Blog by Sanjeev panday | Digital Diary
" To Present local Business identity in front of global market"
" To Present local Business identity in front of global market"
कंप्यूटर विज्ञान की वह आधारशिला (Foundation) है। यह किसी समस्या के समाधान के लिए स्पष्ट, सीमित और क्रमबद्ध निर्देशों (Clear, Finite & Sequential Instructions) का एक समूह है, जिसे कंप्यूटर या प्रोग्रामर द्वारा किसी विशिष्ट कार्य को पूरा करने के लिए (step-by-step) पालन किया जाता है।
मान लो तुम्हें कोई समस्या (problem) सुलझानी है। जैसे, "घर की मीठी केला की क्रीम (Banana Pudding) बनानी है।"
एल्गोरिदम वह कदम-दर-कदम योजना (step-by-step plan) या विधि है जो तुम समस्या सुलझाने से पहले बनाते हो।
यह कैसे बनता है? तुम सोचते हो कि शुरुआत (input - जैसे दूध, केला, चीनी) से लेकर अंत (output - स्वादिष्ट केला क्रीम) तक पहुँचने के लिए ठीक-ठीक कौन-कौन से कदम (steps) उठाने होंगे। इन सभी कदमों को सही क्रम (order) में लिखा जाता है।
इसे क्या कहते हैं? इस क्रमबद्ध लेखन को ही एल्गोरिदम कहा जाता है।
यह किस तरह का होता है? एल्गोरिदम असल में आम बोलचाल की भाषा (simple language) में लिखा गया प्रोग्राम (program) ही होता है।
बड़ी समस्या हो तो क्या करें? ज़रूरत पड़ने पर बड़े काम को छोटे-छोटे भागों (parts) में बाँट लिया जाता है। फिर हर एक छोटे भाग के लिए अलग एल्गोरिदम बनाया जाता है। आखिर में सभी छोटे एल्गोरिदम को जोड़कर एक बड़ा एल्गोरिदम बना लिया जाता है।
आसान शब्दों में: एल्गोरिदम किसी भी काम को करने का सही तरीका और सही क्रम है। यह एक रास्ता (path) है जो शुरुआत से अंत तक ले जाता है।
उदाहरण: चाय बनाने का एल्गोरिदम
Step 1. बर्तन में पानी डालो।
Step 2.बर्तन को चूल्हे पर रखो।
Step 3. चायपत्ती और चीनी डालो।
Step 4. पानी को उबलने दो।
Step 5. दूध डालो।
Step 6. फिर से उबालो।
Step 7. चाय को छानो।
Step 8. कप में डालो।
यह सारे कदम मिलकर "चाय बनाने का एल्गोरिदम" बन गए।
Examples (Real-World & Programming) :
उदाहरण 1: रियल-लाइफ - एटीएम से पैसे निकालना (Cash Withdrawal)
यह पूरा प्रक्रिया एक एल्गोरिदम है.
शुरू (START) -> एटीएम मशीन में अपना कार्ड डालो।
इनपुट: अपना पिन कोड (PIN code) डालो।
प्रक्रिया: बैंक के सर्वर से पिन कोड जांचो (verify करो)।
इनपुट: "नकद निकासी (Cash Withdrawal)" का विकल्प चुनो और राशि (amount) डालो।
प्रक्रिया: तुम्हारे खाते में पर्याप्त पैसे (sufficient balance) हैं या नहीं, यह जांचो।
प्रक्रिया: अगर पैसे हैं, तो एटीएम मशीन को नकद देने का संकेत (signal) भेजो।
आउटपुट: एटीएम मशीन पैसे निकाले और एक रसीद (receipt) दे।
बंद (STOP)।
उदाहरण 2: रियल-लाइफ - फोनबुक में नाम ढूंढना (Linear Search Algorithm)
शुरू (START) -> फोनबुक खोलो।
इनपुट: एक नाम लो (जैसे, "राहुल")।
प्रक्रिया: पहला पन्ना खोलो। पहला नाम देखो। अगर "राहुल" नहीं है, तो अगला नाम देखो।
प्रक्रिया: ऐसे ही आगे बढ़ते रहो जब तक "राहुल" नहीं मिल जाता या आखिरी पन्ना खत्म नहीं हो जाता।
