए पीपल के पेड़ का इस्तेमाल
आधा चम्मच पीपल के फल का चूर्ण को दिन में तीन बार दूध के साथ सेवन करते रहने से शारीरिक कमजोरी दूर होती है।
कब्ज की परेशानी में पीपल से लाभ
पीपल के पत्ते के फायदे से कब्ज की समस्या ठीक होती है। कब्ज हो तो पीपल के 5-10 फल को नियमित रूप से खाएं। कब्ज ठीक हो जाता है।
पीपल के पत्ते और कोमल कोपलों का काढ़ा बना लें। 40 मिली काढ़ा को पिलाने से पेट साफ हो जाता है और कब्ज की समस्या ठीक हो जाती है।
पीलिया रोग में पीपल का इस्तेमाल
पीपल के 3-4 नए पत्तों को मिश्री के साथ 250 मिली पानी में बारीक पीस-घोलकर छान लें। यह शर्बत रोगी को 2 बार पिलाएं। इसे 3-5 दिन प्रयोग करें। यह पीलिया रोग के लिए रामबाण औषधि है।
मूत्र रोग में पीपल का उपयोग
पीपल की छाल का काढ़ा पिलाने से पेशाब के रुक-रुक कर आने की समस्या में लाभ होता है।
गले के रोग में पीपल के पेड़ का प्रयोग फायदेमंद
गले के रोग में पीपल की अंतर छाल को गुलाब जल में घिसकर लगाएं। इससे घाव जल्दी भर जाते हैं।
एड़ियों के फटने में पीपल से लाभ
कई लोगों को यह शिकायत रहती है कि उनके पैरों की एड़ियां फट गई है। ऐसे में पीपल के पत्ते के फायदे ले सकते हैं। हाथ-पांव फटने पर पीपल के पत्तों का रस या दूध (आक्षीर) लगाएं। यह लाभ पहुंचाता है।
पीपल के पेड़ से खाज-खुजली का इलाज
खाज-खुजली की समस्या हो तो 50 ग्राम पीपल की छाल का भस्म बना लें। इसमें आवश्यकतानुसार चूना व घी मिलाकर अच्छी प्रकार से लेप बना लें। इसका लेप करने से खाज-खुजली ठीक होता है।
पीपल की छाल का काढ़ा बनाकर 10-30 मिली मात्रा में रोज सुबह और शाम पिलाने से खुजली ठीक होता है।
फोड़े-फुन्सियों में फायदेमंद पीपल का पेड़
फोड़े-फून्सियों में भी पीपल के पत्ते के फायदे मिलते हैं। पीपल की छाल को जल में घिसकर फोड़े-फुन्सियों पर लगाने और गीली पट्टी बाँधने से अत्यन्त लाभ होता है।
पीपल के कोमल पत्तों को गेहूं के गीले आटे में पीसकर मिला लें। इसे फोड़ों पर लगाने से फोड़े ठीक होते हैं और सूजन ठीक हो जाती है।
अनेक प्रकार के घाव को ठीक करने में उपयोगी पीपल का पेड़
आप पीपल के वृक्ष के लाभ घाव में भी ले सकते हैं। पीपल की नरम कोपलों को जलाकर कपड़े से छान लें। इसे पुराने बिगड़े हुए फोड़ों पर छिड़ने से लाभ होता है।
पीपल की छाल के चूर्ण को पीसकर उसमें घी मिला लें। इसे जलने या चोट लगने से हुए घाव पर लगाने से रक्तस्राव बंद हो जाता है और घाव तुरंत भरने से लाभ होता है।
पीपल की छाल के चूर्ण को आग से जलने के कारण हुए घाव पर छिड़कने से तुरंत घाव सुख जाता है।
पुराने तथा ना भरने वाले घावों पर पीपल की अंतर छाल को गुलाब जल में घिसकर लगाएं। इससे घाव जल्दी भर जाते हैं।
घाव पर औषधि का लेप लगाकर पीपल के कोमल पत्तों से ढक दें। यह घाव को सुखाता है।
अर्जुन, गूलर, पीपल, लोध्र, जामुन तथा कट्फल की छाल लेकर चूर्ण बना लें। इसे घाव पर छिड़कने से घाव तुरंत ठीक हो जाता है।
