Blog by Suveta Notiyal | Digital Diary
" To Present local Business identity in front of global market"
" To Present local Business identity in front of global market"
आपने चिरायता के बारे में जरूर सुना होगा। घरों के बूढ़े-बुजुर्ग लोग अक्सर कहा करते हैं कि खुजली हो तो चिरायते का सेवन करो, खून से संबंधित विकार को ठीक करने के लिए चिरायते का उपयोग करो। क्या आप जानते हैं कि चिरायते की केवल यहीं दो खूबियां नहीं हैं बल्कि इसके इस्तेमाल से अनेक लाभ मिलते हैं। बच्चे और बड़े, सभी लोग इन्हीं खूबियों के कारण चिरायते का प्रयोग बराबर किया करते हैं। अगर आपको चिरायते के बारे में अधिक जानकारी नहीं है और जानना चाहते हैं तो यह जानकारी आपके लिए है।
चिरायता का पौधा बाजार में आसानी से मिल जाता है। चिरायता स्वाद में तीखा, ठंडा, कफ विकार को ठीक करने वाला है। कई विद्वान कालमेघ को चिरायता मानते हैं, लेकिन यह दोनों पौधें आपस में भिन्न हैं। असली चिरायता अपनी जाति के अन्य चिरायतों की तुलना में बहुत ही कड़वा होता है। चिरायते की कई प्रजातियां होती हैं, जिनका प्रयोग चिकित्सा में किया जाता है।
यह 60-125 सेमी ऊँचा, सीधा, एक साल तक जीवित रहने वाला होता है। इसके पौधे में अनेक शाखाएं होती हैं। इसके तने नारंगी, श्यामले या जामुनी रंग के होते हैं। इसके पत्ते सीधे, 5-10 सेमी लम्बे, 1.8 सेमी चौड़े होते हैं। नीचे के पत्ते बड़े तथा ऊपर के पत्ते कुछ छोटे व नोंकदार होते हैं।
इसके फूल अनेक होते हैं और ये अत्यधिक छोटे, हरे-पीले रंग के होते हैं। इसके फल 6 मिमी व्यास के, अण्डाकार, नुकीले होते हैं। चिरायता की बीज संख्या में अनेक, चिकने, बहुकोणीय, 0.5 मिमी व्यास के होते हैं। चिरायते के पौधे में फूल और फल आने का समय अगस्त से नवम्बर तक होता है।
आंखों के रोग में चिरायता का प्रयोग फायदेमंद
चिरायता के फल में पिप्पली पेस्ट और सौवीराञ्जन मिलाकर रख लें। एक सप्ताह के बाद मातुलुंग के रस में इसे पीस लें। इसे रोजाना काजल की तरह लगाने से आंखों की बीमारी (पिष्टक) में लाभ होता है।
चिरायता के इस्तेमाल से शुद्ध होता है स्तनों का दूध
चिरायता, कटुरोहिणी, सारिवा आदि का काढ़ा बना लें। इसे 15-30 मिली की मात्रा में सेवन करने से स्तनों का दूध शुद्ध होता है।
केवल चिरायता का काढ़ा 15-30 मिली पीने से भी स्तनों के दूध की गुणवत्ता बढ़ती है।
बराबर-बराबर मात्रा में चिरायता, सोंठ तथा गुडूची के 15-30 मिली काढ़े का सेवन करने से भी माताओं के स्तन का दूध की गुणवत्ता बढ़ता है।
चिरायता के सेवन से खांसी का इलाज
चिरायता का पौधा खांसी के इलाज में भी काम आता है। चिरायते का काढ़ा 20-30 मिली की मात्रा में पिएं। इससे खांसी में लाभ होता है। इससे आंत के कीड़े खत्म होते हैं।
पेचिश रोग में चिरायता का उपयोग लाभदायक
आप पेचिश रोग में भी चिरायता के फायदे ले सकते हैं। 2-4 ग्राम किराततिक्तादि चूर्ण में दोगुना मधु मिला लें। इसका सेवन करने से पेचिश रोग ठीक होता है।
भूख को बढ़ाने के लिए करें चिरायता का सेवन
चिरायता का काढ़ा बनाकर 20-30 मिली मात्रा में पिलाने से भूख बढ़ती है। पाचन-शक्ति बढ़ती है।
पेट के कीड़े को खत्म करने के लिए करें चिरायता का प्रयोग
चिरायता के गुण पेट के कीड़ों को भी खत्म करते हैं। सुबह भोजन के पहले (5-10 मिली) चिरायता के रस में मधु मिश्रित कर सेवन करने से आंत के कीड़े खत्म हो जाते हैं।
दस्त को रोकने के लिए करें चिरायता का उपयोग
दस्त को रोकने के लिए भी चिरायता फायदेमंद होता है। इसके लिए बराबर-बराबर मात्रा में चिरायता, नागरमोथा, इन्द्रजौ तथा रसाञ्जन के चूर्ण (2-4 ग्राम) या पेस्ट में मधु मिला लें। इस चाटकर बाद में चावलों का धोवन पिएं। इससे पित्त विकार के कारण होने वाली दस्त पर रोक लगती है।
2-4 ग्राम बेल गिरी का चूर्ण खाकर ऊपर से चिरायते का काढ़ा पीने से दस्त में लाभ होता है।
पेट की बीमारी में चिरायता का इस्तेमाल फायदेमंद
रोजाना सुबह खाली पेट, चिरायता हिम (10-30 मिली) अथवा काढ़ा का सेवन करने से पाचन-क्रिया ठीक होती है तथा शरीर स्वस्थ रहता है।
पेट के दर्द में चिरायता का सेवन लाभदायक
चिरायता के फायदे की बात की जाए तो यह पेट के दर्द से भी आराम दिलाता है। चिरायता तथा एरण्ड की जड़ को बराबर मात्रा में मिलाकर काढ़ा बना लें। इसे 10-30 मिली मात्रा में पिलाने से पेट के दर्द से आराम मिलता है।
बुखार उतारने के लिए करें चिरायता का प्रयोग
बुखार से आराम दिलाने में भी चिरायता फायदेमंद होता है। चिरायता तथा धनिया के हरे पत्तों से काढ़ा बना लें। इसे (10-20 मिली) की मात्रा में पीने से बुखार में शीघ्र लाभ होता है।
बराबर-बराबर मात्रा में चिरायता, नागरमोथा, गुडूची तथा सोंठ के काढ़े का सेवन करें। इससे बुखार, अत्यधिक प्यास, भूख की कमी, बुखार एवं मुंह का स्वाद ठीक होता है।
बराबर-बराबर मात्रा में चिरायता, कुटकी, नागरमोथा, पित्तपापड़ा तथा गुडूची का काढ़ा बना लें। 10-30 मिली मात्रा में रोजाना सेवन करने से बार-बार आने वाला बुखार ठीक होता है।
बराबर-बराबर मात्रा में चिरायता, गुडूची, द्राक्षा, आँवला तथा कचूर के (10-30 मिली) काढ़े में गुड़ मिलाकर पिएं। इससे वात-पित्त विकार के कारण होने वाले बुखार में लाभ होता है।
750 ग्राम चिरायता चूर्ण तथा 50 ग्राम साबुत पिप्पली को चार गुने जल में तब तक उबालें, जब तक कि पूरा जल सूख न जाए। इस बची हुई पिप्पली को छाया में सुखा लें। इसे चूर्ण बनाकर 1-2 ग्राम मात्रा में लेकर मधु के साथ मात्रापूर्वक सेवन करने से बुखार में लाभ होता है।
2-4 ग्राम चिरायता चूर्ण में मधु मिलाकर खाने से सभी प्रकार का बुखार का ठीक होता है।
बराबर-बराबर मात्रा में चिरायता , नीम, गुडूची, त्रिफला तथा आमाहल्दी के (20-30 मिली) काढ़े का सेवन करें। इससे पित्तज बुखार, आंतों के कीड़े, दाह, तथा त्वचा की बीमारियों में लाभ होता है।
