Blog by Taniya | Digital Diary
" To Present local Business identity in front of global market"
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8हलासन योग आसन को 'प्लough पोज़' भी कहा जाता है. यह आसन करने से कई फ़ायदे होते हैं, जैसे कि वज़न कम होना, पाचन बेहतर होना, और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ना
हलासन करने का तरीकाः
सबसे पहले एक साफ़ और समतल जगह पर चटाई या दरी बिछाएं
पीठ के बल लेट जाएं
दोनों पैरों को एक-दूसरे से मिलाकर रखें
हथेलियों को कमर के पास ज़मीन से सटाकर रखें
मुंह आकाश की ओर रखें और आंखें बंद कर दें
श्वास अंदर लें और पेट को सिकुड़कर पैरों को उठाएं
दोनों पैरों का शरीर से समकोण (90 डिग्री एंगल) बनने पर श्वास छोड़ें
अपने क्षमतानुसार इस स्थिति में रुकें
धीरे-धीरे पीठ और पैर को ज़मीन से लगाएं
हलासन करने के फ़ायदे
वज़न कम करने में मदद मिलती है
पाचन बेहतर होता है
कब्ज़, अपच जैसी पेट की समस्याओं में आराम मिलता है
बवासीर में आराम मिलता है
चिंता और थकान दूर होती है
त्वचा और बालों के लिए फ़ायदेमंद होता है
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है
हलासन के फायदे क्या हैं?
हलासन योग पेट की कई समस्याओं के लिए एक जादुई समाधान है। यह आपके पेट पर दबाव डालता है और आपके पाचन तंत्र के कार्य को बढ़ाता है। मांसपेशियों को उत्तेजित करके, हलासन आंत्र गतिशीलता को बढ़ावा देता है, जिससे आपको कब्ज से राहत मिलती है।
हलासन से कौन से रोग ठीक होते हैं?
हलासन के नियमित अभ्यास से अजीर्ण, कब्ज, अर्श, थायराइड का अल्प विकास, अंगविकार, असमय वृद्धत्व, दमा, कफ, रक्तविकार आदि दूर होते हैं। सिरदर्द दूर होता है।
हलासन कितने मिनट तक करना चाहिए?
यर पूर्ण 'हलासन' की मुद्रा है। अपनी क्षमतानुसार इस स्थिति में 30, 60 या 90 सेकंड्स तक रहें। अब धीरे-धीरे श्वास लेते हुए पैरों को ऊपर उठाते हुए पूर्व रूप में आ जाएं। इस अभ्यास को तीन से चार बार करें।
हलासन और सर्वांगासन के क्या फायदे हैं?
इसका अभ्यास अंगों की कार्य क्षमता को बढ़ाता है. इसलिए यह सिफारिश की जाती है कि जिन रोगियों को डायबिटीज और लीवर की समस्या है, वे इस योग को अपनी दिनचर्या में शामिल करें. सर्वांगासन के साथ हलासन का अभ्यास हाई ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने में मदद करता है जिससे व्यक्ति कई स्वास्थ्य स्थितियों से दूर रहता है
क्या हलासन से हाइट बढ़ती है?
लंबाई बढ़ाने के लिए हसालन भी एक अच्छा विकल्प है। हलासन करने के लिए कमर के बल लेट जाएं और हाथों को शरीर के साथ सटाकर रखें। अब धीरे-धीरे अपने पैरों को ऊपर उठाएं और 90 डिग्री के कोण तक ले आएं।
क्या हलासन करने से हाइट बढ़ती है?
ताड़ासन, सर्वांगासन, हलासन जैसे योग आसन बच्चों की लम्बाई बढ़ाने में मदद करते हैं। साथ ही, ये योग आसन बच्चों की दृष्टि और याददाश्त को भी तेज कर सकते हैं। ताड़ासन - इस आसन को करने से बच्चों की लम्बाई तेजी से बढ़ेगी।
हलासन कब करना है?
तनाव से राहत । हलासन योग मुद्रा की उलटी प्रकृति मस्तिष्क में रक्त प्रवाह को बढ़ावा देती है, विश्राम को बढ़ावा देती है और तनाव को कम करती है। यह मन को शांत करने और मानसिक थकान को कम करने के लिए एक उत्कृष्ट मुद्रा है
हलासन का अभ्यास करते समय क्या सावधानियां बरती जाती हैं?
अगर आपको डायरिया या गर्दन में चोट की समस्या है तो हलासन का अभ्यास न करें।
अगर आप हाई बीपी या अस्थमा के मरीज हैं तो ये आसन न करें।
हलासनके अभ्यास के दौरान समस्या होने पर टांगों को सहारा दिया जा सकता है ।
हलासन का अभ्यास शुरुआत में किसी योग्य योग ट्रेनर की देखरेख में ही शुरू करें।
हलासन का फायदा क्या है?
हलासन नियमित रूप से अभ्यास करने वाले व्यक्ति को कई स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है। यह रक्त परिसंचरण में सुधार करने, प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने, रक्तचाप और मधुमेह को नियंत्रित करने, तनाव और पीठ दर्द से राहत दिलाने, पाचन तंत्र को बेहतर बनाने और थायरॉयड ग्रंथियों को उत्तेजित करने में मदद करता है।
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शलभासन एक योगासन है. इसे लोकस्ट पोज़ भी कहते हैं. यह संस्कृत के शब्द 'शलभ' और 'आसन' से मिलकर बना है. शलभ का मतलब कीट होता है. इस योगासन को करने के दौरान शरीर की मुद्रा कीट की तरह होती है
शलभासन योग शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक क्रिया है। कई तरह के रोगों से बचाव और इलाज के लिए योग का नियमित अभ्यास असरदार हो सकता है। अलग अलग योग, अलग अलग स्वास्थ्य समस्याओं में कारगर साबित हो सकते हैं। कोई एक योग भी कई बीमारियों को ठीक करने में सहायक हैं।
हालांकि योगाभ्यास के दौरान अक्सर ही लोग सोचते हैं कि ऐसा कौन सा आसन करें, जो उनकी कई स्वास्थ्य समस्याओं का इलाज करने में मदद करें और कई रोगों से बचाव भी करे। खराब खान-पान और बिगड़ी लाइफस्टाइल के कारण कई तरह की शारीरिक और मानसिक शिकायत हो सकती हैं। इस सभी का इलाज दवाइयों से करने के बजाए महज एक योग से किया जा सकता है।
लाइफस्टाइल से जुड़ी समस्याओं को दूर करने के लिए शलभासन का अभ्यास करना चाहिए। शलभासन योग के अभ्यास से स्वास्थ्य को कई फायदे मिलते हैं।
योग का नियमित रूप से अभ्यास करने से शरीर स्वस्थ रहता है और इससे बड़ी बड़ी बीमारियों से बचा जा सकता हैं। योग की अनेक मुद्रा हैं, जिसमें 'शलभासन' एक प्रमुख आसन है। इस आसन से हमारे शरीर की मांसपेशिया मजबूत होती हैं और पीठ दर्द जैसी समस्या को दूर किया जा सकता हैं।
शलभासन एक संस्कृत भाषा का शब्द है, जो दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसमें पहले शब्द "शलभ" का अर्थ "टिड्डे या कीट" और दूसरा शब्द आसन का अर्थ होता है "मुद्रा", अर्थात शलभासन का अर्थ है टिड्डे के समान मुद्रा होना।
इस आसन को अंग्रेजी में "ग्रासहोपर पोज़" बोलते हैं। इससे आपकी रीढ़ की हड्डी मजबूत होती है। यह हठ योग की श्रेणी में आता है। यह मुद्रा देखने में सरल हो सकती है, पर करने में आपको थोड़ी कठिनाई आ सकती है।
शलभासन, योग का एक आसन है जिसे टिड्डी मुद्रा भी कहते हैं. यह एक पीठ के बल झुकने वाला आसन है. शलभासन करने से पीठ मज़बूत होती है, रीढ़ की हड्डी लचीली होती है और पाचन तंत्र भी मज़बूत होता है. यह आसन करने से तनाव और चिंता कम होती है और भावनात्मक स्वास्थ्य बेहतर होता है
शलभासन, जिसे Locust Pose भी कहा जाता है, एक योग आसन है जिसमें आपको अपने पेट के बल लेटकर पैरों को ऊपर उठाना होता है, जिससे आपका शरीर जमीन से उठकर खड़ा होता है, Locust की तरह।
शलभासन करने के फ़ायदे
इससे पीठ की मांसपेशियां मज़बूत होती हैं
इससे गर्दन और कंधों की नसें मज़बूत होती हैं
इससे पाचन क्रिया सुधरती है
इससे पेट की चर्बी कम होती है
इससे कमर दर्द में आराम मिलता है
इससे घुटनों के दर्द से छुटकारा मिलता है
इससे मासिक धर्म से जुड़ी परेशानियां दूर होती हैं
शलभासन वजन को कम करने के लिए एक अच्छी योग मुद्रा मानी जाती है। यह हमारे शरीर में चर्बी को खत्म करने में मदद करती है।
हमारे शरीर की मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए शलभासन एक अच्छी मुद्रा है। यह हमारे शरीर के हाथों, पैरों को मजबूत करता है, इसके साथ यह पेट की चर्बी को कम करके उसे सुंदर बनाता है। रीढ़ की हड्डी को मजबूत करने के लिए शलभासन एक अच्छा योग हैं।
शलभासन से अनेक प्रकार की बीमारियों को ठीक किया जा सकता है। यह हमारे पेट के पाचन तंत्र को ठीक करता है, जिससे पेट संबंधी बीमारियां नहीं होती हैं, इसके साथ यह कब्ज को ठीक करता है
शलभासन से हमारा पूरा शरीर स्वस्थ रहता है। यह मुद्रा पूरे शरीर को सक्रिय करती है। हमारे शरीर में रक्त के संचालन को बढ़ाती है। शलभासन योग करने से बीमारियां आपसे दूर रहती हैं।
शलभासन करने का तरीका
शलभासन करने लिए सबसे पहले आप किसी साफ स्थान पर चटाई बिछा कर उलटे पेट के बल लेट जायें। यानि आपकी पीठ ऊपर की ओर रहे और पेट नीचे जमीन पर रहे।
अपने दोनों पैरो को सीधा रखें और अपने पैर के पंजे को सीधे तथा ऊपर की ओर रखें।
गहरी सांस लें और सिर को ऊपर उठाएं
हाथों और पैरों को जमीन से उठाएं
अपने सिर और मुंह को सीधा रखें।
फिर अपने को सामान्य रखें और एक गहरी सांस अंदर की ओर लें।
अपने दोनों पैरों को ऊपर की ओर उठाने की कोशिश करें, जितना हो सकता हैं उतना अपनी अधिकतम ऊंचाई तक पैरों को ऊपर करें।
अगर आप योग अभ्यास में नये हैं, तो आप पैरों को ऊपर करने के लिए अपने हाथों का सहारा ले सकते हैं, इसके लिए आप अपने दोनों हाथों को जमीन पर टिका के अपने पैरों को ऊपर कर सकते हैं।
आप इस मुद्रा में कम से कम 20 सेकंड तक रहने की कोशिश करें, इसे आप अपने क्षमता के अनुसार कम ज्यादा कर सकते हैं।
इस पोज़िशन में कुछ देर रहें
इसके बाद आप धीरे धीरे अपनी सांस को बाहर छोड़ते हुए पैरों को नीचे करते जाएं।
फिर वापस पुरानी पोज़िशन में आ जाएं इस अभ्यास को 3-4 बार दोहराएं।
शलभासन के क्या लाभ हैं?
डायबिटीज और प्रोस्टेट ग्लैंड की समस्याओं का सबसे अच्छा इलाज शलभासन का नियमित अभ्यास है।
रीढ़, गर्दन, छाती और कंधों को मजबूत बनाता है और फेफड़ों के स्वास्थ्य को दुरुस्त रखता है।
शलभासन पेट की समस्याओं के लिए रामबाण इलाज है।
पैरों के दर्द को ठीक करता है।
शलभासन कब नहीं करना चाहिए?
पेप्टिक अल्सर, हर्निया, आंतों में तपेदिक और अन्य ऐसी स्थिति से पीड़ित लोगों को भी इस आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
शलभासन क्या है और इसके फायदे?