वट, गूलर, पीपल (pipal tree), प्लक्ष तथा वेतस की छाल के चूर्ण में पर्याप्त मात्रा में घी मिला लें। इसका लेप करने से घाव की सूजन ठीक हो जाती है।
ताजे झड़े हुए पीपल के पत्ते की बारीक चूर्ण को घाव पर छिड़कने से घाव तुरंत ठीक होता है।
पीपल की हरी छाल और हरे पत्तों से बने पेस्ट में मधु मिलाकर लेप करने से मुंह का घाव ठीक होता है।
इसके 21 कोमल पत्ते पीसकर, गुड़ में गोलियां बना लें। इसे 7 दिन सुबह-शाम खिलाने से चोट लगने के कारण होने वाले दर्द में लाभ होता है।
कमल के फूल सिर्फ सुंदर ही नहीं होते हैं, बल्कि न्यूट्रिएंट्स से भरपूर होने के कारण हेल्थ से जुड़ी कई समस्याओं को दूर करते हैं। आइए इसे लेने के सही तरीके के बारे में जानें-
कमल के फूल पिंक, व्हाइट, रेड और ब्लू कलर के होते हैं। इनका इस्तेमाल घर की खूबसूरती बढ़ाने के अलावा पूजा-पाठ में भी किया जाता है। यह डिशेज और ड्रिंक्स को टेस्टी भी बनाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कमल के फूल हेल्थ से जुड़ी कई समस्याओं में रामबाण हैं।
कमल के फूलों में एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी-ऑक्सीडेंट गुण होते हैं। साथ ही, इसमें कई तरह के मिनरल्स जैसे पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, आयरन, फास्फोरस और क्लोरीन पाए जाते हैं और ये फैट फ्री होते हैं। इसके अलावा, कमल के फूल कार्बोहाइड्रेट और फाइबर का हेल्दी स्रोत है।
यह एक बेस्ट आयुर्वेदिक औषधि है। इससे आप बुखार, सिरदर्द और जलन जैसी समस्याओं को दूर और खुद को सुंदर बना सकते हैं। इसके फायदों की जानकारी आयुर्वेदिक एक्सपर्ट डॉक्टर दीक्षा भावसार ने शेयर की है।
एक्सपर्ट का कहना है, ''कमल का फूल स्वाद में मीठा और हल्का होता है। इसे कार्डियक टॉनिक माना जाता है, जो दिल के लिए अच्छा होता है। यह यूरिन बढ़ाने वाला होता है, इसलिए किडनी के लिए अच्छा होता है। इसकी तासीर ठंडी होती है और ब्लड को प्यूरिफाई करने में मदद करता है। इससे चेहरे पर ग्लो आता है। कमल ज्वरनाशक भी है, जो बुखार में शरीर के तापमान को कम करता है।''
ज्यादातर लोगों के मन में यही सवाल होता है कि कमल के फूलों का फायदा पाने के लिए इसका इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है? तो आपकी इस दुविधा को हम दूर कर देते हैं-
पानी- 1 ग्लास
कमल के फूल- 3
एक ग्लास पानी को उबालें।
गैस बंद करके कमल के फूलों को पानी में डालकर 2 घंटे के लिए अलग रखें।
दो घंटे के बाद इसे अच्छी तरह से मिक्स करके छान लें।
इसे थोड़ा ठंडा करें।
फिर इस शरबत को पिएं।
गर्मियों में हेल्दी और कूल रहें।
० बुखार में फायदेमंदहोता है।
० किडनी को दुरुस्त रखता है।
० दिल के स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है।
० यह ब्लड प्रेशर को कम करता है।
० ज्यादा ब्लीडिंग को रोकता है।
० ब्लड शुगर लेवल को कम करता है।
० सिरदर्द से राहत देता है।
० बहुत ज्यादा प्यास को शांत करता है।
० जलन और सूजन को कम करता है।
