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Suveta Notiyal

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Blog by Suveta Notiyal | Digital Diary

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चेहरे के दाग धब्बे मिटा सकती हैं ये 5 जड़ी बूटियां जरूर करें इस्तेमाल


हर कोई चमकती, दमकती त्वचा चाहता है। इसके लिए लोग तरह-तरह के उपाय भी आजमाते हैं। कोई इसके लिए ब्यूटी प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करता है, तो कोई नैचुरल तरीकों से ही अपनी त्वचा की देखभाल करता है। इतना ही नहीं कोई पार्लर में ब्यूटी ट्रीटमेंट भी लेता है। खासकर, जब चेहरे पर दाग-धब्बे हो जाते हैं, तो लोग इन्हें रिमूव करवाने के लिए पीलिंग ट्रीटमेंट लेते हैं। लेकिन आप चाहें तो आयुर्वेदिक तरीकों से भी अपने चेहर... Read More

हर कोई चमकती, दमकती त्वचा चाहता है। इसके लिए लोग तरह-तरह के उपाय भी आजमाते हैं। कोई इसके लिए ब्यूटी प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करता है, तो कोई नैचुरल तरीकों से ही अपनी त्वचा की देखभाल करता है। इतना ही नहीं कोई पार्लर में ब्यूटी ट्रीटमेंट भी लेता है। खासकर, जब चेहरे पर दाग-धब्बे हो जाते हैं, तो लोग इन्हें रिमूव करवाने के लिए पीलिंग ट्रीटमेंट लेते हैं। लेकिन आप चाहें तो आयुर्वेदिक तरीकों से भी अपने चेहरे के दाग-धब्बों को मिटा सकते हैं। जी हां, आयुर्वेद में कई ऐसी जड़ी-बूटियां हैं, जो दाग-धब्बों को मिटाने में असरदार साबित हो सकती हैं। तो चलिए, रामहंस चेरिटेबल हॉस्पिटल, सिरसा के आयुर्वेदिक डॉक्टर श्रेय शर्मा से जानते हैं चेहरे के दाग-धब्बे हटाने के लिए जड़ी-बूटियों के बारे में –

चेहरे के दाग-धब्बे हटाने के लिए जड़ी बूटियां-

1. नीम

नीम औषधीय गुणों से भरपूर होता है। नीम में एंटीसेप्टिक, एंटीफंगल और एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं। अगर आपके चेहरे पर मुहांसे और दाग-धब्बे हैं, तो आप नीम का उपयोग कर सकते हैं। इसके लिए आप नीम की पत्तियां लें। इन्हें पीसकर दाग-धब्बों पर लगाएं, फिर आधे घंटे बाद चेहरे को पानी से साफ कर लें। दाग-धब्बों को मिटाने के लिए आप सप्ताह में 1-2 बार नीम का इस्तेमाल कर सकते हैं। नीम त्वचा को साफ और चमकदार बनाता है।

2. गिलोय

            

आयुर्वेद में गिलोय को काफी महत्वपूर्ण माना गया है। गिलोय औषधीय गुणों से भरपूर होती है। गिलोय इम्यूनिटी को बूस्ट करती है, साथ ही मेंटल हेल्थ में भी सुधार करती है। इसके अलावा गिलोय को त्वचा के लिए भी फायदेमंद बताया गया है। गिलोय चेहरे के मुहांसों और दाग-धब्बों से छुटकारा दिला सकती है। इसके लिए आप गिलोय की पत्तियों का पेस्ट बनाकर चेहरे पर लगा सकते हैं। या फिर गिलोय का जूस और काढ़ा भी पी सकते हैं। इससे भी त्वचा में फर्क देखने को मिलेगा।

3. मुलेठी

            

आयुर्वेद में गिलोय की तरह ही मुलेठी का उपयोग भी कई समस्याओं का इलाज करने के लिए किया जाता है। मुलेठी खांसी-जुकाम को ठीक करती है। साथ ही स्किन प्रॉब्लम्स भी दूर करती है। इसके लिए आप मुलेठी का पाउडर लें। इसका पेस्ट बनाएं और प्रभावित स्थान पर लगाएं। 20 मिनट बाद चेहरे तो पानी से साफ कर लें। मुलेठी त्वचा को सूरज की हानिकारक किरणों और टैनिंग से बचा सकती हैं।

4. पुदीना

           

पुदीना भी दाग-धब्बों को मिटाने में असरदार हो सकता है। दरअसल, पुदीने में विटामिन सी होता है। यह विटामिन दाग-धब्बों को मिटाने का काम करता है। इसके लिए आप पुदीने की पत्तियां लें। इनका पेस्ट बना लें और इसे चेहरे पर लगाएं। 15-20 मिनट बाद चेहरे को पानी से धो लें। इससे दाग-धब्बे रिमूव होंगे, साथ ही चेहरे की चमक भी बढ़ेगी। पुदीने की पत्तियां त्वचा को फ्री रेडिकल्स से होने वाले नुकसान से भी बचाती हैं। 

5. एलोवेरा

    

एलोवेरा को स्किन केयर प्रोडक्ट्स में शामिल किया जाता है, क्योंकि इसे त्वचा के लिए काफी फायदेमंद माना जाता है। एलोवेरा में हीलिंग, एंटीफंगल, एंटीइंफ्लेमेटरी और एंटीऑक्सीडेंट्स गुण पाए जाते हैं। अगर आपके चेहरे पर दाग-धब्बे हैं, तो आप एलोवेरा का इस्तेमाल कर सकते हैं। एलोवेरा को आयुर्वेद में सेहत, त्वचा और बालों के लिए लाभकारी माना गया है। इसके लिए आप एलोवेरा जेल लें, इसे दाग-धब्बों पर लगाएं। फिर 20-25 मिनट बाद चेहरे को ताजे पानी से धो लें। इससे आपकी त्वचा मॉइश्चराइज रहेगी, चेहरे पर निखार भी आएगा।

आप भी दाग-धब्बों को मिटाने के लिए पुदीना, गिलोय, मुलेठी, एलोवेरा और नीम का उपयोग कर सकते हैं। अगर आपको इनमें से किसी भी चीज से एलर्जी है, तो चेहरे पर लगाने से पहले पैच टेस्ट जरूर कर लें।

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नाखूनों को स्वस्थ रखने के लिए फॉलो करें ये 5 आयुर्वेदिक टिप्स मिलेंगे खूबसूरत गुलाबी नाखून


खूबसूरत और नैचुरली नाखून सिर्फ आपकी सुंदरता को बढ़ाने में ही मदद नहीं करते हैं, बल्कि ये शारीरिक स्वास्थ्य के बारे में भी काफी कुछ बताते हैं। नाखून का रंग, उनकी बनावट, ताकत और विकास बताते हैं कि हमारा शरीर भीतर से कितना स्वस्थ है। आयुर्वेद के अनुसार "नाखून बोन टिशू से बना उत्पाद है।'' नाखून स्वस्थ सिर्फ तब होते हैं, जब आपकी हड्डियां भीतर से मजबूत होती हैं और पाचन दुरुस्त रहता है। लेकि... Read More

खूबसूरत और नैचुरली नाखून सिर्फ आपकी सुंदरता को बढ़ाने में ही मदद नहीं करते हैं, बल्कि ये शारीरिक स्वास्थ्य के बारे में भी काफी कुछ बताते हैं। नाखून का रंग, उनकी बनावट, ताकत और विकास बताते हैं कि हमारा शरीर भीतर से कितना स्वस्थ है। आयुर्वेद के अनुसार "नाखून बोन टिशू से बना उत्पाद है।'' नाखून स्वस्थ सिर्फ तब होते हैं, जब आपकी हड्डियां भीतर से मजबूत होती हैं और पाचन दुरुस्त रहता है। लेकिन आजकल हम देखते हैं कि ज्यादातर लोगों के नाखून बहुत कमजोर होते हैं। पानी में कुछ समय बिताने के बाद उनके नाखून गल जाते हैं और टूटने या झड़ने लगते हैं। इसके अलावा, नाखूनों का रंग भी सफेद हो जाता है। अगर आप भी नाखूनों में इस तरह के बदलाव नोटिस कर रहे हैं, तो आपको आपको समझ जाना चाहिए कि आपके शरीर में कुछ गड़बड़ चल रही है। यह किसी मेडिकल कंडीशन का संकेत भी हो सकते हैं। ऐसे में आपको तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। इसके अलावा, कुछ सरल टिप्स को फॉलो करके भी आप अपने नाखूनों को स्वस्थ रख सकते हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. वरालक्ष्मी यनामंद्र ने अपनी एक इंस्टाग्राम पोस्ट में नाखूनों को स्वस्थ रखने के लिए 5 आयुर्वेदिक उपाय शेयर की हैं। इस लेख में हम आपको इनके बारे में विस्तार से बता रहे हैं।

नाखून स्वस्थ रखने के लिए आयुर्वेदिक उपाय-

1. नाखूनों को साफ और सूखा रखें

पानी के अत्यधिक संपर्क में आने से आपके नाखून खराब हो सकते हैं और संक्रमण का खतरा भी बढ़ जाता है। इसलिए उन्हें साफ और सूखा रखें और गीले बर्तनों को छूते या प्रयोग करते समय दस्ताने पहनें।

2. पोषण से भरपूर आहार लें

ऐसे फूड्स खाएं जो बायोटिन से भरपूर हों जैसे, शकरकंद, फलियां, बादाम, अंडे की जर्दी और केले। यह हमारे शरीर के अंदर केराटिन के उत्पादन में मदद करते हैं। इससे आपके नाखूनों को स्वस्थ रखने में मदद करता है।

