प्रकृति का दोहन रोके बिना नहीं हो सकती पृथ्वी की सुरक्षा
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प्रकृति का दोहन रोके बगैर पृथ्वी की सुरक्षा नहीं की जा सकती है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण कई तरह के खतरे मंडरा रहे है।
वैज्ञानिकों के द्वारा इसको लेकर सचेत भी किया जा रहा है। उनके संदेशों का सार यही है कि प्रकृति का बेतरतीब दोहन रोकी जाए, पर इसका असर कितना पड़ रहा है इसका अंदाजा आप अगल-बगल झांक कर भी लगा सकते हैं।
किन-किन स्तर पर होता है प्रकृति का दोहन
प्रकृति का दोहन का मतलब लोग आमतौर पर पेड़ की कटाई से ही ले लेते हैं। जबकि इसके दायरे बड़े हैं। रासायनिक खाद के उपयोग, कीट नाशक दवा के अंधाधुंध छिड़काव, कारखानों के उत्सर्जित कचरों के प्रबंधन में लापरवाही भी प्रकृति के दोहन के रूप में मानी जाती है। जलाशय की सुरक्षा भी इसमें शामिल किये गये हैं। हालात ऐसे बनते जा रहे हैं कि जलाशय या तो सूख रहे या जलकुंभी से भर जा रहे हैं। ऐसे में सैलानी पक्षियों का आना भी बंद हुआ जा रहा हैं। जिले के उधवा झील जहां विदेशी पक्षी बड़ी तादाद में आया करते थे।
आज पहले के अपेक्षा विदेशी पक्षियों के आगमन में काफी कमी आई है। कीटनाशक के अंधाधुंध प्रयोग से गिद्ध ऐसे पक्षी का अब दर्शन दुर्लभ हो गया है। जबकि गिद्ध पर्यावरण सुरक्षा में सबसे बड़ा मददगार रहा है। लगातार हो रहे राजमहल की पहाड़ियों के पत्थर उत्खनन, अंधाधुध पेड़ों की कटाई के कारण इस क्षेत्र में वर्षा में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। वहीं गर्मी में लगातार बढ़ोतरी, जल स्तर में गिरावट पहले के अपेक्षा झरने का सूखना, जंगलों में पशु, पक्षी, जानवरों के लगातार शिकार के कारण पृथ्वी का असंतुलन बिगड़ता जा रहा है। लगातार भूकंप के झटके मानव जाति के लिए खतरे की ओर इशारा करती है। आज सिर्फ भारत ही नहीं पूरा विश्व इससे अछूता नहीं। कई देश आज पर्यावरण आपदा से संघर्ष करता दिख रहा है।
प्रदूषण को रोकने को लेकर वैसे तो बड़े-बड़े संयंत्र लगाये जा रहे हैं। पर पेड़ लगाने से बेहतर कुछ नहीं। सच पूछिए तो इस मामले में हमारे पूर्वज हमसे आगे चल रहे थे। तुलसी व पीपल पेंड़ की रक्षा को लेकर ही इसे धार्मिक रूप दिया गया। क्योंकि पेंड़ पौधे सबसे अधिक आक्सीजन छोड़ने वाले हैं। इसी प्रकार अन्य पौधे सबसे अधिक आक्सीजन देते हैं। हम हरे पेंड़ काट देते हैं। सरकार ने हरे पेड़ की कटाई पर रोक लगाई है। वृक्षारोपण चला कर जन सहयोग से ही प्रर्यावरण दोहन से रोका जा सकता है।
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Suveta Notiyal
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