2018 में हिंसा

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2018 में हिंसा कोरेगांव भीमा स्मारक के इतिहास में एक दुखद और विवादास्पद घटना है, जिसने पूरे देश का ध्यान खींचा। यह घटना 1 जनवरी 2018 को हुई, जब भीमा कोरेगांव विजय स्तंभ की 200वीं वर्षगांठ के अवसर पर हजारों दलित समुदाय के लोग एकत्र हुए थे। इस दौरान हिंसक झड़पें भड़क उठीं, जिसमें 1 व्यक्ति की मौत हो गई और सैकड़ों लोग घायल हुए। इसके पीछे मुख्य कारण और प्रभाव इस प्रकार हैं:

हिंसा के कारण:

  • विरोधी समूहों का टकराव:

    • दलित समुदाय के लोगों का एक बड़ा जमावड़ा स्मारक पर श्रद्धांजलि देने पहुंचा था। इस दौरान कुछ हिंदुत्ववादी समूहों (जैसे 'शिव प्रतिष्ठान' और 'संभाजी भिड़े') ने विरोध प्रदर्शन किया, जिससे तनाव बढ़ा।

    • आरोप लगाया गया कि ये समूह पेशवा शासन के "गौरव" को बचाने के नाम पर दलितों के जुलूस को रोकना चाहते थे।

  • मेमोरियल स्टोन विवाद:

    • हिंसा से कुछ दिन पहले, गाँव के पास एक मेमोरियल स्टोन बनाया गया था, जिसे कुछ समूहों ने "महारों के विरोध" का प्रतीक बताया। इस स्टोन को तोड़ने की कोशिश से तनाव और बढ़ा।

  • राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप:

    • दलित नेताओं ने आरोप लगाया कि ब्राह्मणवादी संगठनों और स्थानीय नेताओं ने हिंसा भड़काई।

    • विपक्षी दलों ने भाजपा-शिवसेना सरकार पर आरोप लगाए, जबकि सरकार ने इसे "साजिश" बताया।

  • हिंसा के प्रभाव:

  • जान-माल की क्षति:

    • पुणे जिले के कोरेगांव भीमा और आसपास के इलाकों में हुई झड़पों में 1 व्यक्ति की मृत्यु हुई और करीब 200 लोग घायल हुए।

    • दलित युवाओं और हिंदुत्व समर्थकों के बीच पथराव, आगजनी और लाठीचार्ज हुआ।

  • राज्यव्यापी विरोध:

    • इस घटना के बाद महाराष्ट्र सहित देशभर में दलित समुदाय ने बंद और प्रदर्शन किए।

    • मुंबई, दिल्ली, हैदराबाद जैसे शहरों में सामाजिक न्याय और जातिगत हिंसा के खिलाफ आवाज उठाई गई।

  • राजनीतिक भूचाल:

    • महाराष्ट्र सरकार पर "दलित विरोधी" होने के आरोप लगे।

    • दलित नेता प्रकाश आंबेडकर (बी.आर. आंबेडकर के पोते) ने सरकार की कार्रवाई पर सवाल उठाए।

  • जांच और विवाद:

    • महाराष्ट्र पुलिस ने माओवादी साजिश का आरोप लगाते हुए कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों और बुद्धिजीवियों को गिरफ्तार किया, जिनमें सुधा भारद्वाज, वरवर राव, और गौतम नवलखा शामिल हैं।

    • आरोप था कि इन लोगों ने "भीमा कोरेगांव हिंसा" को भड़काने के लिए षड्यंत्र रचा। हालाँकि, कई संगठनों ने इन गिरफ्तारियों को "दलित आवाजों को दबाने की कोशिश" बताया।

    • 2023 तक, यह मामला अदालत में लंबित है, और कई कार्यकर्ता जेल में बंद हैं।

    सामाजिक प्रतिध्वनि:

    • यह घटना भारत में जातिगत विभाजन और सामाजिक न्याय की बहस को फिर से उजागर कर गई।

    • दलित समुदाय ने इसे अपने इतिहास और गौरव पर हमला माना, जबकि कुछ समूहों ने "वास्तविक इतिहास" को तोड़-मरोड़ने का आरोप लगाया।

    • आज भी, 1 जनवरी को कोरेगांव भीमा में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए जाते हैं, ताकि शांति बनी रहे।




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