० खांसी और बुखार में फायदेमंद है।
० चेहरे को ग्लोइंग बनाता है।
० लो ब्लड शुगर से परेशान लोग इसके सेवन से बचें, क्योंकि यह ब्लड शुगर के लेवल को कम कर सकता है।
० प्रेग्नेंट और ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली महिलाओं को इसे नहीं लेना चाहिए
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नीम के पेड़से शायद ही कोई अपरिचित हो। नीम को उसके कड़वेपन के कारण जाना जाता है। सभी लोगों को पता होगा कि कड़वा होने के बाद भी नीम स्वास्थ्य के लिए बहुत अधिक लाभदायक होता है, लेकिन नीम के फायदे क्या-क्या हैं या नीम का उपय़ोग किन-किन रोगों में कर सकते हैं, इस बात की पूरी जानकारी आपको नहीं होगी। नीम के गुणों के कारण इसे धरती का कल्प वृक्ष भी कहा जाता है। आमतौर पर लोग नीम का प्रयोग घाव, चर्म रोग में फायदा लेने के लिए करते हैं लेकिन सच यह है नीम के फायदेअन्य कई रोगों में भी मिलते हैं।
नीम के पत्ते का काढ़ा घावों को धोने में कार्बोलिक साबुन से भी अधिक उपयोगी है। कुष्ठ आदि चर्म रोगों पर भी नीम बहुत लाभदायक है। इसके रेशे-रेशे में खून को साफ करने के गुण भरे पड़े हैं। नीम का तेल टीबी या क्षय रोग को जन्म देने वाले जीवाणु की तीन जातियों का नाश करने वाले गुणों से युक्त पाया गया है। नीम की पत्तियोंका गाढ़ा लेप कैंसर की बढ़ाने वाली कोशिकाओं की बढ़ने की क्षमता को कम करता है। आइए जानते हैं कि आप किन-किन रोगों में नीम का उपयोग कर सकते है और नीम के नुकसान क्या होते हैं?
नीम भारतीय मूल का एक पूर्ण पतझड़ वृक्ष है जो 15-20 मीटर की ऊंचाई तक पहुंच सकता है। कभी-कभी 35-40 मीटर तक भी ऊंचा हो सकता है। इसकी शाखाएं यानी डालियाँ काफी फैली हुई होती हैं। तना सीधा और छोटा होता है और व्यास में 1.2 मीटर तक पहुँच सकता है।
नीम को निम्ब भी कहा जाता है। कई ग्रन्थों में वसन्त-ऋतु (विशेषतः चैत्र मास मतलब 15 मार्च से 15 मई) में नीम के कोमल पत्तोंके सेवन की विशेष प्रंशसा की गई है। इससे खून साफ होता है तथा पूरे साल बुखार, चेचक आदि भयंकर रोग नहीं होते हैं। विभिन्न रोगों में नीम का प्रयोगकरने की विधि नीचे दी जा रही हैः-
नीम के फायदे बालों के लिए बहुत ही लाभकारी है। बाल झड़ने से लेकर बालों के असमय पकने जैसी बालों की समस्याओं में इसका प्रयोग किया जा सकता है।
1.नीम के बीजों को भांगरा के रस तथा असन पेड़ की छाल के काढ़े में भिगो कर छाया में सुखाएं। ऐसा कई बार करें। इसके बाद इनका तेल निकालकर नियमानुसार 2-2 बूँद नाक में डालें। इससे असमय सफेद हुए बाल काले हो जाते हैं। इस प्रयोग के दौरान केवल दूध और भात यानी पके हुए चावल ही खाने चाहिए।
2.नीम के पत्ते एक भाग तथा बेर पत्ता 1 भाग को अच्छी तरह पीस लें। इसका उबटन या लेप सिर पर लगाकर 1-2 घंटे बाद धो डालें। इससे भी बाल काले, लंबे और घने होते हैं।
