अहोई अष्टमी व्रत कथा
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अहोई अष्टमी का शुभ मुहूर्त :-
उदयातिथि के अनुसार, अहोई अष्टमी इस बार 5 नवंबर को मनाई जाएगी
तो पूजन मुहूर्त 5 नवंम्बर दिन रविवार को शाम 5 बजकर 33 मिनट से शाम 6 बजकर 52 मिनट तक रहेगा. इस दिन तारे दिखने का समय शाम 5 बजकर 58 मिनट रहेगा
इस बार की अहोई अष्टमी बेहद खास मानी जा रही है क्योंकि इस दिन रवि पुष्य योग सुबह 6 बजकर 36 मिनट से लेकर सुबह 10 बजकर 29 मिनट तक रहेगा. इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 6 बजकर 36 मिनट से लेकर सुबह 10 बजकर 29 मिनट तक रहेगा.
नियम और सावधानियां अहोई माता के व्रत में बिना स्नान किए पूजा-अर्चना ना करें. इस दिन महिलाओं को मिट्टी से जुड़े कार्य करने से बचना चाहिए. इस दिन काले,नीले या गहरे रंग के कपड़े बिल्कुल न पहनें. व्रत विधान के अनुसार, किसी भी जीव-जंतु को चोट ना पहुंचाएं और ना ही हरे-भरे वृक्षों को तोड़ें. अहोई के व्रत में पहले प्रयोग हुई पुजा सामग्री को दोवारा प्रयोग न करे.
व्रत की पूजन विधि
होई अष्टमी के दिन दोपहर के आसपास हाथ में गेहू के सात दाने और कुछ दक्षिणा को लेकर होई माता की कथा सुनें। फिर होई माता की आकृति गेरू या लाल रंग से दीवार पर बनाये। शाम को तारा निकलने पर माता के चित्र के साुमने जल से भरा कलश,दूध,चावल,हलवा,पुष्प और दीप ्प्रज्वलित करे. प्रथम माता को रोली , पुष्प ,दीप से पुजा करें। माता को दुध चावल अर्पित करे. फिर माता से अपनी संतान की दीर्घायु की मंगलकामना करें। उसके बाद चन्द्रमा को अर्ध्य देकर भोजन् करे।
॥ श्री गणेशाय नमः ॥ प्राचीन काल में किसी नगर में एक साहूकार रहता था। उसके सात लड़के थे। दीपावली से पहले साहूकार की स्त्री घर की लीपापोती हेतु मिट्टी लेने खदान में गई और कुदाल से मिट्टी खोदने लगी।
दैवयोग से उसी जगह एक सेह की मांद थी। सहसा उस स्त्री के हाथ से कुदाल बच्चे को लग गई जिससे सेह का बच्चा तत्काल मर गया। अपने हाथ से हुई हत्या को लेकर साहूकार की पत्नी को बहुत दुख हुआ परन्तु अब क्या हो सकता था! वह शोकाकुल पश्चाताप करती हुई अपने घर लौट आई।
कुछ दिनों बाद उसका बेटे का निधन हो गया। फिर अकस्मात् दूसरा, तीसरा और इस प्रकार वर्ष भर में उसके सभी बेटे मर गए। महिला अत्यंत व्यथित रहने लगी। एक दिन उसने अपने आस-पड़ोस की महिलाओं को विलाप करते हुए बताया कि उसने जानबूझ कर कभी कोई पाप नहीं किया। हाँ, एक बार खदान में मिट्टी खोदते हुए अंजाने में उसके हाथों एक सेह के बच्चे की हत्या अवश्य हुई है और तत्पश्चात उसके सातों बेटों की मृत्यु हो गई
यह सुनकर पास-पड़ोस की वृद्ध औरतों ने साहूकार की पत्नी को दिलासा देते हुए कहा कि यह बात बताकर तुमने जो पश्चाताप किया है उससे तुम्हारा आधा पाप नष्ट हो गया है। तुम उसी अष्टमी को भगवती माता की शरण लेकर सेह और सेह के बच्चों का चित्र बनाकर उनकी अराधना करो और क्षमा-याचना करो। ईश्वर की कृपा से तुम्हारा पाप धुल जाएगा।
साहूकार की पत्नी ने वृद्ध महिलाओं की बात मानकर कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को उपवास व पूजा-याचना की। वह हर वर्ष नियमित रूप से ऐसा करने लगी। तत्पश्चात् उसे सात पुत्र रत्नों की प्राप्ती हुई। तभी से अहोई व्रत की परम्परा प्रचलित हो गई।
अहोई माता की जय !
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