आउटपुट: अगर नाम मिल गया तो फोन नंबर बता दो (सफलता)। नहीं तो "नाम नहीं मिला" बता दो (असफलता)।
बंद (STOP)।
उदाहरण 3: प्रोग्रामिंग - दो नंबरों में से बड़ा नंबर ढूंढना (Find Max)
स्यूडोकोड (एल्गोरिदम की भाषा):
text
शुरू (START) पहला नंबर लो, उसे 'a' नाम दो। दूसरा नंबर लो, उसे 'b' नाम दो। अगर (a > b) हो तो: छापो "सबसे बड़ा नंबर है: ", a वरना (ELSE): छापो "सबसे बड़ा नंबर है: ", b अगर खत्म (END IF) बंद (STOP)
असल प्रोग्राम (पायथन कोड):
python
a = int(input("पहला नंबर डालो: ")) b = int(input("दूसरा नंबर डालो: ")) अगर a > b: print("सबसे बड़ा नंबर है:", a) वरना: print("सबसे बड़ा नंबर है:", b)
उदाहरण 4: प्रोग्रामिंग - नंबर प्राइम है या नहीं जांचना (Check Prime)
एल्गोरिदम:
शुरू (START) -> एक नंबर n लो।
अगर n १ से छोटा है, तो यह प्राइम नहीं है। बंद (STOP) करो।
२ से लेकर n-१ तक के हर नंबर i से:
अगर n पूरी तरह i से विभाजित हो जाता है (यानी शेषफल ० बचता है), तो यह प्राइम नहीं है। बंद (STOP) करो।
अगर किसी से भी विभाजित नहीं हुआ, तो यह एक प्राइम नंबर है।
बंद (STOP)।
प्रोग्राम (पायथन कोड):
python
n = int(input("एक नंबर डालो: ")) # ० और १ प्राइम नहीं होते अगर n < 2: print(n, "प्राइम नंबर नहीं है।") वरना: है_प्राइम = सच (True) # २ से शुरू करके n/2 तक लूप चलाओ i = 2 जबतक i <= n//2: अगर n % i == 0: है_प्राइम = झूठ (False) break # लूप से बाहर निकलो i += 1 अगर है_प्राइम: print(n, "एक प्राइम नंबर है।") वरना: print(n, "प्राइम नंबर नहीं है।")
उदाहरण 5: एडवांस्ड - लिस्ट को क्रम से लगाना (Sorting Algorithm - Bubble Sort)
एल्गोरिदम:
शुरू (START) -> एक लिस्ट (सूची) लो।
लिस्ट के आखिरी तक जाओ।
लिस्ट के पहले एलिमेंट (अवयव) से शुरू करो। उसे अगले एलिमेंट से तुलना करो (compare करो)।
अगर पहला एलिमेंट बड़ा है, तो दोनों की अदला-बदली कर दो (swap कर do)।
अगले एलिमेंट पर जाओ। यह प्रक्रिया तब तक दोहराओ जब तक लिस्ट का अंत नहीं आ जाता।
यह पूरी प्रक्रिया (कदम २-५) तब तक दोहराओ जब तक पूरी लिस्ट क्रम से न लग जाए।
क्रम से लगी हुई लिस्ट (Sorted list) छापो।
बंद (STOP)।
ओपन-सोर्स (Open-Source) का मतलब है कि उस सॉफ्टवेयर का सोर्स कोड (Source Code) सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होता है, जिसे कोई भी देख, संशोधित (Modify) या डिस्ट्रिब्यूट (Distribute) कर सकता है।
फ्री या पेड: ज्यादातर ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर मुफ्त होते हैं (जैसे LibreOffice, Linux), लेकिन कुछ प्रीमियम फीचर्स के साथ भी आते हैं।
सोर्स कोड एक्सेस: डेवलपर्स इसे अपनी जरूरत के हिसाब से बदल सकते हैं।
कम्युनिटी द्वारा सपोर्ट: इसे वॉलंटियर्स और ऑर्गेनाइजेशन्स मिलकर डेवलप करते हैं।
ट्रांसपेरेंसी: कोई भी यूजर चेक कर सकता है कि सॉफ्टवेयर में कोई हैकिंग/स्पाइवेयर टूल तो नहीं छिपा है।
क्या ओपन-सोर्स (Open-Source) आइटम को बेचा जा सकता है? जी हाँ, लेकिन कुछ शर्तों के साथ!
ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर/प्रोडक्ट को बेचना संभव है, लेकिन यह उसके लाइसेंस (जैसे GPL, MIT, Apache आदि) पर निर्भर करता है। आइए विस्तार से समझते हैं:
मूल सोर्स कोड फ्री रहता है: आप ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर को बेच सकते हैं, लेकिन खरीदार को यह अधिकार होगा कि वह उसका सोर्स कोड मुफ्त में प्राप्त कर सके और उसे मॉडिफाई कर सके।
एड-ऑन सर्विसेज: अक्सर डेवलपर्स सपोर्ट, कस्टमाइजेशन, या हार्डवेयर के साथ सॉफ्टवेयर बेचकर पैसे कमाते हैं। उदाहरण:
कोई Linux OS को फ्री में डाउनलोड कर सकता है, लेकिन Red Hat जैसी कंपनियाँ उसके प्रोफेशनल सपोर्ट के लिए चार्ज करती हैं।
WordPress (ओपन-सोर्स) का इस्तेमाल करके वेबसाइट डिज़ाइन करने वाली एजेंसियाँ फीस लेती हैं।
लाइसेंस | क्या बेच सकते हैं? | शर्तें |
---|---|---|
GPL | हाँ | खरीदार को सोर्स कोड देना होगा, और वह भी इसे फिर से बेच/बाँट सकता है। |
MIT | हाँ | सिर्फ क्रेडिट (Credit) देना जरूरी है, बाकी कोई पाबंदी नहीं। |
Apache | हाँ | पेटेंट राइट्स का ध्यान रखना होता है। |
Creative Commons | हाँ/नहीं | यह डिपेंड करता है कि लाइसेंस कौन-सा है (CC-BY, CC-NC आदि)। |
सर्विसेज: इंस्टॉलेशन, ट्रेनिंग, या कस्टम डेवलपमेंट चार्ज करें।
प्रीमियम फीचर्स: फ्री वर्जन के साथ एडवांस्ड फीचर्स को पेड बनाएँ (जैसे GitHub Pro)।
डोनेशन/सब्सक्रिप्शन: यूजर्स से सपोर्ट के लिए पैसे लें (जैसे Blender ऐसा करता है)।
हार्डवेयर के साथ: Raspberry Pi जैसे डिवाइस ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर के साथ बेचे जाते हैं।
लाइसेंस की जाँच करें: कुछ लाइसेंस (जैसे AGPL) आपको सोर्स कोड सार्वजनिक करने को कह सकते हैं।
कॉपीराइट: ओपन-सोर्स का मतलब "कॉपीराइट-फ्री" नहीं है। अगर आप किसी के कोड का इस्तेमाल कर रहे हैं, तो उसके नियम मानने होंगे।
Red Hat → Linux की एंटरप्राइज सर्विसेज बेचती है।
Canonical → Ubuntu OS का सपोर्ट देकर पैसे कमाती है।
WordPress.com → होस्टिंग और प्रीमियम थीम्स बेचता है (जबकि WordPress.org फ्री है)।
ऑफिस सुइट एक सॉफ्टवेयर पैकेज होता है जिसमें कई प्रोडक्टिविटी टूल्स शामिल होते हैं, जैसे:
वर्ड प्रोसेसर (डॉक्युमेंट बनाने के लिए, जैसे LibreOffice Writer, MS Word)
स्प्रेडशीट प्रोग्राम (डेटा और कैलकुलेशन के लिए, जैसे LibreOffice Calc, MS Excel)
प्रेजेंटेशन सॉफ्टवेयर (स्लाइड्स बनाने के लिए, जैसे LibreOffice Impress, MS PowerPoint)
डेटाबेस मैनेजमेंट (जैसे LibreOffice Base, MS Access)
ड्रॉइंग/डायग्राम टूल (जैसे LibreOffice Draw)
LibreOffice – फ्री और ओपन-सोर्स (Writer, Calc, Impress, Base, Draw आदि के साथ)।
Microsoft Office – पेड सुइट (Word, Excel, PowerPoint, Outlook आदि)।
Google Workspace – क्लाउड-बेस्ड (Google Docs, Sheets, Slides)।
WPS Office – फ्री और प्रीमियम वर्जन उपलब्ध।