चिरायता, नीमगिलोय, देवदारु, हरड़, पीपर, हल्दी, दारुहल्दी, हरड़, बहेड़ा, आँवला, करंज की बीज मज्जा, सोंठ, काली मिर्च, पीपर, प्रियंगु, रास्ना, अर्कमूलत्वक्, वायविडंग, कुटकी तथा दशमूल का काढ़ा बना लें। इसे 10-20 मिली मात्रा में पिलाने से पित्त, कफ विकार के कारण होने वाले बुखार में लाभ होता है।
चिरायता, सैंधव, सोंठ, कूठ, चन्दन तथा नेत्रबाला को पीस लें। इसे सिर पर लेप करने से बुखार ठीक हो जाता है।
बराबर-बराबर मात्रा में चिरायता, कुटकी, नागरमोथा, धनिया, इन्द्रयव, शुण्ठी, देवदारु तथा गजपीपल के (10-30 मिली) काढ़े का सेवन करें। इससे पसलियों के दर्द, सन्निपातबुखार, खांसी, साँस फूलना, उलटी, हिचकी, तन्द्रा तथा हृदय विकार आदि में लाभ होता है।
सूजन को कम करने के लिए करें चिरायता से लाभ
चिरायता तथा सोंठ को समान मात्रा में मिलाकर पीस लें। इसे 2-4 ग्राम की मात्रा में लेकर पुनर्नवा के काढ़े के साथ मिलाकर पिएं। इससे सूजन में लाभ होता है।
बराबर-बराबर मात्रा में चिरायता तथा सोंठ चूर्ण को गुनगुने जल के साथ 2-4 ग्राम की मात्रा में सेवन करें। इससे त्रिदोष के कारण होने वाली सूजन की बीमारी में लाभ होता है। इससे पुरानी सूजन भी ठीक हो जाती है।
सोंठ तथा चिरायता को बिम्बी के रस में मिला लें। इसका लेप करने से सूजन की समस्या ठीक हो जाती है।
चिरायता का पौधा भारत में यह हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर तथा असम तक पाया जाता है। यह 1200 से 3000 मीटर की ऊँचाई पर एवं मध्य प्रदेश, दक्षिण भारत आदि के पर्वतीय प्रदेशों में 1200-1500 मीटर की ऊँचाई पर पाया जाता है।
अब आप चिरायते के फायदों से भलीभांति परिचित हो चुके हैं। अगर औषधि के रूप में इसका इस्तेमाल करना चाहते हैं तो चिकित्सक के परामर्श अनुसार ही करें
ब्लूबेरी 'वैक्सीनियम' प्रजाति से संबंधित एक फल है। यह फल नार्थ अमेरिका, यूरोप, साउथ अफ्रीका और एशिया में पाया जाता है। ब्लूबेरी को भारत में कई जगहों पर 'नीलबदरी' के नाम से भी जाना जाता है। यह स्वाद से भरपूर होने के साथ ही साथ कई औषधीय गुणों से भी भरपूर होता है। ब्लूबेरी छोटे, गोल और नीले रंग के होते हैं। यह खाने में खट्टे-मीठे स्वाद के होते हैं।
ब्लूबेरी में मौजूद एंटी-ऑक्सीडेंट की भरपूर मात्रा मधुमेह, ब्लड प्रेशर, वजन को कम करने में लाभकारी होती है। ब्लूबेरी के अलावा इसके पत्ते भी बहुत लाभकारी होते हैं। जर्नल ऑफ़ न्यूट्रीशन के अनुसार, ब्लूबेरी की पत्तियों में 'एंथोसियानीडीनस' नामक तत्व भारी मात्रा में पाया जाता है। तो आइये जानते हैं इसके लाभों के बारे में -
ब्लूबेरी के लाभ दिलाएं मुहांसों से छुटकारा -
ब्लूबेरी, मुंहासों से ग्रस्त लोगों की त्वचा के लिए बहुत ही लाभकारी होती है। ब्लूबेरी में सैलिसिलेट्स की उच्च मात्रा होती है, जो कि सैलिसिलिक एसिड होता है। सैलिसिसिक एसिड मुँहासों के बाहरी उपचार करने वाले उत्पादों में व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है। मृत त्वचा को हटाने की क्षमता, खुले रोम छिद्र और बैक्टीरिया के खिलाफ कार्य करके, यह मुहाँसों को दूर करने के लिए यह एक बहुत ही प्रभावी उपचार है। ब्लूबेरी पैक का इस्तेमाल मुहाँसों को दूर करने के लिए किया जा सकता है।
नींबू के रस और शहद के साथ ब्लूबेरी को मिलाएं। इसे अपने चेहरे पर लगाएं। पैक को लगभग 20 मिनट तक लगाकर रखें। और इसके बाद गुनगुने पानी के साथ धो लें। इस पैक का उपयोग आप हफ्ते में एक बार कर सकते हैं, जब तक की दाग नहीं हट जाते हैं। यह त्वचा पर अतिरिक्त तेल को नियंत्रित करने में भी मदद करता है।
ब्लू बैरीज़ के फायदे करें मदद बाल बढ़ाने में -
ब्लूबेरी, प्रोएंथोसायनिडिन रसायन की मौजूदगी के कारण बालों के विकास में लाभकारी होते हैं। इससे बने हेयर मास्क का उपयोग बालों की वृद्धि को बढ़ावा देने में मदद करता है। हेयर मास्क बनाने के लिए एक मुट्ठी ब्लूबेरी और जैतून के तेल को मिक्स कर लें और अच्छे से बालों की जड़ों पर लगाएं। 20-30 मिनट के बाद गुनगुने पानी का उपयोग कर के बालों को धो लें।
ब्लूबेरी का उपयोग करें वजन कम करने के लिए–
ब्लूबेरी फाइबर में समृद्ध और कैलोरी में कम होती है, जो उन लोगों के लिए बहुत ही अच्छा भोजन है, जो अपना वजन कम करना चाहते हैं। ब्लूबेरी घुलनशील फाइबर में समृद्ध है, जो कि फाइबर का एक प्रकार है एवं पानी में घुल जाता है। घुलनशील फाइबर पाचन की प्रक्रिया को धीमा कर देते हैं, जिससे आपको जल्दी भूख नहीं लगती और आप बार-बार खाने से बच जाते हैं।
ब्लूबेरी खाने के फायदे रखें याददाश्त को तेज -
ब्लूबेरी में कई एंटीऑक्सिडेंट गुण पाए जाते हैं, जैसे- एंथोकैयनिन, सेलेनियम, विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन ई, विटामिन बी कॉम्प्लेक्स, ज़िंक, सोडियम, पोटेशियम, तांबा, मैग्नीशियम, फास्फोरस और मैंगनीज। ये एंटीऑक्सिडेंट न्यूरॉन्स के अध: पतन और तंत्रिका संबंधी विकारों को ठीक कर सकते हैं। ये आवश्यक पोषक तत्व मस्तिष्क कोशिकाओं की भी रक्षा करते हैं और केंद्रीय (सेंट्रल) तंत्रिका तंत्र के स्वास्थ्य को बहाल करने में मदद करते हैं। यह विश्वास करना मुश्किल है कि यह ब्लूबेरी अल्जाइमर जैसी गंभीर समस्याओं का इलाज कर सकते हैं। ये आपकी याददाश्त को तेज रखने के लिए मस्तिष्क की क्षतिग्रस्त कोशिकाओं और न्यूरॉन के ऊतकों को भी ठीक करने में मदद करते हैं।
ब्लूबेरी के फायदे करें पाचन में सुधार -
ब्लूबेरी में मौजूद फाइबर कब्ज को रोकता है। इसके अलावा, विटामिन, सोडियम, तांबा, फ्रुक्टोस और एसिड आपके गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सिस्टम के माध्यम से आसानी और सुरक्षित रूप से भोजन को स्थानांतरित करने के लिए सही गैस्ट्रिक और पाचन रस को उत्तेजित करके पाचन में सुधार करते हैं।
ब्लूबेरी के गुण बचाएं कैंसर से -
ब्लूबेरी कैंसर के रोगियों के लिए बहुत ही अच्छा साबित हो सकते हैं, क्योंकि उनमें कुछ यौगिकों जैसे पेरोरोस्टिलबेन (बृहदान्त्र कैंसर और लिवर कैंसर के लिए एक बहुत ही अच्छा उपाय) और एलेगिक एसिड होते हैं। एन्थॉकायनिन और अन्य एंटीऑक्सिडेंट जैसे विटामिन सी और तांबे के साथ ये दोनों यौगिक कैंसर को रोकने और ठीक करने के लिए चमत्कार कर सकते हैं।
