ध्यान क्या है
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ध्यान एकाग्र होना नहीं है; यह नींद भी नहीं है।
ध्यान सजगतापूर्वक विश्राम करना और तनाव मुक्त होना है।
ध्यान श्रम साध्य नहीं है।
ध्यान हमारे अन्त:कर्ण के गहरे मौन, अत्यंतता और आत्मा को जानने में सहायक है।
आराम सबको चाहिए। किंतु वास्तव में हमें पता नहीं है कि पूर्ण रूप से विश्राम कैसे मिलता है। ध्यान हमारे लिए कोई नई अथवा बाह्य वस्तु नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि अपने जन्म से कुछ माह पहले हम ध्यान ही कर रहे होते हैं। आप अपनी माँ के गर्भ में होते हो तो कुछ भी नहीं कर रहे होते हो। आप अपना भोजन तक नहीं चबा रहे होते हो। बस मस्त रहते हुए द्रव्य में तैरते रहते हो। यह ध्यान अथवा पूर्ण विश्राम ही है। तब आपको कुछ भी नहीं करना पड़ता था, आपके लिए सब कुछ किया जा रहा था। इसलिए, इस क्रियाशील संसार में आने से पहले प्रत्येक जीवात्मा की नैसर्गिक इच्छा उसी पूर्ण विश्रांति की अवस्था में लौट जाने की होती है। ऐसा इसलिए भी है कि इस ब्रह्मांड में सब कुछ एक चक्रानुसार चल रहा है। हर चीज अपने स्रोत में वापस जाना चाहती है।
जब आपको भूख लगती है तो स्वाभाविक रूप से आपका मन कुछ खाने को करता है। ऐसे ही यदि प्यास लगी हो तो पानी पीने की इच्छा होती है। उसी प्रकार आत्मा ध्यान के लिए तरसती है और यह तड़प प्रत्येक व्यक्ति में होती है।
पुराने समय में ऋषि मुनि केवल योग्य शिष्यों और साधकों को ही ध्यान करना सिखाते थे। आधुनिक युग में, आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक, गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी ने इस ज्ञान को प्रत्येक व्यक्ति के लिए उपलब्ध करा दिया है ताकि उनके जीवन में गुणात्मक सुधार आ सके। और जब उनको उच्चतम ज्ञान पाने की ललक होगी तो वे इस की गहराई में उतर जाएँगे। इस प्रकार यह प्रत्येक व्यक्ति के लिए किसी न किसी रूप में लाभदायक है ही।
कुछ लोग समुद्र तट पर सैर करने जाते हैं ताकि उनको ताजा हवा और अधिक ऑक्सीजन मिल सके और इसमें उनको प्रसन्नता मिलती है। कुछ लोग ऐसे होंगे जो पानी में अपने पाँव डाल देते हैं और सागर के विशाल स्पर्श को अनुभव करते हैं। कुछ और ऐसे भी होते हैं जो सागर की लहरों में उतर जाते हैं या स्कूबा गोताखोरी करते हैं और उनको मूँगे और अन्य मूल्यवान वस्तुएँ मिल जाती हैं। अतः यह आप पर निर्भर है कि आप तट पर चलना, सागर में तैरना या गहरे उतर कर गोतखोरी करना चाहते हैं। सागर तो आपके लिए पूर्ण रूप से उपलब्ध है। ध्यान भी कुछ ऐसा ही है।
ध्यान की आवश्यकता प्रत्येक व्यक्ति को है क्योंकि हर व्यक्ति कभी कम न होने वाले आनंद और उस प्यार को, जो पूर्णतः दोषरहित और शाश्वत् हो, को पाना चाहता है
नदी जब शांत होती है तो उसमें सब कुछ स्पष्ट दिखाई देता है। उसी प्रकार जब मन शांत हो तो हमारी अभिव्यक्ति अधिक स्पष्ट होती है। ध्यान के निरंतर अभ्यास से गहरे विश्राम की स्थिति और शांति पाई जा सकती है। और यह शांति प्रायः ध्यान के वास्तविक समय से बहुत आगे तक बनी रहती है।
