Blog by Fariya | Digital Diary
" To Present local Business identity in front of global market"
" To Present local Business identity in front of global market"
Digital Diary Submit Post
स्थानीय स्वास्थय संस्थाओं के प्रशासन एवं सेवाओं का ज्ञान प्राप्त करने के यह जानना भी आवश्यक है कि उनकी सेवाओं को कैसे प्राप्त किया जाए । नगरों और गाँवो में स्थानीय स्वास्थय संस्थानों से स्वास्थय सम्बन्धी सहायता प्राप्त करने के लिए हमें उनके कर्मचारियों से संपर्क स्थापित करना पड़ेगा।
Read Full Blog...ऊर्जा की परिभाषा- किसी वस्तु की कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा कहते है। ऊर्जा का मात्रक वहीं होता है ,जो कार्य का मात्रक है तथा कार्य की भाँति यह भी एक आदीश राशि है। m/ks पद्धति में ऊर्जा का मात्रक जूल है। किसी वास्तु की ऊर्जा का माप उस कार्य से की जाती है, जो वह शून्य ऊर्जा वाली स्तिथि में आने तक केर सकती है।
ऊर्जा के रूप- ऊर्जा के विभिन्न रूप है-
1. यान्त्रिक ऊर्जा- वह ऊर्जा जो किसी वस्तु में यान्त्रिक कार्य के कारण संचित होती है, यान्त्रिक ऊर्जा कहलाती है। जैसे गिरता हुआ पत्थर, घड़ी की स्प्रिंग, तपी हुई स्प्रिंग आदि से प्राप्त ऊर्जा यान्त्रिक ऊर्जा कहलाती है। यान्त्रिक ऊर्जा दो प्रकार की होती है- (1) गतिज ऊर्जा (2) स्थितिज ऊर्जा।
2. ऊष्मीय ऊर्जा - ईंधन जलाने से ऊर्जा अथवा और विकिरण से उत्पन्न ऊष्मा-ऊष्मीय ऊर्जा कहलाती हैं। जैसे- भाप का इंजन, पेट्रोल इंजन तथा डीजल ईंधन से प्राप्त ऊर्जा ऊष्मीय ऊर्जा कहलाती हैं।
3. प्रकाश ऊर्जा - यह ऊर्जा जिसके कारण हमें दिखाई देता हैं,प्रकाश ऊर्जा कहलाती हैं। जैसे - विघुत बल्ब, मोमबत्ती, सूर्य आदि से प्राप्त ऊर्जा प्रकाश ऊर्जा हैं।
4. रासायनिक ऊर्जा - वह ऊर्जा जो किसी रासायनिक अभिक्रिया से प्राप्त होती हैं रासायनिक ऊर्जा कहलाती हैं। जैसे - कोयला, पेट्रोल, डीजल आदि से प्राप्त ऊर्जा रासायनिक ऊर्जा हैं।
5. विध्वनि ऊर्जा- वह ऊर्जा जिसके कारण हमारे कान के पर्दे हिलकर ध्वनि को सुनते है। जैसे लाउडस्पीकर से प्राप्त ऊर्जा ध्वनि ऊर्जा है।
6. विघुत ऊर्जा - वह ऊर्जा जो विघुत (बिजली) धारा द्वारा संचारित होती है, विघुत ऊर्जा केलाती है। जैसे विघुत सेल, विघुत जनित्र ऊर्जा से प्राप्त ऊर्जा विघुत ऊर्जा कहलाती हैं।
7.नाभि कार्य ऊर्जा- वह ऊर्जा जो नाभिकीय अभिक्रिया से प्राप्त होती हैं। नाभिकीय ऊर्जा कहलाती हैं। जैसे - नाभिकीय विखंडन एवं नाभिकीय संकलकन से प्राप्त ऊर्जा नाभिकीय ऊर्जा कहलाती है?
"जंतु ऊतक" (Animal Tissue) जंतु ऊतक- तो हम अपनी छाती की गति को महसूस कर सकते हैं। शरीर के लिए अंग कैसे गति करते हैं? इसके लिए हमारे पास कुछ विशेष कोशिकाएं होती है जिन्हें हम पेशीय कोशिकाएं कहते हैं। इन कोशिकाओं का फैलना और सिकुड़ना अंगों को गति प्रदान करता है। रक्त अपने साथ विभिन्न पदार्थों को शरीर में एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाता है। उदाहरण के लिए य...