3. नाखूनों को मॉइस्चराइज करें

आयुर्वेदिक की मानें, तो नाखून शरीर में वात असंतुलन के कारण प्रभावित हो सकते हैं। इसलिए, उन्हें मॉइस्चराइज करने के लिए वात को संतुलित करने वाले तेल जैसे कैस्टर ऑयल और बादाम के तेल आदि का उपयोग करें। यह नाखूनों को मजबूत और मुलायम बनाने में मदद करता है।

4. क्यूटिकल्स को काटे नहीं

नाखूनों के मैट्रिक्स को बैक्टीरिया और अन्य से बचाने के लिए क्यूटिकल्स आवश्यक हैं। इसलिए आपको उन्हें काटने से बचना चाहिए। इसके अलावा, क्यूटिकल को बार-बार धकेलने या हटाने से बचें क्योंकि इससे मैट्रिक्स में संक्रमण का खतरा रहता है।

5. पॉलिश करने से बचें

नाखूनों को स्वस्थ रखने के लिए यह एक जरूरी कदम है। आपको कुछ समय के लिए नाखूनों को पॉलिश करने और अन्य ट्रीटमेंट्स से बचना चाहिए। क्योंकि ये आपके नाखूनों को नुकसान पहुंचाते हैं।

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आंखों की रोशनी को बढ़ाने के लिए आप कर सकते हैं इन आयुर्वेदिक औषधि का उपयोग


दृष्टि सबसे महत्वपूर्ण इंद्रियों में से एक है जो हमें दुनिया को देखने में मदद करती है। हालाँकि, उम्र, जीवनशैली और आनुवंशिकी जैसे कई कारकों के कारण समय के साथ हमारी दृष्टि खराब हो सकती है। जबकि आधुनिक चिकित्सा दृष्टि समस्याओं के लिए विभिन्न उपचार प्रदान करती है, आयुर्वेद, एक प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति, दृष्टि में सुधार के लिए प्राकृतिक उपचार प्रदान करती है। यह लेख कुछ आयुर्वेदिक उपचारों के बारे... Read More

दृष्टि सबसे महत्वपूर्ण इंद्रियों में से एक है जो हमें दुनिया को देखने में मदद करती है। हालाँकि, उम्र, जीवनशैली और आनुवंशिकी जैसे कई कारकों के कारण समय के साथ हमारी दृष्टि खराब हो सकती है। जबकि आधुनिक चिकित्सा दृष्टि समस्याओं के लिए विभिन्न उपचार प्रदान करती है, आयुर्वेद, एक प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति, दृष्टि में सुधार के लिए प्राकृतिक उपचार प्रदान करती है। यह लेख कुछ आयुर्वेदिक उपचारों के बारे में बताएगा जो आपकी दृष्टि को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं।

आँखों की रोशनी बढ़ाने के आयुर्वेदिक उपाय

आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए कुछ आयुर्वेदिक उपचार इस प्रकार हैं:

 

1.त्रिफला : त्रिफला, तीन फलों का मिश्रण है, जो दृष्टि सुधारने के लिए एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक उपाय है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट होते हैं जो आंखों को ऑक्सीडेटिव तनाव से बचाने में मदद करते हैं और आंखों के ऊतकों के पुनर्जनन को बढ़ावा देते हैं। इसे या तो मौखिक रूप से लिया जा सकता है या आंखों को धोने के लिए लगाया जा सकता है। यह आयुर्वेदिक मधुमेह रेटिनोपैथी के लिए एक उत्कृष्ट उपाय है । 

2.आंवला: आंवला, जिसे भारतीय करौदा भी कहा जाता है, विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है। यह आंखों की मांसपेशियों को मजबूत करके और इंट्राओकुलर दबाव को कम करके दृष्टि को बेहतर बनाने में मदद करता है। आंवला को या तो मुंह से खाया जा सकता है या फिर आंखों को धोने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

3.केसर : केसर, क्रोकस सैटिवस पौधे से प्राप्त एक मसाला है, जो दृष्टि सुधारने के लिए एक प्राकृतिक उपाय है। इसमें ऐसे यौगिक होते हैं जो रेटिना की रक्षा करने और आँखों में रक्त परिसंचरण को बेहतर बनाने में मदद करते हैं। केसर का सेवन या तो मौखिक रूप से किया जा सकता है या आई ड्रॉप के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

4.हरीतकी : हरीतकी, जिसे टर्मिनलिया चेबुला के नाम से भी जाना जाता है, एक जड़ी बूटी है जिसका उपयोग आमतौर पर आयुर्वेदिक नेत्र उपचार में किया जाता है। यह दृष्टि में सुधार सहित कई स्वास्थ्य लाभ प्रदान कर सकता है। हरीतकी एंटीऑक्सिडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी यौगिकों से भरपूर होती है जो आंखों को ऑक्सीडेटिव तनाव और सूजन से बचाने में मदद कर सकती है। यह आंखों में रक्त परिसंचरण में सुधार कर सकती है और अंतःस्रावी दबाव को कम कर सकती है। हरीतकी का उपयोग अक्सर आयुर्वेदिक आई ड्रॉप्स में किया जाता है, जो दृष्टि में सुधार, आंखों की थकान को कम करने और सूखापन और जलन से राहत दिलाने में मदद कर सकती है।

5.विभीतकी : विभीतकी, जिसे टर्मिनलिया बेलिरिका के नाम से भी जाना जाता है, आयुर्वेदिक नेत्र उपचार में आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली एक और जड़ी बूटी है। यह दृष्टि में सुधार सहित कई स्वास्थ्य लाभ प्रदान कर सकती है। विभीतकी एंटीऑक्सिडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी यौगिकों से भरपूर है जो आंखों को ऑक्सीडेटिव तनाव और सूजन दोनों से बचाने में मदद कर सकते हैं। यह आंखों में रक्त परिसंचरण में सुधार कर सकता है और अंतःस्रावी दबाव को कम कर सकता है। विभीतकी का उपयोग अक्सर आयुर्वेदिक आई ड्रॉप्स में किया जाता है, जो दृष्टि में सुधार, आंखों की थकान को कम करने और आंखों के सूखेपन और जलन को दूर करने में मदद कर सकता है।

6.बिलबेरी : बिलबेरी, जिसे वैक्सीनियम मायर्टिलस के नाम से भी जाना जाता है, ब्लूबेरी जैसा एक छोटा फल है। एंथोसायनोसाइड्स की उच्च सामग्री के कारण यह आयुर्वेदिक नेत्र उपचार में एक लोकप्रिय घटक है, जो शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट हैं जो आंखों को ऑक्सीडेटिव तनाव और सूजन से बचाने में मदद कर सकते हैं। बिलबेरी आंखों में रक्त परिसंचरण में सुधार कर सकती है, रक्त वाहिकाओं को मजबूत कर सकती है और रात की दृष्टि में सुधार कर सकती है। इसका उपयोग अक्सर आयुर्वेदिक आई ड्रॉप और सप्लीमेंट्स में किया जाता है, जो दृष्टि में सुधार, आंखों की थकान को कम करने और सूखापन और जलन से राहत दिलाने में मदद कर सकते हैं।

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आप जान सकते है दालचीनी के फायदे और नुकसान


दालचीनी एक अद्भुत मसाला है जिसका उपयोग सदियों से औषधीय और पाक विधियों में किया जाता रहा है। अगर दालचीनी के फायदे जितने गिनाए जाए कम ही लगेंगे। यह न केवल खाने का स्वाद बढ़ाती है बल्कि विभिन्न बीमारियों को रोकने और उनका इलाज करने में भी मदद करती है। आज के इस ब्लॉग में हम दालचीनी के फायदे और इसके दुष्प्रभावों पर विस्तृत जानकारी देंगे ताकि आप इसका उपयोग सही तरीके से कर सकें।       &nbsp... Read More

दालचीनी एक अद्भुत मसाला है जिसका उपयोग सदियों से औषधीय और पाक विधियों में किया जाता रहा है। अगर दालचीनी के फायदे जितने गिनाए जाए कम ही लगेंगे। यह न केवल खाने का स्वाद बढ़ाती है बल्कि विभिन्न बीमारियों को रोकने और उनका इलाज करने में भी मदद करती है। आज के इस ब्लॉग में हम दालचीनी के फायदे और इसके दुष्प्रभावों पर विस्तृत जानकारी देंगे ताकि आप इसका उपयोग सही तरीके से कर सकें।

             

दालचीनी क्या है?

दालचीनी जिसे अंग्रेजी में सिनमन (cinnamon) कहा जाता है, एक सुगंधित मसाला है जो मुख्य रूप से पेड़ की छाल से प्राप्त होती है। इसका उपयोग भारतीय भोजन में स्वाद और सुगंध बढ़ाने के लिए किया जाता है। दालचीनी का पेड़ मुख्य रूप से श्रीलंका, भारत, चीन और दक्षिण पूर्व एशिया में पाया जाता है। इसे तेल, पाउडर और छाल के रूप में उपयोग किया जाता है। इसके औषधीय गुण इसे एक प्राकृतिक उपचार के रूप में इस्तेमाल करने में मदद करते हैं। आयुर्वेद और पारंपरिक चीनी चिकित्सा में दालचीनी का उपयोग अनेक स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान के लिए किया जाता है।  

दालचीनी के स्वास्थ्य लाभ

दालचीनी के स्वास्थ्य लाभ कई हैं जो इसे एक बेहतरीन घरेलू उपचार बनाते हैं। मुख्यतः दालचीनी के फायदे मधुमेह नियंत्रण, वजन घटाने, हृदय रोगों में, सर्दी और खांसी और मासिक धर्म में राहत प्रदान करने जैसी समस्याओं के लिए होता है।

 

1. दस्त पर रोक लगाने के लिए दालचीनी का उपयोग

दालचीनी में प्राकृतिक एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं जो पेट के बैक्टीरिया को मारने में मदद करते हैं। दस्त के दौरान दालचीनी का सेवन शरीर में पानी की कमी को दूर करता है और पेट की ऐंठन को कम करता है। एक गिलास गर्म पानी में एक चुटकी दालचीनी पाउडर मिलाकर पीने से दस्त में राहत मिलती है।

