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बाबा हरभजन सिंह Post by Anvi Rosaa


भारतीय सेना में एक से बढ़कर एक जवान रहे हैं। लेकिन उनमें से एक थे बाबा हरभजन सिंह जिन्होंने मर कर भी देश की सेवा करी 

बाबा हरभजन सिंह का जन्म पंजाब के गुजरांवाला में 30 अगस्त 1946 को हुआ था हरभजन सिंह पंजाब रेजिमेंट के सैनिक थे । बाबा हरभजन सिंह 1946 मे 24 वी पंजाब रेजिमेंट के जवान के तौर पर भर्ती हुए थे। जल्द ही इनकी तैनाती सिक्किम में हो गई। और वे केवल दो ही साल तक अपनी शारीरिक तौर पर देश को सेवाएं दे सके। बाबा हरभजन सिंह ने अपनी मौत के 48 साल बाद तक सरहद पर रहकर देश की रक्षा की। फिलहाल ये जवान रिटायर हो चुके हैं। भारत और चीन की सीमा की कठोर ऊंचाई पर भारतीय सेना हमें सा बेफीकरी से तैनात रहती है। चीन की चतुराई के बावजूद सैनिक सरहद की सुरक्षा को लेकर हमेशा अस्वस्थ रहते हैं। लाख मुश्किलें पर कोई भारतीय सेना का बाल भी बांका नहीं कर सकता क्योंकि यहां सैकड़ों सैनिकों के साथ एक ऐसा सैनिक भी तैनात है। जो दिखाई नहीं देता हम बात कर रहे हैं बाबा हरभजन सिंह की इनकी तैनाती (Nathu- La) में हुई। वही एक हादसे में उनकी मृत्यु हो गई। ऐसा कहा जाता है। कि ये हादसा तब हुआ जब यह घोड़े के काफिले को (Tukula से Dongchui ) ले जा रहे थे। तभी वे वहां से फिसल कर एक नाले में जा गिरे। पानी के तेज बहाव की वजह से ये वहां से 2 किलोमीटर दूर जा पहुंचे। इनके शरीर को बहुत तलाशा गया। उस दिन काफी बर्फबारी भी हुई। फिर भी शरीर का कुछ पता नहीं चला। सेना को लगा कि हरभजन सिंह ड्यूटी से बचने के लिए भाग गए हैं। लेकिन कुछ समय बाद वह रात को अपने किसी साथी के सपने में आए। उन्होंने अपने साथी को बताया कि उनका शरीर कहां पड़ा है। सुबह होते ही जब सैनिकों ने तलाशा तो उनका शरीर व गन वहीं पर मिली। सेना से हरभजन सिंह को भगोड़ा माने की गलती हुई । इसीलिए उन्होंने अपनी इस भूल को सुधारा और उनका अंतिम संस्कार सम्मान के साथ किया। कुछ समय बीतने के बाद वे अपने साथी के सपने में फिर से आए। और उन्होंने उनसे कहा कि उनका शरीर गया है आत्मा नहीं अब भी में on (ड्यूटी) रहूंगा। शुरू शुरू में उनकी बात को वेहम मानकर किसी ने ध्यान नहीं दिया। लेकिन बाद में कुछ सैनिकों के साथ कुछ ऐसा होने लगा जो अजीब था। अगर किसी से कोई गलती होती या होने वाली होती है। तू बाबा सपने में आकर पहले ही उसे सावधान कर देते हैं। और वहां के सैनिकों का ऐसा मानना था। की सिक्किम की भयंकर ठंड में भी किसी सैनिक को झप्पी भी नहीं लग सकती थी। अगर गलती से लग जाती तो उसे बाबा का थप्पड़ पड़ता ।




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