दिवाली का पर्व
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हिंदू धर्म में दिवाली के त्योहार का विशेष महत्व है। दिवाली का पर्व धनतेरस से शुरू होकर भाई दूज को समाप्त होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन ही भगवान श्रीराम लंकापति रावण का वध करके अयोध्या लौटे थे। भगवान राम की वापसी पर अयोध्या में घी के दीपक जलाकर उनका स्वागत किया गया था। कहते हैं कि तभी से इस खुशी में दिवाली मनाई जाती है।
धनतेरस के दिन घर के कुछ खास जगहों की सफाई का विशेष महत्व है। मान्यता है कि धनतेरस पर मां लक्ष्मी और भगवान कुबेर की कृपा पाने के लिए घर के कुछ खास कोनों की सफाई जरूरी करनी चाहिए। कहते हैं कि ऐसा करने से धन-धान्य में बरकत के साथ मां लक्ष्मी का हमेशा साथ बना रहता है। इस साल धनतेरस 13 नवंबर को मनाया जाएगा। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक, कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 12 नवंबर रात से लग रही है, ऐसे में धनतेरस की खरीदारी 12 नवंबर की रात को की जा सकेगी।
1. वास्तु के अनुसार, घर के ईशान कोण का खास महत्व होता है। वास्तु शास्त्र में इसे देवताओं का स्थान माना गया है। कहते हैं कि आमतौर पर घरों में मंदिर इसी कोण में होता है। घर के ईशान कोण को उत्तर-पूर्व कोण भी कहते हैं। मान्यता है कि धनतेरस के दिन इस कोण की सफाई जरूर करनी चाहिए। कहते हैं कि अगर आप इस घर का कोना कभी इस्तेमाल नहीं करते या गंदा रहता है तो मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त नहीं होता है।
2. धनतेरस के दिन सवेरे घर के पूर्व के स्थानों की सफाई करना शुभ होता है। कहते हैं कि ऐसा करने से घर में पॉजिटिव ऊर्जा आती है और साथ ही मां लक्ष्मी का स्थायी वास घर में होता है और तरक्की मिलने का योग बनता है।
3. धनतेरस के दिन उत्तर दिशा का साफ भी होना जरूरी होता है। कहते हैं कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी का साथ हमेशा बना रहता है।
4. घर के बीचो-बीच की जगह यानी ब्रह्म स्थान सबसे महत्वपूर्ण होता है। मान्यता है कि इस जगह पर बिना जरूरत वाला सामान नहीं रखना चाहिए। साथ ही इस जगह को हर दिन साफ करना चाहिए। धनतेरस के दिन इस जगह की सफाई का विशेष महत्व है। कहते हैं कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी की कृपा बरसती है।
धनतेरस यम दीप दान विशेष
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कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन भगवान धनवन्तरि अमृत कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्न हुए हैं। इसलिए इस तिथि को धनतेरस के नाम से जाना जाता है। धन्वन्तरी जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। कहीं कहीं लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें १३ गुणा वृद्धि होती है। इस अवसर पर धनिया के बीज खरीद कर भी लोग घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं।
दीपावली की रात भी लक्ष्मी माता के सामने साबुत धनिया रखकर पूजा करें। अगले दिन प्रातः साबुत धनिया को गमले में या बाग में बिखेर दें। माना जाता है कि साबुत धनिया से हरा भरा स्वस्थ पौधा निकल आता है तो आर्थिक स्थिति उत्तम होती है।
धनिया का पौधा हरा भरा लेकिन पतला है तो सामान्य आय का संकेत होता है। पीला और बीमार पौधा निकलता है या पौधा नहीं निकलता है तो आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है। अगर सम्भव न हो तो कोइ बर्तन खरिदे। इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में संतोष रूपी धन का वास होता है। संतोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है। जिसके पास संतोष है वह स्वस्थ है सुखी है और वही सबसे धनवान है। भगवान धन्वन्तरि जो चिकित्सा के देवता भी हैं उनसे स्वास्थ्य और सेहत की कामना के लिए संतोष रूपी धन से बड़ा कोई धन नहीं है। लोग इस दिन ही दीपावली की रात लक्ष्मी गणेश की पूजा हेतु मूर्ति भी खरीदते हैं।
