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अहोई अष्टमी व्रत कथा


अहोई अष्टमी का शुभ मुहूर्त :-   उदयातिथि के अनुसार, अहोई अष्टमी इस बार 5 नवंबर को मनाई जाएगी तो पूजन मुहूर्त  5 नवंम्बर दिन रविवार को शाम 5 बजकर 33 मिनट से शाम 6 बजकर 52 मिनट तक रहेगा. इस दिन तारे दिखने का समय शाम 5 बजकर 58 मिनट रहेगा इस बार की अहोई अष्टमी बेहद खास मानी जा रही है क्योंकि इस दिन रवि पुष्य योग सुबह 6 बजकर 36 मिनट से लेकर सुबह 10 बजकर 29 मिनट तक रहेगा. इ... Read More

अहोई अष्टमी का शुभ मुहूर्त :- 

 उदयातिथि के अनुसार, अहोई अष्टमी इस बार 5 नवंबर को मनाई जाएगी

तो पूजन मुहूर्त  5 नवंम्बर दिन रविवार को शाम 5 बजकर 33 मिनट से शाम 6 बजकर 52 मिनट तक रहेगा. इस दिन तारे दिखने का समय शाम 5 बजकर 58 मिनट रहेगा

इस बार की अहोई अष्टमी बेहद खास मानी जा रही है क्योंकि इस दिन रवि पुष्य योग सुबह 6 बजकर 36 मिनट से लेकर सुबह 10 बजकर 29 मिनट तक रहेगा. इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 6 बजकर 36 मिनट से लेकर सुबह 10 बजकर 29 मिनट तक रहेगा. 

नियम और सावधानियां अहोई माता के व्रत में बिना स्नान किए पूजा-अर्चना ना करें. इस दिन महिलाओं को मिट्टी से जुड़े कार्य करने से बचना चाहिए. इस दिन काले,नीले या गहरे रंग के कपड़े बिल्कुल न पहनें. व्रत विधान के अनुसार, किसी भी जीव-जंतु को चोट ना पहुंचाएं और ना ही हरे-भरे वृक्षों को तोड़ें. अहोई के व्रत  में पहले प्रयोग हुई पुजा सामग्री को दोवारा प्रयोग न करे.

 

व्रत की पूजन विधि 

होई अष्टमी के दिन दोपहर के आसपास हाथ में गेहू के सात दाने और कुछ दक्षिणा को लेकर होई माता की कथा सुनें। फिर होई माता की आकृति गेरू या लाल रंग से दीवार पर बनाये। शाम को तारा निकलने पर माता के चित्र के साुमने जल से भरा कलश,दूध,चावल,हलवा,पुष्प और दीप ्प्रज्वलित करे. प्रथम माता को रोली , पुष्प ,दीप  से पुजा करें। माता को दुध चावल अर्पित करे. फिर माता से अपनी संतान की दीर्घायु की मंगलकामना करें। उसके बाद चन्द्रमा को अर्ध्य देकर भोजन् करे।

अहोई अष्टमी व्रत कथा:-

 

॥ श्री गणेशाय नमः ॥ प्राचीन काल में किसी नगर में एक साहूकार रहता था। उसके सात लड़के थे। दीपावली से पहले साहूकार की स्त्री घर की लीपापोती हेतु मिट्टी लेने खदान में गई और कुदाल से मिट्टी खोदने लगी।

दैवयोग से उसी जगह एक सेह की मांद थी। सहसा उस स्त्री के हाथ से कुदाल बच्चे को लग गई जिससे सेह का बच्चा तत्काल मर गया। अपने हाथ से हुई हत्या को लेकर साहूकार की पत्नी को बहुत दुख हुआ परन्तु अब क्या हो सकता था! वह शोकाकुल पश्चाताप करती हुई अपने घर लौट आई।
कुछ दिनों बाद उसका बेटे का निधन हो गया। फिर अकस्मात् दूसरा, तीसरा और इस प्रकार वर्ष भर में उसके सभी बेटे मर गए। महिला अत्यंत व्यथित रहने लगी। एक दिन उसने अपने आस-पड़ोस की महिलाओं को विलाप करते हुए बताया कि उसने जानबूझ कर कभी कोई पाप नहीं किया। हाँ, एक बार खदान में मिट्टी खोदते हुए अंजाने में उसके हाथों एक सेह के बच्चे की हत्या अवश्य हुई है और तत्पश्चात उसके सातों बेटों की मृत्यु हो गई

यह सुनकर पास-पड़ोस की वृद्ध औरतों ने साहूकार की पत्नी को दिलासा देते हुए कहा कि यह बात बताकर तुमने जो पश्चाताप किया है उससे तुम्हारा आधा पाप नष्ट हो गया है। तुम उसी अष्टमी को भगवती माता की शरण लेकर सेह और सेह के बच्चों का चित्र बनाकर उनकी अराधना करो और क्षमा-याचना करो। ईश्वर की कृपा से तुम्हारा पाप धुल जाएगा।
साहूकार की पत्नी ने वृद्ध महिलाओं की बात मानकर कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को उपवास व पूजा-याचना की। वह हर वर्ष नियमित रूप से ऐसा करने लगी। तत्पश्चात् उसे सात पुत्र रत्नों की प्राप्ती हुई। तभी से अहोई व्रत की परम्परा प्रचलित हो गई।
अहोई माता की जय !


