झांसी की रानी

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झांसी की रानी

रानी लक्ष्मीबाई (जन्म: 19 नवंबर 1828, मृत्यु: 18 जून 1858) झांसी की रानी थीं और 1857 के भारतीय विद्रोह की एक महान वीरांगना थीं, जिन्होंने "मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी" के नारे के साथ अंग्रेजों के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी और कम उम्र में ही रणभूमि में वीरगति प्राप्त की; वे अपनी शिक्षा, युद्ध कौशल (तलवारबाजी, घुड़सवारी, निशानेबाजी) और अदम्य साहस के लिए जानी जाती हैं, जो भारत की स्वतंत्रता संग्राम की प्रेरणास्रोत हैं।  

मुख्य बिंदु:

1. जन्म और बचपन: उनका जन्म मणिकर्णिका तांबे के रूप में वाराणसी में हुआ था। बचपन से ही उन्हें 'मनु' कहा जाता था और उन्होंने घुड़सवारी व युद्ध कलाओं की शिक्षा ली थी, जो उस समय की महिलाओं के लिए असामान्य थी। 

2. विवाह और झांसी की रानी: 1842 में उनका विवाह झांसी के महाराजा गंगाधर राव से हुआ, जिसके बाद वे लक्ष्मीबाई कहलाईं। पति की मृत्यु के बाद, उन्होंने दत्तक पुत्र दामोदर राव को उत्तराधिकारी घोषित किया, जिसे अंग्रेजों ने मानने से इनकार कर दिया। 

3. स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका: अंग्रेजों द्वारा झांसी हड़पने की कोशिश के बाद, उन्होंने 1857 के विद्रोह में नेतृत्व संभाला और झांसी की रक्षा के लिए अंग्रेजों से लोहा लिया। उन्होंने तात्या टोपे और नाना साहिब जैसे योद्धाओं के साथ मिलकर संघर्ष किया। 

4. वीरगति: 1858 में ग्वालियर के पास युद्ध करते हुए, उन्होंने सिर पर तलवार का वार सहते हुए वीरगति प्राप्त की, मात्र 29 वर्ष की आयु में। 

5. विरासत: रानी लक्ष्मीबाई भारतीय इतिहास की सबसे बहादुर महिलाओं में से एक मानी जाती हैं। उनकी वीरता और बलिदान ने देशवासियों को प्रेरित किया और उन्हें 'झांसी की रानी' के रूप में अमर बना दिया। 




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