दाहं तेरस पौराणिक कथा
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कार्तिकस्यासिते पक्षे
त्रयोदश्यां निशामुखे ।
यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युर्विनिश्यति ।।
धनतेरस की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में रंगोली बना कर दीप जलाने की प्रथा भी है। इस प्रथा के पीछे एक लोक कथा है, कथा के अनुसार किसी समय में एक राजा थे जिनका नाम हेम था। दैव कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। ज्योंतिषियों ने जब बालक की कुण्डली बनाई तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन होगा उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु को प्राप्त होगा। राजा इस बात को जानकर बहुत दु:खी हुआ और राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया जहां किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े। दैव योग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गए और उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया।
विवाह के पश्चात विधि का विधान सामने आया और विवाह के चार दिन बाद यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे। जब यमदूत राजकुमार प्राण ले जा रहे थे उस वक्त नव विवाहिता उसकी पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय भी द्रवित हो उठा परंतु विधि के अनुसार उन्हें अपना कार्य करना पड़ा। यमराज को जब यमदूत यह कह रहे थे उसी वक्त उनमें से एक ने यमदेवता से विनती की हे यमराज क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु से मुक्त हो जाए। दूत के इस प्रकार अनुरोध करने से यमदेवता बोले हे दूत अकाल मृत्यु तो कर्म की गति है इससे मुक्ति का एक आसान तरीका मैं तुम्हें बताता हूं सो सुनो। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी रात जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके दीप माला दक्षिण दिशा की ओर भेट करता है उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। यही कारण है कि लोग इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखते हैं।
धन तेरस पूजा सामान्य विधि
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इस दिन लक्ष्मी-गणेश और धनवंतरी पूजन का भी विशेष महत्व है। धनतरेस पर धनवंतरी और लक्ष्मी गणेश की पूजा करने के लिए-
सबसे पहले एक लकड़ी का पट्टा लें और उस पर स्वास्तिक का निशान बना लें।
इसके बाद इस पर एक तेल का दिया जला कर रख दें दिए को किसी चीज से ढक दें। दिए के आस पास तीन बार गंगा जल छिड़कें इसके बाद दीपक पर रोली का तिलक लगाएं और साथ चावल का भी तिलक लगाएं
इसके बाद दीपक में थोड़ी सी मिठाई डालकर मीठे का भोग लगाएं
फिर दीपक में १ रुपया रखें। रुपए चढ़ाकर देवी लक्ष्मी और गणेश जी को अर्पण करें।
इसके बाद दीपक को प्रणाम करें और आशीर्वाद लें और परिवार के लोगों से भी आशीर्वाद लेने को कहें।
इसके बाद यह दिया अपने घर के मुख्य द्वार पर रख दें, ध्यान रखे कि दिया दक्षिण दिशा की ओर रखा हो।
यमदीपदान विधि
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यमदीपदान विधिमें नित्य पूजाकी थालीमें घिसा हुआ चंदन, पुष्प, हलदी, कुमकुम, अक्षत अर्थात अखंड चावल इत्यादि पूजासामग्री होनी चाहिए। साथ ही आचमनके लिए ताम्रपात्र, पंच-पात्र, आचमनी ये वस्तुएं भी आवश्यक होती हैं। यमदीपदान करनेके लिए हलदी मिलाकर गुंथे हुए गेहूं के आटे से बने विशेष दीपका उपयोग करते हैं।