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दिपावली पर लक्ष्मी माता जी की पुजा


दिपावली -लक्ष्मी पूजन विधि दिवाली के दिन सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान आदि कर लें। इसके बाद पूरे घर में गंगाजल छिड़क दें। इसके साथ ही रंगोली और मुख्य द्वार में तोरण लगा लें।   शाम के समय उत्तर-पश्चिम दिशा में एक चौकी रखें और उसमें सफेद या पीले रंग से रंग लें। इसके बाद इसमें लाल रंग का कपड़ा बिछा दें।   अब चौकी में भगवान गणेश, मां लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित कर दें। आप चाहे तो मां सरस्वत... Read More

दिपावली -लक्ष्मी पूजन विधि

  • दिवाली के दिन सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान आदि कर लें। इसके बाद पूरे घर में गंगाजल छिड़क दें। इसके साथ ही रंगोली और मुख्य द्वार में तोरण लगा लें।
  •  
  • शाम के समय उत्तर-पश्चिम दिशा में एक चौकी रखें और उसमें सफेद या पीले रंग से रंग लें। इसके बाद इसमें लाल रंग का कपड़ा बिछा दें।
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  • अब चौकी में भगवान गणेश, मां लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित कर दें। आप चाहे तो मां सरस्वती की मूर्ति भी स्थापित कर सकते हैं।
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  • चौकी के पास एक मिट्टी या पीतल के कलश में जलभर कर रख दें और उसके ऊपर आम के पत्ते रखकर कोई कटोरी रख दें।
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  • अब पूजा आरंभ करें। सबसे पहले सभी देवी देवताओं का आह्वान करके जल अर्पित करें। इसके बाद फल, माला, मौली, जनेऊ, सिंदूर, कुमकुम, अक्षत आदि अर्पित करें
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  • अब एक-एक पान में 2 लौंग, बाताशा, 1 सुपारी और 2 इलायची के साथ एक रुपए का सिक्का रखकर चढ़ादें। इसके साथ ही लाइया, गट्टा, खिलौना आदि के साथ मिठाई चढ़ा दें।
  • भोग लगाने के बाद जल अर्पित करें और घी का दीपक जलाने के साथ 5 अन्य दीपक जलाएं और सभी के सामने रख दें।
  • अब लक्ष्मी स्तुति, चालीसा और मंत्र का जाप करें। इसके बाद भगवान गणेश की आरती सहित अन्य आरती कर लें।
  • अंत में आचमन करने के बाद भूलचूक के लिए माफी मांग लें।
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  • महालक्ष्मी की पूजा करने के बाद वाहन, बही खाता, तिजोरी, पुस्तक, बिजनेस संबंधी चीजों की पूजा कर लें और फिर पूरे घर को दीपक से सजा लें।
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  • दिवाली में माता लक्ष्मी का आगमन अपने घर में या व्यावसायिक प्रतिष्ठान में कराना चाहते हैं तो श्री सूक्त के ऋग्वैदिक श्री सूक्तम के प्रथम श्लोक को पढ़ना चाहिए।

ऊं हिरण्यवर्णान हरिणीं सुवर्ण रजत स्त्रजाम

चंद्रा हिरण्यमयी लक्ष्मी जातवेदो म आ वहः।।

दिवाली पर मां लक्ष्मी पूजा मंत्र

  • 1- विष्णुप्रिये नमस्तुभ्यं जगद्धिते |  अर्तिहंत्रि नमस्तुभ्यं समृद्धि कुरु में सदा ||
  • 2- ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीभ्यो नमः॥
  • 3- ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥
  • 4- ॐ श्रीं श्रीयै नम:

कुबेर प्रार्थना मंत्र

धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च। भगवान् त्वत्प्रसादेन धनधान्यादिसम्पद:।।

महालक्ष्मी मंत्र

ॐ श्री ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्मयै नमः।।

श्री लक्ष्मी बीज मंत्र

ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीभयो नमः॥

अर्घ्य मंत्र

क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते।

सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्य नमो नम:।।

प्रार्थना मंत्र

सर्वमये देवि सर्वदेवैरलड्कृते।

मातर्ममाभिलाषितं सफलं कुरु नन्दिनी।।

माता लक्ष्मी आरती

ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता ।

तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता ।।

ॐ जय लक्ष्मी माता ।।

उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता ।

सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ।।

ॐ जय लक्ष्मी माता ।।

दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता ।

जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता ।।

ॐ जय लक्ष्मी माता ।।

तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता ।

कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता ।।

ॐ जय लक्ष्मी माता ।।

जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता ।

सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता ।।

ॐ जय लक्ष्मी माता ।।

तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता ।

खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता ।।

ॐ जय लक्ष्मी माता ।।

शुभ-गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि-जाता ।

रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता ।

ॐ जय लक्ष्मी माता ।।

महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता ।

उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता ।।

ॐ जय लक्ष्मी माता ।।


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सूर्य मंत्र


सूर्य मंत्र 1. ॐ घृ‍णिं सूर्य्य: आदित्य: 2. ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।। 3. ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर:। 4. ॐ ह्रीं घृणिः सूर्य आदित्यः क्लीं ॐ । 5. ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः । 6. ॐ सूर्याय नम: । 7. ॐ घृणि सूर्याय नम: । 8. आ कृष्णेन् रजसा वर्तमानो निवेशयत्र अमतं मर्त्य च हिरणययेन सविता रथे... Read More

सूर्य मंत्र

1. ॐ घृ‍णिं सूर्य्य: आदित्य:

2. ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।।

3. ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर:।

4. ॐ ह्रीं घृणिः सूर्य आदित्यः क्लीं ॐ ।

5. ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः ।

6. ॐ सूर्याय नम: ।

7. ॐ घृणि सूर्याय नम: ।

8. आ कृष्णेन् रजसा वर्तमानो निवेशयत्र अमतं मर्त्य च हिरणययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन ||


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महामृत्युंजय मंत्र की उत्पत्ति ?