3.नीम के पत्तों को पानी में अच्छी तरह उबालकर ठंडा हो जाने दें। इसी पानी से सिर को धोते रहने से बाल मजबूत होते हैं, बालों का गिरना या झड़ना रुक जाता है। इसके अतिरिक्त सिर के कई रोगों में लाभ होता है।
4.सिर में बालों के बीच छोटी-छोटी फुन्सियां हों, उनसे पीव निकलता हो या केवल खुजली होती हो तो नीम का प्रयोग बेहतर परिणाम देता है। ऐसे अरूंषिका तथा क्षुद्र रोग में सिर तथा बालों को नीम के काढ़े से धोकर रोज नीम का तेल लगाते रहने से तुरंत लाभ होता है।
5.नीम के बीजों को पीसकर लगाने से या नीम के पत्तों के काढ़े से सिर धोने से बालों की जुँए और लीखें मर जाती हैं।
नीम का उपयोग गर्भ निरोधक के रूप में भी किया जा सकता है। कुछ अध्ययनों ने नीम के एंटीफर्टिलिटी (antifertility) प्रभावों को प्रमाणित किया है। एक अध्ययन में, चूहों पर नीम के तेल का प्रयोग किया गया और यह पाया गया की तेल के उपयोग के बाद वे काफी समय तक गर्भधारण करने में अक्षम रहे। इससे यह साबित होता है की नीम के तेल को गर्भ निरोधक के रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं। अध्ययन के अनुसार जब नीम के तेल का उपयोग यौन सम्बन्ध बनाने से पहले लागू होता है, तो औरतों में यह गर्भावस्था को रोक सकता है। नीम के पत्तों का उपयोग करने से पुरुषों में प्रजनन क्षमता भी कम हो सकती है अगर सही समय और तरीके से इसका इस्तेमाल ना किया जाए। हालांकि, एक और अध्ययन में, यह साबित हुआ है की नीम का तेल पुरुषों और महिलाओं दोनों को नुकसान पहुंचाए बिना गर्भधारण की संभावना को कम करने में मदद करता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि नीम गर्भ निरोधक का अच्छा विकल्प हो सकता है क्योंकि यह प्राकृतिक है और आसानी से उपलब्ध भी है।
नीम के लाभ त्वचा के लिए -
आपकी त्वचा को स्वस्थ और दोषरहित रखने के लिए नीम एक अच्छा विकल्प हैं। नीम में वायरसरोधी, जीवाणुरोधी और रोगाणु रोधक गुण होते हैं
इसके अलावा, यह घावों को भरता हैं और किसी भी संक्रमण या विषाक्त (रक्त को विषैला करने वाली) स्थितियों को रोकने में मदद करता हैं। इसमे उच्च स्तर के एंटीऑक्सीडेंट भी होते हैं जो कि वातावरण को नुकसान से बचाने के लिए त्वचा की रक्षा में मदद करते हैं और उम्र बढ़ने के लक्षणो में देरी करते हैं।
० त्वचा की किसी भी तरह की समस्या के लिए, नीम की कुछ ताज़ा पत्तियों को एक पेस्ट के रूप में पीसे। प्रभावित त्वचा पर इसे लगाएं। इस पेस्ट को अपने आप सूखने के लिए छोड़ दें, इसके बाद इसे ठंडे पानी से धो लें। इस उपचार का उपयोग दिन में एक बार करें जब तक आप परिणाम से संतुष्ट ना हो जाएं।
० त्वचा कोशिकाओं को फिर से जीवंत करने और त्वचा का लचीलापन लाने के लिए आप त्वचा की मालिश भी कर सकते हैं, 1/3 कप जैतून का तेल या नारियल तेल और नीम के तेल के 1 चम्मच के साथ। यह बदले में त्वचा की चमक और त्वचा की रंगत भी बनाए रखने में मदद करता है।
नीम के गुण करते हैं जूँ का इलाज -
