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माँ भुवनेश्वरी कवच


|| माँ भुवनेश्वरी कवच || ह्रीं बीजं मे शिर: पातु भुवनेश्वरी ललाटकम् । ऐं पातु दक्षनेत्रं मे ह्रीं पातु वामलोचनम् ।। श्रीं पातु दक्षकणर्ण मे त्रिवर्णात्मा महेश्वरी । वामकर्ण सदा पातु ऐं घ्राणं पातु मे सदा ।। ह्रीं पातु वदनं देवी ऐं पातु रसनां मम । श्रीं स्कन्धौ पातु नियतं ह्रीं भुजौ पातु सर्वदा ।। क्लीं करौ त्रिपुरेशानी त्रिपुरैश्वर्यदायिनी।। ॐ पातु ह्रदयं ह्रीं मे मध्यदेशं सदाऽवतु । क्री पातु नाभि... Read More

|| माँ भुवनेश्वरी कवच ||

ह्रीं बीजं मे शिर: पातु भुवनेश्वरी ललाटकम् ।

ऐं पातु दक्षनेत्रं मे ह्रीं पातु वामलोचनम् ।।

श्रीं पातु दक्षकणर्ण मे त्रिवर्णात्मा महेश्वरी ।

वामकर्ण सदा पातु ऐं घ्राणं पातु मे सदा ।।

ह्रीं पातु वदनं देवी ऐं पातु रसनां मम ।

श्रीं स्कन्धौ पातु नियतं ह्रीं भुजौ पातु सर्वदा ।।

क्लीं करौ त्रिपुरेशानी त्रिपुरैश्वर्यदायिनी।।

ॐ पातु ह्रदयं ह्रीं मे मध्यदेशं सदाऽवतु ।

क्री पातु नाभिदेशं सा त्र्यक्षरी भुवनेश्वरी ।।

सर्वबीजप्रदा पृष्ठं पातु सर्ववशंकरी ।

ह्रीं पातु गुदे शं मे नमो भगवती कटिम् ।।

माहेश्वरी सदा पातु सक्थिनी जानुयुग्मकम् ।

अन्नपूर्णा सदा पातु स्वाहा पातु पदद्वयम् ।।

सप्तदशाक्षरी पायाद्न्नपूर्णात्मिका परा ।

तारं माया रमा काम: षोडशार्णा तत: परम् ।।

शिरस्स्था सर्वदा पातु विंशत्यर्नात्मिका परा ।

तारदुर्गे युगं रक्षिणी स्वाहेति दशाक्षरी ।।

जयदुर्गा धनश्यामा पातु मां पूर्वतो मुदा ।

मायावीजादिका चैषा दशार्णा च परा तथा ।।

उत्तप्तकांचनाभासा जयदुर्गाननेऽवतु ।

तारं ह्रीं दुं दुर्गायै नमोऽष्टार्णात्मिका परा ।।

शंखचक्रधनुर्बाणधरा मां दक्षिणेऽवतु ।

महिषामर्दिनी स्वाहा वसुवर्णात्मिका परा ।।

नैऋत्यां सर्वदा पातु महिषासुरनाशिनी ।

माया पद्धावती स्वाहा सप्तार्ना परिकीर्तिता ।।

पद्धावती पद्धसंस्था पश्चिमे मां सदावतु ।

पाशानकुशपुटा माये हि परमेश्वरि स्वाहा ।।

त्रयोदशार्णा भुवनेश्वरीधया अश्वारुढ़ाननेवतु ।

सरस्वती पञ्चशरे नित्यक्लिन्ने मदद्रवे ।।

स्वाहा रव्यक्षरी विद्या मामुत्तरे सदावतु ।

तारं माया तु कवचं खं रक्षेत् सदा वधू: ।।

हूँ क्षे फट् महाविद्या द्वाद्शार्णाखिलप्रदा ।

त्वरिताष्टाहिभि: पायाच्छिवकोणे सदा च माम् ।।

ऐं क्लीं सौ: सा ततो वाला मामूधर्वदेशतोऽवतु ।

बिन्द्वन्ता भैरवी बाला भूमौ च मां सदावतु ।।


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माँ मातंगी कवच


|| माँ मातंगी कवच || श्री देव्युवाच साधु-साधु महादेव। कथयस्व सुरेश्वर। मातंगी-कवचं दिव्यं, सर्व-सिद्धि-करं नृणाम् ॥ श्री ईश्वर उवाच श्रृणु देवि। प्रवक्ष्यामि, मातंगी-कवचं शुभं। गोपनीयं महा-देवि। मौनी जापं समाचरेत् ॥ विनियोग – ॐ अस्य श्रीमातंगी-कवचस्य श्री दक्षिणा-मूर्तिः ऋषिः । विराट् छन्दः । श्रीमातंगी देवता । चतुर्वर्ग-सिद्धये जपे विनियोगः । ऋष्यादि-न्यास श्री दक्षिणा-मूर्तिः ऋषये नमः शिरस... Read More