शलभासन या लोकस्ट पोज़ कई लाभ प्रदान करता है। यह पीठ और रीढ़ को मजबूत करता है, मुद्रा में सुधार करता है और लचीलापन बढ़ाता है । यह मुद्रा पाचन को भी उत्तेजित करती है, चयापचय को बढ़ाती है और तनाव और चिंता से राहत देती है। शलभासन से कौन सी बीमारी ठीक होती है? शलभासन से कोई खास बीमारी ठीक नहीं होती।
शलभासन में शलभ का क्या मतलब है?
शलभासन संस्कृत के दो शब्दों 'शलभ' से बना है, जिसका अर्थ है टिड्डा और 'आसन' जिसका अर्थ है मुद्रा। साथ में, ये दोनों मिलकर टिड्डा मुद्रा बनाते हैं जिसमें मुद्रा टिड्डे जैसी दिखती है।
शलभासन करने से पहले ध्यान रखने वाली बातें
इस आसन के करने के लिए हमें ढीले कपड़े पहनना चाहिए।
इसे धीरे धीरे करना करना चाहिए, एक दम से इसका अभ्यास ना करें।
हमें ऐसे स्थान पर योग करना चाहिये जहां पर अच्छी और ताजी हवा हो।
शलभासन करने में क्या सावधानी बरती जाए
आसन करने के पहले हमें खाना नहीं खाना चाहिए।
अगर आप सिरदर्द, गर्दन दर्द, और रीढ़ के दर्द से परेशान हैं तो आप इस योग को ना करें।
गर्भवती महिलाओं को यह मुद्रा नहीं करनी चाहिए।
अगर आप कमर दर्द, पीठ दर्द और घुटने के दर्द से परेशान हैं तो डॉक्टर की सलाह से इस मुद्रा को करें।
आसन करते समय हमें मुंह से सांस नहीं लेनी चाहिये, केवल नाक से सांस लेनी चाहिये।
शलभासन करने से पहले यह आसन करें
1. भुजंगासन
2. गोमुखासन
3. ऊर्ध्व मुख श्वानासन
4. वीरभद्रासन
शलभासन करने के बाद आसन
1. ऊर्ध्व धनुरासन या चक्रासन
2. सेतुबंधासन
3. सर्वांगासन
4. शीर्षासन
शलभासन या टिड्डी मुद्रा योग करते समय इन सावधानियों का ध्यान रखना चाहिए
शलभासन को धीरे-धीरे करना चाहिए
ज़्यादा जोर न लगाएं और शरीर पर दबाव न डालें
गर्दन को सीधा रखें और ठोड़ी को अंदर की ओर रखें
कंधों को ज़मीन से सटाकर रखें
घुटनों को मोड़े बिना पैरों को ऊपर उठाएं
शरीर के किसी हिस्से को बलपूर्वक न उठाएं
तेज़ी या झटके के साथ शरीर न हिलाएं
गर्दन पर ज़्यादा ज़ोर न डालें
इन स्थितियों में शलभासन नहीं करना चाहिए:
पीठ में गंभीर दर्द या स्लिप डिस्क की समस्या हो
गंभीर साइटिका हो
मासिक धर्म या गर्भावस्था हो
ब्लड प्रेशर की समस्या हो
हर्निया, पेट निकला हुआ होना, या पिछले कुछ महीनों में सर्जरी कराई हो
शलभासन करने से पहले किसी डॉक्टर या योग प्रशिक्षक से सलाह लें
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अर्ध मत्स्येन्द्रासन करने से कई तरह के फ़ायदे होते हैं. यह आसन रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाता है और पीठ के दर्द से राहत दिलाता है. यह आसन करने से पाचन क्रिया दुरुस्त होती है और शरीर का मेटाबॉलिज़्म भी बढ़ता है. इस आसन को करने से मन शांत होता है और नींद बेहतर होती है
अर्ध मत्स्येन्द्रासन संस्कृत भाषा के शब्दों अर्ध, मत्स्य, इन्द्र और आसन से मिलकर बना है। जहां अर्ध का मतलब आधा मत्स्य का अर्थ मीन या मछली इन्द्र का अर्थ राजा और आसन का अर्थ मुद्रा है।
योगी मत्स्येन्द्रनाथ के नाम पर इस आसन का नाम मत्स्येन्द्रासन पड़ा। इस आसन को वक्रासन भी कहा जाता है। अर्ध मत्स्येन्द्रासन अन्य आसनों की तरह बहुत आसान नहीं है, इसलिए ज्यादातर लोग शुरुआत मे योगा एक्सपर्ट की देखरेख में इस आसन का अभ्यास करते हैं। लेकिन कुछ दिनों के अभ्यास के बाद यह आसन करना काफी आसान हो जाता है।
रीढ़ की हड्डी और पैरों सहित लगभग पूरा शरीर इस आसन में शामिल होता है। इसलिए स्वास्थ्य की दृष्टि से यह शरीर के विभिन्न अंगों के लिए फायदेमंद होता है।
अर्ध मत्स्येन्द्रासन के फ़ायदे:
रीढ़ की हड्डी के लचीलेपन में सुधार होता है
पीठ के निचले हिस्से के दर्द से राहत मिलती है
पाचन क्रिया दुरुस्त होती है
मांसपेशियों में खिंचाव आता है
ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है
दिमाग तक ऑक्सीजन आसानी से पहुंचती है
मधुमेह रोगियों के लिए भी यह एक अच्छा विकल्प है
कब्ज, दमा, और पाचन संबंधी समस्याओं को दूर करने में मदद करता है
मेनोपॉज़ के दौरान हॉट फ़्लैशेज या मूड स्विंग्स जैसी समस्याओं को कम करने में मदद मिलती है
अर्ध मत्स्येन्द्रासन का प्रतिदिन अभ्यास करने से एब्स मजबूत होते हैं और यह आसन इन्हें टोन करने का भी कार्य करता है। इसके अलावा यह आसन करने से मांसपेशियां भी मजबूत होती हैं।
इस आसन का नियमित रूप से अभ्यास करने से शरीर लचीला बनता है और विशेष रूप से रीढ़ की हड्डी लचीली होती है। इसके साथ ही यह आसन कंधे और गर्दन के लिए भी फायदेमंद होता है और शरीर को ऊर्जा से भर देता है।
अर्ध मत्स्येन्द्रासन का प्रतिदिन अभ्यास करने से शरीर के अंदर जमा टॉक्सिन्स बाहर निकल आते हैं। इससे शरीर में असमय बीमारियां नहीं लगती हैं और शरीर की सुरक्षा होती है।
प्रतिदिन सुबह इस आसन का अभ्यास करने से शरीर में जमा कचरा बाहर निकल आता है और पाचन क्रिया मजबूत होती है। इस आसन को करने से भोजन बहुत आसानी से पच जाता है और कब्ज या शरीर में भारीपन की समस्या नहीं महसूस होती है।
इस आसन का अभ्यास करने से किडनी, लिवर, हृदय और प्लीहा उत्तेजित होते हैं और अपना कार्य सुचारू रूप से एवं सही तरीके से करते हैं। इससे शरीर में तमाम तरह के रोगों से सुरक्षा होती है, क्योंकि ये सभी अंग शरीर की महत्वपूर्ण क्रियाओं को करने वाले अंग होते हैं।
अर्ध मत्स्येन्द्रासन का सही तरीके से अभ्यास करने से यह शरीर के अंदर की अतिरिक्त गर्मी को बाहर निकालने में मदद करता है और शरीर के अंगों एवं कोशिकाओं में इकट्ठे हानिकारक पदार्थों को भी दूर कर देता है।
इस आसन का अभ्यास करने से शरीर अधिक सक्रिय रहता है और भूख न लगने की समस्या भी दूर हो जाती है। यह आसन करने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि पाचन तंत्र मजबूत होता है और भूख भी समय पर लगती है।
आप सिर्फ अर्ध मत्स्येन्द्रासन योग करके मधुमेह को बहुत हद तक कंट्रोल कर सकते हैं। यह आसन पैंक्रियास को स्वस्थ रखते हुए इन्सुलिन के बनने में मदद करता है और मधुमेह के रोकथाम में अहम भूमिका निभाता है।
अगर आपको अपनी पेट की चर्बी कम करनी हो तो इस आसन का अभ्यास जरूर करें। इस आसन के अभ्यास करते समय अगर इसे कुछ ज्यादा वक्त के लिए मेंटेन किया जाए, तो पेट की चर्बी को गलाने में अच्छी सफलता मिलती है।
अर्ध मत्स्येन्द्रासन करने का तरीका:
ज़मीन पर बैठ जाएं और पैरों को सीधा रखें
रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें
दंडासन में बैठ जायें। हल्का सा हाथों से ज़मीन को दबायें, और साँस अंदर लेते हुए रीढ़ की हड्डी को लंबा करें।
बाएं पैर को मोड़ें और दाएं घुटने के उपर से लाकर बाएं पैर को जमीन पर रखें।
दाहिने पैर को मोड़ो और पैर को बाईं नितंब के निकट जमीन पर आराम से रखें।
बाएं पैर के उपर से दाहिने हाथ को लायें और बाएं पैर के अंगूठे को पकड़ें।
श्वास छोड़ते हुए धड़ को जितना संभव हो उतना मोड़ें, और गर्दन को मोड़ें जिससे कि बाएं कंधे पर दृष्टि केंद्रित कर सकें।
बाएं हाथ को ज़मीन पर टिका लें, और सामान्य रूप से श्वास लें।
30-60 सेकेंड के लिए मुद्रा में रहें।
आसन से बाहर निकलने के लिए सारे स्टेप्स को विपरीत क्रम में करें।
यह सारे स्टेप्स फिर दूसरी तरफ भी दौहरायें।
अर्ध मत्स्येन्द्रासन एक महत्वपूर्ण आसन है जिसका नाम महान योगी मत्स्येन्द्रनाथ के नाम पर रखा गया है। इस आसन से पेट के सभी अंग वृक्क (किडनी), यकृत (लीवर), अग्न्याशय (पैनक्रयाज) प्रभावित होते हैं। इस आसन के करने से रासायन निर्माण का संतुलन बना रहता है। शर्करा (सुगर) नियंत्रित रहता है।
अर्ध मत्स्यासन के क्या फायदे हैं?
अर्ध मत्स्येन्द्रासन आसन वरिष्ठ नागरिकों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद हो सकता है। इससे उनकी एड्रिनल ग्रंथि की स्थिति में सुधार होता है। साथ ही, यह आसन कब्ज, दमा, और पाचन संबंधी समस्याओं को दूर करने में मदद करता है। मधुमेह रोगियों के लिए भी यह एक अच्छा विकल्प है
मत्स्येन्द्रासन का अभ्यास करते समय क्या सावधानियां बरतनी चाहिए?
अर्ध मत्स्येन्द्रासन की प्रक्रिया का पालन उचित तरीके से किया जाना चाहिए। बैठे हुए मोड़ का अभ्यास करते समय, ध्यान रखने वाली एक और महत्वपूर्ण बात है सांस लेना । जब आप शरीर को अंतिम मुद्रा में मोड़ते हैं, तो सुनिश्चित करें कि आप सांस बाहर छोड़ें। सांस छोड़ने से आपको और अधिक झुकने में मदद मिलेगी।
अर्ध मत्स्येन्द्रासन करने में यह सावधानियाँ बरतें:
गर्भावस्था और मासिक धर्म के दौरान नहीं करना चाहिए।
जिनके दिल, पेट या मस्तिष्क की ऑपरेशन की गयी हो उन्हे इस आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
पेप्टिक अल्सर या हर्निया वाले लोगों को यह आसान बहुत सावधानी से करना चाहिए।
अगर आपको रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट या समस्याएं हैं, तो आप यह आसन ना करें।
हल्के स्लिप-डिस्क में इस आसन से लाभ हो सकता है, लेकिन गंभीर मामलों में इसे नहीं करना चाहिए।
अर्धमत्स्येन्द्रासन के क्या लाभ हैं?
