अन्य प्रमुख अभियान एवं आंदोलन: डॉ अंबेडकर और दलित अधिकारों की लड़ाई
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अन्य प्रमुख अभियान एवं आंदोलन: डॉ. अंबेडकर और दलित अधिकारों की लड़ाई
भारत में सामाजिक न्याय और दलित उत्थान के लिए डॉ. बी.आर. अंबेडकर और अन्य नेताओं ने कई ऐतिहासिक अभियान चलाए। यहाँ कुछ प्रमुख आंदोलनों का विवरण है:
उद्देश्य: नासिक के कालाराम मंदिर में दलितों के प्रवेश का अधिकार सुनिश्चित करना।
घटनाक्रम:
अंबेडकर के नेतृत्व में हज़ारों दलितों ने मंदिर के दरवाज़े पर धरना दिया।
पुजारियों और रूढ़िवादियों ने विरोध किया, लेकिन आंदोलन ने देशभर में जातिवाद के खिलाफ चेतना जगाई।
प्रभाव: यह आंदोलन धार्मिक भेदभाव के खिलाफ प्रतीकात्मक जीत बना।
इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी (1936):
अंबेडकर ने मजदूरों, किसानों, और दलितों को एकजुट करने के लिए यह पार्टी बनाई।
मांगें: न्यूनतम मजदूरी, काम के घंटे तय करना, और भूमि सुधार।
बॉम्बे विधानसभा भाषण (1937):
अंबेडकर ने कहा: "मजदूरों की मेहनत पर पूंजीपतियों का शोषण बंद होना चाहिए!"
संविधान सभा के अध्यक्ष: अंबेडकर ने भारतीय संविधान का मसौदा तैयार किया।
महत्वपूर्ण प्रावधान:
अनुच्छेद 17: छुआछूत का उन्मूलन।
अनुच्छेद 15-16: धर्म, जाति, लिंग के आधार पर भेदभाव पर प्रतिबंध।
अनुच्छेद 32: संवैधानिक उपचार का अधिकार।
नागपुर धर्मांतरण (14 अक्टूबर 1956):
अंबेडकर ने अपने 5 लाख समर्थकों के साथ बौद्ध धर्म अपनाया।
कारण: हिंदू धर्म की जातिवादी व्यवस्था से मुक्ति और समानता आधारित जीवन।
प्रभाव: यह आंदोलन दलितों के लिए सांस्कृतिक पुनर्जागरण और आत्मसम्मान का प्रतीक बना।
हिंदू कोड बिल (1951):
अंबेडकर ने महिलाओं को संपत्ति का अधिकार, तलाक का अधिकार, और लैंगिक समानता का प्रस्ताव रखा।
रूढ़िवादी विरोध के कारण बिल पूरी तरह पास नहीं हुआ, लेकिन बाद में इसके कुछ हिस्से लागू किए गए।
सिद्धार्थ कॉलेज (1923):
अंबेडकर ने मुंबई में दलितों के लिए यह कॉलेज स्थापित किया।
पढ़ो और संगठित होने का आह्वान:
उनका नारा था: "शिक्षा शेरनी का दूध है, जो इसे पिएगा वह दहाड़ेगा!"
उद्देश्य: दलितों को राजनीतिक रूप से संगठित करना।
मांगें:
पृथक निर्वाचन मंडल।
शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण।
गोलमेज सम्मेलन (1930-32):
अंबेडकर ने लंदन में दलितों के अधिकारों को वैश्विक स्तर पर उठाया।
उन्होंने कहा: "भारत में दलितों की स्थिति दासों से भी बदतर है।"
मूकनायक (1920): अंबेडकर का मराठी साप्ताहिक, जिसने दलितों की आवाज़ बुलंद की।
जनता (1930): हिंदी और मराठी में प्रकाशित इस पत्र ने सामाजिक अन्याय के खिलाफ लड़ाई को मजबूती दी।
बैंक ऑफ इंडिया (1946):
अंबेडकर ने दलितों और गरीबों के लिए वित्तीय स्वावलंबन हासिल करने के लिए इस बैंक की स्थापना में भूमिका निभाई।
कृषि सुधार: भूमिहीन मजदूरों के लिए ज़मीन का पुनर्वितरण।
डॉ. अंबेडकर के ये अभियान न सिर्फ़ दलित बल्कि पूरे भारत के सामाजिक-आर्थिक ढाँचे को बदलने की नींव बने। उन्होंने साबित किया कि "संघर्ष और शिक्षा के बल पर ही गुलामी की बेड़ियाँ तोड़ी जा सकती हैं।" आज भी ये आंदोलन उन लाखों लोगों के लिए प्रेरणा हैं, जो समानता और गरिमा की लड़ाई लड़ रहे हैं।
स्मरणीय वाक्य:
"मैं ऐसे धर्म को मानता हूँ, जो स्वतंत्रता, समानता, और भाईचारा सिखाए।" -डॉ. बी.आर. अंबेडकर
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