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Suveta Notiyal

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Blog by Suveta Notiyal | Digital Diary

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जाने क्या है अशोक के पेड़ के फायदे और दुष्प्रभाव


अशोक के पेड़ के फायदे और दुष्प्रभाव हमारे आसपास मौजूद पेड़ हमारे जीवन में अहम योगदान निभाते हैं। ये न केवल पर्यावरण को शुद्ध रखने में मदद करते हैं बल्कि हमारे स्वास्थ्य की देखभाल करने में भी कारगर है, इसका मुख्य कारण है इन पेड़ों में पाए जाने वाले पौष्टिक तत्व। ऐसा ही एक पेड़ है अशोक का पेड़, जो अपने पौष्टिक तत्वों की वजह से कई बीमारियों का इलाज करने की क्षमता रखता है। तो चलिए जानते हैं कि अशोक के पेड़... Read More

अशोक के पेड़ के फायदे और दुष्प्रभाव

हमारे आसपास मौजूद पेड़ हमारे जीवन में अहम योगदान निभाते हैं। ये न केवल पर्यावरण को शुद्ध रखने में मदद करते हैं बल्कि हमारे स्वास्थ्य की देखभाल करने में भी कारगर है, इसका मुख्य कारण है इन पेड़ों में पाए जाने वाले पौष्टिक तत्व। ऐसा ही एक पेड़ है अशोक का पेड़, जो अपने पौष्टिक तत्वों की वजह से कई बीमारियों का इलाज करने की क्षमता रखता है। तो चलिए जानते हैं कि अशोक के पेड़ में क्या-क्या खूबियां हैं। इसे साथ ही हम इसके उपयोग और दुष्प्रभाव पर भी बात करेंगे। पहले जानते हैं कि अशोक का पेड़ कहते किसे है।

किसे कहते हैं अशोक का पेड़

दरअसल, कई औषधीय लाभों से परिपूर्ण अशोक का पेड़ 25 से 30 फिट तक ऊंचा होता है। इसका तना भूरे रंग का होता है और पत्तियां 9 इंच लम्बी गोल व नोंकदार होती हैं। इस पेड़ का वैज्ञानिक नाम सरका इंडिका है जो लेगुमिनोसे परिवार और कोसलपिनिया उपपरिवार का हिस्सा है। यह पेड़ पूरे भारत में पाया जाता है। हिन्दू धर्म के अनुसार भी इस पेड़ का बहुत महत्व है। इसके पीछे की वजह इसका नाम है, दरअसल, अशोक शब्द का संस्कृत संस्कृत में 'अशोक' शब्द का अर्थ है 'कोई शोक नहीं' से इसे शोक को हरने वाला पेड़ माना जाता है। लोगों का मानना है कि यह पेड़ जिस जगह पर भी उगता है, वहाँ पर सभी कार्य पूर्णतः निर्बाध रूप से सम्पन्न होते चले जाते हैं।

अशोक के पेड़ के प्रकार

अशोक के पेड़ दो तरह के होते हैं, जिसमे एक का इस्तेमाल घरो में सजावट और दूसरे को आयुर्वेदिक दवाइयों में इस्तेमाल किया जाता है। ये प्रकार निम्नलिखित हैं-

 

असली अशोक का पेड़- असली अशोक के वृक्ष को लैटिन भाषा में 'जोनेसिया अशोका' कहते हैं। आम के पेड़ की तरह ही इसका पेड़ भी छायादाय होता है। असली अशोक के पेड़ की पत्तियों की लम्बाई 8 से 9 इंच होती है, जबकि इसकी चौड़ाई दो से ढाई इंच होती है। इसके पत्तों का रंग शुरुआत में ताम्बे की तरह होता है, इसलिए इसे ताम्रपल्लव भी कहा जाता है। वसंत ऋतु में इसमें नारंगी रंग के फूल होते हैं, जो बाद में सुनहरे लाल रंग के हो जाते हैं, इसी वजह से इन्हे हेमपुष्पा नाम से भी जाना जाता है।

नकली अशोक का पेड़- नकली अशोक के पेड़ और असली अशोक के पेड़ में कई अंतर हैं। इसके पत्ते आम के पत्तों की तरह होते हैं। इसके फूल सफ़ेद, पीले रंग के और फल लाल रंग के होते हैं। यह देवदार जाति का पेड़ होता है। हालांकि इस पेड़ में औषधीय गुण नहीं पाए जाते हैं।

अशोक के पेड़ के फायदे

अशोक के पेड़ के फायदे निम्नलिखित हैं

मुँहासे के इलाज में मददगार

अशोक के पेड़ की छाल फोड़े और मुंहासों को ठीक करने में फायदेमंद है। इसकी छाल को उबालकर पहले गाढ़ा काढ़ा बना लें और फिर ठंडा होने पर सरसो के तेल के साथ मिलाकर लगाने से लाभकारी प्रभाव प्राप्त होते हैं।

बुद्धि में सुधार करने में मिलती है मदद

अशोक के पेड़ के उत्पादों के नियमित सेवन करने से बुद्धि प्रबल होती है। इसके लिए अशोक की छाल और ब्राह्मी पाउडर को बराबर मात्रा में मिलाकर प्राप्त मिश्रण का सेवन करना है। रोजाना 1 चम्मच मिश्रण को दो बार एक कप दूध के साथ सेवन करना है।

त्वचा की देखभाल में सहायक

अशोक के पेड़ से प्राप्त जड़ी-बूटियों का सेवन हमारी त्वचा के लिए लाभदायक है। दरअसल, इन जड़ी-बूटियों से रक्त से विषाक्त पदार्थों को निकालने में मदद मिलती है, जिससे रक्त शुद्ध होता है और एलर्जी जैसे अन्य त्वचा विकारों की शुरुआत को रोकने में मदद मिलती है। इसके अलावा अशोक के पेड़ के अर्क का उपयोग करके जलन और त्वचा की जलन का भी इलाज किया जा सकता है।

पेट की सूजन और अन्य सूजन से निपटता है

अशोक के पेड़ की छाल या पत्तियों का सेवन करने पर पेट से कीड़े निकालने में मदद मिलती है और इस तरह दर्द और सूजन से राहत मिलती है। अशोक के पेड़ की छाल में एंटी-फंगल, एंटी-बैक्टीरियल और दर्द निवारक गुण भी होते हैं। अशोक का पेड़ आंतरिक और बाहरी दोनों तरह की सूजन से लड़ने में मदद करता है और जलन से राहत देता है।

दर्द से राहत दिलाने में मदद करता है

अशोक के पेड़ के अर्क में एनाल्जेसिक गुण होते हैं और इसलिए दर्द से राहत दिलाने में मदद करते हैं। यदि आप अपने जोड़ों में दर्द का अनुभव कर रहे हैं, तो आप छाल का पेस्ट प्रभावित क्षेत्रों पर लगा सकते हैं और कुछ राहत का अनुभव कर सकते हैं।

बवासीर और मधुमेह के लिए लाभकारी

अशोक के पेड़ में लगने वाले फूल मधुमेह पीड़ितों के लिए रामबाण इलाज साबित हो सकता है। दरअसल, इन फूलों को सुखाकर इससे मधुमेह का इलाज किया जा सकता है। इसके फूल रक्त शर्करा के स्तर की जांच करने में मदद करते हैं। इस अशोक के पेड़ से तैयार हर्बल सप्लीमेंट बवासीर के इलाज में मदद करते हैं। अशोक के पेड़ की छाल से तैयार काढ़ा आंतरिक बवासीर के इलाज में मदद करता है।

अशोक के पेड़ के उपयोग

चूंकि अशोक के पेड़ की छाल त्वचा के लिए काफी लाभकारी है, इस वजह से कई कॉस्मेटिक प्रोडक्ट बनाने में इसका इस्तेमाल किया जाता है, जो सौंदर्य प्रसाधन के रूप में हमारी त्वचा को लाभ पहुंचाते हैं। इस पेड़ की छाल बिच्छू के काटने पर मारक के रूप में भी काम करता है। इसके अलावा पेड़ के सूखे फूल भी मधुमेह रोगियों के लिए फायदेमंद होते हैं। इस वजह से कई प्रकार की औषधियों में भी अशोक के पेड़ का प्रयोग किया जाता है।

 

डॉक्टर की सलाह पर हम विभिन्न रूप से अशोक के पेड़ से प्राप्त जड़ी-बूटियों का उपयोग कर सकते हैं।

इसके नरम पत्तों का काढ़ा बनाकर प्रतिदिन दो चम्मच सेवन।

छाल का बारीक पाउडर बनाकर एक चम्मच प्रतिदिन सेवन।

इसके बीज का पाउडर बनाकर आधा चम्मच प्रतिदिन सेवन।

सूजन के इलाज के लिए पत्तों और फूलों से बने लेप का उपयोग।

इसके फूल, जड़, छाल और पत्तों का दो चम्मच मिश्रित जूस बनाकर आधा कप पानी के साथ सेवन।

अशोक के पेड़ के दुष्प्रभाव और एलर्जी

हालांकि अशोक के पेड़ के कई स्वास्थ्य लाभ हैं, लेकिन इसके दुष्प्रभाव भी हैं। इसलिए गर्भवती महिलाओं को इस पेड़ के उत्पादों का सेवन करने से बचना चाहिए क्योंकि इससे जटिलताएं हो सकती हैं। जो लोग कुछ प्रकार के भोजन के प्रति संवेदनशील हैं, उन्हें इस पेड़ के उत्पादों का सेवन करने से पहले डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। इसके अलावा मासिक धर्म न होने की स्थिति में इसका सेवन स्थिति को और खराब कर सकता है। अगर आपको हाई ब्लडप्रेशर की समस्या है तब भी आपको डॉक्टर की सलाह पर ही इसका सेवन करना चाहिए।

अशोक वृक्ष की खेती

अशोक का पेड़ मुख्य रूप से भारतीय उपमहाद्वीप में पाया और उगाया जाता है। इसे भारत और मलेशिया का मूल निवासी बताया गया है। इस पेड़ की खेती के लिए सबसे अच्छा समय मई और जून के महीने को माना गया गया है। अशोक के पेड़ों को बड़े पैमाने पर बीजों के साथ फैलाना मुश्किल है, इसलिए ज्यादातर इसके कलम की मदद से यह पेड़ लगाए जाते हैं। इसकी कलम लगाने से पहले इसे लिए मिट्टी तैयार करना जरुरी होता है।

 

इसके लिए मिट्टी में थोड़ा नीमखली और गोबर की खाद को डालना होता है। फिर गमले के ऊपर रेत के परत लगानई होती है, जिससे गमले में पानी को रोका जा सके, इससे कलम के ख़राब होने की शंका कम हो जाती है। कलम हमेशा 4 से 5 इंच वाली ही हो। कलम लगाने से पहले पत्तो की छटाई कर दे।

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अगर आप नहीं जानते चंदन के इतने फायदों के बारे में तो अभी जान ले क्योंकि यह बहुत फायदेमंद है


चंदन का परिचय आपने चंदन के पेड़ को कभी देखा है? अगर नहीं देखा है, तो कभी ना कभी यह जरूर सुना होगा कि, चंदन नाम का एक पेड़ होता है, जो बहुत ही सुगंधित होता है। कई लोग चंदन की लकड़ियों का इस्तेमाल अपने घरों को सजाने के लिए करते हैं। चंदन की लकड़ियों से पूजा-पाठ के सामान जैसे- अगरबत्ती, हवन सामग्री आदि भी बनाएं जाते हैं। चंदन की लकड़ी महंगी होती है, इसलिए इसकी तस्करी भी की जाती है। असल में, लोगों को... Read More

चंदन का परिचय

आपने चंदन के पेड़ को कभी देखा है? अगर नहीं देखा है, तो कभी ना कभी यह जरूर सुना होगा कि, चंदन नाम का एक पेड़ होता है, जो बहुत ही सुगंधित होता है। कई लोग चंदन की लकड़ियों का इस्तेमाल अपने घरों को सजाने के लिए करते हैं। चंदन की लकड़ियों से पूजा-पाठ के सामान जैसे- अगरबत्ती, हवन सामग्री आदि भी बनाएं जाते हैं। चंदन की लकड़ी महंगी होती है, इसलिए इसकी तस्करी भी की जाती है।

असल में, लोगों को चंदन के पेड़ के बारे में केवल इतनी ही जानकारी होती है। अधिकांश लोगों को यह पता ही नहीं है कि, चंदन एक बहुत ही फायदेमंद जड़ी-बूटी भी है, और चन्दन का प्रयोग बहुत सालों से चिकित्सा के लिए किया जा रहा है। आइए जानते हैं कि चंदन के उपयोग से आप किस-किस बीमारी में लाभ ले सकते हैं।

चंदन क्या है?