ब्लूबेरी है आंखों के लिए लाभकारी -
ब्लूबेरीज चश्मा उतारने, कांटेक्ट-लेंस, आई ड्रॉप्स, दवाओं और आई सर्जरी के लिए सबसे अच्छा विकल्प होती है। इसमें मौजूद एंटीऑक्सिडेंट गुणों की वजह से, यह उम्र बढ़ने वाले ऑकुलर समस्याओं जैसे मैक्यूलर डिएनेजेरेशन, मोतियाबिंद, मायोपिया और हाइपमेट्रोपोपिया, आंखों का सूखापन और संक्रमण, विशेष रूप से रेटिना से संबंधित रोगों को रोकने या देरी में मदद करते हैं। आप सीधे अपनी आंखों में ब्लूबेरी नहीं डाल सकते, लेकिन आप स्वस्थ दृष्टि के लिए इनका सेवन कर सकते हैं। ब्लूबेरी में कैरोटीनॉड्स (ल्यूटिन, ज़ेक्सैथिन इत्यादि), एंटीऑक्सिडेंट्स, फ्लेवोनोइड (जैसे रटिन, रिवेस्ट्रैटोल, क्व्विकेटिनेट।) और विटामिन ए, सी, ई, सेलेनियम, जस्ता और फास्फोरस जैसे अन्य एंटीऑक्सीडेंट यौगिक हैं, जो सभी बहुत फायदेमंद होते हैं और आँखों के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक होते हैं।
1.ब्लूबेरी में बहुत अधिक मात्रा में सैलिसिलेट पाया जाता है - यह एस्पिरिन का सक्रिय घटक है, जो कि कई पौधों में स्वाभाविक रूप से पाया जाता है। जो लोग सैलिसिलेट के प्रति संवेदनशील होते हैं उन लोगों को ब्लूबेरी का सेवन नहीं करना चाहिए।
2.यदि आप रक्त को पतला करने वाली दवाओं का सेवन कर रहे हैं तो आपको अपने आहार में ब्लूबेरी का सेवन नहीं करना चाहिए।
3.बहुत अधिक मात्रा में ब्लूबेरी खाने से आपके पाचन पर दुष्प्रभाव हो सकता है और इसका मुख्य कारण है इसमें मौजूद फाइबर की अधिक मात्रा।
Read Full Blog...
केसर को रेड गोल्ड यानि लाल सोने के नाम से भी जानते हैं। लाल लंबे धागे की तरह दिखने वाला केसर जब अपना पीला रंग छोड़ता है तो वह अपने असली होने की पहचान देता है। बता दें कि इसका पौधे बेहद खुशबूदार होता है ऐसे में इसका प्रयोग कॉस्मेटिक या पर्फ्यूम में भी सुगंध लाने के लिए किया जाता है। कई जगह ऐसी हैं जहां पुराने कपड़ों को रंगने के लिए भी केसर का इस्तेमाल किया जाता है। वहीं धार्मिक कार्य में भी कैंसर बेहद उपयोगी मानी गई है। ध्याव दें कि इसके अंदर कैल्शियम, विटामिन ई, विटामिन सी, आयरन आदि भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं जो सेहत के लिए बेहद उपयोगी है। ऐसे में आज हम आपको इस लेख के माध्यम से बताएंगे की केसर किन तरीकों से सेहत के काम आ सकता है और इसके क्या क्या नुकसान हैं।
याददाश्त को बढ़ाएं
बता दें कि केसर के अंदर ऐसे गुण पाए जाते हैं जो दिमाग में विकसित हो रहे एमाइलॉयड बीटा को रोक सकते हैं। साथ ही दिमाग में होने वाले अल्जाइमर या स्मरण शक्ति के कमजोर होने की समस्या को दूर कर सकते हैं। अगर आप केसर का सेवन करते हैं तो इससे ना केवल याद करने की क्षमता बढ़ती है बल्कि याद्दाश का कम होना और पार्किंसंस रोग भी दूर किया जा सकता है। ऐसे में आप रोज केसर वाला दूध या फिर इसकी चाय याददाश्त बढ़ाने के लिए पी सकते हैं।
मासिक धर्म में होने वाली असुविधा को करे दूर
केसर का उपयोग मासिक धर्म में होने वाले असुविधा को रोकने में भी किया जा सकता है। ऐसे में अगर आप पीएमएस प्रीमेंस्ट्रूअल सिंड्रोम के लक्षणों को दूर रखना चाहते हैं तो दिन में दो बार 15 मिलीग्राम केसर अपनी डाइट में जोड़ें। लेकिन इससे पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें। बता दें कि ऐसा करने से न केवल सूजन कम होती है बल्कि चिड़चिड़ापन, मूड, मुहांसे, थकान आदि की समस्या भी दूर हो जाती हैं। अगर आपको मासिक धर्म के दौरान ज्यादा दर्द होता है या अधिक मात्रा में ब्लड बहता है तो आप केसर की दूध या चाय भी पी सकते हैं।
प्रेगनेंसी में है केसर फायदेमंद
जब महिला गर्भावस्था में होती है तो पेट में गैस, या सूजन एक स्वाभाविक समस्या है। ऐसे में इन समस्याओं को छुटकारा दिलाने के लिए केसर का दूध एक अच्छा उपाय है। आपने देखा होगा कि गर्भावस्था में महिलाओं का मूड स्विंग होता है। साथ ही वे तनाव में रहती हैं इसके लिए भी केसर बहुत फायदेमंद है। इसके अलावा अगर गर्भावस्था में बार बार शौच जाने की आदत है, सीने में जलन से परेशान है या अच्छी नींद और पाचन तंत्र को दुरुस्त रखना चाहते हैं तो केसर का सेवन कर सकते हैं लेकिन इससे पहले डॉक्टर की परामर्श जरूर लें।
अनिद्रा को करें दूर
आजकल नींद ना आने की समस्या आम होती जा रही है। ऐसे में इस समस्या से तनाव, चिंता आदि समस्याएं पैदा होती हैं। इसके लिए केसर आपकी मदद कर सकता है। केसर एक ऐसी औषधि है जो दिमाग को ना केवल शांत रखती है बल्कि नींद लाने का भी एक रामबाण इलाज है। ऐसे में आप रोज सोने से पहले गर्म दूध में थोड़ा सा केसर डालें और उसे फूलने दें। इससे ना केवल दूध में रंग आएगा बल्कि ये सेहत के लिए अच्छा है।
चेहरे की रंगत में आए सुधार
बता दें कि केसर के अंदर त्वचा के रंग में निखार लाने और त्वचा को मुलायम बनाने के गुण पाए जाते हैं। इसके लिए आप 2 छोटे चम्मच दूध में केसर को भिगो दें और 15 मिनट के लिए ऐसे ही छोड़ दें। इसके बाद थोड़ा सा शहद मिलाकर चेहरे पर लगाएं। 20 से 30 मिनट बाद चेहरे को धोएं। आप खुद फर्क महसूस करेंगे। इसके अलावा आप केसर का फेस मास्क इस्तेमाल में ले सकते हैं। इसके लिए चंदन पाउडर, दूध, केसर आदि को मिलाकर गाढ़ा पेस्ट बनाएं और चेहरे गर्दन पर लगाएं। 20 मिनट सूखने के बाद साधारण पानी से धो लें। ऐसा करने से निखार आएगा।
आंखों की रोशनी बढ़ाए
केसर के अंदर कैरोटीनोइड और एंटीऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। इसके अलावा इसके अंदर क्रोसिन आदि से न केवल आंखों की रोशनी तेज होती है बल्कि आंखों की समस्या को भी दूर रखने में बेहद मददगार हैं। केसर आंखों की संपूर्ण समस्या को दूर रखने में बेहद कारगर है। ऐसे में आप डॉक्टर की सलाह पर इसकी सही खुराक की जानकारी ले सकते हैं।
हृदय के स्वास्थ्य के लिए अच्छी
