शुक्ल ध्यान क्या है? शुक्ल ध्यान के लक्षण ध्यान के बारे में कुछ और बातें शुक्ल ध्यान की विशेषताएं:
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शुक्ल ध्यान क्या है? शुक्ल ध्यान के लक्षण, ध्यान के बारे में कुछ और बातें, शुक्ल ध्यान की विशेषताएं
शुक्लध्यान एक तरह का ध्यान है. शुक्ल शब्द का मतलब है 'शुद्ध' या 'स्वच्छ'. किसी भी विषय पर बिना किसी वासना के विचारों को केंद्रित करना शुक्लध्यान कहलाता है. यह ध्यान ही उच्चतम ध्यान होता है.
शुक्लध्यान के बारे में ज़्यादा जानकारीः
शुक्लध्यान में श्वासोच्छ्वास का निरोध हो जाता है.
शुक्लध्यान में एक ही योग का आश्रय लेकर एक ही द्रव्य का ध्याता चिंतन करता है. इसलिए इसको एकत्व वितर्क ध्यान कहा गया है.
शुक्लध्यान में पृथक्करणात्मक चिंतन, एकात्मक चिंतन, सूक्ष्म अचूक शारीरिक क्रिया, आत्मा की अपरिवर्तनीय शांति होती है.
अभ्यास दशा समाप्त हो जाने पर पूर्ण ज्ञातादृष्टा भावरूप शुक्लध्यान हो जाता है
.
ध्यान के प्रकारः
ध्यान चार प्रकार के होते हैं - आर्तध्यान, रौद्रध्यान, धर्मध्यान और शुक्लध्यान.
इन चारों ध्यानों में प्रत्येक ध्यान के चार-चार भेद हैं.
इस प्रकार कुल मिलाकर ध्यान सोलह प्रकार के हो जाते हैं.
ध्यान करने से आत्मिक और मानसिक शक्तियों का विकास होता है.
जैन धर्म में, शुक्ल ध्यान को उच्चतम ध्यान माना जाता है. यह ध्यान किसी भी तरह के विकार से रहित होता है. शुक्ल ध्यान के कुछ लक्षण ये हैं:
बुद्धिपूर्वक राग समाप्त होने पर जो निर्विकल्प समाधि प्रगट होती है, उसे शुक्ल ध्यान कहते हैं.
शुक्ल ध्यान में एक ही योग का आश्रय लेकर एक ही द्रव्य का ध्याता चिंतन करता है.
शुक्ल ध्यान में श्रुतज्ञान के आधार पर किसी एक ही द्रव्य, गुण या पर्याय का योग होता है.
शुक्ल ध्यान में वितर्क और विचार से रहित इस ध्यान में मन, वचन और कायरूप योगों का निरोध हो जाता है.
शुक्ल ध्यान में क्रिया से भी रहित हो जाता है.
शुक्ल ध्यान में श्वास निरोध करना नहीं पड़ता, अपितु स्वयं हो जाता है.
शुक्ल ध्यान साक्षात् मोक्ष का कारण है.
शुक्ल ध्यान की विशेषताएं:
शुक्ल ध्यान में आत्मा बिलकुल साफ़ यानी निर्मल हो जाती है.
इस ध्यान से आत्मा का फिर से जन्म-मरण होना हमेशा के लिए रुक जाता है.
साधु को बुद्धिपूर्वक राग समाप्त हो जाने पर जो निर्विकल्प समाधि प्रगट होती है, उसे शुक्लध्यान कहते हैं.
रत्न दीपक की ज्योति की भाँति निष्कंप होकर ठहरता है.
श्वास निरोध इसमें करना नहीं पड़ता अपितु स्वयं हो जाता है.
यह ध्यान साक्षात् मोक्ष का कारण है.
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