हम सब किसी न किसी विशेष प्रकार की तरंगें बिखेरते रहते हैं और जब हम तनाव ग्रस्त, क्रोधित, परेशान या निराश होते हैं तो उसका प्रभाव इन तरंगों पर भी पड़ता है। ध्यान में इन तरंगों को परिवर्तित करके उन्हें सकारात्मक और सृजनात्मक बनाने का सामर्थ्य होता है जिससे हमारे विचारों तथा भावनाओं में स्पष्टता आती है। यह हमारे मन पर पड़ी हुई पुरानी छापों को मिटाता है और हमारे विचारों को सही दिशा में मोड़ कर उन्हें केंद्रित करता है, जिससे हमें मानसिक स्पष्टता और भावनात्मक स्थिरता की अवस्था पाने में सहायता मिलती है। हमारे अवलोकन बोध, धारणा तथा अभिव्यक्ति की समझ में भी सुधार होता है।
ध्यान और नींद, दोनों से ही हमें गहरा विश्राम मिलता है। तथापि, ध्यान द्वारा प्राप्त विश्राम की गुणवत्ता नींद द्वारा पाए जाने वाले विश्राम से श्रेष्ठतर होती है। नींद की अपेक्षा ध्यान हमें कहीं अधिक ऊर्जा प्रदान करता है। ध्यान से इतना विश्राम मिलता है जो गहरी से गहरी नींद से भी नहीं मिल पाता। ध्यान करने से आप अपने भीतर के ऊर्जा स्रोत को जागृत करके अपने शरीर को ऊर्जा का भंडार बना सकते हैं।
चिंताएँ, परेशानियाँ और तनाव विकर्षण से भी अधिक हानिकारक हो सकते हैं। दैनिक जीवन में होने वाली समस्याएँ और भविष्य को लेकर भय हमारे मानसिक तथा शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। यह सर्वमान्य है कि ध्यान से हमारे शरीर की प्राण ऊर्जा में सुधार होता है। जैसे जैसे प्राणिक ऊर्जा में वृद्धि होती है, चिंता अपने आप कम होने लगती है। इस प्रकार ध्यान का नियमित अभ्यास करने से अवसाद, चिंताओं या आघात जनित तनाव जैसी समस्याओं में सुधारात्मक परिवर्तन होने लगते हैं।
विभिन्न अध्ययनों ने प्रमाणित किया है कि ध्यान न केवल मस्तिष्क की सकारात्मक भावनाओं के उत्प्रेरित करने वाले भाग को अधिक क्रियाशील बनाता है अपितु इसका हमारे समग्र मानसिक स्वास्थ्य पर भी घनात्मक प्रभाव पड़ता है।
ध्यान से हमारी सजगता में सुधार होता है और हमारे क्रियाकलाप अधिक उद्देश्यपूर्ण होने लगते हैं। जीवन की विषम परिस्थितियों के प्रति हमारा व्यवहार प्रतिक्रियात्मक न हो कर प्रत्युत्तर देने की दिशा में परिवर्तित होने लगता है। ध्यान हमारी सोचने की क्षमता, एकाग्रता, समस्या समाधान कौशल तथा भावनात्मक परेशानियों का सामना करके उन के प्रति स्वयं को ढालने और उन से पार पाने की शक्ति में भी सुधारात्मक भूमिका निभाता है। अनुसंधान यह भी दर्शाते हैं कि ध्यान करने से आपका मूड ऊपर उठता है, नींद की गुणवत्ता और उसके पैटर्न में सुधार होता है तथा आपके संज्ञानात्मक कौशल का विकास होता है। ध्यान के अभ्यास से बहुत ज्यादा सोचने, क्षीण सतर्कता तथा मन के भटकाव जैसे मस्तिष्क के व्यवहार को भी मोड़ कर सही दिशा में लाया जा सकता है।
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