दिल की सेहत के लिए भी केसर बेहद फायदेमंद है। इससे रक्तचाप का स्तर बना रहता है और हानिकारक कोलेस्ट्रॉल को कम करने में केसर बेहद मददगार है। केसर के अंदर क्रोकेटीन नामक रसायन पाया जाता है जो रक्त को बढ़ाने में मदद करता है। ऐसे में आप दो-तीन केसर को दूध में मिलाकर प्रयोग करें। ऐसा करने से हृदय रोगों से बचा जा सकता है। सही खुराक जाने के लिए डॉक्टर की राय लें।
करें अस्थमा का उपचार
जिन लोगों का अस्थमा है वे केसर की मदद से स्पष्ट रूप से सांस ले सकते हैं। इसके सेवन से न केवल फेफड़ों की जलन कम होती है बल्कि सूजन कम करने में भी ये बेहद मददगार है। बता दें कि इसके इस्तेमाल के लिए केसर का उपयोग पुराने जमाने से चला रहा है। आयुर्वेद में अस्थमा के लिए काफी उपयोग में लाया गया है। इससे अस्थमा की संभावना कम होती है। साथ ही ये सांस प्रणाली को भी दुरुस्त रखता है। लेकिन इस विषय पर भी रिसर्च अभी भी चल रही है ऐसे में डॉक्टर की सलाह पर ही सीमित मात्रा में केसर का प्रयोग करें।
पाचन समस्या हो दूर
गैस और एसिडिटी की समस्या को दूर करने में केसर बेहद मददगार है। बता दें कि केसर के अंदर ऐसे गुण मौजूद हैं जो पेट की गर्मी को दूर करने के साथ-साथ गैस को कम करते हैं और दर्द को राहत पहुंचाने में बेहद कारगर हैं। इसके सेवन से न केवल पाचन तंत्र मजबूत होता है बल्कि एक कप चाय पीते हैं यह पेट की समस्या को दूर कर सकता है।
बता दें कि किसी भी चीज का अधिक सेवन करना सेहत को नुकसान भी पहुंचा सकता है। ऐसा ही केसर के साथ भी है। अगर इसका सेवन अधिक मात्रा में किया जाए तो निम्न परेशानी हो सकती हैं-
1- केसर किस सेवन का अधिक प्रयोग करने से सिर दर्द, उल्टी, भूख में कमी आदि की समस्या हो जाती है।
2- दिल के रोगी इसका सेवन करने से बचें। वरना इसके गंभीर साइड इफेक्ट्स देखने को मिल सकते हैं।
3- गर्भवती महिलाएं या बाइपोलर डिसऑर्डर से प्रभावित लोग इसका सेवन डॉक्टर की सलाह पर ही करें।
हर कोई चमकती, दमकती त्वचा चाहता है। इसके लिए लोग तरह-तरह के उपाय भी आजमाते हैं। कोई इसके लिए ब्यूटी प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करता है, तो कोई नैचुरल तरीकों से ही अपनी त्वचा की देखभाल करता है। इतना ही नहीं कोई पार्लर में ब्यूटी ट्रीटमेंट भी लेता है। खासकर, जब चेहरे पर दाग-धब्बे हो जाते हैं, तो लोग इन्हें रिमूव करवाने के लिए पीलिंग ट्रीटमेंट लेते हैं। लेकिन आप चाहें तो आयुर्वेदिक तरीकों से भी अपने चेहरे के दाग-धब्बों को मिटा सकते हैं। जी हां, आयुर्वेद में कई ऐसी जड़ी-बूटियां हैं, जो दाग-धब्बों को मिटाने में असरदार साबित हो सकती हैं। तो चलिए, रामहंस चेरिटेबल हॉस्पिटल, सिरसा के आयुर्वेदिक डॉक्टर श्रेय शर्मा से जानते हैं चेहरे के दाग-धब्बे हटाने के लिए जड़ी-बूटियों के बारे में –
नीम औषधीय गुणों से भरपूर होता है। नीम में एंटीसेप्टिक, एंटीफंगल और एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं। अगर आपके चेहरे पर मुहांसे और दाग-धब्बे हैं, तो आप नीम का उपयोग कर सकते हैं। इसके लिए आप नीम की पत्तियां लें। इन्हें पीसकर दाग-धब्बों पर लगाएं, फिर आधे घंटे बाद चेहरे को पानी से साफ कर लें। दाग-धब्बों को मिटाने के लिए आप सप्ताह में 1-2 बार नीम का इस्तेमाल कर सकते हैं। नीम त्वचा को साफ और चमकदार बनाता है।
आयुर्वेद में गिलोय को काफी महत्वपूर्ण माना गया है। गिलोय औषधीय गुणों से भरपूर होती है। गिलोय इम्यूनिटी को बूस्ट करती है, साथ ही मेंटल हेल्थ में भी सुधार करती है। इसके अलावा गिलोय को त्वचा के लिए भी फायदेमंद बताया गया है। गिलोय चेहरे के मुहांसों और दाग-धब्बों से छुटकारा दिला सकती है। इसके लिए आप गिलोय की पत्तियों का पेस्ट बनाकर चेहरे पर लगा सकते हैं। या फिर गिलोय का जूस और काढ़ा भी पी सकते हैं। इससे भी त्वचा में फर्क देखने को मिलेगा।
आयुर्वेद में गिलोय की तरह ही मुलेठी का उपयोग भी कई समस्याओं का इलाज करने के लिए किया जाता है। मुलेठी खांसी-जुकाम को ठीक करती है। साथ ही स्किन प्रॉब्लम्स भी दूर करती है। इसके लिए आप मुलेठी का पाउडर लें। इसका पेस्ट बनाएं और प्रभावित स्थान पर लगाएं। 20 मिनट बाद चेहरे तो पानी से साफ कर लें। मुलेठी त्वचा को सूरज की हानिकारक किरणों और टैनिंग से बचा सकती हैं।
पुदीना भी दाग-धब्बों को मिटाने में असरदार हो सकता है। दरअसल, पुदीने में विटामिन सी होता है। यह विटामिन दाग-धब्बों को मिटाने का काम करता है। इसके लिए आप पुदीने की पत्तियां लें। इनका पेस्ट बना लें और इसे चेहरे पर लगाएं। 15-20 मिनट बाद चेहरे को पानी से धो लें। इससे दाग-धब्बे रिमूव होंगे, साथ ही चेहरे की चमक भी बढ़ेगी। पुदीने की पत्तियां त्वचा को फ्री रेडिकल्स से होने वाले नुकसान से भी बचाती हैं।
एलोवेरा को स्किन केयर प्रोडक्ट्स में शामिल किया जाता है, क्योंकि इसे त्वचा के लिए काफी फायदेमंद माना जाता है। एलोवेरा में हीलिंग, एंटीफंगल, एंटीइंफ्लेमेटरी और एंटीऑक्सीडेंट्स गुण पाए जाते हैं। अगर आपके चेहरे पर दाग-धब्बे हैं, तो आप एलोवेरा का इस्तेमाल कर सकते हैं। एलोवेरा को आयुर्वेद में सेहत, त्वचा और बालों के लिए लाभकारी माना गया है। इसके लिए आप एलोवेरा जेल लें, इसे दाग-धब्बों पर लगाएं। फिर 20-25 मिनट बाद चेहरे को ताजे पानी से धो लें। इससे आपकी त्वचा मॉइश्चराइज रहेगी, चेहरे पर निखार भी आएगा।
आप भी दाग-धब्बों को मिटाने के लिए पुदीना, गिलोय, मुलेठी, एलोवेरा और नीम का उपयोग कर सकते हैं। अगर आपको इनमें से किसी भी चीज से एलर्जी है, तो चेहरे पर लगाने से पहले पैच टेस्ट जरूर कर लें।