अर्धमत्स्येन्द्रासन करने आपके शरीर की मांसपेशियां में लचीलापन आता है और आपका ब्लड सर्कुलेशन ठीक होता है। अर्ध मत्स्येन्द्रासन को नियमित करने आपके शरीर के विषैल तत्व बाहर होते हैं और शरीर डिटॉक्स होता है।
अर्ध मत्स्येन्द्रासन करने से पहले ध्यान रखने वाली बातें
अर्ध मत्स्येन्द्रासन का अभ्यास तड़के सुबह करना चाहिए। लेकिन यदि किसी कारणवश आप सुबह इस आसन का अभ्यास नहीं कर पा रहे हैं, तो शाम के समय भी कर सकते हैं। लेकिन अर्ध मत्स्येन्द्रासन का अभ्यास करने से पहले आपको यह ध्यान रखना होगा कि आपका पेट पूरी तरह खाली हो अर्थात इस आसन को करने से चार से छह घंटे पहले ही आपने भोजन कर लिया हो, ताकि भोजन आसानी से पच जाए। याद रखें, आसन के सभी नियमों का अनुसरण करने पर ही किसी भी आसन का फायदा मिलता है।
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पवनमुक्तासन एक योग मुद्रा है. इसे अंग्रेज़ी में विंड रिलीज़िंग पोज़ कहते हैं यह आसन शरीर से हानिकारक गैस को बाहर निकालने में मदद करता है पवनमुक्तासन करने से पाचन क्रिया मज़बूत होती है और शरीर में ऊर्जा आती है
पवनमुक्तासन के कई फ़ायदे हैं:
यह पेट की समस्याओं में फ़ायदेमंद होता है
इससे गैस, एसिडिटी, कब्ज़, और पेट फूलने जैसी समस्याओं से राहत मिलती है
यह पेट की चर्बी कम करने में मदद करता है
यह आसन रीढ़ की हड्डी को मज़बूत और लचीला बनाता है
इससे पाचन क्रिया बेहतर होती है
यह आसन हृदय और फेफड़ों को मज़बूत बनाता है
इससे कमर के दर्द, साइटिका, गठिया, और हर्निया जैसी समस्याओं में आराम मिलता है
इससे एसिडिटी की समस्या से आराम मिलता है
पेट में भारीपन और कब्ज़ से राहत मिलती है
इससे पाचन क्रिया ठीक रहती है
इससे शरीर को मज़बूती मिलती है
इससे रीढ़ की हड्डी मज़बूत और लचीली होती है
यह आसन स्त्रियों के गर्भाशय से जुड़ी समस्याओं में फ़ायदेमंद होता है
इससे शरीर में ऊर्जा का संचार होता है और थकान कम होती है
यह आसन जुकाम की समस्या में भी आराम दिलाता है
पवनमुक्तासन करने से पहले, किसी योग प्रशिक्षक से सलाह लें. अगर आपको कोई शारीरिक समस्या है, तो डॉक्टर से भी सलाह लें
पवनमुक्तासन एक बहुमुखी और लाभप्रद योग आसन है जो कई शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है। इस मुद्रा का नियमित अभ्यास करके, आप कब्ज और सूजन जैसी पाचन संबंधी समस्याओं को कम कर सकते हैं, अपनी पीठ और पेट की मांसपेशियों को मजबूत कर सकते हैं, और यहां तक कि अपनी बाहों और पैरों की मांसपेशियों को भी टोन कर सकते हैं।
पवनमुक्तासन करने से क्या लाभ होता है?
इस योग से गैसटिक, पेट की खराबी में लाभ मिलता है। पेट की बढ़ी हुई चर्बी के लिए भी यह बहुत ही लाभप्रद है। कमर दर्द, साइटिका, हृदय रोग, गठिया में भी यह आसन लाभकारी होता है। स्त्रियों के लिए गर्भाशय सम्बन्धी रोग में पावन मुक्त आसन काफी फायदेमंद होता है।
पवनमुक्तासन कितनी देर करना चाहिए?
पवनमुक्तासन योगासन को हर दिन 5 मिनट करने से शरीर को कई फ़ायदे मिलते हैं
इसे करने का तरीकाः
सबसे पहले, ज़मीन पर मैट बिछाएं
इसके बाद, पीठ के बल लेट जाएं
अब, हाथों को लहराकर पैरों के पास ले जाएं.
बाएं हाथ से बाएं पैर के घुटने को पकड़कर सीने तक लाएं
इस अवस्था में कुछ देर तक रहें
इसके बाद, दाहिने हाथ से पवनमुक्तासन को दोहराएं
अंत में, दोनों हाथों से इस क्रिया को करें
अंत में, पहली अवस्था में आ जाएं
पवनमुक्तासन कितने प्रकार के होते हैं?
भिन्न प्रकार (क) श्वास के साथ समन्वित है और भिन्न प्रकार (ख) सामान्य श्वास के साथ। पीठ के बल लेटें। भिन्न प्रकार (क) तीन बार, भिन्न प्रकार (ख) प्रत्येक दिशा में 10 बार।
पेट के लिए सबसे अच्छा आसन कौन सा है?
पेट के लिए कई योगासन फ़ायदेमंद होते हैं. इनमें से कुछ योगासन ये रहे
पवनमुक्तासन, वज्रासन, पश्चिमोत्तासन, भुजंगासन, धनुरासन, हलासन, पार्श्व सुखासन, मकरासन
इन योगासनों को करने से पेट से जुड़ी कई समस्याओं से राहत मिलती है
पवनमुक्तासन
इसे विंड रिलीविंग पोज़ भी कहा जाता है. यह गैस-एसिडिटी से राहत दिलाता है और पाचन को बेहतर बनाता है
क्या पवनमुक्तासन पेट की चर्बी कम करता है?
पवनमुक्तासन पाचन में सहायता करने और पेट की चर्बी कम करने के लिए एक सरल लेकिन प्रभावी आसन है । यह पेट के अंगों की मालिश करता है, जिससे पेट फूल सकता है। यह आसन आंतों को उत्तेजित करने, पाचन में सुधार करने और पेट के क्षेत्र में वसा के निर्माण को कम करने में मदद करता है।
पवनमुक्तासन को इंग्लिश में क्या कहते हैं?
पवनमुक्तासन, जैसा कि इसके अंग्रेजी नाम ( विंड-रिलीविंग पोज़ ) से पता चलता है, एक ऐसा आसन है जिसका पाचन अंगों पर सकारात्मक, सुखदायक प्रभाव पड़ता है।
पवनमुक्तासन किसे नहीं करना चाहिए?
अगर हाल ही में पेट की सर्जरी हुई है तो इसे करने से बचना चाहिए क्योंकि इससे पेट पर बहुत दबाव पड़ता है। हर्निया या बवासीर से पीड़ित लोगों को इस आसन से बचना चाहिए। गर्भवती महिलाओं को इस आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
पवनमुक्तासन के दो गुण बताइए?
पवनमुक्तासन के लाभ। पवनमुक्तासन शरीर और मन के लिए कई तरह के लाभ प्रदान करता है। पाचन में सुधार और लचीलेपन को बढ़ाने से लेकर पीठ दर्द को कम करने और बेहतर नींद को बढ़ावा देने तक, यह आसन किसी भी योग अभ्यास के लिए एक मूल्यवान अतिरिक्त है।
पवनमुक्तासन से क्या लाभ होता है
पवनमुक्तासन पेट की चर्बी को कम करके शरीर को लचीला बनाने में मदद करता है। पवनमुक्तासन को अंग्रेजी में 'विंड रीलिविंग पोज' के नाम से जाना जाता है। इस योग को करने से शरीर में मौजूद दूषित वायु बाहर निकलकर पेट संबंधी विकारों से निजात दिलाती है।
पवनमुक्तासन की सावधानियां
जो व्यक्ति पीठ के दर्द या कमर में दर्द से पहले से ही पीड़ित हों उन्हें पवनमुक्तासन करने से बचना चाहिए।
यदि आपके सीने में दर्द की समस्या हो या गर्दन में कोई पुरानी चोट हो तो इस आसन को करने से बचें
आमतौर पर ज्यादातर आसन खाली पेट ही किये जाते हैं, लेकिन पवनमुक्तासन को खाली पेट करने से बचें।
यदि आपको उच्च रक्तचाप और गर्दन में दर्द हो तो पवनमुक्तासन करने में सावधानी बरतें
पवनमुक्तासन के प्रकार
पवनमुक्तासन के दो प्रकार होते हैं:
1. श्वास के साथ समन्वित पवनमुक्तासन
2. सामान्य श्वास के साथ पवनमुक्तासन
पवनमुक्तासन दिन में कितनी बार करना चाहिए?
पवनमुक्तासन ऐसा ही एक योगासन है जिसे हर दिन केवल 5 मिनट करने से शरीर को कई फायदे मिलते हैं
Read Full Blog...शीतकारी प्राणायाम, शरीर को ठंडा करने वाला प्राणायाम है. यह प्राणायाम करने से मन शांत होता है और तनाव कम होता है
शीतकारी प्राणायाम करने का तरीकाः
किसी खुली, साफ़-सुथरी और एकांत जगह पर बैठ जाएं
कमलसन की मुद्रा में बैठें
मुंह खोलें और जीभ को बाहर निकालकर नली की तरह आकार दें
मुंह से सांस लेने की कोशिश करें
सांस को नाक से बाहर निकालें
किसी आरामदायक आसन में बैठ जाएं
हथेलियों को घुटनों पर रखें
जीभ को ऊपर की ओर घुमाकर ऊपरी तालू को छुएं
दांतों को आपस में मिलाएं और होठों को अलग करें
धीरे-धीरे सांस लें
किसी भी सुविधाजनक ध्यान करने की मुद्रा में बैठें। आँखें बंद करें और सारे शरीर को रिलेक्स करें। हाथों को चिन या ज्ञान मुद्रा में घुटनों पर रख सकते हैं।
दांतों को हल्के से जोड़ें, पर होंठ अलग रखें ताकि अगर कोई सामने खड़ा हो तो उसे आपके दाँत दिखाई दें।
जीभ को फ्लैट रख सकते हैं या मोड़ कर मूह के उपरी हिस्से पर टिका कर रख सकता है।
दांतों के माध्यम से धीमे से और गहराई से साँस लें।
जब साँस अंदर ले लें, तो मुंह को बंद कर लें। जीभ को वैसे ही रखें जैसे शुरू में थी।
एक नियंत्रित तरीके से नाक से धीरे-धीरे साँस छोड़ें।
यह एक चक्र है। 9 चक्र करें।
सबसे पहले पेट में सांस भरें, फिर छाती में, और फिर गर्दन में
सांस लेते समय हल्की फुसफुसाहट की आवाज़ निकालें
पेट और छाती में सांस भरने के बाद नाक से धीरे-धीरे सांस छोड़ें
इस प्रक्रिया को करीब 10 बार दोहराएं
शीतकारी प्राणायाम के फ़ायदेः
शीतली प्राणायाम करने से कई फ़ायदे होते हैं. यह शरीर को ठंडा रखता है और तनाव को कम करता है. यह प्राणायाम करने से शरीर में ताजगी का एहसास होता है
शरीर को ठंडक पहुंचाता है
थकान दूर करता है और नींद अच्छी आती है
हाई ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने में मदद करता है
तनाव, घबराहट, और चिंता को कम करता है
गुस्से को नियंत्रित करने में मदद करता है
पित्त शांत होने से शरीर ठंडा होता है
इम्यूनिटी बढ़ाने में मददगार है
यह प्राणायाम शरीर के तापमान को कम करता है
यह बुखार में फ़ायदेमंद है
यह मुंह, गले, और जीभ से जुड़ी बीमारियों में फ़ायदेमंद है
यह प्लीहा और अपच में मदद करता है
यह उच्च रक्तचाप में फ़ायदेमंद है
यह दिमाग को शांत करता है
यह भावनात्मक उत्तेजना और मानसिक तनाव को कम करता है
स्किन रैशेज, दाने बहुत आते हैं, तो उसे भी दूर करता है
यह तन और मन को शीतल कर देता है।
शीतकारी प्राणायाम मस्तिष्क के उन केंद्रों को प्रभावित करता है जो शारीरिक तापमान को केंद्रित करते हैं।
यह सारे शरीर में प्राण-प्रवाह को आसान बनाता है।
शीतकारी प्राणायाम सारे शरीर की मांसपेशियों को आराम पहुँचाता है।
यह प्राणायाम दिमाग़ और संपूर्ण शरीर को शांत करता है, इसलिए अगर इसे सोने से पहले करें तो यह सुखद नींद पाने में मदद करता है।
शीतकारी प्राणायाम करने से प्यास और भूख पर काबू बढ़ता है।
इसका नियमित अभ्यास रक्तचाप को कम कर सकता है।
दांतों और मसूड़ों को स्वस्थ रखता है शीतकारी प्राणायाम
यह प्राणायाम मन को शांत रखता है
यह प्राणायाम पित्त की समस्या को दूर करता है
यह प्राणायाम जबड़ों की सेहत के लिए अच्छा है
यह प्राणायाम हाई ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करता है
गर्मी के मौसम में यह प्राणायाम करने से शरीर पर शीतलता का प्रभाव बढ़ता है।
शीतकारी प्राणायाम शरीर के तापमान को ठंडा करके शरीर और दिमाग को आराम दिलाने में मदद करता है।
शीतकारी प्राणायाम भूख, प्यास, नींद और आलस की समस्या को दूर करने में फायदेमंद है।
शीतकारी प्राणायाम कैसे किया जाता है?