Read More
जंतु ऊतक- तो हम अपनी छाती की गति को महसूस कर सकते हैं। शरीर के लिए अंग कैसे गति करते हैं? इसके लिए हमारे पास कुछ विशेष कोशिकाएं होती है जिन्हें हम पेशीय कोशिकाएं कहते हैं। इन कोशिकाओं का फैलना और सिकुड़ना अंगों को गति प्रदान करता है।
रक्त अपने साथ विभिन्न पदार्थों को शरीर में एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाता है। उदाहरण के लिए यह भोजन और ऑक्सीजन को सभी कोशिकाओं तक पहुँचाता है। यह शरीर के सभी भागों में अपशिष्ट पदार्थों को एकत्र कर यकृत तथा वृक्क तक उत्सर्जन के लिए पहुँचाता हैं।
1. एपिथीलियम ऊतक- जंतु के शरीर को ढकने या बाह्य रक्षा प्रदान करने वाले ऊतक एपीथिलियम में ऊतक है। एपिथीलियम में शरीर के अंदर स्थित बहुत से भागो और गोपिकाओं को ढकते हैं। यह भिन्न-भिन्न प्रकार के शारीरिक तंत्र को एक दूसरे से अलग करने के लिए अवरोधों का निर्माण करते हैं। त्वचा, मुँह, अहारनली, रक्त वाहिनी नली का अस्तर,फेफड़ों की कुपिका, आदि सभी एपीथिलियम में उत्तक से बने होते हैं।
2. संयोजी ऊतक- रक्त एक प्रकार का संयोजी ऊतक है इसे संयोजी ऊतक क्यों कहते हैं? इस अध्याय की भूमिका में इस सम्बद्ध में एक संकेत दिया गया है। आइए अब हम इस तरह के ऊतक के बारे में विस्तृत जानकारी लें। संयोजी ऊतक की कोशिकाएँ आपस में काम जुडी होती है और अंतरकोशिकीय आधात्री (Matrix) में धँसी होती है। यह आधात्री जैली की तरह तरल, सघन या कठोर हो सकती है। आधात्री की प्रकर्ति, विशिष्ट संयोजी ऊतक के कार्य के अनुसार बदलती रहती है।
3. पेशीय ऊतक - पेशीय ऊतक लंबी कोशिकाओं का बना होता है जिसे पेशीय रेशा (Muscle Fiber) भी कहा जाता हैं। यदि हमारे शरीर में गति के लिए हैं। पेशीयों में एक विशेष प्रकार की प्रोटीन होती है। जिसे सिकुड़ने वाला प्रोटीन कहते हैं। जिसके संकुचन एवं प्रसार के कारण गति होती हैं।
कुछ पेशीयों की हम इच्छानुसार करा सकते हैं। हाथ और पैर में विघमान पेशीयों को हम अपनी इच्छानुसार आवश्यकता पड़ने पर गति करा सकते है। इस तरह की पेशीयों को इच्छिक पेशी (Voluntary Muscle) कहा जाता है।
4. तंत्रिका ऊतक - सभी कोशिकाओं में उत्तेजना के अनुकूल प्रतिक्रिया करने की क्षमता होती है, यद्यपि तंत्रिका ऊतक की कोशिकाएँ बहुत शीघ्र उत्तेजित होती है और इस उत्तेजना को बहुत ही शीघ्र पूरे शरीर में एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाती है। मस्तिष्क मेरुरज्जु तथा तंत्रिकाएँ सभी तंत्रिका ऊतकों की बनी होती है। तंत्रिका ऊतक की कोशिकाओं को तंत्रिका कोशिका या न्यूरोन कहा जाता है। न्यूरोन में कोशिकाएँ केंद्रक तथा कोशिका द्रव्य (साइटोप्लाज्म) होते हैं। इससे लंबे पतले बालों जैसी शाखाएं निकली होती है।
Read Full Blog...यह सत्य है कि यह कुशल में बुद्धिमान गृहिणी अपने घर को नियोजित तथा सुव्यवस्थित रंग से चलाती है परंतु कभी-कभी ऐसी कठिन परिस्थिति पैदा हो जाती है के गृहिणी गृह व्यवस्था के सफल संचालन में असफल हो जाती है। अतः व्यवस्था के संचालन में आने वाली बाधाओं की गृहिणी को जानकारी होनी चाहिए जिससे वह इनसे यथासंभव निपट सके। गृह व्यवस्था के कुशल संचालन में आने वाली बाधाएँ निम्नलिखित प्रकार की होती है-