खूबसूरत और नैचुरली नाखून सिर्फ आपकी सुंदरता को बढ़ाने में ही मदद नहीं करते हैं, बल्कि ये शारीरिक स्वास्थ्य के बारे में भी काफी कुछ बताते हैं। नाखून का रंग, उनकी बनावट, ताकत और विकास बताते हैं कि हमारा शरीर भीतर से कितना स्वस्थ है। आयुर्वेद के अनुसार "नाखून बोन टिशू से बना उत्पाद है।'' नाखून स्वस्थ सिर्फ तब होते हैं, जब आपकी हड्डियां भीतर से मजबूत होती हैं और पाचन दुरुस्त रहता है। लेकिन आजकल हम देखते हैं कि ज्यादातर लोगों के नाखून बहुत कमजोर होते हैं। पानी में कुछ समय बिताने के बाद उनके नाखून गल जाते हैं और टूटने या झड़ने लगते हैं। इसके अलावा, नाखूनों का रंग भी सफेद हो जाता है। अगर आप भी नाखूनों में इस तरह के बदलाव नोटिस कर रहे हैं, तो आपको आपको समझ जाना चाहिए कि आपके शरीर में कुछ गड़बड़ चल रही है। यह किसी मेडिकल कंडीशन का संकेत भी हो सकते हैं। ऐसे में आपको तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। इसके अलावा, कुछ सरल टिप्स को फॉलो करके भी आप अपने नाखूनों को स्वस्थ रख सकते हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. वरालक्ष्मी यनामंद्र ने अपनी एक इंस्टाग्राम पोस्ट में नाखूनों को स्वस्थ रखने के लिए 5 आयुर्वेदिक उपाय शेयर की हैं। इस लेख में हम आपको इनके बारे में विस्तार से बता रहे हैं।
पानी के अत्यधिक संपर्क में आने से आपके नाखून खराब हो सकते हैं और संक्रमण का खतरा भी बढ़ जाता है। इसलिए उन्हें साफ और सूखा रखें और गीले बर्तनों को छूते या प्रयोग करते समय दस्ताने पहनें।
ऐसे फूड्स खाएं जो बायोटिन से भरपूर हों जैसे, शकरकंद, फलियां, बादाम, अंडे की जर्दी और केले। यह हमारे शरीर के अंदर केराटिन के उत्पादन में मदद करते हैं। इससे आपके नाखूनों को स्वस्थ रखने में मदद करता है।
आयुर्वेदिक की मानें, तो नाखून शरीर में वात असंतुलन के कारण प्रभावित हो सकते हैं। इसलिए, उन्हें मॉइस्चराइज करने के लिए वात को संतुलित करने वाले तेल जैसे कैस्टर ऑयल और बादाम के तेल आदि का उपयोग करें। यह नाखूनों को मजबूत और मुलायम बनाने में मदद करता है।
नाखूनों के मैट्रिक्स को बैक्टीरिया और अन्य से बचाने के लिए क्यूटिकल्स आवश्यक हैं। इसलिए आपको उन्हें काटने से बचना चाहिए। इसके अलावा, क्यूटिकल को बार-बार धकेलने या हटाने से बचें क्योंकि इससे मैट्रिक्स में संक्रमण का खतरा रहता है।
नाखूनों को स्वस्थ रखने के लिए यह एक जरूरी कदम है। आपको कुछ समय के लिए नाखूनों को पॉलिश करने और अन्य ट्रीटमेंट्स से बचना चाहिए। क्योंकि ये आपके नाखूनों को नुकसान पहुंचाते हैं।
दृष्टि सबसे महत्वपूर्ण इंद्रियों में से एक है जो हमें दुनिया को देखने में मदद करती है। हालाँकि, उम्र, जीवनशैली और आनुवंशिकी जैसे कई कारकों के कारण समय के साथ हमारी दृष्टि खराब हो सकती है। जबकि आधुनिक चिकित्सा दृष्टि समस्याओं के लिए विभिन्न उपचार प्रदान करती है, आयुर्वेद, एक प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति, दृष्टि में सुधार के लिए प्राकृतिक उपचार प्रदान करती है। यह लेख कुछ आयुर्वेदिक उपचारों के बारे में बताएगा जो आपकी दृष्टि को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं।
आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए कुछ आयुर्वेदिक उपचार इस प्रकार हैं:
1.त्रिफला : त्रिफला, तीन फलों का मिश्रण है, जो दृष्टि सुधारने के लिए एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक उपाय है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट होते हैं जो आंखों को ऑक्सीडेटिव तनाव से बचाने में मदद करते हैं और आंखों के ऊतकों के पुनर्जनन को बढ़ावा देते हैं। इसे या तो मौखिक रूप से लिया जा सकता है या आंखों को धोने के लिए लगाया जा सकता है। यह आयुर्वेदिक मधुमेह रेटिनोपैथी के लिए एक उत्कृष्ट उपाय है ।
2.आंवला: आंवला, जिसे भारतीय करौदा भी कहा जाता है, विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है। यह आंखों की मांसपेशियों को मजबूत करके और इंट्राओकुलर दबाव को कम करके दृष्टि को बेहतर बनाने में मदद करता है। आंवला को या तो मुंह से खाया जा सकता है या फिर आंखों को धोने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
3.केसर : केसर, क्रोकस सैटिवस पौधे से प्राप्त एक मसाला है, जो दृष्टि सुधारने के लिए एक प्राकृतिक उपाय है। इसमें ऐसे यौगिक होते हैं जो रेटिना की रक्षा करने और आँखों में रक्त परिसंचरण को बेहतर बनाने में मदद करते हैं। केसर का सेवन या तो मौखिक रूप से किया जा सकता है या आई ड्रॉप के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
4.हरीतकी : हरीतकी, जिसे टर्मिनलिया चेबुला के नाम से भी जाना जाता है, एक जड़ी बूटी है जिसका उपयोग आमतौर पर आयुर्वेदिक नेत्र उपचार में किया जाता है। यह दृष्टि में सुधार सहित कई स्वास्थ्य लाभ प्रदान कर सकता है। हरीतकी एंटीऑक्सिडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी यौगिकों से भरपूर होती है जो आंखों को ऑक्सीडेटिव तनाव और सूजन से बचाने में मदद कर सकती है। यह आंखों में रक्त परिसंचरण में सुधार कर सकती है और अंतःस्रावी दबाव को कम कर सकती है। हरीतकी का उपयोग अक्सर आयुर्वेदिक आई ड्रॉप्स में किया जाता है, जो दृष्टि में सुधार, आंखों की थकान को कम करने और सूखापन और जलन से राहत दिलाने में मदद कर सकती है।
5.विभीतकी : विभीतकी, जिसे टर्मिनलिया बेलिरिका के नाम से भी जाना जाता है, आयुर्वेदिक नेत्र उपचार में आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली एक और जड़ी बूटी है। यह दृष्टि में सुधार सहित कई स्वास्थ्य लाभ प्रदान कर सकती है। विभीतकी एंटीऑक्सिडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी यौगिकों से भरपूर है जो आंखों को ऑक्सीडेटिव तनाव और सूजन दोनों से बचाने में मदद कर सकते हैं। यह आंखों में रक्त परिसंचरण में सुधार कर सकता है और अंतःस्रावी दबाव को कम कर सकता है। विभीतकी का उपयोग अक्सर आयुर्वेदिक आई ड्रॉप्स में किया जाता है, जो दृष्टि में सुधार, आंखों की थकान को कम करने और आंखों के सूखेपन और जलन को दूर करने में मदद कर सकता है।