सांस लेते समय ध्यान दें कि हल्की फुसफुसाहट की आवाज निकले, जैसे सांप के फुंफकारने की आवाज होती है। अपने पेट और छाती में सांस भरने के बाद नाक की मदद से धीरे-धीरे सांस को छोड़ें। शीतकारी प्राणायाम का एक सिर्फ एक सेट हैं आप जितनी देर तक कर सकते हैं इस पूरी प्रक्रिया को दोहराएं।
शीतकारी प्राणायाम शरीर को क्या देता है?
शीतली प्राणायाम आपके शरीर का तापमान कम करता है जो आपकी पित्त की समस्या को दूर करता है. सबसे पहले किसी खुली जगह जैसे मैदान या गार्डन में बैठ जाए. अब अपनी जीभ को बाहर की ओर निकालते हुए उसे रोल करें और धीरे-धीरे सांस अंदर खींचे और इसे कुछ सेकंड के लिए होल्ड करने के बाद फिर सांस छोड़ दें
शीतकारी प्राणायाम का अभ्यास कैसे करें?
अपने निचले और ऊपरी दांतों को एक साथ दबाएं और अपने होठों को जितना संभव हो उतना अलग रखें। अपने दांतों के बीच की जगह से धीरे-धीरे सांस लें। हवा अंदर खींचते समय अपनी सांस की आवाज़ सुनें। साँस अंदर लेने के अंत में अपना मुँह बंद करें और धीरे-धीरे अपनी नाक से साँस छोड़ें।
शीतकारी प्राणायाम क्या है?
शीतकारी प्राणायाम, सांस लेने का एक तरीका है जिससे शरीर ठंडा होता है. यह प्राणायाम गर्मी में किया जाता है. इसे करने से शरीर में नमी आती है और पित्त असंतुलन दूर होता है. शीतकारी प्राणायाम करने से शरीर को शीतलता का अहसास होता है
शीतकारी प्राणायाम से जुड़ी कुछ और बातें:
शीतकारी प्राणायाम करने से पित्त दोष दूर होता है
सर्दियों में शीतकारी प्राणायाम नहीं करना चाहिए
खांसी से पीड़ित लोगों को यह प्राणायाम नहीं करना चाहिए
शीतकारी प्राणायाम करने में क्या सावधानी बरती जाए
यदि आपके संवेदनशील दाँत हों, दाँत कम हों या दाँत ना हों तो शीतकारी प्राणायाम के बजाय शीतली प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए।
निम्न रक्तचाप या कोई भी साँस से संबंधित बीमारी हो तो शीतकारी प्राणायाम का अभ्यास ना करें।
अगर आपको हृदय रोग हो, तो इस प्राणायाम के अभ्यास में साँस ना रोकें।
अगर आपको पुरानी कब्ज की शिकायत हो तो शीतकारी प्राणायाम ना करें।
सामान्य रूप से, इस प्राणायाम को सर्दियों में या ठंडे वातावरण में ना करें।
शीतली प्राणायाम कैसे ?
सबसे पहले किसी खुली, साफ-सुथरी और एकांत जगह गार्डेन में बैठ जाएं। फिर कमालसन की मुद्रा में बैठें। अब मुंह खोले और जीभ को बाहर निकालकर नली की तरह आकार दें और मुंह से सांस लेने की कोशिश करें। फिर सांस को नाक से बाहर निकालें।
शीतली और शीतकारी प्राणायाम में क्या अंतर है?
चंद्रनाड़ी का अभ्यास केवल बायीं नासिका से सांस लेकर किया जाता है, जबकि शीतली प्राणायाम का अभ्यास मुड़ी हुई जीभ से ठंडी हवा को अंदर खींचकर किया जाता है और शीतकारी प्राणायाम का अभ्यास बंद दांतों के माध्यम से मुंह के किनारों से हवा को अंदर खींचकर किया जाता है।
शीतकारी प्राणायाम करने के नुकसान
शीतकारी प्राणायाम करने से कुछ लोगों को नुकसान हो सकता है. इनमें से कुछ लोग ये हैं
जिन लोगों को सांस से जुड़ी समस्याएं हैं, जैसे कि अस्थमा, सर्दी-खांसी, या टॉन्सिलिटिस
जिन लोगों को हृदय रोग है
जिन लोगों को कब्ज़ है
जिन लोगों को कमज़ोर दांत हैं या दांत नहीं हैं
जिन लोगों को निम्न रक्तचाप है
जिन लोगों को हाई ब्लड प्रेशर है
जिन लोगों को हाल ही में बुखार आया है
जो गर्भवती हैं
जिन लोगों को सर्वाइकल की समस्या है
प्राणायाम करने से होने वाले कुछ और नुकसान:
सिरदर्द
चक्कर आना
सुस्ती
विचारों में स्थिरता की कमी
बेचैनी
उल्टी जैसा अहसास
अपच
मानसिक असंतुलन
मुंह का सूखना
ब्लड शुगर का बढ़ना
निम्न रक्तचाप या कोई भी साँस से संबंधित बीमारी हो तो शीतकारी प्राणायाम का अभ्यास ना करें। अगर आपको हृदय रोग हो, तो इस प्राणायाम के अभ्यास में साँस ना रोकें। अगर आपको पुरानी कब्ज की शिकायत हो तो शीतकारी प्राणायाम ना करें। सामान्य रूप से, इस प्राणायाम को सर्दियों में या ठंडे वातावरण में ना करें।
Read Full Blog...भस्त्रिका प्राणायाम, तेज़ी से सांस लेने और छोड़ने की तकनीक है. यह प्राणायाम शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से फ़ायदेमंद होता है. इसे करने से शरीर में ऑक्सीजन का संचार बढ़ता है और ऊर्जा का स्तर बढ़ता है
भस्त्रिका प्राणायाम करने का तरीका
पद्मासन या सुखासन में बैठें
कमर, गर्दन, पीठ, और रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें
आवाज़ करते हुए दोनों नासिका छिद्र से सांस लें और छोड़ें
तेज़ गति से आवाज़ करते हुए सांस लें और छोड़ें
सबसे पहले किसी शांत जगह पर बैठ जाएं
पद्मासन, सिद्धासन या वज्रासन में बैठें
अगर ये आसन नहीं बैठ पा रहे हैं, तो किसी आरामदायक स्थिति में बैठ जाएं
अपनी गर्दन, पीठ, और रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें
आंखें बंद करें और शरीर को शिथिल करें
दोनों नथुनों से गहरी और जोर से सांस लें
सांस लेते समय पेट और छाती को फुलाएं
फिर, दोनों नथुनों से जोर से सांस छोड़ें
सांस छोड़ते समय पेट को सिकोड़ें
तेज़ गति से सांस लेने और छोड़ने की एक स्थिर लय बनाए रखें
भस्त्रिका प्राणायाम के फ़ायदे
यह प्राणायाम शरीर को डिटॉक्स करता है
यह प्राणायाम रक्त की सफ़ाई करता है
इससे शरीर के सभी अंगों तक रक्त का संचार बेहतर होता है
यह प्राणायाम फेफड़ों को मज़बूत करता है
यह प्राणायाम साइनस, ब्रोंकाइटिस, और श्वसन संबंधी समस्याओं को कम करता है
यह प्राणायाम जागरूकता और इंद्रियों की शक्ति को बढ़ाता है
यह शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से फ़ायदेमंद है
यह फेफड़ों को मज़बूत करता है
यह शरीर में ऑक्सीजन का प्रवाह बढ़ाता है
यह श्वास संबंधी समस्याओं को दूर करता है
यह पेट की चर्बी कम करता है
यह वज़न कम करने में मदद करता है
यह पाचन क्रिया को बेहतर करता है
यह शरीर को डिटॉक्स करता है
यह शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है
इससे फेफड़े मज़बूत होते हैं
यह सांस की समस्याओं को दूर करता है
यह दिमाग को शांत रखता है
यह छाती और हृदय रोगों में फ़ायदेमंद होता है
इससे रक्त शुद्ध होता है
भस्त्रिका प्राणायाम कैसे होता है?
पद्मासन या फिर सुखासन में बैठ जाएं। कमर, गर्दन, पीठ एवं रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए शरीर को बिल्कुल स्थिर रखें। इसके बाद बिना शरीर को हिलाए दोनों नासिका छिद्र से आवाज करते हुए श्वास भरें। फिर आवाज करते हुए ही श्वास को बाहर छोड़ें।
एक बार में कितनी बार भस्त्रिका प्राणायाम करना चाहिए?
दिन में सिर्फ एक बार ही यह प्राणायाम करें। प्राणायाम करते समय शरीर को न झटका दें और ना ही किसी तरह से शरीर हिलाएं। श्वास लेने और श्वास छोड़ने का समय बराबर रखें। अवधि नए अभ्यासी शुरू में कम से कम दस बार श्वास छोड़ तथा ले सकते हैं।
कपालभाति और भस्त्रिका में क्या अंतर है?
भस्त्रिका में आप सक्रिय रूप से सांस अंदर और बाहर लेंगे, जबकि कपालभाति में आप सक्रिय रूप से सांस बाहर छोड़ेंगे और अंदर आने वाली सांस को अपने आप आने देंगे। भस्त्रिका में सांस रोककर रखने का कार्य पूरे फेफड़े से किया जाता है, जबकि कपालभाति में आप खाली फेफड़े से सांस रोकते हैं।
क्या बीपी का मरीज भस्त्रिका प्राणायाम कर सकता है?
कई अध्ययनों में पाया गया है कि भस्त्रिका प्राणायाम सिस्टोलिक और डायस्टोलिक रक्तचाप दोनों को कम करने में प्रभावी है। उच्च रक्तचाप के लिए लाभ पाने के लिए इसे धीमी गति से अभ्यास करना चाहिए। भस्त्रिका प्राणायाम शरीर के सभी हिस्सों में ऑक्सीजन की आपूर्ति प्रदान करने और रक्त परिसंचरण को बढ़ावा देने में मदद करता है।
क्या भस्त्रिका प्राणायाम शाम को किया जा सकता है?
भस्त्रिका प्राणायाम को करने का सबसे अच्छा समय सुबह का होता है। अगर आप इस प्राणायाम को शाम में कर रहे हैं तो ध्यान रखिए के आप इसे अपने खाने के 4 से 5 घंटे बाद ही करें। यदि भस्त्रिका प्राणायाम करते वक्त आपको चक्कर आता है, या सिर घूमने लगता है, तो उस स्थिति में आप यह प्राणायाम करना रोक दें और तुरंत शवासन में लेट जाएं।
क्या भस्त्रिका प्राणायाम दिल के लिए अच्छी है?
यह देखा गया कि 5 मिनट तक धीमी भस्त्रिका प्राणायाम श्वास (श्वसन दर 6/मिनट) के बाद, हृदय गति में मामूली गिरावट के साथ सिस्टोलिक और डायस्टोलिक रक्तचाप दोनों में काफी कमी आई ।
भस्त्रिका किसे नहीं करना चाहिए?
गर्भवती या मासिक धर्म वाली महिलाओं को भस्त्रिका का अभ्यास नहीं करना चाहिए। यह उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, हर्निया, गैस्ट्रिक अल्सर, मिर्गी, चक्कर आना, महत्वपूर्ण नाक से खून बहना, रेटिना का अलग होना, ग्लूकोमा, हाल ही में पेट की सर्जरी, और स्ट्रोक के जोखिम वाले किसी भी व्यक्ति के लिए भी वर्जित है।
भस्त्रिका के दुष्प्रभाव क्या हैं?