|| माँ मातंगी कवच ||

श्री देव्युवाच

साधु-साधु महादेव। कथयस्व सुरेश्वर।

मातंगी-कवचं दिव्यं, सर्व-सिद्धि-करं नृणाम् ॥

श्री ईश्वर उवाच

श्रृणु देवि। प्रवक्ष्यामि, मातंगी-कवचं शुभं।

गोपनीयं महा-देवि। मौनी जापं समाचरेत् ॥

विनियोग –

ॐ अस्य श्रीमातंगी-कवचस्य श्री दक्षिणा-मूर्तिः ऋषिः ।

विराट् छन्दः । श्रीमातंगी देवता । चतुर्वर्ग-सिद्धये जपे विनियोगः ।

ऋष्यादि-न्यास

श्री दक्षिणा-मूर्तिः ऋषये नमः शिरसि ।

विराट् छन्दसे नमः मुखे ।

श्रीमातंगी देवतायै नमः हृदि ।

चतुर्वर्ग-सिद्धये जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।

मूल कवच-स्तोत्र

ॐ शिरो मातंगिनी पातु, भुवनेशी तु चक्षुषी ।

तोडला कर्ण-युगलं, त्रिपुरा वदनं मम ॥

पातु कण्ठे महा-माया, हृदि माहेश्वरी तथा ।

त्रि-पुष्पा पार्श्वयोः पातु, गुदे कामेश्वरी मम ॥

ऊरु-द्वये तथा चण्डी, जंघयोश्च हर-प्रिया ।

महा-माया माद-युग्मे, सर्वांगेषु कुलेश्वरी ॥

अंग प्रत्यंगकं चैव, सदा रक्षतु वैष्णवी ।

ब्रह्म-रन्घ्रे सदा रक्षेन्, मातंगी नाम-संस्थिता ॥

रक्षेन्नित्यं ललाटे सा, महा-पिशाचिनीति च ।

नेत्रयोः सुमुखी रक्षेत्, देवी रक्षतु नासिकाम् ॥

महा-पिशाचिनी पायान्मुखे रक्षतु सर्वदा ।

लज्जा रक्षतु मां दन्तान्, चोष्ठौ सम्मार्जनी-करा ॥

चिबुके कण्ठ-देशे च, ठ-कार-त्रितयं पुनः ।

स-विसर्ग महा-देवि । हृदयं पातु सर्वदा ॥

नाभि रक्षतु मां लोला, कालिकाऽवत् लोचने ।

उदरे पातु चामुण्डा, लिंगे कात्यायनी तथा ॥

उग्र-तारा गुदे पातु, पादौ रक्षतु चाम्बिका ।

भुजौ रक्षतु शर्वाणी, हृदयं चण्ड-भूषणा ॥

जिह्वायां मातृका रक्षेत्, पूर्वे रक्षतु पुष्टिका ।

विजया दक्षिणे पातु, मेधा रक्षतु वारुणे ॥

नैर्ऋत्यां सु-दया रक्षेत्, वायव्यां पातु लक्ष्मणा ।

ऐशान्यां रक्षेन्मां देवी, मातंगी शुभकारिणी ॥

रक्षेत् सुरेशी चाग्नेये, बगला पातु चोत्तरे ।

ऊर्घ्वं पातु महा-देवि । देवानां हित-कारिणी ॥

पाताले पातु मां नित्यं, वशिनी विश्व-रुपिणी ।

प्रणवं च ततो माया, काम-वीजं च कूर्चकं ॥

मातंगिनी ङे-युताऽस्त्रं, वह्नि-जायाऽवधिर्पुनः ।

सार्द्धेकादश-वर्णा सा, सर्वत्र पातु मां सदा ॥

फल-श्रुति

इति ते कथितं देवि । गुह्यात् गुह्य-तरं परमं ।

त्रैलोक्य-मंगलं नाम, कवचं देव-दुर्लभम् ॥

यः इदं प्रपठेत् नित्यं, जायते सम्पदालयं ।

परमैश्वर्यमतुलं, प्राप्नुयान्नात्र संशयः ॥

गुरुमभ्यर्च्य विधि-वत्, कवचं प्रपठेद् यदि ।

ऐश्वर्यं सु-कवित्वं च, वाक्-सिद्धिं लभते ध्रुवम् ॥

नित्यं तस्य तु मातंगी, महिला मंगलं चरेत् ।

ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च, ये देवा सुर-सत्तमाः ॥

