पिण्डस्थ ध्यान क्या है पिण्डस्थ के बारे मे जानकारी ओर ध्यान के बारे मे कुछ बाते
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पिण्डस्थ ध्यान
शरीर स्थित आत्मा का चिन्तन करना पिण्डस्थ ध्यान है। यह आत्मा निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध से रागद्वेषयुक्त है और निश्चयनय की अपेक्षा यह बिल्कुल शुद्ध ज्ञान-दर्शन चैतन्यरूप है। निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध अनादिकालीन है और इसी सम्बन्ध के कारण यह आत्मा अनादिकाल से इस शरीर में आबद्ध है। यों तो यह शरीर से भिन्न अमूर्तिक, सूक्ष्म और चैतन्यगुणधारी है, पर इस सम्बन्ध के कारण यह अमूर्तिक होते हुए भी कथञ्चित् मूर्तिक है। इस प्रकार शरीरस्थ आत्मा का चिन्तन पिण्डस्थ ध्यान में सम्मिलित है। इस ध्यान को सम्पादित करने के लिए पाँच धारणाएँ वणित हैं- 1. पार्थिवी, 2. आग्नेय, 3. वायु, 4. जलीय और 5. तत्त्वरूपवती।
पिंडस्थ ध्यान, जैन धर्म का एक प्रकार का ध्यान है. इसमें भौतिक शरीर पर ध्यान लगाया जाता है. पिंडस्थ शब्द का अर्थ है, दमन करना या स्वयं पर ध्यान लगाकर सांसारिक आसक्तियों को खत्म करना.
पिंडस्थ ध्यान के बारे में ज़्यादा जानकारी:
पिंडस्थ ध्यान में पाँच एकाग्रताएं शामिल होती हैं. ये एकाग्रताएं हैं - पृथ्वी तत्व, अग्नि तत्व, वायु तत्व, जल तत्व, और अभौतिक आत्मा.
पिंडस्थ ध्यान में मंत्र अक्षरों पर भी ध्यान लगाया जाता है.
पिंडस्थ ध्यान में अर्हत के रूपों पर भी ध्यान लगाया जाता है.
पिंडस्थ ध्यान में शुद्ध निराकार आत्मा पर भी ध्यान लगाया जाता है.
ध्यान के बारे में कुछ और बातें:
ध्यान की सबसे गहरी अवस्था तब आती है जब व्यक्ति आत्मज्ञान को प्राप्त करता है.
ध्यान करने से मानसिक तनाव कम होता है और मानसिक विकार की स्थिति उत्पन्न नहीं होती.
ध्यान करने के लिए, आने वाले भविष्य के बारे में नहीं सोचना चाहिए.
ध्यान करने के लिए, एकाग्रता की कला का अभ्यास करना चाहिए.
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