भस्त्रिका प्राणायाम के जोखिम
हृदय गति में वृद्धि अपनी जोरदार प्रकृति के कारण, भस्त्रिका प्राणायाम आपके हृदय गति को बढ़ा सकता है। यह हृदय की स्थिति वाले लोगों के लिए जोखिम पैदा कर सकता है। हाइपरवेंटिलेशन: अत्यधिक साँस लेने से आपके शरीर में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड के बीच संतुलन बिगड़ सकता है।
क्या हम शाम को भस्त्रिका कर सकते हैं?
चक्र पूरा होने के बाद कुछ देर सामान्य साँस लेते हुए आराम करें ताकि आप दूसरे चक्र के लिए तैयार हो सकें। दो-तीन चक्र करें। भस्त्रिका को सर्दियों में सुबह और शाम दोनों समय किया जा सकता है । गर्मियों में इसे सुबह ठंडे समय में ही करें।
भस्त्रिका प्राणायाम कौन से रोगी को नहीं करना चाहिए?
उच्च रक्तचाप, हृदय रोगी, हर्निया, अल्सर, मिर्गी स्ट्रोक वाले और गर्भवती महिलाएं इसका अभ्यास ना करें।
1 दिन में भस्त्रिका कितनी बार करनी चाहिए?
पुनरावृत्ति स्थिर गति से तेजी से सांस लेना और छोड़ना जारी रखें। 10-15 बार दोहराव से शुरू करें, धीरे-धीरे सहनशक्ति बढ़ने के साथ इसे बढ़ाएं।
भस्त्रिका करने के क्या फायदे हैं?
यह ऑक्सीजन के प्रवाह को बढ़ाता है, चयापचय को बढ़ाता है और तनाव को कम करता है। नियमित अभ्यास से फेफड़ों की क्षमता में सुधार हो सकता है और आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत हो सकती है। एक बार जब आप भस्त्रिका प्राणायाम करना सीख जाते हैं, तो आप इसे अपने दैनिक दिनचर्या में शामिल कर सकते हैं ताकि आपको तरोताजा महसूस हो।
क्या भस्त्रिका हाई ब्लड प्रेशर के लिए अच्छी है?
अध्ययनों से पता चला है कि भस्त्रिका प्राणायाम तंत्रिका तंत्र पर अपने शांत प्रभाव के माध्यम से रक्तचाप को कम करने में मदद कर सकता है । तेजी से साँस लेना और छोड़ना रक्त परिसंचरण को उत्तेजित करता है और आपके पूरे शरीर में ऑक्सीजन की आपूर्ति को बढ़ाता है।
भस्त्रिका प्राणायाम के क्या फायदे हैं?
इसका नियमित अभ्यास करने से श्वसन तंत्र मजबूत होता है। इसलिए एक्सपर्ट इसे अस्थमा जैसी श्वसन समस्या में भी लाभकारी मानते हैं। इसे करने से शरीर को प्राणवायु अधिक मात्रा में मिलती है जिसके कारण यह शरीर के सभी अंगों से टॉक्सिन्स को दूर करता है।
भस्त्रिका प्राणायाम के क्या लाभ हैं?
यह ऑक्सीजन के प्रवाह को बढ़ाता है, चयापचय को बढ़ाता है और तनाव को कम करता है। नियमित अभ्यास से फेफड़ों की क्षमता में सुधार हो सकता है और आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत हो सकती है। एक बार जब आप भस्त्रिका प्राणायाम करना सीख जाते हैं, तो आप इसे अपने दैनिक दिनचर्या में शामिल कर सकते हैं ताकि आपको तरोताजा महसूस हो।
भस्त्रिका प्राणायाम स्टेप बाय स्टेप कैसे करें?
भस्त्रिका प्राणायाम करने में धौंकनी की तरह गहरी साँस लेना और छोड़ना शामिल है। आराम से बैठें, अपने नथुनों से गहरी साँस लें, अपने फेफड़ों को पूरी तरह से भरें, फिर ज़ोर से साँस छोड़ें। इसे प्रति सत्र 20-30 बार दोहराएँ ।
भस्त्रिका प्राणायाम के बारे में कुछ और खास बातें:
भस्त्रिका प्राणायाम को योगियों का प्राणायाम भी कहा जाता है
इसे करने के लिए डायाफ़्राम का इस्तेमाल किया जाता है
भस्त्रिका शब्द संस्कृत के शब्द 'भस्त्री' से लिया गया है, जिसका मतलब है धौंकनी
यह लोहार की धौंकनी की तरह तेज़ी से सांस लेना और छोड़ना है
दमा के रोगियों को रोज़ाना भस्त्रिका प्राणायाम करने की सलाह दी जाती है
भस्त्रिका प्राणायाम, लोहार की धौंकनी की तरह, तेजी से और बलपूर्वक साँस लेना और छोड़ना शामिल है। यह गतिशील साँस लेने की तकनीक ऑक्सीजन के सेवन को बढ़ाती है और ऊर्जा के स्तर को बढ़ाती है। यह केवल शारीरिक लाभों के बारे में नहीं है; भस्त्रिका प्राणायाम का अभ्यास करने से मानसिक स्पष्टता और ध्यान बढ़ सकता है।
भस्त्रिका प्राणायाम के कुछ नुकसान हो सकते हैं, जैसे कि चक्कर आना, हल्का सिरदर्द, और हृदय गति बढ़ना. अगर इसे सही तरीके से न किया जाए, तो यह गंभीर जटिलताओं का कारण बन सकता है. इसलिए, भस्त्रिका प्राणायाम करने से पहले इन बातों का ध्यान रखना चाहिए
अगर आपको हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, हर्निया, अल्सर, या मिर्गी है, तो भस्त्रिका प्राणायाम न करें
गर्भवती महिलाओं और मासिक धर्म वाले लोगों को भस्त्रिका प्राणायाम सावधानी से करना चाहिए
गर्मियों में भस्त्रिका प्राणायाम करने से बचें
भस्त्रिका प्राणायाम करते समय ज़्यादा ज़ोर से सांस न लें
अगर आपको चक्कर आने लगे, तो अभ्यास करना बंद कर दें
किसी अनुभवी चिकित्सक से सलाह लें
भस्त्रिका प्राणायाम के कुछ और नुकसान
हाइपरवेंटिलेशन, शरीर में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का संतुलन बिगड़ना, भावनात्मक प्रतिक्रियाएं या रेचक अनुभव
संभावित दुष्प्रभाव और सावधानियां
चक्कर आना या हल्का सिरदर्द: भस्त्रिका प्राणायाम की तेज़ साँस लेने की प्रक्रिया अतिसंवेदनशील व्यक्तियों में हाइपरवेंटिलेशन का कारण बन सकती है, जिससे चक्कर आना या हल्का सिरदर्द हो सकता है। आरामदायक गति से अभ्यास करना और अत्यधिक परिश्रम से बचना आवश्यक है।
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उज्जायी प्राणायाम, सांसों पर नियंत्रण पाने का एक योग अभ्यास है. इसे ओसियन ब्रीथ के नाम से भी जाना जाता है. इस प्राणायाम को करने से शरीर में गर्म हवा प्रवेश करती है और दूषित हवा बाहर निकलती है. यह प्राणायाम करने से सांसों पर नियंत्रण मिलता है और मन शांत रहता है
संस्कृत शब्द उज्जायी का मतलब है "विजयी"। यह नाम दो शब्दों पर रखा गया है: "जी" और "उद्"। जी का मतलब है 'जीतना' या 'लड़ कर प्राप्त करना' और उद् का अर्थ है 'बंधन'। तो इसका मतलब उज्जायी प्राणायाम का मतलब वह प्राणायाम जो बंधन से स्वतंत्रता दिलाता है।
इस लेख में उज्जायी प्राणायाम के फायदों और उसे करने के तरीको के बारे में बताया है। साथ ही इस लेख में उज्जायी प्राणायाम के दौरान बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में भी जानकारी दी गई है।
उज्जयी प्राणायाम की गहरी और धीमी सांस लेने से पूरे शरीर में रक्त प्रवाह को बढ़ाने में मदद मिलती है, जिससे परिसंचरण में सुधार और थकान को कम करने में मदद मिल सकती है। बेहतर परिसंचरण कोशिकाओं, अंगों और मांसपेशियों में अधिक ऑक्सीजन ला सकता है जो विषाक्त पदार्थों को हटाने और समग्र कार्य को बेहतर बनाने में मदद कर सकता है।
उज्जायी प्राणायाम करने का तरीका
किसी भी आरामदायक आसान में बैठ जायें। पूरे शरीर को शिथिल कर लें।
समान रूप से श्वास लें।
थोड़ी देर बाद अपना ध्यान गले पर ले आयें।
ऐसा अनुभव करें या कल्पना करें की श्वास गले से आ-जा रहा है।
एक शांत जगह पर बैठ जाएं
सुखासन या पद्मासन की मुद्रा में बैठें
आंखें बंद करें
नाक से धीरे-धीरे लंबी और गहरी सांस लें
मुंह से सांस छोड़ते समय 'हा' ध्वनि निकालें
सांसों को छोड़ते समय गले के पिछले हिस्से में सांसों को महसूस करें
सांसों से आने वाली ध्वनि को समुद्र की लहरों की आवाज़ जैसा महसूस करें
गले को सिकोड़कर सांस लें, ताकि आपकी सांस तेज़ आवाज़ करे
सांसों पर ध्यान केंद्रित रखें
सांस लेने और छोड़ने की अवधि बराबर रखें
मन को शांत रखें और सांसों की प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित करें
शुरुआत में 5-8 मिनट तक अभ्यास करें और धीरे-धीरे समय
उज्जायी प्राणायाम के कई फ़ायदे हैं. यह प्राणायाम शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है. उज्जायी प्राणायाम करने से ये फ़ायदे होते हैं
उज्जायी प्राणायाम के फ़ायदे
यह प्राणायाम मन को शांत करता है और ध्यान लगाने में मदद करता है
इससे तंत्रिका तंत्र शांत होता है
यह प्राणायाम हृदय गति को नियंत्रित करता है और उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों से बचाता है
यह प्राणायाम पाचन तंत्र को मज़बूत बनाता है और अपच, गैस जैसी समस्याओं को कम करता है
यह प्राणायाम अनिद्रा जैसी नींद से जुड़ी समस्याओं को दूर करता है
यह प्राणायाम थायरॉइड ग्रंथि को उत्तेजित करता है और हार्मोनल संतुलन बनाए रखता है
यह प्राणायाम गले और नाक के मार्ग को साफ़ रखता है
यह प्राणायाम फेफड़ों की क्षमता बढ़ाता है और श्वसन प्रणाली को मज़बूत करता है
यह प्राणायाम अस्थमा और ब्रोंकाइटिस जैसी सांस की समस्याओं में फ़ायदेमंद होता है
यह प्राणायाम याददाश्त में सुधार करता है और मानसिक स्पष्टता और फ़ोकस बढ़ाता है
यह प्राणायाम सांसों पर नियंत्रण पाने में मदद करता है
यह प्राणायाम मन को शांत करता है
यह प्राणायाम गले और फेफड़ों को साफ़ करता है
तनाव कम होता है
मानसिक ध्यान में सुधार होता है
आप सोने से पहले शवासन में भी इसका अभ्यास कर सकती हैं। इससे नींद आसानी से आएगी।
इससे मन शांत होता है और शरीर में ताजगी महसूस होती है।
इसे करने से थायराइड भी मैनेज होता है।
उज्जाई प्राणायाम को 'ओशन ब्रीथ' भी कहा जाता है. यह प्राणायाम सांस और मन को स्थिर करता है. इसे तनाव कम करने और मानसिक ध्यान में सुधार के लिए किया जाता है
उज्जायी प्राणायाम क्या है?
उज्जायी प्राणायाम एक श्वास अभ्यास है जिसमें गले को हल्का सा सिकोड़कर लम्बी सांस ली जाती है, जिसमें एक विशिष्ट तेज़ या समुद्री ध्वनि होती है। हालाँकि यह ध्वनि गले में उत्पन्न होती है, लेकिन उज्जायी का अभ्यास केवल नाक से सांस अंदर और बाहर लेकर किया जाता है, मुँह बंद रखते हुए।
उज्जैन को किस प्रकार के प्राणायाम के नाम से जाना जाता है?
