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धर्मध्यान कया है धर्मध्यान के दश भेद इस प्रकार है

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धर्मध्यान कया है धर्मध्यान के दश भेद इस प्रकार है

धर्मध्यान

पवित्र विचारों में मन का स्थिर होना धर्मध्यान है। इसमें धार्मिक चिन्तन की मुख्यता रहती है। धर्मध्यान मूलतजो मुख्यत: चार प्रकार का है-

1.आज्ञा विचय 2. अपाय विचय 3. विपाक विचय और ४. संस्थान विचय। यहाँ विचय का अर्थ विचारणा है। आगमानुसार तत्त्वों का विचार करना आज्ञाविचय है, अपने तथा दूसरों के राग-द्वेष-मोह आदि विकारों को नाश करने का चिन्तन करना अपायविचय कहलाता है, अपने तथा दूसरों के सुख-दुःख को देखकर कर्मप्रकृतियों के स्वरूप का चिन्तन करना विपाकविचय एवं लोक के स्वरूप का विचार करना संस्थानविचयक नामक धर्मध्यान है।

इस धर्मध्यान के अन्य प्रकार से भी चार भेद हैं-1 पिंडस्थ, ​​2 पदस्थ​​​​​4.. रूपस्थ और 4. रूपातीत

धर्मध्यान के दश भेद

धर्मध्यान के अन्य प्रकार से भी दश भेद किये गये हैं। वे हैं क्रमश:आज्ञाविचय, अपायविचय, उपायविचय, जीवविचय, अजीवविचय, भवविचय, विपाकविचय, विरागविचय, हेतुविचय और संस्थानविचय।

1. आज्ञाविचय - वीतरागी पुरुषों की धर्म-सम्बन्धी आज्ञाओं का चिन्तन।

2. अपायविचय- संसारी जीवों का दुःख दूर कैसे हो इस प्रकार का करुणा पूर्ण चिन्तन अपायविचय है।

3. उपायविचय- आत्म कल्याण के उपायों का चिन्तन ।

4. जीवविचय- जीव के स्वरूप का चिन्तन।

5. अजीवविचय- अजीव द्रव्यों के स्वरूप का चिन्तन।

6. भवविचय- संसार के दुःखमय स्वरूप का चिन्तन।

7. विपाकविचय- कर्म के स्वरूप और उसके फल का चिन्तन।

8. विरागविचय- वैराग्य की अभिवृद्धि के लिए संसार, शरीर और भोगों की असारता का चिन्तन।

9. हेतुविचय- तर्क द्वारा विशेष उहापोहपूर्वक स्याद्वाद सिद्धांत को श्रेयस्कर मान उसकी उपादेयता का विचार।

10. संस्थानविचय- लोक के आकार, द्रव्य, गुण और पर्याय आदि का चिन्तन।




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