ब्रह्म-राक्षस-वेतालाः, ग्रहाद्या भूत-जातयः ।

तं दृष्ट्वा साधकं देवि । लज्जा-युक्ता भवन्ति ते ॥

कवचं धारयेद् यस्तु, सर्वां सिद्धि लभेद् ध्रुवं ।

राजानोऽपि च दासत्वं, षट्-कर्माणि च साधयेत् ॥

सिद्धो भवति सर्वत्र, किमन्यैर्बहु-भाषितैः ।

इदं कवचमज्ञात्वा, मातंगीं यो भजेन्नरः ॥

झल्पायुर्निधनो मूर्खो, भवत्येव न संशयः ।

गुरौ भक्तिः सदा कार्या, कवचे च दृढा मतिः ॥


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कात्यायनी देवी कवच


|| माता कात्यायनी देवी कवच || कात्यायनौमुख पातुकां कां स्वाहास्वरूपणी। ललाटेविजया पातुपातुमालिनी नित्य सुंदरी॥ कल्याणी हृदयंपातुजया भगमालिनी॥ Read More

|| माता कात्यायनी देवी कवच ||

कात्यायनौमुख पातुकां कां स्वाहास्वरूपणी।

ललाटेविजया पातुपातुमालिनी नित्य सुंदरी॥

कल्याणी हृदयंपातुजया भगमालिनी॥


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कालरात्रि देवी कवच


|| माता कालरात्रि देवी कवच || ॐ क्लींमें हदयंपातुपादौश्रींकालरात्रि। ललाटेसततंपातुदुष्टग्रहनिवारिणी॥ रसनांपातुकौमारी भैरवी चक्षुणोर्मम कहौपृष्ठेमहेशानीकर्णोशंकरभामिनी। वíजतानितुस्थानाभियानिचकवचेनहि। तानिसर्वाणिमें देवी सततंपातुस्तम्भिनी॥ Read More

|| माता कालरात्रि देवी कवच ||

ॐ क्लींमें हदयंपातुपादौश्रींकालरात्रि।

ललाटेसततंपातुदुष्टग्रहनिवारिणी॥

रसनांपातुकौमारी भैरवी चक्षुणोर्मम

कहौपृष्ठेमहेशानीकर्णोशंकरभामिनी।

वíजतानितुस्थानाभियानिचकवचेनहि।

तानिसर्वाणिमें देवी सततंपातुस्तम्भिनी॥


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माता कुष्मांडा देवी कवच


|| माता कुष्मांडा देवी कवच || हसरै मे शिर: पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम्। हसलकरीं नेत्रथ, हसरौश्च ललाटकम्॥ कौमारी पातु सर्वगात्रे वाराही उत्तरे तथा। पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम। दिग्दिध सर्वत्रैव कूं बीजं सर्वदावतु॥ Read More

|| माता कुष्मांडा देवी कवच ||

हसरै मे शिर: पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम्।

हसलकरीं नेत्रथ, हसरौश्च ललाटकम्॥

कौमारी पातु सर्वगात्रे वाराही उत्तरे तथा।

पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम।

दिग्दिध सर्वत्रैव कूं बीजं सर्वदावतु॥


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ब्रह्मचारिणी देवी कवच


|| माता ब्रह्मचारिणी देवी कवच || त्रिपुरा में हृदयेपातुललाटेपातुशंकरभामिनी। अर्पणासदापातुनेत्रोअर्धरोचकपोलो॥ पंचदशीकण्ठेपातुमध्यदेशेपातुमहेश्वरी॥ षोडशीसदापातुनाभोगृहोचपादयो। अंग प्रत्यंग सतत पातुब्रह्मचारिणी॥ Read More