नीम के बीज अपने प्राकृतिक कीटनाशक गुण के कारण एक ही इलाज में सिर से जूँ प्रकोप को समाप्त कर सकता है। इसके अलावा, नीम सिर की खुजली और जलन से राहत प्रदान करने में प्रभावी है।
० सप्ताह में किसी भी हर्बल नीम आधारित शैम्पू से 2 या 3 बार अपने बाल धो लें और फिर सिर की जूँ से छुटकारा पाने के लिए एक जूँ कंघी का प्रयोग करें।
० वैकल्पिक रूप से, अपने बाल और सिर पर नीम की पत्तियों का पेस्ट लगाएं। इसे कुछ समय तक सूखने दे और बाद में गर्म पानी से अच्छी तरह से अपने बाल धो लें। फिर एक जूँ कंघी का प्रयोग कर के बालों को कंघी करने के लिए करें। इस उपचार का उपयोग सप्ताह में 2 या 3 बार , 2 महीने के लिए करें।
० अपने बालों और सिर की त्वचा की मालिश करें बिना पानी मिले नीम के तेल के साथ, जो कि बहुत प्रभावी भी है। मालिश करने के बाद, एक जूँ की कंघी का प्रयोग जूँ से छुटकारा पाने के लिए करें। आप एक घंटे के लिए यहाँ तक कि रातभर भी नीम का तेल अपने बालों में छोड़ सकते हैं।
नीम का उपयोग मौखिक स्वास्थ्य में -
नीम मौखिक स्वास्थ्य और मसूड़ों की बीमारियों को दूर रखने में भी मदद करता हैं। अपने जीवाणुरोधी और रोगाणु रोधक गुण से बैक्टीरिया को मारने में मदद करता है जो कि गुहाओं, पट्टिका, मसूड़े की सूजन और अन्य बीमारियों का कारण बनते हैं। यह लंबे समय के लिए ताज़ा सांस भी प्रदान करता हैं।
० नीम के पत्तों का रस निकालें और अपने दांतों और मसूढ़ों पर रगड़ें। कुछ मिनट के लिए लगाकर छोड़ दें, उसके बाद गर्म पानी के साथ कुल्ला करें। दिन में एक बार इस उपचार का प्रयोग करें। आप नरम नीम की दातुन का प्रयोग अपने दांत ब्रश करने के लिए भी कर सकते हैं।
० टूथपेस्ट, माउथवॉश(मुँह धोना) और मौखिक स्वास्थ्य टॉनिक के महत्वपूर्ण अवयवों के रूप में नीम का उपयोग किया जाता है।
नीम के पत्ते खाने के फायदे रक्त को शुद्ध करने के लिए -
नीम एक शक्तिशाली रक्त शोधक और विषहरण के रूप में काम करता हैं। यह हानिकारक विषाक्त पदार्थों से छुटकारा पाने में मदद करता है और शरीर के सभी भागों में आवश्यक पोषक तत्व और ऑक्सीजन ले जाने में मदद करता है।
यह बदले में गुर्दे और जिगर जैसे महत्वपूर्ण अंगों के कामकाज में सुधार करता है। इसके अलावा, यह स्वस्थ संचार, पाचन, श्वसन और मूत्र प्रणाली को बनाए रखने में भी मदद करता है।
० प्रत्येक दिन कई हफ्ते के लिए 2 या 3 नर्म नीम के पत्ते शहद के साथ खाली पेट खाने से आप अपने शरीर और त्वचा में परिवर्तन महसूस करने लग जाएंगे। आप नीम की चाय भी पी सकते हैं।
० वैकल्पिक रूप से, दिन में 1 या 2 नीम कैप्सूल कुछ हफ्तों के लिए भोजन के साथ दो बार लें। सही खुराक के लिए, एक चिकित्सक से परामर्श करें।
नीम का रस पीने के फायदे मधुमेह में -
नीम की पत्तियों का रस कई यौगिकों से युक्त होता है जो कि मधुमेह के लोगों के बीच इंसुलिन आवश्यकताओं को कम कर सकता है बिना रक्त में शर्करा की मात्रा को प्रभावित किए।
० नीम की गोलियां रक्त शर्करा के स्तर को करने कम में मदद करती हैं। डॉक्टर से परामर्श के बाद ही मधुमेह को नियंत्रित करने के लिए नीम की गोलियां या चूर्ण का सेवन करें।
