माँ छिन्नमस्ता कवच
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हुं बीजात्मिका देवी मुण्डकर्त्रिधरा परा ।
ह्रदयं पातु सा देवी वर्णिनी डाकिनी युता ।।
श्रीं ह्रीं हुं ऐं चैव देवी पूर्वस्यां पातु सर्वदा ।
सर्वांग मे सदा पातु छिन्नमस्ता महाबला ।
वज्रवैरोचनीये हुं फट् बीजसमन्विता ।
उत्तरस्यां तथाग्नां च वारुणे नैऋतेऽवतु ।।
इन्द्राक्षी भैरवी चैव सितांगी च सहारिणी ।
सर्वदा पातु मां देवी चान्यान्यासु हि दिक्षु वै ।।
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