चंदन एक जड़ी-बूटी है। सुगन्धित, तथा शीतल होने से यह लोगों को आनन्द प्रदान करता है, इसलिए इसे चन्दन कहते हैं। चंदन के वृक्ष हरे रंग के और 6 से 9 मीटर ऊंचे होते हैं। इसकी शाखाएं झुकी होती हैं। चंदन के पेड़ की छाल लाल  या भूरे, या फिर भूरे-काले रंग की होती है। चंदन के पत्ते अण्डाकार, मुलायम होते हैं, और पत्ते के आगे वाला भाग नुकीला होता है। चंदन के फूल भूरे-बैंगनी, या जामुनी रंग होते हैं, जो गंधहीन होते हैं। इसके फल गोलाकार, मांसल होते हैं, जो पकने पर शयामले, या बैंगनी रंग के हो जाते हैं। इसके बीज कठोर, अण्डाकार अथवा गोलाकार होते हैं।

चंदन के वृक्ष प्रायः 20 वर्ष के बाद ही बड़े होते हैं। पेड़ के भीतर का हिस्सा हल्का पीला रंग का, और सुगंधित होता है। पुराने वृक्षों  की छाल दरार युक्त होती है। चंदन का वृक्ष 40-60 वर्ष की आयु के बाद उत्तम सुगन्ध वाला हो जाता है। चंदन के वृक्ष में फूल जून से सितम्बर के बीच होते हैं, और फल नवम्बर से फरवरी तक होते हैं। ऐसी अवस्था में चंदन पूरी तरह से उपयोग करने लायक हो जाता है। चंदन के पेड़ की कुछ विशेषताएं ये हैंः-

० ​​उड़ीसा में पैदा होने वाला चंदन सबसे उत्तम होता है।

० भारत-यूनान (यवन देश) क्षेत्र में में पैदा होने वाला चंदन गुणवत्ता में थोड़ा कम होता है।

० पश्चिमी उत्तर प्रदेश आदि स्थानों में होने वाला चंदन सबसे कम गुणवत्ता वाला बताया गया है।

० गंध के हिसाब से उड़ीसा का चंदन सर्वोत्तम होता है।

आयुर्वेद के अनुसार, चंदन के पेड़ केवल एक तरह के नहीं होते। देश-विदेश में चंदन के पेड़ भिन्न-भिन्न तरह के पाये जाते हैं, जो ये हैंः-

 1.सबसे अच्छे चन्दन के लक्षण

जो चंदन बहुत ही अच्छी गुणवत्ता का होता है, वह दिखने में सफेद रंग का होता है, लेकिन जब उसके टुकड़े करते हैं, तो लाल रंग का होता है। इसे घिसने पर उससे पीला रंग जैसा पदार्थ निकलता है। इसका सुगंध थोड़ा तीखा होता है।

 2.वेट्ट चन्दन

यह चंदन बहुत अधिक ठंडा होता है। इससे प्रयोग से जलन, बुखार, उल्टी, कफ आदि बीमारियां ठीक की जा सकती है।

 3.पीतचन्दन

यह चंदन भी सुगंध में तीखा, और ठंडा होता है। यह कुष्ठ रोग, कफ, बुखार, जलन की परेशानी में फायदेमंद होता है। दाद, वात-विकार, विष, रक्तपित्त आदि में इस्तेमाल किया जाता है।

चंदन के फायदे

अब तक आपने जाना कि चंदन क्या है, कितने तरह का होता है।आइए अब जानते हैं कि चंदन का औषधीय प्रयोग कैसे किया जाता है, इसकी मात्रा क्या होनी चाहिए, और इसकी विधियां क्यां-क्या हैं? आप चंदन का फायदा इस तरह ले सकते हैंः-

अत्यधिक प्यास लगने की परेशानी में चंदन का इस्तेमाल

कुुछ लोगों को हमेशा प्यास लगी रहती है। वास्तव में यह एक समस्या है। ऐसे में 20-40 मिली नारियल जल में, 2-4 ग्राम चंदन के चूर्ण  को मिला लें। इसे पीने से प्यास खत्म हो जाती है।

अत्यधिक छींक की समस्या में चंदन का प्रयोग

महिलाओं या पुरुषों को कभी-कभी छींक की समस्या हो जाती है। ऐसे में चंदन, तथा धनिया की पत्ती को पीस लें। इसे सूंघने से छींक आनी बन्द हो जाती हैं।

हिचकी में चंदन के उपयोग से फायदा

हिचकी से परेशान रहते हैं, तो मसूर, पलाण्डु, अथवा गृंजनक, और श्वेत चंदन लें। इसे गाय के दूध के साथ घिस लें। इसे1-2 बूंद नाक में डालें। हिचकी बंद हो जाती है।

चंदन के प्रयोग से होती है सूजन कम

चंदन की लकड़ी को जल में घिसकर, तथा तने की छाल को पीसकर शरीर पर लगाएं। इससे सूजन ठीक होती है।

खुजली को ठीक करने के लिए चंदन का प्रयोग

चंदन के प्रयोग से आप खुजली की बीमारी ठीक कर सकते हैं। चंदन को जल के साथ घिसकर त्वचा पर लगाएं। इससे खुजली ठीक होती है।

चंदन के तेल में नींबू का रस, तथा कपूर मिला लें। इसे लगाने से खुजली ठीक हो जाती है।

मुंहासों की समस्या में चंदन से लाभ

मुंहासें होना एक आम समस्या है। महिलाएं हों या पुरुष, सभी मुंहासे से परेशान रहते हैं। इसके लिए आप चंदन की लकड़ी को घिस लें। इसे मुंह में लगाएं। इससे मुंहासे, और चेहरे की झाई आदि समस्या ठीक होती है।

चर्म रोग (त्वचा विकार) में फायदेमंद चंदन का उपयोग

त्वचा के अनेक विकार में चंदन के इस्तेमाल से फायदा लिया जा सकता है। चंदन की लकड़ी को जल में घिसकर लेप करने से त्वचा के अनेक विकार ठीक होते हैं।

त्वचा पर चकत्ते हो जाने पर 2-4 ग्राम चंदन के चूर्ण को गुडूची-के रस में मिला लें। इसका सेवन करने से लाभ होता है।

पसीने की बदबू में चंदन के इस्तेमाल से लाभ

बहुत सारे लोगों के पसीने से बदबू आने की शिकायत रहती है। अगर आप भी इस परेशानी से छुटकारा चाहते हैं, तो चन्दन के चूर्ण को गुलाब जल के साथ पीसकर लगाएं। इससे फायदा होता है।

पेट की गड़बड़ी में चंदन का उपयोग

पित्त के कारण होने वाली पेट की गड़बड़ी में भी चंदन का फायदा मिल सकता है। इसमें चन्दनादि घी (5-10 ग्राम) के सेवन से आराम मिलता है।

नाभि में दर्द होने पर 20-40 मिली नारियल जल में, 2-4 ग्राम चंदन के चूर्ण को नाभि पर रखें। इससे आराम मिलता है।

एसिडिटी में फायदेमंद चंदन का सेवन

कुछ भी उल्टा-सीधा खाने, या बाहर का भोजन करने पर एसिडिटी की परेशानी आम हो गई है। एसिडिटी से परेशान लोगों को, यदि खाने के बाद सिर, एवं हृदय में दर्द होता है, या आंखों की परेशानी रहती है, तो शिरीष, हल्दी, तथा चंदन के लेप को हृदय में लगाएं। इससे लाभ होता है।

चंदन का उपयोग कर शरीर की जलन से राहत

शरीर में जलन होने पर चंदन की लकड़ी को जल में घिस लें, और तने की छाल को पीसकर शरीर पर लगाएं। इससे जलन ठीक हो जाती है।

उल्टी रोकने के लिए चंदन का इस्तेमाल

आप उल्टी को रोकने के लिए भी चंदन का इस्तेमाल कर सकते हैं। 500 मिग्रा सफेद चंदन को घिस लें। इसे 10 मिली आंवला के रस में घोल लें। इसमें मधु मिलाकर पीने से उल्टी में लाभ होता है।

इसी तरह चंदन के 5-10 ग्राम बारीक चूर्ण को, चार गुना आंवला के रस में घोल लें। इसमें मधु मिलाकर पीने से उल्टी रुक जाती है।

इसके अलावा 10-30 मिली आंवले के रस में, 1-2 ग्राम चन्दन के पेस्ट को मिला लें। इसका सेवन करने से उल्टी पर रोक लगती है।

चंदन के उपयोग से सिर दर्द से आराम

सिर दर्द होने के कई कारण हो सकते हैं। कोई भी व्यक्ति जो सिर दर्द से परेशान है, और आयुर्वेद तरीके से सिर दर्द से आराम पाना चाहता है, उसे चंदन को घिसकर मस्तक पर लगाना चाहिए। इससे सिर दर्द से राहत मिलती है।

आंखों की बीमारी में चंदन का उपयोग

आंखों की बीमारी में भी चंदन का इस्तेमाल कर सकते हैं। आंखों के रोग में 10 ग्राम सफेद चंदन के पेस्ट को, 100 मिली दूध में पका लें। इसे ठंडा कर लें। इसे आंखों पर लगाने से आंखों की बीमारी में लाभ होता है।

बुखार उतारने के लिए चंदन का उपयोग

आप चंदन का इस्तेमाल बुखार को ठीक करने के लिए भी कर सकते हैं। चंदन की लकड़ी को जल में घिस लें। इसके तने की छाल को पीसकर शरीर पर लगाने से बुखार ठीक हो जाता है।

गठिया में फायदा पहुंचाता है चंदन का इस्तेमाल

गठिया की परेशानी में चंदन के उपयोग से फायदा हो सकता है। गठिया की बीमारी वाले लोग 20-40 मिली चन्दनादि कषाय में, चीनी, तथा मधु मिलाकर सेवन करें। इससे गठिया में आराम होता है।

चंदन के साइड इफेक्ट

इसे जरूर पढ़ें –

उचित मात्रा में चंदन का इस्तेमाल करने से स्वास्थ्य पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है, लेकिन कुछ अवस्था में चंदन के उपयोग से निम्न दुष्प्रभाव हो सकते हैंः-

 

अगर किसी को एलर्जी जैसी परेशानी होती है, तो उसकी त्वचा में चंदन से रिएक्शन हो सकता है।

इसके अत्यधिक मात्रा में सेवन करने से पेट से जुड़े विकार, त्वचा-विकार, अवसाद, उल्टी, या यूरीमिया जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

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अरे पीपल के पेड़ से भी इतने फायदे हो सकते हैं जाने कौन कौन से है यह फायदे


पीपल का परिचय शायद ही कोई इंसान होगा जो पीपल के पेड़  के बारे में नहीं जानता होगा। हाथी इसके पत्तों को बड़े चाव से खाते हैं। इसलिए इसे गजभक्ष्य भी कहते हैं। पीपल का पेड़ प्रायः हर जगह उपलब्ध होता है। सड़कों के किनारे, मंदिर या बाग-बगीचों में पीपल का पेड़ हमेशा देखने को मिलता है। शनिवार को हजारों लोग पीपल के पेड़ की पूजा भी करते हैं। अधिकांश लोग पीपल के पेड़ के बारे में केवल यही जानते हैं कि इ... Read More

पीपल का परिचय

शायद ही कोई इंसान होगा जो पीपल के पेड़  के बारे में नहीं जानता होगा। हाथी इसके पत्तों को बड़े चाव से खाते हैं। इसलिए इसे गजभक्ष्य भी कहते हैं। पीपल का पेड़ प्रायः हर जगह उपलब्ध होता है। सड़कों के किनारे, मंदिर या बाग-बगीचों में पीपल का पेड़ हमेशा देखने को मिलता है। शनिवार को हजारों लोग पीपल के पेड़ की पूजा भी करते हैं। अधिकांश लोग पीपल के पेड़ के बारे में केवल यही जानते हैं कि इसकी केवल पूजा होती है, लेकिन सच यह है कि पीपल के पेड का औषधीय प्रयोग भी किया जाता है और इससे कई रोगों में लाभ लिया जा सकता है।

 

कई पुराने आयुर्वेदिक ग्रंथों में पीपल के पेड़ के गुणों के बारे में बताया गया है कि पीपल के प्रयोग से रंग में निखार आता है, घाव, सूजन, दर्द से आराम मिलता है। पीपल  खून को साफ करता है। पीपल की छाल मूत्र-योनि विकार में लाभदायक होती है। पीपल की छाल के उपयोग से पेट साफ होता है। यह सेक्सुअल स्टेमना को भी बढ़ाता है और गर्भधारण करने में मदद करता है। सुजाक, कफ दोष, डायबिटीज, ल्यूकोरिया, सांसों के रोग में भी पीपल का इस्तेमाल लाभदायक होता है। इतना ही नहीं, अन्य कई बीमारियों में भी आप पीपल का उपयोग कर सकते हैं। आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।

पीपल क्या है?

