मनुस्मृति दहन: एक ऐतिहासिक प्रतिरोध

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पृष्ठभूमि: मनुस्मृति (या मानव धर्मशास्त्र) एक प्राचीन हिंदू धर्मग्रंथ है, जिसे लगभग 200 ईसा पूर्व से 200 ईस्वी के बीच लिखा गया माना जाता है। यह ग्रंथ सामाजिक व्यवस्था, जाति-व्यवस्था, और स्त्री-पुरुष के कर्तव्यों को परिभाषित करता है। इसमें दलितों और महिलाओं के प्रति अपमानजनक और असमान नियमों का उल्लेख है, जिसके कारण यह सदियों से सामाजिक भेदभाव का प्रतीक बना रहा।

मनुस्मृति दहन की घटना:

  • तिथि और स्थान: 25 दिसंबर 1927 को महाराष्ट्र के महाड़ शहर में।

  • नेतृत्व: डॉ. भीमराव अंबेडकर और उनके सहयोगियों ने इसका आयोजन किया।

  • संदर्भ: यह घटना महाड़ सत्याग्रह का हिस्सा थी, जिसमें दलितों को सार्वजनिक तालाब (चवदार तालाब) से पानी पीने का अधिकार दिलाने के लिए संघर्ष किया गया।

घटना का उद्देश्य:

  • जातिगत असमानता का विरोध:

    • मनुस्मृति में दलितों को "अछूत" और शूद्रों को निम्न स्थान देने वाले नियमों का सार्वजनिक रूप से विरोध करना।

    • अंबेडकर का कहना था: "मनुस्मृति भारतीय समाज की बेड़ियाँ हैं, जिन्हें तोड़ना ज़रूरी है।"

  • सामाजिक चेतना जगाना:

    • दलित समुदाय को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना और ब्राह्मणवादी व्यवस्था के खिलाफ आवाज़ उठाना।

  • प्रतीकात्मक क्रांति:

    • ग्रंथ को जलाना एक प्रतीकात्मक कार्य था, जो यह संदेश देता था कि समाज को जातिवाद और असमानता पर आधारित ग्रंथों को नकारना चाहिए।

  • घटना का विवरण:

    • सभा का आयोजन: महाड़ में हज़ारों दलितों और सुधारवादियों की एक सभा हुई।

    • मनुस्मृति की प्रतियाँ जलाई गईं: अंबेडकर ने कहा, "यह ग्रंथ हमें गुलाम बनाता है, इसे आग के हवाले करो!"

    • ऐतिहासिक भाषण: अंबेडकर ने कहा, "मनुस्मृति ने हमें सदियों से दबाया है। आज हम इसकी आग में अपनी आज़ादी की लौ जलाएँगे!"

    प्रतिक्रिया और प्रभाव:

  • रूढ़िवादियों का विरोध:

    • कट्टरपंथी समूहों ने इस घटना की निंदा की और अंबेडकर को हिंदू धर्म का "दुश्मन" बताया।

  • दलित चेतना का उभार:

    • यह घटना दलितों के लिए गर्व और आत्मसम्मान का प्रतीक बनी।

    • इसके बाद देशभर में जातिगत भेदभाव के खिलाफ आंदोलन तेज़ हुए।

  • संविधान निर्माण की नींव:

    • अंबेडकर के इस संघर्ष ने भारतीय संविधान में समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को शामिल करने की राह बनाई।

  • ऐतिहासिक महत्व:

    • प्रथम सार्वजनिक विद्रोह: यह पहली बार था जब किसी धार्मिक ग्रंथ को सामाजिक अन्याय के प्रतीक के रूप में जलाया गया।

    • बौद्धिक क्रांति का प्रतीक: अंबेडकर ने दिखाया कि शिक्षा और तर्क के बल पर पुरानी मान्यताओं को चुनौती दी जा सकती है।

    • आधुनिक भारत की प्रेरणा: यह घटना आज भी सामाजिक न्याय के लिए लड़ने वाले समूहों के लिए प्रेरणास्रोत है।

    अंबेडकर का दृष्टिकोण:

    • उन्होंने कहा था: "मनुस्मृति को जलाना कोई धार्मिक कार्य नहीं, बल्कि मानवता के नाम पर एक नैतिक कर्तव्य है।"

    • उनका लक्ष्य था: "ऐसा समाज बनाना, जहाँ हर व्यक्ति को उसकी मेहनत और योग्यता के आधार पर सम्मान मिले।"

    निष्कर्ष: मनुस्मृति दहन सिर्फ़ एक ग्रंथ को जलाने की घटना नहीं, बल्कि सामाजिक क्रांति का ऐलान था। यह आज भी उन लोगों के लिए मशाल की तरह है, जो जातिवाद, लैंगिक भेदभाव और धार्मिक कट्टरता के खिलाफ लड़ते हैं।




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