2. आमाशय विकार में दालचीनी का प्रयोग 

दालचीनी पाचन तंत्र को बेहतर बनाती है और गैस्ट्रिक समस्याओं से राहत देती है। अगर आपको पेट की गैस, एसिडिटी या पाचन संबंधी अन्य समस्याएं हो रही हैं तो दालचीनी आपके लिए बेहद फायदेमंद साबित हो सकती है। इसे चाय या गर्म पानी के साथ लेने से पेट की परेशानियों में राहत मिलती है।

3. आंतों के रोग में दालचीनी के सेवन से फायदा 

दालचीनी आंतों की सूजन को कम करने और उन्हें स्वस्थ रखने में सहायक होती है। इसमें पाए जाने वाले एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण आंतों के संक्रमण से बचाव करते हैं। आंतों के रोगों जैसे अल्सर और इन्फ्लेमेटरी बाउल डिसऑर्डर (IBD) में भी दालचीनी का सेवन फायदेमंद होता है।

4. प्रसव के बाद दालचीनी के सेवन से फायदा 

प्रसव के बाद महिलाओं को दालचीनी का सेवन करने की सलाह दी जाती है क्योंकि यह शरीर को फिर से ऊर्जा प्रदान करती है और प्रसव के बाद की थकान को दूर करने में सहायक होती है। इसके सेवन से शरीर को आवश्यक पोषण मिलता है और कमजोरी से राहत मिलती है।

5. त्वचा संबंधी रोगों में दालचीनी के फायदे

दालचीनी के जीवाणुरोधी (एन्टी-बैक्टीरियल) और सूजनरोधी (एन्टी-इंफ्लेमेटरी) गुण त्वचा की समस्याओं को दूर करने में मदद करते हैं। इसे त्वचा पर लगाने से संक्रमण, फंगल इन्फेक्शन और मुंहासों में राहत मिलती है। आप दालचीनी पाउडर को शहद के साथ मिलाकर फेस मास्क के रूप में भी उपयोग कर सकते हैं जिससे त्वचा साफ और दमकती हुई नजर आएगी।

6. दालचीनी के सेवन से बुखार में लाभ 

अगर आपको बुखार हो तो दालचीनी का काढ़ा बनाकर पीने से बुखार में राहत मिलती है। इसके सेवन से शरीर का तापमान सामान्य होता है और बुखार से जल्दी छुटकारा मिलता है। इसके एन्टी-बैक्टीरियल गुण बुखार के कारण होने वाले संक्रमण को दूर करने में मदद करते हैं।

7. बहरेपन की समस्या में दालचीनी से लाभ 

कुछ पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों में दालचीनी का उपयोग बहरेपन की समस्या के इलाज के लिए किया जाता है। इसका सेवन कान की नसों को मजबूत करता है और सुनने की क्षमता में सुधार करता है। हालांकि, इसे उपयोग करने से पहले डॉक्टर की सलाह लेना आवश्यक है।

8. दालचीनी का उपयोग कर रक्तस्राव पर रोक

दालचीनी रक्त को जमाने में सहायक होती है जिससे चोट या घाव होने पर रक्तस्राव को रोका जा सकता है। इसका सेवन रक्त में प्लेटलेट्स की संख्या को बढ़ाता है और चोट को जल्दी ठीक करने में मदद करता है।

9. साइनस में दालचीनी से फायदा

साइनस की समस्या में दालचीनी का सेवन काफी फायदेमंद होता है। यह साइनस की सूजन और दर्द को कम करने में मदद करती है। इसका काढ़ा बनाकर पीने से नाक की बंदी और सिरदर्द में भी राहत मिलती है।

10. टीबी में दालचीनी से लाभ

दालचीनी का सेवन टीबी रोगियों के लिए भी फायदेमंद साबित हो सकता है। इसके एन्टी-इंफ्लेमेटरी गुण टीबी के लक्षणों को कम करने में मदद करते हैं। हालांकि, टीबी के इलाज के लिए डॉक्टर की सलाह और उपचार आवश्यक है।

11. गठिया में फायदेमंद दालचीनी का उपयोग 

दालचीनी के एन्टी-इंफ्लेमेटरी गुण गठिया के दर्द और सूजन को कम करने में सहायक होते हैं। इसका नियमित सेवन जोड़ों के दर्द को कम करता है और गठिया के लक्षणों में सुधार करता है। दालचीनी का तेल भी दर्द के प्रभावित क्षेत्रों पर मालिश के लिए उपयोग किया जा सकता है।

दालचीनी का उपयोग कैसे करें?

चाय में मिलाकर: दालचीनी की चाय का सेवन करने से स्वास्थ्य में सुधार होता है।

काढ़ा बनाकर: दालचीनी का काढ़ा सर्दी, खांसी और बुखार में फायदेमंद होता है।

खाने में मसाले के रूप में: इसे सब्जियों और दालों में स्वाद बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करें।

दालचीनी पाउडर का सेवन: इसे शहद या दूध के साथ मिलाकर ले सकते हैं।

त्वचा पर लेप बनाकर: दालचीनी और शहद का पेस्ट बनाकर त्वचा पर लगाएं।

दालचीनी के नुकसान

हालांकि दालचीनी के कई स्वास्थ्य लाभ हैं लेकिन इसका अत्यधिक सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। दालचीनी के नुकसान निम्नलिखित हैं: 

 

1.लीवर को नुकसान: दालचीनी में कुमारिन नामक तत्व होता है जो लीवर को नुकसान पहुंचा सकता है अगर इसका अधिक सेवन किया जाए।

2.एलर्जी: कुछ लोगों को दालचीनी से एलर्जी हो सकती है जिससे त्वचा पर जलन, सूजन या खुजली हो सकती है।

3.गर्भवती महिलाओं के लिए हानिकारक: गर्भवती महिलाओं को दालचीनी का अत्यधिक सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि यह गर्भाशय के संकुचन को उत्तेजित कर सकता है।

4.रक्त में शर्करा असंतुलन: अधिक मात्रा में दालचीनी का सेवन रक्त शर्करा के स्तर को असंतुलित कर सकता है।

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आपको हैरान कर देंगे अदरक से होने वाले 6 नुकसान जानें किन लोगों को नहीं करना चाहिए इसका ज्यादा सेवन


सच है कि अदरक के बिना चाय ही नहीं, बल्कि कई डिशेज का जायका अधूरा-सा रहता है, लेकिन एक सच ये भी है कि इसकी ज्यादा मात्रा कुछ लोगों के लिए मुसीबत की वजह बन सकती है। इस आर्टिकल में हम आपको अदरक के कुछ ऐसे ही साइड इफेक्ट्स  और उनसे बचने के उपायों के बारे में बताएंगे, जिन्हें जानना आपके लिए बेहद जरूरी है।              अदरक के नुकसान  नुकसानदायक भी हो सकती है... Read More

सच है कि अदरक के बिना चाय ही नहीं, बल्कि कई डिशेज का जायका अधूरा-सा रहता है, लेकिन एक सच ये भी है कि इसकी ज्यादा मात्रा कुछ लोगों के लिए मुसीबत की वजह बन सकती है। इस आर्टिकल में हम आपको अदरक के कुछ ऐसे ही साइड इफेक्ट्स  और उनसे बचने के उपायों के बारे में बताएंगे, जिन्हें जानना आपके लिए बेहद जरूरी है।

            

अदरक के नुकसान 

नुकसानदायक भी हो सकती है अदरक मतली और उल्टी

आमतौर पर अदरक का सेवन उल्टी और मतली को कम करने के लिए असरदार माना जाता है, लेकिन कुछ लोगों में इसका उल्टा असर भी पड़ सकता है। ज्यादा मात्रा में अदरक खाने से उल्टी-दस्त की शिकायत हो सकती है।

मुंह में जलन

अदरक में कैप्साइसिन नामक तत्व भी पाया जाता है, बता दें कि यही कंपाउंड मिर्च में भी मौजूद होता है। ऐसे में, अगर आप भी खानपान में ज्यादा मात्रा में अदरक का सेवन कर रहे हैं, तो इससे मुंह में जलन की समस्या भी हो सकती है।

दस्त की समस्या

खाने-पीने की चीजों में ज्यादा अदरक शामिल करने से दस्त की परेशानी भी हो सकती है। यही वजह है कि कब्ज की समस्या में इसके सेवन की सलाह दी जाती है।

त्वचा की जलन

अदरक के तेल में कुछ ऐसे रसायन होते हैं जो कुछ लोगों की त्वचा को परेशान कर सकते हैं। जिंजर ऑयल को सीधे त्वचा पर लगाने से त्वचा में जलन, लालिमा या खुजली की शिकायत हो सकती है।

दवाओं के साथ साइड इफेक्ट

कुछ दवाओं के साथ मिलकर अदरक पाचन तंत्र से जुड़ी समस्याएं भी दे सकती है। अगर आप रेगुलर कोई दवा ले रहे हैं, तो अदरक का सेवन करने से पहले अपने डॉक्टर से सलाह लेना भी जरूरी है।

रक्त को पतला करे

अदरक में शामिल कुछ कंपाउंड शरीर में रक्त के थक्के बनने से रोकते हैं, लेकिन अगर आप रक्त को पतला करने वाली दवाएं ले रहे हैं, तो भी अदरक का सेवन करने से पहले आपको डॉक्टर से परामर्श कर लेना चाहिए।

अदरक के साइड इफेक्ट्स से बचने के तरीके

अदरक का सेवन सीमित मात्रा में करें। ज्यादा मात्रा में अदरक खाने से इससे होने वाले साइड इफेक्ट्स का खतरा बढ़ जाता है।

