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संतोष यादव का जन्म परम्पपरागत परिवार में हुआ। उनके पांचभई थे। उनका जन्म हरयाणा के जौनियावास नमक छोटे से गांव में हुआ। लड़की का नाम संतोष रखा गया जिसका अर्थ है सन्तुष्टि। लेकिन जीवन के  परम्परागत ढंग से संतोष हमेशा संतुष्ट नहीं थ। उन्होंने शुरू से ही अपनी इच्छा से जीवन जीने की ठान ली थी। जहां अन्य लड़कियां परंपरागत भारतीय पोशाक पहनती थी वही संतोष निक्कर पसंद करती थी।

संतोष के माता-पिता सम्पन्न भूमिपति थे जो अपने बच्चों को बढ़िया स्कूल मे भेजने का भार सहन कर सकते थे वह अपने बच्चों को देश की राजधानी दिल्ली भी भेज सकते थे क्योंकि यह उनके गांव के बहुत पास है । लेकिन परम्परागत का निर्वहन करते हुए जो रिवाज परिवार में  प्रचलित था उस रिवाज के अनुसार संतोष  को अपने गांव के स्थानीय स्कूल में ही पढ़ाई करनी पड़ी 

16 वर्ष की आयु में उनके माता-पिता उनका विवाह करना चाहते थे उन्होंने अपने माता-पिता को धमकीद दे दी कि यदि  उन्होंने उचित पढ़ाई नहीं की तो वह कभी भी शादी नहीं करवाएगी । उन्होंने घर छोड़ दिया और दिल्ली के एक स्कूल में अपना दाखिला करा लिया 

जब उनके माता-पिता ने उनकी पढ़ाई का खर्चा देने से मना कर दिया तो उन्होंने विनम्रतापूर्वक उन्हें बता दिया कि वह स्कूल समय के पश्चात नौकरी करके अपना खर्चा चला लेगी। तब उनके माता-पिता  उनकी पढ़ाई का खर्चा उठाने पर सहमत हो गए।

संतोष ने हाई स्कूल की परीक्षा पास कर ली और वह जयपुर चली गई। उन्होंने महारानी कॉलेज में दाखिला ले लिया तथा कस्तूरबा हॉस्टल में कमरा ले लिया अरावली पर्वतों को निहारत हुए पर बात रोहन के प्रति उनका प्यार उमर पाड़ा उन्होंने धान की बचत की और उत्तरकाशी में स्थित नहरू​  पर्वतारोही संस्थान में प्रवेश ले लिया।

इसके पश्चात संतोष हर वर्ष पर्वतारोहण पर जाने लग गई उनकी पर्वतों पर चढ़ने की निपुणताएं तेजी से परिपक्व हो गई इसके साथ ही उनमें ठंड और ऊंचाई के प्रति कठोर प्रतिस्पर्धात्मक शक्ति का विकास हो गया एक फौलादी इच्छा शक्ति शारीरिक सहनशीलता और एक हैरान कर देने वाली मानसिक मजबूती उन्होंने इस सब का बार-बार प्रदर्शन किया उनके द्वारा किए गए कठोर परिश्रम तथा लगन उनको 1992 में प्रसिद्ध के शिखर पर ले गए जब उन्होंने शरमाते हुए अरावली के पर्वतारोहियों से पूछा था कि क्या वह उसे अपने साथ शामिल कर सकते हैं मुश्किल से 20 वर्ष की आयु में संतोष यादव ने माउंट एवरेस्ट पर विजय प्राप्त कर ली और वह पूरी दुनिया की वह पर्वतारोही बन गई जिसने इतनी कम आयु में यह सफलता प्राप्त की न केवल उनकी पर्वतों पर चढ़ने की प्रवीणता शारीरिक योग्यता और मानसिक शक्ति ने उनके वरिष्ठ ए फसलों को प्रसन्न किया बल्कि दूसरों के प्रति उनकी और उनके साथ मिलकर काम करने की इच्छा ना उनके साथ पर्वतारोहण कर रहे पर्वतारोहियों के मन में विशेष स्थान बना दिया।

 

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