भीमा कोरेगांव विजय स्तंभ: एक ऐतिहासिक विरासत
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स्थान और महत्व: भीमा कोरेगांव विजय स्तंभ महाराष्ट्र के पुणे ज़िले में भीमा नदी के किनारे स्थित एक ऐतिहासिक स्मारक है। यह स्तंभ 1 जनवरी 1818 को हुए कोरेगांव की लड़ाई में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना की जीत की याद में बनाया गया था। इस लड़ाई में अधिकांश सैनिक महार जाति (दलित समुदाय) के थे, जिन्होंने पेशवा बाजीराव II की सेना को हराया था। यह स्तंभ दलित समुदाय के लिए सामाजिक गौरव और वीरता का प्रतीक बन गया है।
लड़ाई का कारण: पेशवा शासन (ब्राह्मणवादी व्यवस्था) के दौरान महार समुदाय को घोर जातिगत उत्पीड़न झेलना पड़ता था। पेशवा सैनिकों ने महारों को अछूत माना और उन पर अत्याचार किए।
ब्रिटिश सेना में महारों की भूमिका: ब्रिटिश सेना ने महार सैनिकों को अपनी रेजीमेंट में शामिल किया, क्योंकि उनकी वीरता और निष्ठा प्रसिद्ध थी।
लड़ाई का नतीजा: महार सैनिकों ने पेशवा की 28,000 सैनिकों वाली सेना के खिलाफ मात्र 500 सैनिकों के साथ जीत हासिल की।
स्थापना: 1821 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस स्तंभ का निर्माण कराया।
डिज़ाइन: स्तंभ की ऊँचाई लगभग 60 फीट है, जिस पर महार रेजीमेंट के 49 शहीद सैनिकों के नाम अंकित हैं।
शिलालेख: स्तंभ पर लिखा है – "इस स्थान पर ब्रिटिश सेना ने पेशवा की विशाल सेना को हराया, जो उनके साहस और अनुशासन का प्रमाण है।"
सामाजिक गौरव का प्रतीक:
महार सैनिकों की जीत को दलित समुदाय ने जातिगत उत्पीड़न के खिलाफ विजय के रूप में देखा।
डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने 1 जनवरी 1927 को इस स्थान का दौरा किया और इसे दलित अस्मिता का प्रतीक बताया।
वार्षिक समारोह (शौर्य दिवस):
हर साल 1 जनवरी को लाखों दलित यहाँ एकत्र होकर विजय स्तंभ को नमन करते हैं और सामाजिक न्याय की शपथ लेते हैं।
इस दिन को "दलित प्राइड डे" के रूप में मनाया जाता है।
बाइसेन्टेनियल सेलिब्रेशन: 1 जनवरी 2018 को कोरेगांव की लड़ाई के 200 साल पूरे होने पर एक बड़ा जनसमूह इकट्ठा हुआ।
हिंसक झड़पें: कुछ समूहों ने जुलूस पर हमला कर दिया, जिससे हिंसा भड़क गई। इस घटना में एक व्यक्ति की मौत और सैकड़ों लोग घायल हुए।
कानूनी कार्रवाई: महाराष्ट्र पुलिस ने कथित तौर पर माओवादी संपर्कों के आरोप में कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया, जिसे "भीमा कोरेगांव मामला" कहा गया।
दलित एकजुटता: यह स्तंभ दलितों को उनके इतिहास और वीरता की याद दिलाता है, जो उन्हें सामाजिक भेदभाव के खिलाफ लड़ने की प्रेरणा देता है।
सांस्कृतिक पुनर्जागरण: दलित साहित्य, कला, और संगीत में कोरेगांव की लड़ाई को सशक्तिकरण के प्रतीक के रूप में दर्शाया जाता है।
पर्यटन और शिक्षा: यह स्थल अब एक राष्ट्रीय स्मारक है, जहाँ देशभर से लोग इतिहास और सामाजिक न्याय के बारे में जानने आते हैं।
सुरक्षा चुनौतियाँ: 2018 की हिंसा के बाद से यहाँ भारी पुलिस बल तैनात रहता है, खासकर 1 जनवरी को।
भीमा कोरेगांव विजय स्तंभ सिर्फ़ एक ऐतिहासिक स्मारक नहीं, बल्कि दलित अस्मिता, साहस, और संघर्ष का जीवंत प्रतीक है। यह समाज को याद दिलाता है कि "जातिवाद के खिलाफ लड़ाई में इतिहास की भूमिका अमर है।" जैसा कि डॉ. अंबेडकर ने कहा था: "शिक्षित बनो, संगठित रहो, और संघर्ष करो!"
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