जिंजर ऑयल को सीधे त्वचा पर लगाने से जलन हो सकती है। अगर आपको अदरक के तेल का इस्तेमाल करना भी है, तो इसे नारियल तेल या बादाम के तेल में मिलाकर ही यूज करें।

गर्भवती या स्तनपान कराने वाली महिलाओं को अदरक का सेवन करने से पहले अपने डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।

अगर आप नियमित रूप से कोई दवा ले रहे हैं, तो भी डॉक्टर से परामर्श जरूर लें।

 

अगर सीमित मात्रा में सेवन किया जाए, तो अदरक एक असरदार जड़ी-बूटी है जो आपको सर्दी-जुकाम से लेकर कई छोटी-बड़ी बीमारियों से बचा सकती है, लेकिन अदरक का सेवन करने से पहले इससे जुड़े साइड इफेक्ट्स के बारे में जागरूक होना और जरूरी सावधानी बरतना भी काफी ज्यादा जरूरी है।

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आप जानकर हैरान हो जाएंगे ब्राह्मी के फायदे और नुकसान


ये है ब्राह्मी के फायदे और नुकसान  ब्राह्मी, भारत की प्राचीन जड़ी बूटी है। इसे तंत्रिका तंत्र और दिमाग तेज करने वाले औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है। आयुर्वेदिक उपचार में ब्राह्मी को मेध्‍यरसायन का नाम दिया गया है एवं इसका अर्थ है नसों के लिए शक्‍तिवर्द्धक के रूप में कार्य करने वाली तथा पुनर्जीवित करने वाले तत्‍व से युक्‍त। ब्राह्मी ने तनाव को कम करने वाले तत्‍व के रूप में... Read More

ये है ब्राह्मी के फायदे और नुकसान 

ब्राह्मी, भारत की प्राचीन जड़ी बूटी है। इसे तंत्रिका तंत्र और दिमाग तेज करने वाले औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है। आयुर्वेदिक उपचार में ब्राह्मी को मेध्‍यरसायन का नाम दिया गया है एवं इसका अर्थ है नसों के लिए शक्‍तिवर्द्धक के रूप में कार्य करने वाली तथा पुनर्जीवित करने वाले तत्‍व से युक्‍त।

ब्राह्मी ने तनाव को कम करने वाले तत्‍व के रूप में बहुत लोकप्रियता हासिल की है। पिछले 3000 वर्षों से भारतीय पारंपरिक औषधियों में ब्राह्मी का इस्‍तेमाल किया जा रहा है। भारत के प्राचीन ग्रंथों चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में भी इस जड़ी बूटी का उल्‍लेख किया गया है। सुश्रुत संहिता में ब्राह्मी घृत और ब्राह्मी को ऊर्जा प्रदान करने वाली बताया गया है।

 

आपको जानकर आश्‍चर्य होगा कि ब्राह्मी शब्‍द ब्राह्माण या हिंदू देवता ब्रह्मा से लिया गया है। इसलिए ब्राह्मी का मतलब है ब्रह्मा की शक्‍ति। ब्राह्मी तंत्रिका तंत्र को शक्‍ति देती है। ब्राह्मी का पौधा रसीला होता है। ये जमीन पर फैला होता है और इसमें अत्‍यधिक पानी को संग्रहित करने की क्षमता होती है। ब्राह्मी के फूल सफेद, गुलाबी और नीले रंग के होते हैं।

ब्राह्मी खाने का सही समय -

ब्राह्मी का सेवन दिन में 3 बार कर सकते हैं। सुबह, दोपहर और रात को खाने के बाद ब्राह्मी का सेवन किया जा सकता है।

ब्राह्मी इस्तेमाल करने के तरीके -

ब्राह्मी का तेल त्वचा पर लगाया जाता है। सिर पर भी इसके तेल से मसाज की जाती है जो दिमाग के तेज बनाने में भी मदद करता है।

ब्राह्मी का पेस्ट बनाकर उसे त्वचा पर लगाया जा सकता है। इससे त्वचा स्वस्थ रहेगी।

ब्राह्मी टैबलेट के रूप में भी खाई जाती है।

ब्राह्मी का पाउडर कई स्वास्थ लाभ प्रदान करता है।

ब्राह्मी के नुकसान -

किसी भी हर्बल पूरक का लंबे समय तक इस्तेमाल आमतौर पर अच्छा नहीं होता है, और यही ब्राह्मी पर भी लागू होता है। नियमित रूप से 12 हफ्तों से अधिक इसका इस्तेमाल करना ठीक नहीं माना जाता है, इसलिए जब आपको इसकी ज़रूरत हो तभी यह इस्तेमाल किया जाना चाहिए जैसे किसी लक्षण या बीमारी को कम करने के लिए।

इसके अलावा आपको डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए यदि इसका सेवन करने से आप दमा, मूत्र मार्ग में संक्रमण, कम हृदय गति या हाइपरग्लेसिमिया से ग्रस्त होते हैं। यदि दिल की दर (bradycardia) मंदी है तो इसके उपयोग से बचें।

जिन लोगों का पेट संवेदनशील है या जिन्हें अल्सर है, उन्हें शायद इसका सेवन अच्छी तरह से बर्दाश्त ना हो। उन्हें यह घी के साथ ही लेनी चाहिए।

ब्राह्मी के फायदे -

ब्राह्मी का उपयोग तनाव से राहत दिलाये -

तनाव और चिंता से राहत देने के लिए, ब्राह्मी पौधे की पत्तियों (केवल एक समय में 2-3) को चबाया जा सकता है। ब्राह्मी में कुछ सक्रिय तत्व होते हैं, जो हमारे शरीर के हार्मोनल संतुलन पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं, जिसके फलस्वरूप तनाव और चिंता, पारंपरिक दवा के दुष्प्रभावों आदि से बचा जा सकता है। ब्राह्मी कोर्टिसोल के स्तर को कम करके तनाव और चिंता को खत्म करने में मदद करती है। कोर्टिसोल को तनाव हार्मोन के रूप में जाना जाता है। ब्राह्मी तनाव से जुड़े हार्मोन को विनियमित करके तनाव के प्रभावों को कम करती है।

ब्राह्मी बेनिफिट्स पाचन तंत्र को बनाये स्वस्थ -

ब्राह्मी एक शामक और सुखदायक जड़ी बूटी है, साथ ही इसमें सूजन विरोधी गुण भी हैं, ब्राह्मी अल्सर जैसे जठरांत्र विकारों से राहत प्रदान करने में मदद दिला सकती है।

ब्राह्मी करती है मधुमेह के खतरे को कम -

कुछ शोध अध्ययन में, ब्राह्मी को बढ़े हुए रक्त शर्करा के स्तर के साथ जोड़ा गया है इसलिए ब्राह्मी हाइपोग्लाइसीमिया (आम तौर पर असामान्य रूप से कम रक्त शर्करा) में सुधार करने के लिए सक्षम होती है और आपको एक सामान्य, स्वस्थ जीवन जीने में मदद करती है। 

ब्राह्मी का उपयोग करें त्वचा और बालों के लिए -

यदि आप घाव भरने में तेजी लाने चाहते हैं और उसी समय त्वचा शुद्ध करना चाहते हैं, तो प्रभावित क्षेत्र पर ब्राह्मी का रस या तेल लगाएं। यह त्वचा पर निशान को कम करते हैं और त्वचा को चिकनी और स्वस्थ बनाते हैं।

रूखे बालों का इलाज करने और बालों के झड़ने को रोकने के लिए ब्रह्मी का तेल बहुत अच्छा है। इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट घटक न केवल आपके बालों के रूखेपन को ठीक करते हैं बल्कि यह आपके बालों को स्वस्थ बनाने में भी मदद करती है। ब्राह्मी बालों की समस्याओं के इलाज के लिए काफी फायदेमंद है। 

मिर्गी के इलाज में फायदेमंद है ब्राह्मी -

ग्लूटामेट  और डोपामाइ के स्तर में हुए परिवर्तन के कारण मिर्गी का रोग होता है। इन न्यूरोट्रांसमीटरों को विनियमित करके, ब्राह्मी मिर्गी के कारण हुई सूजन को कम करने में मदद कर सकती है। ब्राह्मी की पत्तियां हज़ारों सालों से मिर्गी के इलाज के रूप में इस्तेमाल की जा रही है। यह मिरगी के दौरे को रोकती है, साथ ही मानसिक रोग के अन्य रूपों और नसों के दर्द सहित द्विध्रुवी विकारो को रोकने में मदद करती है। यह कहा जाता है कि ब्राह्मी स्मृति की कमी में सुधार करने के साथ मिर्गी के इलाज में भी उपयोग की जा सकती है।

ब्राह्मी के लाभ इम्यून सिस्टम को दे बढ़ावा -

ब्राह्मी का नियमित रूप से उपयोग आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में मदद कर सकता है। इसमें मौजूद विभिन्न एंटीऑक्सीडेंट और पोषक तत्व हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को अनेक बीमारियों से लड़ने में मदद करते हैं। ब्राह्मी का किसी भी रूप जैसे चाय या सम्पूर्ण पत्ते आदि में सेवन किया जाए। तो यह प्रतिरक्षा प्रणाली को काफी हद तक बढ़ाने में मदद करती है। इसके एंटीऑक्सीडेंट यौगिक वायरस या जीवाणु संक्रमण के खिलाफ हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली की प्रतिक्रिया का समय बढ़ाने के लिए होते हैं।