1. लक्ष्यों का ज्ञान न होना- गृह व्यवस्था के मुख्य बाधा लक्ष्यों की जानकारी न होना होती है। गृहिणी सही समय पर सही कार्य नहीं कर पाती और परिणामस्वरुप गृह व्यवस्था में समस्या उत्पन्न होती है।
2. नई जानकारी का अभाव- आज विज्ञान का युग है तथा प्रतिदिन नए-नए उपकरण आते रहते हैं, जिनसे समय व श्रम की बचत होती है। यदि गृहिणी को नये उपकरणों के बारे में जानकारी नहीं होगी तो गृह व्यवस्था में बाधा उत्पन्न होती है।
3. समस्याएँ व उनके समाधान के ज्ञान का अभाव- यह सत्य है कि गृह व्यवस्था में बहुत सी समस्याएँ आती है। प्रत्येक परिवार की अपनी समस्याएँ होती है तथा उसका समाधान भी उसी परिवार में ही संभव होता है। कुछ परिवारों में वही समस्या बड़े ही शांतिपूर्ण ढंग से समाप्त हो जाती है और कहीं-कहीं वही समस्या एक विशालकाय समस्या के रूप में प्रस्तुत हो जाती है।
4. कार्य कुशलता में कमी आना- कभी-कभी परिवार में पर्याप्त साधन होते हुए भी उस परिवार की गृह व्यवस्था अच्छी नहीं होती। इसका कारण कार्य कुशलता में कमी आना होता है। साधनों की उपयोग विधि का ज्ञान नहीं होता और परिणाम स्वरुप गृह व्यवस्था सफल नहीं हो पाती।
5. परिवार के सदस्यों का असहयोग- गृह व्यवस्था कितनी भी ठीक हो, यदि परिवार के सभी सदस्य उसमें सहयोग नहीं करते हैं तो गृह व्यवस्था कुशलता पूर्वक संचालित नहीं हो सकती।
गृह व्यवस्था का प्रत्येक परिवार में विशेष महत्त्व होता है। जिस घर में गृह व्यवस्था सुचारू रूप से चलती है, उसे घर में उन्नति होती है। परिवार के प्रत्येक सदस्य की आवश्यकता को तीव्रता के आधार पर एक व्यवस्थित कर्म में पूरा किया जा सकता है। परिवार में प्रत्येक सदस्य को अधिकतम संतुष्टि मिल सकती है।
गृह व्यवस्था के महत्त्व वर्णन निम्नलिखित प्रकार से है-
1. रहन-सहन के स्तर को ऊँचा बनाने में सहायक- परिवार के रहन-सहन का स्तर ऊंचा बनने में गृह व्यवस्था से पारिवारिक साधनों का पूर्ण उपयोग हो जाता है तथा समय, शक्ति व श्रम की बचत होती है।
2. पारिवारिक आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायक- परिवार वह केंद्र है, जहाँ परिवार के सभी सदस्यों की अनेक आवश्यकताएँ होती है तथा उनकी पूर्ति के लिए निरंतर रूप से प्रयास किए जाते हैं। परिवार की आवश्यकताएँ असीमित होती है तथा पूर्ति के साधन सीमित होते हैं।
3. पारिवारिक आय व्यय के नियोजन में सहायक- पारिवारिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए निरंतर धन की आवश्यकता होती है। प्रत्येक आवश्यकता की पूर्ति के लिए व्यय करना पड़ता है। पारिवारिक आय को ध्यान में रखकर बजट को तैयार करना चाहिए। बजट सदैव बचत का होना चाहिए।
4. बच्चों व पति की सफलता में सहायक- घर में उचित व्यवस्था होने से घर का वातावरण शांतिपूर्ण होता है जिसमें रहते हुए बच्चों को पढ़ने में बहुत मन लगता है अर्थात् उनकी शैक्षिक उन्नति होती है, साथ है उनका शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा रहता है।
5. पारिवारिक वातावरण सुखी बनाने में सहायक- जब परिवार के सदस्यों की आवश्यकताओं की अधिकतम संतुष्टि हो जाती है तो परिवार का वातावरण सौहार्दमय व संतोषजनक हो जाता है, परिणाम स्वरुप घर में नैतिक, सामाजिक, आध्यात्मिक तथा धार्मिक मूल्यों का विकास संभव होता है।
Read Full Blog...