|| माता ब्रह्मचारिणी देवी कवच ||

त्रिपुरा में हृदयेपातुललाटेपातुशंकरभामिनी।

अर्पणासदापातुनेत्रोअर्धरोचकपोलो॥

पंचदशीकण्ठेपातुमध्यदेशेपातुमहेश्वरी॥

षोडशीसदापातुनाभोगृहोचपादयो।

अंग प्रत्यंग सतत पातुब्रह्मचारिणी॥


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महागौरी देवी कवच


|| माता महागौरी देवी कवच || || कवच ||   ओंकार: पातुशीर्षोमां, हीं बीजंमां हृदयो। क्लींबीजंसदापातुनभोगृहोचपादयो॥ ललाट कर्णो,हूं, बीजंपात महागौरीमां नेत्र घ्राणों। कपोल चिबुकोफट् पातुस्वाहा मां सर्ववदनो॥ Read More

|| माता महागौरी देवी कवच ||

|| कवच ||

 

ओंकार: पातुशीर्षोमां, हीं बीजंमां हृदयो।

क्लींबीजंसदापातुनभोगृहोचपादयो॥

ललाट कर्णो,हूं, बीजंपात महागौरीमां नेत्र घ्राणों।

कपोल चिबुकोफट् पातुस्वाहा मां सर्ववदनो॥


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माता शैलपुत्री देवी कवच


|| माता शैलपुत्री देवी कवच || ओमकार:में शिर: पातुमूलाधार निवासिनी। हींकार,पातुललाटेबीजरूपामहेश्वरी॥ श्रीकार:पातुवदनेलज्जारूपामहेश्वरी। हूंकार:पातुहृदयेतारिणी शक्ति स्वघृत॥ फट्कार:पातुसर्वागेसर्व सिद्धि फलप्रदा। Read More

|| माता शैलपुत्री देवी कवच ||

ओमकार:में शिर: पातुमूलाधार निवासिनी।

हींकार,पातुललाटेबीजरूपामहेश्वरी॥

श्रीकार:पातुवदनेलज्जारूपामहेश्वरी।

हूंकार:पातुहृदयेतारिणी शक्ति स्वघृत॥

फट्कार:पातुसर्वागेसर्व सिद्धि फलप्रदा।


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श्री वैष्णो देवी चालीसा


श्री वैष्णो देवी चालीसा  ॥ दोहा॥ गरुड़ वाहिनी वैष्णवी त्रिकुटा पर्वत धाम काली, लक्ष्मी, सरस्वती, शक्ति तुम्हें प्रणाम ॥ चौपाई ॥ नमो: नमो: वैष्णो वरदानी, कलि काल मे शुभ कल्याणी। मणि पर्वत पर ज्योति तुम्हारी, पिंडी रूप में हो अवतारी॥ देवी देवता अंश दियो है, रत्नाकर घर जन्म लियो है। करी तपस्या राम को पाऊँ, त्रेता की शक्ति कहलाऊँ॥ कहा राम मणि पर्वत जाओ, कलियुग की देवी कहलाओ। विष्णु रूप से कल्कि ब... Read More

श्री वैष्णो देवी चालीसा 

॥ दोहा॥
गरुड़ वाहिनी वैष्णवी
त्रिकुटा पर्वत धाम
काली, लक्ष्मी, सरस्वती,
शक्ति तुम्हें प्रणाम