6.बिलबेरी : बिलबेरी, जिसे वैक्सीनियम मायर्टिलस के नाम से भी जाना जाता है, ब्लूबेरी जैसा एक छोटा फल है। एंथोसायनोसाइड्स की उच्च सामग्री के कारण यह आयुर्वेदिक नेत्र उपचार में एक लोकप्रिय घटक है, जो शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट हैं जो आंखों को ऑक्सीडेटिव तनाव और सूजन से बचाने में मदद कर सकते हैं। बिलबेरी आंखों में रक्त परिसंचरण में सुधार कर सकती है, रक्त वाहिकाओं को मजबूत कर सकती है और रात की दृष्टि में सुधार कर सकती है। इसका उपयोग अक्सर आयुर्वेदिक आई ड्रॉप और सप्लीमेंट्स में किया जाता है, जो दृष्टि में सुधार, आंखों की थकान को कम करने और सूखापन और जलन से राहत दिलाने में मदद कर सकते हैं।
दालचीनी एक अद्भुत मसाला है जिसका उपयोग सदियों से औषधीय और पाक विधियों में किया जाता रहा है। अगर दालचीनी के फायदे जितने गिनाए जाए कम ही लगेंगे। यह न केवल खाने का स्वाद बढ़ाती है बल्कि विभिन्न बीमारियों को रोकने और उनका इलाज करने में भी मदद करती है। आज के इस ब्लॉग में हम दालचीनी के फायदे और इसके दुष्प्रभावों पर विस्तृत जानकारी देंगे ताकि आप इसका उपयोग सही तरीके से कर सकें।
दालचीनी के स्वास्थ्य लाभ कई हैं जो इसे एक बेहतरीन घरेलू उपचार बनाते हैं। मुख्यतः दालचीनी के फायदे मधुमेह नियंत्रण, वजन घटाने, हृदय रोगों में, सर्दी और खांसी और मासिक धर्म में राहत प्रदान करने जैसी समस्याओं के लिए होता है।
1. दस्त पर रोक लगाने के लिए दालचीनी का उपयोग
दालचीनी में प्राकृतिक एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं जो पेट के बैक्टीरिया को मारने में मदद करते हैं। दस्त के दौरान दालचीनी का सेवन शरीर में पानी की कमी को दूर करता है और पेट की ऐंठन को कम करता है। एक गिलास गर्म पानी में एक चुटकी दालचीनी पाउडर मिलाकर पीने से दस्त में राहत मिलती है।
2. आमाशय विकार में दालचीनी का प्रयोग
दालचीनी पाचन तंत्र को बेहतर बनाती है और गैस्ट्रिक समस्याओं से राहत देती है। अगर आपको पेट की गैस, एसिडिटी या पाचन संबंधी अन्य समस्याएं हो रही हैं तो दालचीनी आपके लिए बेहद फायदेमंद साबित हो सकती है। इसे चाय या गर्म पानी के साथ लेने से पेट की परेशानियों में राहत मिलती है।
3. आंतों के रोग में दालचीनी के सेवन से फायदा
दालचीनी आंतों की सूजन को कम करने और उन्हें स्वस्थ रखने में सहायक होती है। इसमें पाए जाने वाले एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण आंतों के संक्रमण से बचाव करते हैं। आंतों के रोगों जैसे अल्सर और इन्फ्लेमेटरी बाउल डिसऑर्डर (IBD) में भी दालचीनी का सेवन फायदेमंद होता है।
4. प्रसव के बाद दालचीनी के सेवन से फायदा
प्रसव के बाद महिलाओं को दालचीनी का सेवन करने की सलाह दी जाती है क्योंकि यह शरीर को फिर से ऊर्जा प्रदान करती है और प्रसव के बाद की थकान को दूर करने में सहायक होती है। इसके सेवन से शरीर को आवश्यक पोषण मिलता है और कमजोरी से राहत मिलती है।
5. त्वचा संबंधी रोगों में दालचीनी के फायदे
दालचीनी के जीवाणुरोधी (एन्टी-बैक्टीरियल) और सूजनरोधी (एन्टी-इंफ्लेमेटरी) गुण त्वचा की समस्याओं को दूर करने में मदद करते हैं। इसे त्वचा पर लगाने से संक्रमण, फंगल इन्फेक्शन और मुंहासों में राहत मिलती है। आप दालचीनी पाउडर को शहद के साथ मिलाकर फेस मास्क के रूप में भी उपयोग कर सकते हैं जिससे त्वचा साफ और दमकती हुई नजर आएगी।
6. दालचीनी के सेवन से बुखार में लाभ
अगर आपको बुखार हो तो दालचीनी का काढ़ा बनाकर पीने से बुखार में राहत मिलती है। इसके सेवन से शरीर का तापमान सामान्य होता है और बुखार से जल्दी छुटकारा मिलता है। इसके एन्टी-बैक्टीरियल गुण बुखार के कारण होने वाले संक्रमण को दूर करने में मदद करते हैं।
7. बहरेपन की समस्या में दालचीनी से लाभ
कुछ पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों में दालचीनी का उपयोग बहरेपन की समस्या के इलाज के लिए किया जाता है। इसका सेवन कान की नसों को मजबूत करता है और सुनने की क्षमता में सुधार करता है। हालांकि, इसे उपयोग करने से पहले डॉक्टर की सलाह लेना आवश्यक है।
8. दालचीनी का उपयोग कर रक्तस्राव पर रोक
दालचीनी रक्त को जमाने में सहायक होती है जिससे चोट या घाव होने पर रक्तस्राव को रोका जा सकता है। इसका सेवन रक्त में प्लेटलेट्स की संख्या को बढ़ाता है और चोट को जल्दी ठीक करने में मदद करता है।
9. साइनस में दालचीनी से फायदा
साइनस की समस्या में दालचीनी का सेवन काफी फायदेमंद होता है। यह साइनस की सूजन और दर्द को कम करने में मदद करती है। इसका काढ़ा बनाकर पीने से नाक की बंदी और सिरदर्द में भी राहत मिलती है।
10. टीबी में दालचीनी से लाभ
दालचीनी का सेवन टीबी रोगियों के लिए भी फायदेमंद साबित हो सकता है। इसके एन्टी-इंफ्लेमेटरी गुण टीबी के लक्षणों को कम करने में मदद करते हैं। हालांकि, टीबी के इलाज के लिए डॉक्टर की सलाह और उपचार आवश्यक है।
11. गठिया में फायदेमंद दालचीनी का उपयोग
दालचीनी के एन्टी-इंफ्लेमेटरी गुण गठिया के दर्द और सूजन को कम करने में सहायक होते हैं। इसका नियमित सेवन जोड़ों के दर्द को कम करता है और गठिया के लक्षणों में सुधार करता है। दालचीनी का तेल भी दर्द के प्रभावित क्षेत्रों पर मालिश के लिए उपयोग किया जा सकता है।
चाय में मिलाकर: दालचीनी की चाय का सेवन करने से स्वास्थ्य में सुधार होता है।
काढ़ा बनाकर: दालचीनी का काढ़ा सर्दी, खांसी और बुखार में फायदेमंद होता है।
खाने में मसाले के रूप में: इसे सब्जियों और दालों में स्वाद बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करें।
दालचीनी पाउडर का सेवन: इसे शहद या दूध के साथ मिलाकर ले सकते हैं।
त्वचा पर लेप बनाकर: दालचीनी और शहद का पेस्ट बनाकर त्वचा पर लगाएं।
हालांकि दालचीनी के कई स्वास्थ्य लाभ हैं लेकिन इसका अत्यधिक सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। दालचीनी के नुकसान निम्नलिखित हैं:
1.लीवर को नुकसान: दालचीनी में कुमारिन नामक तत्व होता है जो लीवर को नुकसान पहुंचा सकता है अगर इसका अधिक सेवन किया जाए।
2.एलर्जी: कुछ लोगों को दालचीनी से एलर्जी हो सकती है जिससे त्वचा पर जलन, सूजन या खुजली हो सकती है।