ऑफिस, स्कूल या घर पर डॉक्युमेंट्स, स्प्रेडशीट्स, प्रेजेंटेशन बनाने के लिए।
प्रोफेशनल काम (रिपोर्ट्स, इनवॉइस, डेटा एनालिसिस)।
टीम कॉलैबरेशन (Google Docs जैसे टूल्स में)।
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LibreOffice एक फ्री और ओपन-सोर्स ऑफिस सुइट है, जिसका उपयोग डॉक्युमेंट्स, स्प्रेडशीट्स, प्रेजेंटेशन्स, ड्रॉइंग्स और डेटाबेस बनाने के लिए किया जाता है। यह Microsoft Office (जैसे Word, Excel) का एक शक्तिशाली विकल्प है और Windows, macOS, Linux पर चलता है।
LibreOffice का पहला स्टेबल संस्करण 25 जनवरी 2011 को The Document Foundation द्वारा जारी किया गया। यह एक निःशुल्क ओपन-सोर्स ऑफिस सुइट है, जो मुख्य रूप से C++ में विकसित की गई है और इसमें Python व Java का सीमित उपयोग होता है।"
Writer – वर्ड प्रोसेसिंग (MS Word जैसा)।
Calc – स्प्रेडशीट (MS Excel जैसा)।
Impress – प्रेजेंटेशन्स (MS PowerPoint जैसा)।
Draw – डायग्राम और फ्लोचार्ट बनाने के लिए।
Base – डेटाबेस मैनेजमेंट (MS Access जैसा)।
Math – फॉर्मूला और इक्वेशन एडिटर।
✔ मुफ्त और ओपन-सोर्स: कोई लाइसेंस फी नहीं, सोर्स कोड को कोई भी मॉडिफाई कर सकता है। ✔ क्रॉस-प्लेटफॉर्म: Windows, Mac, Linux सभी पर चलता है। ✔ फाइल फॉर्मेट सपोर्ट:
Microsoft Office फाइल्स (.docx, .xlsx, .pptx) को खोल और सेव कर सकता है।
PDF एक्सपोर्ट की सुविधा (बिना अतिरिक्त सॉफ्टवेयर के)। ✔ भाषा सपोर्ट: हिंदी सहित 100+ भाषाओं में उपलब्ध। ✔ एडवांस्ड फीचर्स:
PDF एडिटिंग, चार्ट्स, मैक्रोस, और प्लगइन्स का सपोर्ट।
ऑफिशियल वेबसाइट पर जाएँ: https://www.libreoffice.org/
अपने ऑपरेटिंग सिस्टम (Windows/macOS/Linux) के लिए वर्जन चुनें।
डाउनलोड करके इंस्टॉल करें।
सरकारी संस्थान: भारत सहित कई देशों में सरकारी कार्यालयों में उपयोग।
शिक्षा: स्कूल-कॉलेजों में मुफ्त ऑफिस सॉफ्टवेयर के रूप में।
छोटे व्यवसाय: लागत बचाने के लिए।
क्या आप जानते हैं?
LibreOffice, OpenOffice का फोर्क (Fork) है, जिसे 2010 में बेहतर विकास के लिए अलग किया गया।
इसे The Document Foundation द्वारा मेन्टेन किया जाता है।
LibreOffice एक फ्री और ओपन-सोर्स ऑफिस सुइट है, जिसका इतिहास 1980 के दशक से जुड़ा है। यह StarOffice और OpenOffice.org से विकसित हुआ है। आइए इसकी पूरी कहानी समझते हैं:
1985: जर्मन कंपनी StarDivision ने StarOffice लॉन्च किया, जो एक प्रोप्राइटरी ऑफिस सुइट था।
1999: सन माइक्रोसिस्टम्स (Sun Microsystems) ने StarDivision को खरीदा और StarOffice को मुफ्त में बांटना शुरू किया।
2000: सन माइक्रोसिस्टम्स ने StarOffice का कोड ओपन-सोर्स कर दिया और इसे OpenOffice.org (OOo) नाम दिया।
2000s: OpenOffice.org लोकप्रिय हुआ, लेकिन सन माइक्रोसिस्टम्स के अधिग्रहण (Oracle द्वारा, 2010) के बाद, डेवलपर्स को डर हुआ कि Oracle प्रोजेक्ट को बंद कर देगा।