॥ चौपाई ॥
नमो: नमो: वैष्णो वरदानी,
कलि काल मे शुभ कल्याणी।
मणि पर्वत पर ज्योति तुम्हारी,
पिंडी रूप में हो अवतारी॥
देवी देवता अंश दियो है,
रत्नाकर घर जन्म लियो है।
करी तपस्या राम को पाऊँ,
त्रेता की शक्ति कहलाऊँ॥
कहा राम मणि पर्वत जाओ,
कलियुग की देवी कहलाओ।
विष्णु रूप से कल्कि बनकर,
लूंगा शक्ति रूप बदलकर॥
तब तक त्रिकुटा घाटी जाओ,
गुफा अंधेरी जाकर पाओ।
काली-लक्ष्मी-सरस्वती माँ,
करेंगी पोषण पार्वती माँ॥
ब्रह्मा, विष्णु, शंकर द्वारे,
हनुमत, भैरों प्रहरी प्यारे।
रिद्धि, सिद्धि चंवर डुलावें,
कलियुग-वासी पूजत आवें॥
पान सुपारी ध्वजा नारीयल,
चरणामृत चरणों का निर्मल।
दिया फलित वर मॉ मुस्काई,
करन तपस्या पर्वत आई॥
कलि कालकी भड़की ज्वाला,
इक दिन अपना रूप निकाला।
कन्या बन नगरोटा आई,
योगी भैरों दिया दिखाई॥
रूप देख सुंदर ललचाया,
पीछे-पीछे भागा आया।
कन्याओं के साथ मिली मॉ,
कौल-कंदौली तभी चली मॉ॥
देवा माई दर्शन दीना,
पवन रूप हो गई प्रवीणा।
नवरात्रों में लीला रचाई,
भक्त श्रीधर के घर आई॥
योगिन को भण्डारा दीनी,
सबने रूचिकर भोजन कीना।
मांस, मदिरा भैरों मांगी,
रूप पवन कर इच्छा त्यागी॥
बाण मारकर गंगा निकली,
पर्वत भागी हो मतवाली।
चरण रखे आ एक शीला जब,
चरण-पादुका नाम पड़ा तब॥
पीछे भैरों था बलकारी,
चोटी गुफा में जाय पधारी।
नौ मह तक किया निवासा,
चली फोड़कर किया प्रकाशा॥
आद्या शक्ति-ब्रह्म कुमारी,
कहलाई माँ आद कुंवारी।
गुफा द्वार पहुँची मुस्काई,
लांगुर वीर ने आज्ञा पाई॥
भागा-भागा भैंरो आया,
रक्षा हित निज शस्त्र चलाया।
पड़ा शीश जा पर्वत ऊपर,
किया क्षमा जा दिया उसे वर॥
अपने संग में पुजवाऊंगी,
भैंरो घाटी बनवाऊंगी।
पहले मेरा दर्शन होगा,
पीछे तेरा सुमिरन होगा॥
बैठ गई माँ पिण्डी होकर,
चरणों में बहता जल झर झर।
चौंसठ योगिनी-भैंरो बर्वत,
सप्तऋषि आ करते सुमरन॥
घंटा ध्वनि पर्वत पर बाजे,
गुफा निराली सुंदर लागे।
भक्त श्रीधर पूजन कीन,
भक्ति सेवा का वर लीन॥
सेवक ध्यानूं तुमको ध्याना,
ध्वजा व चोला आन चढ़ाया।
सिंह सदा दर पहरा देता,
पंजा शेर का दु:ख हर लेता॥
जम्बू द्वीप महाराज मनाया,
सर सोने का छत्र चढ़ाया ।
हीरे की मूरत संग प्यारी,
जगे अखण्ड इक जोत तुम्हारी॥
आश्विन चैत्र नवरात्रे आऊँ,
पिण्डी रानी दर्शन पाऊँ।
सेवक' कमल' शरण तिहारी,
हरो वैष्णो विपत हमारी॥

॥ दोहा ॥
कलियुग में महिमा तेरी,
है माँ अपरंपार
धर्म की हानि हो रही,
प्रगट हो अवतार
॥ इति श्री वैष्णो देवी चालीसा ॥

 

 

卐 Shree Vaishno Devi Chalisa 卐
॥ Doha॥
Garud Vaahini Vaishnavi
Trikuta Parvat Dhaam
Kali.Lakshami,Saraswati,
Shakti Tumhe Pranaam