महामृत्युंजय मंत्र की उत्पत्ति ? ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्‍बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्‍धनान् मृत्‍योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ !!   महामृत्युंजय मंत्र के बारे में तो लगभग सभी जानते हैं, लेकिन खास करके भोलेनाथ के भक्त, जो इस मंत्र के जाप से होने वाले फायदों बहुत अच्छे से पता होगा। लेकिन क्या उन्हें ये पता है कि आखिर इस शक्ति... Read More

महामृत्युंजय मंत्र की उत्पत्ति ?

ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्‍बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव
बन्‍धनान् मृत्‍योर्मुक्षीय मामृतात्
ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ !!

 

महामृत्युंजय मंत्र के बारे में तो लगभग सभी जानते हैं, लेकिन खास करके भोलेनाथ के भक्त, जो इस मंत्र के जाप से होने वाले फायदों बहुत अच्छे से पता होगा। लेकिन क्या उन्हें ये पता है कि आखिर इस शक्तिशाली मंत्र की उत्पत्ति कैसी हुई। हम जानते हैं आप में से बहुत से ऐसे लोग होंगे जिन्हें इस बारे में कुछ पता नहीं होगा। तो चलिए आज हम आपको बताते हैं कि भोलेनाथ के इस महामृत्युंजय मंत्र कैसे उत्पन्न हुआ और इसके उच्चारण से मानव को क्या क्या लाभ प्राप्त होते हैं।

कुछ पौराणिक कथाओं के अनुसार मृकण्ड नामक एक ऋषि शिव शंकर के अनन्य भक्त थे। वो उनकी बहुत ज्यादा पूजा-अर्चना करते थे। असल में उन्हें कोई संतान नहीं थी। वो जानते थे कि कि देवों के देव महादेव अगर उन पर प्रसन्न हो जाएंगे तो उन्हें संतान की प्राप्ति अवश्य होगी।

यही मन में विचार कर उन्होंने शिव जो खुश करने के लिए घोर तप किया। और जो वो चाहते थे वो हुआ भगवान शंकर उनकी तपस्या से खुश हुए और उन्हें दर्शन दिए। जब उन्होंने मृकण्ड को वरदान मांगने के लिए कहा तो ऋषि ने पुत्र प्राप्ति का वरदान मांगा। भगवान शंकर ने उन्हें विधान के विपरीत जाकर उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दे डाला। लेकिन भगवान शंकर ने उसे चेतावनी देते हुए कहा कि इस खुशी के साथ-साथ दुख भी होगा।


मृकण्ड ऋषि ने फिर भी उनके वरदान को स्वीकार किया। भोले शंकर के वरदान से ऋषि को पुत्र प्राप्त हुआ जिनका उन्होंने मार्कण्डेय नाम रखा। ज्योतिषियों ने जब इस बालक की कुंडली देखी तो उन्होंने ऋषि और उनकी पत्नी को बताया कि ये विल्क्षण बालक अल्पायु है, यानि इसकी उम्र केवल 12 वर्ष है। इतना सुनते ही ऋषि की खुशी-दुख में बदल गई लेकिन उन्होंने धैर्य रखते हुए अपनी पत्नी को समझाया कि जिस भोलेनाथ ने हमें इन्हें वरदान के रूप में भेंट किया है वहीं इसकी रक्षा भी करेंगे।


धीरे-धीरे मार्कण्डेय ऋषि बड़े होने लगे, उन्होंने अपने पिता से शिवमंत्र की दीक्षा ग्रहण की। एक दिन उनकी माता ने दुखी होकर अपने पुत्र को बता दिया कि वे अल्पायु है। जब मार्कण्डेय ऋषि को ये पता चला कतो उन्होंने मन ही मन ये प्रण कर लिया कि वे अपने माता-पिता की सुख व खुशी के लिए भोलेनाथ से दीर्घाय का वरदान प्राप्त करेंगे।


इसके बाद उन्होंने एक मंत्र की रचना की और शिव मंदिर में बैठकर इस मंत्र का पाठ करने लगे। बता दें वो मंत्र है-&nbsp;<br>
"ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥"


जिस हम महामृत्युंजय मंत्र के नाम से जानते हैं।<br>


मान्यता है कि जब यमदूत उन्हें लेने आए तो बालक मार्कण्डेय भगवान शंकर की आराधना में मगन था। तो वो उनके अखंड जाप के संकल्प के पूरे होने की इंतज़ार करने लगे। लेकिन थोड़े देर बाद वे वापिस लौट आए और यमराज को बताया कि वे बालक तक पहुंचने का साहस नहीं कर पाए।


इस पर यमराज को क्रोध आ गया और कहा कि मृकण्ड के पुत्र को मैं स्वयं लेकर आऊंगा और उसे लाने के लिए निकल पड़े।


जब वह वहां पहुंचे तो बालक मार्कण्डेय जोर-जोर से महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते हुए शिवलिंग से लिपट गया।


यमराज ने उसे शिवलिंग से खींचकर ले जाने की कोशिश की तभी जोरदार हुंकार से मंदिर कांपने लगा और शिवलिंग से महाकाल प्रकट हो गए। उन्होंने क्रोधित होकर यमराज से कहा तुमने मेरी साधना में लीन भक्त को परेशान करने का साहस भी कैसे किया ?