"가족 소득은 얼마입니까? 가족 수입원을 말해주세요." (What is Family Income? Tell the Sources of Family Income.) 가족 소득 AI가 없으면 가족이 생계를 유지하는 것이 불가능합니다. 오늘날 현시대에는 인간의 욕구가 많이 증가하고 생활 방식에도 급격한 변화가 있었지만 그에 비례하여 증가하지는 않았습니다. 오늘날 시스템이 제대로 작동하려면 다양한 유형의 물질적 자원이...
Read More
AI가 없으면 가족이 생계를 유지하는 것이 불가능합니다. 오늘날 현시대에는 인간의 욕구가 많이 증가하고 생활 방식에도 급격한 변화가 있었지만 그에 비례하여 증가하지는 않았습니다. 오늘날 시스템이 제대로 작동하려면 다양한 유형의 물질적 자원이 필요하며 이러한 요구를 충족하려면 가족 구성원이 돈을 정리해야 합니다. 삶의 행복과 평화는 가족의 수입에 달려 있습니다. 따라서 가계소득은 가계관리에 있어 특별한 중요성을 갖는다.
가족 소득은 가족 구성원이 벌어들인 소득입니다. 무료 의료, 무료 교육 등 기타 간접 소득도 가족 소득이라고 합니다. 가계소득의 맥락에서 학자마다 서로 다른 정의를 내렸습니다.
Gram 교수와 Candle 교수에 따르면, "가족 생활은 가족의 필요와 욕구를 충족시키고 책임을 이행하기 위해 가족이 소유하게 된 돈, 재화, 서비스 및 만족을 돌보는 것입니다."
가족 소득은 주로 두 부분으로 나뉩니다.
1. 직접 소득 –이는 가족 구성원이 급여와 사업을 통해 받는 돈의 형태로 모으는 소득입니다.
2. 간접 소득 –이는 가족이 지출할 필요가 없고 시설도 제공받는 소득입니다. 예를 들면, 무료 주택, 무료 교통, 의료 및 교육 시설 등이 있습니다.
가족의 다양한 필요를 충족시키기 위해 다양한 가족 구성원이 다양한 활동에 참여하여 돈을 벌고 있습니다. 가족을 위해 돈이나 소득을 얻는 수단을 소득원이라고 합니다. 이러한 수단은 다음과 같습니다.
1.샐러리 -급여는 대부분의 가족의 주요 수입원이며, 육체 노동보다 정신 노동이 더 많이 필요한 작업에서 받는 수입은 일반적으로 급여 형태입니다. 일반적으로 모든 사무실에서 근무하는 사무원 및 기타 공무원이 받습니다.
2. 노동 -더 많은 육체 노동을 요구하는 일에서 얻는 소득은 임금의 형태입니다. 일반적으로 공장에서 일하는 근로자가 받습니다. 임금으로 받는 수입은 근로자의 자격, 효율성 및 경험에 따라 달라집니다.
3.임차료 -다양한 유형의 재산을 소유한 가족은 집이나 상점에서 임대료 형태로 수입을 얻습니다. 요즘에는 임대료가 일부 가족의 주요 수입원이 되고 있습니다. 집세는 보통 매달 받습니다.
4. 관심 -가족의 다양한 필요를 충족시킨 후 가족에게 약간의 저축이 있으면 은행, 우체국 또는 회사 등에 예금 형태로 투자할 수 있습니다.
5.연금 - 일반적으로 급여소득자는 복무 종료 후 연금 형태로 월 소득을 받아 퇴직 후에도 생활을 유지할 수 있다. 일반적으로 서비스 기간과 게시물에 따라 다릅니다.
6.팁 –급여를 받는 사람들은 근무가 끝나면 봉사에 대한 대가로 막대한 금액을 받는 경우가 많으며 이를 팁이라고 합니다. 그 금액은 서비스 기간, 직위 및 급여에 따라 달라집니다.
7.선물 -때때로 가족은 정기적이지는 않지만 친구나 친척으로부터 선물 형태로 수입을 받기도 합니다. 이 소득은 생일, 결혼, 명절 등으로 받습니다. 이 소득에는 화폐뿐만 아니라 다양한 종류의 물품도 포함될 수 있습니다.
Read Full Blog...
