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क्या हम प्रकृति को नुकसान पहुंचा रहे हैं।

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क्या हम प्रकृति को नुकसान पहुंच रहे है।

हां हम मनुष्य प्रकृतिक को नुकसान पहुंचा रहे है।

मानव जब अपने दिमाग का उपयोग करता है, तो दुर्गउपयोग ही करता हैं।

या तो किसी को नीचा दिखाने के लिए करता है या अपने लिए बड़े से बड़े महल व बैंक अकाउंट में पैसे  कलेक्ट करने में। पर इन सब चीजों मैं भूल जाते हैं इस प्रकृति से ही जुड़ा हुआ है।

और प्रकृति उसे कोई नुकसान नहीं होता तब तक जब तक की मानव संख्या में कम  है क्योंकि प्रकृति अपना संतुलन स्वयं बनकर चलती हैं। मानव जैसी महान हस्ती भी प्रकृति के आगे लचार है।

   इतने बड़े-बड़े बांधों का निर्माण जो मानव ने पहाड़ों पर किया वहां पर बिल्कुल भी या नहीं सोचा कि जैसे पहाड़ भी डिबलिंग से।

इसमें नुकसान प्रकृति का  तो होता ही है।

पर मानव का उससे ज्यादा होता है कि वह कब बैठे-बैठे चला जाता है। भूकंप मैं और पता भी नहीं लगता है क्योंकि पृथ्वी की प्लेट सरक जाती है।

०   एक बार बिग बैंक का भी ट्रायल किया गया था।

उसमें भी कुछ प्रोटॉन को लेकर के बिग बैग करने की कोशिश की गई थी जैनवा में।

यह भी भूकंप और सुनामी मैं ही परिवर्तित हो गया था। 

[ प्रकृति अपना सतुलन हमेशा बनाकर के चलती है।                    इतनी सारी #स्पीशीज (8400000 ) यह सब प्रकृति में ही रहती है।                                                                                  फिर भी कहीं गंदगी नहीं होती है क्योंकि यह सब मिट्टी में मिल जाहैं हैं और फिर वह नवनिर्माण करती है।                                    यह एक प्रकार से परिवर्तन है अगर कोई उसको कुछ नुकसान पहुंचना है, तो वह स्वयं नष्ट हो जाता है।]

वह अपने रूप में अगर परिवर्तित कर देती हैं।                 

०   झरिया जैसे स्थान पर प्रकृति में बहुत ज्यादा कार्बन इकट्ठा हो गया इसीलिए वह हमेशा जलता ही रहता है। 

०  यह परिवर्तन है कार्बनडाइऑक्साइड और अन्य गैसें निकलती रहती है इस पर किसी का कंट्रोल नहीं है। 

   दावानल भी। 

पर इंसान स्वयं जब जब अपने कंट्रोल मे लेता है, तब ही ऐसा हो, ऐसा नहीं है।                                                                          जीवन का नियम ही परिवर्तन है।

 




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