पीपल विषैली कार्बन डाइआक्साईड सोखता है और प्राणवायु मतलब ऑक्सीजन छोड़ता है। पीपल के पेड़ की छाया बहुत ठंडी होती है। पीपल का पेड़ लगभग 10-20 मीटर ऊँचा होता है। यह अनेक शाखाओं वाला, विशाल औक कई वर्षों तक जीवित रहता है। पुराने वृक्ष की छाल फटी व सफेद-श्यमाले रंग की होती है। इसके नए पत्ते  कोमल, चिकने तथा हल्के लाल रंग के होते हैं। इसके फल चिकने, गोलाकार, छोटे-छोटे होते हैं। कच्ची अवस्था में हरे और पके अवस्था में बैंगनी रंग के होते हैं।

 

पीपल के पेड़ की जड़ भूमि के अन्दर उपजड़ों से युक्त होती है और बहुत दूर तक फैली रहती है। वट वृक्ष के समान ही इसके पुराने वृक्ष के तने तथा मोटी-मोटी शाखाओं से जटाएं निकलती हैं। इसे पीपल की दाढ़ी कहते हैं। ये जटायें बहुत मोटी तथा लम्बी नहीं होती। इसके तने या शाखाओं को तोड़ने या छिलने से या कोमल पत्तों को तोड़ने से एक प्रकार का चिपचिपा सफेद पदार्थ (दूध जैसा) निकलता है।

आंखों की बीमारी में पीपल का प्रयोग लाभदायक

पीपल के पत्ते के फायदे से आंखों के रोग ठीक किए जा सकते हैं। पीपल के पत्तो से से जो दूध (आक्षीर) निकलता है, उसको आंख में लगाने से आंखों में होने वाला दर्द ठीक हो जाता है।

दांतों के रोग में पीपल से लाभ

पीपल और वट वृक्ष की छाल को समान मात्रा में मिलाकर जल में पका लें। इसका कुल्ला करने से दांतों के रोग ठीक होते हैं।

पीपल की ताजी टहनी से रोज दातुन (ब्रुश) करने से दांत मजबूत होते हैं। इससे मसूड़ों की सूजन खत्म होती है और मुंह से आने वाली दुर्गंध भी खत्म हो जाती है।

हकलाहट की समस्या में पीपल का उपयोग फायदेमंद

पीपल के वृक्ष के लाभ हकलाने की समस्या में भी फायदे पहुंचाते हैं। पीपल के आधी चम्मच पके फल के चूर्ण में शहद मिला लें। इसका सुबह-शाम सेवन करने से हकलाहट की बीमारी में लाभ होता है।

कुक्कुर-खांसी में पीपल से फायदा

40 मिली पीपल के पेड़ की छाल का काढ़ा या 10 मिली रस को दिन में तीन बार देने से कुक्कुर खांसी में लाभ होता है।

अत्यधिक प्यास लगने की समस्या में पीपल से फायदा

पीपल की 50-100 ग्राम छाल के कोयलों को पानी में बुझा लें। इस पानी को साफ कर पिलाने से हिचकी की समस्या, उल्टी और अत्यधिक प्यास लगने की समस्या में लाभ होता है।

भूख बढ़ाने के लिए पीपल का प्रयोग लाभदायक

अगर आपको भूख कम लगती है तो पीपल के वृक्ष के लाभ इस समस्या में ले सकते हैं। पीपल के पके फलों के सेवन से कफ, पित्त, रक्तदोष, विष दोष, जलन, उल्टी तथा भूख की कमी की समस्या ठीक होती है।

पेट के दर्द में पीपल का उपयोग फायदेमंद

पीपल के पत्ते के फायदे से पेट के दर्द ठीक होते हैं। पीपल के ढाई पत्तों को पीसकर 50 ग्राम गुड़ में मिलाकर गोली बना लें। इसे दिन में 3-4 बार खाना चाहिए।

शारीरिक कमजोरी को दूर करने के लिए पीपल के पेड़ का इस्तेमाल

आधा चम्मच पीपल के फल का चूर्ण को दिन में तीन बार दूध के साथ सेवन करते रहने से शारीरिक कमजोरी दूर होती है।

कब्ज की परेशानी में पीपल से लाभ

पीपल के पत्ते के फायदे से कब्ज की समस्या ठीक होती है। कब्ज हो तो पीपल के 5-10 फल को नियमित रूप से खाएं। कब्ज ठीक हो जाता है।

पीपल के पत्ते और कोमल कोपलों का काढ़ा बना लें। 40 मिली काढ़ा को पिलाने से पेट साफ हो जाता है और कब्ज की समस्या ठीक हो जाती है।

पीलिया रोग में पीपल का इस्तेमाल

पीपल के 3-4 नए पत्तों को मिश्री के साथ 250 मिली पानी में बारीक पीस-घोलकर छान लें। यह शर्बत रोगी को 2 बार पिलाएं। इसे 3-5 दिन प्रयोग करें। यह पीलिया रोग के लिए रामबाण औषधि है।

मूत्र रोग में पीपल का उपयोग

​​​पीपल की छाल का काढ़ा पिलाने से पेशाब के रुक-रुक कर आने की समस्या में लाभ होता है।

गले के रोग में पीपल के पेड़ का प्रयोग फायदेमंद

गले के रोग में पीपल की अंतर छाल को गुलाब जल में घिसकर लगाएं। इससे घाव जल्दी भर जाते हैं।

एड़ियों के फटने में पीपल से लाभ

कई लोगों को यह शिकायत रहती है कि उनके पैरों की एड़ियां फट गई है। ऐसे में पीपल के पत्ते के फायदे ले सकते हैं। हाथ-पांव फटने पर पीपल के पत्तों का रस या दूध (आक्षीर) लगाएं। यह लाभ पहुंचाता है।

पीपल के पेड़ से खाज-खुजली का इलाज

खाज-खुजली की समस्या हो तो 50 ग्राम पीपल की छाल का भस्म बना लें। इसमें आवश्यकतानुसार चूना व घी मिलाकर अच्छी प्रकार से लेप बना लें। इसका लेप करने से खाज-खुजली ठीक होता है।

 

पीपल की छाल का काढ़ा बनाकर 10-30 मिली मात्रा में रोज सुबह और शाम पिलाने से खुजली ठीक होता है।

फोड़े-फुन्सियों में फायदेमंद पीपल का पेड़

फोड़े-फून्सियों में भी पीपल के पत्ते के फायदे मिलते हैं। पीपल की छाल को जल में घिसकर फोड़े-फुन्सियों पर लगाने और गीली पट्टी बाँधने से अत्यन्त लाभ होता है।

पीपल के कोमल पत्तों को गेहूं के गीले आटे में पीसकर मिला लें। इसे फोड़ों पर लगाने से फोड़े ठीक होते हैं और सूजन ठीक हो जाती है।

अनेक प्रकार के घाव को ठीक करने में उपयोगी पीपल का पेड़

आप पीपल के वृक्ष के लाभ घाव में भी ले सकते हैं। पीपल की नरम कोपलों को जलाकर कपड़े से छान लें। इसे पुराने बिगड़े हुए फोड़ों पर छिड़ने से लाभ होता है।

पीपल की छाल के चूर्ण को पीसकर उसमें घी मिला लें। इसे जलने या चोट लगने से हुए घाव पर लगाने से रक्तस्राव बंद हो जाता है और घाव तुरंत भरने से लाभ होता है।

पीपल की छाल के चूर्ण को आग से जलने के कारण हुए घाव पर छिड़कने से तुरंत घाव सुख जाता है।

पुराने तथा ना भरने वाले घावों पर पीपल की अंतर छाल को गुलाब जल में घिसकर लगाएं। इससे घाव जल्दी भर जाते हैं।

घाव पर औषधि का लेप लगाकर पीपल के कोमल पत्तों से ढक दें। यह घाव को सुखाता है।

अर्जुन, गूलर, पीपल, लोध्र, जामुन तथा कट्फल की छाल लेकर चूर्ण बना लें। इसे घाव पर छिड़कने से घाव तुरंत ठीक हो जाता है।

वट, गूलर, पीपल (pipal tree), प्लक्ष तथा वेतस की छाल के चूर्ण में पर्याप्त मात्रा में घी मिला लें। इसका लेप करने से घाव की सूजन ठीक हो जाती है।

ताजे झड़े हुए पीपल के पत्ते की बारीक चूर्ण को घाव पर छिड़कने से घाव तुरंत ठीक होता है।

पीपल की हरी छाल और हरे पत्तों से बने पेस्ट में मधु मिलाकर लेप करने से मुंह का घाव ठीक होता है।

इसके 21 कोमल पत्ते पीसकर, गुड़ में गोलियां बना लें। इसे 7 दिन सुबह-शाम खिलाने से चोट लगने के कारण होने वाले दर्द में लाभ होता है।

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कमल के फूल से दूर करें अपनी ये परेशानियां जाने ऐसे करें इस्‍तेमाल


कमल के फूल से दूर करें अपनी ये परेशानियां, जाने ऐसे करें इस्‍तेमाल कमल के फूल सिर्फ सुंदर ही नहीं होते हैं, बल्कि न्यूट्रिएंट्स से भरपूर होने के कारण हेल्‍थ से जुड़ी कई समस्‍याओं को दूर करते हैं। आइए इसे लेने के सही तरीके के बारे में जानें-  कमल के फूल पिंक, व्हाइट, रेड और ब्लू कलर के होते हैं। इनका इस्‍तेमाल घर की खूबसूरती बढ़ाने के अलावा पूजा-पाठ में भी किया जाता है। यह डिशे... Read More

कमल के फूल से दूर करें अपनी ये परेशानियां, जाने ऐसे करें इस्‍तेमाल

कमल के फूल सिर्फ सुंदर ही नहीं होते हैं, बल्कि न्यूट्रिएंट्स से भरपूर होने के कारण हेल्‍थ से जुड़ी कई समस्‍याओं को दूर करते हैं। आइए इसे लेने के सही तरीके के बारे में जानें- 

कमल के फूल पिंक, व्हाइट, रेड और ब्लू कलर के होते हैं। इनका इस्‍तेमाल घर की खूबसूरती बढ़ाने के अलावा पूजा-पाठ में भी किया जाता है। यह डिशेज और ड्रिंक्स को टेस्‍टी भी बनाते हैं। लेकिन क्‍या आप जानते हैं कि कमल के फूल हेल्‍थ से जुड़ी कई समस्‍याओं में रामबाण हैं।

कमल के फूलों में एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी-ऑक्‍सीडेंट गुण होते हैं। साथ ही, इसमें कई तरह के मिनरल्‍स जैसे पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, आयरन, फास्फोरस और क्लोरीन पाए जाते हैं और ये फैट फ्री होते हैं। इसके अलावा, कमल के फूल कार्बोहाइड्रेट और फाइबर का हेल्‍दी स्रोत है।