यमदीपदान प्रदोषकाल में करना चाहिए। इसके लिए मिट्टी का एक बड़ा दीपक लें और उसे स्वच्छ जल से धो लें। तदुपरान्त स्वच्छ रुई लेकर दो लम्बी बत्तियाँ बना लें। उन्हें दीपक में एक-दूसरे पर आड़ी इस प्रकार रखें कि दीपक के बाहर बत्तियोँ के चार मुँह दिखाई दें। अब उसे तिल के तेल से भर दें और साथ ही उसमें कुछ काले तिल भी डाल दें।
प्रदोषकाल में इस प्रकार तैयार किए गए दीपक का रोली, अक्षत एवं पुष्प से पुजन करें। उसके पश्चात् घर के मुख्य दरवाजे के बाहर थोड़ी-सी खील अथवा गेहूँ से ढेरी बनाकर उसके ऊपर दीपक को रखना है। दीपक को रखने से पहले प्रज्वलित कर लें और दक्षिण दिशा की ओर देखते हुए निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए चारमुँह के दीपक को खील (लाजा) आदि की ढेरी के ऊपर रख दें।
मृत्युना पाशदण्डाभ्यां
कालेन च मया सह ।
त्रयोदश्यां दीपदानात्
सूर्यजः प्रीयतामिति ।।
अर्थात् त्रयोदशी को दीपदान करने से मृत्यु, पाश, दण्ड, काल और लक्ष्मी के साथ सूर्यनन्दन यम प्रसन्न हों।
उक्त मन्त्र के उच्चारण के पश्चात् हाथ में पुष्प लेकर निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए यमदेव को दक्षिण दिशा में नमस्कार करें।
कुछ अन्य उपाय टोटके
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धन तेरस पर धन प्राप्ति के अनेक उपाय बताए जाते हैं लेकिन सभी उपायों से बढ़कर है धन और आरोग्य के देवता धन्वंतरि का पावन स्तोत्र।
धन्वंतरि स्तोत्र
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ॐ शंखं चक्रं जलौकां
दधदमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्मिः।
सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यांशुक परिविलसन्मौलिमंभोजनेत्रम॥
कालाम्भोदोज्ज्वलांगं कटितटविलसच्चारूपीतांबराढ्यम।
वन्दे धन्वंतरिं तं निखिलगदवनप्रौढदावाग्निलीलम॥
ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये:
अमृतकलश हस्ताय
सर्व भयविनाशाय
सर्व रोगनिवारणाय
त्रिलोकपथाय
त्रिलोकनाथाय
श्री महाविष्णुस्वरूप
श्री धन्वंतरि स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः॥
इस स्तोत्र कम से कम तीन बार पढ़ें धन्वंतरि ।
पूर्ण भाव से भगवान धन्वंतरि जी का पूजन करें।
घर में नई झाडू और सूपड़ा खरीद कर लाए और विधि से पूजन करें।
सायंकाल दीपक प्रज्वलित कर अपने मकान, दुकान आदि को सुन्दर सजाये।
माँ लक्ष्मी को गुलाब के पुष्पों की माला पहनाये और उन्हें सफेद मिठाई का भोग लगाये।
अपनी सामर्थ्य अनुसार तांबे, पीतल, चांदी के गृह-उपयोगी नवीन बर्तन व आभूषण क्रय करते हैं।
हल जुती मिट्टी को दूध में भिगोकर उसमें सेमर की शाखा डालकर तीन बार अपने शरीर पर फेरें।
धनतेरस के दिन सूखे धनिया के बीज खरीद कर घर में रखने से परिवार की धन संपदा में वृ्द्धि होती है।
कुबेर देवता का पूजन करें। शुभ मुहूर्त में अपने व्यावसायिक प्रतिष्ठान में नई गड़ी बिछाएं।
सायंकाल पश्चात १३ दीपक जलाकर तिजोरी में भगवान कुबेर धन के देवता का पूजन करें।
मृत्यु के देवता यमराज के निमित्त दीपदान करें।
तेरस के सायंकाल किसी पात्र में तिल के तेल से युक्त दीपक प्रज्वलित करें। पश्चात गंध, पुष्प, अक्षत से पूजन कर दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके यम से निम्न प्रार्थना करें-
'मृत्युना दंडपाशाभ्याम्
कालेन श्यामया सह।
त्रयोदश्यां दीपदानात्
सूर्यजः प्रयतां मम।
अब उन दीपकों से यम की प्रसन्नता के लिए सार्वजनिक स्थलों को प्रकाशित करें ।
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