घर के कार्य व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने हेतु विभिन्न साधनों की आवश्यकता होती है। अतः कार्य व्यवस्था में साधनों का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। विभिन्न साधनों को निम्नलिखित दो भागों में बांटा जा सकता है-
भौतिक साधन में साधन होते हैं जिनको प्राय: देखा और स्पर्श किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त इन साधनों में विभिन्न प्रकार के सुविधाओं को भी सम्मिलित किया जा सकता है। अतः भौतिक साधनों को निम्नलिखित भागों में बांटा जा सकता हैं-
1. धन- " धन भी किसी प्रकार का जीवन रक्त है।" जिस प्रकार बिना रक्त के शरीर मृत हो जाता है, ठीक उसी प्रकार से बिना धन के पारिवारिक जीवन अस्त व्यस्त हो जाता है।अतः बिना धन के गृह कार्य व्यवस्था का संचालन संभव नहीं है क्योंकि धन के अभाव में गृह के विभिन्न कार्यों को संपन्न नहीं किया जा सकता है।
2. विभिन्न भौतिक पदार्थ- भौतिक साधनों की इस श्रेणी में, विभिन्न प्रकार की वस्तुएं जैसे खाद्य सामग्री, वस्त्र, निवास स्थान, पुस्तक, फर्नीचर,लोहा आदि सम्मिलित किया जा सकते हैं। इन भौतिक साधनों के अभाव में भी गृह कार्य व्यवस्था का संचालन संभव नहीं है।
3. सार्वजनिक सुविधाएं- विभिन्न प्रकार की सार्वजनिक सुविधाएं; जैसे यातायात के साधन, विद्यालय, पुस्तकालय, बिजली प्रदान करने वाले संस्थान आदि भी भौतिक साधनों में शामिल है। इनके बिना भी गृह कार्य की व्यवस्था को सुचारू रूप से नहीं चलाया जा सकता है।
पूर्वोक्त विभिन्न भौतिक साधनों का महत्त्व समाप्त हो जाता है यदि विभिन्न मानवीय साधन की उपलब्धि एवं प्रयोग ना हो। मानवी साधन में साधन है जो मानव के विभिन्न गुणों आदि में संबंध रखते हैं। मानवीय साधनों को निम्नलिखित भागों में बांटा गया है-
1. शक्ति- ग्रह के कार्य व्यवस्था के संचालन हेतु शक्ति का व्यय होता है। मानवीय शक्ति के विभिन्न कार्यों का आधार है। शक्ति परिवार के सदस्यों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर निर्भर करती है।
2. रूचि- किसी भी गृह की कार्य व्यवस्था सुचारू रूप से नहीं चल सकती। यदि उसके सदस्यों में घर के कार्यों के प्रति रुचि ना हो। अतः एक सफल कार्य व्यवस्था में रुचि का एक महत्वपूर्ण स्थान है।
3. ज्ञान- "ज्ञान स्वयं एक शक्ति है।"
Read Full Blog...परिवार के कार्य व्यवस्था तभी सफल हो सकती है जब गृहिणी प्रत्येक कार्य को पूर्व नियोजित ढंग से करें और साथ ही साथ परिवार के सभी सदस्यों को संतुष्ट रख सके। अतः इसके लिए गृहिणी को निम्नलिखित कारक ध्यान में रखने चाहिए-
1. पूर्व योजना- गृहिणी को घर में होने वाले सभी कार्यों की पहले से एक योजना बना लेनी चाहिए के प्रतिदिन कौन-कौन से कार्य होने हैं; कौन से कार्यों को सप्ताह, महीने या वर्ष में किया जाना चाहिए। ऐसा करने से कोई भी कार्य छुट्टा नहीं है तथा सभी कार्य समय अनुसार पूरे भी हो जाते हैं।
2. गृह कार्यों का पर्याप्त अनुभव होना- कहां गया है कि ' करत करत अभ्यास ते जड़मति होत सुजान' अर्थात जैसे-जैसे कार्य करते जाते हैं वैसे-वैसे उसे कार्य का पर्याप्त ज्ञान होता जाता है। इसीलिए जो बालिकाएं बाल्यावस्था से ग्रह कार्यों में थोड़ा बहुत हाथ बताती रहती है, व गृहिणी बनने पर अपने घर की कार्य व्यवस्था को ठीक बनाए रखने और घर को व्यवस्थित रखने में सफल होती है।
