वित्त नियोजन- कब? क्यों? कैसे?
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"आय एवं व्यय का एक विवरण जिस प्रपत्र में एकत्रित किया जाता है, उसे बजट कहते है" आम भाषा में बजट शब्द का यही अर्थ है। अब इसका अर्थ तो समझ लिया हमने। लेकिन हम सबके लिए इसका क्या मतलब है। तो चलिए समझते है कि हमारे लिए इसका क्या प्रयोजन हैं।
इससे पहले कुछ प्रश्न हमें ख़ुद से पूछ लेने चाहिए :
अच्छी आमदनी के होते हुए भी आप आर्थिक तंगी में रहते है ?
अपनी आमदनी को खर्चो के अनुरूप कैसे बढ़ाये ?
कम कमाई में बचत कैसे शुरू करें ?
जीवन में आर्थिक रूप से सफल कैसे हो ?
आप भी इन प्रश्नो के जवाब तलाश कर रहे है तो लेख को अंत तक जरूर पढ़िये जो आपकी जिज्ञासा को पूरी तरह शांत कर देगा।
हम सभी अपने जीवन निर्वाह के लिए पैसे किसी न किसी माध्यम से कमाते है, ये कमाये हुए पैसे हम अपनी जरूरतों के हिसाब से खर्च भी करते है। एक बार मुझे फिर दोहराने दीजिये-
पैसे हम अपनी जरूरतों के हिसाब से खर्च भी करते है
ऊपर लिखे गए वाक्य में ज़रूरत और हिसाब शब्द पर ज़ोर दिया गया। क्योंकि अगर हम इन दो शब्दों को समझ लेते है तो आने वाले जीवन में हमें शायद ही आर्थिक कठिनाई के दौर से गुजरना पड़ेगा। ये केवल दो शब्द नहीं हैं, इन्हे समझा जाये तो ये व्यक्तिगत वित्त नियोजन की प्रत्येक गुत्थी सुलझा सकते है। हमारे निज़ी जीवन में ज़रूरत का क्या मतलब है?
जरूरत एक ऐसी प्रेरक शक्ति है जो व्यक्ति को संन्तुष्टि के लिए कार्यवाही करने को मजबूर करती है, यह सभी मनुष्यो के जीवन को चलाने का एक मुलभुत कारक है जो सामाजिक, बौद्धिक एवं सांस्कृतिक हो सकती है वही इसके विपरीत इच्छा असीमित है।
यदि व्यक्ति अपनी इच्छाओ पर लगाम लगा के अपनी जरूरतों पर ही ख़र्च करें तो उसे कभी आर्थिक तंगी का सामना नहीं करना पड़ेगा। परन्तु अब हमारे सामने यह प्रश्न आ जाता है कि जरुरत (Need), चाहत (Want) और इच्छा (Desire) के बीच में क्या अंतर है।
ज़रूरत (Need): आवश्यकताएं बुनियादी होती हैं, कुछ ऐसा जो बिना शर्त आवश्यक हैं। हमारी जरूरतें प्राथमिक आवश्यकताएं हैं यानी भोजन, वस्त्र और आश्रय। इनके बीना मनुष्य जीवित नहीं रह सकता। आज की जरूरतों का एक लंबा हिस्सा शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा बन गया है। सामान जो जरूरत की श्रेणी में आते हैं।
चाहत (Want): इसके बिना एक कमी की भावना मन में होती है। यह जरूरतों से कुछ अधिक है और मुख्य रूप से जरूरतों पर निर्भर है। उदाहरण के लिए, यदि आप स्नान करना चाहते हैं, तो आप सबसे अच्छे साबुन का उपयोग करना चाहेंगे लेकिन यह अनिवार्य नहीं है।
इच्छा (Desire): एक इच्छा वह है जो आप चाहते हैं, आपकी आवश्यकताओं और चाहने के बावजूद। उदाहरण के लिए घर आपकी जरुरत है, बड़ा और अच्छी जगह घर आपकी चाहत हो सकती है बजाय इन सबके बहुत ही महंगा घर आपकी इच्छा हो सकती है।
हमने जरुरत, चाहत और इच्छा के बीच के मूल अन्तर को समझ लिया है। पहली बात हमने समझ ली है अब आती है दूसरी बात जो है हिसाब यानी की खर्चों और आमदनी का लेखा-ज़ोखा रखना।अब हमारे पास यह विकल्प है हम अपने खर्चों की एक सूची तैयार करे जो तीन भागों में बँटी हुए होनी चाहिए। इनके विभाजन के लिए ऊपर बताई गयी बाते आपका काम आसान बना देगी।
सूची तैयार करने के पश्चात् अब अगला कार्य जो आपको करना है वह हैं : बजट बनाना, जी हाँ ! बजट बनाना हम सभी के लिए आवश्यक है क्योंकि इससे हम यह आसानी से जान पाते है कि:
बजट का 20 / 60 / 20 का नियम
आपके पास भी बजट बनाने का कोई नियम हो सकता है लेकिन मेरा यह सुझाव रहेगा कि आप मेरे द्वारा बताये गए इसी नियम का पालन करें यह नियम सभी के बजट के अनुसार उपयुक्त और बड़ा रोमांचित करना वाला है। आईये जानते है कैसे?
कई वित्तीय सलाहकार भी इसी नियम का सुझाव देते है जो इस प्रकार है। अपने मासिक वेतन (Lay Home) को तीन भागो में बाँटो:
उदाहरण के लिए, किसी व्यक्ति की आमदनी 50 हज़ार रूपये महीने की हैं तो उसे 10 हज़ार रूपये (20%) प्रति माह बचत करनी चाहिए। 30 हज़ार रूपये (60%) प्रति माह अपने घर के खर्चो के लिए और 10 हज़ार रूपये (20%) प्रति माह उसकी जो भी इच्छा हो उसके लिए बचाये।
इस नियम के साथ कुछ लोगो को आपत्ति भी हो सकती है जैसे कि :
प्रायः ये देखने में आया है जो लोग ख़र्च निकलने के पश्चात् बचत करते है वो कई बार खर्चे अधिक होने की दशा में या तो बचत नहीं कर पाते या बचत को अगले माह के लिए टाल देते है। इन स्थितियों में व्यक्ति ना तो अपने भविष्य के लिए उपयुक्त बचत कर पाता है और ना ही बजट के नियम का पालन करता है। यही कारन है कि हमें सबसे पहले आमदनी में से बचत के हिस्से को निकाल लेना चाहिए।
कुछ लोग यह भी कह सकते है कि 20% हिस्सा तो इच्छाओ की पूर्ति के लिए कम है। यह समझना बहुत आवश्यक है कि मनुष्य की इच्छाए असीमित है एक इच्छा की पूर्ति होती है तो दूसरी आ जाती है। अतः इच्छाओ के पीछे ना भाग कर हमें बजट के अनुसार कुछ पैसा इनकी पूर्ति के लिए जैसे घूमने, पिकनिक, मनोरंजन इत्यादि पर खर्च करना चाहिए क्योकि मानव जीवन में थोड़ा आनंद भी होना चाहिए।
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