ब्राह्मी के पत्तों से सूजन का घरेलू उपचार -

ब्राह्मी प्रोस्टाग्लैंडिन  के उत्पादन को कम करके सूजन और दर्द से राहत देती है। जब ब्राह्मी पौधे की पत्तियों को शरीर के प्रभावित हिस्से पर मला जाता है, तब इसमें मौज़ूद यौगिक सूजन को कम और जलन को दूर करते हैं, साथ ही शरीर के अंदर हो रही उत्तेजना को खत्म करते हैं। यह गठिया और अन्य सूजन-संबंधी रोगो से पीड़ित लोगों के लिए आदर्श हैं। कुछ रिसर्च का कहना है कि दर्द को कम करने में ब्राह्मी मोर्फ़िन की तरह प्रभावी हो सकती है लेकिन इसके कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं होते हैं। इसका उपयोग पीठ दर्द, मांसपेशियों में दर्द और यहां तक कि सिरदर्द से छुटकारा पाने के लिए भी किया जा सकता है। ब्राह्मी के तेल से प्रभावित क्षेत्र में मसाज करने से भी राहत मिल सकती है।

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दिमाग को शांत रखती हैं ये आयुर्वेदिक औषधियां तनाव दूर करने के लिए भी करें इनका सेवन


दिमाग को शांत रखती हैं ये आयुर्वेदिक औषधियां, तनाव दूर करने के लिए भी करें इनका सेवन आज के दौर की जीवनशैली में तनाव और चिंता के कई कारण होते हैं। हर कोई कभी न कभी इसकी वजह से परेशान जरूर रहता है। ऐसे में उसे कुछ समझ नहीं आता कि क्या किया जाए। डिप्रेशन से बचने के लिए बाजार में कई तरह की दवाएं मौजूद हैं। इसके साथ ही साथ कई तरह के ध्यान और व्यायाम भी तनाव और चिंता को दूर करने में कारगर होते हैं। लेकि... Read More

दिमाग को शांत रखती हैं ये आयुर्वेदिक औषधियां, तनाव दूर करने के लिए भी करें इनका सेवन

आज के दौर की जीवनशैली में तनाव और चिंता के कई कारण होते हैं। हर कोई कभी न कभी इसकी वजह से परेशान जरूर रहता है। ऐसे में उसे कुछ समझ नहीं आता कि क्या किया जाए। डिप्रेशन से बचने के लिए बाजार में कई तरह की दवाएं मौजूद हैं। इसके साथ ही साथ कई तरह के ध्यान और व्यायाम भी तनाव और चिंता को दूर करने में कारगर होते हैं। लेकिन आज हम आपको आयुर्वेद के कुछ ऐसे नुस्खों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनका इस्तेमाल कर आप तनाव से काफी हद तक छुटकारा पा सकते हैं।

डिप्रेशन हमारे शरीर को कई तरीकों से नुकसान पहुंचाता है। इसकी वजह से शरीर में पित्त, कफ और वात का असंतुलन हो जाता है। इसके अलावा एलर्जी, अस्थमा, हाई कोलेस्ट्रॉल और हाइपरटेंशन जैसी समस्याएं डिप्रेशन की वजह से जन्म लेती हैं। कुछ आयुर्वेदिक औषधियों के सेवन से तनाव से आसानी से छुटकारा पाया जा सकता है। तो आइए, जानते हैं कि ऐसी कौन सी हर्बल युक्तियां हैं जो तनाव भगाने का काम करती हैं-

ब्राह्मी – ब्राह्मी तनाव पैदा करने वाले हार्मोन कोर्टिसोल को कम करने का काम करता है। यह तनाव के प्रभावों पर प्रतिक्रियात्मक कारवाई करने के लिए भी जाना जाता है। ब्राह्मी दिमाग को शांत रखने के साथ-साथ एकाग्रता बढ़ाने में भी काफी मददगार है।

भृंगराज – भृंगराज चाय दिमाग को निरंतर एनर्जी देने का काम करती है। इससे मस्तिष्क में रक्त प्रवाह दुरुस्त रहता है। यह दिमाग को शांत तो रखता ही है, साथ ही साथ पूरे शरीर को भी काफी आराम पहुंचाता है।

जटामासी – जटामासी एंटी स्ट्रेस हर्ब के रुप में काफी लोकप्रिय है। तनाव भगाने के लिए जटामासी की जड़ों का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। यह जड़ें हमारे दिमाग और शरीर को टॉक्सिन्स से मुक्त बनाती हैं। तथा ब्रेन फंक्शन्स को दुरुस्त रखने में काफी मदद करती हैं।

अश्वगंधा – अश्वगंधा एमीनो एसिड्स और विटामिन का बेहतरीन संयोजन है। यह दिमाग में एनर्जी को बूस्ट करने तथा स्टेमिना मजबूत करने में काफी मदद करता है।

इन आर्युवेदिक औषधियो के बारे मे और जानकारी प्राप्त करने के लिए आप देख सकते है आगे के ब्लॉग 

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जाने क्या है अशोक के पेड़ के फायदे और दुष्प्रभाव


अशोक के पेड़ के फायदे और दुष्प्रभाव हमारे आसपास मौजूद पेड़ हमारे जीवन में अहम योगदान निभाते हैं। ये न केवल पर्यावरण को शुद्ध रखने में मदद करते हैं बल्कि हमारे स्वास्थ्य की देखभाल करने में भी कारगर है, इसका मुख्य कारण है इन पेड़ों में पाए जाने वाले पौष्टिक तत्व। ऐसा ही एक पेड़ है अशोक का पेड़, जो अपने पौष्टिक तत्वों की वजह से कई बीमारियों का इलाज करने की क्षमता रखता है। तो चलिए जानते हैं कि अशोक के पेड़... Read More

अशोक के पेड़ के फायदे और दुष्प्रभाव

हमारे आसपास मौजूद पेड़ हमारे जीवन में अहम योगदान निभाते हैं। ये न केवल पर्यावरण को शुद्ध रखने में मदद करते हैं बल्कि हमारे स्वास्थ्य की देखभाल करने में भी कारगर है, इसका मुख्य कारण है इन पेड़ों में पाए जाने वाले पौष्टिक तत्व। ऐसा ही एक पेड़ है अशोक का पेड़, जो अपने पौष्टिक तत्वों की वजह से कई बीमारियों का इलाज करने की क्षमता रखता है। तो चलिए जानते हैं कि अशोक के पेड़ में क्या-क्या खूबियां हैं। इसे साथ ही हम इसके उपयोग और दुष्प्रभाव पर भी बात करेंगे। पहले जानते हैं कि अशोक का पेड़ कहते किसे है।

किसे कहते हैं अशोक का पेड़

दरअसल, कई औषधीय लाभों से परिपूर्ण अशोक का पेड़ 25 से 30 फिट तक ऊंचा होता है। इसका तना भूरे रंग का होता है और पत्तियां 9 इंच लम्बी गोल व नोंकदार होती हैं। इस पेड़ का वैज्ञानिक नाम सरका इंडिका है जो लेगुमिनोसे परिवार और कोसलपिनिया उपपरिवार का हिस्सा है। यह पेड़ पूरे भारत में पाया जाता है। हिन्दू धर्म के अनुसार भी इस पेड़ का बहुत महत्व है। इसके पीछे की वजह इसका नाम है, दरअसल, अशोक शब्द का संस्कृत संस्कृत में 'अशोक' शब्द का अर्थ है 'कोई शोक नहीं' से इसे शोक को हरने वाला पेड़ माना जाता है। लोगों का मानना है कि यह पेड़ जिस जगह पर भी उगता है, वहाँ पर सभी कार्य पूर्णतः निर्बाध रूप से सम्पन्न होते चले जाते हैं।

अशोक के पेड़ के प्रकार

अशोक के पेड़ दो तरह के होते हैं, जिसमे एक का इस्तेमाल घरो में सजावट और दूसरे को आयुर्वेदिक दवाइयों में इस्तेमाल किया जाता है। ये प्रकार निम्नलिखित हैं-

 

असली अशोक का पेड़- असली अशोक के वृक्ष को लैटिन भाषा में 'जोनेसिया अशोका' कहते हैं। आम के पेड़ की तरह ही इसका पेड़ भी छायादाय होता है। असली अशोक के पेड़ की पत्तियों की लम्बाई 8 से 9 इंच होती है, जबकि इसकी चौड़ाई दो से ढाई इंच होती है। इसके पत्तों का रंग शुरुआत में ताम्बे की तरह होता है, इसलिए इसे ताम्रपल्लव भी कहा जाता है। वसंत ऋतु में इसमें नारंगी रंग के फूल होते हैं, जो बाद में सुनहरे लाल रंग के हो जाते हैं, इसी वजह से इन्हे हेमपुष्पा नाम से भी जाना जाता है।

नकली अशोक का पेड़- नकली अशोक के पेड़ और असली अशोक के पेड़ में कई अंतर हैं। इसके पत्ते आम के पत्तों की तरह होते हैं। इसके फूल सफ़ेद, पीले रंग के और फल लाल रंग के होते हैं। यह देवदार जाति का पेड़ होता है। हालांकि इस पेड़ में औषधीय गुण नहीं पाए जाते हैं।

अशोक के पेड़ के फायदे

अशोक के पेड़ के फायदे निम्नलिखित हैं

मुँहासे के इलाज में मददगार

अशोक के पेड़ की छाल फोड़े और मुंहासों को ठीक करने में फायदेमंद है। इसकी छाल को उबालकर पहले गाढ़ा काढ़ा बना लें और फिर ठंडा होने पर सरसो के तेल के साथ मिलाकर लगाने से लाभकारी प्रभाव प्राप्त होते हैं।

बुद्धि में सुधार करने में मिलती है मदद

अशोक के पेड़ के उत्पादों के नियमित सेवन करने से बुद्धि प्रबल होती है। इसके लिए अशोक की छाल और ब्राह्मी पाउडर को बराबर मात्रा में मिलाकर प्राप्त मिश्रण का सेवन करना है। रोजाना 1 चम्मच मिश्रण को दो बार एक कप दूध के साथ सेवन करना है।