3. परिवार के विभिन्न सदस्यों का सहयोग- गृह कार्य सुगमता से हो सके, इसके लिए गृह कार्य में परिवार के विभिन्न सदस्यों का सहयोग लेना चाहिए। परंतु सहयोग लेते समय उसे सदस्य के क्षमता एवं रुचि का वेतन रखना चाहिए।
4. साधनों तथा उपकरणों का उचित सहयोग- घर के कार्यों को करने के लिए विभिन्न साधनों की आवश्यकता होती है। जो उपकरण प्रयोग में लाया जाए, उसे उपकरण की पूर्ण जानकारी होनी चाहिए जिससे उसका उचित उपयोग किया जा सके।
5. मिव्ययिता- कम खर्चे में अच्छा कार्य करना मितव्ययिता कहलाती है। अधिक खर्च करके किसी कार्य को पूर्ण करना तो बहुत सरल होता है, परंतु भली प्रकार गृहस्थी चल सकें, इसके लिए मिव्ययिता बहुत आवश्यक है।
6. गृहिणी की निर्णय शक्ति- परिवार में कभी-कभी ऐसी परिस्थिति आ जाती है कि उसे समय तुरंत निर्णय लेना पड़ता है। ऐसे समय में गृहिणी को घबराना नहीं चाहिए वरन् उचित निर्णय लेना चाहिए, तभी घर की कार्य व्यवस्था सुचारू रूप से चल सकती हैं।
7. कार्य विधियो का ज्ञान- परिवार के कार्यों को सुचारू रूप से चलने के लिए यह आवश्यक है कि गृहिणी को इस बात का ज्ञान हो कि कौन सा कार्य किस समय पर किया जाना चाहिए। कार्य इस समय किया जाए जिससे परिवार के लोगों को सुविधा न हो तथा साथ ही कार्य के समय का अनुमान लगाकर कार्य करना चाहिए।
कुछ कारक ऐसे होते हैं जो घर की कार्य व्यवस्था को सुचारू रूप से चलने में बाधा डालते हैं। इन्हें कार्य व्यवस्था को प्रभावित करने वाले कारक कहते हैं। यह कारक निम्नलिखित हैं-
1. गृहिणी तुरंत निर्णय लेने के अक्षम- गृहिणी यदि सही प्रकार से निर्णय नहीं ले पाती तो ऐसी स्थिति में कार्य व्यवस्था का उचित संचालन नहीं हो पाता तथा कार्य व्यवस्था कुप्रभावित होती है।
2. परिवार के सदस्यों में असहयोग- परिवार के सदस्यों में यदि अपनी सामंजस्य नहीं होता तो परिवार की कार्य व्यवस्था में बाधा उत्पन्न होती है।
3. दुर्बल आर्थिक स्थिति- परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण भौतिक साधनों की कमी रहती है। इसके परिणाम स्वरुप कार्य व्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
4. गृहिणी द्वारा गृह कार्यों का उचित वर्गीकरण करने में असमर्थता- यह अधिकारियों का वर्गीकरण सदस्यों की रुचि और योग्यता के आधार पर नहीं होता है तो अभिकारी व्यवस्था कुप्रभावित होती है।
5. नवीन उपकरणों की जानकारी का अभाव- गृहिणी यदि पढ़ी लिखी नहीं है तथा उसे नए-नए उपकरणों की जानकारी नहीं होती है तो ऐसी स्थिति में भी कार्य व्यवस्था कुप्रभावित होती है।
6. गृह क्लेश- जिन परिवारों में किसी न किसी बात को लेकर प्रतिदिन कलह होती रहती है, परिवारों में कार्य व्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ता है। उस परिवार के सदस्य मानसिक तनाव में रहते हैं, इससे भी कार्यों को करने के प्रति उत्साहित नहीं, निरुत्साहित होते हैं अर्थात् उनमे गृह कार्यों को करने के प्रति कोई रुचि नहीं रहती है।
Read Full Blog...
