बस की यात्रा

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(प्रस्तुत व्यंग्य में लेखक ने पुरानी बस को सजीव रूप में दिखाते हुए बस यात्रा को रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है)

हम पांच मित्रों ने तय किया कि शाम 4:00 की बस से चले पन्ना से अब इसी कंपनी की बस सतना के लिए घंटे भर बाद मिलती है जो जबलपुर की ट्रेन मिला देती है सुबह घर पहुंच जाएंगे हमें से दो को सुबह काम पर हाजिर होना था इसलिए वापसी का यही रास्ता अपनाना जरूरी था लोगों ने सलाह दी कि समझदार आदमी इस्लाम वाली बस से सफल नहीं करते क्या रास्ते में डाकू मिलते हैं नहीं बस डाकिन है

 बस को देखा तो श्रद्धा उम्र पड़ी खूब विपरीत थी सर्दियों के अनुभव के निशान लिए हुए थे लोग इसलिए इसे सफल नहीं करना चाहते कि वृद्धावस्था में इसे कष्ट होगा यह बस पूजा के योग्य थी उसे पर सवार कैसे हुआ जा सकता है

 बस कंपनी के एक हिस्सेदारी भी उसे बस में जा रहे थे हमने उनसे पूछा यह बस चलती भी है वह बोले चलती क्यों नहीं है जी अभी चलेगी हमने कहा वहीं तो हम देखना चाहते हैं अपने आप चलती है यह हां जी और कैसे चलेगी

 गजब हो गया ऐसी बस अपने आप चलती है हम आगे पीछे करने लगे डॉक्टर मित्र ने कहा डरो मत चलो बस हेलो भाभी है नई नवेली बेसन से ज्यादा विश्व में है हमें बेटों की तरह प्यार से गोद में लेकर चलेगी हम बैठ गए जो छोड़ने आए थे में इस तरह देख रहे थे जैसे अंतिम विदा दे रहे हैं उनकी आंखों का रही थी आना-जाना तो लगा ही रहता है पाया है सो जाएगा राजा रंग फकीर आदमी को कुछ करने के लिए एक नियमित चाहिए

 इंजन सचमुच स्टार्ट हो गया ऐसा जैसे सॉरी बस ही इंजन है और हम इंजन के भीतर बैठे हैं कांच बहुत कम बच्चे थे जो बच्चे थे उनसे हमें बचाना था हम फॉरेन खिड़की से दूर सड़क गए इंजन चल रहा था हमें लग रहा था कि हमारी सीट के नीचे इंजन है

बस सचमुच चल पड़ी और हमें लगा कि यह गांधी जी के सहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलन के वक्त आवश्यक जवान रही होगी उसे ट्रेनिंग मिल चुकी थी हर हिस्सा दूसरे से सहयोग कर रहा था पूरी बस सविनय अवज्ञा आंदोलन के तौर से गुजर रही थी सीट पर बॉडी से सहयोग चल रहा था कभी लगता सेट बॉडी को छोड़कर आगे निकल गई है कभी लगता की सीट को छोड़कर बॉडी आगे आगे जा रही है 8 10 मिल चलने पर सारे भेदभाव मिट गए यह समझ में नहीं आता था की सीट पर हम बैठे हैं या सेट हम पर बैठी है 

 एक आंख बस रुक गई मालूम हुआ कि पेट्रोल की टंकी में छेद हो गया ड्राइवर ने बाल्टी में पेट्रोल निकाल कर उसे बगल में रखा और नली डालकर इंजन में भेजने लगा अब मैं उम्मीद कर रहा था कि थोड़ी देर बाद बस कंपनी के हिस्सेदार इंजन को निकाल कर गोद में रख लेंगे और उसे नाली से पेट्रोल पिलाएंगे जैसे मां बच्चों के मुंह में दूध की सीसी लगती है

 बस की रफ्तार अब 15:20 मिल हो गई थी मुझे उसके किसी हिस्से पर भरोसा नहीं था ब्रेक फेल हो सकता है स्टेरिंग टूट सकता है प्रकृति के दृश्य बहुत लोग भावना थे दोनों तरफ हरे-भरे पेड़ थे जिन पर पक्षी बैठे थे मैं हर पेड़ को अपना दुश्मन समझ रहा था जो भी पेड़ आता डर लगता कि इससे बस टकराएगी वह निकल जाता तो दूसरे पेड़ का इंतजार करता झील दिखती तो सोचता कि इसमें बस कोटा लगा

 एकांक फिर बस रुक ड्राइवर ने तरह-तरह की तरकीपर की पर वह चली नहीं सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हो गया था कंपनी के हिस्सेदार कह रहे थे बस तो फर्स्ट क्लास है जी यह तो इत्तेफाक की बात है

 सेन चांदनी में वृक्षों की छाया के नीचे वह बस बड़ी दैनिक लग रही थी लगता जैसे कोई वृद्ध थककर बैठ गई हो हमें गलानी हो रही थी कि बेचारी पर लटकर हम चले आ रहे थे अगर इसका प्रनाथ हो गया तो इस ब्यावन में हमें इसकी अत्याशिष्ट करनी पड़ेगी

 रिश्तेदार सब ने इंजन खोला और कुछ सुधार बस आगे चली उसकी चाल और काम हो गई धीरे-धीरे बस की आंखों की ज्योति जाने लगी चांदनी में रास्ता काटोल कर वह देख रही थी आगे आप पीछे से कोई गाड़ी आते दिखती तो वह एक कदम किनारे खड़ी हो जाती और कहती निकल जाओ बेटी अपनी तो वह उम्र ही नहीं रही 




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