3.गर्भवती महिलाओं के लिए हानिकारक: गर्भवती महिलाओं को दालचीनी का अत्यधिक सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि यह गर्भाशय के संकुचन को उत्तेजित कर सकता है।
4.रक्त में शर्करा असंतुलन: अधिक मात्रा में दालचीनी का सेवन रक्त शर्करा के स्तर को असंतुलित कर सकता है।
सच है कि अदरक के बिना चाय ही नहीं, बल्कि कई डिशेज का जायका अधूरा-सा रहता है, लेकिन एक सच ये भी है कि इसकी ज्यादा मात्रा कुछ लोगों के लिए मुसीबत की वजह बन सकती है। इस आर्टिकल में हम आपको अदरक के कुछ ऐसे ही साइड इफेक्ट्स और उनसे बचने के उपायों के बारे में बताएंगे, जिन्हें जानना आपके लिए बेहद जरूरी है।
नुकसानदायक भी हो सकती है अदरक मतली और उल्टी
आमतौर पर अदरक का सेवन उल्टी और मतली को कम करने के लिए असरदार माना जाता है, लेकिन कुछ लोगों में इसका उल्टा असर भी पड़ सकता है। ज्यादा मात्रा में अदरक खाने से उल्टी-दस्त की शिकायत हो सकती है।
मुंह में जलन
अदरक में कैप्साइसिन नामक तत्व भी पाया जाता है, बता दें कि यही कंपाउंड मिर्च में भी मौजूद होता है। ऐसे में, अगर आप भी खानपान में ज्यादा मात्रा में अदरक का सेवन कर रहे हैं, तो इससे मुंह में जलन की समस्या भी हो सकती है।
दस्त की समस्या
खाने-पीने की चीजों में ज्यादा अदरक शामिल करने से दस्त की परेशानी भी हो सकती है। यही वजह है कि कब्ज की समस्या में इसके सेवन की सलाह दी जाती है।
त्वचा की जलन
अदरक के तेल में कुछ ऐसे रसायन होते हैं जो कुछ लोगों की त्वचा को परेशान कर सकते हैं। जिंजर ऑयल को सीधे त्वचा पर लगाने से त्वचा में जलन, लालिमा या खुजली की शिकायत हो सकती है।
दवाओं के साथ साइड इफेक्ट
कुछ दवाओं के साथ मिलकर अदरक पाचन तंत्र से जुड़ी समस्याएं भी दे सकती है। अगर आप रेगुलर कोई दवा ले रहे हैं, तो अदरक का सेवन करने से पहले अपने डॉक्टर से सलाह लेना भी जरूरी है।
रक्त को पतला करे
अदरक में शामिल कुछ कंपाउंड शरीर में रक्त के थक्के बनने से रोकते हैं, लेकिन अगर आप रक्त को पतला करने वाली दवाएं ले रहे हैं, तो भी अदरक का सेवन करने से पहले आपको डॉक्टर से परामर्श कर लेना चाहिए।
अदरक का सेवन सीमित मात्रा में करें। ज्यादा मात्रा में अदरक खाने से इससे होने वाले साइड इफेक्ट्स का खतरा बढ़ जाता है।
जिंजर ऑयल को सीधे त्वचा पर लगाने से जलन हो सकती है। अगर आपको अदरक के तेल का इस्तेमाल करना भी है, तो इसे नारियल तेल या बादाम के तेल में मिलाकर ही यूज करें।
गर्भवती या स्तनपान कराने वाली महिलाओं को अदरक का सेवन करने से पहले अपने डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।
अगर आप नियमित रूप से कोई दवा ले रहे हैं, तो भी डॉक्टर से परामर्श जरूर लें।
अगर सीमित मात्रा में सेवन किया जाए, तो अदरक एक असरदार जड़ी-बूटी है जो आपको सर्दी-जुकाम से लेकर कई छोटी-बड़ी बीमारियों से बचा सकती है, लेकिन अदरक का सेवन करने से पहले इससे जुड़े साइड इफेक्ट्स के बारे में जागरूक होना और जरूरी सावधानी बरतना भी काफी ज्यादा जरूरी है।
ब्राह्मी, भारत की प्राचीन जड़ी बूटी है। इसे तंत्रिका तंत्र और दिमाग तेज करने वाले औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है। आयुर्वेदिक उपचार में ब्राह्मी को मेध्यरसायन का नाम दिया गया है एवं इसका अर्थ है नसों के लिए शक्तिवर्द्धक के रूप में कार्य करने वाली तथा पुनर्जीवित करने वाले तत्व से युक्त।
ब्राह्मी ने तनाव को कम करने वाले तत्व के रूप में बहुत लोकप्रियता हासिल की है। पिछले 3000 वर्षों से भारतीय पारंपरिक औषधियों में ब्राह्मी का इस्तेमाल किया जा रहा है। भारत के प्राचीन ग्रंथों चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में भी इस जड़ी बूटी का उल्लेख किया गया है। सुश्रुत संहिता में ब्राह्मी घृत और ब्राह्मी को ऊर्जा प्रदान करने वाली बताया गया है।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि ब्राह्मी शब्द ब्राह्माण या हिंदू देवता ब्रह्मा से लिया गया है। इसलिए ब्राह्मी का मतलब है ब्रह्मा की शक्ति। ब्राह्मी तंत्रिका तंत्र को शक्ति देती है। ब्राह्मी का पौधा रसीला होता है। ये जमीन पर फैला होता है और इसमें अत्यधिक पानी को संग्रहित करने की क्षमता होती है। ब्राह्मी के फूल सफेद, गुलाबी और नीले रंग के होते हैं।
ब्राह्मी का सेवन दिन में 3 बार कर सकते हैं। सुबह, दोपहर और रात को खाने के बाद ब्राह्मी का सेवन किया जा सकता है।
ब्राह्मी का तेल त्वचा पर लगाया जाता है। सिर पर भी इसके तेल से मसाज की जाती है जो दिमाग के तेज बनाने में भी मदद करता है।
ब्राह्मी का पेस्ट बनाकर उसे त्वचा पर लगाया जा सकता है। इससे त्वचा स्वस्थ रहेगी।
ब्राह्मी टैबलेट के रूप में भी खाई जाती है।
ब्राह्मी का पाउडर कई स्वास्थ लाभ प्रदान करता है।
किसी भी हर्बल पूरक का लंबे समय तक इस्तेमाल आमतौर पर अच्छा नहीं होता है, और यही ब्राह्मी पर भी लागू होता है। नियमित रूप से 12 हफ्तों से अधिक इसका इस्तेमाल करना ठीक नहीं माना जाता है, इसलिए जब आपको इसकी ज़रूरत हो तभी यह इस्तेमाल किया जाना चाहिए जैसे किसी लक्षण या बीमारी को कम करने के लिए।
इसके अलावा आपको डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए यदि इसका सेवन करने से आप दमा, मूत्र मार्ग में संक्रमण, कम हृदय गति या हाइपरग्लेसिमिया से ग्रस्त होते हैं। यदि दिल की दर (bradycardia) मंदी है तो इसके उपयोग से बचें।
जिन लोगों का पेट संवेदनशील है या जिन्हें अल्सर है, उन्हें शायद इसका सेवन अच्छी तरह से बर्दाश्त ना हो। उन्हें यह घी के साथ ही लेनी चाहिए।
ब्राह्मी का उपयोग तनाव से राहत दिलाये -
तनाव और चिंता से राहत देने के लिए, ब्राह्मी पौधे की पत्तियों (केवल एक समय में 2-3) को चबाया जा सकता है। ब्राह्मी में कुछ सक्रिय तत्व होते हैं, जो हमारे शरीर के हार्मोनल संतुलन पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं, जिसके फलस्वरूप तनाव और चिंता, पारंपरिक दवा के दुष्प्रभावों आदि से बचा जा सकता है। ब्राह्मी कोर्टिसोल के स्तर को कम करके तनाव और चिंता को खत्म करने में मदद करती है। कोर्टिसोल को तनाव हार्मोन के रूप में जाना जाता है। ब्राह्मी तनाव से जुड़े हार्मोन को विनियमित करके तनाव के प्रभावों को कम करती है।
