अर्ध मत्स्येंद्रासन करने से दूर होगा शरीर का दर्द और तनाव पाचन और लचीलेपन में सुधार के लिए एक योग ?

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अर्ध मत्स्येंद्रासन करने से दूर होगा शरीर का दर्द और तनाव  पाचन और लचीलेपन में सुधार के लिए एक योग ?

अर्ध मत्स्येन्द्रासन करने से कई तरह के फ़ायदे होते हैं. यह आसन रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाता है और पीठ के दर्द से राहत दिलाता है. यह आसन करने से पाचन क्रिया दुरुस्त होती है और शरीर का मेटाबॉलिज़्म भी बढ़ता है. इस आसन को करने से मन शांत होता है और नींद बेहतर होती है

अर्ध मत्स्येन्द्रासन संस्कृत भाषा के शब्दों अर्ध, मत्स्य, इन्द्र और आसन से मिलकर बना है। जहां अर्ध का मतलब आधा मत्स्य का अर्थ मीन या मछली इन्द्र का अर्थ राजा और आसन का अर्थ मुद्रा है। 

योगी मत्स्येन्द्रनाथ के नाम पर इस आसन का नाम मत्स्येन्द्रासन पड़ा। इस आसन को वक्रासन भी कहा जाता है। अर्ध मत्स्येन्द्रासन अन्य आसनों की तरह बहुत आसान नहीं है, इसलिए ज्यादातर लोग शुरुआत मे योगा एक्सपर्ट की देखरेख में इस आसन का अभ्यास करते हैं। लेकिन कुछ दिनों के अभ्यास के बाद यह आसन करना काफी आसान हो जाता है।

रीढ़ की हड्डी और पैरों सहित लगभग पूरा शरीर इस आसन में शामिल होता है। इसलिए स्वास्थ्य की दृष्टि से यह शरीर के विभिन्न अंगों के लिए फायदेमंद होता है।

अर्ध मत्स्येन्द्रासन के फ़ायदे: 

रीढ़ की हड्डी के लचीलेपन में सुधार होता है

पीठ के निचले हिस्से के दर्द से राहत मिलती है

पाचन क्रिया दुरुस्त होती है

मांसपेशियों में खिंचाव आता है

ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है

दिमाग तक ऑक्सीजन आसानी से पहुंचती है

मधुमेह रोगियों के लिए भी यह एक अच्छा विकल्प है

कब्ज, दमा, और पाचन संबंधी समस्याओं को दूर करने में मदद करता है

मेनोपॉज़ के दौरान हॉट फ़्लैशेज या मूड स्विंग्स जैसी समस्याओं को कम करने में मदद मिलती है

अर्ध मत्स्येन्द्रासन का प्रतिदिन अभ्यास करने से एब्स मजबूत होते हैं और यह आसन इन्हें टोन करने का भी कार्य करता है। इसके अलावा यह आसन करने से मांसपेशियां भी मजबूत होती हैं।

इस आसन का नियमित रूप से अभ्यास करने से शरीर लचीला बनता है और विशेष रूप से रीढ़ की हड्डी लचीली होती है। इसके साथ ही यह आसन कंधे और गर्दन के लिए भी फायदेमंद होता है और शरीर को ऊर्जा से भर देता है।

 अर्ध मत्स्येन्द्रासन का प्रतिदिन अभ्यास करने से शरीर के अंदर जमा टॉक्सिन्स बाहर निकल आते हैं। इससे शरीर में असमय बीमारियां नहीं लगती हैं और शरीर की सुरक्षा होती है।

प्रतिदिन सुबह इस आसन का अभ्यास करने से शरीर में जमा कचरा बाहर निकल आता है और पाचन क्रिया मजबूत होती है। इस आसन को करने से भोजन बहुत आसानी से पच जाता है और कब्ज या शरीर में भारीपन की समस्या नहीं महसूस होती है।

इस आसन का अभ्यास करने से किडनी, लिवर, हृदय और प्लीहा उत्तेजित होते हैं और अपना कार्य सुचारू रूप से एवं सही तरीके से करते हैं। इससे शरीर में तमाम तरह के रोगों से सुरक्षा होती है, क्योंकि ये सभी अंग शरीर की महत्वपूर्ण क्रियाओं को करने वाले अंग होते हैं।

अर्ध मत्स्येन्द्रासन का सही तरीके से अभ्यास करने से यह शरीर के अंदर की अतिरिक्त गर्मी को बाहर निकालने में मदद करता है और शरीर के अंगों एवं कोशिकाओं में इकट्ठे हानिकारक पदार्थों को भी दूर कर देता है।

इस आसन का अभ्यास करने से शरीर अधिक सक्रिय रहता है और भूख न लगने की समस्या भी दूर हो जाती है। यह आसन करने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि पाचन तंत्र मजबूत होता है और भूख भी समय पर लगती है।

आप सिर्फ अर्ध मत्स्येन्द्रासन योग करके मधुमेह को बहुत हद तक कंट्रोल कर सकते हैं। यह आसन पैंक्रियास को स्वस्थ रखते हुए इन्सुलिन के बनने में मदद करता है और मधुमेह के रोकथाम में अहम भूमिका निभाता है।