जिसके बाद यमराज महाकाल क्रोध के डर से कांपने लगा उन्होंने कहा- प्रभु मैं आप का सेवक हूं और आपने ही जीवों से प्राण हरने का हक मुझ दिया है।


इतना सुनते ही भगवान का क्रोध थोड़ा शांत हो गया और तो बोले- कि हां तुम ठीक कह रहे हो लेकिन मैं अपने इस भक्त की स्तुति से बहुत प्रसन्न हूं और मैं इसे दीर्घायु होने का वरदान देता हूं। इसलिए तुम इसे नहीं ले जा सकते।


इसके बाद यम ने शंकर भगवान को प्रणाम करते हुए कहा प्रभु आपकी आज्ञा सर्वोपरि है। मैं आज क्या कभी भी आपके भक्त मार्कण्डेय द्वारा रचित महामृत्युंजय का पाठ करने वाले को त्रास नहीं दूंगा।


तो इस तह महाकाल की कृपा से मार्केण्डेय दीर्घायु हो गए और उन्होंने एक ऐसे मंत्र की रचनी की जिसका पाठ करने काल तक को भी हराया जा सकता है।
 

भावार्थ- हम भगवान शिवशंकर की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो संपूर्ण जगत का पालन पोषण अपनी कृपादृष्टि से कर रहे हैं। उनसे हमारी प्रार्थना है कि वह हमें मृत्यु के बंधनों से मुक्त कर दें। जिस प्रकार एक ककड़ी इस बेल रूपी संसार में पककर उसके बंधनों से मुक्त हो जाती है, उसी प्रकार हम भी इस संसार रूपी में पक जाएं और आपके चरणों की अमृतधारा का पान करते हुए शरीर को त्यागकर आपमें लीन हो जाएं।


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महामृत्युंजय मंत्र का जप कैसे करते है।


महामृत्युंजय मंत्र का जप ऐसे किया जाता है- &nbsp; रोज रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का जप करने से अकाल मृत्यु (असमय मौत) का डर दूर होता है। साथ ही कुंडली के दूसरे बुरे रोग भी शांत होते हैं, इसके अलावा पांच तरह के सुख भी इस मंत्र के जाप से मिलते हैं। &nbsp; ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्&zwj;बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्&zwj;धनान् मृत्&zwj;योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुव... Read More

महामृत्युंजय मंत्र का जप ऐसे किया जाता है-

 

रोज रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का जप करने से अकाल मृत्यु (असमय मौत) का डर दूर होता है। साथ ही कुंडली के दूसरे बुरे रोग भी शांत होते हैं, इसके अलावा पांच तरह के सुख भी इस मंत्र के जाप से मिलते हैं।

 

ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्‍बकं
यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव
बन्‍धनान् मृत्‍योर्मुक्षीय मामृतात्
ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ !!


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महामृत्युंजय मंत्र का सरल अनुवाद


ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्&zwj;बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्&zwj;धनान् मृत्&zwj;योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ !! &nbsp; इस मंत्र का मतलब है कि हम भगवान शिव की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो हर श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं और पूरे जगत का पालन-पोषण करते हैं। शिव पुराण में भगवान शिव को खुश करने के लिए बहुत सारे मंत्र बताए गए हैं।... Read More

ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्‍बकं
यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव
बन्‍धनान् मृत्‍योर्मुक्षीय मामृतात्
ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ !!

 

इस मंत्र का मतलब है कि हम भगवान शिव की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो हर श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं और पूरे जगत का पालन-पोषण करते हैं।

शिव पुराण में भगवान शिव को खुश करने के लिए बहुत सारे मंत्र बताए गए हैं। आज हम आपको एक ऐसा महामंत्र बताने वाले हैं, जिसके जाप से संसार का हर रोग और कष्ट दूर हो जाता है। महामृत्युंजय मंत्र भगवान शिव का बहुत प्रिय मंत्र है। इस मंत्र के जाप से व्यक्ति मौत पर भी जीत हासिल कर सकता है। इस मंत्र के जाप से भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं और असाध्य रोगों का भी नाश होता है। शास्त्रों में इस मंत्र को अलग-अलग संख्या में करने का विधान है।


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महा मृत्‍युंजय मंत्र का अर्थ


महा&nbsp;मृत्&zwj;युंजय मंत्र&nbsp;का अर्थ- ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्&zwj;बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्&zwj;धनान् मृत्&zwj;योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ !! &nbsp; अर्थ- "समस्&zwj;त संसार के पालनहार,तीन नेत्र वाले शिव की हम अराधना करते हैं। विश्&zwj;व में सुरभि फैलाने वाले भगवान शिव मृत्&zwj;यु न कि मोक्ष से हमें मुक्ति दिलाएं।" महामृत्युंजय मं... Read More

महा मृत्‍युंजय मंत्र का अर्थ-

ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्‍बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव
बन्‍धनान् मृत्‍योर्मुक्षीय मामृतात्
ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ !!

