ऐतिहासिक भूमिका: सैन्य वीरता
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महारों का योगदान भारतीय इतिहास और समाज में एक गौरवशाली, परंतु अक्सर उपेक्षित, अध्याय है। महार समुदाय, जो मुख्यतः महाराष्ट्र का एक दलित (अनुसूचित जाति) समुदाय है, ने सैन्य शौर्य, सामाजिक न्याय के संघर्ष, और सांस्कृतिक पुनर्जागरण में अहम भूमिका निभाई है। आइए इसके प्रमुख पहलुओं को समझें:
मराठा साम्राज्य में योगदान:
महारों को मराठा सेना में "खंडोबा के भक्त" और योद्धाओं के रूप में जाना जाता था। छत्रपति शिवाजी महाराज ने उनकी बहादुरी और निष्ठा के कारण उन्हें सेना व किलेबंदी में महत्वपूर्ण भूमिका दी।
वे गुरिल्ला युद्ध, जासूसी, और सीमा सुरक्षा में माहिर थे।
पेशवा काल में उत्पीड़न:
पेशवाओं (ब्राह्मण शासकों) ने महारों को "अछूत" घोषित कर दिया और उन पर जातिगत अपमानजनक नियम (जैसे कमर में झाड़ू बांधकर चलना) थोपे।
ब्रिटिश सेना में महत्वपूर्ण भूमिका:
अंग्रेजों ने महारों की सैन्य क्षमता को पहचाना और उन्हें "महार रेजीमेंट" में भर्ती किया।
कोरेगांव की लड़ाई (1818): 800 महार सैनिकों ने पेशवा बाजी राव II की 28,000 की सेना को रोक दिया। यह लड़ाई दलित गौरव का प्रतीक बनी।
विश्व युद्धों में भागीदारी: प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में महार रेजीमेंट ने ब्रिटिश इंडियन आर्मी के लिए लड़ाई लड़ी।
डॉ. आंबेडकर का नेतृत्व:
डॉ. बी.आर. आंबेडकर स्वयं महार समुदाय से थे। उन्होंने महारों के संघर्ष को दलित आंदोलन का आधार बनाया।
मनुस्मृति दहन (1927): महार समुदाय ने आंबेडकर के साथ जातिगत असमानता को बढ़ावा देने वाले ग्रंथ "मनुस्मृति" का सार्वजनिक दहन किया।
बौद्ध धर्म अपनाना:
1956 में आंबेडकर के नेतृत्व में लाखों महारों ने नवबौद्ध धर्म अपनाकर हिंदू जाति व्यवस्था को खारिज किया।
शिक्षा और जागरूकता:
महार समुदाय ने आंबेडकर के "शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो" के नारे को अपनाया और शैक्षणिक संस्थानों व सामाजिक संगठनों का निर्माण किया।
दलित साहित्य:
महार लेखकों ने मराठी साहित्य में दलित चेतना को मुख्यधारा में लाया। नामदेव ढसाल (कवि) और बाबुराव बागुल (लेखक) जैसे नाम उल्लेखनीय हैं।
आत्मकथाओं (जैसे "मराठी दलित आत्मकथा") के माध्यम से उत्पीड़न की कहानियाँ सामने आईं।
कला और संगीत:
"शाहिरी" (लोक गायन) और "दलित पंतरंग" (नाटक) जैसी कलाओं के माध्यम से महारों ने अपनी पीड़ा और संघर्ष को अभिव्यक्त किया।
प्रतीक और उत्सव:
भीमा कोरेगांव विजय स्तंभ और अंबेडकर जयंती महार समुदाय के लिए गौरव के प्रतीक हैं।
"जय भीम" का नारा समाज में एक नई चेतना का प्रतीक बना।
राजनीतिक प्रतिनिधित्व:
महार समुदाय के नेताओं ने रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (RPI) और बहुजन समाज पार्टी (BSP) जैसे दलों के माध्यम से दलित हितों को आवाज दी।
सशक्तिकरण के प्रयास:
महार युवाओं ने शिक्षा, टेक्नोलॉजी, और सिविल सेवाओं में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है।
महार रेजीमेंट आज भी भारतीय सेना का हिस्सा है और इसका गौरवशाली इतिहास है।
सामाजिक बदलाव:
महार समुदाय ने जातिवाद, छुआछूत, और आर्थिक शोषण के खिलाफ सामूहिक आवाज उठाई है।
जातिगत हिंसा: महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में महारों पर हमले अभी भी होते हैं।
सामाजिक भेदभाव: शिक्षा और रोजगार में अवसरों की कमी।
पहचान का संकट: नवबौद्ध धर्म अपनाने के बाद भी समाज में उन्हें "पूर्व-दलित" के रूप में देखा जाता है।
महार समुदाय ने न सिर्फ युद्धक्षेत्र में, बल्कि सामाजिक क्रांति के मोर्चे पर भी इतिहास रचा है। डॉ. आंबेडकर के शब्दों में: "महारों का इतिहास सिर्फ गुलामी का नहीं, बल्कि विद्रोह और गौरव का इतिहास है।"
आज भी यह समुदाय शिक्षा, संस्कृति और राजनीति के माध्यम से भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत कर रहा है।
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