त्वचा की देखभाल में सहायक

अशोक के पेड़ से प्राप्त जड़ी-बूटियों का सेवन हमारी त्वचा के लिए लाभदायक है। दरअसल, इन जड़ी-बूटियों से रक्त से विषाक्त पदार्थों को निकालने में मदद मिलती है, जिससे रक्त शुद्ध होता है और एलर्जी जैसे अन्य त्वचा विकारों की शुरुआत को रोकने में मदद मिलती है। इसके अलावा अशोक के पेड़ के अर्क का उपयोग करके जलन और त्वचा की जलन का भी इलाज किया जा सकता है।

पेट की सूजन और अन्य सूजन से निपटता है

अशोक के पेड़ की छाल या पत्तियों का सेवन करने पर पेट से कीड़े निकालने में मदद मिलती है और इस तरह दर्द और सूजन से राहत मिलती है। अशोक के पेड़ की छाल में एंटी-फंगल, एंटी-बैक्टीरियल और दर्द निवारक गुण भी होते हैं। अशोक का पेड़ आंतरिक और बाहरी दोनों तरह की सूजन से लड़ने में मदद करता है और जलन से राहत देता है।

दर्द से राहत दिलाने में मदद करता है

अशोक के पेड़ के अर्क में एनाल्जेसिक गुण होते हैं और इसलिए दर्द से राहत दिलाने में मदद करते हैं। यदि आप अपने जोड़ों में दर्द का अनुभव कर रहे हैं, तो आप छाल का पेस्ट प्रभावित क्षेत्रों पर लगा सकते हैं और कुछ राहत का अनुभव कर सकते हैं।

बवासीर और मधुमेह के लिए लाभकारी

अशोक के पेड़ में लगने वाले फूल मधुमेह पीड़ितों के लिए रामबाण इलाज साबित हो सकता है। दरअसल, इन फूलों को सुखाकर इससे मधुमेह का इलाज किया जा सकता है। इसके फूल रक्त शर्करा के स्तर की जांच करने में मदद करते हैं। इस अशोक के पेड़ से तैयार हर्बल सप्लीमेंट बवासीर के इलाज में मदद करते हैं। अशोक के पेड़ की छाल से तैयार काढ़ा आंतरिक बवासीर के इलाज में मदद करता है।

अशोक के पेड़ के उपयोग

चूंकि अशोक के पेड़ की छाल त्वचा के लिए काफी लाभकारी है, इस वजह से कई कॉस्मेटिक प्रोडक्ट बनाने में इसका इस्तेमाल किया जाता है, जो सौंदर्य प्रसाधन के रूप में हमारी त्वचा को लाभ पहुंचाते हैं। इस पेड़ की छाल बिच्छू के काटने पर मारक के रूप में भी काम करता है। इसके अलावा पेड़ के सूखे फूल भी मधुमेह रोगियों के लिए फायदेमंद होते हैं। इस वजह से कई प्रकार की औषधियों में भी अशोक के पेड़ का प्रयोग किया जाता है।

 

डॉक्टर की सलाह पर हम विभिन्न रूप से अशोक के पेड़ से प्राप्त जड़ी-बूटियों का उपयोग कर सकते हैं।

इसके नरम पत्तों का काढ़ा बनाकर प्रतिदिन दो चम्मच सेवन।

छाल का बारीक पाउडर बनाकर एक चम्मच प्रतिदिन सेवन।

इसके बीज का पाउडर बनाकर आधा चम्मच प्रतिदिन सेवन।

सूजन के इलाज के लिए पत्तों और फूलों से बने लेप का उपयोग।

इसके फूल, जड़, छाल और पत्तों का दो चम्मच मिश्रित जूस बनाकर आधा कप पानी के साथ सेवन।

अशोक के पेड़ के दुष्प्रभाव और एलर्जी

हालांकि अशोक के पेड़ के कई स्वास्थ्य लाभ हैं, लेकिन इसके दुष्प्रभाव भी हैं। इसलिए गर्भवती महिलाओं को इस पेड़ के उत्पादों का सेवन करने से बचना चाहिए क्योंकि इससे जटिलताएं हो सकती हैं। जो लोग कुछ प्रकार के भोजन के प्रति संवेदनशील हैं, उन्हें इस पेड़ के उत्पादों का सेवन करने से पहले डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। इसके अलावा मासिक धर्म न होने की स्थिति में इसका सेवन स्थिति को और खराब कर सकता है। अगर आपको हाई ब्लडप्रेशर की समस्या है तब भी आपको डॉक्टर की सलाह पर ही इसका सेवन करना चाहिए।

अशोक वृक्ष की खेती

अशोक का पेड़ मुख्य रूप से भारतीय उपमहाद्वीप में पाया और उगाया जाता है। इसे भारत और मलेशिया का मूल निवासी बताया गया है। इस पेड़ की खेती के लिए सबसे अच्छा समय मई और जून के महीने को माना गया गया है। अशोक के पेड़ों को बड़े पैमाने पर बीजों के साथ फैलाना मुश्किल है, इसलिए ज्यादातर इसके कलम की मदद से यह पेड़ लगाए जाते हैं। इसकी कलम लगाने से पहले इसे लिए मिट्टी तैयार करना जरुरी होता है।

 

इसके लिए मिट्टी में थोड़ा नीमखली और गोबर की खाद को डालना होता है। फिर गमले के ऊपर रेत के परत लगानई होती है, जिससे गमले में पानी को रोका जा सके, इससे कलम के ख़राब होने की शंका कम हो जाती है। कलम हमेशा 4 से 5 इंच वाली ही हो। कलम लगाने से पहले पत्तो की छटाई कर दे।

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अगर आप नहीं जानते चंदन के इतने फायदों के बारे में तो अभी जान ले क्योंकि यह बहुत फायदेमंद है


चंदन का परिचय आपने चंदन के पेड़ को कभी देखा है? अगर नहीं देखा है, तो कभी ना कभी यह जरूर सुना होगा कि, चंदन नाम का एक पेड़ होता है, जो बहुत ही सुगंधित होता है। कई लोग चंदन की लकड़ियों का इस्तेमाल अपने घरों को सजाने के लिए करते हैं। चंदन की लकड़ियों से पूजा-पाठ के सामान जैसे- अगरबत्ती, हवन सामग्री आदि भी बनाएं जाते हैं। चंदन की लकड़ी महंगी होती है, इसलिए इसकी तस्करी भी की जाती है। असल में, लोगों को... Read More

चंदन का परिचय

आपने चंदन के पेड़ को कभी देखा है? अगर नहीं देखा है, तो कभी ना कभी यह जरूर सुना होगा कि, चंदन नाम का एक पेड़ होता है, जो बहुत ही सुगंधित होता है। कई लोग चंदन की लकड़ियों का इस्तेमाल अपने घरों को सजाने के लिए करते हैं। चंदन की लकड़ियों से पूजा-पाठ के सामान जैसे- अगरबत्ती, हवन सामग्री आदि भी बनाएं जाते हैं। चंदन की लकड़ी महंगी होती है, इसलिए इसकी तस्करी भी की जाती है।

असल में, लोगों को चंदन के पेड़ के बारे में केवल इतनी ही जानकारी होती है। अधिकांश लोगों को यह पता ही नहीं है कि, चंदन एक बहुत ही फायदेमंद जड़ी-बूटी भी है, और चन्दन का प्रयोग बहुत सालों से चिकित्सा के लिए किया जा रहा है। आइए जानते हैं कि चंदन के उपयोग से आप किस-किस बीमारी में लाभ ले सकते हैं।

चंदन क्या है?

चंदन एक जड़ी-बूटी है। सुगन्धित, तथा शीतल होने से यह लोगों को आनन्द प्रदान करता है, इसलिए इसे चन्दन कहते हैं। चंदन के वृक्ष हरे रंग के और 6 से 9 मीटर ऊंचे होते हैं। इसकी शाखाएं झुकी होती हैं। चंदन के पेड़ की छाल लाल  या भूरे, या फिर भूरे-काले रंग की होती है। चंदन के पत्ते अण्डाकार, मुलायम होते हैं, और पत्ते के आगे वाला भाग नुकीला होता है। चंदन के फूल भूरे-बैंगनी, या जामुनी रंग होते हैं, जो गंधहीन होते हैं। इसके फल गोलाकार, मांसल होते हैं, जो पकने पर शयामले, या बैंगनी रंग के हो जाते हैं। इसके बीज कठोर, अण्डाकार अथवा गोलाकार होते हैं।

चंदन के वृक्ष प्रायः 20 वर्ष के बाद ही बड़े होते हैं। पेड़ के भीतर का हिस्सा हल्का पीला रंग का, और सुगंधित होता है। पुराने वृक्षों  की छाल दरार युक्त होती है। चंदन का वृक्ष 40-60 वर्ष की आयु के बाद उत्तम सुगन्ध वाला हो जाता है। चंदन के वृक्ष में फूल जून से सितम्बर के बीच होते हैं, और फल नवम्बर से फरवरी तक होते हैं। ऐसी अवस्था में चंदन पूरी तरह से उपयोग करने लायक हो जाता है। चंदन के पेड़ की कुछ विशेषताएं ये हैंः-

० ​​उड़ीसा में पैदा होने वाला चंदन सबसे उत्तम होता है।

० भारत-यूनान (यवन देश) क्षेत्र में में पैदा होने वाला चंदन गुणवत्ता में थोड़ा कम होता है।

० पश्चिमी उत्तर प्रदेश आदि स्थानों में होने वाला चंदन सबसे कम गुणवत्ता वाला बताया गया है।

० गंध के हिसाब से उड़ीसा का चंदन सर्वोत्तम होता है।

आयुर्वेद के अनुसार, चंदन के पेड़ केवल एक तरह के नहीं होते। देश-विदेश में चंदन के पेड़ भिन्न-भिन्न तरह के पाये जाते हैं, जो ये हैंः-

