गांधी और अछूतों की मुक्ति
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गांधी और अछूतों की मुक्ति" (Mr. Gandhi and the Emancipation of the Untouchables) डॉ. बी.आर. आंबेडकर की एक महत्वपूर्ण पुस्तक है, जिसमें उन्होंने महात्मा गांधी और दलित मुक्ति के संघर्ष के बीच के मतभेदों को विस्तार से समझाया है।
यह पुस्तक 1930-40 के दशक में गांधीजी और आंबेडकर के बीच हुए वैचारिक संघर्ष को दर्शाती है, खासकर:
पूना पैक्ट (1932) पर बहस – क्या यह दलितों के लिए वरदान था या राजनीतिक समझौता?
गांधीजी का 'हरिजन' आंदोलन – क्या यह दलितों की वास्तविक मुक्ति थी या सिर्फ सहानुभूति?
आरक्षण और स्वतंत्र राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर आंबेडकर और गांधी के विचारों का टकराव।
वर्ण व्यवस्था पर गांधी की स्थिति – क्या गांधी जाति उन्मूलन के पक्ष में थे या सिर्फ छुआछूत के खिलाफ?
धर्म परिवर्तन की आवश्यकता – आंबेडकर क्यों मानते थे कि दलितों को हिंदू धर्म छोड़ना चाहिए?
विषय | गांधी का दृष्टिकोण | आंबेडकर का दृष्टिकोण |
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जाति व्यवस्था | "वर्णाश्रम ठीक है, पर छुआछूत गलत है।" | "जाति ही समस्या है, इसे खत्म करो।" |
दलित प्रतिनिधित्व | "दलितों के लिए अलग निर्वाचक मंडल नहीं चाहिए।" | "दलितों को स्वतंत्र राजनीतिक अधिकार चाहिए।" |
हरिजन शब्द | "अछूतों को 'हरिजन' (ईश्वर के बच्चे) कहो।" | "यह शब्द सिर्फ भावुकता है, अधिकार नहीं देता।" |
धर्म परिवर्तन | "हिंदू धर्म में सुधार करो।" | "हिंदू धर्म छोड़ो, बौद्ध धर्म अपनाओ।"
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आंबेडकर का आरोप: गांधीजी ने पूना पैक्ट के जरिए दलितों के अलग निर्वाचक मंडल की माँग को कमजोर किया।
गांधी की प्रतिक्रिया: उनका मानना था कि अलग निर्वाचक मंडल से हिंदू समाज बंट जाएगा।
आंबेडकर का निष्कर्ष: "गांधीवादी दृष्टिकोण दलितों को सहानुभूति देता है, पर समानता नहीं।"
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