सितंबर 2010: Oracle के नियंत्रण से नाखुश होकर, कुछ डेवलपर्स ने The Document Foundation बनाया और OpenOffice.org का फोर्क (Fork) करके LibreOffice लॉन्च किया।
जनवरी 2011: LibreOffice का पहला स्टेबल वर्जन (3.3) रिलीज़ हुआ।
2011 के बाद: बड़ी कंपनियों (जैसे Red Hat, Google, Canonical) और कम्युनिटी ने LibreOffice को सपोर्ट देना शुरू किया।
2015 तक: LibreOffice, OpenOffice.org से ज्यादा पॉपुलर हो गया और आज दुनिया का सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला ओपन-सोर्स ऑफिस सुइट है।
LibreOffice में 6 मुख्य टूल्स हैं, जिनका उपयोग और कार्य निम्नलिखित हैं:
उपयोग: डॉक्युमेंट बनाने (रिपोर्ट, लेटर, रिज्यूमे)।
फीचर्स:
टेबल, इमेज, हाइपरलिंक इंसर्ट करना।
PDF एक्सपोर्ट और एडिटिंग।
मल्टीपल पेज फॉर्मेटिंग।
उपयोग: स्प्रेडशीट (डेटा एनालिसिस, बजट, कैलकुलेशन)।
फीचर्स:
फॉर्मूला, चार्ट्स, पिवट टेबल।
CSV/Excel फाइल्स सपोर्ट।
उपयोग: प्रेजेंटेशन (स्लाइडशो)।
फीचर्स:
एनिमेशन, ट्रांजिशन इफेक्ट्स।
PowerPoint (.pptx) कम्पैटिबिलिटी।
उपयोग: डायग्राम, फ्लोचार्ट, पोस्टर डिज़ाइन।
फीचर्स:
वेक्टर ग्राफिक्स एडिटिंग।
PDF और SVG एक्सपोर्ट।
उपयोग: डेटाबेस मैनेजमेंट (रिकॉर्ड्स स्टोर करना)।
फीचर्स:
SQL क्वेरीज़, फॉर्म्स, रिपोर्ट्स।
MySQL, PostgreSQL से कनेक्टिविटी।
उपयोग: मैथेमेटिकल इक्वेशन्स बनाना।
फीचर्स:
साइंटिफिक नोटेशन सपोर्ट।
डॉक्युमेंट्स में इक्वेशन्स एम्बेड करना।
PDF एडिटिंग: Writer से सीधे PDF एडिट करें।
मल्टीपल लैंग्वेज: हिंदी सहित 100+ भाषाओं में उपलब्ध।
एक्सटेंशन्स: टूल्स को और बेहतर बनाने के लिए ऐड-ऑन इंस्टॉल करें।
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परिभाषा (Definition): डिजिटल डॉक्युमेंटेशन का मतलब है किसी भी जानकारी, दस्तावेज़ या रिकॉर्ड को डिजिटल फॉर्मेट (कंप्यूटर, मोबाइल या क्लाउड स्टोरेज) में बनाना, स्टोर करना और मैनेज करना। यह पेपर-बेस्ड दस्तावेज़ों का डिजिटल वर्जन होता है, जिसे आसानी से एडिट, शेयर और सर्च किया जा सकता है।
ईमेल (Email) – कोई ऑफिशियल मेल या पत्र डिजिटल रूप में भेजना।
PDF/Word फाइल्स – रिपोर्ट्स, कॉन्ट्रैक्ट या प्रेजेंटेशन को PDF या DOC फॉर्मेट में सेव करना।
गूगल डॉक्स (Google Docs) – ऑनलाइन डॉक्युमेंट बनाना और टीम के साथ शेयर करना।
स्कैन किए हुए दस्तावेज़ – Aadhaar Card, PAN Card को स्कैन करके कंप्यूटर में सेव करना।
ई-साइन (Digital Signature) – डिजिटल हस्ताक्षर से कानूनी दस्तावेज़ों को वैलिड करना।
✅ पेपरलेस वर्क – कागज की बचत होती है। ✅ आसान एक्सेस – कहीं से भी, किसी भी डिवाइस से ओपन किया जा सकता है। ✅ सुरक्षित (Secure) – पासवर्ड या एन्क्रिप्शन से प्रोटेक्ट किया जा सकता है। ✅ क्विक सर्च – कीवर्ड डालकर जरूरी जानकारी ढूंढना आसान होता है।
पहले कंप्यूटर और मॉडर्न सॉफ्टवेयर नहीं होते थे, फिर भी लोग कुछ हद तक "डिजिटल" या इलेक्ट्रॉनिक तरीके से दस्तावेज़ बनाते थे। यहाँ कुछ पुराने तरीके बताए गए हैं:
कैसे काम करता था?