"गृह-कार्य व्यवस्था से आशय है कि गृह के सभी कार्यों को एक योजना बनाकर किया जाए जिससे समय, धन व श्रम की बचत हो सके।"
प्रत्येक परिवार में असीमित कार्य होते हैं। इसमें अधिकतर कार्यों का संपादन गृहिणी को ही करना पड़ता है। किसी भी कार्य को रोक नहीं जा सकता। अतः गृहिणी की सुविधा के लिए यह आवश्यक हो जाता है। जिन घरों में सभी छोटे-बड़े कार्य गृहिणी का शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ जाता हैं और परिणामस्वरूप घर का वातावरण भी कलेयुक्त बन जाता हैं।
किसी भी कार्य को योजनाबद्ध ढंग से करने की क्रिया को व्यवस्था कहते हैं। ऐसा करने से प्रत्येक कार्य सरलता से हो जाता है तथा समय, धन और श्रम की बचत भी होती है। गृह कार्य व्यवस्था से तात्पर्य है कि घर के सभी कार्यों को इस ढंग से व्यवस्थित करके एवं आक्रमानुसार करना कि जिससे घर के सभी कार्य ठीक समय पर संपन्न हो जाए। साथ ही गृहिणी के समय और शक्ति की बचत हो, घर व्यवस्थित और परिवार सुखी रहे वह घर का वातावरण शांत रहे।
"गृह कार्य-व्यवस्था के अर्थ से आशय की गृह के सभी कार्यों को एक योजना बनाकर किया जाए जिससे समय, धन व श्रम की बचत हो सके।"
गृह कार्य व्यवस्था करते समय निम्नलिखित तत्वों पर ध्यान दिया जाता है-
1. सर्वप्रथम घर के समस्त कार्यों की एक योजना बनानी चाहिए।
2. योजना के अनुसार कार्यों को किया जाना चाहिए।
3. कार्य प्रक्रिया पर पूर्ण नियंत्रण रखना चाहिए।
4. कार्यों को प्राथमिकता के अनुसार करना चाहिए।
5. परिवार के समस्त सदस्यों को उसकी आयु, योग्यता एवं क्षमता के अनुसार कार्य सौंपना चाहिए।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि घर के विभिन्न कार्यों को करने की ऐसी व्यवस्था करना कि सभी गृहकार्य नियमित रूप से तथा सहजता से हो जाये, कार्य-व्यवस्था करना कहलाता है।
कार्य व्यवस्था की सफलता गृहिणी की बुद्धिमानी और कुशलता पर निर्भर करती है।
प्रात: काल से रात्रि तक घर में बहुत से कार्य होते हैं। कार्यों की सीमा बहुत अधिक होती हैं. ऐसे बहुत से कार्य होते हैं जो प्रतिदिन नहीं किया जा सकते हैं, अतः अध्ययन में सुविधा की दृष्टि से गृहकार्यों को निम्नलिखित भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है-
1. दैनिक कार्य - दैनिक कार्यों में सभी कार्य आते हैं जो गृहिणी द्वारा प्रतिदिन किए जाते हैं। उदाहरण के लिए प्रतिदिन नाश्ता बनाना, भोजन बनाना, घर की सफाई, कपड़े धोना आदि कार्य सम्मिलित है। एक कुशल गृहिणी अपने घर के इन सभी कार्यों को योजनाबद्ध करके बड़ी सहजता से निपटा सकती है।
2. साप्ताहिक कार्य- कुछ कार्य ऐसे होते हैं जिन्हें प्रतिदिन नहीं किया जा सकता। अतः मैं एक दिन इन कार्यों के लिए निर्धारित किया जाता है। साप्ताहिक कार्य के अंतर्गत पूरे घर की अच्छी तरह सफाई करना, चादर बदलना, धुलने के लिए कपड़े डालना, बच्चों के साथ कुछ समय व्यतीत करना, बाहर घूमने का प्रोग्राम बनाना आदि कार्य आते हैं।
3. मासिक कार्य- कुछ कार्य महीने भर में एक बार किए जाते हैं; जैसे बाजार से महीने भर की खाद्य सामग्री लाना और उन्हें डिपो में भरकर शुभ अवसर करना, बिजली का बिल, बच्चों की फीस जमा करना, गैस सिलेंडर भरवाना आदि आवश्यक कार्य मासिक कार्य के अंतर्गत आते हैं।
4. वार्षिक कार्य- यह कार्य वर्ष में एक बार किए जाते हैं। यह कार्य अधिकतर वर्षा शत्रु के समाप्ति के पश्चात किए जाते हैं। इन कार्यों के अंतर्गत घर के टूट-फूट की मरम्मत, घर की पुताई तथा रंग-रोगन, साल भर का अनाज में तेल खरीदना, अचार, मुरब्बे, चटनी आदि तैयार करना आता है।