 1.सबसे अच्छे चन्दन के लक्षण

जो चंदन बहुत ही अच्छी गुणवत्ता का होता है, वह दिखने में सफेद रंग का होता है, लेकिन जब उसके टुकड़े करते हैं, तो लाल रंग का होता है। इसे घिसने पर उससे पीला रंग जैसा पदार्थ निकलता है। इसका सुगंध थोड़ा तीखा होता है।

 2.वेट्ट चन्दन

यह चंदन बहुत अधिक ठंडा होता है। इससे प्रयोग से जलन, बुखार, उल्टी, कफ आदि बीमारियां ठीक की जा सकती है।

 3.पीतचन्दन

यह चंदन भी सुगंध में तीखा, और ठंडा होता है। यह कुष्ठ रोग, कफ, बुखार, जलन की परेशानी में फायदेमंद होता है। दाद, वात-विकार, विष, रक्तपित्त आदि में इस्तेमाल किया जाता है।

चंदन के फायदे

अब तक आपने जाना कि चंदन क्या है, कितने तरह का होता है।आइए अब जानते हैं कि चंदन का औषधीय प्रयोग कैसे किया जाता है, इसकी मात्रा क्या होनी चाहिए, और इसकी विधियां क्यां-क्या हैं? आप चंदन का फायदा इस तरह ले सकते हैंः-

अत्यधिक प्यास लगने की परेशानी में चंदन का इस्तेमाल

कुुछ लोगों को हमेशा प्यास लगी रहती है। वास्तव में यह एक समस्या है। ऐसे में 20-40 मिली नारियल जल में, 2-4 ग्राम चंदन के चूर्ण  को मिला लें। इसे पीने से प्यास खत्म हो जाती है।

अत्यधिक छींक की समस्या में चंदन का प्रयोग

महिलाओं या पुरुषों को कभी-कभी छींक की समस्या हो जाती है। ऐसे में चंदन, तथा धनिया की पत्ती को पीस लें। इसे सूंघने से छींक आनी बन्द हो जाती हैं।

हिचकी में चंदन के उपयोग से फायदा

हिचकी से परेशान रहते हैं, तो मसूर, पलाण्डु, अथवा गृंजनक, और श्वेत चंदन लें। इसे गाय के दूध के साथ घिस लें। इसे1-2 बूंद नाक में डालें। हिचकी बंद हो जाती है।

चंदन के प्रयोग से होती है सूजन कम

चंदन की लकड़ी को जल में घिसकर, तथा तने की छाल को पीसकर शरीर पर लगाएं। इससे सूजन ठीक होती है।

खुजली को ठीक करने के लिए चंदन का प्रयोग

चंदन के प्रयोग से आप खुजली की बीमारी ठीक कर सकते हैं। चंदन को जल के साथ घिसकर त्वचा पर लगाएं। इससे खुजली ठीक होती है।

चंदन के तेल में नींबू का रस, तथा कपूर मिला लें। इसे लगाने से खुजली ठीक हो जाती है।

मुंहासों की समस्या में चंदन से लाभ

मुंहासें होना एक आम समस्या है। महिलाएं हों या पुरुष, सभी मुंहासे से परेशान रहते हैं। इसके लिए आप चंदन की लकड़ी को घिस लें। इसे मुंह में लगाएं। इससे मुंहासे, और चेहरे की झाई आदि समस्या ठीक होती है।

चर्म रोग (त्वचा विकार) में फायदेमंद चंदन का उपयोग

त्वचा के अनेक विकार में चंदन के इस्तेमाल से फायदा लिया जा सकता है। चंदन की लकड़ी को जल में घिसकर लेप करने से त्वचा के अनेक विकार ठीक होते हैं।

त्वचा पर चकत्ते हो जाने पर 2-4 ग्राम चंदन के चूर्ण को गुडूची-के रस में मिला लें। इसका सेवन करने से लाभ होता है।

पसीने की बदबू में चंदन के इस्तेमाल से लाभ

बहुत सारे लोगों के पसीने से बदबू आने की शिकायत रहती है। अगर आप भी इस परेशानी से छुटकारा चाहते हैं, तो चन्दन के चूर्ण को गुलाब जल के साथ पीसकर लगाएं। इससे फायदा होता है।

पेट की गड़बड़ी में चंदन का उपयोग

पित्त के कारण होने वाली पेट की गड़बड़ी में भी चंदन का फायदा मिल सकता है। इसमें चन्दनादि घी (5-10 ग्राम) के सेवन से आराम मिलता है।

नाभि में दर्द होने पर 20-40 मिली नारियल जल में, 2-4 ग्राम चंदन के चूर्ण को नाभि पर रखें। इससे आराम मिलता है।

एसिडिटी में फायदेमंद चंदन का सेवन

कुछ भी उल्टा-सीधा खाने, या बाहर का भोजन करने पर एसिडिटी की परेशानी आम हो गई है। एसिडिटी से परेशान लोगों को, यदि खाने के बाद सिर, एवं हृदय में दर्द होता है, या आंखों की परेशानी रहती है, तो शिरीष, हल्दी, तथा चंदन के लेप को हृदय में लगाएं। इससे लाभ होता है।

चंदन का उपयोग कर शरीर की जलन से राहत

शरीर में जलन होने पर चंदन की लकड़ी को जल में घिस लें, और तने की छाल को पीसकर शरीर पर लगाएं। इससे जलन ठीक हो जाती है।

उल्टी रोकने के लिए चंदन का इस्तेमाल

आप उल्टी को रोकने के लिए भी चंदन का इस्तेमाल कर सकते हैं। 500 मिग्रा सफेद चंदन को घिस लें। इसे 10 मिली आंवला के रस में घोल लें। इसमें मधु मिलाकर पीने से उल्टी में लाभ होता है।

इसी तरह चंदन के 5-10 ग्राम बारीक चूर्ण को, चार गुना आंवला के रस में घोल लें। इसमें मधु मिलाकर पीने से उल्टी रुक जाती है।

इसके अलावा 10-30 मिली आंवले के रस में, 1-2 ग्राम चन्दन के पेस्ट को मिला लें। इसका सेवन करने से उल्टी पर रोक लगती है।

चंदन के उपयोग से सिर दर्द से आराम

सिर दर्द होने के कई कारण हो सकते हैं। कोई भी व्यक्ति जो सिर दर्द से परेशान है, और आयुर्वेद तरीके से सिर दर्द से आराम पाना चाहता है, उसे चंदन को घिसकर मस्तक पर लगाना चाहिए। इससे सिर दर्द से राहत मिलती है।

आंखों की बीमारी में चंदन का उपयोग

आंखों की बीमारी में भी चंदन का इस्तेमाल कर सकते हैं। आंखों के रोग में 10 ग्राम सफेद चंदन के पेस्ट को, 100 मिली दूध में पका लें। इसे ठंडा कर लें। इसे आंखों पर लगाने से आंखों की बीमारी में लाभ होता है।

बुखार उतारने के लिए चंदन का उपयोग

आप चंदन का इस्तेमाल बुखार को ठीक करने के लिए भी कर सकते हैं। चंदन की लकड़ी को जल में घिस लें। इसके तने की छाल को पीसकर शरीर पर लगाने से बुखार ठीक हो जाता है।

गठिया में फायदा पहुंचाता है चंदन का इस्तेमाल

गठिया की परेशानी में चंदन के उपयोग से फायदा हो सकता है। गठिया की बीमारी वाले लोग 20-40 मिली चन्दनादि कषाय में, चीनी, तथा मधु मिलाकर सेवन करें। इससे गठिया में आराम होता है।

चंदन के साइड इफेक्ट

इसे जरूर पढ़ें –

उचित मात्रा में चंदन का इस्तेमाल करने से स्वास्थ्य पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है, लेकिन कुछ अवस्था में चंदन के उपयोग से निम्न दुष्प्रभाव हो सकते हैंः-

 

अगर किसी को एलर्जी जैसी परेशानी होती है, तो उसकी त्वचा में चंदन से रिएक्शन हो सकता है।

इसके अत्यधिक मात्रा में सेवन करने से पेट से जुड़े विकार, त्वचा-विकार, अवसाद, उल्टी, या यूरीमिया जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

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अरे पीपल के पेड़ से भी इतने फायदे हो सकते हैं जाने कौन कौन से है यह फायदे


पीपल का परिचय शायद ही कोई इंसान होगा जो पीपल के पेड़  के बारे में नहीं जानता होगा। हाथी इसके पत्तों को बड़े चाव से खाते हैं। इसलिए इसे गजभक्ष्य भी कहते हैं। पीपल का पेड़ प्रायः हर जगह उपलब्ध होता है। सड़कों के किनारे, मंदिर या बाग-बगीचों में पीपल का पेड़ हमेशा देखने को मिलता है। शनिवार को हजारों लोग पीपल के पेड़ की पूजा भी करते हैं। अधिकांश लोग पीपल के पेड़ के बारे में केवल यही जानते हैं कि इ... Read More

पीपल का परिचय

शायद ही कोई इंसान होगा जो पीपल के पेड़  के बारे में नहीं जानता होगा। हाथी इसके पत्तों को बड़े चाव से खाते हैं। इसलिए इसे गजभक्ष्य भी कहते हैं। पीपल का पेड़ प्रायः हर जगह उपलब्ध होता है। सड़कों के किनारे, मंदिर या बाग-बगीचों में पीपल का पेड़ हमेशा देखने को मिलता है। शनिवार को हजारों लोग पीपल के पेड़ की पूजा भी करते हैं। अधिकांश लोग पीपल के पेड़ के बारे में केवल यही जानते हैं कि इसकी केवल पूजा होती है, लेकिन सच यह है कि पीपल के पेड का औषधीय प्रयोग भी किया जाता है और इससे कई रोगों में लाभ लिया जा सकता है।

 

कई पुराने आयुर्वेदिक ग्रंथों में पीपल के पेड़ के गुणों के बारे में बताया गया है कि पीपल के प्रयोग से रंग में निखार आता है, घाव, सूजन, दर्द से आराम मिलता है। पीपल  खून को साफ करता है। पीपल की छाल मूत्र-योनि विकार में लाभदायक होती है। पीपल की छाल के उपयोग से पेट साफ होता है। यह सेक्सुअल स्टेमना को भी बढ़ाता है और गर्भधारण करने में मदद करता है। सुजाक, कफ दोष, डायबिटीज, ल्यूकोरिया, सांसों के रोग में भी पीपल का इस्तेमाल लाभदायक होता है। इतना ही नहीं, अन्य कई बीमारियों में भी आप पीपल का उपयोग कर सकते हैं। आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।

पीपल क्या है?