० जिन लोगो को मधुमेह होने का खतरा अधिक होता है वो प्रतिदिन 4 या 5 नर्म नीम की पत्तियां खाली पेट चबा सकते हैं।
नीम के फायदे पेट के कीड़ों से छुटकारा पाने के लिए -
नीम अपने विरोधी परजीवी गुणों के कारण पेट के कीड़े पर दोनों उपचारात्मक और निवारक प्रभाव डालता है। नीम में कई यौगिक हैं जो परजीवी के रहने की क्षमता को रोकने के लिए होते हैं, इस प्रकार इनके जीवन चक्र में दखल और अंडे सेने से नए परजीवी के होने को बाधित करता है। नीम विषाक्त पदार्थों को भी हटाता हैं जो कि परजीवी पीछे छोड़ मर जाते हैं।
० खाली पेट नीम के नर्म पत्ते चबाने से या दिन में 2 बार, 1 से 2 सप्ताह के लिए नीम की चाय पीने से पेट के कीड़ो से छुटकारा पाया जा सकता है।
० आप चिकित्सक से परामर्श के बाद भी नीम कैप्सूल या खुराक ले सकते हैं।
नीम के लाभ गठिया रोगियों के लिए -
नीम गठिया, विशेष रूप से पुराने ऑस्टियोआर्थराइटिस(अस्थिसंधिशोथ) और रुमेटी गठिया के लिए एक लोकप्रिय हर्बल उपचार हैं। इसमे सूजन को कम करने और दर्द को दबाने के गुण होते हैं जिससे यह जोड़ों के दर्द और सूजन को कम करता है।
० 1 कप पानी में एक मुट्ठी नीम की पत्तियों और फूलों को उबाल लें। फिर इसे छानकर ठंडा होने दे। यह दिन में दो बार 1 महीने तक सेवन करने से गठिया के दर्द और सूजन को कम करता है।
० नीम के तेल के साथ नियमित मालिश भी मांसपेशियों के दर्द और जोड़ों के दर्द से प्रभावी राहत देती है। नीम के तेल की मालिश पीठ के निचले हिस्से में दर्द को भी कम करने में फायदेमंद है।
नीम रोके कैंसर होने से -
नीम प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ा कर, सूजन को कम करके, मुक्त कण को हटा कर, हार्मोनल गतिविधि को रोक कर और कोशिका विभाजन में बाधा कर, कैंसर के इलाज में मदद कर सकता है।
कैंसर के खतरे को कम करने के लिए नीम या किसी अन्य जड़ी बूटी का उपयोग करने से पहले एक डॉक्टर से परामर्श करें।
नीम का फायदा मलेरिया के लिए -
पत्तों में एंटीमाइमरियल गुण होता हैं। नीम की पत्तियां मलेरिया से लड़ने में मदद करती हैं। इन पत्तों का इस्तेमाल मलेरिया के इलाज में और मलेरिया की रोकथाम के लिए किया जा सकता है। नीम की चाय का इस्तेमाल भी मलेरिया के उपचार के रूप में किया जा सकता है।
० नीम के लगभग 20 पत्तों को पानी में डालकर अच्छे से उबालें और तब तक उबलने दें जब तक इनका रंग पानी में अच्छे से घुल न जाए, अब इस पानी को ठंडा होने दें और एक बोतल में रख लें। इस पानी से रोज़ अपने चेहरे को धोएं और मुहांसों से छुटकारा पाएं।
० नीम पाउडर, तुलसी और चंदन पाउडर का पेस्ट बनाकर इसे चेहरे पर लगाएं, सूखने दें और ठंडे पानी से मुँह धो लें। यह पेस्ट लगाने से आपके चेहरे पर निखार आएगा।
० नीम के पाउडर को पानी और अंगूर के तेल के साथ मिलाएं और इसका अपने चेहरे पर मॉइस्चराइजर के रूप में इस्तेमाल करें।