5. सामयिक कार्य- कुछ कार्य समय-समय पर करने पड़ते हैं ; जैसे स्वेटर बुनना, ऊनी वस्त्रों को साफ करके रखना, भारी साड़ियों का रखरखाव करना आदि। इन कार्यों को करने में परिवार के सदस्यों का सहयोग लिया जा सकता है।
6. आकस्मिक कार्य- ये कार्य वे होते हैं कि जो अकस्मात् सामने आ जाते हैं; जैसे परिवार में होने वाली शादी विवाह, जन्म-मृत्यु, मित्र या सगे संबंधियों के यहां जाना आदि। गृहिणी को इन कार्यों को संपन्न करने में अपने परिवार के सदस्यों का यथायोग्य सहयोग लेना चाहिए, इससे परिवार के सभी सदस्य सहयोगी बनते हैं तथा सारे कार्य बड़ी सरलता से निपट जाते हैं।
Read Full Blog..."गृह-व्यवस्था निर्णय की एक श्रृंखला है, जिसमें पारिवारिक साधनों के अनुसार पारिवारिक लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है। इस प्रयास में नियोजन, नियंत्रण एवं मूल्यांकन इन तीनों चरणों को सम्मिलित किया जाता है।"
परिवर्तन ही सुखी में समृद्ध होता है जब उस परिवार को चलने वाली निर्देशिका अर्थात् गृहिणी एक कुशल व्यक्तित्व की हो। परिवार को अच्छा में सुखी बनाने के लिए गृहिणी को अनेक कार्य करने पड़ते हैं। किसी भी परिवार के स्तर को देखने से परिवार के संचालिका के गुना की झलक मिलती है।
'गृह-व्यवस्था' का शाब्दिक अर्थ है- ' घर की व्यवस्था या घर का प्रबंध।' गृह कार्य को योजनाबद्ध एवं सनियोजित ढंग से संपन्न करना ही 'गृह व्यवस्था'कहलाता हैं।
वास्तव में व्यवस्था शब्द मनुष्य के संपूर्ण जीवन से जुड़ा हुआ है। यह सारी प्रकृति एक व्यवस्थित ढंग से ही कार्य कर रही है। इसी प्रकार यदि मनुष्य अपने जीवन को आदर्श जीवन के रूप में बनाना चाहता है तो उसे व्यवस्था के बंधन में बंधन ही पड़ेगा। इसी प्रकार ग्रह को यदि एक आदर्श ग्रह के रूप में दर्शन है तो प्रत्येक कार्य व्यवस्था ढंग से ही करना पड़ेगा।
व्यवस्था या प्रबंध एक मानसिक प्रक्रिया है, जो योजना के रूप में प्रकट होती है तथा योजना के अनुरूप ही संपादित एवं नियंत्रित होती है। व्यवस्था के रूप में योजना का कार्यान्व्यन, लक्ष्य प्राप्ति का उत्तम साधन बन जाता है।
गृह व्यवस्था के संदर्भ में 'निकिल तथा डारसी' ने अपने विचार इस प्रकार प्रस्तुत किए हैं- "गृह व्यवस्था परिवार के लक्षण की पूर्ति के उद्देश्य से परिवार के साधनों के प्रयोग का नियोजन, नियंत्रण में मूल्यांकन है।" अर्थात पारिवारिक लक्षण की प्राप्ति के लिए गृह प्रबंध योजना बद्ध ढंग से करना चाहिए तथा समय-समय पर मूल्यांकन भी आवश्यक है।
Read Full Blog...
"No Men Are Foreign" Remember, no men are strange, no countries Foreign Beneathe all uniforms, a singel body breathes Like ours:the land our brothers walk upon Is earth like this, in which we all shall lie. They, too, aware of sun and air and water, Are fed by peacefuln harvests, by war's long winter starv'd. Thei...
Read More
Remember, no men are strange, no countries Foreign
Beneathe all uniforms, a singel body breathes
Like ours:the land our brothers walk upon
Is earth like this, in which we all shall lie.
They, too, aware of sun and air and water,
Are fed by peacefuln harvests, by war's long winter starv'd.
Their hands are ours, and in their lines we read
A labour not different from our own.
Remember they have eyes like ours that wake
Or sleep, and strength that can be won
By love. In every land is common life
That all can thet full recognise and understand.
Read Full Blog...--icon----> --icon---->