पीपल विषैली कार्बन डाइआक्साईड सोखता है और प्राणवायु मतलब ऑक्सीजन छोड़ता है। पीपल के पेड़ की छाया बहुत ठंडी होती है। पीपल का पेड़ लगभग 10-20 मीटर ऊँचा होता है। यह अनेक शाखाओं वाला, विशाल औक कई वर्षों तक जीवित रहता है। पुराने वृक्ष की छाल फटी व सफेद-श्यमाले रंग की होती है। इसके नए पत्ते  कोमल, चिकने तथा हल्के लाल रंग के होते हैं। इसके फल चिकने, गोलाकार, छोटे-छोटे होते हैं। कच्ची अवस्था में हरे और पके अवस्था में बैंगनी रंग के होते हैं।

 

पीपल के पेड़ की जड़ भूमि के अन्दर उपजड़ों से युक्त होती है और बहुत दूर तक फैली रहती है। वट वृक्ष के समान ही इसके पुराने वृक्ष के तने तथा मोटी-मोटी शाखाओं से जटाएं निकलती हैं। इसे पीपल की दाढ़ी कहते हैं। ये जटायें बहुत मोटी तथा लम्बी नहीं होती। इसके तने या शाखाओं को तोड़ने या छिलने से या कोमल पत्तों को तोड़ने से एक प्रकार का चिपचिपा सफेद पदार्थ (दूध जैसा) निकलता है।

आंखों की बीमारी में पीपल का प्रयोग लाभदायक

पीपल के पत्ते के फायदे से आंखों के रोग ठीक किए जा सकते हैं। पीपल के पत्तो से से जो दूध (आक्षीर) निकलता है, उसको आंख में लगाने से आंखों में होने वाला दर्द ठीक हो जाता है।

दांतों के रोग में पीपल से लाभ

पीपल और वट वृक्ष की छाल को समान मात्रा में मिलाकर जल में पका लें। इसका कुल्ला करने से दांतों के रोग ठीक होते हैं।

पीपल की ताजी टहनी से रोज दातुन (ब्रुश) करने से दांत मजबूत होते हैं। इससे मसूड़ों की सूजन खत्म होती है और मुंह से आने वाली दुर्गंध भी खत्म हो जाती है।

हकलाहट की समस्या में पीपल का उपयोग फायदेमंद

पीपल के वृक्ष के लाभ हकलाने की समस्या में भी फायदे पहुंचाते हैं। पीपल के आधी चम्मच पके फल के चूर्ण में शहद मिला लें। इसका सुबह-शाम सेवन करने से हकलाहट की बीमारी में लाभ होता है।

कुक्कुर-खांसी में पीपल से फायदा

40 मिली पीपल के पेड़ की छाल का काढ़ा या 10 मिली रस को दिन में तीन बार देने से कुक्कुर खांसी में लाभ होता है।

अत्यधिक प्यास लगने की समस्या में पीपल से फायदा

पीपल की 50-100 ग्राम छाल के कोयलों को पानी में बुझा लें। इस पानी को साफ कर पिलाने से हिचकी की समस्या, उल्टी और अत्यधिक प्यास लगने की समस्या में लाभ होता है।

भूख बढ़ाने के लिए पीपल का प्रयोग लाभदायक

अगर आपको भूख कम लगती है तो पीपल के वृक्ष के लाभ इस समस्या में ले सकते हैं। पीपल के पके फलों के सेवन से कफ, पित्त, रक्तदोष, विष दोष, जलन, उल्टी तथा भूख की कमी की समस्या ठीक होती है।

पेट के दर्द में पीपल का उपयोग फायदेमंद

पीपल के पत्ते के फायदे से पेट के दर्द ठीक होते हैं। पीपल के ढाई पत्तों को पीसकर 50 ग्राम गुड़ में मिलाकर गोली बना लें। इसे दिन में 3-4 बार खाना चाहिए।

शारीरिक कमजोरी को दूर करने के लिए पीपल के पेड़ का इस्तेमाल

आधा चम्मच पीपल के फल का चूर्ण को दिन में तीन बार दूध के साथ सेवन करते रहने से शारीरिक कमजोरी दूर होती है।

कब्ज की परेशानी में पीपल से लाभ

पीपल के पत्ते के फायदे से कब्ज की समस्या ठीक होती है। कब्ज हो तो पीपल के 5-10 फल को नियमित रूप से खाएं। कब्ज ठीक हो जाता है।

पीपल के पत्ते और कोमल कोपलों का काढ़ा बना लें। 40 मिली काढ़ा को पिलाने से पेट साफ हो जाता है और कब्ज की समस्या ठीक हो जाती है।

पीलिया रोग में पीपल का इस्तेमाल

पीपल के 3-4 नए पत्तों को मिश्री के साथ 250 मिली पानी में बारीक पीस-घोलकर छान लें। यह शर्बत रोगी को 2 बार पिलाएं। इसे 3-5 दिन प्रयोग करें। यह पीलिया रोग के लिए रामबाण औषधि है।

मूत्र रोग में पीपल का उपयोग

​​​पीपल की छाल का काढ़ा पिलाने से पेशाब के रुक-रुक कर आने की समस्या में लाभ होता है।

गले के रोग में पीपल के पेड़ का प्रयोग फायदेमंद

गले के रोग में पीपल की अंतर छाल को गुलाब जल में घिसकर लगाएं। इससे घाव जल्दी भर जाते हैं।

एड़ियों के फटने में पीपल से लाभ

कई लोगों को यह शिकायत रहती है कि उनके पैरों की एड़ियां फट गई है। ऐसे में पीपल के पत्ते के फायदे ले सकते हैं। हाथ-पांव फटने पर पीपल के पत्तों का रस या दूध (आक्षीर) लगाएं। यह लाभ पहुंचाता है।

पीपल के पेड़ से खाज-खुजली का इलाज

खाज-खुजली की समस्या हो तो 50 ग्राम पीपल की छाल का भस्म बना लें। इसमें आवश्यकतानुसार चूना व घी मिलाकर अच्छी प्रकार से लेप बना लें। इसका लेप करने से खाज-खुजली ठीक होता है।

 

पीपल की छाल का काढ़ा बनाकर 10-30 मिली मात्रा में रोज सुबह और शाम पिलाने से खुजली ठीक होता है।

फोड़े-फुन्सियों में फायदेमंद पीपल का पेड़

फोड़े-फून्सियों में भी पीपल के पत्ते के फायदे मिलते हैं। पीपल की छाल को जल में घिसकर फोड़े-फुन्सियों पर लगाने और गीली पट्टी बाँधने से अत्यन्त लाभ होता है।

पीपल के कोमल पत्तों को गेहूं के गीले आटे में पीसकर मिला लें। इसे फोड़ों पर लगाने से फोड़े ठीक होते हैं और सूजन ठीक हो जाती है।

अनेक प्रकार के घाव को ठीक करने में उपयोगी पीपल का पेड़

आप पीपल के वृक्ष के लाभ घाव में भी ले सकते हैं। पीपल की नरम कोपलों को जलाकर कपड़े से छान लें। इसे पुराने बिगड़े हुए फोड़ों पर छिड़ने से लाभ होता है।

पीपल की छाल के चूर्ण को पीसकर उसमें घी मिला लें। इसे जलने या चोट लगने से हुए घाव पर लगाने से रक्तस्राव बंद हो जाता है और घाव तुरंत भरने से लाभ होता है।

पीपल की छाल के चूर्ण को आग से जलने के कारण हुए घाव पर छिड़कने से तुरंत घाव सुख जाता है।

पुराने तथा ना भरने वाले घावों पर पीपल की अंतर छाल को गुलाब जल में घिसकर लगाएं। इससे घाव जल्दी भर जाते हैं।

घाव पर औषधि का लेप लगाकर पीपल के कोमल पत्तों से ढक दें। यह घाव को सुखाता है।

अर्जुन, गूलर, पीपल, लोध्र, जामुन तथा कट्फल की छाल लेकर चूर्ण बना लें। इसे घाव पर छिड़कने से घाव तुरंत ठीक हो जाता है।

वट, गूलर, पीपल (pipal tree), प्लक्ष तथा वेतस की छाल के चूर्ण में पर्याप्त मात्रा में घी मिला लें। इसका लेप करने से घाव की सूजन ठीक हो जाती है।

ताजे झड़े हुए पीपल के पत्ते की बारीक चूर्ण को घाव पर छिड़कने से घाव तुरंत ठीक होता है।

पीपल की हरी छाल और हरे पत्तों से बने पेस्ट में मधु मिलाकर लेप करने से मुंह का घाव ठीक होता है।

इसके 21 कोमल पत्ते पीसकर, गुड़ में गोलियां बना लें। इसे 7 दिन सुबह-शाम खिलाने से चोट लगने के कारण होने वाले दर्द में लाभ होता है।

Thank you for reading.


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