० आँखों के नीचे काले घेरे हटाने के लिए नीम पाउडर और पानी का एक गाढ़ा मिश्रण बनाएं और इसे 15 मिनट के लिए काले घेरों पर लगाएं।
० नियमित रूप से नीम के तेल का सेवन करने पर अस्थमा, सर्दी-जुकाम और बुखार जैसी परेशानियां भी दूर हो सकती है।
सामान्य खुराक में नीम के उपयोग से दुष्प्रभाव नहीं होते हैं। हालांकि, शिशुओं या छोटे बच्चों को यह जड़ी बूटी नही देनी चाहिए। नीम गर्भवती, स्तनपान कराने वाली महिलाओं या जो गर्भ धारण करने की कोशिश कर रहे हैं उनके लिए भी सुरक्षित नहीं है। इसके अलावा, नीम का तेल आंतरिक रूप से कभी नहीं लिया जाना चाहिए।
० एक सामान्य नियम के रूप में, यह रक्त में शर्करा की मात्रा कम कर सकता हैं इसलिए यदि आप उपवास कर रहे हैं तो बेहतर होगा कि आप नीम के मौखिक सेवन से बचें।
० मधुमेह से पीड़ित लोगों को चिकित्सक की देखरेख में ही नीम का उपयोग करना चाहिए, लगातार रक्त शर्करा के स्तर की निगरानी के साथ।
० बचपन में, गर्भावस्था या स्तनपान के दौरान नीम का उपयोग करने से पहले अपने चिकित्सक की सलाह लेना आवश्यक है।
तुलसी को ओसीमम सैंक्टम के नाम से भी जाना जाता है। यह अपने कई स्वास्थ्य लाभों के लिए आयुर्वेद में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस जड़ी बूटी का उपयोग सदियों से पारंपरिक चिकित्सा में किया जाता रहा है और इसकी समृद्ध फाइटोकैमिस्ट्री के लिए इसे महत्व दिया जाता है।
तुलसी के लाभ शारीरिक और मानसिक कल्याण के विभिन्न पहलुओं तक फैले हुए हैं, जिससे यह समग्र स्वास्थ्य के प्रति सजक लोगों के लिए एक लोकप्रिय विकल्प बन गया है। आइए इसके फायदों के बारे में जानने की कोशिश करते हैं:
तुलसी को एडाप्टोजेन के रूप में वर्गीकृत किया गया है, एक ऐसा पदार्थ जो शरीर को तनाव के अनुकूल बनाने में मदद करता है और समग्र संतुलन को बढ़ावा देता है। यह तनाव के प्रति शरीर की प्रतिक्रिया को नियंत्रित करता है, जिससे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों पर तनाव का नकारात्मक प्रभाव कम होता है।
फ्लेवोनोइड्स और पॉलीफेनोल्स जैसे एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर, तुलसी ऑक्सीडेटिव तनाव से निपटने और मुक्त कणों को बेअसर करने में मदद करती है। यह सेलुलर स्वास्थ्य में योगदान देता है और पुरानी बीमारियों को रोकने में भूमिका निभा सकता है।
तुलसी में सूजन-रोधी गुण होते हैं, जो शरीर में सूजन को कम करने में मदद करते हैं। पुरानी सूजन विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़ी हुई है, और तुलसी के सूजन-रोधी प्रभाव सूजन संबंधी स्थितियों की रोकथाम और प्रबंधन में योगदान कर सकते हैं।
तुलसी के प्रतिरक्षा-मॉड्यूलेटिंग गुण इसे प्रतिरक्षा प्रणाली का समर्थन करने में एक मूल्यवान सहयोगी बनाते हैं। यह शरीर की प्राकृतिक रक्षा तंत्र को बढ़ाता है, जिससे यह संक्रमण और बीमारियों से लड़ने में मजबूत होता है
