पदस्थ ध्यान क्या है पदस्थ ध्यान के बारे मे ज़्यादा जानकारीः अवश्य जान
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पदस्थ ध्यान
मन्त्रपदों के द्वारा अर्हन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु तथा आत्मा के स्वरूप का चिन्तन करना पदस्थ ध्यान है। किसी नियत स्थान-नासिकाग्र या भृकुटि के मध्य में मन्त्र को अॅकित कर उसको देखते हुए चित्त को एकाग्र करना पदस्थ ध्यान के अन्तर्गत है। इस ध्यान में इस बात का चिन्तन करना भी आवश्यक है कि शुद्ध होने के लिए जो शुद्ध आत्माओं का चिन्तन किया जा रहा है, वह कर्मरज को दूर करनेवाला है। इस ध्यान का सरल और साध्य रूप यह है कि हृदय में आठ पत्राकार कमल का चिन्तन करें और इन आठ पत्रों में से पाँच पत्रों पर "णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं," लिखा चिन्तन करें तथा शेष तीन पत्रों पर क्रमश: "सम्यग्दर्शनाय नम:, सम्यग्ज्ञानाय नमः और सम्यक्चारित्राय नमः" लिखा हुआ विचारें। इस प्रकार एक-एक पत्ते पर लिखे हुए मन्त्र का ध्यान जितने समय तक कर सकें, करें।
पदस्थ ध्यान, जैन धर्म में मंत्रों का जाप करके आत्मा के स्वरूप का चिंतन करने का तरीका है. यह ध्यान करने का एक तरीका है. ध्यान करने से मन शांत होता है और तनाव कम होता है.
पदस्थ ध्यान के बारे में ज़्यादा जानकारीः
पदस्थ ध्यान में मंत्रों का जाप करके अर्हंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, और आत्मा के स्वरूप का चिंतन किया जाता है.
पदस्थ ध्यान करने के लिए, किसी नियत जगह पर मंत्र को जपते हुए मन को एकाग्र करना होता है.
पदस्थ ध्यान में हृदय में आठ पत्राकार कमल का चिंतन किया जाता है.
इन आठ पत्रों में से पांच पत्रों पर ये मंत्र लिखे होते हैं- णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं.
शेष तीन पत्रों पर ये मंत्र लिखे होते हैं- सम्यग्दर्शनाय नमः, सम्यग्ज्ञानाय नमः, और सम्यक्चारित्राय नमः.
इन्हें भी पढ़
ध्यान के अन्य प्रकारः आर्त ध्यान, रौद्र ध्यान, धर्म ध्यान, शुक्ल ध्यान.
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Khushi prerna
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