ब्रिटिश सेना में महारों की भूमिका
꧁ Digital Diary ༒Largest Writing Community༒꧂
महार समुदाय का इतिहास: महार भारत की एक दलित जाति है, जो मुख्य रूप से महाराष्ट्र में निवास करती है। पेशवा शासन (18वीं सदी) के दौरान उन्हें "अछूत" माना जाता था और उन पर जातिगत भेदभाव, आर्थिक शोषण, और सामाजिक बहिष्कार की नीतियाँ लागू थीं। महारों को गाँव की सीमा पर रहने, मृत पशुओं को उठाने, और सैन्य सेवा जैसे कठिन काम करने के लिए मजबूर किया जाता था।
पेशवा शासन के अत्याचार:
पेशवाओं ने महारों को सैन्य और प्रशासनिक भूमिकाओं से वंचित रखा, जिससे वे ब्रिटिश सेना में शामिल होने के लिए प्रेरित हुए।
ब्रिटिशों की रणनीति:
अंग्रेज़ों ने महारों की युद्ध कौशल और स्थानीय ज्ञान को पहचाना। उन्हें "अछूत" होने के बावजूद सेना में भर्ती किया गया, क्योंकि वे मराठा साम्राज्य के खिलाफ लड़ाई में मददगार साबित हो सकते थे।
कोरेगांव की लड़ाई (1 जनवरी 1818):
500 महार सैनिकों ने पेशवा बाजीराव II की 28,000 सैनिकों वाली सेना को हराया।
यह लड़ाई महारों के साहस और रणनीतिक कौशल का प्रतीक बनी।
इस विजय की याद में भीमा कोरेगांव विजय स्तंभ बनाया गया, जिस पर शहीद महार सैनिकों के नाम अंकित हैं।
अन्य अभियान:
प्रथम एंग्ल-मराठा युद्ध (1775-1782): महारों ने ब्रिटिशों को मराठा किलों पर कब्ज़ा करने में मदद की।
द्वितीय एंग्ल-सिख युद्ध (1848-49): महार रेजीमेंट ने पंजाब में सिख सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
1857 का विद्रोह: महार सैनिकों ने ब्रिटिशों के पक्ष में लड़कर विद्रोह को दबाने में भूमिका निभाई।
गठन: 1813 में महार नेटिव इन्फैंट्री के रूप में पहली बार महारों की अलग रेजीमेंट बनी।
विशेषताएँ:
महार सैनिक गुरिल्ला युद्ध और जंगल इलाकों में लड़ाई में माहिर थे।
उन्हें वफादारी और अनुशासन के लिए जाना जाता था।
भंग होना: 1892 में ब्रिटिशों ने "मार्शल रेस" के सिद्धांत के तहत महार रेजीमेंट को भंग कर दिया, क्योंकि उन्हें लगा कि ये "युद्ध के लिए अनुपयुक्त" हैं।
सामाजिक उत्थान का रास्ता:
सैन्य सेवा ने महारों को आर्थिक सुरक्षा और सामाजिक सम्मान दिलाया।
डॉ. अंबेडकर के पिता रामजी सकपाल भी ब्रिटिश सेना में सूबेदार थे, जिससे अंबेडकर को शिक्षा और प्रेरणा मिली।
राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका:
कुछ महार सैनिक बाद में भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) में शामिल हुए और स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया।
महार रेजीमेंट का पुनर्गठन:
1941 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिशों ने फिर से महार रेजीमेंट बनाई।
स्वतंत्र भारत में यह रेजीमेंट भारतीय सेना का गौरवशाली हिस्सा बनी और कारगिल युद्ध (1999) जैसे अभियानों में शामिल रही।
कर्नल जॉन ब्रिग्स (1818) ने लिखा: "महार सैनिकों ने अद्भुत वीरता दिखाई। उनके बिना कोरेगांव की जीत असंभव थी।"
ब्रिटिश सेना के अधिकारी ने टिप्पणी की: "ये सैनिक प्रकृति के योद्धा हैं, जो भूख और थकान को झेल सकते हैं।"
महारों की सैन्य सेवा ने साबित किया कि जाति किसी की योग्यता का मापदंड नहीं।
डॉ. अंबेडकर ने कहा: "महारों ने सैन्य बल से नहीं, बल्कि अपने संकल्प से पेशवाओं की गुलामी को चुनौती दी।"
यह इतिहास दलित समुदाय को स्वाभिमान और सामाजिक न्याय की लड़ाई के लिए प्रेरित करता है।
निष्कर्ष: ब्रिटिश सेना में महारों की भूमिका न केवल एक सैन्य अध्याय है, बल्कि जातिगत भेदभाव के खिलाफ संघर्ष की प्रेरणादायक गाथा है। यह साबित करता है कि "शक्ति जन्म से नहीं, संकल्प से आती है।"
We are accepting Guest Posting on our website for all categories.
Motivation All Students
@DigitalDiaryWefru