तुलसी ने रोगाणुरोधी और जीवाणुरोधी गुणों का प्रदर्शन किया है। यह विभिन्न रोगजनकों से निपटने में मदद कर सकता है, संक्रमण की रोकथाम और उपचार में योगदान दे सकता है।
कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि तुलसी हृदय स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। यह रक्तचाप को नियंत्रित करने, कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने और समग्र हृदय समारोह में सुधार करने में मदद कर सकता है।
कुछ अध्ययनों ने प्राकृतिक कैंसर रोधी एजेंट के रूप में तुलसी की क्षमता का पता लगाया है। यह ऐसे गुण प्रदर्शित करता है जो कुछ कैंसर कोशिकाओं के विकास को रोक सकते हैं और ट्यूमर के प्रसार को रोक सकते हैं।
यह पाचन में सहायता कर सकती है और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याओं को कम कर सकती है। यह अपच, सूजन और गैस के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकता है।
तुलसी को हिंदू धर्म में ही नहीं बल्कि आयुर्वेद में भी बेहद गुणकारी माना गया है। तुलसी के आध्यात्मिक और औषधीय गुणों की वजह से आयुर्वेद में इसे अमृत कहा जाता है। तुलसी का सेवन करने से खून का जमाव, प्रतिरक्षा को बढ़ाने मिलने के साथ सर्दी, खांसी, जुकाम को भगाने में भी राहत मिलती है। सेहत के लिए इतनी गुणकारी होने के बावजूद क्या आप जानते हैं इसका जरूरत से ज्यादा सेवन करने से आपकी सेहत को फायदे से ज्यादा नुकसान भी हो सकता है। आइए जानते हैं कैसे।
तुलसी की पत्तियों में हाइपोग्लाइसेमिक लेवल को कंट्रोल करने वाले गुण मौजूद होते हैं। यही वजह है कि तुलसी के पत्ते चबाने से व्यक्ति का ब्लड शुगर लेवल कम होता है। ऐसे में अगर आपका शुगर लेवल पहले से ही लो रहता है या फिर आप शुगर की दवाइयां ले रहे हैं तो तुलसी का अधिक सेवन करने से बचें। तुलसी का अधिक सेवन करने से ब्लड शुगर में बहुत ज्यादा कमी आ सकती है। जो उनके लिए नुकसानदेह हो सकता है।
तुलसी में मौजूद यूजेनॉल महिलाओं के पीरियड शुरू होने का कारण बन सकता है। इतना ही नहीं तुलसी का अधिक सेवन करने से प्रेगनेंसी में डायरिया की समस्या भी हो सकती है। यही वजह है कि गर्भवती महिलाओं को तुलसी का सेवन करने की सलाह नहीं दी जाती है।
तुलसी के पत्तों में कई ऐसे तत्व पाए जाते हैं जो खून को पतला करने में मदद कर सकते हैं। ज्यादा मात्रा में तुलसी का सेवन ब्लड को पतला करके कई स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है। ऐसे में ज्यादा मात्रा में तुलसी का सेवन करें से बचें।
तुलसी की तासीर गर्म होने की वजह से इसका अत्यधिक सेवन करने से पेट में जलन पैदा हो सकती है। यही वजह है कि तुलसी का सेवन सीमित मात्रा में ही करने की सलाह दी जाती है।
तुलसी के पत्तों को चबाकर खाना दांतों के लिए नुकसान दायक साबित हो सकता है। तुलसी के पत्तों में पारा और आयरन की मात्रा पाई जाती है। इसमें कुछ मात्रा में आर्सेनिक भी पाया जाता है, जिससे दांत खराब हो सकते हैं। इससे दांतों में दर्द की समस्या हो सकती है।