अपराजिता
꧁ Digital Diary ༒Largest Writing Community༒꧂
कभी-कभी अचानक ही विधाता हमें ऐसे विलक्षण व्यक्ति से मिला देता है जिसे देख स्वयं अपने जीवन की जीत देता बहुत छोटी लगने लगती है हमें तब लगता है कि भले ही उसे अंतर्यामी में हमें जीवन के कभी अक्षम रात का कारण ही दंडित कर दिया हो किंतु हमारे किसी अंग को हमसे विषण कर हमें उससे वंचित तो नहीं किया फिर भी हमने से कौन ऐसा मानव है जो अपनी विपत्ति के कठिन श्रेणी में विधाता को दोषी नहीं ठहरता मैं अभी पिछले ही महीने एक ऐसी अभी शब्द काय अच्छी है जिसे विधाता ने कठोरता दंड दिया है किंतु उसे वह लत मस्तक आनंदी मुंद्रा में झेल रही है विधाता को कोसकर नहीं
उसकी कोठी का अहाता एकदम हमारे बंगले के आटे से जुड़ा था अपनी शानदार कोठी में उसे पहली बार कर से उतरते देखा तो आश्चर्य से देखते ही रही गई कर का द्वार खुला एक प्रोडक्ट ने उतरकर पिछली सीट से एक वहीं से निकलकर सामने रख दिया और भीतर चली गई दूसरे ही कर धीरे-धीरे बिना किसी सहारे के कर से एक युवती ने अपनी निर्जीव निकले धड़ की बड़ी क्षमता से नीचे उतर फिर बैसाखियों से ही वहीं चेयर तक पहुंच उसमें बैठ गई और बड़ी तट स्थित से उसे स्वयं चलते कोटि के भीतर चली गई में फिर चित्र नियत समय पर उसका यह विचलित अब आगमन देखी और आश्चर्य चकित रह जाती ठीक जैसे कोई मशीन बटन खटखटाती अपना काम किया चली जा रही हो
धीरे-धीरे मेरा उसे परिचय हुआ कहानी सुनी तो दंग रह गई नियति के प्रत्येक कठोर आघात को अति सामान्य धैर्य एवं साहस से झेलती वह बीते भर की लकड़ी मुझे किसी देवनागना से काम नहीं लगी में चाहती हूं कि मेरी पंक्तियों को उदास आंखों वाला वह गोरा उजाले वेस्टन से सज्जित लखनऊ का मेधावी युवक भी पड़े जिसे मैंने कुछ महापुरुष अपनी बहन के यहां देखा था वह इस की परीक्षा देने इलाहाबाद प्रयागराज गया लौटते समय किसी स्टेशन पर चाय लेने उतरा की गाड़ी चल पड़ी चलती ट्रेन में हाथ के कुल्हड़ सहित चढ़ने के प्रयास में गिरा और पहिए के नीचे हाथ पर गया प्राण तो बच गए पर बाया हाथ चला गया वह विच्छेद बुझा के साथ-साथ मानसिक संतुलन भी खो बैठा पहले दुख बुलाने के लिए नशे की गोलियां खाने लगा और अब नूर मंजिल की शरण गई है केवल एक हाथ खोकर ही उसने हथियार डाल दिए इधर चंद्र जिसका निकला दर्द है निस्तारण मानसिक पेड़ मात्रा सदा उटफुल है चेहरे पर विषाद की एक रेखा भी नहीं बुद्धि आंखों में आदमी उत्साह प्रतिफल प्रतिशत भर पर उत्कट जीजी विशाल और फिर कैसी-कैसी महत्वाकांक्षाएं
We are accepting Guest Posting on our website for all categories.
Vanshika
@DigitalDiaryWefru