॥ Chaupaai॥
Namoh Namoh Baishno Vardaani
Kali Kaal Me Shubh Kalyaani.
Mani Parvat Par Jyoti Tumhaari
Pindi Roop Me Ho Avataari.
Devi Devataa Ansh Diyo Hai,
Ratnaakar Ghar Janm Liyo Hai.
Kari Tapasya Raam Ko Paaon,
Tretaa Ki Shakti Kahalaaun.
Kaha Ram Mani Parvat Jaao,
Kaliyug Ki Devi Kahalaao.
Vishnu Roop Se Kalki Banakar,
Loongaa Shakti Roop Badalakar.
Tab Tak Trikuta Ghaati ,
Gufa Andheri Jaakar Paao.
Kali-Lakshmi-Saraswati Maa,
Karegi Poshan Paarvati Maa.
Brahma ,Vishnu Shankar Dwaare,
Hanumat,Bhairon Prahari Pyaare.
Riddhi,Siddhi Chanvar Dulaave,
Kaliyug-Vaasi Pujat Aavein.
Paan Supaari Dhwajaa Naariyal,
Charanaamrit Charano Kaa Nirmal.
Diya Phalit Var Maa Muskaai,
Karan Tapsyaa Parvat Aai.
Kali Kaalaki Bhadaki Jwaalaa,
Ek Din Apanaa RoopNIkaalaa.
Kanya Ban Nagarotaa Aai,
Yogi Bhairon Diyaa Dikhaai.
Roop Dekh Lalachaayaa,
Peechhe-Peechhe Bhaagaa Aayaa.
Kanyaao Ke Saath Mili Maa,
Kaul-Kandauli Tabhi Chali Maa.
Devaa Maai darshan Dinaa,
Pavan Roop Ho Gai Praveenaa.
Navaraatron Me Leelaa Rachaai,
Bhakt Shree Dhar Ke Ghar Aai.
Yogin Ko Bhandaaraa Dini,
Sabane Ruchikar Bhojan Kinaa.
Maans,Madiraa Bhairon Maangi,
Roop Pavan Kar Ichchhaa Tyaagi.
Baan Maarakar Gangaa NIkaali,
Parvat Bhaagi Ho Matavaali.
Charan rakhe Aa Ek Sheelaa Jab,
Charan-Paadukaa Naam padaa Tab.
Peechhe Bhairo Thaa Balakaari,
Choti Gufaa Me Jaay Padhaari.
Nau Maah Tak Kiyaa Nivaasaa,
Chali Phodakar Kiyaa Prakaashaa.
Aadyaa Shakti-Brahm Kumaari,
Kahalaai Maa Aad Kunvaari.
Gufaa Dwaar pahuchi Muskaai,
Laangur Veer Ne Aagyaa Paai.
Bhaagaa-Bhaagaa Bhairo Aayaa,
Rakshaa Hit Nij Shastra Chalaayaa.
Padaa Sheesh Jaa Parvat Upar,
Kiyaa Kshamaa Jaa Diyaa Use Var.
Apane Sang Me Pujavaaoongi,
Bhairo Ghaati Banavaaoongi.
Pahale Meraa darshan Hogaa,
Peechhe Teraa Sumiran Hogaa.
Baith Gai maa Pindi Hokar,
Charano Me Bahataa Jal Jhar Jhar.
Chausath Yogin-Bhairon Barvat,
Saptarishi Aa Karate Sumiran.
Ghantaa Dhwani Parvat par Baaje,
Gufaa NIraali Sundar Laage.
Bhakt Shree Dhar poojan Kin,
Bhakti Sevaa Ka Var Leen.
Sevak Dhyaanoon Tumako Dhhyaanaa,
Dhwajaa Va Cholaa Aan Chadhaayaa.
Sinh Sadaa Dar paharaa Detaa,
Panjaa Sher Kaa Dukh har Letaa.
Jambu Dweep Mahaaraaj Manaayaa,
Sar Sone Kaa Chhatra Chadhaayaa.
Heere Ki Murat Sang Pyaari,
Jage Akhand Ek Jot Tumhaari.
Aashvin Chaitra Navaraatre Aaoon
Pindi Raani darshan Paaoon.
Sevak Kamal Sharan Tihaari,
Haro Vaishno Vipatti Hamaari.

॥ Doha ॥
Kaliyug Me Mahimaa Teri,
Hai Maa Aparampaar.
DharmKi Haani Ho Rahi
Pragat HO Avataar.
॥ It's Shree Vaishno Devi Chalisa ॥


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श्री प्रेतराज चालीसा


श्री प्रेतराज चालीसा ॥ दोहा ॥ गणपति की कर वंदना, गुरु चरनन चितलाय। प्रेतराज जी का लिखूं, चालीसा हरषाय॥ जय जय भूताधिप प्रबल, हरण सकल दु:ख भार। वीर शिरोमणि जयति, जय प्रेतराज सरकार॥ ॥ चौपाई ॥ जय जय प्रेतराज जग पावन। महा प्रबल त्रय ताप नसावन॥ विकट वीर करुणा के सागर। भक्त कष्ट हर सब गुण आगर॥ रत्न जटित सिंहासन सोहे। देखत सुन नर मुनि मन मोहे॥ जगमग सिर पर मुकुट सुहावन। कानन कुण्डल अति मन भावन॥ धनुष कृपाण... Read More