अगर आपको अपनी पेट की चर्बी कम करनी हो तो इस आसन का अभ्यास जरूर करें। इस आसन के अभ्यास करते समय अगर इसे कुछ ज्यादा वक्त के लिए मेंटेन किया जाए, तो पेट की चर्बी को गलाने में अच्छी सफलता मिलती है।

अर्ध मत्स्येन्द्रासन करने का तरीका: 

ज़मीन पर बैठ जाएं और पैरों को सीधा रखें

रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें

दंडासन में बैठ जायें। हल्का सा हाथों से ज़मीन को दबायें, और साँस अंदर लेते हुए रीढ़ की हड्डी को लंबा करें।

बाएं पैर को मोड़ें और दाएं घुटने के उपर से लाकर बाएं पैर को जमीन पर रखें।

दाहिने पैर को मोड़ो और पैर को बाईं नितंब के निकट जमीन पर आराम से रखें।

बाएं पैर के उपर से दाहिने हाथ को लायें और बाएं पैर के अंगूठे को पकड़ें।

श्वास छोड़ते हुए धड़ को जितना संभव हो उतना मोड़ें, और गर्दन को मोड़ें जिससे कि बाएं कंधे पर दृष्टि केंद्रित कर सकें।

बाएं हाथ को ज़मीन पर टिका लें, और सामान्य रूप से श्वास लें।

30-60 सेकेंड के लिए मुद्रा में रहें।

आसन से बाहर निकलने के लिए सारे स्टेप्स को विपरीत क्रम में करें।

यह सारे स्टेप्स फिर दूसरी तरफ भी दौहरायें।

 

अर्ध मत्स्येन्द्रासन एक महत्वपूर्ण आसन है जिसका नाम महान योगी मत्स्येन्द्रनाथ के नाम पर रखा गया है। इस आसन से पेट के सभी अंग वृक्क (किडनी), यकृत (लीवर), अग्न्याशय (पैनक्रयाज) प्रभावित होते हैं। इस आसन के करने से रासायन निर्माण का संतुलन बना रहता है। शर्करा (सुगर) नियंत्रित रहता है।

अर्ध मत्स्यासन के क्या फायदे हैं?

अर्ध मत्स्येन्द्रासन आसन वरिष्ठ नागरिकों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद हो सकता है। इससे उनकी एड्रिनल ग्रंथि की स्थिति में सुधार होता है। साथ ही, यह आसन कब्ज, दमा, और पाचन संबंधी समस्याओं को दूर करने में मदद करता है। मधुमेह रोगियों के लिए भी यह एक अच्छा विकल्प है

मत्स्येन्द्रासन का अभ्यास करते समय क्या सावधानियां बरतनी चाहिए?

अर्ध मत्स्येन्द्रासन की प्रक्रिया का पालन उचित तरीके से किया जाना चाहिए। बैठे हुए मोड़ का अभ्यास करते समय, ध्यान रखने वाली एक और महत्वपूर्ण बात है सांस लेना । जब आप शरीर को अंतिम मुद्रा में मोड़ते हैं, तो सुनिश्चित करें कि आप सांस बाहर छोड़ें। सांस छोड़ने से आपको और अधिक झुकने में मदद मिलेगी।

अर्ध मत्स्येन्द्रासन करने में यह सावधानियाँ बरतें:

गर्भावस्था और मासिक धर्म के दौरान नहीं करना चाहिए।

जिनके दिल, पेट या मस्तिष्क की ऑपरेशन की गयी हो उन्हे इस आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिए।

पेप्टिक अल्सर या हर्निया वाले लोगों को यह आसान बहुत सावधानी से करना चाहिए।

अगर आपको रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट या समस्याएं हैं, तो आप यह आसन ना करें।

हल्के स्लिप-डिस्क में इस आसन से लाभ हो सकता है, लेकिन गंभीर मामलों में इसे नहीं करना चाहिए।

अर्धमत्स्येन्द्रासन के क्या लाभ हैं?

अर्धमत्स्येन्द्रासन करने आपके शरीर की मांसपेशियां में लचीलापन आता है और आपका ब्लड सर्कुलेशन ठीक होता है। अर्ध मत्स्येन्द्रासन को नियमित करने आपके शरीर के विषैल तत्व बाहर होते हैं और शरीर डिटॉक्स होता है।

अर्ध मत्स्येन्द्रासन करने से पहले ध्यान रखने वाली बातें 

अर्ध मत्स्येन्द्रासन का अभ्यास तड़के सुबह करना चाहिए। लेकिन यदि किसी कारणवश आप सुबह इस आसन का अभ्यास नहीं कर पा रहे हैं, तो शाम के समय भी कर सकते हैं। लेकिन अर्ध मत्स्येन्द्रासन का अभ्यास करने से पहले आपको यह ध्यान रखना होगा कि आपका पेट पूरी तरह खाली हो अर्थात इस आसन को करने से चार से छह घंटे पहले ही आपने भोजन कर लिया हो, ताकि भोजन आसानी से पच जाए। याद रखें, आसन के सभी नियमों का अनुसरण करने पर ही किसी भी आसन का फायदा मिलता है।

 

 

 

 




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