ब्राह्मी बेनिफिट्स पाचन तंत्र को बनाये स्वस्थ -
ब्राह्मी एक शामक और सुखदायक जड़ी बूटी है, साथ ही इसमें सूजन विरोधी गुण भी हैं, ब्राह्मी अल्सर जैसे जठरांत्र विकारों से राहत प्रदान करने में मदद दिला सकती है।
ब्राह्मी करती है मधुमेह के खतरे को कम -
कुछ शोध अध्ययन में, ब्राह्मी को बढ़े हुए रक्त शर्करा के स्तर के साथ जोड़ा गया है इसलिए ब्राह्मी हाइपोग्लाइसीमिया (आम तौर पर असामान्य रूप से कम रक्त शर्करा) में सुधार करने के लिए सक्षम होती है और आपको एक सामान्य, स्वस्थ जीवन जीने में मदद करती है।
ब्राह्मी का उपयोग करें त्वचा और बालों के लिए -
यदि आप घाव भरने में तेजी लाने चाहते हैं और उसी समय त्वचा शुद्ध करना चाहते हैं, तो प्रभावित क्षेत्र पर ब्राह्मी का रस या तेल लगाएं। यह त्वचा पर निशान को कम करते हैं और त्वचा को चिकनी और स्वस्थ बनाते हैं।
रूखे बालों का इलाज करने और बालों के झड़ने को रोकने के लिए ब्रह्मी का तेल बहुत अच्छा है। इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट घटक न केवल आपके बालों के रूखेपन को ठीक करते हैं बल्कि यह आपके बालों को स्वस्थ बनाने में भी मदद करती है। ब्राह्मी बालों की समस्याओं के इलाज के लिए काफी फायदेमंद है।
मिर्गी के इलाज में फायदेमंद है ब्राह्मी -
ग्लूटामेट और डोपामाइ के स्तर में हुए परिवर्तन के कारण मिर्गी का रोग होता है। इन न्यूरोट्रांसमीटरों को विनियमित करके, ब्राह्मी मिर्गी के कारण हुई सूजन को कम करने में मदद कर सकती है। ब्राह्मी की पत्तियां हज़ारों सालों से मिर्गी के इलाज के रूप में इस्तेमाल की जा रही है। यह मिरगी के दौरे को रोकती है, साथ ही मानसिक रोग के अन्य रूपों और नसों के दर्द सहित द्विध्रुवी विकारो को रोकने में मदद करती है। यह कहा जाता है कि ब्राह्मी स्मृति की कमी में सुधार करने के साथ मिर्गी के इलाज में भी उपयोग की जा सकती है।
ब्राह्मी के लाभ इम्यून सिस्टम को दे बढ़ावा -
ब्राह्मी का नियमित रूप से उपयोग आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में मदद कर सकता है। इसमें मौजूद विभिन्न एंटीऑक्सीडेंट और पोषक तत्व हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को अनेक बीमारियों से लड़ने में मदद करते हैं। ब्राह्मी का किसी भी रूप जैसे चाय या सम्पूर्ण पत्ते आदि में सेवन किया जाए। तो यह प्रतिरक्षा प्रणाली को काफी हद तक बढ़ाने में मदद करती है। इसके एंटीऑक्सीडेंट यौगिक वायरस या जीवाणु संक्रमण के खिलाफ हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली की प्रतिक्रिया का समय बढ़ाने के लिए होते हैं।
ब्राह्मी के पत्तों से सूजन का घरेलू उपचार -
ब्राह्मी प्रोस्टाग्लैंडिन के उत्पादन को कम करके सूजन और दर्द से राहत देती है। जब ब्राह्मी पौधे की पत्तियों को शरीर के प्रभावित हिस्से पर मला जाता है, तब इसमें मौज़ूद यौगिक सूजन को कम और जलन को दूर करते हैं, साथ ही शरीर के अंदर हो रही उत्तेजना को खत्म करते हैं। यह गठिया और अन्य सूजन-संबंधी रोगो से पीड़ित लोगों के लिए आदर्श हैं। कुछ रिसर्च का कहना है कि दर्द को कम करने में ब्राह्मी मोर्फ़िन की तरह प्रभावी हो सकती है लेकिन इसके कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं होते हैं। इसका उपयोग पीठ दर्द, मांसपेशियों में दर्द और यहां तक कि सिरदर्द से छुटकारा पाने के लिए भी किया जा सकता है। ब्राह्मी के तेल से प्रभावित क्षेत्र में मसाज करने से भी राहत मिल सकती है।
Read Full Blog...
आज के दौर की जीवनशैली में तनाव और चिंता के कई कारण होते हैं। हर कोई कभी न कभी इसकी वजह से परेशान जरूर रहता है। ऐसे में उसे कुछ समझ नहीं आता कि क्या किया जाए। डिप्रेशन से बचने के लिए बाजार में कई तरह की दवाएं मौजूद हैं। इसके साथ ही साथ कई तरह के ध्यान और व्यायाम भी तनाव और चिंता को दूर करने में कारगर होते हैं। लेकिन आज हम आपको आयुर्वेद के कुछ ऐसे नुस्खों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनका इस्तेमाल कर आप तनाव से काफी हद तक छुटकारा पा सकते हैं।
डिप्रेशन हमारे शरीर को कई तरीकों से नुकसान पहुंचाता है। इसकी वजह से शरीर में पित्त, कफ और वात का असंतुलन हो जाता है। इसके अलावा एलर्जी, अस्थमा, हाई कोलेस्ट्रॉल और हाइपरटेंशन जैसी समस्याएं डिप्रेशन की वजह से जन्म लेती हैं। कुछ आयुर्वेदिक औषधियों के सेवन से तनाव से आसानी से छुटकारा पाया जा सकता है। तो आइए, जानते हैं कि ऐसी कौन सी हर्बल युक्तियां हैं जो तनाव भगाने का काम करती हैं-
ब्राह्मी – ब्राह्मी तनाव पैदा करने वाले हार्मोन कोर्टिसोल को कम करने का काम करता है। यह तनाव के प्रभावों पर प्रतिक्रियात्मक कारवाई करने के लिए भी जाना जाता है। ब्राह्मी दिमाग को शांत रखने के साथ-साथ एकाग्रता बढ़ाने में भी काफी मददगार है।
भृंगराज – भृंगराज चाय दिमाग को निरंतर एनर्जी देने का काम करती है। इससे मस्तिष्क में रक्त प्रवाह दुरुस्त रहता है। यह दिमाग को शांत तो रखता ही है, साथ ही साथ पूरे शरीर को भी काफी आराम पहुंचाता है।
जटामासी – जटामासी एंटी स्ट्रेस हर्ब के रुप में काफी लोकप्रिय है। तनाव भगाने के लिए जटामासी की जड़ों का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। यह जड़ें हमारे दिमाग और शरीर को टॉक्सिन्स से मुक्त बनाती हैं। तथा ब्रेन फंक्शन्स को दुरुस्त रखने में काफी मदद करती हैं।
अश्वगंधा – अश्वगंधा एमीनो एसिड्स और विटामिन का बेहतरीन संयोजन है। यह दिमाग में एनर्जी को बूस्ट करने तथा स्टेमिना मजबूत करने में काफी मदद करता है।
इन आर्युवेदिक औषधियो के बारे मे और जानकारी प्राप्त करने के लिए आप देख सकते है आगे के ब्लॉग
--icon----> --icon---->