 

अर्थ-

"समस्‍त संसार के पालनहार,तीन नेत्र वाले शिव की हम अराधना करते हैं। विश्‍व में सुरभि फैलाने वाले भगवान शिव मृत्‍यु न कि मोक्ष से हमें मुक्ति दिलाएं।"
महामृत्युंजय मंत्र के वर्णो (अक्षरों) का अर्थ महामृत्युंघजय मंत्र के वर्ण पद वाक्यक चरण आधी ऋचा और सम्पुतर्ण ऋचा-इन छ: अंगों के अलग-अलग अभिप्राय हैं।
ॐ त्र्यंबकम् मंत्र के 33 अक्षर हैं जो महर्षि वशिष्ठ के अनुसार 33 कोटि (प्रकार) देवताओं के घोतक हैं। उन तैंतीस देवताओं में 8 वसु 11 रुद्र और 12 आदित्यठ 1 प्रजापति तथा 1 षटकार हैं।

इन तैंतीस कोटि देवताओं की सम्पूर्ण शक्तियाँ महामृत्युंजय मंत्र से निहीत होती है जिससे महा महामृत्युंजय का पाठ करने वाला प्राणी दीर्घायु तो प्राप्त करता ही हैं। साथ ही वह नीरोग,ऐश्व‍र्य युक्ता धनवान भी होता है। महामृत्युंजय का पाठ करने वाला प्राणी हर दृष्टि से सुखी एव समृद्धिशाली होता है। भगवान शिव की अमृतमययी कृपा उस निरन्तंर बरसती रहती है।

त्रि ? ध्रववसु प्राण का घोतक है जो सिर में स्थित है।

यम ? अध्ववरसु प्राण का घोतक है,जो मुख में स्थित है।

ब ? सोम वसु शक्ति का घोतक है,जो दक्षिण कर्ण में स्थित है।

कम ? जल वसु देवता का घोतक है,जो वाम कर्ण में स्थित है।

य ? वायु वसु का घोतक है,जो दक्षिण बाहु में स्थित है।

जा ? अग्नि वसु का घोतक है,जो बाम बाहु में स्थित है।

म ? प्रत्युवष वसु शक्ति का घोतक है, जो दक्षिण बाहु के मध्य में स्थित है।

हे ? प्रयास वसु मणिबन्धत में स्थित है।

सु ? वीरभद्र रुद्र प्राण का बोधक है। दक्षिण हस्त के अंगुलि के मुल में स्थित है।

ग ? शुम्भ् रुद्र का घोतक है दक्षिणहस्त् अंगुलि के अग्र भाग में स्थित है।

न्धिम् ? गिरीश रुद्र शक्ति का मुल घोतक है। बायें हाथ के मूल में स्थित है।

पु ? अजैक पात रुद्र शक्ति का घोतक है। वाम हस्तह के मध्य भाग में स्थित है।

ष्टि ? अहर्बुध्य्त् रुद्र का घोतक है, वाम हस्त के मणिबन्ध में स्थित है।

व ? पिनाकी रुद्र प्राण का घोतक है। बायें हाथ की अंगुलि के मुल में स्थित है।

र्ध ? भवानीश्वपर रुद्र का घोतक है,बाम हस्त अंगुलि के अग्र भाग में स्थित है।

नम् ? कपाली रुद्र का घोतक है। उरु मूल में स्थित है।

उ ? दिक्पति रुद्र का घोतक है। यक्ष जानु में स्थित है।

र्वा ? स्था णु रुद्र का घोतक है जो यक्ष गुल्फ् में स्थित है।

रु ? भर्ग रुद्र का घोतक है,जो चक्ष पादांगुलि मूल में स्थित है।

क ? धाता आदित्यद का घोतक है जो यक्ष पादांगुलियों के अग्र भाग में स्थित है।

मि ? अर्यमा आदित्यद का घोतक है जो वाम उरु मूल में स्थित है।

व ? मित्र आदित्यद का घोतक है जो वाम जानु में स्थित है।

ब ? वरुणादित्या का बोधक है जो वाम गुल्फा में स्थित है।

न्धा ? अंशु आदित्यद का घोतक है। वाम पादंगुलि के मुल में स्थित है।

नात् ? भगादित्यअ का बोधक है। वाम पैर की अंगुलियों के अग्रभाग में स्थित है।

मृ ? विवस्व्न (सुर्य) का घोतक है जो दक्ष पार्श्व में स्थित है।

र्त्यो् ? दन्दाददित्य् का बोधक है। वाम पार्श्व भाग में स्थित है।

मु ? पूषादित्यं का बोधक है। पृष्ठ भगा में स्थित है।

क्षी ? पर्जन्य् आदित्यय का घोतक है। नाभि स्थिल में स्थित है।

य ? त्वणष्टान आदित्यध का बोधक है। गुहय भाग में स्थित है।

मां ? विष्णुय आदित्यय का घोतक है यह शक्ति स्वरूप दोनों भुजाओं में स्थित है।

मृ ? प्रजापति का घोतक है जो कंठ भाग में स्थित है।

तात् ? अमित वषट्कार का घोतक है जो हदय प्रदेश में स्थित है।

उपर वर्णन किये स्थानों पर उपरोक्तध देवता, वसु आदित्य आदि अपनी सम्पुर्ण शक्तियों सहित विराजत हैं। जो प्राणी श्रध्दा सहित महामृत्युजय मंत्र का पाठ करता है उसके शरीर के अंग – अंग (जहां के जो देवता या वसु अथवा आदित्यप हैं) उनकी रक्षा होती है। मंत्रगत पदों की शक्तियाँ जिस प्रकार मंत्रा में अलग अलग वर्णो (अक्षरों) की शक्तियाँ हैं।