यह एक बेस्‍ट आयुर्वेदिक औषधि है। इससे आप बुखार, सिरदर्द और जलन जैसी समस्‍याओं को दूर और खुद को सुंदर बना सकते हैं। इसके फायदों की जानकारी आयुर्वेदिक एक्सपर्ट डॉक्टर दीक्षा भावसार ने शेयर की है।

 

एक्‍सपर्ट का कहना है, ''कमल का फूल स्‍वाद में मीठा और हल्‍का होता है। इसे कार्डियक टॉनिक माना जाता है, जो दिल के लिए अच्‍छा होता है। यह यूरिन बढ़ाने वाला होता है, इसलिए किडनी के लिए अच्‍छा होता है। इसकी तासीर ठंडी होती है और ब्‍लड को प्यूरिफाई करने में मदद करता है। इससे चेहरे पर ग्‍लो आता है। कमल ज्वरनाशक भी है, जो बुखार में शरीर के तापमान को कम करता है।''

 

ज्यादातर लोगों के मन में यही सवाल होता है कि कमल के फूलों का फायदा पाने के लिए इसका इस्‍तेमाल कैसे किया जा सकता है? तो आपकी इस दुविधा को हम दूर कर देते हैं-

सामग्री

पानी- 1 ग्‍लास

कमल के फूल- 3

विधि–

एक ग्‍लास पानी को उबालें।

गैस बंद करके कमल के फूलों को पानी में डालकर 2 घंटे के लिए अलग रखें।

दो घंटे के बाद इसे अच्‍छी तरह से मिक्‍स करके छान लें।

इसे थोड़ा ठंडा करें।

फिर इस शरबत को पिएं।

गर्मियों में हेल्‍दी और कूल रहें।

० कमल के फूलों से बने शरबत के सेहत से जुड़े फायदे

० बुखार में फायदेमंदहोता है।

० किडनी को दुरुस्त रखता है।

० दिल के स्‍वास्‍थ्‍य के लिए अच्‍छा होता है।

० यह ब्‍लड प्रेशर को कम करता है।

० ज्‍यादा ब्‍लीडिंग को रोकता है।

० ब्‍लड शुगर लेवल को कम करता है।

० सिरदर्द से राहत देता है।

० बहुत ज्‍यादा प्‍यास को शांत करता है।

० जलन और सूजन को कम करता है।

० खांसी और बुखार में फायदेमंद है।

० चेहरे को ग्लोइंग बनाता है।

सावधानी–

० लो ब्‍लड शुगर से परेशान लोग इसके सेवन से बचें, क्‍योंकि यह ब्‍लड शुगर के लेवल को कम कर सकता है।

० प्रेग्‍नेंट और ब्रेस्‍टफीडिंग कराने वाली महिलाओं को इसे नहीं लेना चाहिए

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कड़वा सही पर बीमारियों के लिए वरदान है नीम का पेड़


कड़वा सही पर बीमारियों के लिए वरदान है नीम का पेड़– ​​नीम के पेड़से शायद ही कोई अपरिचित हो। नीम को उसके कड़वेपन के कारण जाना जाता है। सभी लोगों को पता होगा कि कड़वा होने के बाद भी नीम स्वास्थ्य के लिए बहुत अधिक लाभदायक होता है, लेकिन नीम के फायदे क्या-क्या हैं या नीम का उपय़ोग किन-किन रोगों में कर सकते हैं, इस बात की पूरी जानकारी आपको नहीं होगी। नीम के गुणों के कारण इसे धरती का कल्प वृक्ष भी... Read More

कड़वा सही पर बीमारियों के लिए वरदान है नीम का पेड़–

​​नीम के पेड़से शायद ही कोई अपरिचित हो। नीम को उसके कड़वेपन के कारण जाना जाता है। सभी लोगों को पता होगा कि कड़वा होने के बाद भी नीम स्वास्थ्य के लिए बहुत अधिक लाभदायक होता है, लेकिन नीम के फायदे क्या-क्या हैं या नीम का उपय़ोग किन-किन रोगों में कर सकते हैं, इस बात की पूरी जानकारी आपको नहीं होगी। नीम के गुणों के कारण इसे धरती का कल्प वृक्ष भी कहा जाता है। आमतौर पर लोग नीम का प्रयोग घाव, चर्म रोग में फायदा लेने के लिए करते हैं लेकिन सच यह है नीम के फायदेअन्य कई रोगों में भी मिलते हैं।

 

नीम के पत्ते का काढ़ा घावों को धोने में कार्बोलिक साबुन से भी अधिक उपयोगी है। कुष्ठ आदि चर्म रोगों पर भी नीम बहुत लाभदायक है। इसके रेशे-रेशे में खून को साफ करने के गुण भरे पड़े हैं। नीम का तेल टीबी या क्षय रोग को जन्म देने वाले जीवाणु की तीन जातियों का नाश करने वाले गुणों से युक्त पाया गया है। नीम की पत्तियोंका गाढ़ा लेप कैंसर की बढ़ाने वाली कोशिकाओं की बढ़ने की क्षमता को कम करता है। आइए जानते हैं कि आप किन-किन रोगों में नीम का उपयोग कर सकते है और नीम के नुकसान क्या होते हैं?

नीम क्या है?

नीम  भारतीय मूल का एक पूर्ण पतझड़ वृक्ष है जो 15-20 मीटर की ऊंचाई तक पहुंच सकता है। कभी-कभी 35-40 मीटर तक भी ऊंचा हो सकता है। इसकी शाखाएं यानी डालियाँ काफी फैली हुई होती हैं। तना सीधा और छोटा होता है और व्यास में 1.2 मीटर तक पहुँच सकता है।

नीम के औषधीय गुण और प्रयोग विधि

नीम को निम्ब भी कहा जाता है। कई ग्रन्थों में वसन्त-ऋतु (विशेषतः चैत्र मास मतलब 15 मार्च से 15 मई) में नीम के कोमल पत्तोंके सेवन की विशेष प्रंशसा की गई है। इससे खून साफ होता है तथा पूरे साल बुखार, चेचक आदि भयंकर रोग नहीं होते हैं। विभिन्न रोगों में नीम का प्रयोगकरने की विधि नीचे दी जा रही हैः-

बालों की समस्याओं में लाभकारी है नीम का प्रयोग–

नीम के फायदे बालों के लिए बहुत ही लाभकारी है। बाल झड़ने से लेकर बालों के असमय पकने जैसी बालों की समस्याओं में इसका प्रयोग किया जा सकता है।

 

1.नीम के बीजों को भांगरा के रस तथा असन पेड़ की छाल के काढ़े में भिगो कर छाया में सुखाएं। ऐसा कई बार करें। इसके बाद इनका तेल निकालकर नियमानुसार 2-2 बूँद नाक में डालें। इससे असमय सफेद हुए बाल काले हो जाते हैं। इस प्रयोग के दौरान केवल दूध और भात यानी पके हुए चावल ही खाने चाहिए।

2.नीम के पत्ते एक भाग तथा बेर पत्ता 1 भाग को अच्छी तरह पीस लें। इसका उबटन या लेप सिर पर लगाकर 1-2 घंटे बाद धो डालें। इससे भी बाल काले, लंबे और घने होते हैं।

3.नीम के पत्तों को पानी में अच्छी तरह उबालकर ठंडा हो जाने दें। इसी पानी से सिर को धोते रहने से बाल मजबूत होते हैं, बालों का गिरना या झड़ना रुक जाता है। इसके अतिरिक्त सिर के कई रोगों में लाभ होता है।

4.सिर में बालों के बीच छोटी-छोटी फुन्सियां हों, उनसे पीव निकलता हो या केवल खुजली होती हो तो नीम का प्रयोग बेहतर परिणाम देता है। ऐसे अरूंषिका तथा क्षुद्र रोग में सिर तथा बालों को नीम के काढ़े से धोकर रोज नीम का तेल लगाते रहने से तुरंत लाभ होता है।

5.नीम के बीजों को पीसकर लगाने से या नीम के पत्तों के काढ़े से सिर धोने से बालों की जुँए और लीखें मर जाती हैं।

नीम के फायदे -

 

नीम का उपयोग गर्भ निरोधक के रूप में भी किया जा सकता है। कुछ अध्ययनों ने नीम के एंटीफर्टिलिटी (antifertility) प्रभावों को प्रमाणित किया है। एक अध्ययन में, चूहों पर नीम के तेल का प्रयोग किया गया और यह पाया गया की तेल के उपयोग के बाद वे काफी समय तक गर्भधारण करने में अक्षम रहे। इससे यह साबित होता है की नीम के तेल को गर्भ निरोधक के रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं। अध्ययन के अनुसार जब नीम के तेल का उपयोग यौन सम्बन्ध बनाने से पहले लागू होता है, तो औरतों में यह गर्भावस्था को रोक सकता है। नीम के पत्तों का उपयोग करने से पुरुषों में प्रजनन क्षमता भी कम हो सकती है अगर सही समय और तरीके से इसका इस्तेमाल ना किया जाए। हालांकि, एक और अध्ययन में, यह साबित हुआ है की नीम का तेल पुरुषों और महिलाओं दोनों को नुकसान पहुंचाए बिना गर्भधारण की संभावना को कम करने में मदद करता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि नीम गर्भ निरोधक का अच्छा विकल्प हो सकता है क्योंकि यह प्राकृतिक है और आसानी से उपलब्ध भी है। 

नीम के लाभ त्वचा के लिए -

आपकी त्वचा को स्वस्थ और दोषरहित रखने के लिए नीम एक अच्छा विकल्प हैं। नीम में वायरसरोधी, जीवाणुरोधी और रोगाणु रोधक गुण होते हैं

इसके अलावा, यह घावों को भरता हैं और किसी भी संक्रमण या विषाक्त (रक्त को विषैला करने वाली) स्थितियों को रोकने में मदद करता हैं। इसमे उच्च स्तर के एंटीऑक्सीडेंट भी होते हैं जो कि वातावरण को नुकसान से बचाने के लिए त्वचा की रक्षा में मदद करते हैं और उम्र बढ़ने के लक्षणो में देरी करते हैं।

 

० त्वचा की किसी भी तरह की समस्या के लिए, नीम की कुछ ताज़ा पत्तियों को एक पेस्ट के रूप में पीसे। प्रभावित त्वचा पर इसे लगाएं। इस पेस्ट को अपने आप सूखने के लिए छोड़ दें, इसके बाद इसे ठंडे पानी से धो लें। इस उपचार का उपयोग दिन में एक बार करें जब तक आप परिणाम से संतुष्ट ना हो जाएं।

० त्वचा कोशिकाओं को फिर से जीवंत करने और त्वचा का लचीलापन लाने के लिए आप त्वचा की मालिश भी कर सकते हैं, 1/3 कप जैतून का तेल या नारियल तेल और नीम के तेल के 1 चम्मच के साथ। यह बदले में त्वचा की चमक और त्वचा की रंगत भी बनाए रखने में मदद करता है।

नीम के गुण करते हैं जूँ का इलाज -

नीम के बीज अपने प्राकृतिक कीटनाशक गुण के कारण एक ही इलाज में सिर से जूँ प्रकोप को समाप्त कर सकता है। इसके अलावा, नीम सिर की खुजली और जलन से राहत प्रदान करने में प्रभावी है।

० सप्ताह में किसी भी हर्बल नीम आधारित शैम्पू से 2 या 3 बार अपने बाल धो लें और फिर सिर की जूँ से छुटकारा पाने के लिए एक जूँ कंघी का प्रयोग करें।

० वैकल्पिक रूप से, अपने बाल और सिर पर नीम की पत्तियों का पेस्ट लगाएं। इसे कुछ समय तक सूखने दे और बाद में गर्म पानी से अच्छी तरह से अपने बाल धो लें। फिर एक जूँ कंघी का प्रयोग कर के बालों को कंघी करने के लिए करें। इस उपचार का उपयोग सप्ताह में 2 या 3 बार , 2 महीने के लिए करें।