उज्जायी प्राणायाम ( सांस को नियंत्रित करने की तकनीक ) एक नरम, फुसफुसाती हुई सांस है जिसे आप विजयी सांस या शायद समुद्र की सांस भी कहते हैं। इसकी तुलना पेड़ों के बीच से हवा की आवाज़ या किनारे पर आने वाली लहरों से की जाती है। नीचे उज्जायी प्राणायाम के लिए संस्कृत शब्द दिए गए हैं: उज्जायी: विजय।
उज्जयी प्राणायाम कितनी बार करें?
उज्जायी प्राणायाम का अभ्यास किसी भी समयावधि के लिए किया जा सकता है। नियमित रूप से केवल बारह चक्रों का अभ्यास करने से बहुत लाभ मिलता है, लेकिन प्रतिदिन दस से बीस मिनट तक अभ्यास करने से वास्तव में बहुत लाभ हो सकता है।
उज्जायी प्राणायाम कितनी देर करना चाहिए?
ऐसा 10-20 मिनिट तक करें। अगर आपको ज़्यादा देर बैठने में परेशानी हो तो उज्जायी प्राणायाम लेटकर या कड़े हो कर भी कर सकते हैं।
उज्जयी प्राणायाम का अभ्यास करने का संभावित लाभ निम्न में से कौन सा है?
उज्जायी प्राणायाम मन को शांति प्रदान करता है तथा शरीर में वाइब्रेशन उत्पन्न करता है। जिससे हमें एक नई ऊर्जा का अनुभव होता है। इस प्राणायाम का उपयोग चिकित्सा में तंत्रिका तंत्र को ठीक करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है।
उज्जायी प्राणायाम के लाभ
ध्यान लगाने की क्षमता बढ़ती है।
इससे शरीर स्वस्थ और मजबूत होता है।
आंतरिक ऊर्जा को बढ़ाता है और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह करता है।
इस प्राणायाम का नियमित प्रयोग बंद धमनियों को खोलने और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने का कार्य करता है।
इसके अभ्यास से साइनस और माइग्रेन की समस्या को दूर किया जा सकता है।
हृदय रोगों और हार्टअटैक जैसी समस्या की संभावनाओं को कम करता है।
आवाज को सुरीला बनाने के साथ-साथ यह प्राणायाम थाइरॉइड जैसी बीमारी से भी दूर रखता है ।
खांसी, अपच, लीवर की समस्याओं, पेचिश, बुखार जैसी बीमारियों के होने की सम्भावनाओं को कम करने का काम करता है।
उज्जाई प्राणायाम कौन सा है?
उज्जायी प्राणायाम करने की विधि
इस अभ्यास के लिए शांत जगह सुखासन की मुद्रा में बैठ जाएं। अब गहरी सांस लेते हुए फेफड़ों में जा रही हवा को महसूस करें। प्राणायाम के दौरान सारा ध्यान सांसों की प्रक्रिया पर रहना चाहिए। अपनी सांसों से आने वाली ध्वनि को महसूस करने की कोशिश करें और अपने मन को शांत रखें।
उज्जायी प्राणायाम के बारे में कुछ और बातें
उज्जायी प्राणायाम को विजयी श्वास भी कहा जाता है
यह तनाव और दिमाग को संतुलित करने में मदद करता है
यह योग और ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है
अगर आपको सांस लेने में दिक्कत है या अस्थमा जैसी कोई बीमारी है, तो यह सांस लेने का तरीका मुश्किल हो सकता है
उज्जायी प्राणायाम करने का सबसे अच्छा समय सुबह या शाम का होता है
उज्जायी प्राणायाम का अर्थ
उज्जायी प्राणायाम का मतलब है, 'विजयी श्वास'. यह एक श्वास अभ्यास है, जिसमें गले को हल्का सा सिकोड़कर लंबी सांस ली जाती है. इस प्राणायाम को करने पर समुद्र की तरह ध्वनि आती है, इसलिए इसे महासागरीय श्वास भी कहा जाता है
उज्जायी प्राणायाम के प्रकार
उज्जायी प्राणायाम एक सांस लेने की तकनीक है. इसमें सांस लेना और छोड़ना दोनों ही नाक से किया जाता है. उज्जायी प्राणायाम के कुछ प्रकार ये रहे: उज्जायी श्वास, भास्त्रिका प्राणायाम, समुद्र जैसी ध्वनि पैदा करना
उज्जायी प्राणायाम के कुछ नुकसान ये हैं:
हृदय रोग या हार्ट अटैक की समस्या वाले लोगों को यह प्राणायाम नहीं करना चाहिए
जिन लोगों का रक्तचाप कम है या जो बहुत अंतर्मुखी हैं, उन्हें किसी योग गुरु या योग चिकित्सक के मार्गदर्शन में ही थोड़े समय के लिए यह प्राणायाम करना चाहिए
अगर सावधानी न बरती जाए, तो शरीर की कोई नस खिंच सकती है और दर्द हो सकता है
हृदय रोग के मरीज़ श्वास रोके बिना यह प्राणायाम कर सकते हैं
प्राणायाम करने से पहले ये सावधानियां बरतनी चाहिए:
साफ़ और शांत जगह पर बैठें
अपने मन को शांत और व्यवस्थित रखें
सही मुद्रा में बैठें
विभिन्न प्रकार के प्राणायाम के साथ प्रयोग करके देखें कि कौन सा आपके लिए सबसे अच्छा काम करता है
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शीतली प्राणायाम, सांस लेने की एक तकनीक है. इसे कूलिंग ब्रीथ भी कहा जाता है. यह शरीर को ठंडा रखता है और पित्त असंतुलन को कम करता है. शीतली प्राणायाम करने से मन और शरीर शांत रहता है.
शीतली प्राणायाम करने का तरीका:
किसी भी आरामदायक ध्यान करने के आसन में बैठ जायें।
आँखें बंद कर लें और पूरे शरीर को शिथिल करने की कोशिश करें।
जहां तक संभव हो सके तनाव के बिना जीभ को मुंह के बाहर बढ़ाएं।
साँस लेने के अंत में, जीभ को मुंह में वापिस अंदर ले लें और औसे बंद कर लें।
किसी खुली जगह पर बैठ जाएं
सुखासन या कमलसन की मुद्रा में बैठें
आंखें बंद करें
जीभ को बाहर निकालकर नली के आकार में मोड़ें
जीभ से सांस अंदर लें
सांस को रोकें
सिर ऊपर उठाकर दाएं नाक को बंद करें
बाएं नाक से सांस बाहर निकालें
इस प्रक्रिया को दोहराएं
शीतली प्राणायाम करने के फ़ायदे
गर्मी में शरीर ठंडा रहता है
पित्त असंतुलन कम होता है
गुस्सा कंट्रोल में रहता है
तनाव कम होता है
मस्तिष्क और तंत्रिकाओं को ऊर्जा मिलती है
यह प्राणायाम शारीरिक और मानसिक तनाव को कम करता है
यह प्राणायाम करने से शरीर में ताजगी का अनुभव होता है
यह प्राणायाम करने से शरीर को शीतलता का अहसास होता है
शीतली प्राणायाम का लाभ क्या है?
शीतली प्राणायाम शरीर के तापमान को सामान्य बनाए रखने में मदद करता है। स्ट्रेस दूर करने में मदद मिलती है। बहुत ज्यादा भूख या प्यास, बेचैनी को कंट्रोल करता है शीतली प्राणायाम। गर्मी से ब्लड प्रेशर बढ़ जाने पर ये ब्लड प्रेशर को नॉर्मल करने में मदद करता है।
शीतली प्राणायाम कब करना चाहिए?
गर्मी में शरीर को ठंडा रखने के लिए रोज सुबह शाम शीतली प्राणयाम करें. इससे शरीर को शीतलता का अहसास होगा और कई फायदे मिलेंगे
शीतली प्राणायाम करने के लिए कौन सा मौसम अनुकूल होता है?
होंठों को घुमाकर 'ओ' का आकार बनाएं। मुंह से सांस लें और नाक से छोड़ें। मुंह से सांस लेने पर जीभ के द्वारा ठंडी हवा अंदर जाती है। ध्यान दें कि शीतली और शीतकारी प्राणायाम गर्मी के मौसम में किए जाते हैं ।
शीतली प्राणायाम की उपयोगिता क्या है?
नियमित रूप से शीतली प्राणायाम का अभ्यास करने से आपको शारीरिक और मानसिक लाभ होगा। यह प्राणायाम शारीरिक और मानसिक तनाव को कम करने में मदद करता है। रोजाना शीतली प्राणायाम का अभ्यास करने से शरीर में ताजगी का अनुभव होता है और व्यक्ति अच्छा महसूस करता है।
शीतली प्राणायाम कब नहीं करना चाहिए?
यह अभ्यास कम ऊर्जा केंद्रों के कार्यों को मंद करता है, इसलिए, पुरानी कब्ज से पीड़ित लोगों को शीतली प्राणायाम का अभ्यास नहीं करना चाहिए। आम तौर पर, इस प्राणायाम को सर्दियों में या ठंडी जलवायु में नहीं करना चाहिए।
शीतली का मूल शब्द क्या है?
शीतली शब्द संस्कृत धातु 'शीट' से आया है, जिसका अर्थ है 'ठंडा' या 'शीत'।
शीतली से आप क्या समझते हैं?
शीतली प्राणायाम | ठंडी साँस। शीतली शब्द का अर्थ है ठंडा करना, वह प्रक्रिया जो हमारे शरीर को ठंडा कर सकती है और ठंडक का एहसास कराती है । शीतली शब्द मूल रूप से शीतल शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है ठंडा या सुखदायक।
शीतली प्राणायाम कब करें?
शीतली, शीतल श्वास, अतिरिक्त गर्मी को बाहर निकालने के लिए उत्कृष्ट है विशेष रूप से दिन के पित्त समय के दौरान उपयोगी है सुबह 10:00 बजे से दोपहर 2:00 बजे के बीच , जब सूर्य आकाश में सबसे ऊँचा होता है और गर्मी आमतौर पर अपने अधिकतम स्तर पर होती है। इस ताज़ा प्राणायाम के बस कुछ मिनट ही दोषिक सामंजस्य को बहुत अधिक बढ़ावा दे सकते हैं।
शीतली और शीतकारी प्राणायाम में क्या अंतर है?
चंद्रनाड़ी का अभ्यास केवल बायीं नासिका से सांस लेकर किया जाता है, जबकि शीतली प्राणायाम का अभ्यास मुड़ी हुई जीभ से ठंडी हवा को अंदर खींचकर किया जाता है और शीतकारी प्राणायाम का अभ्यास बंद दांतों के माध्यम से मुंह के किनारों से हवा को अंदर खींचकर किया जाता है।
शीतली प्राणायाम करने से पहले इन सावधानियों का ध्यान रखना चाहिए:
अगर आपको सर्दी-खांसी, अस्थमा, या सांस संबंधी कोई समस्या है, तो आपको यह प्राणायाम नहीं करना चाहिए
अगर आपको निम्न रक्तचाप की समस्या है, तो आपको यह प्राणायाम नहीं करना चाहिए
अगर आपको पुरानी कब्ज़ की समस्या है, तो आपको यह प्राणायाम नहीं करना चाहिए
सर्दियों के अत्यधिक ठंडे दिनों में इसका अभ्यास न करें
अगर आपकी जीभ को मोड़कर पाइप नहीं बना सकते, तो आपको शीतली प्राणायाम की जगह शीतकारी प्राणायाम करना चाहिए
शीतली प्राणायाम करने के लिए आप हाथों से अपनी जीभ को सहारा दे सकते हैं
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कपालभाति प्राणायाम, हठयोग का एक आसन है. यह प्राणायाम करने से शरीर से विषैले तत्व बाहर निकलते हैं और शरीर के कई अंगों में सुधार होता है. कपालभाति प्राणायाम करने से वज़न घटाने में भी मदद मिलती है
कपालभाति प्राणायाम करने का तरीका:
वज्रासन या पद्मासन में बैठ जाएं
दोनों हाथों से चित्त मुद्रा बनाएं और इसे घुटनों पर रखें
गहरी सांस लें और फिर झटके से सांस छोड़ें
सांस छोड़ते समय पेट को अंदर की ओर खींचें
इस क्रिया को कुछ मिनट तक लगातार करें
कपालभाति करने के बाद थोड़ी देर ताली बजाएं
सबसे पहले वज्रासन या पद्मासन में बैठ जाएं.