उसी प्रकार अलग अलग पदों की भी शक्तियाँ है।

त्र्यम्‍‍बकम् ? त्रैलोक्यक शक्ति का बोध कराता है जो सिर में स्थित है।

यजा ? सुगन्धात शक्ति का घोतक है जो ललाट में स्थित है।

महे ? माया शक्ति का द्योतक है जो कानों में स्थित है।

सुगन्धिम् ? सुगन्धि शक्ति का द्योतक है जो नासिका (नाक) में स्थित है।

पुष्टि ? पुरन्दिरी शक्ति का द्योतक है जो मुख में स्थित है।

वर्धनम ? वंशकरी शक्ति का द्योतक है जो कंठ में स्थित है।

उर्वा ? ऊर्ध्देक शक्ति का द्योतक है जो ह्रदय में स्थित है।

रुक ? रुक्तदवती शक्ति का द्योतक है जो नाभि में स्थित है।

मिव ? रुक्मावती शक्ति का बोध कराता है जो कटि भाग में स्थित है।

बन्धानात् ? बर्बरी शक्ति का द्योतक है जो गुह्य भाग में स्थित है।

मृत्यो: ? मन्त्र्वती शक्ति का द्योतक है जो उरुव्दंय में स्थित है।

मुक्षीय ? मुक्तिकरी शक्ति का द्योतक है जो जानुओ में स्थित है।

मा ? महाशक्ति सहित महाकालेश का बोधक है जो दोंनों जंघाओ में स्थित है।

अमृतात ? अमृतवती शक्ति का द्योतक है जो पैरो के तलुओं में स्थित है।

 

महामृत्‍युंजय मंत्र जप की विधि

महामृत्‍युंजय मंत्र का जाप आपको सवा लाख बार करना चाहिए। वहीं, भोलेनाथ के लघु मृत्युंजय मंत्र का जाप 11 लाख बार किया जाता है। सावन माह में इस मंत्र का जाप अत्यंत ही कल्याणकारी माना जाता है। वैसे आप यदि अन्य माह में इस मंत्र का जाप करना चाहते हैं तो सोमवार के दिन से इसका प्रारंभ कराना चाहिए। इस मंत्र के जाप में रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करें। इस बात का ध्यान रखें कि दोपहर 12 बजे के बाद महामृत्‍युंजय मंत्र का जाप न करें। मंत्र का जाप पूर्ण होने के बाद हवन करन उत्तम माना जाता है।

क्यों करते हैं महामृत्युंजय मंत्र का जाप

महामृत्युंजय मंत्र का जाप विशेष परिस्थितियों में ही किया जाता है। अकाल मृत्यु, महारोग, धन-हानि, गृह क्लेश, ग्रहबाधा, ग्रहपीड़ा, सजा का भय, प्रॉपर्टी विवाद, समस्त पापों से मुक्ति आदि जैसे स्थितियों में भगवान शिव के महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया जाता है। इसके चमत्कारिक लाभ देखने को मिलते हैं। इन सभी समस्याओं से मुक्ति के लिए महामृत्युंजय मंत्र या लघु मृत्युंजय मंत्र का जाप किया जाता है।

महामृत्युंजय मंत्र लिरिक्स

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् | उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ||

महामृत्युंजय मंत्र का अर्थ

त्रयंबकम- त्रि.नेत्रों वाला ;कर्मकारक। यजामहे- हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं। हमारे श्रद्देय। सुगंधिम- मीठी महक वाला, सुगंधित। पुष्टि- एक सुपोषित स्थिति, फलने वाला व्यक्ति। जीवन की परिपूर्णता वर्धनम- वह जो पोषण करता है, शक्ति देता है। उर्वारुक- ककड़ी। इवत्र- जैसे, इस तरह। बंधनात्र- वास्तव में समाप्ति से अधिक लंबी है। मृत्यु- मृत्यु से मुक्षिया, हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति दें।
मात्र न
अमृतात-
 अमरता, मोक्ष।

महामृत्युंजय मंत्र का सरल अनुवाद

इस मंत्र का मतलब है कि हम भगवान शिव की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो हर श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं और पूरे जगत का पालन-पोषण करते हैं।

शिव पुराण में भगवान शिव को खुश करने के लिए बहुत सारे मंत्र बताए गए हैं। आज हम आपको एक ऐसा महामंत्र बताने वाले हैं, जिसके जाप से संसार का हर रोग और कष्ट दूर हो जाता है। महामृत्युंजय मंत्र भगवान शिव का बहुत प्रिय मंत्र है। इस मंत्र के जाप से व्यक्ति मौत पर भी जीत हासिल कर सकता है। इस मंत्र के जाप से भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं और असाध्य रोगों का भी नाश होता है। शास्त्रों में इस मंत्र को अलग-अलग संख्या में करने का विधान है।

महामृत्युंजय मंत्र का जप ऐसे किया जाता है

रोज रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का जप करने से अकाल मृत्यु (असमय मौत) का डर दूर होता है। साथ ही कुंडली के दूसरे बुरे रोग भी शांत होते हैं, इसके अलावा पांच तरह के सुख भी इस मंत्र के जाप से मिलते हैं।

महामृत्युंजय मंत्र की उत्पत्ति ?