० अपने बालों और सिर की त्वचा की मालिश करें बिना पानी मिले नीम के तेल के साथ, जो कि बहुत प्रभावी भी है। मालिश करने के बाद, एक जूँ की कंघी का प्रयोग जूँ से छुटकारा पाने के लिए करें। आप एक घंटे के लिए यहाँ तक कि रातभर भी नीम का तेल अपने बालों में छोड़ सकते हैं।

नीम का उपयोग मौखिक स्वास्थ्य में -

नीम मौखिक स्वास्थ्य और मसूड़ों की बीमारियों को दूर रखने में भी मदद करता हैं। अपने जीवाणुरोधी और रोगाणु रोधक गुण से बैक्टीरिया को मारने में मदद करता है जो कि गुहाओं, पट्टिका, मसूड़े की सूजन और अन्य बीमारियों का कारण बनते हैं। यह लंबे समय के लिए ताज़ा सांस भी प्रदान करता हैं।

 

० नीम के पत्तों का रस निकालें और अपने दांतों और मसूढ़ों पर रगड़ें। कुछ मिनट के लिए लगाकर छोड़ दें, उसके बाद गर्म पानी के साथ कुल्ला करें। दिन में एक बार इस उपचार का प्रयोग करें। आप नरम नीम की दातुन का प्रयोग अपने दांत ब्रश करने के लिए भी कर सकते हैं।

० टूथपेस्ट, माउथवॉश(मुँह धोना) और मौखिक स्वास्थ्य टॉनिक के महत्वपूर्ण अवयवों के रूप में नीम का उपयोग किया जाता है।

नीम के पत्ते खाने के फायदे रक्त को शुद्ध करने के लिए -

नीम एक शक्तिशाली रक्त शोधक और विषहरण के रूप में काम करता हैं। यह हानिकारक विषाक्त पदार्थों से छुटकारा पाने में मदद करता है और शरीर के सभी भागों में आवश्यक पोषक तत्व और ऑक्सीजन ले जाने में मदद करता है। 

यह बदले में गुर्दे और जिगर जैसे महत्वपूर्ण अंगों के कामकाज में सुधार करता है। इसके अलावा, यह स्वस्थ संचार, पाचन, श्वसन और मूत्र प्रणाली को बनाए रखने में भी मदद करता है।

 

० प्रत्येक दिन कई हफ्ते के लिए 2 या 3 नर्म नीम के पत्ते शहद के साथ खाली पेट खाने से आप अपने शरीर और त्वचा में परिवर्तन महसूस करने लग जाएंगे। आप नीम की चाय भी पी सकते हैं।

० वैकल्पिक रूप से, दिन में 1 या 2 नीम कैप्सूल कुछ हफ्तों के लिए भोजन के साथ दो बार लें। सही खुराक के लिए, एक चिकित्सक से परामर्श करें।

नीम का रस पीने के फायदे मधुमेह में -

नीम की पत्तियों का रस कई यौगिकों से युक्त होता है जो कि मधुमेह के लोगों के बीच इंसुलिन आवश्यकताओं को कम कर सकता है बिना रक्त में शर्करा की मात्रा को प्रभावित किए।

 

० नीम की गोलियां रक्त शर्करा के स्तर को करने कम में मदद करती हैं। डॉक्टर से परामर्श के बाद ही मधुमेह को नियंत्रित करने के लिए नीम की गोलियां या चूर्ण का सेवन करें।

० जिन लोगो को मधुमेह होने का खतरा अधिक होता है वो प्रतिदिन 4 या 5 नर्म नीम की पत्तियां खाली पेट चबा सकते हैं।

नीम के फायदे पेट के कीड़ों से छुटकारा पाने के लिए -

नीम अपने विरोधी परजीवी गुणों के कारण पेट के कीड़े पर दोनों उपचारात्मक और निवारक प्रभाव डालता है। नीम में कई यौगिक हैं जो परजीवी के रहने की क्षमता को रोकने के लिए होते हैं, इस प्रकार इनके जीवन चक्र में दखल और अंडे सेने से नए परजीवी के होने को बाधित करता है। नीम विषाक्त पदार्थों को भी हटाता हैं जो कि परजीवी पीछे छोड़ मर जाते हैं।

 

० खाली पेट नीम के नर्म पत्ते चबाने से या दिन में 2 बार, 1 से 2 सप्ताह के लिए नीम की चाय पीने से पेट के कीड़ो से छुटकारा पाया जा सकता है।

० आप चिकित्सक से परामर्श के बाद भी नीम कैप्सूल या खुराक ले सकते हैं।

नीम के लाभ गठिया रोगियों के लिए -

नीम गठिया, विशेष रूप से पुराने ऑस्टियोआर्थराइटिस(अस्थिसंधिशोथ) और रुमेटी गठिया के लिए एक लोकप्रिय हर्बल उपचार हैं। इसमे सूजन को कम करने और दर्द को दबाने के गुण होते हैं जिससे यह जोड़ों के दर्द और सूजन को कम करता है।

 

० 1 कप पानी में एक मुट्ठी नीम की पत्तियों और फूलों को उबाल लें। फिर इसे छानकर ठंडा होने दे। यह दिन में दो बार 1 महीने तक सेवन करने से गठिया के दर्द और सूजन को कम करता है।

० नीम के तेल के साथ नियमित मालिश भी मांसपेशियों के दर्द और जोड़ों के दर्द से प्रभावी राहत देती है। नीम के तेल की मालिश पीठ के निचले हिस्से में दर्द को भी कम करने में फायदेमंद है।

नीम रोके कैंसर होने से -

नीम प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ा कर, सूजन को कम करके, मुक्त कण को हटा कर, हार्मोनल गतिविधि को रोक कर और कोशिका विभाजन में बाधा कर, कैंसर के इलाज में मदद कर सकता है।

 

कैंसर के खतरे को कम करने के लिए नीम या किसी अन्य जड़ी बूटी का उपयोग करने से पहले एक डॉक्टर से परामर्श करें।

नीम का फायदा मलेरिया के लिए -

पत्तों में एंटीमाइमरियल  गुण होता हैं। नीम की पत्तियां मलेरिया से लड़ने में मदद करती हैं। इन पत्तों का इस्तेमाल मलेरिया के इलाज में और मलेरिया की रोकथाम के लिए किया जा सकता है। नीम की चाय का इस्तेमाल भी मलेरिया के उपचार के रूप में किया जा सकता है।

नीम का उपयोग कैसे करें -

० नीम के लगभग 20 पत्तों को पानी में डालकर अच्छे से उबालें और तब तक उबलने दें जब तक इनका रंग पानी में अच्छे से घुल न जाए, अब इस पानी को ठंडा होने दें और एक बोतल में रख लें। इस पानी से रोज़ अपने चेहरे को धोएं और मुहांसों से छुटकारा पाएं। 

० नीम पाउडर, तुलसी और चंदन पाउडर का पेस्ट बनाकर इसे चेहरे पर लगाएं, सूखने दें और ठंडे पानी से मुँह धो लें। यह पेस्ट लगाने से आपके चेहरे पर निखार आएगा।

० नीम के पाउडर को पानी और अंगूर के तेल के साथ मिलाएं और इसका अपने चेहरे पर मॉइस्चराइजर के रूप में इस्तेमाल करें।

० आँखों के नीचे काले घेरे हटाने के लिए नीम पाउडर और पानी का एक गाढ़ा मिश्रण बनाएं और इसे 15 मिनट के लिए काले घेरों पर लगाएं।

० नियमित रूप से नीम के तेल का सेवन करने पर अस्थमा, सर्दी-जुकाम और बुखार जैसी परेशानियां भी दूर हो सकती है।

नीम के नुकसान -

सामान्य खुराक में नीम के उपयोग से दुष्प्रभाव नहीं होते हैं। हालांकि, शिशुओं या छोटे बच्चों को यह जड़ी बूटी नही देनी चाहिए। नीम गर्भवती, स्तनपान कराने वाली महिलाओं या जो गर्भ धारण करने की कोशिश कर रहे हैं उनके लिए भी सुरक्षित नहीं है। इसके अलावा, नीम का तेल आंतरिक रूप से कभी नहीं लिया जाना चाहिए।

 

० एक सामान्य नियम के रूप में, यह रक्त में शर्करा की मात्रा कम कर सकता हैं इसलिए यदि आप उपवास कर रहे हैं तो बेहतर होगा कि आप नीम के मौखिक सेवन से बचें।

० मधुमेह से पीड़ित लोगों को चिकित्सक की देखरेख में ही नीम का उपयोग करना चाहिए, लगातार रक्त शर्करा के स्तर की निगरानी के साथ।

० बचपन में, गर्भावस्था या स्तनपान के दौरान नीम का उपयोग करने से पहले अपने चिकित्सक की सलाह लेना आवश्यक है। 

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सावधान! अगर आप भी खाते हैं तुलसी के पत्ते, हो सकता है ये फायदे और नुकसान -


सावधान! अगर आप भी खाते हैं तुलसी के पत्ते, हो सकता है ये फायदे और नुकसान - तुलसी को ओसीमम सैंक्टम के नाम से भी जाना जाता है। यह अपने कई स्वास्थ्य लाभों के लिए आयुर्वेद में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस जड़ी बूटी का उपयोग सदियों से पारंपरिक चिकित्सा में किया जाता रहा है और इसकी समृद्ध फाइटोकैमिस्ट्री के लिए इसे महत्व दिया जाता है। तुलसी के लाभ शारीरिक और मानसिक कल्याण के विभिन्न पहलुओं तक फैले हुए... Read More

सावधान! अगर आप भी खाते हैं तुलसी के पत्ते, हो सकता है ये फायदे और नुकसान -

तुलसी को ओसीमम सैंक्टम के नाम से भी जाना जाता है। यह अपने कई स्वास्थ्य लाभों के लिए आयुर्वेद में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस जड़ी बूटी का उपयोग सदियों से पारंपरिक चिकित्सा में किया जाता रहा है और इसकी समृद्ध फाइटोकैमिस्ट्री के लिए इसे महत्व दिया जाता है।

तुलसी के लाभ शारीरिक और मानसिक कल्याण के विभिन्न पहलुओं तक फैले हुए हैं, जिससे यह समग्र स्वास्थ्य के प्रति सजक लोगों के लिए एक लोकप्रिय विकल्प बन गया है। आइए इसके फायदों के बारे में जानने की कोशिश करते हैं:

एडाप्टोजेनिक गुण:

तुलसी को एडाप्टोजेन के रूप में वर्गीकृत किया गया है, एक ऐसा पदार्थ जो शरीर को तनाव के अनुकूल बनाने में मदद करता है और समग्र संतुलन को बढ़ावा देता है। यह तनाव के प्रति शरीर की प्रतिक्रिया को नियंत्रित करता है, जिससे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों पर तनाव का नकारात्मक प्रभाव कम होता है।

एंटीऑक्सीडेंट क्रिया:

फ्लेवोनोइड्स और पॉलीफेनोल्स जैसे एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर, तुलसी ऑक्सीडेटिव तनाव से निपटने और मुक्त कणों को बेअसर करने में मदद करती है। यह सेलुलर स्वास्थ्य में योगदान देता है और पुरानी बीमारियों को रोकने में भूमिका निभा सकता है।

सूजनरोधी प्रभाव:

तुलसी में सूजन-रोधी गुण होते हैं, जो शरीर में सूजन को कम करने में मदद करते हैं। पुरानी सूजन विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़ी हुई है, और तुलसी के सूजन-रोधी प्रभाव सूजन संबंधी स्थितियों की रोकथाम और प्रबंधन में योगदान कर सकते हैं।

 

प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत करना:

तुलसी के प्रतिरक्षा-मॉड्यूलेटिंग गुण इसे प्रतिरक्षा प्रणाली का समर्थन करने में एक मूल्यवान सहयोगी बनाते हैं। यह शरीर की प्राकृतिक रक्षा तंत्र को बढ़ाता है, जिससे यह संक्रमण और बीमारियों से लड़ने में मजबूत होता है

रोगाणुरोधी क्रिया:

तुलसी ने रोगाणुरोधी और जीवाणुरोधी गुणों का प्रदर्शन किया है। यह विभिन्न रोगजनकों से निपटने में मदद कर सकता है, संक्रमण की रोकथाम और उपचार में योगदान दे सकता है।

 

कार्डियोप्रोटेक्टिव प्रभाव:

कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि तुलसी हृदय स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। यह रक्तचाप को नियंत्रित करने, कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने और समग्र हृदय समारोह में सुधार करने में मदद कर सकता है।

कैंसर रोधी गुण:

कुछ अध्ययनों ने प्राकृतिक कैंसर रोधी एजेंट के रूप में तुलसी की क्षमता का पता लगाया है। यह ऐसे गुण प्रदर्शित करता है जो कुछ कैंसर कोशिकाओं के विकास को रोक सकते हैं और ट्यूमर के प्रसार को रोक सकते हैं।

पाचन सहायता:

यह पाचन में सहायता कर सकती है और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याओं को कम कर सकती है। यह अपच, सूजन और गैस के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकता है।

तुलसी को हिंदू धर्म में ही नहीं बल्कि आयुर्वेद में भी बेहद गुणकारी माना गया है। तुलसी के आध्यात्मिक और औषधीय गुणों की वजह से आयुर्वेद में इसे अमृत कहा जाता है। तुलसी का सेवन करने से खून का जमाव, प्रतिरक्षा को बढ़ाने मिलने के साथ सर्दी, खांसी, जुकाम को भगाने में भी राहत मिलती है। सेहत के लिए इतनी गुणकारी होने के बावजूद क्या आप जानते हैं इसका जरूरत से ज्यादा सेवन करने से आपकी सेहत को फायदे से ज्यादा नुकसान भी हो सकता है। आइए जानते हैं कैसे।  

तुलसी का ज्यादा सेवन करने से सेहत को हो सकते हैं ये नुकसान-

-डायबिटीज-

तुलसी की पत्तियों में हाइपोग्लाइसेमिक लेवल को कंट्रोल करने वाले गुण मौजूद होते हैं। यही वजह है कि तुलसी के पत्ते चबाने से व्यक्ति का ब्लड शुगर लेवल कम होता है। ऐसे में अगर आपका शुगर लेवल पहले से ही लो रहता है या फिर आप शुगर की दवाइयां ले रहे हैं तो तुलसी का अधिक सेवन करने से बचें। तुलसी का अधिक सेवन करने से ब्लड शुगर में बहुत ज्यादा कमी आ सकती है। जो उनके लिए नुकसानदेह हो सकता है।

गर्भवती महिलाएं- 

तुलसी में मौजूद यूजेनॉल महिलाओं के पीरियड शुरू होने का कारण बन सकता है। इतना ही नहीं तुलसी का अधिक सेवन करने से प्रेगनेंसी में डायरिया की समस्या भी हो सकती है। यही वजह है कि गर्भवती महिलाओं को तुलसी का सेवन करने की सलाह नहीं दी जाती है।

 

खून पतला कर सकती है तुलसी-

तुलसी के पत्तों में कई ऐसे तत्व पाए जाते हैं जो खून को पतला करने में मदद कर सकते हैं। ज्यादा मात्रा में तुलसी का सेवन ब्लड को पतला करके कई स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है। ऐसे में ज्यादा मात्रा में तुलसी का सेवन करें से बचें।

जलन-

तुलसी की तासीर गर्म होने की वजह से इसका अत्यधिक सेवन करने से पेट में जलन पैदा हो सकती है। यही वजह है कि तुलसी का सेवन सीमित मात्रा में ही करने की सलाह दी जाती है।

 

दांतों को करते हैं खराब- 

तुलसी के पत्तों को चबाकर खाना दांतों के लिए नुकसान दायक साबित हो सकता है। तुलसी के पत्तों में पारा और आयरन की मात्रा पाई जाती है। इसमें कुछ मात्रा में आर्सेनिक भी पाया जाता है, जिससे दांत खराब हो सकते हैं। इससे दांतों में दर्द की समस्या हो सकती है।

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विदारी कंद के सेवन से दूर होती हैं ये 6 समस्याएं जानें उपयोग का सही तरीका और नुकसान –


विदारी कंद के सेवन से दूर होती हैं ये 6 समस्याएं, जानें उपयोग का सही तरीका और नुकसान – आयुर्वेद में स्वस्थ रहने और बीमारियों के इलाज के लिए कई तरह की जड़ी-बूटियों, पेड़-पौधों का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें विदारी कंद भी एक है। विदारी कंद ऐसी जड़ी-बूटी है, जिसका उपयोग कई समस्याओं को दूर करने के लिए किया जा सकता है। विदारी कंद पोषक तत्वों से भरपूर होता है।   विदारी कंद एक बारहमासी जड़ी ब... Read More

विदारी कंद के सेवन से दूर होती हैं ये 6 समस्याएं, जानें उपयोग का सही तरीका और नुकसान –

आयुर्वेद में स्वस्थ रहने और बीमारियों के इलाज के लिए कई तरह की जड़ी-बूटियों, पेड़-पौधों का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें विदारी कंद भी एक है। विदारी कंद ऐसी जड़ी-बूटी है, जिसका उपयोग कई समस्याओं को दूर करने के लिए किया जा सकता है। विदारी कंद पोषक तत्वों से भरपूर होता है।

 

विदारी कंद एक बारहमासी जड़ी बूटी है। इसका वानस्पतिक नाम प्युररिआ ट्यूबरोजा है। यह फैबेसी (मटर) परिवार से संबंधित है। सामान्य भाषा में विदारी कंद को कुडज़ू के रूप में जाना जाता है। इस कंद की जड़ें गोलाकार, स्टार्चयुक्त और सफेद रंग की होती हैं। विदारी कंद स्वाद में मीठा होता है। विदारी कंद सेहत के लिए कापी फायदेमंद होता है। इसके उपयोग सीने में दर्द, बुखार और गठिया के इलाज में किया जा सकता है। इसके अलावा यह प्रजनन क्षमता बढ़ाने के लिए भी उपयोगी होता है। महिलाओं को दूध बढ़ाने के लिए विदारी कंद का सेवन किया जा सकता है। 

विदारी कंद के फायदे–

1. इम्युनिटी बढ़ाए विदारी कंद

विदारी कंद में एंटीऑक्सीडेंट्स भरपूर होते हैं। इसके अलावा इसमें अन्य पोषक तत्व भी पाए जाते हैं, जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करते हैं। विदारी कंद शरीर को रोगाणुओं से लड़ने में मदद करता है, साथ ही कई तरह के संक्रमणों से भी बचाता है। विदारी कंद में एंटीबैक्टीरियल, एंटीवायरल और एंटीफंगल गुण भी होते हैं, जो सर्दी-जुकाम, गले की खराश में काम करते हैं। 

2. ब्रेस्ट मिल्क बढ़ाए विदारी कंद

विदारी कंद अपनी शक्तिशाली गैलेक्टागॉग क्रिया के कारण प्रोलैक्टिन और कॉर्टिकोइड्स के उत्पादन में वृद्धि होती है। जो ब्रेस्ट मिल्क बढ़ाने में मदद करता है। साथ ही इसकी गुणवत्ता में भी सुधार करती है। स्तनपान कराने वाली महिलाएं डॉक्टर की सलाह पर विदारीकंद चूर्ण का सेवन कर सकती हैं। ताकि उनके शरीर में ब्रेस्ट मिल्क का उत्पादन होता रहे।  

3. पुरुषों के लिए फायदेमंद विदारी कंद

विदारी कंद का उपयोग प्रजनन क्षमता और कामेच्छा को बढ़ाने के लिए भी किया जा सकता है। पुरुषों की यौन समस्याओं को दूर करने में विदारी कंद फायदेमंद होता है। विदारी कंद पुरुषों के मानसिक तनाव और चिंता को कम करता है। साथ ही टेस्टोस्टेरोन के उत्पादन को बढ़ाता है, इससे प्रजनन क्षमता और कामेच्छा बढ़ती है। इतना ही नहीं यह पुरुषों में शुक्राणुओं की गतिशीलता और गुणवत्ता में भी सुधार कर सकता है।

4. स्किन के लिए फायदेमंद विदारी कंद

आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी विदारी कंद त्वचा के लिए भी काफी फायदेमंद होती है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट्स गुण होते हैं, जो त्वचा को फ्री रेडिकल्स से होने वाले नुकसान से बचाते हैं। साथ ही यह ऊतकों की मरम्मत करते हैं। बढ़ती उम्र के लक्षणों को कम करने के लिए आप विदारी कंद का सेवन कर सकते हैं। 

5. मूत्र विकार दूर करे विदारी कंद

अगर आपको पेशाब से जुड़ी कोई भी समस्या है, तो इसमें विदारी कंद फायदेमंद हो सकता है। विदारी कंद का उपयोग दर्दनाक पेशाब, पेशाब करते समय जलन, खुजली आदि स्थितियों में किया जा सकता है। विदारी कंद में एंटी माइक्रोबियल और एंटी बैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं, जो मूत्र विकारों को दूर करते हैं। संक्रमण से बचाव करते हैं। आप डॉक्टर की सलाह पर विदारी कंद का सेवन कर सकते हैं। 

6. घाव ठीक करने में कारगर विदारी कंद

विदारी कंद में एंटी इंफ्लेमेटरी और पेन रिलीविंग गुण होते हैं, ऐसे में घाव को ठीक करने में इसका उपयोग किया जा सकता है। इसके अलावा मुंह के छालों को दूर करने के लिए भी विदारी कंद का सेवन किया जा सकता है। विदारी कंद जड़ी-बूटी अपने कसैले गुणों के कारण घावों की सूजन को कम करने में भी मदद करता है।

विदारी कंद का उपयोग–

आप विदारी कंद का उपयोग पाउडर या चूर्ण के रूप में कर सकते हैं। विदारी कंद पाउडर की खुराक डॉक्टर की सलाह पर ली जानी चाहिए। 

विदारी कंद किसी बीमारी का संपूर्ण इलाज नहीं है, इसलिए आपको इसका उपयोग दवाई के रूप में नहीं करना चाहिए। अगर आयुर्वेदिक डॉक्टर इसे खाने की सलाह देते हैं, तो इसका सेवन सही मात्रा में किया जा सकता है

विदारीकंद के नुकसान–

 

विदारीकंद का अधिक इस्तेमाल करने से निम्न प्रकार के दुष्प्रभाव देखने को मिल सकते हैं -

 

० विदारीकंद का अधिक प्रयोग लिवर के लिए नुकसानदायक हो सकता है, जिस कारण लिवर की बीमारी हो सकती हैं.

० इसे ज्यादा मात्रा में सेवन करने से खुजली की समस्या, उल्टियां व रेड ब्लड सेल्स में कमी हो सकती है.