इसके बाद, दोनों हाथों से चित्त मुद्रा बनाएं और इसे घुटनों पर रखें.
अब, गहरी सांस लें और तेज़ी से सांस छोड़ें.
सांस छोड़ते समय पेट को अंदर की ओर खींचें.
अब, तुरंत सांस अंदर लें और पेट को बाहर आने दें.
इस क्रिया को 50 बार से शुरू करें और धीरे-धीरे बढ़ाते जाएं.
कपालभाति करने के बाद, थोड़ी देर ताली बजाएं.
इसके बाद, सुखासन में बैठकर कुछ देर सांस लें और छोड़ें.
कपालभाति प्राणायाम के फ़ायदे:
यह प्राणायाम शरीर और मन के लिए फ़ायदेमंद होता है.
यह शरीर की ऊर्जा बढ़ाता है.
यह पाचन शक्ति में सुधार करता है.
यह वज़न कम करने में मदद करता है.
यह दिल के स्वास्थ्य को अच्छा बनाता है.
यह नसों को मज़बूत करता है.
यह तनाव को कम करने में मदद करता है.
यह प्राणायाम फेफड़ों, लिवर, स्प्लीन, पैनक्रियाज़, और दिल के काम में सुधार करता है
यह कोलेस्ट्रॉल कम करता है और धमनियों में रुकावट को दूर करता है
यह तंत्रिका तंत्र के लिए भी फ़ायदेमंद है
यह वायुमार्ग को साफ़ करता है और अस्थमा जैसी श्वसन समस्याओं में फ़ायदेमंद है
यह पाचन में भी मदद करता है
कपालभाति करने के लिए पद्मासन में बैठकर दोनों हाथों से चित्त मुद्रा बना लें। गहरी सांस अंदर की ओर लेते हुए झटके से सांस छोड़ें। इस दौरान पेट को अंदर की ओर खींचें। अगर आप कपालभाति करने की शुरुआत कर रहे हैं तो 5-10 मिनट ही अभ्यास करें और समय के साथ अभ्यास को बढ़ाएं।
कपाल भाति प्राणायाम करने के लिए रीढ़ को सीधा रखते हुए किसी भी ध्यानात्मक आसन, सुखासन या फिर कुर्सी पर बैठें। इसके बाद तेजी से नाक के दोनों छिद्रों से साँस को यथासंभव बाहर फेंकें। साथ ही पेट को भी यथासंभव अंदर की ओर संकुचित करें।
कपालभाति करने से कौन सा रोग ठीक होता है?
रोजाना कपालभाति करने से लिवर और किडनी से जुड़ी समस्या ठीक होती है। शरीर में ऊर्जा का स्तर बनाए रखने के लिए यह आसन बहुत फायदेमंद है। नियमित रूप से कपालभाति करने से आंखों के नीचे कोले घेरों की समस्या भी खत्म हो जाएगी।
कपालभाति 1 मिनट में कितनी बार करनी चाहिए?
हृदय रोगों, हाई ब्लड प्रेशर और पेट में गैस आदि शिकायतों में यह प्राणायाम धीरे धीरे करना चाहिये (60 बार एक मिनट में ) है।
कपालभाति करने से क्या लाभ मिलता है?
इस प्रणायाम से थकान कम होती है और शरीर में स्फूर्ति आती है। ये आंखों के नीचे के काले घेरों को भी ठीक करता है। कपालभाति प्रणायाम से ब्लड सर्कुलेशन ठीक होता है और शरीर का मेटाबॉलिज्म अच्छा होता है। ब्लड सर्कुलेशन ठीक होने के कारण आपका दिमाग अच्छी तरह काम करता है।
कपालभाती में शरीर के कौन से भाग पर असर होता है?
हां, कपालभाति प्राणायाम वायुमार्ग को साफ करके और फेफड़ों की क्षमता में सुधार करके अस्थमा और अन्य श्वसन समस्याओं के लिए फायदेमंद है। यह साँस छोड़ते समय पेट के अंगों की मालिश करके पाचन में भी सहायता करता है।
क्या कपालभाति पेट की चर्बी कम करती है?
कपालभाति अभ्यास के दौरान, पेट की मांसपेशियों को साँस लेने और छोड़ने की प्रक्रिया के माध्यम से काम में लाया जाता है। इससे कोर में कसावट आती है और पेट की चर्बी कम होती है । इसके अलावा, कपालभाति के विषहरण प्रभाव वजन घटाने में योगदान कर सकते हैं।
कपालभाति के द्वारा कौन सा अंग साफ होता है?
कपालभाति एक तेज़ गति वाला श्वसन व्यायाम या प्राणायाम है, जिसे योगियों द्वारा अपने मस्तिष्क को साफ करने के लिए किया जाता है।
पेट की चर्बी कम करने के लिए कपालभाति कैसे करें?
सांस लेने की अलग-अलग गति होती है लेकिन वजन घटाने के लिए कपालभाति को मध्यम गति से सांस लेते हुए करना है. आपको श्वास यानी सांस बाहर छोड़ते जानी है. इस प्राणायाम के दौरान आपका पेट खाली होनी चाहिए. 1 से 2 हफ्तों तक 15 से 20 मिनट रोजाना कपालभाति करने पर घट सकता है
क्या कपालभाति से ब्लड प्रेशर बढ़ता है?
वैसे तो कपालभाति के कई फायदे हैं, लेकिन कुछ लोगों में इसके कुछ साइड इफ़ेक्ट भी हो सकते हैं, इसलिए आपको कपालभाति करने से पहले योग विशेषज्ञ और अपने डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। कपालभाति के कारण होने वाले कुछ साइड इफ़ेक्ट इस प्रकार हैं: इससे हर्निया और हाई ब्लड प्रेशर हो सकता है।
कपालभाती का सबसे अच्छा समय कौन सा है?
आपको सुबह के समय कपालभाति करना चाहिए क्योंकि इस प्राणायाम को करने से शरीर को एनर्जी मिलती है जिसकी जरूरत आपको सुबह होगी। आप शाम के समय खाली पेट कपालभाति प्राणायाम कर सकते हैं। अगर आप शाम के समय कपालभाति अवॉइड करना चाहते हैं तो उसकी जगह अनुलोम-विलोम या भ्रामरी प्राणायम भी कर सकते हैं।
क्या सोने से पहले कपालभाती कर सकते हैं?
यहाँ, आप छोटी और शक्तिशाली साँस लेते हैं और छोड़ते हैं। कपालभाति 30 मिनट के लाभों में से एक यह है कि यह शरीर को डिटॉक्स करता है, आपके दिमाग को साफ करता है और श्वसन प्रणाली में सुधार करता है। हालाँकि, यह नींद के लिए भी आदर्श हो सकता है क्योंकि यह किसी भी तनाव से पूरी तरह राहत देता है ।
कपालभाति करने से कौन-कौन से रोग ठीक होते हैं?
कपालभाति प्राणायाम फेफड़ों, स्प्लीन, लीवर, पैनक्रियाज के साथ-साथ दिल के कार्य में सुधार करता है। यह न केवल कोलेस्ट्रॉल को कम करता है बल्कि धमनी के अवरोध को दूर करने में भी मददगार है। यह नवर्स सिस्टम यानि तंत्रिका तंत्र के लिए भी बहुत अच्छा प्राणायाम माना जाता है।
कपालभाती प्रति मिनट कितने होते हैं?
इसलिए आप 10 से 20 स्ट्रोक प्रति मिनट की दर से शुरू कर सकते हैं और इसे कुछ सेकंड के सामान्य श्वास अंतराल के साथ 2 या 3 बार दोहरा सकते हैं। नियमित दैनिक अभ्यास से आप गति को 60-120 स्ट्रोक प्रति मिनट तक बढ़ा सकते हैं।
1 घंटा कपालभाति करने से क्या होता है?
कपालभाति का नियमित अभ्यास पित्त के स्तर को नियंत्रित रखने और मेटाबाॅलिज्म दर को बढ़ाने में सहायक है। मस्तिष्क की कोशिकाओं को सक्रिय करने और स्मृति व एकाग्रता शक्ति में सुधार के लिए ये योगासन लाभकारी है। कपालभाति के अभ्यास से चिंता और तनाव दूर होता है।
रोजाना 15 मिनट कपालभाति करने से हम कितने किलो कम कर सकते हैं?
रोजाना 15 मिनट कपालभाति प्राणायाम करने से आप कितना वजन कम कर सकते हैं यह आपके चयापचय, आहार, समग्र जीवनशैली और वर्तमान वजन पर निर्भर करता है। लेकिन समय के साथ आप हर महीने लगभग 0.5-1 किलोग्राम वजन कम कर सकते हैं और परिणाम व्यापक रूप से भिन्न हो सकते हैं।
कपालभाति करने के कितनी देर बाद पानी पीना चाहिए?
योगाभ्यास के लगभग 20-30 मिनट बाद पानी पीना फायदेमंद माना जाता है. योग के तुरंत बाद पानी पीने से शरीर और पेट में ऐंठन की समस्या हो सकती है
कपालभाति 1 मिनट में कितनी बार करनी चाहिए?
गहरी सांस अंदर की ओर लें और झटके से सांस छोड़ते हुए पेट को अंदर की ओर खींचें। ऐसा कुछ मिनट तक लगातार करते रहें। एक बार में इसे 35 से लेकर 100 बार करें। अगर आप कपालभाति की शुरुआत कर रहे हैं, तो 35 से शुरू करें और दिन के हिसाब से इसे बढ़ाते जाएं।
कपालभाती कब नहीं करनी चाहिए?
मासिक चक्र के समय और गर्भावस्था के दौरान इसे न करें। बुखार और अत्यधिक कमजोरी की स्थिति में इसे न करें। कब्ज़ की स्थिति में यह प्राणायाम न करें।
कपालभाति पेट की चर्बी कैसे कम करती है?
कपालभाति प्राणायाम रक्त परिसंचरण और पाचन में सुधार करने में मदद करता है, त्वरित विषहरण की सुविधा देता है, और पेट की चर्बी को जलाने के लिए सबसे अच्छा है क्योंकि कपालभाति (निरंतर साँस छोड़ना) के अभ्यास के दौरान पेट मुख्य रूप से शामिल होता है।
प्रतिदिन कपालभाति करने से क्या होता है?
कपालभाति को अपनी दिनचर्या में शामिल करने पर विचार करें! यह शक्तिशाली प्राणायाम तकनीक प्रतिरक्षा को बढ़ाने और पाचन में सहायता करने से लेकर तनाव को कम करने और वजन घटाने को बढ़ावा देने तक कई लाभ प्रदान करती है। कपालभाति का अभ्यास करना सीखें और अपने मन, शरीर और आत्मा पर इसके सकारात्मक प्रभावों का अनुभव करें।
क्या कपालभाती से बीपी बढ़ता है?
कपालभाति एक लोकप्रिय साँस लेने की तकनीक है जिसमें बलपूर्वक साँस छोड़ना और उसके बाद निष्क्रिय साँस लेना शामिल है, यह डायस्टोलिक बीपी को बढ़ाता है , जो सहानुभूति उत्तेजना का सुझाव देता है
कपालभाती कौन नहीं कर सकता है?
कपालभाती का अभ्यास गर्भवती या मासिक धर्म वाली महिलाओं को नहीं करना चाहिए। यदि आपको उच्च रक्तचाप, एसिड गैस्ट्रिक, हृदय रोग या पेट दर्द है, तो कपालभाति का अभ्यास न करें।
कपालभाति के अभ्यास से हमें किस बीमारी में बचना चाहिए?