महामृत्युंजय मंत्र के बारे में तो लगभग सभी जानते हैं, लेकिन खास करके भोलेनाथ के भक्त, जो इस मंत्र के जाप से होने वाले फायदों बहुत अच्छे से पता होगा। लेकिन क्या उन्हें ये पता है कि आखिर इस शक्तिशाली मंत्र की उत्पत्ति कैसी हुई। हम जानते हैं आप में से बहुत से ऐसे लोग होंगे जिन्हें इस बारे में कुछ पता नहीं होगा। तो चलिए आज हम आपको बताते हैं कि भोलेनाथ के इस महामृत्युंजय मंत्र कैसे उत्पन्न हुआ और इसके उच्चारण से मानव को क्या क्या लाभ प्राप्त होते हैं।

कुछ पौराणिक कथाओं के अनुसार मृकण्ड नामक एक ऋषि शिव शंकर के अनन्य भक्त थे। वो उनकी बहुत ज्यादा पूजा-अर्चना करते थे। असल में उन्हें कोई संतान नहीं थी। वो जानते थे कि कि देवों के देव महादेव अगर उन पर प्रसन्न हो जाएंगे तो उन्हें संतान की प्राप्ति अवश्य होगी।

यही मन में विचार कर उन्होंने शिव जो खुश करने के लिए घोर तप किया। और जो वो चाहते थे वो हुआ भगवान शंकर उनकी तपस्या से खुश हुए और उन्हें दर्शन दिए। जब उन्होंने मृकण्ड को वरदान मांगने के लिए कहा तो ऋषि ने पुत्र प्राप्ति का वरदान मांगा। भगवान शंकर ने उन्हें विधान के विपरीत जाकर उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दे डाला। लेकिन भगवान शंकर ने उसे चेतावनी देते हुए कहा कि इस खुशी के साथ-साथ दुख भी होगा।


मृकण्ड ऋषि ने फिर भी उनके वरदान को स्वीकार किया। भोले शंकर के वरदान से ऋषि को पुत्र प्राप्त हुआ जिनका उन्होंने मार्कण्डेय नाम रखा। ज्योतिषियों ने जब इस बालक की कुंडली देखी तो उन्होंने ऋषि और उनकी पत्नी को बताया कि ये विल्क्षण बालक अल्पायु है, यानि इसकी उम्र केवल 12 वर्ष है। इतना सुनते ही ऋषि की खुशी-दुख में बदल गई लेकिन उन्होंने धैर्य रखते हुए अपनी पत्नी को समझाया कि जिस भोलेनाथ ने हमें इन्हें वरदान के रूप में भेंट किया है वहीं इसकी रक्षा भी करेंगे।


धीरे-धीरे मार्कण्डेय ऋषि बड़े होने लगे, उन्होंने अपने पिता से शिवमंत्र की दीक्षा ग्रहण की। एक दिन उनकी माता ने दुखी होकर अपने पुत्र को बता दिया कि वे अल्पायु है। जब मार्कण्डेय ऋषि को ये पता चला कतो उन्होंने मन ही मन ये प्रण कर लिया कि वे अपने माता-पिता की सुख व खुशी के लिए भोलेनाथ से दीर्घाय का वरदान प्राप्त करेंगे।


इसके बाद उन्होंने एक मंत्र की रचना की और शिव मंदिर में बैठकर इस मंत्र का पाठ करने लगे। बता दें वो मंत्र है-&nbsp;<br>
"ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥"


जिस हम महामृत्युंजय मंत्र के नाम से जानते हैं।<br>


मान्यता है कि जब यमदूत उन्हें लेने आए तो बालक मार्कण्डेय भगवान शंकर की आराधना में मगन था। तो वो उनके अखंड जाप के संकल्प के पूरे होने की इंतज़ार करने लगे। लेकिन थोड़े देर बाद वे वापिस लौट आए और यमराज को बताया कि वे बालक तक पहुंचने का साहस नहीं कर पाए।


इस पर यमराज को क्रोध आ गया और कहा कि मृकण्ड के पुत्र को मैं स्वयं लेकर आऊंगा और उसे लाने के लिए निकल पड़े।


जब वह वहां पहुंचे तो बालक मार्कण्डेय जोर-जोर से महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते हुए शिवलिंग से लिपट गया।


यमराज ने उसे शिवलिंग से खींचकर ले जाने की कोशिश की तभी जोरदार हुंकार से मंदिर कांपने लगा और शिवलिंग से महाकाल प्रकट हो गए। उन्होंने क्रोधित होकर यमराज से कहा तुमने मेरी साधना में लीन भक्त को परेशान करने का साहस भी कैसे किया ?