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कौंच के बीज के फायदे ही नहीं नुकसान भी हैं जाने इस ब्लॉग में


कौंच के बीज के फायदे ही नहीं नुकसान भी हैं। कौंच के बीज इसकी फलियों में पाए जाते हैं। ये सम्बी बेलों पर निकलते हैं।कौंच की फलियां मबल रूप से दक्षिणी चीन और पूर्वी भारत में पाई जाती हैं। हालांकि, अब ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अमेरिका में इनकी खेती व्यापक रूप से होती है। इस पौधे का जीवनकाल छोटा होता है। कौंच के बीज का उपयोग मुख्य रूप से औषधीय जड़ी बूटी औऱ जैविक खाद और जानवरों के चारे के रूप में करते हैं।... Read More

कौंच के बीज के फायदे ही नहीं नुकसान भी हैं।

कौंच के बीज इसकी फलियों में पाए जाते हैं। ये सम्बी बेलों पर निकलते हैं।कौंच की फलियां मबल रूप से दक्षिणी चीन और पूर्वी भारत में पाई जाती हैं। हालांकि, अब ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अमेरिका में इनकी खेती व्यापक रूप से होती है। इस पौधे का जीवनकाल छोटा होता है। कौंच के बीज का उपयोग मुख्य रूप से औषधीय जड़ी बूटी औऱ जैविक खाद और जानवरों के चारे के रूप में करते हैं।

 

दुनिया भर में फैले होने के कारण कौंच के पौधे को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इसे काउहेज ,किवांच और कोविच नाम से पुकारा जाता है। प्राचीन आयुर्वेद में कौंच की फलियों का उपयोग एक दवा के रूप में किया जाता रहा है जो चिंता, अवसाद, पेचिश, सांप के काटने और बांझपन के इलाज में मदद करती है। इसके अलावा, कौंच की फलियों का अर्क खांसी, मधुमेह और कैंसर के इलाज में भी मदद करता है।

 

कौंच के बीज दो प्रकार के होते हैं। एक वो जिनकी खेती की जाती है और दूसरे वो जो जंगल में अपने आप उग आते हैं।कौंच के बीज का इस्तेमाल का उपयोग कई गम्भीर बीमारियों जैसे मिर्गी ,पार्किंसन्स, इनफर्टिलिटी और सेक्सुअल पावर बढ़ाने के लिए भी किया जाता है।

 

वैसे तो अधिकतर कौंच के बीज के सेवन के फायदों की ही बात होती है पर इसके कुछ नुक्सान भी हो सकते हैं।आइए आपको बताते हैं कि इन बीजों के अधिक इस्तेमाल से क्या परेशानियां हो सकती हैं।

1. कौंच का बीज कर सकता है पेट में गड़बड़

कई बार हम किसी औषधि का इस्तेमाल बस उसके गुणों के बारे में सुनकर ही शुरु कर देते हैं। ये जानने की कोशिश नहीं करते कि उसे कितनी मात्रा में या कितने दिनों तक लेना है। औऱ क्या उस औषधि के अधिक सेवन कर लेने से कोई समस्या भी हो सकती है। कुछ इसी प्रकार कौंच के बीज का सेवन करने वाले इसके तमाम गुणों के बारे में सुनकर इसका सेवन करने लगते हैं बिना यह जाने कि इसकी अधिक मात्रा उनकी सेहत को खराबी भी कर सकती है। यदी आप दिन में दो बार कौंच के बीजों का सेवन करते हैं तो ये आपका पेट खराब कर सकते हैं। इनके अधिक सेवन से आपको दस्त या डायरिया की समस्या हो सकती है। शरीर की ऐसी किसी भी प्रतिक्रिया पर इसका सेवन तुरंत बंद कर दें।

 

2. वज़न में अवांछित कमी

हम में से कई लोग वज़न कम करने के कई जतम करते हैं पर वज़न कम नहीं हो पाता वहीं कुछ लोग पहले से ही कम वज़न वाले होते हैं औऱ वज़न बढ़ाने की तरकीब ढूंढते रहते हैं। ऐशे लोगों के लिए कौंच के बीज का सेवन करनी ठीक नहीं है। कौंच के बीज का लगातार सेवन करने से आपका वज़न तेज़ी से कम हो सकता है । पहले से दुबले पतले लोगों के लिए यह कमज़ोरी का कारण बन सकता है।

 

3. आंतों के लिए खतरनाक है

कौंच के बीज जानकार मानते हैं कि कौंच के बीज का ज़रूरत से ज्यादा सेवन करने से आपकी आंतों पर बुरा असर पड़ सकता है। इसके लगातार सेवन से आंतों के काम करने की गति सामान्य से अधिक हो जाती है जिसके कारण आपके शरीर की पूरी आंतरिक प्रणाली पर असर पड़ता है। इससे आपको लो ब्लड प्रेशर की समस्या हो सकती है। अगर ब्लड प्रेशर सामान्य से कम होता है या फिर अधिक दोनों ही स्थिति आपके स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं हैं। इसलिए इसका सेवन उचित मात्रा में ही करें।आंतों की कार्यप्रणाली में बदलाव के कारण पेट दर्द और पाचन संबंधी परेशानियां भी आ सकती है।

 

4. कई रोगों में मना है कौंच के बीज का सेवन

विशेषज्ञ मानते हैं कि कई गम्भीर बीमारयों में कौंच के बीज का सेवन नहीं करना चाहिए । कौंच के बीज का सेवन इन बीमारियों के लक्षणों को बढ़ा भी सकता है। दरअसल कई बड़ी बीमारियों में आप लगातार उन रोगों से संबंधित दवाएं ले रहे होते हैं ।ऐसे में कौंच के बीज के सेवन से उस उपचार में बाधा उत्पन्न हो सकती है। हो सकता है कुछ दवाएं इसके सेवन से शरीर में अलग ही रिएक्शन पैदा करें। जिन बीमारियों में कौंच के बीज को ना लेने की सलाह दी जाती है उनमें ब्रेन ड़िस्ऑर्डर, ग्लूकोमा, हृदय संबंधी बीमारियां, और गुर्दे की बीमारियां शामिल हैं।

 

5. गर्भावस्था में ना करें सेवन

गर्भावस्था और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को भी इनके इस्तेमाल से बचने की सलाह दी जाती है।

 

दरअसल इसमें एक ऐसा तत्व मौजूद होता है जो आपके यूटरस पर प्रभाव डाल सकता है। इसके सेवन से गर्भाशय में कई रसायनिक परिवर्तन हो सकते हैं जिनके कारण गर्भाशय फट भी सकता है। इसके अलावा गर्भाशय पर पड़ने वाले असर के कारण गर्भ में पल रहे बच्चे में भी कई प्रकार की समस्याएं या विकृति पैदा हो सकती है।

 

6. लिवर की समस्या वाले रहे दूर

विशेषज्ञ कहते हैं कि लिवर से संबंधित समस्याओँ में भी कौंच के बीज का सेवन खतरनाक हो सकता है। कौंच के बीज में लिवोडोपा नाम का तत्व मौजूद होता है जो शरीर में सिरम ग्लूटैमिक ऑक्सेलोसिटिक ट्रांस्अमिनेस यानी एसजीओटी की मात्रा बढ़ा देता है। इनके बढ़ने से लिवर सामान्य तौर पर काम नहीं कर पाता।

 

7. भ्रम की स्थिति पैदा कर सकते हैं कौंच के बीज

कौंच के बीड का अत्यधिक सेवन करने से शरीर में लिवोडोपा की मात्रा अधिक हो जाती है। इसके कारण शरीर डोपामीन का उत्पादन शुरु कर देता है जो आपको हैलुसिनेशन और भ्रम की स्थिति में पहुंचा सकता है। अधिक गम्भीर स्थिति में व्यक्ति के शीजोफ्रेनिया भी हो सकता है।

 

 8. कौंच के बीज में होते है एंटी न्यूट्रिएंट

कई अलग अलग शोध ये बताते है कि कौंच के बीज में कुछ ऐसे तत्व भी होते हैं जो एंटी न्यूट्रिएंट कहलाते हैं। जैसे टैन्निन्स,फिनॉल्स आदि। इसलिए इन बीजों का सेवन करने से पहले इन्हें कुछ देर भिगो कर छोड़ देना चाहिए जिससे अनचाहे तत्वों से छुटकारा मिल सके।

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कौंच के बीज को खाने से सेहत में जाने 5 फायदे  –


कौंच के बीज को खाने से सेहत में जाने 5 फायदे  – भारत को जड़ी-बूटियों का देश कहा जाता है। उत्तर से लेकर दक्षिण तक भारत में कई तरह की जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है। इन्हीं में से एक कौंच के बीज। कौंच के बीज के बारे में ज्यादा लोगों को पता ही नहीं है, लेकिन ये कई सारे पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। कौंच के बीज पोषक तत्व महिलाओं से लेकर पुरुषों तक की सेहत के लिए बहुत फायदेमंद माने ज... Read More

कौंच के बीज को खाने से सेहत में जाने 5 फायदे  –

भारत को जड़ी-बूटियों का देश कहा जाता है। उत्तर से लेकर दक्षिण तक भारत में कई तरह की जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है। इन्हीं में से एक कौंच के बीज। कौंच के बीज के बारे में ज्यादा लोगों को पता ही नहीं है, लेकिन ये कई सारे पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। कौंच के बीज पोषक तत्व महिलाओं से लेकर पुरुषों तक की सेहत के लिए बहुत फायदेमंद माने जाते हैं। आज इस लेख में हम आपको बताएंगे कौंच के बीज (Kaunch Beej Khane ke Fayde) से सेहत को मिलने वाले 5 फायदों के बारे में।

कौंच के बीज के फायदे –

1. अच्छी नींद दिलाने में मददगार

अच्छी नींद न सिर्फ सेहतमंद शरीर के लिए जरूरी होती है बल्कि ये मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक मानी जाती है। जिन लोगों को ठीक से नींद नहीं आती है या जिन लोगों को नींद आने में परेशानी आती है उन्हें कौंच के बीज के पाउडर का इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है। आप कौंच के बीज के पाउडर को गुनगुने पानी और दूध के मिलाकर सेवन कर सकते हैं।

2. पुरुषों की इनफर्टिलिटी सुधारने में मददगार

आजकल की लाइफस्टाइल में पुरुषों में नपुंसकता के मामले बढ़ते जा रहे हैं। शराब, धूम्रपान और खानपान की वजह से पुरुषों के हार्मोन प्रभावित होते हैं। इन सभी चीजों के प्रभाव से शरीर को बचाने और नपुंसकता को ठीक करने के लिए पुरुषों को कौंच के बीज का सेवन करने की सलाह दी जाती है। कौंच के बीज के पोषक तत्व पुरुषों की इनफर्टिलिटी की समस्या को दूर करने में मदद करते हैं।

3. डिप्रेशन से बचाने में मददगार

कौंच में एंटी-डिप्रेसेंट गुण पाए जाते हैं। यही कारण है कि इसे डिप्रेशन से बचाने में मददगार माना जाता है। कौंच के बीज पर हुई रिसर्च में ये बात सामने आई है कि इसका सेवन करने से मूड स्विंग को ठीक करने में मदद मिलती है। इतना ही नहीं कौंच के बीज दिमाग को एकाग्र करने में भी मदद करते हैं।  

4. जोड़ों के दर्द से दिलाता है राहत

सर्दियों के मौसम में अक्सर घर के बुजुर्गों को जोड़ों के दर्द की परेशानी होती है। जोड़ों के दर्द से राहत दिलाने कौंच के बीज का पाउडर काफी मददगार साबित होता है। कौंच के बीजों में मौजूद एंटी- इंफ्लेमेटरी गुण दर्द और सूजन की परेशानी को दूर करने का काम करते हैं। जोड़ों के दर्द से राहत पाने के लिए आप कौंच के बीज का सेवन दूध में मिलाकर कर सकते हैं।  

5. पार्किंसंस में फायदेमंद

कौंच के बीजों में एल-डोपा पाया जाता है जो पार्किंसंस यानी कि हाथ कांपने की बीमारी को दूर करने में फायदेमंद है। पार्किंसंस से पीड़ित मरीज गुनगुने पानी के साथ कौंच के पाउडर का इस्तेमाल कर सकते हैं।   

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ये रहे गोखरू के फायदे


ये रहे गोखरू के फायदे गोखरू के फायदे – विभिन्न रोगों के उपचार के लिए गोक्षुरा का उपयोग किया जाता है। गोक्षुरा के स्वास्थ्य लाभ आगे बताये गए है। 1) हाजमा बढ़ाये गोखरू का काढ़ा हजम शक्ति को मजबूत बनाता है। कमजोर हजम शक्ति वाले लोगों को गोखरू का सेवन करना चाहिए। इससे खाना पचने में आसानी होती है। ३० से ४० मिली गोखरू काढ़ा में ५ ग्राम पीपल का चूर्ण पियें। इससे पाचन-शक्ति बेहतर होती है।   2) म... Read More

ये रहे गोखरू के फायदे

गोखरू के फायदे –

विभिन्न रोगों के उपचार के लिए गोक्षुरा का उपयोग किया जाता है। गोक्षुरा के स्वास्थ्य लाभ आगे बताये गए है।

1) हाजमा बढ़ाये

गोखरू का काढ़ा हजम शक्ति को मजबूत बनाता है। कमजोर हजम शक्ति वाले लोगों को गोखरू का सेवन करना चाहिए। इससे खाना पचने में आसानी होती है। ३० से ४० मिली गोखरू काढ़ा में ५ ग्राम पीपल का चूर्ण पियें। इससे पाचन-शक्ति बेहतर होती है।

