शिक्षा मनोविज्ञान की उपयोगिता अथवा आवश्यकता या महत्व निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता हैं--
1. शिक्षा का बाल केन्द्रित होना
आज की शिक्षा बाल केन्द्रित हो गई है। बालक की योग्यता, क्षमता, रूचि, अभिरूचि आदि के अनुसार पाठ्यक्रम, एवं प्रशिक्षण विधियों का निर्माण किया गया है। वर्तमान का छात्र शिक्षकों के कठोर नियंत्रण से मुक्त है। पाठ्यक्रम का निर्माण भी आज बाल केन्द्रित हो गया है
2. बालक के सर्वोन्मुखी विकास मे योगदान देना
आज शिक्षा का उद्देश्य बालक का सर्वोत्मुखी विकास करना है। शिक्षा-मनोविज्ञान इस विकास मे विशेष सहायक होता है। शिक्षा-मनोविज्ञान शिक्षक को उन सभी बातों का ज्ञान कराता है जिन-जिन अवस्थाओं और परिस्थितियों मे बालक का समुचित विकास हो सकता है।
3. उचित मूल्यांकन की विधियों का ज्ञान प्रदान करने हेतु
अब यह सिद्ध हो चुका है कि परम्परागत परीक्षा प्रणालियों द्वारा बालक की क्षमताओं, व्यक्तित्व और शैक्षणिक उपलब्धियों का उचित मूल्यांकन नही हो पाता। शिक्षा-मनोविज्ञान मूल्यांकन की आधुनिक, विश्वसनीय एवं प्रभावशाली विधियों की शिक्षक को पूर्ण जानकारी देता है जिसकी सहायता से वह बालकों के व्यक्तित्व और शैक्षणिक उपलब्धियों का सही-सही मूल्यांकन कर सकता है।
4. अनुशासन स्थापना में सहायक
शिक्षा-मनोविज्ञान, शिक्षक को अनुशासन स्थापित करने और रखने की अनेक नवीन विधियों और तकनीकों से अवगत कराता है।
5. अनुसंधान
नवीन अनुसंधान के द्वारा शिक्षक को नई-नई शिक्षण विधियों का परिचय प्राप्त होता है। इन विधियों के माध्यम से वह बालक का सर्वांगीण विकास करते हैं। इसमे शिक्षा-मनोविज्ञान की बहुत भूमिका होती है।
6. बालकों के लिये उपयोगी पाठ्यक्रम का निर्माण
शिक्षा-मनोविज्ञान विभिन्न बातों का ज्ञान प्रदान करके शिक्षक को विभिन्न अवस्थाओं के छात्रों के लिये उपयोगी पाठ्यक्रम निर्माण करने मे सहायता देता है।
7. बालकों की व्यक्तिगत विभिन्नताओं की जानकारी
बालकों की रूचियों, योग्यताओं, क्षमताओं आदि मे अंतर होता है। शिक्षक को कक्षा मे ऐसे ही बालकों को शिक्षा देनी पड़ती है। अतः सफल शिक्षण के लिए व्यक्तिगत विभिन्नताओं की जानकारी होना जरूरी है।
8. बालकों के लिए उपयोगी पाठ्यक्रम का निर्माण
शिक्षा-मनोविज्ञान विभिन्न बातों का ज्ञान प्रदान करके शिक्षक को विभिन्न अवस्थाओं के छात्रों के लिये उपयोगी पाठ्यक्रम निर्माण करने मे सहायता देता हैं।
9. सीखने की प्रक्रिया का ज्ञान
शिक्षा-मनोविज्ञान शिक्षकों को अधिगम के नियमों से अवगत कराता है जिससे शिक्षक अधिक प्रखर हो जाता है तथा उसका ज्ञान और आत्मविश्वास बढ़ता हैं।
10. प्रेरणा
शिक्षा-मनोविज्ञान मे बालक के व्यवहार को समझने के लिए प्रेरणा एवं मूल प्रवृत्तियों के अध्ययन का बहुत महत्व है, जिससे यह पता चलता है कि किसी प्रकार का व्यवहार बालक क्यों करता है, उनकी कौन-कौन सी आवश्यकताएं हैं।
11. व्यक्तिगत भिन्नता
छात्रों मे व्यक्तिगत भिन्नताएँ पाई जाती है। सभी बालक सोचने-समझने की दृष्टि से सामान नही होते है। इनमें सोचने समझने की पृथका पाई जाती है। सभी की अपनी-अपनी योग्यताएँ एवं जन्मजात शक्तियाँ होती हैं। मनोविज्ञान का आधार व्यक्ति है। शिक्षा-मनोविज्ञान के अनुसार बालकों की रूचि, क्षमताओं, स्तर, विकास, अभिरूचियों मे भिन्नता होती है।
12. कक्षा-शिक्षण की समस्याओं का समाधान
कक्षा-कक्ष की अनेक समस्यायें हैं-- अनुशासनहीनता, बाल-अपराध, समस्या बालक, बालकों का पिछड़ापन आदि। शिक्षा-मनोविज्ञान कक्षा-कक्ष की दैनिक समस्याओं का समाधान करने मे भी सहायता प्रदा नकरता है
13. बालकों की आवश्यकता का ज्ञान
छात्रों की विभिन्न आवश्यकतायें होती हैं जैसे-- प्रेम, आत्मसम्मान, स्वतंत्रता और किये जाने वाले कार्यों की स्वीकृति। बालकों के समुचित विकास हेतु इन आवश्यकताओं की पूर्ति आवश्यक है। शिक्षा-मनोविज्ञान शिक्षक को बालकों की इन आवश्यकताओं से अवगत कराता है।
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