बहिष्कृत भारत
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बहिष्कृत भारत एक महत्वपूर्ण मराठी पाक्षिक (पंद्रह-दिवसीय) समाचार पत्र था जिसे डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर ने 3 अप्रैल 1927 को मुंबई से शुरू किया था। इसका मुख्य उद्देश्य दलितों और शोषित वर्गों के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाना और समाज में व्याप्त छुआछूत और जातिगत भेदभाव के खिलाफ संघर्ष करना था।
दलितों की आवाज़: 'बहिष्कृत भारत' का प्रकाशन विशेष रूप से उन लोगों के लिए किया गया था जिन्हें समाज से बहिष्कृत कर दिया गया था। यह उन अछूतों और दलितों के मुद्दों को उठाने का एक सशक्त माध्यम बना जिन्हें पारंपरिक मीडिया में कोई स्थान नहीं मिलता था।
सामाजिक सुधार: अम्बेडकर ने इस पत्रिका के माध्यम से ब्राह्मणवाद और मनुवाद को चुनौती दी। उन्होंने हिंदू समाज में व्याप्त ऊंच-नीच के भेदभाव पर खुलकर लिखा और दलितों के साथ होने वाले अन्याय को उजागर किया।
जागरूकता और शिक्षा: अम्बेडकर का मानना था कि दलितों के उत्थान के लिए शिक्षा और जागरूकता बहुत महत्वपूर्ण है। 'बहिष्कृत भारत' ने दलितों को शिक्षित करने और उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने में अहम भूमिका निभाई।
संपादकीय और लेख: डॉ. अम्बेडकर स्वयं इस पाक्षिक के संपादक थे और इसके अधिकांश लेख खुद लिखते थे। उनके संपादकीय लेखों में सामाजिक समानता, न्याय और मानव गरिमा के सिद्धांतों पर जोर दिया जाता था।
"मूकनायक" से प्रेरणा: 'बहिष्कृत भारत' से पहले अम्बेडकर ने 1920 में 'मूकनायक' नामक एक और पत्रिका शुरू की थी, जिसका उद्देश्य भी दलितों के मुद्दों को उठाना था। 'बहिष्कृत भारत' को 'मूकनायक' के सिद्धांतों को आगे बढ़ाने के लिए शुरू किया गया था।
ज्ञान और अध्ययन पर जोर: अम्बेडकर ने 'बहिष्कृत भारत' शुरू करने से पहले मराठी भाषा और भारत के सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलनों का गहन अध्ययन किया था। उन्होंने मराठी संत-कवियों के काव्य और उस समय की पत्र-पत्रिकाओं का भी गंभीर अध्ययन किया ताकि वे अपने विचारों को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत कर सकें।
स्तंभ: इसमें विभिन्न स्तंभ होते थे जैसे 'आज के प्रश्न', 'अग्रलेख', 'आत्मवृत्त', 'विचार-विनिमय' और 'वर्तमान सार'। इन स्तंभों के माध्यम से सामाजिक समस्याओं, सार्वजनिक गतिविधियों की रिपोर्टिंग, दलितों के संगठनों की समस्याओं और देश के प्रमुख समाचारों पर चर्चा की जाती थी।
'बहिष्कृत भारत' का प्रकाशन 15 नवंबर 1929 तक चला और कुल 34 अंक प्रकाशित हुए। वित्तीय अभावों और डॉ. अम्बेडकर की अन्य व्यस्तताओं के कारण यह पत्रिका बंद हो गई। हालाँकि, इसके प्रभाव को कम नहीं आंका जा सकता है, क्योंकि इसने दलित आंदोलन को एक मजबूत वैचारिक आधार प्रदान किया और समाज में परिवर्तन की लहर पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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