 

2) मूत्र विकारों में लाभ

पेशाब करने के दौरान दर्द, पेशाब में जलन व विभिन्न प्रकार के मूत्र रोगों में गोखरू एक शक्तिशाली उपाय है। इसे गाय के दूध में मिलाकर पियें इससे दर्द और जलन दोनों में आराम मिलेगा और उचित पेशाब को भी उत्तेजित करने में मदद करेगा यह हल्का मूत्रवर्धक है जिससे डिसुरिया का भी इलाज होता है इसमें एंटी-माइक्रोबियल और एंटी-बैक्टीरियल गुण होते है जो मूत्र संक्रमण को रोकते है।

 

3) पथरी या अश्मरी में

पथरी की समस्या से बहुत से लोग परेशान है गोखरू का सेवन पथरी को प्राकृतिक रूप से बाहर कर देता है ५ ग्राम गोखरू चूर्ण लें इसमें १ चम्मच शहद मिला लें और दिन में ३ बार इसका सेवन करें इसके ऊपर बकरी का दूध पी लें इससे अश्मरी टूटकर निकल जाती है।

 

4) यौन स्वास्थ्य और सहनशक्ति में बढ़ावा

यह पुरुषों के स्वास्थ्य में भी सुधार करने में सहायक है। यह एक तरह का प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट है जो टेस्टोस्टेरोन और ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन का उत्पादन बढ़ाता और उसमें सुधार करता है। स्तंभन दोष और शीघ्रपतन का भी इलाज करता है।

 

इस चूर्ण में शक्तिशाली शुक्राणुजन्य गुण पाए जाते है। यह गुण शुक्राणु उत्पादन को बढ़ाने में सहायक होते है। जो एस्थेनोज़ोस्पर्मिया (यानी शुक्राणु की गतिशीलता), हाइपोस्पर्मिया (वीर्य की कम मात्रा), टेराटोस्पर्मिया (यानी असामान्य शुक्राणु आकार) ओलिगोस्पर्मिया (यानी कम शुक्राणुओं की संख्या) का इलाज करने के लिए बहुत लाभकारी है।

 

5) चर्मरोग में

यह एक तरह का प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट और क्लींजर है। जो उम्र बढ़ने के विभिन्न लक्षणों जैसे : झुर्रियों, काले घेरे, धब्बों, महीन रेखाओं आदि का इलाज करता है। मुंहासों, फुंसियों को भी कम करता है। कई लोगों को त्वचा से संबंधित रोग हो जाते है जिसका कारण है अत्यधिक प्रदूषण।

 

इससे बचने के लिए गोखरू का फल बहुत मदद करता है इसके फल को पानी में मिलाकर पीस लें और चेहरे पर लगाएं या जहाँ भी खुजली और दाद हो रहे हो उस पर लगाएं आपको आराम मिलेगा। इसका दूसरा तरीका है २ चम्मच गोक्षुरा पाउडर, १ चम्मच शहद, २-३ चम्मच गुलाब जल मिलाकर पेस्ट तैयार कर लें। इसे चेहरे पर लगाएं और १५ मिनट बाद ठंडे पानी से चेहरा धो लें।

6) सिरदर्द में

आज के समय में तनाव इतना बढ़ गया है जिसकी वजह से सिरदर्द होना सामान्य है। कई लोग सिरदर्द से परेशान है। इसके लिए १० से २० मिली गोखरू काढ़ा सुबह-शाम पियें। पित्त के बढ़ जाने से सिरदर्द होने पर इसमें आराम मिलेगा।

 

7) दस्त रोकने में

यदि आपको दस्त लग गए है और ठीक नहीं हो रहे तो गोखरू का सेवन करें। ५०० मिग्रा गोक्षुरफल चूर्ण को मट्ठे के साथ खाना है। इसे दिन में २ बार खाएं इससे अतिसार और आमातिसार ठीक हो जाता है।

 

8) पीसीओएस का इलाज

पीसीओएस (पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम) एक आम समस्या हो गई है। इस समस्या के पीछे हार्मोंस का असंतुलन है। जिसके कारण वजन का बढ़ना, पीरियड्स, बालों का झड़ना, मुंहासे आदि हो जाते हैं। पीसीओएस की वजह से गर्भधारण में बहुत कठिनाई आती है।

 

गोखरू एक सक्रिय मूत्रवर्धक है। जिसका सेवन करने से सिस्ट से अतिरिक्त पानी बाहर हो जाता है। इससे उसका आकार भी कम हो जाता है। गोखरू महिला प्रजनन अंगों को बढ़ावा देता है, रक्त में हार्मोनल स्तर बनाए रखता है और अंडों की परिपक्वता को रोम में बढ़ाता है इतना फायदेमंद है गोखरू।

 

9) दमा में राहत

बहुत से लोगों में दमा की बिमारी हो रही है इसमें गोखरू का सेवन करना फायदेमंद होता है। गोखुर के फल चूर्ण को २ ग्राम की मात्रा में लें। इसे २-३ सूखे अंजीर के साथ इसका दिन में ३ बार सेवन करें। नियमित रूप से सेवन करने पर दमा में राहत मिलेगी। गोक्षुर तथा अश्वगंधा बराबर मात्रा में लें। इसमें २ चम्मच शहद मिला लें। इसे २५० मिली दूध के साथ दिन में २ बार आपको सेवन करना है। इससे कमजोरी और सांस से जुड़ी समस्या में आराम होगा।

 

10) कार्डियक फंक्शनिंग को बढ़ावा

यह एंटीऑक्सीडेंट की प्रकृति से भरपूर होता है जिससे की हृदय रोगों का इलाज करने में फॉर्मूलेशन बहुत प्रभावी है। गोक्षुरा हृदय की मांसपेशियों को मजबूत बनाता है। रक्त वाहिकाओं में लिपिड के गठन को रोकता है। गोक्षुरा में बायोएक्टिव घटक मौजूद होते है।

 

जो गैर-एस्ट्रिफ़ाइड फैटी एसिड (एनईएफए) का स्तर भी कम करता है। जिसके कारण कई तरह की बीमारी स्ट्रोक, दिल के दौरे, रक्त के थक्के इस तरह के जोखिम कम हो जाते है। रक्त में कोलेस्ट्रॉल का स्तर भी बनाकर रखता है।

11) दर्द से दे मुक्ति

गोक्षुरा में एंटी इंफ्लेमेटरी और एनाल्जेसिक गुण होते है। जिससे की यह दर्द और सूजन से राहत देने का कार्य करता है। इस कारण रूमेटोइड गठिया और ऑस्टियोआर्थराइटिस के दर्द को कम करने के लिए इसका व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाता है।

 

12) चिंता और अवसाद के लिए

गोक्षुरा में मौजूद सैपोनिन के कारण सीरम कोर्टिसोल का स्तर कम हो जाता है। जिससे की यह चिंता और अवसाद के इलाज में काम आने वाली औषधि है। गोखरू एक प्रभावी चिंताजनक और अवसादरोधी दवा के रूप में उपयोग की जाती है। यह सभी आयु वर्ग पर अपना प्रभाव दिखाती है। चिंता और अवसाद से ग्रसित लोगों को इसका सेवन करना चाहिए।

13) मस्तिष्क के कामकाज को बढ़ावा

गोक्षुरा चूर्ण मस्तिष्क की कार्यप्रणाली को बढ़ाने का एक प्राकृतिक उपाय है। इसमें शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट होते है जो किसी व्यक्ति मानसिक विकास जैसे : सतर्कता में सुधार, ध्यान, स्मृति क्षमता, शांति, एकाग्रता को बढ़ाने में सहायक है। गोक्षुरा चूर्ण का नियमित सेवन समस्या-समाधान, तर्क, याददाश्त और अन्य संज्ञानात्मक क्षमताओं में सुधार करता है। मानसिक स्थितियों के उपचार में यह बहुत फायदेमंद है। अपने मस्तिष्क की क्षमता को बढ़ाने के लिए गोक्षुरा का जरूर सेवन करें।

 

14) लो स्पर्म काउन्ट में

जिन पुरुषों को लो स्पर्म काउन्ट की समस्या है उन्हें गोखरू किसी ना किसी रूप में लेना चाहिए। तो जो पुरुष पिता बनने का सुख नहीं ले पा रहे है उनके लिए गोखरू बहुत लाभदायक होता है। २० ग्राम गोखरू के फलों को २५० मिली दूध में उबाल लें। इसे सुबह-शाम पियें इससे स्पर्म या वीर्य से संबंधी समस्याएं कम होती है और उसमें आराम भी मिलता है। स्पर्म का काउन्ट और क्वालिटी बढ़ाने के लिए १० ग्राम गोखरू और १० ग्राम शतावर को २५० मिली दूध में मिलाकर पिएं। आपकी शारीरिक शक्ति भी बढ़ जाएगी और कमजोरी खत्म हो जाएगी।

 

15) गर्भाशय शूल या यूटेरस के दर्द में

जिन महिलाओं को गर्भाशय में दर्द होता है या किसी वजह से दर्द हो रहा है तो गोखरू का नियमित रूप से सेवन बहुत लाभदायक होता है। इसके लिए ५ ग्राम काली किशमिश, ५ ग्राम गोखरू फल, २ ग्राम मुलेठी इन सभी को मिलाकर पीस लें और सुबह-शाम इसका सेवन करें। इससे गर्भाशय के दर्द से मुक्ति मिलेगी।

 

16) आमवात या रूमाटाइड के दर्द में आराम

उम्र का असर तो शरीर पर होता ही है जिसका सबसे ज्यादा असर जोड़ो में होता है। जोड़ो के दर्द से मुक्ति पाने के लिए गोखरू फल में बराबर की मात्रा में सोंठ चतुर्थांश का काढ़ा बनाकर सेवन करने से जोड़ो के दर्द, कमर दर्द में आराम होता है रोज सुबह- शाम इसका सेवन करें।

 

17) कामेच्छा को बढ़ाने में

गोक्षुरा कामोद्दीपक प्रकृति का होता है। जो मानसिक तनाव और चिंता कम करता है। जिससे की मन शांत रहता है। यह कामेच्छा बढ़ाने वाले हार्मोन को उत्तेजित करता है। यह महिला और पुरुष दोनों में ही कामेच्छा को बढ़ाता है और महिला व पुरुष दोनों की ही प्रजनन क्षमता में सुधार करता है। पुरुषों के लिए भी यह बहुत फायदेमंद है यह पौरूषशक्ति और सहनशक्ति को बढ़ाता है।

 

18) शरीर सौष्ठव के लिए

गोक्षुरा मांसपेशियों की ताकत को बढ़ाता है और शरीर की संरचना में सुधार करता है। अगर आप बॉडी बिल्डर है तो यह शरीर की ताकत को बढ़ाने और वजन बढ़ाने में मदद करता है। जो लोग अपने प्रदर्शन को बेहतर बनाना चाहते है उन्हें इसका सेवन करना शुरू कर देना चाहिए क्योंकि कुछ लोग स्टेरॉयड का विकल्प चुनते हैं। जिसका लम्बे समय तक सेवन करने से यह नुकसानदायक हो सकता है। गोक्षुरा एक प्राकृतिक जड़ी बूटी है जो बिना नुकसान लाभ पहुँचाती है।

 

19) कान-नाक से खून बहना

यदि कान-नाक से खून बह रहा हो तो गोखरू का इस तरह से सेवन करना चाहिए। १० ग्राम गोखुर लें उसे २५० मिली दूध में उबाल लें। इसे पिएं रक्तपित्त में लाभ होगा।

 

20) बुखार में

मौसम बदलने की वजह से बुखार आना सामान्य है। ऐसे में गोखरू का सेवन फायदेमंद होता है। १५ ग्राम गोखरू पञ्चाङ्ग लें। इसे २५० मिली पानी में उबाल लें और इसका काढ़ा तैयार कर लें। इस काढ़े का दिन में ४ बार सेवन करें इससे बुखार उतर जाएगा।

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