जो लोग हृदय रोग, हाई बीपी या हर्निया से पीड़ित हैं, उन्हें "कपालभाति और भस्त्रिका प्राणायाम" का अभ्यास करने से बचना चाहिए। यदि आप कपालभाति का अभ्यास कर रहे हैं, तो शुरुआती लोगों के लिए साँस छोड़ना हल्का होना चाहिए, अत्यधिक बल का प्रयोग न करें।
कपालभाति करने की सावधानियां
कपालभाति करते समय अपनी सांस लेने की स्पीड को घटाए या बढ़ाए नहीं। एक समान रखें।
इसे करते समय आपका पूरा ध्यान पेट के मूवमेंट पर होना चाहिए , सांसों पर नहीं।
कपालभाति करते समय कंधे नहीं हिलने चाहिए।
सांस अंदर लेते वक्त पेट बाहर की ओर और सांस छोड़ते वक्त पेट अंदर की ओर होना चाहिए।
अगर आपको हार्निया , अल्सर , सांस की बीमारी या हाइपरटेंशन है, तो इसे करने से पहले अपने डॉक्टर से सलाह जरूर ले लें।
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भद्रासन एक आरामदायक योग आसन है. इसे तितली मुद्रा या अनुग्रह मुद्रा भी कहा जाता है. भद्रासन करने से एकाग्रता और स्फूर्ति बढ़ती है. साथ ही, पाचन शक्ति मज़बूत होती है और शरीर की मांसपेशियां और रीढ़ की हड्डी मज़बूत रहती है
भद्रासन करने से कई फ़ायदे होते हैं. यह एक ध्यानात्मक आसन है. इसे करने से शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से फ़ायदा होता है. भद्रासन को अंग्रेज़ी में 'ग्रेसिऑस पोज़' कहते हैं
भद्रासन कितने समय तक करना चाहिए?
भद्रासन को कितनी देर तक धारण करना चाहिए? 30 सेकंड से 1 मिनट तक के समय से शुरू करें, तथा आराम के अनुसार धीरे-धीरे समय बढ़ाएं
भद्रासन में बैठने की स्थिति क्या कहती है?
वज्रासन में बैठ जाएँ और दोनों हाथ घुटनों पर रखें. वज्रासन में जब बैठते हैं तब घुटने मिले रहते हैं, एड़ियों में अंतर रहता है और दोनों एड़ियों के बीच में बैठते हैं. इसके अलावा पैरों के अंगूठे मिले रहते हैं. भद्रासन करने के लिए दोनों घुटनों में उतना अंतर रखिए जितना संभव होसके
भद्रासन क्या है?
भद्रासन' संस्कृत भाषा का शब्द है। ये दो शब्दों से मिलकर बना है। पहले शब्द 'भद्र' का अर्थ है 'भला मनुष्य' या 'शानदार'। जबकि दूसरे शब्द आसन का अर्थ किसी विशिष्ट स्थिति में खड़े होने, लेटने या बैठने से है।
इस प्रकार भद्रासन का शाब्दिक अर्थ होता है, भले मनुष्य या शानदार तरीके से बैठने वाला आसन। इसलिए इस आसन को अंग्रेजी भाषा में ग्रेसियस पोज या कहा जाता है। इस आसन के अभ्यास से शरीर को कुछ गजब के फायदे होते हैं। ये आसन न सिर्फ आपके शरीर को हील करता है बल्कि नई जिंदगी भी देता है
भद्रासन को करना बहुत आसान है जबकि इसके अभ्यास के ढेरों फायदे हैं।
इसके अलावा, भद्रासन साधारण कठिनाई या बेसिक लेवल वाला विन्यास योग की शैली का आसन है। इसे करने की अवधि 1 से 5 मिनट के बीच होनी चाहिए। इसमें किसी दोहराव की आवश्यकता नहीं होती है।
भद्रासन करने का तरीका
एक योग मैट बिछाएं
वज्रासन में बैठ जाएं
घुटनों को जितना हो सके उतना दूर रखें
पैरों के पंजों को ज़मीन पर रखें
दोनों हाथों की हथेलियों को घुटनों पर रखें
शरीर को सीधा रखें
नाक की नोक पर ध्यान केंद्रित करें
धीमी और गहरी सांस लें
अंतिम स्थिति को 2 मिनट तक बनाए रखें
वज्रासन में बैठ जाएं। घुटनों को जितना संभव हो, दूर-दूर कर लें।
पैरों की उंगलियों का सम्पर्क जमीन से बना रहे।
घुटनों को और अधिक दूर करने का प्रयास करें, लेकिन दूर करते समय अधिक जोर न लगाएं।
हाथों को घुटनों पर रखें, हथेलियां नीचे की ओर रहें।
आंखों को खोल लें और फिर से इस प्रक्रिया को दोहराएं।
इस प्रक्रिया को इसी प्रकार दस मिनट तक दोहराएं।
भद्रासन करने के लिए धीरे-धीरे अभ्यास बढ़ाएं।
असुविधा होने पर इस आसन का अभ्यास न करें।
कभी भी कंधे या घुटनों पर दबाव न डालें।
आसन से पहले वॉर्मअप करें ताकि कोर मसल्स एक्टिव हो जाएं।
किसी भी असुविधा या दर्द महसूस होने पर आसन का अभ्यास बंद कर दें।
पहली बार ये आसन कर रहे हैं तो किसी योग गुरु की देखरेख में करें।
भद्रासन करने के बाद शवासन करें
भद्रासन करने में क्या सावधानी बरती जाए
गर्भवती महिलायें इस आसन को किसी ट्रेनर की मदद से करें।
घुटने दर्द होने पर इस आसन को न करें।
अगर इस आसन को करते समय कमर दर्द होती है तो इस आसन को न करें।
पेट की समस्या में भी इस आसन को नहीं करना चाहिए
हाई ब्लड प्रेशर के मरीज भद्रासन का अभ्यास न करें।
डायरिया की शिकायत होने पर कभी भी ये आसन नहीं करना चाहिए।
घुटनों में समस्या या आर्थराइटिस होने पर भद्रासन नहीं करना चाहिए।
अगर गर्दन में दर्द की समस्या है तो आसन करते समय गर्दन न मोड़ें। सामने देखें।
शुरुआत में भद्रासन को योग ट्रेनर की देखरेख में ही करें।
संतुलन बनने पर आप खुद भी ये आसन कर सकते हैं।
भद्रासन का अभ्यास शुरू करने से पहले हमेशा डॉक्टर की सलाह जरूर लें
भद्रासन के फ़ायदे:
ध्यान, सांस नियंत्रण, और मानसिक शांति बढ़ाता है
एकाग्रता और स्फूर्ति बढ़ाता है
पाचन शक्ति मज़बूत करता है
शरीर की मांसपेशियां और रीढ़ की हड्डी मज़बूत करता है
पूरे शरीर में रक्त संचार सुधारने में मदद मिलती है।
किडनी और प्रोस्टेट ग्लैंड को एक्टिवेट करता है।
ब्लैडर और पेट के भीतरी अंग भी सक्रिय करता है।
टेंशन और थकान दूर करता है।
रीढ़ की हड्डी को खिंचाव देता है।
साइटिका के दर्द से राहत देता है
नियमित अभ्यास से असाध्य बीमारियों में भी फायदा पहुंचाए।
भद्रासन करने से शारीरिक स्थिरता मिलती है
यह मानसिक शांति और संतुलन देता है
यह ध्यान में बैठने के लिए एक अच्छा आसन है
इससे एकाग्रता बढ़ती है और दिमाग़ तेज होता है
यह पाचन शक्ति को ठीक रखता है
इससे सिर दर्द, कमर दर्द, आंखों की कमज़ोरी, अनिद्रा, और हिचकी जैसी समस्याओं में आराम मिलता है
यह रीढ़ की हड्डी के लिए फ़ायदेमंद है
इससे शरीर सुंदर और सुडोल बनता है
यह फेफड़ों को मज़बूत बनाता है और सांस पर नियंत्रण रखने में मदद करता है
यह पैरों को मज़बूत बनाता है
यह कमर दर्द से राहत दिलाता है
भद्रासन करने की विधि
कमर सीधी करके योग मैट पर बैठ जाएं।
अपनी टांगों को खोलकर बाहर की तरफ फैलाएं।
सांस बाहर की ओर छोड़ते हुए घुटनों को मोड़ें।
इसके बाद घुटनों को दोनों तरफ नीचे की ओर ले जाएं।
रीढ़ की हड्डी सीधी रहे और कंधे पीछे की तरफ खिंचे रहें।
इस दौरान सैक्रम या पीठ के पीछे की तिकोनी हड्डी भी मजबूत बनी रहे।
कभी भी घुटनों पर जमीन को छूने के लिए दबाव न डालें।
आप पैर की हड्डियों पर घुटनों को नीचे करने के लिए हल्का दबाव दे सकते हैं।
इससे घुटने अपने आप जमीन की तरफ चले जाएंगे।
इस मुद्रा में 1 से 5 मिनट तक बने रहें।
सांस खींचते हुए घुटनों को वापस लेकर आएं।
पैरों को धीरे-धीरे सीधा करें। अब विश्राम करें
भद्रासन करने से पहले ध्यान रखने वाली बातें
भद्रासन का अभ्यास सुबह के वक्त ही किया जाना चाहिए।
अगर शाम को आसन कर रहे हैं तो, भोजन 4 से 6 घंटे पहले करना जरूरी है।
आसन से पहले पेट एकदम खाली हो।
भद्रासन करने की सावधानियां
अगर आपको कोई चोट लगी है, तो भद्रासन न करें
अगर आपको घुटनों में दर्द है, तो भद्रासन न करें
अगर आपको पेट में दर्द, सूजन, या खिंचाव है, तो भद्रासन न करें
अगर आपको कमर दर्द है, तो भद्रासन न करें
अगर आपको हाई ब्लड प्रेशर है, तो भद्रासन न करें
अगर आपको डायरिया है, तो भद्रासन न करें
अगर आप गर्भवती हैं, तो डॉक्टर की सलाह पर ही भद्रासन करें
भद्रासन करने से पहले, स्नान करें
भद्रासन करने से पहले, ढीले-आरामदायक कपड़े पहनें
भद्रासन, योग विज्ञान का बहुत अच्छा आसन है। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन रहता है। भद्रासन न सिर्फ मेटाबॉलिज्म को एक्टिवेट करता है बल्कि आपके दिमाग को स्थिर रखने में भी मदद करता है।
आज की दुनिया में बैलेंस बनाकर रखना ही सबसे जरूरी चीज है। भद्रासन बैलेंस बनाने से जुड़ी इसी खूबी को आपके शरीर में विकसित करने में मदद करता है।
भद्रासन का अभ्यास करने के लिए आपके पैर इतने मजबूत होने चाहिए कि पूरे शरीर का वजन उठा सकें। लेकिन सबसे पहले आपको अपने मन के डर पर जीत हासिल करनी होगी कि कहीं आप अभ्यास करते हुए गिर न पड़ें।
अगर गिर भी जाएं तो गहरी सांस लें और कोशिश के लिए अपनी तारीफ करें और दोबारा अभ्यास करें। शुरुआती दौर में इस आसन को करने के लिए किसी योग्य योग शिक्षक से मार्गदर्शन जरूर लें।
भद्रासन न केवल शारीरिक स्थिरता प्राप्त करने में सहायक होता है, बल्कि मानसिक शांति और संतुलन भी प्रदान करता है। इस आसन का नियमित अभ्यास से मासिक धर्म के समय पेट दर्द से राहत दिलाने में भी कारगर है, जिससे महिलाओं को आराम मिलता है। भद्रासन को अपने दैनिक योग अभ्यास में शामिल करें और स्वस्थ जीवनशैली की ओर कदम बढ़ाएं।
भद्रासन को तितली मुद्रा या अनुग्रह मुद्रा भी कहा जाता है. यह ध्यान के लिए एक बेहतरीन आसन है. भद्रासन करने के कई फ़ायदे हैं. जैसे कि: जोड़ों में लचीलापन बढ़ता है, जांघ और कमर में खिंचाव आता है, रीढ़ की हड्डी को आराम मिलता है, मूत्रजननांगी स्वास्थ्य में सुधार होता है, एकाग्रता बढ़ती है
अन्य: व्यवहार में, गर्भवती महिलाओं को इस मुद्रा से बचना चाहिए , क्योंकि इस मुद्रा में आने और बाहर निकलने से पेट के क्षेत्र में असुविधा हो सकती है। वरिष्ठ नागरिकों या गंभीर गठिया से पीड़ित किसी भी व्यक्ति को जोड़ों और मांसपेशियों में अतिरिक्त दबाव के कारण इस मुद्रा के अभ्यास से बचना चाहिए।
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