जिसके बाद यमराज महाकाल क्रोध के डर से कांपने लगा उन्होंने कहा- प्रभु मैं आप का सेवक हूं और आपने ही जीवों से प्राण हरने का हक मुझ दिया है।


इतना सुनते ही भगवान का क्रोध थोड़ा शांत हो गया और तो बोले- कि हां तुम ठीक कह रहे हो लेकिन मैं अपने इस भक्त की स्तुति से बहुत प्रसन्न हूं और मैं इसे दीर्घायु होने का वरदान देता हूं। इसलिए तुम इसे नहीं ले जा सकते।


इसके बाद यम ने शंकर भगवान को प्रणाम करते हुए कहा प्रभु आपकी आज्ञा सर्वोपरि है। मैं आज क्या कभी भी आपके भक्त मार्कण्डेय द्वारा रचित महामृत्युंजय का पाठ करने वाले को त्रास नहीं दूंगा।


तो इस तह महाकाल की कृपा से मार्केण्डेय दीर्घायु हो गए और उन्होंने एक ऐसे मंत्र की रचनी की जिसका पाठ करने काल तक को भी हराया जा सकता है।
 

भावार्थ- हम भगवान शिवशंकर की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो संपूर्ण जगत का पालन पोषण अपनी कृपादृष्टि से कर रहे हैं। उनसे हमारी प्रार्थना है कि वह हमें मृत्यु के बंधनों से मुक्त कर दें। जिस प्रकार एक ककड़ी इस बेल रूपी संसार में पककर उसके बंधनों से मुक्त हो जाती है, उसी प्रकार हम भी इस संसार रूपी में पक जाएं और आपके चरणों की अमृतधारा का पान करते हुए शरीर को त्यागकर आपमें लीन हो जाएं।


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संपूर्ण महामृत्युंजय मंत्र


ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्&zwj;बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्&zwj;धनान् मृत्&zwj;योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ !! लघु मृत्युंजय मंत्र ॐ जूं स माम् पालय पालय स: जूं ॐ। Read More

ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्‍बकं
यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव
बन्‍धनान् मृत्‍योर्मुक्षीय मामृतात्
ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ !!

लघु मृत्युंजय मंत्र

ॐ जूं स माम् पालय पालय स: जूं ॐ।


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गणेश जी की सिद्धि के लिए श्री गणेश मंत्र


ॐ ग्लां ग्लीं ग्लूं गं गणपतये नम : सिद्धिं मे देहि बुद्धिंसिद्धि के लिए श्री गणेश मंत्र प्रकाशय ग्लूं गलीं ग्लां फट् स्वाहा|| विधि :- इस मंत्र का जप करने वाला साधक सफेद वस्त्र धारण कर सफेद रंग के आसन पर बैठकर पूर्ववत् नियम का पालन करते हुए इस मंत्र का सात हजार जप करे| जप के समय दूब, चावल, सफेद चन्दन सूजी का लड्डू आदि रखे तथा जप काल में कपूर की धूप जलाये तो यह मंत्र ,सर्व मंत्रों को सिद्ध करने की त... Read More

ॐ ग्लां ग्लीं ग्लूं गं गणपतये नम : सिद्धिं मे देहि बुद्धिंसिद्धि के लिए श्री गणेश मंत्र प्रकाशय ग्लूं गलीं ग्लां फट् स्वाहा||

विधि :-
इस मंत्र का जप करने वाला साधक सफेद वस्त्र धारण कर सफेद रंग के आसन पर बैठकर पूर्ववत् नियम का पालन करते हुए इस मंत्र का सात हजार जप करे| जप के समय दूब, चावल, सफेद चन्दन सूजी का लड्डू आदि रखे तथा जप काल में कपूर की धूप जलाये तो यह मंत्र ,सर्व मंत्रों को सिद्ध करने की ताकत (Power, शक्ति) प्रदान करता है|


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हनुमान दर्शन हेतु मंत्र


हाथ में लड्डू, मुख में पान| आओ आओ बाबा हनुमान| न आओ तो दुहाई महादेव गौरा -पार्वती की| शब्द साँचा| पिण्ड काँचा| फुरो मन्त्र इश्वरो वाचा|| विधि :- साधक इस मंत्र का अनुष्ठान मंगलवार या शनिवार से प्रारम्भ करें| श्री हनुमान विषयक नियम का पालन करते हुए सिन्दूर का चोला, जनेऊ, खड़ाऊँ, लंगोट, पाँच लड्डू एवं ध्वजा चढ़ावे और प्रत्येक मंगलवार को व्रत रखें| व्रत में एवं जप समय लाल वस्त्र धारण करें, लाल आसन पर... Read More

हाथ में लड्डू, मुख में पान| आओ आओ बाबा हनुमान| न आओ तो दुहाई महादेव गौरा -पार्वती की| शब्द साँचा|
पिण्ड काँचा| फुरो मन्त्र इश्वरो वाचा||

विधि :-
साधक इस मंत्र का अनुष्ठान मंगलवार या शनिवार से प्रारम्भ करें| श्री हनुमान विषयक नियम का पालन करते हुए सिन्दूर का चोला, जनेऊ, खड़ाऊँ, लंगोट, पाँच लड्डू एवं ध्वजा चढ़ावे और प्रत्येक मंगलवार को व्रत रखें| व्रत में एवं जप समय लाल वस्त्र धारण करें, लाल आसन पर बैठ लाल चन्दन की माला का उपयोग करें| प्रति शनिवार गुड़ और चने का वितरण करें तथा यह क्रिया तीन माह करते हुए प्रतिदिन दस मालायें जपें और पवित्रता का ध्यान रखें इससे पवन सुत प्रसन्न होकर दुर्शन देंगे| उस समय हनुमान जी से जो चाहे माँग लें|

मंत्रों के प्रयोग से बहुत ही व्यापक है इन साधनों का प्रयोग देवी देवताओं की सिद्धि से लेकर विभिन्न रोगों के निदान के लिए भी किया जाता है।


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