मैनुअल कीबोर्ड से टेक्स्ट पेपर पर प्रिंट होता था।
कोई एडिटिंग नहीं हो सकती थी-गलती होने पर पूरा पेज दोबारा टाइप करना पड़ता था।
डिजिटल कनेक्शन?
1970s के बाद इलेक्ट्रिक टाइपराइटर आए, जिन्हें कंप्यूटर से जोड़ा जा सकता था।
कैसे काम करता था?
टेलीग्राफ लाइन्स के जरिए टेक्स्ट मैसेज एक जगह से दूसरी जगह भेजा जाता था।
बैंक, समाचार एजेंसियाँ और सरकारी दफ्तर इस्तेमाल करते थे।
डिजिटल कनेक्शन?
यह पहला "डिजिटल कम्युनिकेशन" सिस्टम था, जिसमें डेटा इलेक्ट्रॉनिक फॉर्मेट में ट्रांसफर होता था।
कैसे काम करता था?
कागज के कार्ड्स में छेद (होल्स) करके डेटा स्टोर किया जाता था।
कंप्यूटर (जैसे IBM मशीनें) इन कार्ड्स को पढ़कर डेटा प्रोसेस करती थीं।
डिजिटल कनेक्शन?
यह कच्चा (primitive) डिजिटल स्टोरेज था, जिससे प्रोग्रामिंग और डेटा एंट्री होती थी।
कैसे काम करता था?
डॉक्युमेंट्स को फ्लॉपी (1.44 MB!) या टेप पर सेव किया जाता था।
धीमा और लिमिटेड स्टोरेज होता था।
डिजिटल कनेक्शन?
यह पहली बार था जब डॉक्युमेंट्स को पोर्टेबल डिजिटल फॉर्मेट में सेव किया जा सकता था।
कैसे काम करता था?
ये टाइपराइटर जैसी मशीनें थीं, लेकिन इनमें सिंपल स्क्रीन और मेमोरी होती थी।
टेक्स्ट एडिट करके सेव किया जा सकता था।
डिजिटल कनेक्शन?
ये आधुनिक कंप्यूटरों के वर्ड प्रोसेसिंग सॉफ्टवेयर (जैसे MS Word) के पूर्वज थे।
जेरॉक्स (Xerox) मुख्य रूप से फोटोकॉपी मशीनों और प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन इसने टाइपराइटर भी बनाए थे। हालाँकि, Xerox ने कभी अपने खुद के ब्रांडेड टाइपराइटर नहीं बनाए, लेकिन उसने इलेक्ट्रॉनिक वर्ड प्रोसेसिंग सिस्टम (जो टाइपराइटर का ही एडवांस वर्जन था) विकसित किए थे।
Xerox ने "Xerox Memorywriter" नामक इलेक्ट्रॉनिक टाइपराइटर/वर्ड प्रोसेसर बनाया, जिसमें:
स्क्रीन (Display): छोटा LCD स्क्रीन होता था, जिससे टेक्स्ट एडिट किया जा सकता था।
मेमोरी (Memory): कुछ लाइन्स का टेक्स्ट सेव कर सकता था।
प्रिंटिंग: डॉट मैट्रिक्स प्रिंटर की तरह काम करता था।
Xerox ने "Xerox Star" कंप्यूटर सिस्टम बनाया, जिसमें:
ग्राफिकल यूजर इंटरफेस (GUI) था (जैसे आज के Windows/Mac)।
माउस और आइकन-बेस्ड ऑपरेशन का इस्तेमाल होता था।
यह टाइपराइटर नहीं था, लेकिन इसने मॉडर्न डिजिटल डॉक्युमेंटेशन की नींव रखी।
Xerox ने IBM Selectric टाइपराइटर जैसी मशीनों से प्रतिस्पर्धा की।
1980s के बाद, पर्सनल कंप्यूटर (PC) और वर्ड प्रोसेसिंग सॉफ्टवेयर (जैसे MS Word) के आने से टाइपराइटर धीरे-धीरे खत्म हो गए।
✔ इलेक्ट्रॉनिक कीबोर्ड – मैकेनिकल टाइपराइटर से बेहतर। ✔ टेक्स्ट एडिट करने की सुविधा – पेपर पर सीधे प्रिंट करने से पहले एडिट किया जा सकता था। ✔ डिजिटल स्टोरेज – फ्लॉपी डिस्क या मेमोरी में डॉक्युमेंट सेव कर सकते थे।
I want to Hire a Professional..
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