श्री प्रेतराज चालीसा

॥ दोहा ॥

गणपति की कर वंदना, गुरु चरनन चितलाय।

प्रेतराज जी का लिखूं, चालीसा हरषाय॥

जय जय भूताधिप प्रबल, हरण सकल दु:ख भार।

वीर शिरोमणि जयति, जय प्रेतराज सरकार॥

॥ चौपाई ॥

जय जय प्रेतराज जग पावन। महा प्रबल त्रय ताप नसावन॥

विकट वीर करुणा के सागर। भक्त कष्ट हर सब गुण आगर॥

रत्न जटित सिंहासन सोहे। देखत सुन नर मुनि मन मोहे॥

जगमग सिर पर मुकुट सुहावन। कानन कुण्डल अति मन भावन॥

धनुष कृपाण बाण अरु भाला। वीरवेश अति भृकुटि कराला॥

गजारुढ़ संग सेना भारी। बाजत ढोल मृदंग जुझारी॥

छत्र चंवर पंखा सिर डोले। भक्त बृन्द मिलि जय जय बोले॥

भक्त शिरोमणि वीर प्रचण्डा। दुष्ट दलन शोभित भुजदण्डा॥

चलत सैन काँपत भूतलहू। दर्शन करत मिटत कलि मलहू॥

घाटा मेंहदीपुर में आकर। प्रगटे प्रेतराज गुण सागर॥

लाल ध्वजा उड़ रही गगन में। नाचत भक्त मगन हो मन में॥

भक्त कामना पूरन स्वामी। बजरंगी के सेवक नामी॥

इच्छा पूरन करने वाले। दु:ख संकट सब हरने वाले॥

जो जिस इच्छा से आते हैं। वे सब मन वाँछित फल पाते हैं ॥

रोगी सेवा में जो आते। शीघ्र स्वस्थ होकर घर जाते॥

भूत पिशाच जिन्न वैताला। भागे देखत रुप कराला॥

भौतिक शारीरिक सब पीड़ा। मिटा शीघ्र करते हैं क्रीड़ा॥

कठिन काज जग में हैं जेते। रटत नाम पूरन सब होते॥

तन मन धन से सेवा करते। उनके सकल कष्ट प्रभु हरते॥

हे करुणामय स्वामी मेरे। पड़ा हुआ हूँ चरणों में तेरे॥

कोई तेरे सिवा न मेरा। मुझे एक आश्रय प्रभु तेरा॥

लज्जा मेरी हाथ तिहारे। पड़ा हूँ चरण सहारे॥

या विधि अरज करे तन मन से। छूटत रोग शोक सब तन से॥

मेंहदीपुर अवतार लिया है। भक्तों का दु:ख दूर किया है॥

रोगी, पागल सन्तति हीना। भूत व्याधि सुत अरु धन छीना॥

जो जो तेरे द्वारे आते। मन वांछित फल पा घर जाते॥

महिमा भूतल पर है छाई। भक्तों ने है लीला गाई॥

महन्त गणेश पुरी तपधारी। पूजा करते तन मन वारी॥

हाथों में ले मुगदर घोटे। दूत खड़े रहते हैं मोटे॥

लाल देह सिन्दूर बदन में। काँपत थर-थर भूत भवन में॥

जो कोई प्रेतराज चालीसा। पाठ करत नित एक अरु बीसा॥

प्रातः काल स्नान करावै। तेल और सिन्दूर लगावै॥

चन्दन इत्र फुलेल चढ़ावै। पुष्पन की माला पहनावै॥

ले कपूर आरती उतारै। करै प्रार्थना जयति उचारै॥

उनके सभी कष्ट कट जाते। हर्षित हो अपने घर जाते॥

इच्छा पूरण करते जनकी। होती सफल कामना मन की॥

भक्त कष्टहर अरिकुल घातक। ध्यान धरत छूटत सब पातक॥

जय जय जय प्रेताधिप जय। जयति भुपति संकट हर जय॥

जो नर पढ़त प्रेत चालीसा। रहत न कबहूँ दुख लवलेशा॥

कह भक्त ध्यान धर मन में। प्रेतराज पावन चरणन में॥

॥ दोहा ॥

दुष्ट दलन जग अघ हरन, समन सकल भव शूल।

जयति भक्त रक्षक प्रबल, प्रेतराज सुख मूल।

विमल वेश अंजिन सुवन, प्रेतराज बल धाम।

बसहु निरन्तर मम हृदय, कहत भक्त सुखराम।


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