पेशवा शासन के अत्याचार: एक ऐतिहासिक विवरण

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पेशवा कौन थे? पेशवा मराठा साम्राज्य के प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने 18वीं सदी में शिवाजी महाराज के उत्तराधिकारियों के नाममात्र के शासनकाल में वास्तविक सत्ता संभाली। पेशवाओं का शासन (1713–1818) मराठा साम्राज्य के विस्तार का समय था, लेकिन सामाजिक रूप से यह काल जातिवाद, धार्मिक कट्टरता, और दलित उत्पीड़न के लिए कुख्यात रहा।

पेशवा शासन में दलितों पर अत्याचार:

  • जातिगत भेदभाव की चरम सीमा:

    • दलितों (महार, चमार, मांग, आदि) को "अछूत" घोषित किया गया। उन्हें गाँव की सीमा से बाहर बसने, सार्वजनिक कुँओं से पानी लेने, और मंदिरों में प्रवेश करने से रोका जाता था।

    • दलितों को गले में हांडी बाँधनी पड़ती थी, ताकि उनकी लार ज़मीन पर न गिरे। पैरों में घुंघरू बाँधे जाते थे, ताकि उनकी मौजूदगी का पता चल सके।

  • शारीरिक अपमान और यातनाएँ:

    • दलितों को सिर पर पगड़ी बाँधने, सोने-चाँदी के गहने पहनने, या घोड़े पर चढ़ने की मनाही थी।

    • किसी दलित का ऊँची जाति के व्यक्ति की छाया में चलना भी अपराध माना जाता था। ऐसा करने पर कोड़ों से मार या जुर्माना लगाया जाता था।

  • अमानवीय कानून:

    • मनुस्मृति के नियमों को कठोरता से लागू किया जाता था। उदाहरण:

      • यदि कोई दलित वेद पढ़ लेता, तो उसके कान में पिघला सीसा डाला जाता था।

      • दलित महिलाएँ ऊपरी वस्त्र पहनने के लिए बाध्य नहीं थीं, ताकि उनकी पहचान बनी रहे।

  • धार्मिक कट्टरता:

    • पेशवाओं ने ब्राह्मणवादी व्यवस्था को बढ़ावा दिया। ब्राह्मणों को करमुक्त भूमि और विशेषाधिकार मिलते थे, जबकि दलितों को मंदिरों में प्रवेश तक नहीं था।

    • बालाजी बाजी राव (नानासाहेब पेशवा) के समय में दलितों के खिलाफ हिंसा चरम पर थी।

  • ऐतिहासिक घटनाएँ और प्रमाण:

  • महारों का सैन्य बहिष्कार:

    • शिवाजी महाराज ने महार समुदाय को सेना में शामिल किया था, लेकिन पेशवाओं ने उन्हें सेना से निकाल दिया और मृत पशुओं का चमड़ा उतारने जैसे घृणित कामों में धकेल दिया।

  • महाड़ सत्याग्रह (1927) का संदर्भ:

    • डॉ. अंबेडकर ने चवदार तालाब के पानी के अधिकार के लिए आंदोलन किया, जो पेशवा काल में दलितों के लिए वर्जित था।

  • ब्रिटिश दस्तावेज़ों में उल्लेख:

    • ब्रिटिश अधिकारी माउंटस्टुअर्ट एल्फिन्स्टन ने अपनी पुस्तक "राइज़ ऑफ़ द मराठा पावर" में लिखा: "पेशवाओं के शासन में दलितों की स्थिति पशुओं से भी बदतर थी।"

  • पेशवा शासन और शिवाजी के विचारों का विरोधाभास:

    • शिवाजी महाराज ने सर्वजन सुखाय की नीति अपनाई थी और सभी जातियों को समान अवसर दिए थे।

    • पेशवाओं ने इस नीति को धता बताकर ब्राह्मणवादी वर्चस्व स्थापित किया, जिससे समाज में विषमता बढ़ी।

    परिणाम और विरासत:

  • दलित आंदोलनों को प्रेरणा:

    • पेशवा काल के अत्याचारों ने ज्योतिबा फुलेडॉ. अंबेडकर, और पेरियार जैसे नेताओं को सामाजिक न्याय की लड़ाई के लिए प्रेरित किया।

  • मनुस्मृति दहन (1927):

    • डॉ. अंबेडकर ने पेशवाओं द्वारा थोपे गए मनुस्मृति के नियमों के विरोध में इस ग्रंथ का सार्वजनिक दहन किया।

  • सांस्कृतिक प्रतिरोध:

    • दलित साहित्य और लोकगीतों में पेशवा अत्याचारों का ज़िक्र मिलता है, जो उनके संघर्ष और गौरव की गाथा कहता है।

  • निष्कर्ष: पेशवा शासन का काल भारतीय इतिहास का एक काला अध्याय है, जहाँ मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन हुआ। यह युग हमें याद दिलाता है कि जातिवाद और धार्मिक कट्टरता किस तरह समाज को विघटित कर सकते हैं। डॉ. अंबेडकर के शब्दों में: "पेशवाओं ने शिवाजी के सपने को धोखा दिया, पर हमने अपने संघर्ष से नया इतिहास रचा है।"




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